desiaks
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'जी हां। सत्य है अनुमान आपका–कहा है उन्होंने कि आर्य सम्राट ने हम पर अन्यायपूर्ण आक्रमण करके अपने को हमारी दृष्टि में हेय एवं घृणित प्रमाणित किया है।'
'यह कहा उन्होंने।' दांत पीसने लगे आर्य सम्राट।
'जिस समय मैं वहां से लौटने लगा, उस समय तक द्रविड़सेना युद्ध के लिए तनिक भी प्रस्तुत न थी। परन्तु आश्चर्य के साथ मैं देख रहा हूं कि मेरे यहां आने के बहुत पहले उनकी सेना आ पहुंची है...।' बोला राजदूत।
'क्या तुम्हारे वहां से चल देने के पश्चात् सेना ने प्रस्थान किया था ?'
'जी हां श्रीमान्...। पर्याप्त समय पश्चात्...।'
'तो इतना शीघ्र उनके यहां आ पहुंचने का कारण...।' आर्य सम्राट आश्चर्यचकित थे।
'हो सकता है कि कोई गुप्त मार्ग हो, जिससे वे लोग यहां पहले आ पहुंचे हो...।' पर्णिक ने कहा।
'ठीक कहते हो संचालक तुम, यही कारण हो सकता है?'आर्य सम्राट ने कहा—'जहां तक मेरा अनुमान है, परसों प्रात:काल तक उनकी सेना युद्ध के लिए पूर्णतया प्रस्तुत हो जायेगी। इसलिए कल प्रात:काल तक तुम भी अपनी सेना का विधिवत् निरीक्षण कर लो, जिससे ठीक समय पर हम आक्रमण-प्रत्याक्रमण करने में समर्थ हो सकें।'
'जो आज्ञा श्रीमान्।' पर्णिक ने कहा।
आर्यशिविर से एक योजन दक्षिण की ओर द्रविड़सेना का शिविर था। द्रविडसेना यद्यपि आर्य सेना की संख्या से आधी थी, तथापि उसमें अतीव उत्साह था। कई वर्षों से विश्राम का उपभोग करते योद्धागण, इस युद्ध में भाग लेने के लिए अत्यंत लालायित एवं व्यग्न थे। समस्त द्रविड़सेना अपने धर्म एवं स्वदेश के रक्षार्थ अपना जीवन उत्सर्ग करने को प्रस्तुत थी।
आज मध्याह्न में युवराज भी गुप्त मार्ग द्वारा शिविर में आ पहुंचे थे—परन्तु उनका पदार्पण अत्यंत गुप्त रखा गया था।
यहां तक कि कुछ उच्च पदाधिकारी, कुछ गुप्तचरों तथा कुछ सैनिकों को छोड़कर, अन्य किसी भी द्रविड़ सैनिक को उनका आना ज्ञात न था।
चारों ओर यह बात प्रसारित कर दी गई थी कि किसी कारणवश युवराज युद्धक्षेत्र में नहीं आयगे, उनका स्थान कोई अन्य ग्रहण करेगा।
इस बात को गुप्त रखने करा तात्पर्य क्या था? यह राजनीति के ज्ञाता ही बता सकते हैं। इस समय दो प्रहर रात्रि बीत चुकी थी। भयानक वनस्थली, द्रविड़सेना के शिविर के चतुर्दिक भांय-भांय कर रही है। वन्य-पशुओं के भीषण गर्जन ने वातावरण को और भी भीषण बना दिया।
युवराज के शिविर में इस समय सेना के प्रमुख अधिकारियों के मध्य मंत्रणा हो रही है, मगर यह मंत्रणा भी युवराज के पदार्पण की ही तरह गुप्त है। इस मंत्रणा में केवल वही लोग सम्मिलित हैं,
जो युवराज के आगमन के विषय में जानते हैं।
"वीरो...!' उच्चासन पर आसीन युवराज नारिकेल का स्वर उन वीरों में शक्ति का संचार करने वाला था—'यह तुमको ज्ञात है कि आज तक द्रविड़ों के सम्मान पर, द्रविड़ों की वीरता पर, तनिक भी कलंक नहीं लगने पाया है और न तो लगने की तब तक आशा है, जब तक द्रविड़ साम्राज्य का एक भी योद्धा शेष है।'
युवराज रुके।
एक क्षण के लिए उनके नेत्र अपनी सेना के प्रमुख, वीरों के मुख पर जा पड़े, जो उनके सन्निकट की आसीन थे।
तत्पश्चात वे बोले-'आज आर्य-सम्राट ने हम पर अनाचारपूर्ण आक्रमण किया है तो हमारा यह परम कर्तव्य है कि अपनी सम्पूर्ण शक्ति का उपयोग कर एक अन्यायी को उसके अन्याय का समुचित दंड दें। आप विश्वास रखिये...यदि सब न्याय मार्ग पर हैं तो हमारी विजय महामाया की कृपा से निश्चित है। आर्य-सम्राट की सेना हमारी सेना से दुगुनी है, उसके पास अस्त्र-अस्त्र का भी बाहुल्य है। ऐसी दशा में हमारा क्या कर्तव्य होना चाहिये, यही मंत्रणा करने हम यहां एकत्र हुए
'श्रीयुवराज...।' धेनुक उठकर खड़ा हुआ। युवराज को अभिवादन करने के पश्चात् वह बोला —'आपका कथन असत्य नहीं है। आज हमारी कठिन परीक्षा का समय उपस्थित है। आज हम कायर बन गये तो हमारी स्वतंत्रता, एक विदेशी शासक के शासन में छिन्न-भिन्न हो जायेगी, परन्तु श्रीयुवराज विश्वास रखें। द्रविड़ों ने अब तक सम्मान का जीवन व्यतीत किया है तो अब अपमान का जीवन नहीं व्यतीत कर सकते...हम मर मिटेंगे अपने स्वदेशाभिमान पर अपनी स्वतंत्रता पर। श्रीयुवराज आज्ञा दें, हम सब आपके श्रीचरणों पर बलिदान होने को प्रस्तुत हैं।'
'यह कहा उन्होंने।' दांत पीसने लगे आर्य सम्राट।
'जिस समय मैं वहां से लौटने लगा, उस समय तक द्रविड़सेना युद्ध के लिए तनिक भी प्रस्तुत न थी। परन्तु आश्चर्य के साथ मैं देख रहा हूं कि मेरे यहां आने के बहुत पहले उनकी सेना आ पहुंची है...।' बोला राजदूत।
'क्या तुम्हारे वहां से चल देने के पश्चात् सेना ने प्रस्थान किया था ?'
'जी हां श्रीमान्...। पर्याप्त समय पश्चात्...।'
'तो इतना शीघ्र उनके यहां आ पहुंचने का कारण...।' आर्य सम्राट आश्चर्यचकित थे।
'हो सकता है कि कोई गुप्त मार्ग हो, जिससे वे लोग यहां पहले आ पहुंचे हो...।' पर्णिक ने कहा।
'ठीक कहते हो संचालक तुम, यही कारण हो सकता है?'आर्य सम्राट ने कहा—'जहां तक मेरा अनुमान है, परसों प्रात:काल तक उनकी सेना युद्ध के लिए पूर्णतया प्रस्तुत हो जायेगी। इसलिए कल प्रात:काल तक तुम भी अपनी सेना का विधिवत् निरीक्षण कर लो, जिससे ठीक समय पर हम आक्रमण-प्रत्याक्रमण करने में समर्थ हो सकें।'
'जो आज्ञा श्रीमान्।' पर्णिक ने कहा।
आर्यशिविर से एक योजन दक्षिण की ओर द्रविड़सेना का शिविर था। द्रविडसेना यद्यपि आर्य सेना की संख्या से आधी थी, तथापि उसमें अतीव उत्साह था। कई वर्षों से विश्राम का उपभोग करते योद्धागण, इस युद्ध में भाग लेने के लिए अत्यंत लालायित एवं व्यग्न थे। समस्त द्रविड़सेना अपने धर्म एवं स्वदेश के रक्षार्थ अपना जीवन उत्सर्ग करने को प्रस्तुत थी।
आज मध्याह्न में युवराज भी गुप्त मार्ग द्वारा शिविर में आ पहुंचे थे—परन्तु उनका पदार्पण अत्यंत गुप्त रखा गया था।
यहां तक कि कुछ उच्च पदाधिकारी, कुछ गुप्तचरों तथा कुछ सैनिकों को छोड़कर, अन्य किसी भी द्रविड़ सैनिक को उनका आना ज्ञात न था।
चारों ओर यह बात प्रसारित कर दी गई थी कि किसी कारणवश युवराज युद्धक्षेत्र में नहीं आयगे, उनका स्थान कोई अन्य ग्रहण करेगा।
इस बात को गुप्त रखने करा तात्पर्य क्या था? यह राजनीति के ज्ञाता ही बता सकते हैं। इस समय दो प्रहर रात्रि बीत चुकी थी। भयानक वनस्थली, द्रविड़सेना के शिविर के चतुर्दिक भांय-भांय कर रही है। वन्य-पशुओं के भीषण गर्जन ने वातावरण को और भी भीषण बना दिया।
युवराज के शिविर में इस समय सेना के प्रमुख अधिकारियों के मध्य मंत्रणा हो रही है, मगर यह मंत्रणा भी युवराज के पदार्पण की ही तरह गुप्त है। इस मंत्रणा में केवल वही लोग सम्मिलित हैं,
जो युवराज के आगमन के विषय में जानते हैं।
"वीरो...!' उच्चासन पर आसीन युवराज नारिकेल का स्वर उन वीरों में शक्ति का संचार करने वाला था—'यह तुमको ज्ञात है कि आज तक द्रविड़ों के सम्मान पर, द्रविड़ों की वीरता पर, तनिक भी कलंक नहीं लगने पाया है और न तो लगने की तब तक आशा है, जब तक द्रविड़ साम्राज्य का एक भी योद्धा शेष है।'
युवराज रुके।
एक क्षण के लिए उनके नेत्र अपनी सेना के प्रमुख, वीरों के मुख पर जा पड़े, जो उनके सन्निकट की आसीन थे।
तत्पश्चात वे बोले-'आज आर्य-सम्राट ने हम पर अनाचारपूर्ण आक्रमण किया है तो हमारा यह परम कर्तव्य है कि अपनी सम्पूर्ण शक्ति का उपयोग कर एक अन्यायी को उसके अन्याय का समुचित दंड दें। आप विश्वास रखिये...यदि सब न्याय मार्ग पर हैं तो हमारी विजय महामाया की कृपा से निश्चित है। आर्य-सम्राट की सेना हमारी सेना से दुगुनी है, उसके पास अस्त्र-अस्त्र का भी बाहुल्य है। ऐसी दशा में हमारा क्या कर्तव्य होना चाहिये, यही मंत्रणा करने हम यहां एकत्र हुए
'श्रीयुवराज...।' धेनुक उठकर खड़ा हुआ। युवराज को अभिवादन करने के पश्चात् वह बोला —'आपका कथन असत्य नहीं है। आज हमारी कठिन परीक्षा का समय उपस्थित है। आज हम कायर बन गये तो हमारी स्वतंत्रता, एक विदेशी शासक के शासन में छिन्न-भिन्न हो जायेगी, परन्तु श्रीयुवराज विश्वास रखें। द्रविड़ों ने अब तक सम्मान का जीवन व्यतीत किया है तो अब अपमान का जीवन नहीं व्यतीत कर सकते...हम मर मिटेंगे अपने स्वदेशाभिमान पर अपनी स्वतंत्रता पर। श्रीयुवराज आज्ञा दें, हम सब आपके श्रीचरणों पर बलिदान होने को प्रस्तुत हैं।'