desiaks
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चक्रवाल ने युवराज को मस्तक झुकाकर सम्मान प्रदर्शन किया। तब बोला—'पधारिये श्रीयुवराज।'
युवराज आकर उसी पलंग पर उसी बिछावन से उठंग कर पर बैठ गये। बिछावन के भीतर छिपी हुई किन्नरी निहारिका का मृदुत शरीर अनिर्वचनीय आनंद से परिपूर्ण हो उठा।
'श्रीयुवराज के असमय पर्दापण का कारण?' चक्रवाल ने पूछा।
युवराज के हृदय में जो अगम वेदना अन्तर्हित थी, उसे शब्दों में व्यक्त करने की शक्ति किसमें थी।
फिर भी वे बोले—'नीरव रजनी को प्रकम्पित कर अवाध गति से प्रवाहित तुम्हारा गायन स्वर सुनकर मेरी निद्रा टूट गई। मुझे जो व्यथा हई वह वर्णनातीत है, चक्रवाल।'
'मैं श्रीयुवराज से इसके लिए क्षमा-प्रार्थी हूं।'
'तुम ऐसे हृदय-विदरक गीत क्यों गाते हो, चक्रचाल?'
'................।' चक्रवाल चुप रहा। किन्नरी के हृदय का स्पन्दन तीव्र हो गया।
'व्यथित हृदय को तुम और व्यथित कर देते हो, चक्रवाल?' बोले युवराज।
'मैं विवश हूं श्रीयुवराज। चेष्टा करने पर भी मैं अपने को रोक नहीं पाता। हृदय की अगम व्यथा स्वरों के साथ फूट ही पड़ती है। चक्रवाल ने कहा।
'तुम अपनी व्यथा सुना-सुनाकर सभी को व्यथित करना चाहते हो? चक्रवाल, अब ऐसे गीत ने गाया करो-मुझे अत्यधिक दुख होता है।'
'किन्नरी से आप रुष्ट क्यों हैं श्रीयुवराज...?'
"ओह ! उस कलामयी का स्मरण न दिलाओ चक्रवाल। वह देवी है उसकी उपासना मेरे लिए दुर्लभ है।'
'वह आपके लिए अत्यंत व्यग्र रहती है।'
'व्यग्र रहती है? वह तो कलामयी है चक्रवाल! वह क्यों मेरे लिए व्यथित होगी?' युवराज ने कहा।
चन्द्रमा की एक प्रकाश रेखा खिड़की की राह आकर उस लिपटे बिछावन पर नृत्य कर रही
युवराज ने उसे देखा।
वे चौंक पड़े—बिछावन में कुद प्रकम्पन होता हुआ देखकर। 'यह क्या बात है, चक्रवाल? इस बिछावन में कम्पन क्यों हो रहा है?' युवराज ने पूछा।
'कहां श्रीयुवराज।' चक्रवाल ने कहा, परन्तु उसका मन तीव्र वेग से हंस पड़ना चाहता था।
'मैं इसे देखना चाहता हूं।' कहते हुए युवराज ने बिछावन उलट दिया। किन्नरी की सौंदर्य राशि आलौकित हो उठी। युवराज आश्चर्यचकित हो गये—अपनी हृद्देवी को इस प्रकार वहां उपस्थित देखकर। 'किन्नरी कलामयी!' युवराज का हृदय उमड़ पड़ा।
'देव!' वह सिसक उठी जोरों से। युवराज ने आगे बढ़कर उसका कोमल हाथ पकड़ लिया। दोनों के नेत्र सिक्त हो रहे थे। दोनों के नेत्रों से एक साथ ही दो बूंद आंसू भूमि पर एक ही स्थान पर टपक पड़े।
उन दोनों अश्रु बिन्दुओं का वह मधुमय मिलन अतीव करुणाजनक एवं हृदयद्रावक था।
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युवराज आकर उसी पलंग पर उसी बिछावन से उठंग कर पर बैठ गये। बिछावन के भीतर छिपी हुई किन्नरी निहारिका का मृदुत शरीर अनिर्वचनीय आनंद से परिपूर्ण हो उठा।
'श्रीयुवराज के असमय पर्दापण का कारण?' चक्रवाल ने पूछा।
युवराज के हृदय में जो अगम वेदना अन्तर्हित थी, उसे शब्दों में व्यक्त करने की शक्ति किसमें थी।
फिर भी वे बोले—'नीरव रजनी को प्रकम्पित कर अवाध गति से प्रवाहित तुम्हारा गायन स्वर सुनकर मेरी निद्रा टूट गई। मुझे जो व्यथा हई वह वर्णनातीत है, चक्रवाल।'
'मैं श्रीयुवराज से इसके लिए क्षमा-प्रार्थी हूं।'
'तुम ऐसे हृदय-विदरक गीत क्यों गाते हो, चक्रचाल?'
'................।' चक्रवाल चुप रहा। किन्नरी के हृदय का स्पन्दन तीव्र हो गया।
'व्यथित हृदय को तुम और व्यथित कर देते हो, चक्रवाल?' बोले युवराज।
'मैं विवश हूं श्रीयुवराज। चेष्टा करने पर भी मैं अपने को रोक नहीं पाता। हृदय की अगम व्यथा स्वरों के साथ फूट ही पड़ती है। चक्रवाल ने कहा।
'तुम अपनी व्यथा सुना-सुनाकर सभी को व्यथित करना चाहते हो? चक्रवाल, अब ऐसे गीत ने गाया करो-मुझे अत्यधिक दुख होता है।'
'किन्नरी से आप रुष्ट क्यों हैं श्रीयुवराज...?'
"ओह ! उस कलामयी का स्मरण न दिलाओ चक्रवाल। वह देवी है उसकी उपासना मेरे लिए दुर्लभ है।'
'वह आपके लिए अत्यंत व्यग्र रहती है।'
'व्यग्र रहती है? वह तो कलामयी है चक्रवाल! वह क्यों मेरे लिए व्यथित होगी?' युवराज ने कहा।
चन्द्रमा की एक प्रकाश रेखा खिड़की की राह आकर उस लिपटे बिछावन पर नृत्य कर रही
युवराज ने उसे देखा।
वे चौंक पड़े—बिछावन में कुद प्रकम्पन होता हुआ देखकर। 'यह क्या बात है, चक्रवाल? इस बिछावन में कम्पन क्यों हो रहा है?' युवराज ने पूछा।
'कहां श्रीयुवराज।' चक्रवाल ने कहा, परन्तु उसका मन तीव्र वेग से हंस पड़ना चाहता था।
'मैं इसे देखना चाहता हूं।' कहते हुए युवराज ने बिछावन उलट दिया। किन्नरी की सौंदर्य राशि आलौकित हो उठी। युवराज आश्चर्यचकित हो गये—अपनी हृद्देवी को इस प्रकार वहां उपस्थित देखकर। 'किन्नरी कलामयी!' युवराज का हृदय उमड़ पड़ा।
'देव!' वह सिसक उठी जोरों से। युवराज ने आगे बढ़कर उसका कोमल हाथ पकड़ लिया। दोनों के नेत्र सिक्त हो रहे थे। दोनों के नेत्रों से एक साथ ही दो बूंद आंसू भूमि पर एक ही स्थान पर टपक पड़े।
उन दोनों अश्रु बिन्दुओं का वह मधुमय मिलन अतीव करुणाजनक एवं हृदयद्रावक था।
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