desiaks
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मालविका मेरे मोबाइल पर गेम खेलने में लगी हुई थी। शीतल उसे कई बार मोबाइल वापस करने को कह चुकी थी, लेकिन मैं हर बार यहीं कहता- “खेलने दो शीतल, बच्ची है वो।"
"आओ राज, खाना खाते हैं।" - अंकल ने कहा।
"जी अंकल।" मैं, शीतल, अंकल-आंटी, शीतल की बहन, भाई-भाभी खाने के लिए बैठ चुके थे। शीतल मेरे साथ ही बैठी थीं। डिनर टेबल पर ऑफिस से लेकर घर-परिवार की खूब बातें हुई। हर बात मुझसे और शीतल से ही जुड़ी थी। खूब ठहाके लगे, कुछ भविष्य की तस्वीर साफ हुई। मन में उम्मीद जगी।
मालविका सो गई थी। डिनर हो चुका था। शीतल और उनके मम्मी-पापा नीचे तक छोड़ने भी आए थे।
घर पहुंचा तो कमरे में अँधेरा छाया हुआ था। बारिश की वजह से लाइट नहीं आ रही थी। मोबाइल की रोशनी से टेबल पर रखी अधजली मोमबत्ती को फिर से जला दिया था।
मन बहुत खुश था, लेकिन एक बार फिर शीतल को खो देने के डर से घबरा गया था। मैं और शीतल एक-दूसरे के प्यार में डूबते जा रहे थे। दिन-रात हम दोनों को एक-दूसरे की फिकर होने लगी थी। हम दोनों अब एक पल भी एक-दूसरे के बिना नहीं बिताना चाहते थे। हम दोनों एक-दूसरे के साथ जिंदगी बिताना चाहते थे। लेकिन इतना आसान कहाँ था ये सब? मेरा परिवार कभी शीतल से शादी के लिए मानने को राजी नहीं होता। मालविका के बर्थ-डे के मौके पर शीतल के पापा और मम्मी से बातें तो बहुत अच्छी तरह हुई थीं, लेकिन जब उनको ये पता चलेगा कि मैं और शीतल शादी करना चाहते हैं, तो पता नहीं तब वो लोग कैसे रिएक्ट करेंगे।
शीतल भी ये बात जानती थीं कि एक बेटी की माँ होने की वजह से उनका मुझसे शादी करना इतना आसान नहीं था। मैं जब भी उस दिन के बारे में सोचता, जब शीतल और मुझे अलग होना पड़ेगा, तो सिहर जाता था। जब शीतल का हाथ मेरे हाथ में होता था, बो पल मेरे लिए सबसे अनमोल होता था।
और जिस पल शीतल जाने के लिए कहती थीं, लगता था जान ही चली जाएगी। मैं हमेशा उनसे पूछता था, “क्या तुम समंदर किनारे रेत पर साथ नहीं चल सकती हो?"
"क्या तुम हवाओं में मेरे साथ नहीं उड़ सकती हो?"
"क्या तुम पहाड़ों की ऊंचाई से मेरे साथ पूरी दुनिया नहीं देखना चाहती हो?"
"क्या तुम मुझे अपना नहीं बनाना चाहती हो?"
"क्या तुम मेरी नहीं होना चाहती हो?" जानता हूँ ये सब हो नहीं पाएगा, फिर भी शीतल से पूछकर दिन को ठंडक मित्नती थी।
फोन की घंटी बजने लगी थी। शीतल का फोन था।
“पहुंच गए घर?"
हाँ। - मैंने जवाब दिया
"भीगे तो नहीं थे न..तुम्हारे लौटते ही बारिश शुरू हो गई थी।"
"हल्की बारिश थी...थोड़ा-सा भीग गया था।"
“क्या कर रहे हो अभी।"
"कुछ नहीं...लेटा हूँ आँख बंद करके।"
"काफी थके हुए हो तुम आज...आराम करना..."
"मेरे आने से सब खुश तो थे न?"
"हाँ, तुमसे मिलकर सब बहुत खुश थे; मालविका भी बहुत खुश थी। मुझे अच्छा लगा कि बो अच्छे से घुलमिल गई है तुम्हारे साथ। तुम्हारे जाने के बाद मम्मी-पापा भी तारीफ कर रहे थे तुम्हारी।"
"अच्छा...मैं तो डर रहा था कि पता नहीं क्या सोच रहे होंगे बो लोग?"
“परेशान मत होना...सब ठीक रहा...और हाँ, इतने सारे गिफ्ट लाने की क्या जरूरत थी?"
"मालविका के लिए थे...और तुम ये कैसे पूछ सकते हो मुझसे, कि क्यों लाया।"
“ओके...सॉरी: थैक्स फॉर कमिंग...आई बाज बैरी हैप्पी।"
"ओके, तो कल का क्या प्लान है?" ।
"ऑफिस है कल ...क्यों तुमको कहीं जाना है क्या?"
"आओ राज, खाना खाते हैं।" - अंकल ने कहा।
"जी अंकल।" मैं, शीतल, अंकल-आंटी, शीतल की बहन, भाई-भाभी खाने के लिए बैठ चुके थे। शीतल मेरे साथ ही बैठी थीं। डिनर टेबल पर ऑफिस से लेकर घर-परिवार की खूब बातें हुई। हर बात मुझसे और शीतल से ही जुड़ी थी। खूब ठहाके लगे, कुछ भविष्य की तस्वीर साफ हुई। मन में उम्मीद जगी।
मालविका सो गई थी। डिनर हो चुका था। शीतल और उनके मम्मी-पापा नीचे तक छोड़ने भी आए थे।
घर पहुंचा तो कमरे में अँधेरा छाया हुआ था। बारिश की वजह से लाइट नहीं आ रही थी। मोबाइल की रोशनी से टेबल पर रखी अधजली मोमबत्ती को फिर से जला दिया था।
मन बहुत खुश था, लेकिन एक बार फिर शीतल को खो देने के डर से घबरा गया था। मैं और शीतल एक-दूसरे के प्यार में डूबते जा रहे थे। दिन-रात हम दोनों को एक-दूसरे की फिकर होने लगी थी। हम दोनों अब एक पल भी एक-दूसरे के बिना नहीं बिताना चाहते थे। हम दोनों एक-दूसरे के साथ जिंदगी बिताना चाहते थे। लेकिन इतना आसान कहाँ था ये सब? मेरा परिवार कभी शीतल से शादी के लिए मानने को राजी नहीं होता। मालविका के बर्थ-डे के मौके पर शीतल के पापा और मम्मी से बातें तो बहुत अच्छी तरह हुई थीं, लेकिन जब उनको ये पता चलेगा कि मैं और शीतल शादी करना चाहते हैं, तो पता नहीं तब वो लोग कैसे रिएक्ट करेंगे।
शीतल भी ये बात जानती थीं कि एक बेटी की माँ होने की वजह से उनका मुझसे शादी करना इतना आसान नहीं था। मैं जब भी उस दिन के बारे में सोचता, जब शीतल और मुझे अलग होना पड़ेगा, तो सिहर जाता था। जब शीतल का हाथ मेरे हाथ में होता था, बो पल मेरे लिए सबसे अनमोल होता था।
और जिस पल शीतल जाने के लिए कहती थीं, लगता था जान ही चली जाएगी। मैं हमेशा उनसे पूछता था, “क्या तुम समंदर किनारे रेत पर साथ नहीं चल सकती हो?"
"क्या तुम हवाओं में मेरे साथ नहीं उड़ सकती हो?"
"क्या तुम पहाड़ों की ऊंचाई से मेरे साथ पूरी दुनिया नहीं देखना चाहती हो?"
"क्या तुम मुझे अपना नहीं बनाना चाहती हो?"
"क्या तुम मेरी नहीं होना चाहती हो?" जानता हूँ ये सब हो नहीं पाएगा, फिर भी शीतल से पूछकर दिन को ठंडक मित्नती थी।
फोन की घंटी बजने लगी थी। शीतल का फोन था।
“पहुंच गए घर?"
हाँ। - मैंने जवाब दिया
"भीगे तो नहीं थे न..तुम्हारे लौटते ही बारिश शुरू हो गई थी।"
"हल्की बारिश थी...थोड़ा-सा भीग गया था।"
“क्या कर रहे हो अभी।"
"कुछ नहीं...लेटा हूँ आँख बंद करके।"
"काफी थके हुए हो तुम आज...आराम करना..."
"मेरे आने से सब खुश तो थे न?"
"हाँ, तुमसे मिलकर सब बहुत खुश थे; मालविका भी बहुत खुश थी। मुझे अच्छा लगा कि बो अच्छे से घुलमिल गई है तुम्हारे साथ। तुम्हारे जाने के बाद मम्मी-पापा भी तारीफ कर रहे थे तुम्हारी।"
"अच्छा...मैं तो डर रहा था कि पता नहीं क्या सोच रहे होंगे बो लोग?"
“परेशान मत होना...सब ठीक रहा...और हाँ, इतने सारे गिफ्ट लाने की क्या जरूरत थी?"
"मालविका के लिए थे...और तुम ये कैसे पूछ सकते हो मुझसे, कि क्यों लाया।"
“ओके...सॉरी: थैक्स फॉर कमिंग...आई बाज बैरी हैप्पी।"
"ओके, तो कल का क्या प्लान है?" ।
"ऑफिस है कल ...क्यों तुमको कहीं जाना है क्या?"