Sex Hindi Kahani अनाड़ी पति और ससुर रामलाल - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

Sex Hindi Kahani अनाड़ी पति और ससुर रामलाल

hotaks444

New member
Joined
Nov 15, 2016
Messages
54,521
अनाड़ी पति और ससुर रामलाल--1

अनीता नई-नवेली दुल्हिन के रूप में सजी-सजाई सुहागरात मनाने की तैयारी में अपने पलंग पर बैठी थी। थोडा सा घूँघट निकाल रखा था जिसे दो उंगलियो से उठाकर बार-बार कमरे के दरबाजे की ओर देख लेती। उसे बड़ी बेसब्री से इन्तजार था अपने पति के आने का। सोच में डूबी थी कि वह आकर धीरे से उसका घूँघट उठाएगा और कहेगा, " वाह ! कितनी ख़ूबसूरत हो तुम और फिर उसे आलिंगन-बद्ध करके उसके ओठ चूमेगा, फिर गाल, फिर गला और फिर धीरे-धीरे थोडा सा नीचे ...और नीचे ...फिर और नीचे ...फिसलता हुआ नाभि तक उतरेगा ...और फिर उसके बाद क्या होगा इसकी कल्पना में डूबी रहते उसे काफी देर हो चली। रात के ग्यारह बज गए। उसकी निगाहें दरबाजे पर ही टिकीं थीं। लगभग आधे घंटे के बाद किसी ने दरबाजे की कुण्डी खटखटाई और उसके पति-देव ने अपनी मुंह-बोली भाभी के साथ कक्ष में प्रवेश किया। पति, अनमोल आकर दुल्हिन के पलंग पर बैठ गया। भाभी बोली - " देख बहू, कहने को तो मैं तेरे पति की मुंह-बोली भाभी हूँ पर समझती हूँ बिलकुल अपने सगे देवर जैसा ही। वह धीरे से उसके कान में फुसफुसाई, " देवर जी, जरा शर्मीले मिजाज़ के हैं। आज की रात पहल तुझे ही करनी पड़ेगी। बाद में सब ठीक-ठाक हो जायेंगे।" उसके जाने के बाद अनीता ने उठकर कुण्डी लगा ली। अनमोल चुपचाप यों ही बुत बना बैठा रहा। अनीता उसके पास खिसकी कि वह मुंह फेर कर सो गया। अनीता काफी देर तक सोचती रही कि अब उठेगा और उसे अपनी बाँहों में लेकर उसके चुम्बन लेगा ... फिर उससे कहेगा ' चलो, सोते हैं। सारे दिन की थकी-हारी होगी।' और फिर अपने साथ लेटने को कहेगा। वह थोड़े-बहुत नखरे दिखा कर उसके साथ सुहागरात मनाने को राज़ी हो जाएगी।' अनीता को सोचते-सोचते न जाने कब नीद आ गयी। जब घडी ने दो बजाये तो उसकी दोबारा आँख खुल गयीं। उसने उसी प्रकार लेटे-लेटे धीरे से अपनी एक टांग पति के ऊपर रख दी। पति हल्का सा कुनमुनाकर फिर से सो गया। रात बीतती जा रही थी। अनीता प्रथम रात्रि के खूबसूरत मिलन की आस लिए छटपटा रही थी। अनीता के सब्र का बाँध टूटने लगा। मन में तरह-तरह की शंकाएं उठने लगीं ' कहीं उसका पति नपुंशक तो नहीं, वर्ना अब तक तो उसकी जगह कोई भी होता तो उसके शरीर के चिथड़े उड़ा देता। उसके मन में आया कि क्यों न पति के पुरुषत्व की जाँच कर ली जाये। उसने धीरे से सोता-नीदी का अभिनय करते हुए अपना एक हाथ अनमोल की जाँघों के बीचो-बीच रख दिया। उसे कोई कड़ी सी चीज उभरती सी प्रतीत हुयी। अनीता ने अंदाज़ कर लिया कि कम से कम वह नपुंशक तो नहीं है। आखिर फिर क्यों वह अब तक चुप-चाप पड़ा है। उसे भाभी की बात याद आ गयी। 'बहू, हमारे देवर जी जरा शर्मीले मिजाज़ के हैं। आज की रात पहल तुझे ही करनी पड़ेगी।' चलो, मैं ही कुछ करती हूँ। वह पति से बोली, " क्यों जी, ऐसा नहीं हो सकता कि मैं तुमसे चिपट कर सो जाऊँ। नया घर है, नई जगह, मुझे तो डर सा लग रहा है।" "ठीक है, सो जाओ। मगर मेरे ऊपर अपनी टांगें मत रखना।" " क्यों जी, आपकी पत्नी हूँ कोई गैर तो नहीं हूँ।" अनमोल कुछ न बोला। पत्नी उससे चिपट गयी। दोनों की साँसें टकराने लगीं। अनीता पर मस्ती सी छाने लगी। उसने धीरे से अपनी एक टांग उठाकर चित्त लेटे हुए पति पर रख दी। इस बीच उसने फिर कोई सख्त सी चीज अपनी जांघ पर चुभती महसूस की। वह बोली, " ऐसा करते हैं, मैं करवट लेकर सो जाती हूँ। तुम मेरे ऊपर अपनी टांग रखो, मुझे अच्छा लगेगा।" ऐसा कहकर अनीता ने पति की ओर अपनी पीठ कर दी, अनमोल कुछ बोला नहीं पर उसने पत्नी के कूल्हे पर अपनी एक टांग रख दी। अनीता को इसमें बड़ा ही अच्छा लग रहा था क्योंकि अब वह पति की जाँघों के बीच वाली चीज अपने नितम्बों के बीचो-बीच गढ़ती हुयी सी महसूस कर रही थी। इसी को पाने के लिए ही तो बेचारी घंटों से परेशान थी। आज उसका पति जरूर उसके मन की बात समझ कर रहेगा। अगर नहीं भी समझा तो समझा कर रहूंगी। अनीता से अब अपने यौवन का बोझ कतई नहीं झिल पा रहा था। वह चाह रही थी कि उसका पति उसके तन-बदन को किसी रस-दार नीबू की तरह निचोड़ डाले। खुद भी अपनी प्यास बुझा ले और अपनी तड़पती हुयी पत्नी के जिस्म की आग भी ठंडी कर दे। अत: उसने पति का हाथ पकड़ कर अपने सीने की गोलाइयों से छुआते हुए कहा, " देखो जी, मेरा दिल कितनी तेजी से धड़क रहा है।" अनमोल ने पत्नी की छातियों के भीतर तेजी से धड़कते हुए दिल को महसूस किया और बोला, " ठहरो, मैं अभी पापा को उठाता हूँ। उनके पास बहुत सारी दवाइयां रहती हैं। तुम्हें कोई-न कोई ऐसी गोली दे देंगें कि तुम्हारी ये धड़कन कम हो जाएगी।" अनीता घवरा उठी, बोली - "अरे नहीं, जब पति-पत्नी पहली रात को साथ-साथ सोते हैं तो ऐसा ही होता है।" "तो फिर मेरा दिल क्यों नहीं धड़क रहा? देखो, मेरे दिल पर हाथ रख कर देखो।" अनीता बोली - "तुम लड़की थोड़े ही हो, तुम तो लड़के हो। तुम्हारी भी कोई चीज फड़क रही है, मुझे पता है।" अनीता मुस्कुराते हुए बोली। अनमोल बोला -" पता है तो बताओ, मुझे क्या हो रहा है?" अनीता ने फिर पूछा - " बताऊँ, बुरा तो नहीं मानोगे?" " नहीं मानूंगा, चलो बताओ?" अनीता ने पति की जाँघों के बीच के बेलनाकार अंग को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर कहा - "फिर ये क्या चीज है जो बराबर मेरी पीठ में गड़ रही है? कहीं किसी का बिना बात में तनता है क्या?" अनमोल सच-मुच झेंप सा गया और बोला - "मेरा तो कुछ भी नहीं है, पड़ोस-वाले भैया का तो इतना लम्बा और मोटा है कि देख लोगी तो डर जाओगी।" अनीता ने पूछा - " तुम्हें कैसे पता कि उनका बहुत मोटा और लम्बा है? तुमने क्या देखा है उनका?" अनमोल थोडा रुका फिर बोला - " हाँ, मैंने देखा है उनका। एक वार मैं अपनी खिड़की से बाहर की ओर झांक रहा था कि अचानक मेरी निगाह उनके कमरे की ओर उठ गयी। मैंने देखा कि भइया भाभी को बिलकुल नंगा करके ...." "क्या कर रहे थे भाभी को बिलकुल नंगा करके?" अनीता को इन बातों में बड़ा आनंद आ रहा था, बोली - "बताओ न, तुम्हें मेरी कसम है। " अनमोल ने अनीता के मुंह पर हाथ रख दिया और नाराज होता हुआ बोला - "आज के बाद मुझे कभी अपनी कसम मत देना "क्यों ?" अनीता ने पूछा। अनमोल बोला- "एक वार मुझे मेरी माँ ने अपनी कसम दी थी, वो मुझसे हमेशा के लिए दूर चली गयीं।" "इसका मतलब है तुम नहीं चाहते कि मैं तुमसे दूर चली जाऊं?" अनमोल खामोश रहा। अनीता ने कहा - "अगर तुम मेरी बात मानोगे तो मैं तुम्हे कभी अपनी कसम नहीं दूँगी, बोलो मानोगे मेरी बात?" अनमोल ने धीमे स्वर में हाँमी भर दी। ....अनीता बोली - "फिर बताओ न, क्या किया भैया ने भाभी के साथ उन्हें नंगा करके ?" अनमोल बोला, " पहले भैया ने भाभी को बिलकुल नंगा कर डाला, और फिर खुद भी नंगे हो गए। फिर उन्होंने एक तेल की शीशी उठाकर भाभी की जाँघों के बीच में तेल लगाया। तब उन्होंने अपने उस पर भी मसला।" "किसपर मसला?" अनीता बातों को कुरेद कर पूरा-पूरा मज़ा ले रही थी साथ ही पति के मोटे बेलनाकार अंग पर भी हाथ फेरती जा रही थी। "बताओ, किस पर मसला ?" "अरे, अपने बेलन पर मसला और किस पर मसलते!" "फिर आगे क्या हुआ?" "होता क्या .... उन्होंने अपना बेलन भाभी की जाँघों के बीच में घुसेड दिया ... और फिर वो काफी देर तक अपने बेलन को आगे-पीछे करते रहे ...भाभी मुंह से बड़ी डरावनी आवाजें निकाल रहीं थीं। ऐसा लग रहा था कि भाभी को काफी दर्द हो रहा था। मगर ...फिर वह भैया को हटाने की वजाय उनसे चिपट क्यों रहीं थीं, ये बात मेरी समझ में आज तक नहीं आयी। " अनीता बोली - "मेरे भोले पति-देव ये बात तुम तब समझोगे जब तुम किसी के अन्दर अपना ये बेलन डालोगे।" अनमोल ने पूछा - "किसके अन्दर डालूँ ?" अनीता बोली - " मैं तुम्हारी बीबी हूँ मेरी जाँघों के बीच में डाल कर देखो, मुझे मजा आता है या मुझको दर्द होता है?" "ना बाबा ना, मुझे नहीं डालना तुम्हारी जाँघों के बीच में अपना बेलन। तुम्हें दर्द होगा तो तुम रोओगी।" अनीता बोली - "अगर मैं वादा करूँ कि नहीं रोउंगी तो करोगे अपना बेलन मेरे अन्दर?" "मुझे शर्म आती है।" अनीता ने पति की जाँघों के बीच फनफनाते हुए उसके बेलन को पकड़ लिया और उसे धीरे-धीरे सहलाने लगी। अनमोल का बेलन और भी सख्त होने लगा। अनीता बोली -"अच्छा, मेरी एक बात मानो। आज की रात हम पति-पत्नी की सुहाग की रात है। अगर आज की रात पति अपनी पत्नी की बात नहीं मानेगा तो पत्नी मर भी सकती है। बोलो, क्या चाहते हो मेरी जिन्दगी या मेरी मौत?" "मैं तुम्हारी जिन्दगी चाहता हूँ।" "तो दे दो फिर मुझे जिन्दगी।" अनीता बोली।
"आ जाओ मेरे ऊपर और मसल कर रख दो मुझ अनछुई कच्ची कली को।" अनमोल डर गया और शरमाते हुए पत्नी के ऊपर आने लगा। अनीता बोली- "रुको, ऐसे नहीं, पहले अपने सारे कपडे उतारो।" अनमोल ने वैसा ही किया। जब वह नंगा होकर पत्नी के ऊपर आया तो उसने पाया कि उसकी पत्नी अनीता पहले से ही अपने सारे कपडे उतारे नंगी पड़ी थी। अनीता ने अनमोल से कहा , "अब शुरू करो न, " अनीता ने अपनी छातियों को खूब सहलवाया। और उसका हाथ अपनी जाँघों के बीच में लेजाकर अपनी सुलगती सुरंग को भी सहलवाया। अनमोल बेचारा ...एक छोटे आज्ञाकारी बच्चे की भांति पत्नी के कहे अनुसार वो सब-कुछ किये जा रहा था जैसा वह आदेश दे रही थी। अब बारी आयी कुछ ख़ास काम करने की। अनीता ने पति का लिंग पकड़ कर सहलाना शुरू कर दिया और उस पर तेल लगा कर मालिश करने लगी। अगले ही क्षण उसने पति के तेल में डूबे हथियार को अपनी सुलगती हुयी भट्टी में रख लिया और पति से जोरो से धक्के मारने को कहा। तेल का चुपड़ा लिंग घचाक से आधे से ज्यादा अन्दर घुस गया। "उई माँ मर गयी मैं तो ..." अनीता तड़प उठी और सुबकते हुए पति से बोली, "आखिर फाड़ ही डाली न, तुम्हारे इस लोहे के डंडे ने मेरी सुरंग।" अगले ही पल बाकी का आधा लिंग भी योनि मैं जा समाया। उसकी योनि बुरी तरह से आहत हो चुकी थी। योनि-द्वार से खून का एक फब्बारा सा फूट पड़ा ... पर इस दर्द से कहीं ज्यादा उसे आनंद की अनुभूति हो रही थी ...वह पति को तेज और तेज रफ़्तार बढ़ाने का निर्देश देने से बाज़ नहीं आ रही थी। आह! आज तो मज़ा आ गया सुहागरात का। पति ने पूछा, " अगर दर्द हो रहा है तो निकाल लूं अपना डंडा बाहर।" "नहीं, बाहर मत निकालो अभी ...बस घुसेड़ते रहो अपना डंडा मेरी गुफा में अन्दर-बाहर ...जोरों से ..आह, और जोर से, आज दे दो अपनी मर्दानगी का सबूत मुझे ...आह, अनमोल, अगर तुम पूरे दिल से मुझे प्यार करते हो तो आज मेरी इस सुलगती भट्टी को फोड़ डालो, ....अनमोल को भी अब काफी आनंद आ रहा था, वह बढ़-चढ़ कर पूरा मर्द होने का परिचय दे रहा था। लगभग आधे घंटे की लिंग-योनि की इस लड़ाई में पति-पत्नी दोनों ही मस्ती में भर उठे। कुछ देर के लगातार घर्षण ने अनीता को पूरी तरह तृप्त कर दिया। बाकी की रात दोनों एक-दूजे से योंही नंगे लिपटे सोते रहे। सुबह आठ बजे तक दोनों सोते रहे। जब अनीता के ससुर रामलाल ने आकर द्वार खटकाया तब दोनों ने जल्दी से अपने-अपने कपडे पहने और अनीता ने आकर कुण्डी खोली। सामने ससुर रामलाल को खड़े देख उसने जल्दी से सिर पर पल्लू रखा और उसके पैर छुए। सदा सुखी रहो बहू! कह कर ससुर रामलाल बाहर चला गया।
 
अनीता ने अपने ससुर के यहाँ आकर केवल दो लोगों को ही पाया। एक तो उसका बुद्धू, अनाड़ी पति और दूसरा उसका ससुर रामलाल। सास, ननद, जेठ, देवर के नाम पर उसने किसी को नहीं देखा। वह अपने अनाड़ी पति के वारे में सोचती तो उसे अपने भाग्य पर बहुत ही क्रोध आता। किन्तु अब हो भी क्या सकता था। फिर वह सब्र कर लेती कि चलो बस औरतों के मामले में ही तो अनमोल शर्मीला है। बाकी न तो पागल है और न ही कम-दिमाग है। वैसे तो हर अच्छे-बुरे का ज्ञान है ही उसे। वह सोचने लगी कि अगर कल रात वह स्वयं पहल न करती तो सारी रात यों ही तड़पना पड़ता उसे। सुहागरात से ही अनीता के तन-बदन में आग सी लगी हुई थी। हालांकि उसके पति ने उसे संतुष्ट करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी। उसने जैसा कहा बेचारा वैसा ही करता रहा था सारी रात, किन्तु फिर भी अनीता के जिस्म की प्यास पूरी तरह से नहीं बुझ पाई थी। वह तो चाहती थी कि सुहाग की रात उसका पति उसके जवान व नंगे जिस्म की एक-एक पर्त हटा कर उसकी जवानी का भरपूर आनंद लेता किन्तु अनमोल ने तो उसे नंगा देखने तक से मना कर दिया था।

सुबह जब अनमोल उठा तब से ही उसकी तबियत कुछ ख़राब सी हो रही थी। वह सुबह खेतों में चला तो गया परन्तु अनमने और अलसाए हुए मन से। दूसरी रात फिर पत्नी ने छेड़ा-खानी शुरू कर दी। वह रात भर उसे अपनी ओर आकर्षित करने के नए-नए उपाय करती रही मगर अनमोल टस से मस न हुआ। हार झक मार कर वह सो गयी। तीसरी रात को अनमोल ने कहा, "अनीता मुझे परेशान न करो, मेरी तबियत ठीक नहीं है।" अनीता ने अनमोल के बदन को छू कर देखा उसे सच-मुच बुखार था। अनीता ने माथे पर पानी की गीली पट्टी रख कर सुबह तक बुखार तो उतार दिया फिर भी वह स्वयं को ठीक महसूस नहीं कर रहा था। अनमोल को डाक्टर को दिखाया गया। डाक्टर ने बताया कि कोई खास बात नहीं है। अधिक परिश्रम करने के कारण उसको कमजोरी आ गयी है। तीन दिन के बाद अनमोल का बुखार उतर गया। अनीता के मन में लड्डू फूटने लगे। आज की रात तो बस अपनी सारी इच्छाएं पूरी करके ही दम लेगी। आज तो वह पति के आगे पूरी नंगी होगर पसर जायेगी फिर देखें कैसे वह मना करेगा। रात हुयी, अनीता पूरी तैयारी के साथ उसके साथ लेटी थी। धीरे-धीरे उसका हाथ पति की जाँघों तक जा पहुंचा। अनमोल ने एक बार को उसे रोकना भी चाहा किन्तु वह अपनी पर उतर आयी। उसने पति के लिंग को कसकर अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया और कहने लगी अगर इतनी ही शर्म आती है तो फिर मुझसे शादी ही क्यों की थी। आज में तुम्हे वो सारी चीजें दिखाउंगी जिनसे तुम दूर भागना चाहते हो। ऐसा कहते हुए उसने अपने ऊपर पड़ी रजाई एक ओर सरका दी और बोली- "इधर देखो मेरी तरफ ...बताओ तो सही मैं अब कैसी दिख रही हूँ।" अनमोल ने उसकी ओर देखा तो देखता ही रह गया। "अनीता तुम्हारा नंगा बदन इतना गोरा और सुन्दर है! मैंने तो आज तक किसी का नंगा बदन नहीं देखा।" अपनी आशा के विपरीत पति के बचन सुनकर अनीता की बाछें खिल उठीं। उसने उछल कर पति को अपनी बांहों में भर लिया। अनमोल बोला, "अरे, जरा सब्र करो। मुझे भी कपडे तो उतार लेने दो। आज मैं भी नंगा होकर ही तुम्हारा साथ दूंगा।" वह अपने कुरते के बटन खोलता हुआ बोला। तब तक अनीता ने उसके पायजामे का नाडा खोल दिया और उसे नीचे खिसकाने लगी। "अरे, अरे, रुको भी भई। जरा तो धीरज रखो। आज भी मैं वही करूंगा जो तुम कहोगी।" "तो फिर जल्दी उतार फेंको सारे कपड़ों को ...और आ चढ़ो एक अच्छे पति की तरह मेरे ऊपर।" कपड़े उतार कर अनमोल अनीता के ऊपर आ गया। उसका लिंग गर्म और तनतनाया हुआ था। अनीता ने लपक कर उसे पकड़ लिया और अपने समूचे नंगे जिस्म पर रगड़ने लगी। अपने पति को इस हाल में देख वह ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी। उससे अधिक देर तक नहीं रुका गया और उसने पति के लिंग को अपनी दोनों जाँघों के बीच कस कर भींच लिया और पति के ऊपर आकर लिंग को अपने योनि-द्वार पर टिकाकर अपने अन्दर घुसाने का प्रयास करने लगी। अनीता ने कस कर एक जोर-दार झटका दिया कि सारा का सारा लिंग एक ही बार में उसकी योनी के भीतर समा गया। ख़ुशी से उछल पड़ी वह, और फिर जोरों से धक्के मार-मार कर किलकारियां भरने लगी। पर बेचारी की यह ख़ुशी अधिक देर तक नहीं टिक सकी। दो-तीन झटकों में ही अनमोल का लिंग उसका साथ छोड़ बैठा। यानी एक दम खल्लास हो गया। अनीता ने दोबारा उसे खड़ा करने की बहुतेरी कोशिश की पर नाकाम रही। अनमोल ने उसके क्रोध को और भी बढ़ा दिया यह कह कर कि अनीता अब तुम भी सो जाओ। कल सुबह मुझे दो एकड़ खेत जोतना है। अनीता ने झुंझलाकर कहा - "दो एकड़ खेत क्या खाक़ जोतोगे ... पत्नी की दो इंच की जगह तो जोती नहीं जाती, कब से सूखी पड़ी है।" अनीता नाराज होकर सो गयी। सुबह पड़ोस की भाभी ने पूछा, "इतनी सुबह देवर जी कहाँ जाते हैं, मैं कई दिनों से देख रही हूँ उन्हें जाते हुए।" अनीता बोली, "आज कल उनपर खेत जोतने की धुन सबार है। इसी लिए सुबह-सुबह घर से निकल पड़ते हैं।" भाभी ने व्यंग्य कसा, " अरी बहू, तेरा खेत भी जोतता है या यों ही सूखा छोड़ रखा है।" इस पर अनीता की आंते-पीतें सुलग उठीं किन्तु मुंह से बोली कुछ नहीं। धीरे-धीरे एक माह बीत चला, अनमोल ने अनीता को छुआ तक नहीं।
क्रमशः....
 
अनाड़ी पति और ससुर रामलाल--2

गतान्क से आगे............. ....
अनीता खिन्न से रहने लगी। रामलाल (अनीता का ससुर) अनीता के अन्दर आते बदलाव को कुछ दिनों से देख रहा था। एक दिन जब बेटा खेतों पर गया हुआ था, वह अनीता से पूछ ही बैठा, "बहू , तू मुझे कुछ उदास सी दिखाई पड़ती है, बेटा तू खुश तो है न, अनमोल के साथ।" अनीता कुछ न बोली मगर उसकी आँखों से आंसू टपकने लगे। रामलाल की अनुभवी आँखें तुरंत भांप गयीं कि कहीं कुछ गड़-बड़ तो जरूर है। वह धीमे से उसके पास आकर बोला, "अनमोल और तेरे बीच वो सब कुछ तो ठीक है न, जो पति-पत्नी के बीच होता है। समझ गयी न, मैं क्या कहना चाह रहा हूँ?" अनीता इस बार भी न बोली, सिर्फ टिशुये बहाती रही। रामलाल बोला, "चल, अन्दर चल-कर बात करते हैं। तू अगर अपना दुखड़ा मुझसे नहीं कहेगी तो फिर किससे कहेगी।" ससुर-बहू बाहर से उठ कर अन्दर कमरे में आ खड़े हुए। रामलाल ने बड़े ही प्यार से अनीता के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा, "बता बेटा, मुझे बता, तुझे क्या दुःख है?" रामलाल का हाथ उसके सिर से फिसलकर उसके कन्धों पर आ गया। वह बोला, "देख बहू, मैं तेरा ससुर ही नहीं, तेरे पिता के समान भी हूँ। तुझे दुखी मैं कैसे देख सकता हूँ।" ऐसा कहकर रामलाल ने बहू को अपने सीने से लगा लिया। उसका हाथ कन्धों से फिसलकर बहू की पीठ पर आ गया। उसने अनीता की पीठ सहलाते हुए कहा, "बहू, सच-सच बता ...सुहागरात के बाद तुम पति-पत्नी के बीच दुबारा कोई सम्बन्ध बना?" "बस एक बार और बना था।" "वह कैसा रहा?" ससुर ने पुन: पूछा। अनीता से अब कतई न रहा गया। वह फूट-फूट कर रो पड़ी। बोली -"पापा जी, वो तो बिलकुल ही नामर्द हैं।" रामलाल ने उसे और जोरों से अपने वक्ष से सटाते हुए तसल्ली दी, "रोते नहीं बेटी, इस तरह धीरज नहीं खोते। मेरे पास ऐसे-ऐसे नुस्खे हैं जिनसे जनम से नामर्द लोग भी मर्द बन जाते हैं। अगर सौ साल का बूढ़ा भी मेरा एक नुस्खा खा ले तो सारी रात मस्ती से काटेगा।" रामलाल के अब दोनों हाथ बहू की पीठ और उसके नितम्बों को सहलाने लगे थे। रामलाल का अनुभव कब काम आएगा। वह अब हर पैतरा बहू पर आजमाने की पूरी कोशिश में जुटा था। बहू को एक बार भी विरोध न करते देख वह समझ चुका था कि वह आसानी से उसपर चड्डी गाँठ सकता है। बहू के नितम्बों को सहलाने के बाद तो उसका भी तनकर खड़ा हो गया था। इधर अनीता के अन्दर का सैलाव भी उमड़ने लगा। उसके तन-बदन में वासना की हजारों चींटियाँ काटने लगी थीं। रामलाल का तना हुआ लिंग अनीता की जाँघों से रगड़ खा रहा था जिससे अनीता को बड़ा सुखद अनुभव हो रहा था, किंतु कैसे कहती कि पापा जी, अपना पूरा लिंग खोल कर दिखा दो। वह चाह रही थी कि किसी प्रकार ससुर जी ही पहल करें। वह अपना सारा दुःख-दर्द भूल कर ससुर की बातों और उसके हलके स्पर्श का पूरा आनंद ले रही थी। रामलाल किसी न किसी बहाने बात करते-करते बहू की छातियों का भी स्पर्श कर लेता था। अनीता को अब यह सब बर्दाश्त के बाहर होता जा रहा था। जब रामलाल ने भांपा कि अब अनीता उसका बिलकुल विरोध करने की स्थिति में नहीं है तो बोला, "आ बहू, बैठ कर बात करते हैं। तुझे अभी बहुत कुछ समझाना बाकी है। अच्छा एक बात बता, मेरा प्यार से तेरे ऊपर हाथ फिराना कहीं तुझे बुरा तो नहीं लग रहा है?" "नहीं तो ..." रामलाल ने बहू के मुंह से ये शब्द सुने तो उसने उसे और भी कसकर अपनी बाँहों में भर कर बोला, "देख, आज मैं तुझे एक ऐसी सीडी दूंगा, जिसे देख कर नामर्दों का भी खड़ा हो जायेगा। तू कभी वक्त निकाल कर पहले खुद देखना तभी तुझे मेरी बात का यकीन हो जायेगा। " "ऐसा क्या है पापा जी उसमे?" उसमे ऐसी-ऐसी फ़िल्में हैं जिसे तू भी देखेगी तो पागल हो उठेगी। औरत-मर्द के बीच रात में जो कुछ भी होता है वो सब कुछ तुझे इसी सीडी में देखने को मिलेगा।" इसी बीच रामलाल ने बहू के नितम्बों को जोरों से दबा दिया और फिर अपने हाथ फिसलाकर उसकी जाँघों पर ले आया। अनीता ने एक हलकी सी सिसकारी भरी। रामलाल आगे बोला, "क्या तू विश्वास कर सकती है कि कोई औरत घोड़े का झेल सकती है?" "नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है, पापा जी? औरत मर नहीं जायेगी घोड़े का डलवाएगी अपने अन्दर तो?" "अरे, तू मेरा यकीन तो कर। अच्छा, कल तुझे वह सीडी दूंगा तो खुद ही देख लेना" "पापा जी, आज ही दिखाओ न, वह कैसी सीडी है। मुझे जरा भी यकीन नहीं आ रहा।" "ज़िद नहीं करते बेटा, कल रात को जब अनमोल एक विवाह में शामिल होने जायेगा तो तू रात में देख लेना। अभी अनमोल के आने का वक्त हो चला है।" रामलाल ने बहू के गालों पर एक प्यार भरी थपकी दी और उसके नितम्बों की दोनों फांकों को कस इधर-उधर को फैलाया और फिर कमरे से बाहर निकल आया।
रामलाल के कमरे से बाहर निकलते ही अनमोल आ गया। अनीता ने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि अच्छा हुआ जो पापा जी वक्त रहते बाहर निकल गए, वर्ना अनमोल पर जरूर इसका गलत प्रभाव पड़ता। रात हुयी और पति-पत्नी फिर एक साथ लेटे। अनीता ने धीरे से अपना हाथ पति की जाँघों के ओर बढ़ाया और पति-देव के मुख्य कारिंदे को मुट्ठी में पकड़ कर रगड़ना शुरू कर दिया पर लिंग में तनिक भी तनाव नहीं आया। अनमोल कुछ देर तक चुपचाप लेटा रहा और अनीता उसके लिंग को बराबर सहलाती रही। अंत में कोई हरकत न देख वह उठी और उसने मुरझाये हुए लिंग को ही मुंह में लेकर खूब चूंसा। काफी देर के बाद लिंग में हरकत सी देख अनीता पति के लिंग पर सबार होने की चेष्टा में उसके ऊपर आ गयी और उसने अपनी योनि को फैलाकर लिंग को अन्दर लेने की कोशिश की। इस बार लिंग मुश्किल से अन्दर तो हो गया किन्तु जाते ही स्खलित हो गया और सिकुड़े हुए चूहे जैसा बाहर आ गया। अनीता का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। रात भर योनि में ऊँगली डाल कर बड़-बड़ करती अपनी काम-पिपासा को शांत करती रही।
अगले दिन अनमोल किसी विवाहोत्सव में सम्मिलित होने चला जायेगा, यह सोचकर अनीता बहुत खुश थी। वह शीघ्र ही रात होने का इन्तजार करने लगी। एक-एक पल उसे युगों सा कटता प्रतीत हो रहा था। दिन भर वह रामलाल के ख्यालों में खोई रही। उसे ससुर द्वारा अपने सिर से लेकर कन्धों, पीठ और फिर अपने नितम्बों तक हाथ फिसलाते हुए ले जाना, अपनी चूचियों को किसी न किसी बहाने छू लेना, और उनका कड़े लिंग का अपनी जाँघों से स्पर्श होना रह-रह याद आ रहा था। वह एक सुखद कल्पना में सारे दिन डूबी रही। शाम को अनमोल विवाह में शामिल होने चला गया तब उसे कहीं चैन आया। अब उसने पक्का निश्चय कर लिया था कि आज की रात वह अपने ससुर (रामलाल) के साथ ही बिताएगी और वह भी पूरी मस्ती के साथ। इसी बीच उसने उपने कक्ष के दरवाजे पर हलकी सी थपथपाहट सुनी। वह दौड़ कर गयी और दरवाजे की कुण्डी खोली तो देखा बाहर उसका ससुर रामलाल खड़ा था। बिना कुछ बोले वह अन्दर आ गयी और पीछे-पीछे ससुर जी भी आ खड़े हुए। अनीता ने गद-गद कंठ से पूछा, "पापा जी, लाये वह सीडी, जो आप बता रहे थे।" "हाँ बहू, ये ले और डाल कर देख इसे सीडी प्लेयर में।" अनीता ने लपक कर सीडी रामलाल के हाथ से ले ली और उसे प्लेयर में डाल कर टी वी ओन कर दिया। परदे पर स्त्री-पुरुष की यौन क्रीड़ायें चल रही थीं। रामलाल ने सीन को आगे बढ़ाया - एक मोटा चिम्पैंजी एक क्वारी लड़की की योनि में अपना मोटा लम्बा लिंग घुसाने की चेष्टा में था। लड़की बुरी तरह से दर्द से छटपटा रही थी। आखिरकार वह उसकी योनि फाड़ने में कामयाब हो ही गया। इस सीन को देखकर अनीता ससुर के सीने से जा लिपटी। रामलाल ने उसे अपनी बांहों में भर कर तसल्ली दी -"अरे, इतने से ही डर गयी। अभी तो बहुत कुछ देखना बाकी है बहू।" रामलाल के हाथ अब खुलकर अनीता की छातियाँ सहला रहे थे। अनीता को एक विचित्र से आनंद की अनुभूति हो रही थी। वह और भी रामलाल के सीने से चिपटी जा रही थी। रामलाल ने बहु का हाथ थामकर अपने लिंग का स्पर्श कराया। अनीता अब कतई विरोध की स्थिति में नहीं थी। उसने धीरे से रामलाल के लिंग का स्पर्श किया। और फिर हलके-हलके उसपर हाथ फेरने लगी। वह रामलाल से बोली, "पापा जी वह सीन कब आएगा?" "कौन सा बहू " इस बीच रामलाल ने अनीता की जांघों को सहलाना शुरू कर दिया था। जांघें सहलाते-सहलाते उसने अनीता की सुरंग में अपनी एक उंगली घुसेड दी। अनीता सिंहर उठी और उसके मुंह से एक तेज सिसकारी फूट पड़ी - "आह:! उफ्फ ....अब बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं हो रहा ....." "क्या बर्दास्त नहीं हो रहा बहू ? ले तुझे अच्छा नहीं लगता तो मैं अपनी उंगली बाहर निकाल लेता हूँ।" रामलाल ने बहू की सुरंग से अपनी उंगली बाहर निकाल ली और दूर जा बैठा। वह जानता था कि अनीता के रोम-रोम में मस्ती भर उठी है और वह अब समूंचा लिंग अपनी दहकती भट्टी में डलवाए बिना नहीं रह सकती। अनीता को लगा कि ससुर जी नाराज हो गए हैं। वह दूर जा बैठे रामलाल से जा लिपटी। बोली - "पापा जी, आप तो बुरा मान गए।" "...तो फिर तुमने ये क्यों कहा कि अब तो बिलकुल बर्दाश्त नहीं हो रहा ..." "पापा जी, मेरा मतलब ये नहीं था जो आप समझ रहे हैं।" "फिर क्या था तुम्हारा मतलब ?" "अब पापा जी, आप से क्या छिपा है ...आप नहीं जानते, जब औरत की आग पूरी तरह से भड़क जाती है तो उसकी क्या इच्छा होती है?" "नहीं, मुझे क्या पता औरत की चाहत का कि वह क्या चाहती है।" "अनीता बोली - "अब मैं आपको कैसे समझाऊँ की मेरी क्या इच्छा हो रही है।" "बहू, तू ही बता, मैं तेरी मर्ज़ी कैसे जान सकता हूँ। तू एक हल्का सा इशारा दे, मैं समझने की कोशिश करता हूँ।" "मैं कुछ नहीं बता सकती, आपको जो भी करना है करो ...अब मैं आपको रोकूंगी नहीं।" "ठीक है...फिर मैं तो कहूँगा की तू अपने सारे कपडे उतार दे, और बिलकुल नंगी होकर मेरे सामने पसर जा। आज मैं तेरी गदराई जवानी का खुलकर मज़ा लूँगा ... बोल देगी ?" अनीता ने धीरे से सिर हिला कर स्वीकृति दे दी और बोली नंगी मुझे आप खुद करोगे, हाँ, मैं पसर जाऊंगी आपके सामने।" रामलाल ने कहा, "देख बहू, फिर तेरी फट-फटा जाये तो मुझे दोष न देना, पहले मेरे इसकी लम्बाई और मोटाई देख ले अच्छी तरह से।" रामलाल ने अपना कच्छा उतार फैंका और अपना फनफनाता लिंग उसके हाथो में थमा दिया। "कोई बात नहीं, मुझे सब मंजूर है।" फिर रामलाल ने एक-एक करके अनीता के सारे कपडे उतार फैंके और खुद भी नंगा हो गया। अनीता ससुर से आ लिपटी और असका मोटा लिंग सहलाते हुए बोली, "पापा जी, बुरा तो नहीं मानोगे?" "नहीं मानूंगा, बोल ..." अनीता ने कहा, "आपका ये किसी घोड़े के से कम थोड़े ही है।"
इसी बीच दोनों की निगाहें एक साथ टीवी पर जा पहुंची। एक नंगी औरत घोड़े का लिंग अन्दर ले जाने की कोशिश में थी। धीरे-धीरे उसने घोड़े का आधा लिंग अपनी योनि के अन्दर कर लिया। अनीता सहमकर ससुर से बुरी तरह से चिपट गयी।
 
रामलाल ने बहू को नंगा करके अपने सामने लिटा रखा था और उसकी जांघें फैलाकर सुरंग की एक-एक परत हटाकर रसदार योनि को चूंसे जा रहा था। अनीता अपने नितम्बो को जोरों से हिला-हिला कर पूरा आनंद ले रही थी। अनीता ने एक बार फिर टीवी का सीन देखा। लड़की की योनि में घोड़े का पूरा लिंग समा चुका था। एकाएक रामलाल को जैसे कुछ याद आ गया हो वह उठा और टेबल पर रखा रेज़र उठा लाया। उसने अनीता के गुप्तांग पर उगे काले-घने बाल अपनी उँगलियों में उलझाते हुए कहा - "ये घना जंगल और ये झाड़-झंकाड़ क्यों उगा रखा है अपनी इस खूबसूरत गुफा के चारों ओर?" "पापा जी, मुझे इन्हें साफ़ करना नहीं आता" "ठीक है, मैं ही इस जंगल का कटान किये देता हूँ।" ऐसा कहकर रामलाल ने उसकी योनि पर शेविंग-क्रीम लगाई और रेज़र से तनिक देर में सारा जंगल साफ़ कर दिया और बोला - "जाओ, बाथरूम में जाकर इसे धोकर आओ। तब दिखाऊँगा तुम्हे तुम्हारी इस गुफा की खूबसूरती। अनीता बाथरूम में जाकर अपनी योनि को धोकर आयी और फिर रामलाल के आगे अपनी दोनों जांघें इधर-उधर फैलाकर चित्त लेट गयी रामलाल ने एक शीशे के द्वारा उसे उसकी योनि की सुन्दरता दिखाई। अनीता हैरत से बोली, "अरे, मेरी ये तो बहुत ही प्यारी लग रही है।" वह आगे बोली, "पापा जी, आपके इस मोटे मूसल पर भी तो बहुत सारे बाल हैं। आप इन्हें साफ़ क्यों नहीं करते?" रामलाल बोला, "बहू, यही बाल तो हम मर्दों की शान हैं। जिसकी मूंछें न हों और लिंग पर घने बाल न हों तो फिर वह मर्द ही क्या। हमेशा एक बात याद रखना, औरतों की योनि चिकनी और बाल-रहित सुन्दर लगती है मगर पुरुषों के लिंग पर जितने अधिक बाल होंगे वह मर्द उतना ही औरतों के आकर्षण का केंद्र बनेगा।" अनीता बोली, "पापा जी, मुझे तो आपका ये बिना बालों के देखना है। लाइए रेज़र मुझे दीजिये और बिना हिले-डुले चुपचाप लेटे रहिये, वर्ना कुछ कट-कटा गया तो मुझे दोष मत दीजियेगा।" अनीता ने ससुर के लिंग पर झट-पट शेविंग क्रीम लगाई और सारे के सारे बाल मूंड कर रख दिए। रामलाल जब लिंग धोकर बाथरूम से लौटा तो उसके गोरे, मोटे और चिकने लिंग को देख कर अनीता की योनि लार चुआने लगी। योनि रामलाल के लिंग को गपकने के लिए बुरी तरह फड़फड़ाने लगी और अनिता ने लपक कर उसका मोटा तन-तनाया लिंग अपने मुंह में भर लिया और उतावली हो कर चूसने लगी। रामलाल बोला - "बहू, तू अब अपनी जांघें फैलाकर चित्त लेट जा और अपने नितम्बों के नीचे एक हल्का सा तकिया लगा ले।" "ऐसा क्यों पापा जी?" "ऐसा करने से तेरी योनि पूरी तरह से फ़ैल जाएगी और उसमे मेरा ये मोटा-ताज़ी, हट्टा-कट्टा डंडा बिना किसी परेशानी के सीधा अन्दर घुस जाएगा।" अनीता ने वैसा ही किया। रामलाल ने बहू के योनि-द्वार पर अपने लिंग का सुपाड़ा टिकाकर एक जोर-दार झटका मारा कि उसका समूंचा लिंग धचाक से अन्दर जा घुसा। अनीता आनंद से उछल पड़ी। वह मस्ती में आकर अपने कुल्हे और कमर उछाल-उछाल कर लिंग को ज्यादा से ज्यादा अन्दर-बाहर ले जाने की कोशिश में जुटी थी। रामलाल बोला, "बहू, तेरी तो वाकई बहुत ही चुस्त है। कुदरत ने बड़ी ही फुर्सत में गढ़ी होगी तेरी योनि।" "अनीता बोली, आपका हथियार कौन सा कम गजब का है। पापा जी, सच बताइए, सासू जी के अलाबा और कितनी औरतों की फाड़ी है आपके इस मोटे लट्ठे ने।" रामलाल अनीता की योनि में लगातार जोरों के धक्के लगाता हुआ बोला, "मैंने कभी इस बात का हिसाब नहीं लगाया। हाँ, तुझे एक बात से सावधान कर दूं। मेरे-तेरे बीच के इन संबधों की तेरी पड़ोसिन जिठानी को को जरा भी भनक न लग जाए। वह बड़ी ही छिनाल किस्म की औरत है। हमें सारे में बदनाम करके ही छोड़ेगी।" "नहीं पापा जी, मैं क्या पागल हूँ जो किसी को भी इस बात की जरा भी भनक लगने दूँगी। वैसे, आप एक बात बताओ, क्या ये औरत आपसे बची हुयी है?" रामलाल जोरों से हंस पड़ा , बोला - "तेरा यह सोचना बिलकुल सही है बहू, इसने भी मुझसे एक वार नहीं, कितनी ही वार ठुकवाया है।" "अच्छा, एक बात और पूछनी है आपसे .." "पूंछो बहू,..." "पहली रात को क्या सासू जी आपका ये मोटा हथियार झेल पाई थीं?" "अरे कुछ मत पूछ बहू, जब मेरा तेरी सास के साथ ब्याह हुआ था तब वह सिर्फ 13 साल की थी और मैं 18 साल का। इतना तजुर्बा भी कहाँ था तब मुझे, कि पहले उसकी योनि को सहला-सहला कर गर्म करता और जब वह तैयार हो जाती तो मैं उसकी क्वारी व अनछुई योनि में अपना लिंग धीरे-धीरे सरकाता। मैं तो बेचारी पर एक-दम से टूट पड़ा था और उसे नंगी करने उसकी योनि के चिथड़े-चिथड़े कर डाले थे। बस योनि फट कर फरुक्काबाद जा पहुंची थी। पूरे तीन दिन मैं होश में आयी थी तेरी सास। अगली बार जब मैंने उसकी ली तो पहले उसे खूब गरम कर लिया था जिससे वह खुद ही अपने अन्दर डलवाने को राज़ी हो गयी।" अनीता तपाक से बोली, "जैसे मेरी योनि को सहला-सहला कर उसे आपने खौलती भट्टी बना दिया था आज। पापा जी, इधर का काम चालू रखिये ...एक वार, सिर्फ एक वार मेरी सुलगती सुरंग को फाड़ कर रख दीजिये। मैं हमेशा-हमेशा के लिए आपकी दासी बन जाऊंगी। " "ले बहू, तू भी क्या याद करेगी ...तेरा भी कभी किसी मर्द से पाला पड़ा था। आज मुझे रोकना मत, अभी तेरी उफनती जवानी को मसल कर रखे देता हूँ।" ऐसा कह कर रामलाल अपने मोटे लिंग पर तेल मलकर अनीता पर दुबारा पिला तो अनीता सिर से पैर तक आनंद में डूब गयी। रामलाल के लिंग का मज़ा ही कुछ और था पर वह भी कब हिम्मत हारने वाली थी। अपने ससुर को खूब अपने नितम्बों को उछाल-उछाल कर दे रही थी। अंतत: लगभग एक घंटे की इस लिंग-योनि की धुआं-धार लड़ाई में दोनों ही एक साथ झड़ गए और काफी देर तक एक-दूजे के नंगे शरीरों से लिपट कर सोते रहे। बीच-बीच में दो-तीन वार उनकी आँखें खुलीं तो वही सिलसिला दुबारा शुरू हो गया। उस रात रामलाल ने बहू की चार वार मारी और हर वार में दोनों को ही पहले से दूना मज़ा आया। अनीता उसी रात से ससुर की पक्की चेली बन गयी। अब वह ससुर के खाने-पीने का भी काफी ध्यान रखती थी ताकि उसका फौलादी डंडा पहले की तरह ही मजबूत बना रहे। पति की नपुंशकता की अब उसे जरा भी फ़िक्र न थी। हाँ, इस घटना के बाद रिश्ते जरूर बदल गए थे। रामलाल सबके सामने अनीता को बहू या बेटी कहकर पुकारता परन्तु एकांत में उसे मेरी रानी, मेरी बुलबुल आदि नामों से संबोधित करता था। और अनीता समाज के सामने एक लम्बा घूंघट निकाले उसके पैर छूकर ससुर का आशीर्वाद लेती और रात में अपने सारे कपडे उतार कर उसके आगे पसर जाती थी।

आज रामलाल अपनी बहू अनीता के साथ कामक्रीड़ा में व्यस्त था। अपने बेटे अनमोल को वह अक्सर विवाह-शादियों में भेजता रहता था ताकि वह अधिक से अधिक रातें अपनी पुत्र-बधु अनीता के बिता सके। अनीता से यौन-सम्बंध बनाने के बाद से वह पहले की अपेक्षा कुछ और अधिक जवान दिखने लगा था। बहू की योनि में अपनी उंगली डाल कर उसे इधर-उधर घुमाते हुए उसने पूछा - "रानी, मैं देख रहा हूँ, कुछ दिनों से तुम किसी चिंता में डूबी हुयी नज़र आ रही हो।" अनीता ने कहा - राजा जी, मेरी छोटी बहिन के ससुराल वालों ने पूरे पांच लाख रूपए की मांग की है। मेरे तीनों भाई मिलकर सिर्फ चार लाख रूपए ही जुटा पाए हैं। उन लोगों का कहना है कि अगर पूरे पैसों का प्रवंध नहीं हुआ तो वे लोग मेरी बहिन सुनीता से सगाई तोड़ कर किसी दूसरी जगह अपने बेटे का ब्याह कर लेंगे।" रामलाल कुछ सोचता हुआ बोला, "उनकी माँ का खोपड़ा सालों की। तू चिन्ता मत कर, उनका मुंह बंद करना मुझे आता है। बस इतनी सी बात को लेकर परेशान है मेरी जान।" रामलाल ने एक साथ तीन उंगलियाँ बहु की योनि में घुसेड़ दीं। अनीता ने एक लम्बी से आह: भरी। ससुर की बात पर अनीता खुश हो गयी, उसने रामलाल का लिंग अपनी मुट्ठी में लेकर सहलाना शुरू कर दिया और उसके अंडकोषों की गोलियों को घुमा-घुमा कर उनसे खेलने लगी।
रामलाल बोला - "अपनी बहिन को यहीं बुला ले मेरी रानी, मेरी जान! हम भी तो देखें तेरी बहिन कितनी खूबसूरत है।" "मेरी बहिन मुझसे सिर्फ तीन साल ही छोटी है। देखने में बहुत गोरी-चिट्टी, तीखे नयन नक्श, पतली कमर, सुडौल कूल्हों, के साथ-साथ उसके सीने का उभार भी बड़े गज़ब का है।" रामलाल के मुंह में पानी भर आया, बहू की बहिन की इतनी सारी तारीफें सुनकर। वह आहें भरता हुआ बोला - "हाय, हाय, हाय! क्या मेरा दम ही निकाल कर छोड़ेगी मेरी जान, अब उसकी तारीफें करना बंद करके यह बता की कब उसे बुला कर मेरी आँखों को ठंडक देगी। मेरा तो कलेजा ही मुंह को आ रहा है उसकी तारीफें सुन-सुन कर ..." अनीता बोली - "देखो जानू, बुला तो मैं लूंगी ही उसे मगर उस पर अपनी नीयत मत खराब कर बैठना। वह पढ़ी-लिखी लड़की है, अभी-अभी बीए पास किया है उसने। आपके झांसे में नहीं फंसने वाली वो।" रामलाल ने उसे पानी चढ़ाया बोला, "फिर तू किस मर्ज़ की दबा है मेरी बालूसाही! तेरे होते हुए भी अगर हमें तेरी बहिन की कातिल जवानी चखने को न मिली तो कितने दुःख की बात होगी। हाँ, रूपए-पैसों की तू चिंता न करना। ये चाबी का गुच्छा तेरे हाथों में थमा दूंगा, जितना जी चाहे खर्च करना अपनी बहिन की शादी में। तू तो इस घर की मालकिन है, मालकिन!" 
रामलाल 500 बीघे का जोता था। ट्रेक्टर-ट्राली, जीप, मोटर-साइकिल, नौकर-चाकर, एक बड़ी हवेली सब-कुछ तो था उसके पास, क्या नहीं था? तिजूरी नोटों से भरी रहती थी उसकी। अगर कहीं कमी थी तो उसके बेटे के पास पुरुषत्व की। अनीता तो तब भी रानी होती और अब भी महारानियों की तरह राज कर रही थी, रामलाल की धन-दौलत पर और साथ ही उसके दिल पर भी।
 
अनीता ने रामलाल की बात पर कुछ देर तक सोचा और फिर बोली, "हाय मेरे राजा ...मैं कैसे राज़ी करूंगी उसे तुम्हारे साथ सोने को?" रामलाल ने बहू की योनि में अब अपना समूचा लिंग घुसेड़ दिया और उसे धीरे-धीरे अन्दर-बाहर करता हुआ बोला, "मेरी बिल्लो, वह सीडी किस दिन काम आएगी। उसे दिखा कर पटा लेना। जब वह घोड़े, कुत्ते, भालुओं को नंगी औरतों की योनि फाड़ते हुए देखेगी तो उसकी योनि भी पानी छोड़ने लगेगी। तू उसको पहले इतने सीन दिखा डालना फिर वह तो खुद ही अपनी योनि में उँगलियाँ घुसेड़ने लगेगी। अगर वह ना अपनी फड़वाने को राज़ी हो जाए तो मैं तेरा हमेशा के लिए गुलाम बन जाऊँगा।" अनीता बोली, "ये कौन सा बड़ा काम करोगे। गुलाम तो मेरे अब भी हो मेरे दिल के राजा! मैं तो तुम पर अपना सब-कुछ लुटाये बैठी हूँ, अपनी लाज-शर्म, अपनी इज्जत-आबरू और अपना ईमान-धर्म तक। अब धीरे-धीरे मेरी योनि की संग मजाक और खिलवाड़ मत करो। जरा, जोरों के धक्के मार दो कस-कस के।" रामलाल ने अपने लिंग में तेजी लानी शुरू कर दी, उसपर मानो मर्दानगी का भूत सबार हो गया था। इतने तेज धक्कों की चोट तो शायद ही कोई औरत बर्दाश्त कर पाती। पर अनीता तो आनन्दित होकर ख़ुशी की किलकारियां भर रही थी - आह मेरे शेर ...कितना मज़ा आ रहा है मुझे ...बस ऐसे ही सारी रात मेरी दहकती भट्टी में अपना भुट्टा भूनते रहो। तुम्हारी कसम मैं अपनी बहिन की जवानी का पूरा-पूरा मज़ा दिलवा कर रहूंगी ...आह: ओह ...सी ई ई ई ई ई...आज तो मेरी पूरी तरह से फाड़कर रख दो ... भले ही कल तुम्हें मेरी योनि किसी मोची से ही क्यों न सिलवानी पड़े।" रामलाल ने धक्कों की रफ़्तार पूरी गति पर छोड़ दी, दे दना दन ...आज रामलाल ने तय कर लिया कि जब तक अनीता उससे रुकने को नहीं कहेगी, वह धक्के मारता ही रहेगा। करीबन तीस-चालीस मिनटों तक रामलाल ने थमने का नाम नहीं लिया। अंत में जब तक अनीता निचेष्ट होकर न पड़ गयी रामलाल उसकी बजाता ही रहा।
दूसरे ही दिन अनीता ने खबर भेज कर अपनी छोटी बहिन सुनीता को अपने यहाँ बुलवा लिया। अनीता के मायके में तीन भाई और एक बहिन थी उससे सिर्फ तीन साल छोटी। माता-पिता उसके बचपन में ही मर चुके थे। सभी भाई-बहिनों को बड़े भाई ने ही पाला था। अनीता के दो भाई विवाहित थे और सबसे छोटा भाई अभी अविवाहित था। वह हाल में ही नौकरी पर लगा था। कुल मिलकर उसके मायके वालों की दशा कुछ ख़ास अच्छी न थी। उस पर सुनीता के ससुराल वालों का दहेज़ में पांच लाख रूपए की मांग करना, किन्तु रामलाल द्वारा उनकी मांग पूरी करने की बात सुनकर अनीता की सारी चिंता जाती रही। आज ही उसकी छोटी बहिन उसके घर आयी थी। ससुर रामलाल ने अनीता को अपने पास बुलाकर उसके कान में फुसफुसाते हुए कहा - "रानी समझ गयी न तुझे क्या करना है, किसी प्रकार अपनी बहिन को वह सीडी दिखा दे। तेरी कसम, जबसे उसके रूप को मैंने देखा है, तन-बदन में आग सी लगी हुयी है। आज ही तो अनमोल बाहर गया है, सात दिनों के बाद लौटेगा। तब तक तुम दोनों बहिनों की जवानी का रस खूब छक कर पिऊंगा। खूब जम कर मज़ा लूँगा इन सात रातों में। जा, जाकर उसे वह सीडी दिखा ..."
अनीता अपने कमरे में आई और उसे ब्लू-फिल्म दिखाने की कोई तरकीब सोचने लगी। दोपहर का खाना खाकर दोनों बहिनें पलंग पर लेट कर बातें करने लगीं। बातों ही बातों में अनीता ने उसके ब्याह का ज़िक्र छेड़ दिया। इसी दौरान अनीता ने सुनीता से पुछा, "सुनीता, तुझे सुहागरात के वारे में कुछ नालेज है कि उस रात पति-पत्नी के बीच क्या होता है? फिर न कहना कि मुझे इस वारे में किसी ने कुछ बताया ही नहीं था।" सुनीता ने अनजान बनते हुए शरमाकर पूछा, "क्या होता है दीदी, उस रात को? बताइये, मुझे कुछ नहीं मालूम।" अनीता बोली, "पगली, इस रात को पति-पत्नी का शारीरिक मिलन होता है।" "कैसे दीदी, जरा खुल के बताओ न, कैसा मिलन?" "अरी पगली, पति-पत्नी एक दूसरे को प्यार करते हैं। पति पत्नी के ओठों का चुम्मन लेता है, उसके ब्लाउज के हुक खोलता है और फिर उसकी ब्रा को उतार कर उसकी चूचियों का चुम्मन लेता है, उन्हें दबाता है। धीरे-धीरे पति अपना हाथ पत्नी के सारे शरीर पर फेरने लगता है, वह उसकी छातियों से धीरे-धीरे अपना हाथ उसकी जाँघों पर ले जाता है और फिर उसकी दोनों जाँघों के बीच की जगह को अपनी ऊँगली डाल कर उसका स्पर्श करता है।" "फिर क्या होता है दीदी, बताइये न, आप कहते-कहते रुक क्यों गयीं?" "कुछ नहीं, मैं भी तुझे क्यों ये बातें बताने लगी। ये सारी बातें तो तुझे खुद भी आनी चाहिए, अब तू बच्ची तो नहीं रही।" अनीता ने नकली झुंझलाहट का प्रदर्शन किया। "दीदी, बताओ प्लीज, फिर पति क्या करता है पत्नी के साथ?" "उसे पूरी तरह से नंगी कर देता है और फिर खुद भी नंगा हो जाता है। दोनों काफी देर तक एक दूसरे के अंगों को छूते हैं, उन्हें सहलाते हैं और अंत में पति अपनी पत्नी की योनि में अपना लिंग डालने की कोशिश करता है। जब उसका लिंग आधे के करीब योनि के अन्दर घुस जाता है तो पत्नी की योनि की झिल्ली फट जाती है और उसे बड़ा दर्द होता है, योनि से कुछ खून भी निकलता है। कोई-कोई पत्नी तो दर्द के मारे चीखने तक लगती है। परन्तु पति अपनी मस्ती में भर कर अपना शेष लिंग भी पत्नी की योनि में घुसेड ही देता है।" "फिर क्या होता है दीदी?" "होता क्या, थोड़ी-बहुत देर में पत्नी को भी पति का लिंग डालना अच्छा लगता है और वह भी अपने कुल्हे मटका-मटका कर पति का साथ देती है। इस क्रिया को सम्भोग-क्रिया या मैथुन-क्रिया कहते हैं।"
क्रमशः....
 
अनाड़ी पति और ससुर रामलाल--3

गतान्क से आगे............. ....
अनीता समझ चुकी थी कि अब सुनीता भी पूरी जानकारी लेने को उताबली हो गयी है तो उसने सुनीता से कहा, "अगर तू पूरी जानकारी चाहती है तो मेरे पास सुहागरात की एक सीडी पड़ी है, उसे देख ले बस तुझे इस वारे में सब-कुछ पता लग जायेगा।" सुनीता एक दम चहक उठी, बोली, "दिखाओ दीदी, कहाँ है वह सीडी? जल्दी दिखाओ नहीं तो रात को जीजू आ जायेंगे तुम्हारे कमरे में।" अनीता बोली, "तेरे जीजू के पास वो सब-कुछ है ही कहाँ, जो मेरे साथ कुछ कर सकें।" सुनीता ने आश्चर्य से पूछा, "हैं, सच दीदी...जीजू नहीं करते आपके साथ, जो कुछ आपने मुझे बताया अभी तक पति-पत्नी के रिश्ते के वारे में?" अनीता बोली, "तेरे जीजू तो बिलकुल नामर्द हैं। पहली रात को तो मैंने किसी तरह उनका लिंग सहला-सहला कर खड़ा कर लिया था और हम-दोनों का मिलन भी हुआ था मगर उस दिन के बाद तो उनके लिंग में कभी तनाव आया ही नहीं।" सुनीता ने पूछा, "दीदी, फिर तुम अपनी इच्छा कैसे पूरी करती हो?" अनीता बोली, "ये सारी बातें मैं तुझे बाद में बताउंगी, पहले तू सीडी देख।"
अनीता ने सीडी लेकर सीडी प्लेयर में डाल दी और फिर दोनों बहिनें एक साथ मिलकर देखने लगीं। पहले ही सीन में एक युवक अपनी पत्नी की चूचियां दबा रहा था। पत्नी सी ..सी करके उत्तेजित होती जा रही थी और युवक का लिंग अपनी मुट्ठी में लेकर सहला रही थी। धीरे-धीरे उसने पत्नी के सभी कपड़े उतार फेंके और खुद भी नंगा हो गया। उसने अपनी पत्नी की योनि को चाटना शुरू कर दिया। पत्नी भी उसका लिंग मुंह में लेकर चूंस रही थी। यह दृश्य देखकर सुनीता के सम्पूर्ण शरीर में एक उत्तेजक लहर दौड़ गयी। उसकी योनि में भी एक अजीब सी सुरसुराहट होने लगी थी। वह बोली, "दीदी, मुझे कुछ-कुछ हो सा रहा है।" अनीता बोली, "तेरी योनि भी पानी छोड़ने लगी होगी।" सुनीता बोली, "हाँ दीदी, चड्डी के अन्दर कुछ गीला-गीला सा महसूस हो रहा है मुझे।" अनीता ने उसकी सलवार खोलते हुए कहा,"देखूं तो ..." अनीता ने ऐसा कहकर सुनीता की योनि को एक उंगली से सहलाना शुरू कर दिया। एक सिसकी सुनीता के मुंह से फूट निकली .."आह: दीदी, बहुत मन कर रहा है, कोई मोटी सी चीज ठूंस दो इसके अन्दर, बस आप इसी तरह से मेरी योनि में अपनी उंगली डाल कर उसे अन्दर-बाहर करती रहो।" अनीता ने सुनीता की सलवार उतार फेंकी और बोली, "तू इसी तरह से चुपचाप पड़ी रहना मैं दरबाजे की सिटकनी लगा कर अभी आती हूँ।"
अनीता ने लौट कर देखा कि सुनीता अपनी योनि को खूब तेजी से सहला रही थी। अनीता ने उसके सारे कपड़े उतार कर उसे पूरा नंगा कर दिया और फिर वह खुद भी नंगी हो गयी। दोनों बहिनों ने एक-दूसरे को अपनी बांहों में भर लिया और कस कर चिपट गयीं। दोनों बहिनों की आँखें टीवी पर टिकी थीं जहाँ स्त्री-पुरुषों के बीच नाना-प्रकार की काम-क्रीड़ायें चल रही थीं। अनीता ने सुनीता की चूचियों को कस कर दबाना शुरू कर दिया और अपने होट उसके होटों से सटा दिए। सामने के दृश्य में एक सांड अपने लिंग को एक नंगी औरत की योनि में घुसेड़ने की तैयारी में था। कुछ ही देर में वह अपना लिंग उसके योनि में घुसेड़ कर लगातार धक्के लगा रहा था और अंत में औरत सांड के लिंग को बर्दाश्त न कर पाई और बेहोश होगई। सांड उसकी फटी हुयी योनि से बहता हुआ खून चाट-चाट कर उसे साफ़ कर रहा था। यह सब देख, सुनीता का सारा बदन गर्म हो गया। वह बुरी तरह कामाग्नि में झुलसने लगी। उसके मुख से अजीव सी कामुक आवाजे आने लगी थीं। अगले दृश्य में उसने एक स्त्री को गधे का लिंग सहलाते हुए देखा, गधे का लिंग थोड़ी ही देर में पूरा बाहर निकल आया। उस औरत ने लिंग को अपनी योनि पर टिका लिया और फिर गधे ने एक जोर का रेला उसकी योनि में दिया। गधे का समूंचा लिंग एक ही झटके से योनि में जा घुसा। औरत थोड़ी देर छटपटाई और फिर उठ खड़ी हुयी।
सुनीता का शरीर बेकाबू हो गया उसने अपनी बड़ी बहिन को अपनी बाहों में कस कर जकड़ लिया और बोली, "दीदी, अब अपनी योनि में भी किसी का लिंग डलवाने की मेरी बहुत इच्छा हो रही है। दीदी, जीजू जब इस लायक नहीं हैं तो फिर तुम अपनी कामाग्नि कैसे शांत करती हो? " अनीता ने अपनी बहिन को प्यार से चूमते हुए कहा, "फ़िक्र मत कर, आज मैं और तू किसी हट्टे-कट्टे आदमी से अपनी प्यास बुझाएंगे।" सुनीता ने चहक कर पूंछा, "कौन है दीदी, जो हमारी प्यास बुझाएगा? आह: दीदी, मैं तो तड़प रही हूँ अपनी योनि फड़वाने के लिए। काश! वह सांड ही टीवी फाड़कर निकल आये और हम-दोनों को तृप्त कर दे अपने लिंग के धक्कों से।" "सब्र कर बेवकूफ, वो मर्द कोई और नहीं है, मेरे पापा जी ही हैं जो आज हम-दोनों की इच्छाएं पूरी करेंगे।" "दीदी, ये क्या कह रहीं हैं आप?" "हाँ सुनीता, वे मेरे ससुर ही हैं जो मुझ तड़पती हुयी औरत को सहारा देते हैं। अब तू ही बता मुझे क्या करना चाहिए? क्या मैं पास-पड़ोस के लोगों को फंसाती फिरूं अपनी प्यास बुझाने के लिए?" सुनीता ने अपनी दीदी की बात पर अपनी सहमती व्यक्त की, बोली, "तुम ठीक ही कह रही हो दीदी, इससे घर की इज्जत भी बची रहेगी और तुम्हारी कामाग्नि भी शांत होती रहेगी। अच्छा दीदी, एक बात बताओ। क्या मौसा जी का भी इतना बड़ा और सख्त लिंग है जितना कि इस फिल्म में मर्दों का दिखा रहे थे, ऐसा मोटा-लम्बा किसी लम्बे खीरे जैसा? " अनीता बोली, "आज तू खुद है देख लेना अपनी आँखों से, अगर देख कर डर न जाए तो मेरा नाम बदल देना। मुझे तो डर है कि तू झेल भी पायेगी या नहीं।" "हैं दीदी, सच में मैं नहीं झेल पाऊँगी उनका?"
दोनों बहिनें बहुत देर तक वासना की इन्हीं बातों में डूबी रहीं। सुनीता बोली, "दीदी, अगर आप इजाजत दें तो मैं भी आपकी योनि चाट कर देख लूं?" अनीता बोली, "चल देख ले। आज तू भी चख कर देख, योनि से जो पानी निकलता है वह कितना आनंद दायक होता है।" अनीता ने लाइन क्लीयर कर दी। सुनीता ने दीदी की योनि पर अपनी जीभ फेरनी शुरू कर दी। अनीता की योनि बुरी तरह फड़कने लगी। वह बोली, "सुनीता, जरा जोरों से चाट, आह: कितना मज़ा आ रहा है। अपनी जीभ मेरी योनि की अन्दर-बाहर कर ...उई माँ ...मर गई मैं तो ...सुनीता और जोर से प्लीज़ ... आह: ...ऊह ..." आधे घंटे तक चाटने के बाद सुनीता बोली, "दीदी, अब मेरी भी चाटो न, " तब अनीता ने उसकी क्वांरी योनि को चाटना शुरू कर दिया। सुनीता का समूंचा बदन झनझना उठा। सुनीता के मुंह से भी सिसकारियां फूटने लगीं। वह बोली - "दीदी, क्या मौसा जी इस समय नहीं आ सकते? प्लीज़ उनसे कहो कि आकर मेरी योनी फाड़ डालें।" अनीता बोली, "क्या पागल हो गयी है? थोडा सा भी इन्तजार नहीं कर सकती।" "दीदी, अब बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं हो रही ये मरी जवानी की आग ...दीदी, मौसा जी राज़ी तो हो जायेंगे न मेरी फाड़ने के लिए?" "मरी बाबली है बिलकुल ही, जिसे एक-दम क्वांरी और अछूती योनि मिलेगी चखने को, वह उसे लेने से इंकार कर देगा।" "दीदी, और अगर नहीं हुए राज़ी तो ...?" "वो सब तू मुझ पर छोड़, तू एक काम करना। आज रात वो मेरे पास आयें और हमारी काम-क्रीड़ायें शुरू हो जाएँ तो तू एक-दम से लाइट ऑन कर देना और ज़िद करना कि तुझे तो मेरे पास ही सोना है। हमारे पास आकर हमारे ऊपर पड़ा कम्बल खीच देना। हम-दोनों बिलकुल ही नंगे पड़े होंगें कम्बल के भीतर। तू कहना, मौसा जी, मुझे तो दीदी के पास ही सोना है। वे राज़ खुलने के डर से घवरा जायेंगे और तुझे भी अपने साथ सुलाने को मजबूर हो जायेंगे। बस समझो तेरा काम बन गया। फिर तू उनके साथ चाहे जैसे मज़ा लेना। समझ गयी न?" सुनीता को तसल्ली हो गयी कि आज उसके मौसा जी उसकी योनि जरूर फाड़ देंगे।
 
सुनीता ने दीदी से कहा, "दीदी, तुम्हें एक बात नहीं मालूम होगी।" "क्या?" अनीता ने पूछा। सुनीता ने बताया, "तुम्हारी शादी के बाद एक दिन मैं यों ही खिड़की की ओट से मझले भैया के कमरे में झाँकने लगी, मुझे भाभी के साथ किसी मर्द की आवाजें सुनाई दीं। कोई कह रहा था, 'अपने सारे कपड़े उतार कर मेरे ऊपर आजा। अब मुझसे ज्यादा इन्तजार नहीं हो रहा।' मेरी उत्सुकता बढ़ी। मैंने सोचा की मझले भैया तो नाइट ड्यूटी जाते है फिर ये कौन आदमी भाभी से नंगी होने की बात कह रहा है। मैंने खिड़की थोड़ी सी और खोल कर अन्दर झाँका तो दीदी, बिलकुल ऐसा ही सीन अन्दर चल रहा था जैसा कि हम-लोगों ने अभी ब्लू-फिल्म में देखा था। बड़े भैया, मझली भाभी को नंगी करके अपने ऊपर लिटाये हुए थे और भाभी ऊपर से धक्के मार-मार कर बड़े भैया का लिंग अन्दर लिए जा रहीं थीं। मुझे यह खेल देखने का चस्का लग गया। एक बार मैंने उनका यह खेल छोटे भैया को भी दिखाया। देखते-देखते छोटे भैया उत्तेजित हो उठे और उन्होंने मेरी छातियों पर हाथ फेरना आरम्भ कर दिया। मैं किसी तरह भाग कर अपने कमरे में चली आई, छोटे भैया ने समझा कि बुरा मान कर अंदर भाग आई हूँ। वे मेरे पीछे-पीछे आये और मुझसे माफ़ी मांगने लगे। आगे कभी ऐसा न करने का वादा भी करने लगे। मैं कुछ नहीं बोली, और बह चुपचाप वहां से चले गए। उनके चले जाने के बाद मैं बहुत पछताई कि क्यों मैंने उनको नाराज़ कर दिया। अगर उनसे करवा ही लेती तो उस दिन मुझे कितना आनंद आता। अफ़सोस तो इस बात का रहा कि उन्होंने दुबारा मेरी छातियाँ क्यों नहीं दबाई। अगर आगे वह ऐसा करें तो मुझे क्या करना चाहिए दीदी? हथियार डाल दूं उनके आगे, और कर दूं अपने आपको उनके हवाले?"
"पागल हो गयी है क्या तू! सगे भाई से यह सब करवाने की बात तेरे दिमाग में आई ही कैसे! देख सुनीता, सगे भाई-बहिन का रिश्ता बहुत ही पवित्र होता है। आगे से ऐसा कभी सोचना भी मत।" " दीदी, तुम्हारी बातें सही हैं मगर जब लड़का और लड़की दोनों के ही सर पर वासना का भूत सबार हो जाये तो बेचारा दिल क्या करे? मेरी कितनी ही सहेलियां ऐसी हैं जिनके यौन-सम्बन्ध उनके अपने सगे भाइयों से हैं। और ये सम्बन्ध उनके वर्षों से चले आ रहे हैं। मेरी एक सहेली को तो अपनी शादी के बाद अपने सगे छोटे भाई के साथ सम्बन्ध बनाने पड़े। उसका पति नपुंशक है और कभी उसके लिंग में थोड़ी-बहुत उत्तेजना आती भी है तो वह पत्नी की योनि तक पहुँचते-पहुँचते ही झड़ जाता है।"
दोनों बहिनों को बातें करते-करते शाम हो आयी। ससुर ने आवाज लगाई, "बहू, जरा इधर तो आ। क्या आज खाना नहीं बनाना है?" अनीता पास आकर ससुर के कान में फुसफुसाई, "जानू आज समझो तुम्हारा काम बन गया। उसी को पटाने में इतनी देर लग गई। आप आज रात को मेरे पलंग पर आकर चुप-चाप लेट जाना, आगे सब मैं सम्हाल लूंगी।
रात हुई, दोनों बहिनें अलग-अलग बिस्तरों पर लेतीं। सुनीता आँखें बंद करके सोई हुई होने का नाटक करने लगी। रात के करीब दस बजे धीरे से दरबाजा खुलने की आवाज आई। सुनीता चौकन्नी हो गई, उसने कम्बल से एक आँख निकाल कर देखा कि दीदी के ससुर अन्दर आये। अन्दर आकर उन्होंने अन्दर से कुण्डी लगा ली और दबे पाँव दीदी के कम्बल में घुस गए। अनीता पहले से ही पेटीकोट और ब्रा में थी। रामलाल ने भी अपने सारे वस्त्र उतार फैंके और अनीता को नंगी करके उसके ऊपर चढ़ गया। अब दोनों की काम-क्रीड़ायें शुरू हो गईं। रामलाल धीरे से अनीता के कान में बोला, "थोड़ी सी पिएगी मेरी जान, आज मैं बिलायती व्हिस्की लेकर आया हूँ। आज बोतल की और इस नई लौंडिया की सील एक साथ तोडूंगा।" रामलाल ने अपने कुरते को टटोलना शुरू किया ही था कि अनीता उसे रोकते हुए बोली, "अभी नहीं, सुनीता पर काबू पाने के बाद शुरू करेंगे पीना। आज मैं तुम दोनों को अपने हाथों से पिलाऊंगी और खुद भी पीउंगी तुम्हारे साथ। पहले मेरी बहिन की अनछुई जवानी का ढक्कन तो खोल दो, बाद में बोतल का ढक्कन खुलेगा। रामलाल मुस्कुराया, बोला - "मेरी जान, तू मेरे लिए कितना कुछ करने को तैयार है। यहाँ तक कि अपनी छोटी बहिन की सील तुडवाने को भी राज़ी हो गई।" "आप भी तो हमारे ऊपर सब-कुछ लुटाने को तैयार रहते हो मेरे राजा, फिर तुम्हारी रानी तुम्हारे लिए इतना सा काम भी नहीं कर सकती।"
सुनीता कम्बल की ओट से सब-कुछ साफ़-साफ़ देख पा रही थी। नाईट बल्ब की रौशनी में दोनों के गुप्तांग स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। सुनीता ने सोचा 'दीदी ने तो कहा था लाइट ऑन करके दोनों के ऊपर से कम्बल हटाने के लिए। यहाँ तो कुछ भी हटाने की जरूरत नहीं है, सब काम कम्बल हटाकर ही हो रहा है।' सुनीता ने उठकर लाइट ऑन कर दी। दोनों ने दिखावे के तौर पर अपने को कम्बल में ढकने का प्रयास किया। सुनीता बोली, "दीदी, मैं तो तुम्हारे पास सोऊँगी। मुझे तो डर लग रहा है अकेले में। अनीता ने दिखावटी तौर पर उसे समझाया, "हम-लोग यहाँ क्या कर रहे हैं, ये तो तूने देख ही लिया है, फिर भी तू मेरे पास सोने की ज़िद कर रही है।" रामलाल बोला, "हाँ,हाँ, सुला लो न बेचारी को अपने पास। उसे हमारे काम से क्या मतलब, एक कोने में पड़ी रहेगी बेचारी। आजा बेटी, तू मेरी तरफ आजा।" सुनीता झट-पट रामलाल की ओर जा लेटी और बोली, "आप लोगों को जो भी करना है करो, मुझे तो जोरों की नीद लगी है।" इधर अनीता और रामलाल का पहला राउंड चल रहा था, इस बीच सुनीता कभी अपनी चूचियों को दबाती तो कभी अपनी योनि खुजलाती। जब अनीता और रामलाल स्खलित होगये तो रामलाल ने कहा, "जानू लाओ तो हमारी व्हिस्की की बोतल, इससे जोश पूरा आएगा, और लिंग की ताकत पहले से भी दूनी हो जाएगी।" अनीता बोली, "मुझे तो बहुत थोड़ी सी देना, मैं तो पीकर सो जाउंगी। मेरे राजा, आज तो तुमने मेरी फाड़ कर रख दी। योनि भी बहुत दर्द कर रही है।" फिर वह अपने ससुर जी के कान में बोली, "आज इसको कतई छोड़ना मत, सोने का बहाना बनाये पड़ी है। आज मैंने ब्लू-फिल्म दिखाकर इसे तुम्हारा यह मूसल सा मोटा लिंग अन्दर डलवाने के लिए बिलकुल तैयार कर लिया है।"
 
लाइट तो ऑन थी ही, पलंग पर दोनों ससुर-बहू बिलकुल नग्नावस्था में बैठे थे। सुनीता ने मौसा जी के मोटे लिंग को कनखियों से देखा तो सर से पैर तक काँप गयी 'बाप रे, किसी आदमी का लिंग है या किसी घोड़े का' पूरे दस इंच लम्बा और मोटा लिंग अभी भी तनतनाया हुआ था, सुनीता की लेने की आस में। अनीता ने बोतल की सील तोड़ी और दो गिलासों में शराब उड़ेली दी। दोनों ने जैसे ही सिप करना चाहा कि सुनीता ने कम्बल से मुंह बाहर निकाल कर कहा, "दीदी, आप दोनों ये क्या पी रहे हैं? थोड़ी मुझे नहीं दोगे?" अनीता ने गुस्सा दिखाते हुए कहा, "ज़हर पी रहे हैं हम लोग, पीयेगी?" "हाँ, मुझे भी दो न," रामलाल ने सुनीता की हिमायत लेते हुए कहा, "हाँ, दे दो थोड़ी सी इस बेचारी को भी।" अनीता ने दो पैग शराब एक ही गिलास में डाल दी और गिलास थमाते हुए बोली, "ले मर, तू भी पी थोड़ी सी।" सुनीता ने दो घूँट गले से नीचे उतारे, और कड़वाहट से मुंह बनाती बोली, "दीदी, ये तो बहुत ही कड़वी है।" "अब गटक जा सारी चुपचाप, ज्यादा नखरे दिखाने की जरूरत नहीं है। ला थोड़ा सा पानी मिला दूं इसमें ...." अनीता ने बाकी का खाली गिलास पानी से भर दिया। सुनीता दो वार में ही सारी शराब गले के नीचे उतार गई और अपना कम्बल ओढ़ कर चुपचाप सोने का अभिनय करने लगी।
शराब पीने के बाद रामलाल का अध-खड़ा लिंग अब पूरा तन-कर खड़ा हो गया। उसने अनीता से पूछा, "क्या शुरू की जाए इसके साथ छेड़खानी?" अनीता ने धीरे से सर हिलाकर लाइन क्लियर होने का संकेत दे दिया। रामलाल अनीता से बोला, "तुम अपने लिए दूसरा कम्बल ले आओ। मैं तो अपनी प्यारी बिटिया के कम्बल में ही सो लूँगा।" ऐसा कह कर वह सुनीता के कम्बल में घुस गया। रामलाल के हाथ धीरे-धीरे सुनीता के वक्ष की ओर बढ़े। सुनीता ने अन्दर ब्रा नहीं पहनी थी, वह केवल नाइटी में थी। रामलाल ने ऊपर से ही सुनीता की चूचियां दबा कर स्थिति का जायजा लिया। सुनीता सोने का बहाना करते हुए सीधी होकर बिलकुल चित्त लेट गई जिससे कि रामलाल को उसका सारा बदन टटोलने में किसी प्रकार की बाधा न पड़े। उसका दिल जोरों से धड़कने लगा, साँसें भी कुछ तेज चलने लगीं। रामलाल ने उसके होटों पर अपने होट टिका दिए और बेधड़क होकर चूसने लगा। सुनीता ने नकली विरोध जताया, "ओह दीदी, क्या मजाक करती हो। मुझे सोने भी दो अब .." रामलाल ने उसकी तनिक भी परवाह न करते हुए उसकी छातियाँ मसलनी शुरू कर दीं और फिर अपने हाथ उसके सारे बदन पर फेरने लगा। इधर सुनीता पर शराब और शवाब दोनों का ही नशा सबार था। उसके बदन में वासना की हजारों चींटियाँ सी रिंगने लगीं।
उसने अनजान बनते हुए रामलाल की जाँघों के बीच में हाथ रख कर उसके लिंग का स्पर्श भी कर लिया। तभी उसने लिंग को पकड़ कर सहलाना शुरू कर दिया, और बोली, "दीदी, तुम्हारी ये क्या चीज है?" इस बीच रामलाल ने उसकी नाइटी भी उतार फैंकी और उसे बिलकुल नंगी कर डाला। रामलाल ने ऊपर से कम्बल हटाकर उसका नग्न शरीर अनीता को दिखाते हुए कहा, "देखा रानी, तेरी बहिन बेहोशी में जाने क्या-क्या बड़बडाये जा रही है।" रामलाल ने उसकी दोनों जाँघों को थोडा सा फैलाकर उसकी योनि पर हाथ फिराते हुए कहा, "यार जानू तेरी बहिन तो बड़े ही गजब की चीज है। इसकी योनी तो देखो, कितनी गोरी और चिकनी है। कहो तो इसे चाट कर इसका पूरा स्वाद चख लूं? रानी, तू कहे तो इसकी योनि का पूरा रस पी जाऊं ...बड़ी रस दार मालूम पड़ रही है।" "अनीता बोली, "और क्या ...जब नशे में मस्त पड़ी है तो उठालो मौके का फायदा। होश में आ गई तो शायद न भी दे। अभी अच्छा मौका है, डाल दो अपना समूंचा लिंग इसकी योनि के अन्दर।" रामलाल ने उसकी जांघें सहलानी शुरू कर दीं। फिर धीरे से उसकी गोरी-चिकनी योनि में अपनी एक उंगली घुसेड़ कर उसे अन्दर-बाहर करने लगा। उसने अनीता से पूछा, "क्यों जानू इसकी योनि के बाल तुमने साफ़ किये हैं?" "नहीं तो ..." अनीता बोली - "इसी ने साफ़ किये होंगे, पूरे एक घंटे में बाथरूम से निकली थी नहाकर।"
रामलाल सुनीता की योनि पर हाथ फेरता हुआ बोला, "क्या गजब की सुरंग है इसकी ! कसम से इसकी सुलगती भट्टी तो इतनी गर्म है कि डंडा डाल दो तो वह भी जल-भुन कर राख होकर निकलेगा अन्दर से।" सुनीता से अब नहीं रहा गया, बोली - "तो डाल क्यों नहीं देते अपना डंडा मेरी गर्म-गर्म भट्टी में।" रामलाल की बांछें खिल उठीं। उसने सुनीता की चूची को मुंह में भर कर चूंसना शुरू कर दिया। सुनीता की सिसकियाँ कमरे में गूँज कर वातावरण को और भी सेक्सी व रोमांटिक बनाने लगीं। रामलाल अब खुलकर उसके नग्न शरीर से खेल रहा था। सुनीता ने रामलाल का लिंग पकड़ कर अपने मुंह में डाल लिया और मस्ती में आकर उसे चूंसने लगी। अब उसे अपने बदन की गर्मी कतई सहन नहीं हो रही थी। उसने रामलाल का लिंग अपनी जाँघों के बीच में दबाते हुए कहा, "मौसा जी, प्लीज़ ..अब अपना यह मोटा डंडा मेरी जाँघों के भीतर सरकाइये, मुझे बड़ा आनंद आ रहा है।" तब रामलाल ने मोटे लिंग का ऊपरी लाल भाग सुनीता की योनि में धीरे-धीरे सरकाना आरम्भ किया। सुनीता की योनि में एक तेज सनसनाहट दौड़ गई। उसने कस कर अपने दांत भींच लिए और लिंग की मोटाई को झेल पाने का प्रयास करने लगी। रामलाल का लिंग जितना उसकी योनि के अन्दर घुस रहा था योनि में उतनी ही पीड़ा बढ़ती जा रही थी। अब रामलाल के लिंग में भी और अधिक उत्तेजना आ गई थी। उसने एक जोरदार धक्का पूरी ताकत के साथ मारा जिससे उसका समूंचा लिंग सुनीता की कोरी योनी को फाड़ता हुआ अन्दर घुस गया।
सुनीता के मुंह से एक जोरों की चीख निकल कर वातावरण में गूँज उठी और वह रामलाल के लिंग को योनि से बाहर निकालने की चेष्टा करने लगी। अनीता ने रामलाल से कहा, "जानू इसके कहने पर अपने इंजन को रोकना नहीं, देखना अभी कुछ ही देर में रेल पटरी पर आ जाएगी। योनि से खून बह निकला जो चादर पर फैल गया था। अनीता सुनीता को डाटते हुए बोली, " देख सुनीता, अब तू चुपचाप पड़ी रह कर इनके लिंग के धक्के झेलती रह, यों व्यर्थ की चिखापुकारी से कुछ नहीं होगा। इस वक्त जो दर्द तुझे महसूस हो रहा है वह कुछ ही देर में मज़े में बदल जायेगा। इन्हें रोके मत, इनके रेस के घोड़े को सरपट दौड़ने दे, अधाधुंध अन्दर-बाहर। इनका बेलगाम घोडा जितनी तेजी से अन्दर-बाहर के चक्कर काटेगा उतना ही तुझे मज़ा आएगा।" बड़ी बहिन की बात मानकर सुनीता थोड़ी देर अपना दम रोके यों ही छटपटाती रही और कुछ ही देर में उसे मज़ा आने लगा। रामलाल अबतक सेंकडों धक्के सुनीता की योनि में लगा चुका था। अब सुनीता के मुख से रामलाल के हर धक्के के साथ मादक सिसकारियाँ फूट रही थीं। उसे लगा कि वह स्वर्ग की सैर कर रही है। इधर रामलाल अपने तेज धक्कों से उसे और भी आनंदित किये जा रहा था। सुनीता अब अपने नितम्बों को उचका-उचका कर अपनी योनि में उसके लिंग को गपकने का प्रयास कर रही थी।
वह मस्ती में भर कर चीखने लगी, "मौसा जी, जरा जोरों के धक्के लगाओ ...तुम्हारे हर धक्के में मुझे स्वर्ग की सैर का आनंद मिल रहा है ....आह: ...आज तो फाड़ के रख दो मेरी योनि को ....और जोर से ...और जोरों से ...उई माँ ...मौसा जी ...प्लीज़ धीरे-धीरे नहीं ...थोड़े और जोर से फाड़ो ..." उसने रामलाल को कस कर अपनी बांहों में जकड़ लिया। अपनी दोनों टाँगों से उसने अपने मौसा जी के नितम्बों को जकड़ रखा था। अजब प्यास थी उसकी जो बुझाए नहीं बुझ रही थी। अंत: रामलाल ने उसकी प्यास बुझा ही डाली। सुनीता रामलाल से पहले ही क्षरित हो कर शांत पड़ गई, उसने अपने हाथ-पैर पटकने बंद कर थे पर वह अब भी चुपचाप पड़ी अपने मौसा जी के लिंग के झटके झेल रही थी। आखिरकार रामलाल के लिंग से भी वीर्य की एक प्रचंड धारा फूट पड़ी। उसने ढेर सारा वीर्य सुनीता की योनि में भर दिया और निढाल सा हो उसके ऊपर लेट गया।
कुछ देर बाद तीनों का नशा मंद पड़ा। रात के करीब दो बजे सुनीता का हाथ रामलाल के लिंग को टटोलने लगा। वह उसके लिंग को धीरे-धीरे पुन: सहलाने लगी। बल्ब की तेज रौशनी में उसने सोते हुए रामलाल के लिंग को गौर से देखा और फिर उसे अपनी उँगलियों में कस कर सहलाना शुरू कर दिया था। रामलाल और अनीता दोनों ही जाग रहे थे। उसकी इस हरकत पर दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े। अनीता ने कहा, "देख ले अपने मौसा जी के लिंग को, है न उतना ही मोटा, लम्बा जितना कि मैंने तुझे बताया था।" वह शरमा कर मुस्कुराई। रामलाल ने भी हँसते हुए पूछा, "क्यों मेरी जान, मज़ा आया कुछ?" सुनीता ने शरमाकर रामलाल के सीने में अपना मुंह छिपाते हुए कहा, "हाँ मौसा जी, मुझे मेरी आशा से कहीं अधिक मज़ा आया आपके साथ। मालूम है, मैंने आपके साथ यह पहला शारीरिक सम्बन्ध बनाया है।" रामलाल बोला, "सुनीता रानी, अब से मुझसे मौसा जी मत कहना। मुझसे शारीरिक सम्बन्ध बनाकर तूने मुझे अपना क्या बना लिया है, जानती है?" सुनीता चुप रही। रामलाल बोला, "अब तूने मुझे अपना खसम बना लिया है। मैं अब तुम दोनों बहिनों का खसम हूँ। आई कुछ बात समझ में?" सुनीता बोली, "ठीक है खसम जी, पर सबके आगे तो मैं आपको मौसा जी ही कहूँगी।" रामलाल ने सुनीता की योनि में उंगली घुसेड़ कर उसे अन्दर-बाहर करते हुए कहा, "चलो सबके आगे तुम्हारा मौसा ही बना रहूँगा।"
सुनीता ने रामलाल के एक हाथ से अपनी छातियाँ मसलवाते हुए कहा, "हमारा आपसे मिलन भी अनीता दीदी के सहयोग से ही हुआ है। अगर आज दीदी मुझे वह ब्लू-फिल्म नहीं दिखाती तो मैं आपके इस मोटे हथियार से अपनी योनि फड़वाने का इतना आनंद कभी नहीं ले पाती। मेरे खसम, अब तो अपना ये डंडा एक वार फिर से मेरी योनि में घुसेड़ कर उसे फाड़ डालने की कृपा कर दो। इस वार मेरी सुरंग फाड़ कर रख दोगे तो भी मैं अपने मुंह से उफ़ तक न करूंगी।" रामलाल बोला, "क्यों अपनी चूत का चित्तोड़-गढ़ बनबाना चाह रही है। मैं तो बना डालूँगा, कुछ धक्को में तेरी योनि की वो दशा कर दूंगा कि किसी को दिखाने के काबिल नहीं रह जाएगी। चल हो जा तैयार .." ऐसा कहकर राम लाल ने अपने मजबूत लिंग पर हाथ फिराया। इसी बीच अनीता बोली, "क्यों जी, आज में एक बात पूछना चाहती हूँ मुझे ये समझाओ कि योनि को लोग और किस-किस नामों से पुकारते हैं?" अनीता की बात पर सुनीता और रामलाल दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े।
क्रमशः....
 
अनाड़ी पति और ससुर रामलाल--4

गतान्क से आगे............. ....
रामलाल बोला, "मेरी रानी, किसी भी चढ़ती जवानी की लड़की की योनि को चूत कहते हैं। इसके दो नाम हैं - एक चूत, दूसरा नाम है इसका 'बुर' चूत सदैव बिना बालों वाली योनि को कहते हैं जबकि 'बुर' के ऊपर घने काले बाल होते हैं। अब नंबर आता है, भोसड़ी का। मेरी दोनों रानियों ध्यान से सुनना। जब औरत की योनि से एक बच्चा बाहर आ जाता है, तो उसे भोसड़ी कहते है। और जब उससे 4-5 बच्चे बाहर आ जाते हैं तो वह भोसड़ा बन जाता है।" सुनीता ने चहक कर पूछा, "और अगर किसी औरत की योनि से दस-बारह बच्चे निकल चुके हों तो वह क्या कहलाएगी?" रामलाल बोला, "ये प्रश्न तुमने अच्छा किया। ऐसी औरत की योनि को चूत या भोसड़ी का दर्ज़ा देना गलत होगा। ऐसी योनि बम-भोसड़ा कही जाने के योग्य होगी।" तीनों लोग जोरों से हंस पड़े। अनीता ने पूछा, "राजा जी, इसीप्रकार लिंगों के भी कई नाम होते होंगे?" "हाँ, होते हैं। आमतौर पर गवांरू भाषा में इसे 'लंड' कहते है। परन्तु लड़ते वक्त या गालियाँ देते वक्त लोग इसे 'लौड़ा' कहकर संबोधित करते हैं। ये सारे शब्द मुझे कतई पसंद नहीं हैं, क्योंकि मैंने बीसियों रातें तुम्हारे संग गुजारी हैं। तुम ही खुद बताओ अगर मैंने कभी इन गंदे शब्दों का प्रयोग किया हो। हाँ, मेरी जिन्दगी में कुछ ऐसी औरतें जरूर आई हैं, जो अधिक उत्तेजित अवस्था में चीखने लगती हैं ..'फाड़ डालो मेरी चूत' ...'मेरी चूत चोद-चोद कर इसका चबूतरा बना डालो' ...मेरी चूत को इतना चोदो कि इसका भोसड़ा बन जाए' बगैरा, बगैरा।
एक काम-क्रीडा होती है - गुदा-मैथुन। इसमें पुरुष, स्त्री की योनि न मार कर उसकी गुदा मारता है। मेरे अपने विचार से तो गुदा-मैथुन सबसे गन्दी, अप्राकृतिक एवं भयंकर काम-क्रीड़ा है। इससे एड्स जैसी ला-इलाज़ बीमारियाँ होने का खतरा रहता है।" अनीता ने पूछा, "राजा जी, ये चोदना कौन सी बला है। मैंने कितने ही लोगो को कहते सुना है 'तेरी माँ चोद दूंगा साले' रामलाल ने बताया कि स्त्री की योनि में लिंग डालकर धक्के मारने की क्रिया को 'चोदना' कहते हैं। मैंने तुम दोनों बहिनों के साथ सम्भोग किया है, चोदा नहीं है तुम्हें।" सुनीता बोली, "मेरे खसम महाराज, एक वार और जोरों से चोदो न मुझे," रामलाल बोला, "चलो, तुम्हारी यह इच्छा भी आज पूरी किये देता हूँ। अनीता रानी, पहले एक-एक पैग और बनाओ, हम तीनों के लिए। तीनो शराब गले से उतारने के बाद और भी ज्यादा उत्तेजित हो गए। इस बार तीनों लोग एक साथ मिलकर काम-क्रीडा कर रहे थे। रामलाल के एक ओर सुनीता और दूसरी ओर अनीता लेटी और उन दोनों के बीच में रामलाल लेटे-लेटे दोनों के नग्न शरीर पर हाथ फेर रहा था। रामलाल कभी सुनीता की योनि लेता तो कभी अनीता की चूचियों से खेलता। रात के दस बजे से लेकर सुबह के पांच बज गए। तब तक तीनों लोग शरीर की नुमाइश और काम-क्रीडा में व्यस्त रहे। इस प्रकार रामलाल ने दोनों बहिनों की रात भर बजाई।
उस रात दोनों बहिनें इतनी अधिक तृप्त हो गईं कि दूसरे दिन दस बजे तक सोती रहीं। पूरे सप्ताह रामलाल ने सुनीता को इतना छकाया था कि जिसकी याद वह जीवन भर नहीं भूल पाएगी। सुनीता तो अपने घर वापस जाना ही नहीं चाहती थी। जाते वक्त सुनीता रामलाल से एकांत में चिपट कर खूब रोई। उसका लिंग पायजामे के ऊपर से ही सहलाते हुए बोली, "जानू अपने इस डंडे का ख़याल रखना। मुझे शादी के बाद भी इसकी जरूरत पड़ सकती है। क्या पता मेरा पति भी जीजू के जैसा ही निकला तो ...?" सुनीता भारी मन से, न चाहते हुए भी अपने घर चली तो गयी पर जाते-जाते रामलाल के लिए एक प्रश्न छोड़ गयी ...कि कहीं उसका पति भी जीजू जैसा ही निकला तो .....?

सुनीता दीदी के घर से आ तो गई किन्तु रातें काटे नहीं कट रहीं थीं। जब उसे रामलाल के साथ गुजारी रातों की याद सताती तो वह वासना के सागर में गोते लगाने लगती और उसके समूंचे बदन में आग की सी लपटें उठने लगतीं। आज तो उसे बिलकुल नीद नहीं आ रही थी। वह जाकर खिड़की पर खड़ी हो गयी और मझली भाभी के कमरे में झाँकने लगी। रात के करीब ग्यारह बजे का समय था। ठीक इसी समय उसके बड़े भैया विजय ने मामी के कमरे में प्रवेश किया। मझली भाभी के कमरे की हर चीज इस खिड़की से साफ़ दिखाई देती थी। उसने देखा - बड़े भैया के आते ही मझली भाभी पलंग से उठ खड़ी हुयी और वह भैया की बाहों में लिपट गयी। बड़े भैया ने उसके साथ चूमा-चाटी शुरू कर कर दी और उन्होंने भाभी को बिलकुल नंगा करके उसकी चूचियां मुंह में भर कर चूंसना शुरू कर दिया। अब वह खुद भी नंगे हो कर भाभी के नंगे बदन का जमकर मज़ा ले रहे थे। आज भैया ने भाभी के साथ कुछ अलग ही किस्म का मैथुन करना शुरू कर दिया. भाभी अपने दोनों नितम्बों को पीछे की ओर उभार कर झुकी हुई थीं और भैया अपना लिंग उनकी गुदा में डालने की कोशिश कर रहे थे। भैया का मोटा लिंग उनकी गुदा में नहीं घुस पा रहा था इसलिए भैया ने लिंग पर थोडा सा तेल लगाया और फिर अन्दर करने की कोशिश करने लगे। इस वार वह अपनी कोशिश में कामयाब हो गए क्योंकि उनका लिंग आधे से अधिक भाभी की गुदा के अन्दर घुस गया था। फिर भैया ने एक जोर का धक्का भाभी की गुदा पर लगाया। इस वार पूरा का पूरा लिंग भाभी की गुदा को फाड़ता हुआ अन्दर घुस गया। भाभी दर्द से चिल्लाने लगीं। भैया ने धीरज बंधाया, "कोई बात नहीं मेरी जान, पहली वार गुदा-मैथुन में ऐसे ही दर्द होता है। आगे से ऐसा कुछ भी नहीं होगा। भाभी की गुदा का दर्द शायद कुछ कम हो गया था क्योंकि उन्होंने भी भैया की लिंग पर पीछे की ओर धक्के लगाने शुरू कर दिए थे।
यह सब देखना सुनीता की बर्दाश्त के बाहर था अत:उसने अपना एक हाथ सलवार में डालकर अपनी योनि को कुरेदना शुरू कर दिया। इसी बीच छोटे भैया आ धमके। उसे खिड़की पर आँखें टिकाये देखकर मुस्कुराते हुए बोले, "सुन्नो, दीदी के पास से आते ही तुमने फिर से भैया और मझली भाभी की ब्लू-फिल्म देखना शुरू कर दी। हट, अब मैं भी थोड़ा सा मज़ा ले लूं। सुनीता के वहां से हटते ही अजय भैया ने अपनी आँखें खिड़की पर टिका दीं। सुनीता अपने कमरे में आकर कुर्सी पर बैठ गई तभी उसकी निगाह टेबल पर रखी एक इंग्लिश मैगजीन पर पड़ी। उठाकर देखा तो ज्ञात हुआ कि वह एक सेक्सी-मगज़ीन थी। उसमे एक जगह पर सुनीता ने मास्टरबेशन, फिंगरिंग और फिस्टिंग जैसे शब्द पढ़े, जो उसकी समझ में नहीं आरहे थे। उसने मन में सोचा कि भैया से सेक्स के वारे में बात करने का इससे बढ़िया मौका उसे कभी नहीं मिलेगा। क्यों न भैया के कमरे में चल कर इन बातों का ही मज़ा लिया जाए। वह उठ कर भैया के कमरे की चल दी। अजय अपने कमरे में एक कुर्सी पर बैठा हुआ था। सुनीता दरबाजा ठेल कर अन्दर आ गई और अजय से बोली, "भैया, मुझे इन शब्दों के अर्थ नहीं समझ में आ रहे हैं, मुझे बता दो प्लीज़ ....." अजय ने देखा कि वही सेक्सी मैगज़ीन सुनीता के हाथ में थी जिसे वह स्वयं सुनीता की अनुपस्थिति में उसकी टेबल पर रख आया था जिससे कि सुनीता उसे पढ़े तो उसके अन्दर भी सेक्स की भावना प्रवल हो उठे। सेक्स की मैगज़ीन को सुनीता के हाथ में देखकर अजय मन ही मन खुश हो उठा पर ऊपर से गुस्सा दिखाते हुए उसे डाटकर बोला, "अरे ये तो सेक्सी मैगज़ीन है। कहाँ से लाई इसे? ऐसी सेक्सी किताबें पढ़ते हुए तुझे शर्म नहीं आती? मालूम है, ये सेक्सी-मैगज़ीन वालिग़ लोग पढ़ा करते हैं।" सुनीता बेझिझक होकर बोली, "भैया, मैं भी तो अब वालिग़ हो चुकी हूँ। पूरे 19 वर्ष की हो चुकी हूँ। फिर मेरी शादी भी तो होने वाली है अब।" अजय चुप हो गया और बोला, "बता, क्या पूछना चाहती है?" सुनीता ने पूछा, "भैया, ये मास्टरबेशन क्या होता है? एक ये फिंगरिंग और फिस्टिंग शब्दों का मतलब समझ में नहीं आ रहा।" अजय मुस्कुराया और बोला, "जा पहले कमरे की सिटकनी लगा कर आ ... तब मैं डिटेल में तुझे इसका मतलब समझाऊंगा।" सुनीता ने दरबाजा अन्दर से बंद कर दिया। उसके मन में लड्डू फूट रहे थे कि आज अजय उसकी जरूर लेगा। वह ख़ुशी-ख़ुशी लौटकर आई और कुर्सी खींच कर अजय के पास ही बैठ गई।
 
अजय ने कहा, "सुन्नो, देख मैं तुझे समझा तो दूंगा इन शब्दों का मतलब, लेकिन जब तब इनपर प्रेक्टिकल काके नहीं समझाऊंगा तेरी समझ में कुछ नहीं आने वाला। बोल ... समझेगी?" "हाँ भैया, मुझे कैसे भी समझाओ, मुझे मंजूर है।" "उस दिन जब मैंने तेरी चूचियों पर हाथ फिराया था तो तू नाराज होकर अन्दर क्यों भागी थी?" "भैया, उस समय मुझे डर लग रहा था। हम लोग बाहर खड़े थे, कोई देख लेता तो ..? मैं अन्दर आई ही इसीलिए थी कि अगर आप अन्दर आकर मेरी चूचियां सहलाओगे तो किसी को भी पता नहीं चलेगा और मुझे भी अच्छा लगेगा।" अजय बोला, "इसका मतलब तो ये हुआ कि तू उस दिन भी तैयार थी अपनी चूचियों को मसलवानेके लिए? अरे यार, मैं ही बुद्धू था, जो उस दिन बुरी तरह डर कर भाग निकला। अच्छा, आ बैठ मेरे पास और एक बात बता ...क्या सच में तू मेरे साथ मज़े लूटना चाहती है या मुझे उल्लू बनाने के मूड में है। अगर वाकई तू जवानी के मज़े लेना चाहती है तो चल मेरे बैड पर चलते हैं।" सुनीता और अजय दोनों अब बैड पर आ बैठे। "अजय ने पूछा, "लाइट यों ही जलने दूं या बंद कर दूं?" सुनीता बोली, "भैया, जैसी आपकी मर्ज़ी, वैसे अँधेरे में मेरी समझ में क्या आएगा। मुझे अभी आपसे बहुत कुछ पूछना बाकी है।" "जैसा तू ठीक समझे, देख शरमाना बिलकुल नहीं ...बरना कुछ मज़ा नहीं आएगा। एक बात और ..." "क्या भैया?" "कल को किसी से कहेगी तो नहीं कि भैया ने मेरे साथ ये सब किया।" "नहीं भैया, मैं कसम खाकर कहती हूँ किसी को कुछ नहीं बताऊंगी" " तो चल, पहले मैं तेरे संग वो करता हूँ जहाँ से पति-पत्नी के मिलन की शुरुआत होती है। तू मेरे बिलकुल करीब आकर मुझसे चिपट जा ..." सुनीता आकर अजय से चिपट गई और उसके गले में हाथ डालकर बोली, "बताओ भैया, अब मुझे क्या करना है।" अजय बोला, "अब तुझे कुछ भी नहीं करना है, बस मज़े लेती जाना। जहाँ तुझे परेशानी हो मुझसे कहना, ठीक है ?" "ठीक है भैया ..." अजय ने सुनीता के होटों पर अपने होट रख दिए और उन्हें चूंसने लगा। सुनीता ने भी उसका पूरा साथ दिया। अजय के हाथ सुनीता की ब्रा के हुक खोल रहे थे, सुनीता ने जरा भी विरोध न किया। वह सुनीता की चूचियों को जोरों से दबाने लगा। उसने चूची की घुंडियों को मुंह में डालकर उन्हें भी चूसना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे अजय के हाथ सुनीता की नाभि के नीचे के भाग को टटोल रहे थे। अजय का एक हाथ सुनीता की सलवार के नाड़े से जा उलझा। वह उसे खोलने का प्रयास करने लगा और कुछ ही देर में अजय ने सुनीता की सलवार उतारकर पलंग के एक ओर रख दी। सुनीता कौतूहलवश यह सब चुपचाप देखे जा रही थी।
उसकी दिल की धड़कने बढ़ने लगी थीं। साँसों की गति भी तेज हो गई थी किन्तु फिर भी वह अजय के अपनी नाभि से नीचे की ओर फिसलते हुए हाथों को रोकने का प्रयास तक नहीं कर पा रही थी। अजय के हाथ धीरे-धीरे सुनीता की नंगी-चिकनी जाँघों पर फिसलने लगे। फिर उसने सुनीता की दोनों जाँघों के बीच में कुछ टटोलना आरम्भ कर दिया। इससे पहले अजय ने अभी तक किसी लड़की की चूत इतनी करीब से नहीं देखी थी और न किसी की चूत को सहलाया ही था। वह बोला, "सुन्नो, आज मैं तेरी प्यारी-प्यारी चूत को गौर से देखना चाहता हूँ।" सुनीता बोली, "भैया, मुझे भी अपना लंड दिखाओ न," "दिखा दूंगा, तुझे अपना लंड भी दिखाऊंगा, घवराती क्यों है सुन्नो मेरी जान! आज मैं तेरी हर वो इच्छा पूरी करूंगा जो तू कहेगी।" " तो पहले अपना लंड मेरे हाथों में दो, मैं देखना चाहती हूँ कि मेरी चूत में यह अपनी जगह बना भी पायेगा या फाड़कर रख देगा मेरी चूत को।" अजय ने झट-पट अपने सारे कपड़े उतार फैंके और एक दम नंगा होकर सुनीता की बगल में आ लेटा। सुनीता की ऊपर की कुर्ती भी उसने उतार कर पलंग के नीचे गिरा दी। अब सुनीता भी एक दम नंगी हो गई थी। दोनों एक दूसरे से बुरी तरह से चिपट गए। और एक दूसरे के गुप्तांगों से खेल रहे थे। अजय सुनीता की चूत में अपनी एक उंगली डालकर आगे-पीछे यानि अन्दर-बाहर कर रहा था जिससे सुनीता के मुंह से सिसकियाँ निकल रहीं थीं। अजय ने सुनीता को बताया कि इसी कार्य को फिंगरिंग कहते हैं। फिंगरिंग अर्थात चूत में उंगली डालकर उसे अन्दर-बाहर करना। इस क्रिया को हिन्दी में हस्त-मैथुन तथा अंग्रेजी में मास्टरबेशन कहते हैं। अजय बोला, "जब औरत काफी कामुक और बैश्यालु प्रकृति की हो उठती है तो वह किसी भी मर्द से या स्वयं ही अपनी योनि में पूरी मुट्टी डलवाकर सम्भोग से भी कहीं अधिक आनंद का लाभ उठाती है। सुन्नो, अब मैंने तीनो शब्दों का अर्थ बता दिया है। अब मैं तुझसे इसकी फीस बसूलूंगा।"
अजय एक तकिया उसके नितम्बों के नीचे लगाते हुए बोला, "अब मैं तेरी चूत में उंगली डालकर मैं अपनी उंगली को आगे-पीछे सरकाऊँगा यानि फिंगरिंग करूंगा" अजय ने सुनीता की चूत में उंगली डालकर अन्दर-बाहर रगड़ना शुरू कर दिया। सुनीता के मुंह से सिसकियाँ फूटने लगीं। अजय ने पूछा, "बता सुन्नो, तुझे कैसा महसूस हो रहा है?" "अच्छा लग रहा है भैया, जरा जोर से करों न, आह: मज़ा आ रहा है। एक बात बताओ भैया, आपने मेरे चूतड़ों के नीचे यह तकिया क्यों लगा दिया?" "इसलिए कि चूतड़ों के नीचे तकिया लगाने से औरत की चूत पहले की अपेक्षा कुछ अधिक खुल जाती है और उसमे कितना ही मोटा लंड क्यों न डाल दो, वह सब-कुछ आसानी से झेल जाती है।" सुनीता बोली, "भैया, बुरा तो नहीं मानोगे, एक बात पूछूं आपसे।" "पूछ चल, " "कहीं आप मेरी चूत में अपना लंड डालने की तैयारी तो नहीं कर रहे?" "हो भी सकता है अगर मेरे लंड से बर्दाश्त नहीं हुआ तो तेरी चूत मैं इसे घुसेड़ भी सकता हूँ।" "भैया, पहले अपने लंड का साइज़ दिखाओ मुझे ... मैं भी तो देखूं कितना मोटा है आपका..मैं आपका लम्बा-मोटा लिंग झेल भी पाऊँगी या नहीं" "चल तुझे अपना लंड दिखाता हूँ ...तू भी क्या याद करेगी कि भैया ने अपना लंड दिखाया, सुन्नो, एक बात तुझे पहले बताये देता हूँ, अगर मेरा मन कहीं तेरी चूत लेने को हुआ तो देनी पड़ेगी। फिर तुझे बिना चोदे मैं छोड़ने का नहीं।" यह कहते हुए अजय ने अपने पेण्ट की जिप खोली और अपना लम्बा-मोटा लिंग निकाल कर सुनीता के हाथ में थमा दिया। सुनीता ने कहा, "भैया, इसे मैं सहलाऊँ?" "सहला दे ..." सुनीता ने सहलाते-सहलाते उसके लिंग को चूम लिया और उसे ओठों से सहलाने लगी। अजय ने ताब में आकर सुनीता की चूचियां जोरों से रगडनी शुरू कर दीं। सुनीता बोली, "भैया, अब खुद भी नंगे हो जाओ न, मुझे आपका लंड खुलकर देखने की जल्दी हो रही है।" अजय ने अपना पैंट और अंडरवियर दोनों ही उतार फैंके और सुनीता के ऊपर आ चढ़ा। सुनीता बोली, "क्यों न हम एक दूसरे का नंगा बदन गौर से देखें। मुझे तो तुम्हारा ये गोरा और मोटा लंड बहुत ही उत्तेजित कर रहा है।" अजय बोला, "मैंने भी तेरी चूत अभी गौर से कहाँ देखी है। चल फैला तो अपनी दोनों जांघें इधर-उधर।" सुनीता ने अपनी दोनों जांघें फैलाकर अपनी चूत के दर्शन कराये। अजय सचमुच सुनीता की चूत देखकर निहाल हो गया। वह सुनीता से बोला, "सुन्नो, मेरी जान, आज तो अपनी इस गोरी, चिकनी और चुस्त चूत को मेरे हवाले कर दे। तेरी कसम जो भी तू कहेगी जिन्दगी भर करूंगा।" "वादा करते हो भैया, जो कहूँगी करोगे?" "हाँ, चल वादा रहा ..." अपने ख़ास दोस्तों से चुदवाओगे मुझे? देखो तुमने वादा किया है मुझसे।" अच्छा चल, चुदवादूंगा तुझे, लेकिन ये बता कि तू इतनी चुदक्कड़ कबसे बन गई।" यह सब बाद में बताऊँगी, पहले अपना लंड मेरी सुलगती बुर में डालकर तेजी से कस-कस कर धक्के लगा दो।"
 
Back
Top