hotaks444
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रूबी : अरे दीदी आप चढ़े घोड़े पे क्यूँ सवार रहती हो, सवी दीदी के साथ जो हुआ वो जानते हुए भी, और इस काम को सिर्फ़ सुनेल कर सकता है, उसका जिस्म घायल है तो उसने सुनील के मजबूत जिस्म में शरण लेली ताकि वो सवी को बचा सके आप हर वक़्त ग़लत क्यूँ सोचते हो. मैने सुनेल की आँखों में रिश्तों के लिए जो तड़प देखी है वो ऐसा घिनोना काम कभी नही करसकता. दीदी कभी सुनेल भाई के दिल की हालत को समझने की कोशिश करी. जिसे अपनी माँ समझते आए जिंदगी भर वो उसकी माँ नही निकली, कभी सोच के देखो ये सब आपके साथ होता तो क्या गुजरती दिल पे. महीनो कोमा में पड़े रहे सुनील पे होने वाले वार को अपने उपर ले लिया, इतना भी नही किया के सुनील को वॉर्न करें, पोलीस में कंप्लेंट करें, बस अकेले झुझते रहे जिंदगी की परेशानियों से. ऐसा भाई तो किस्मत वालों को मिलता है. और कभी ये सोचा क्या गुज़री होगी उसके दिल पे जब ये पता चला कि उसकी असली माँ अब उसके जुड़वा भाई की बीवी है , उसकी बड़ी बहन उसके जुड़वा भाई की बीवी है, उसकी वो मासी जिसने माँ की तरहा उसकी देखभाल कि वो उसके जुड़वा भाई कि बीवी बन गयी. सारे रिश्ते जिनकी पनाह में वो जीने आया था वो सब बदल गये. क्या इनको (सुनील) को भाई बोल पाएगा, अगर सूमी दीदी को माँ बोलता है तो सुनील उसका पिता बन गया, अगर सुनील को वो भाई बोलता है तो उसकी माँ उसकी भाभी बन गयी. सोचो क्या गुजर रही होगी उसपर.
सोनल और सूमी खामोश पत्थर सी बन जाती हैं. सुनील उनके दिल में इतना बसा हुआ था कि सुनेल के दर्द का अहसास छू तक नही रहा था.
सोनल : ये सब तो उस उपर वाले की मर्ज़ी से हुआ, ना डॅड सुनील को माँ को अपनाने को बोलते, ना मेरे दिल में उसके लिए वो प्यार पनपता तो ये सब नही होता. पर होनी को कुछ और मंजूर था, हम सब का एक होना विधि के विधान ने खुद निश्चित कर रखा था.
रूबी : और उसकी सज़ा सुनेल को मिले क्यूँ ?
तर्क वितर्क शुरू हो गये, पर कोई हल् ना निकला . कसूर किसी का भी नही , पर सज़ा तो एक को मिल ही रही थी, जिसका समाधान अगर कोई कर सकती थी तो बस सुनेल की माँ या बड़ी बहन हां उस रूप में उसे अपने भाई को खोना पड़ता और वक़्त ने ये फ़ैसला भी सुनेल के हाथों में रख दिया - वो किसे चुनता है - माँ और बहन को या अपने जुड़वा भाई को.
सुनील जिसके अंदर अब सुनेल समा चुका था उसने एक नज़र सुनेल पे डाली जैसे कह रहा हो यार माफ़ करना ज़रूरी था, ये जंग तेरे बस की नही और मुझे तेरे जिस्म का सहारा चाहिए.
सुनील आइसीयू से बाहर निकला तो उसका सामना विजय से हो गया. विजय को सुनेल कुछ बदला सा लगा पर शायद थकान और चिंता का असर होगा ये सोच उसने कोई ध्यान नही दिया.
विजय : आओ सुनील, चलो उधर चल के बैठते हैं, फिर सारी बात बताओ. सुनील कुछ नही बोला बस साथ हो लिया.
विजय : हां सुनील, अब सारी बात शुरू से बताओ, क्या माजरा है ये. ये प्रोफ़ेसर. कॉन है, और सवी के साथ क्या हुआ उसका तो कुछ अता पता नही चला, सुनेल एका एक लंडन से कैसे आया.
सुनील ( सुनेल) कुछ देर चुप रहा. ' सब कुछ पता चल जाएगा अंकल, अभी मुझे उस जगह पहुँचना है जहाँ आक्सिडेंट हुआ था, वक़्त बहुत कम है.
विजय को सुनील की आवाज़ कुछ बदली लगी. पर चुप रहा और उसे साथ ले उस जगह की तरफ चल पड़ा अपनी कार से जहाँ गाँव वालों ने बताया था कि आक्सिडेंट हुआ था. कार चलाते वक़्त विजय का ध्यान बार बार सुनील की आँखों पे जा रहा था उनमें एक ऐसी चमक सी थी जो उसने पहले कभी नही देखी थी, बहुत से सवाल विजय के मन में खड़े हो गये थे पर कुछ जवाब ना था, उसे इंतजार था उस पल का जब सुनील उसे सब कुछ बताता.
कार जब उस स्थान के पास पहुँची तो सुनील कार से उतरा, ' आप कार को यहाँ से 500 मीटर पीछे ले जाओ, और कुछ भी हो, कार से बाहर मत निकलना. मैं फिर कह रहा हूँ, कुछ भी हो कार से बाहर मत निकलना'
उस जगह से थोड़ी दूर सरक पे एक छोटा सा मंदिर था. सुनील उस मंदिर के सामने जा के बैठ गया और ध्यान लगाने लगा. विजय सुनील के कहे मुताबिक कार पीछे ले गया.
जैसे जैसे सुनील (सुनेल) का ध्यान गहरा होने लगा आसमान पे काले बादल छाने लगे बहुत जोरों की गड़गड़ाहट होने लगी और यकायक एक दम तेज बारिश शुरू हो गयी , जिसका नतीजा ये हुआ कि आपास्स जो मिट्टी के ढेर थे वो पानी में घुलने लगे. सुनील बिल्कुल भी विचिलित नही हुआ और तेज तूफ़ानी बरसात में यूँ ही ध्यान लगाए रहा. कार में बैठा विजय दूर से सब देख रहा था. बारिश इतनी तेज होने लगी थी कि वो कार से बाहर नही निकल सकता था. कुछ ही देर में बारिश थम गयी और सुनील के चारों तरफ एक सफेद धुआँ फैलने लगा वो धुआँ सुनील को उड़ा ले जाना चाहता था पर सुनील वहीं जमा रहा.
कुछ पलों बाद जब सुनील का जिस्म उखडने लगा तभी अचानक एक आकृति उभरी और सुनील के जिस्म में समा गयी. इधर ये आकृति उभरी उधर सुनेल का जिस्म बेजान हो गया पर कोई शक्ति अब भी उसके दिल की धड़कन को चला रही थी. डॉक्टर्स हैरान हो गये. सुनेल का जिस्म बरफ की तरहा ठंडा हो चुका था, जिस्म की सारी लाली गायब हो चुकी थी. सुनेल को कोमा में घोषित कर दिया गया, जिस्म बिल्कुल बेजान था पर दिल धड़क रहा था. और दिल की धड़कन भी गैर मामूली थी यूँ लगा रहा था अभी रुकी अभी रुकी. डॉक्टर्स ने कुछ जान बचाने वाले इंजेक्षन लगाए जिन से दिल की धड़कन बढ़ जाए , पर कुछ असर ना हुआ और डॉक्टर्स ने सब वक़्त पे छोड़ दिया.
यहाँ जैसे ही वो आकृति सुनील के जिस्म में समाई, सुनेल जो उस वक़्त सुनील के जिस्म में था उसे ताक़त मिल गयी और वो अपनी साधना में लीन रहा वो तुफ्फान और ज़ोर का उठा पर सुनील(सुनेल) का कुछ बिगाड़ ना सका.
काफ़ी उत्पात के बाद वो तूफान शांत हो गया एक सफेद धुएँ की लाकीर यकायक लूप्त हो गयी.
सुनील ने अपनी आँखें खोली और इधर उधर छानबीन करने लगा.
उसे प्रोफ़ेसर. का ब्रीफकेस मिल गया , लपक के उसने वो उठाया और बिजली की गति से दौड़ता हुआ विजय की तरफ भागा . विजय ने उसे आता देख कार स्टार्ट करी और सुनील के बैठते ही तूफ़ानी गति से वहाँ से निकल पड़ा.
सुनील ने ब्रीफ केस में से दो मालाएँ निकाली और विजय को दी. एक उसने वहीं उसी वक़्त विजय को पहनने को कहा और एक हॉस्पिटल पहुँच सुनेल को पहनाने को कहा फिर वो रास्ते में कहीं उतर गया और नज़दीक किसी शमशन घाट पे चला गया.
वहाँ पहुँच उसने वहाँ के करम चारी से एकांत में कोई जगह माँगी जहाँ उसे कोई तंग ना करे और उस स्थान पे जा कर वो बॅग में से डाइयरी निकाल के पढ़ने लग गया. जैसे जैसे वो डाइयरी पढ़ता गया उसके रोंगटे खड़े होते चले गये.
क्या था उस डाइयरी में , ????????????????????????
सोनल और सूमी खामोश पत्थर सी बन जाती हैं. सुनील उनके दिल में इतना बसा हुआ था कि सुनेल के दर्द का अहसास छू तक नही रहा था.
सोनल : ये सब तो उस उपर वाले की मर्ज़ी से हुआ, ना डॅड सुनील को माँ को अपनाने को बोलते, ना मेरे दिल में उसके लिए वो प्यार पनपता तो ये सब नही होता. पर होनी को कुछ और मंजूर था, हम सब का एक होना विधि के विधान ने खुद निश्चित कर रखा था.
रूबी : और उसकी सज़ा सुनेल को मिले क्यूँ ?
तर्क वितर्क शुरू हो गये, पर कोई हल् ना निकला . कसूर किसी का भी नही , पर सज़ा तो एक को मिल ही रही थी, जिसका समाधान अगर कोई कर सकती थी तो बस सुनेल की माँ या बड़ी बहन हां उस रूप में उसे अपने भाई को खोना पड़ता और वक़्त ने ये फ़ैसला भी सुनेल के हाथों में रख दिया - वो किसे चुनता है - माँ और बहन को या अपने जुड़वा भाई को.
सुनील जिसके अंदर अब सुनेल समा चुका था उसने एक नज़र सुनेल पे डाली जैसे कह रहा हो यार माफ़ करना ज़रूरी था, ये जंग तेरे बस की नही और मुझे तेरे जिस्म का सहारा चाहिए.
सुनील आइसीयू से बाहर निकला तो उसका सामना विजय से हो गया. विजय को सुनेल कुछ बदला सा लगा पर शायद थकान और चिंता का असर होगा ये सोच उसने कोई ध्यान नही दिया.
विजय : आओ सुनील, चलो उधर चल के बैठते हैं, फिर सारी बात बताओ. सुनील कुछ नही बोला बस साथ हो लिया.
विजय : हां सुनील, अब सारी बात शुरू से बताओ, क्या माजरा है ये. ये प्रोफ़ेसर. कॉन है, और सवी के साथ क्या हुआ उसका तो कुछ अता पता नही चला, सुनेल एका एक लंडन से कैसे आया.
सुनील ( सुनेल) कुछ देर चुप रहा. ' सब कुछ पता चल जाएगा अंकल, अभी मुझे उस जगह पहुँचना है जहाँ आक्सिडेंट हुआ था, वक़्त बहुत कम है.
विजय को सुनील की आवाज़ कुछ बदली लगी. पर चुप रहा और उसे साथ ले उस जगह की तरफ चल पड़ा अपनी कार से जहाँ गाँव वालों ने बताया था कि आक्सिडेंट हुआ था. कार चलाते वक़्त विजय का ध्यान बार बार सुनील की आँखों पे जा रहा था उनमें एक ऐसी चमक सी थी जो उसने पहले कभी नही देखी थी, बहुत से सवाल विजय के मन में खड़े हो गये थे पर कुछ जवाब ना था, उसे इंतजार था उस पल का जब सुनील उसे सब कुछ बताता.
कार जब उस स्थान के पास पहुँची तो सुनील कार से उतरा, ' आप कार को यहाँ से 500 मीटर पीछे ले जाओ, और कुछ भी हो, कार से बाहर मत निकलना. मैं फिर कह रहा हूँ, कुछ भी हो कार से बाहर मत निकलना'
उस जगह से थोड़ी दूर सरक पे एक छोटा सा मंदिर था. सुनील उस मंदिर के सामने जा के बैठ गया और ध्यान लगाने लगा. विजय सुनील के कहे मुताबिक कार पीछे ले गया.
जैसे जैसे सुनील (सुनेल) का ध्यान गहरा होने लगा आसमान पे काले बादल छाने लगे बहुत जोरों की गड़गड़ाहट होने लगी और यकायक एक दम तेज बारिश शुरू हो गयी , जिसका नतीजा ये हुआ कि आपास्स जो मिट्टी के ढेर थे वो पानी में घुलने लगे. सुनील बिल्कुल भी विचिलित नही हुआ और तेज तूफ़ानी बरसात में यूँ ही ध्यान लगाए रहा. कार में बैठा विजय दूर से सब देख रहा था. बारिश इतनी तेज होने लगी थी कि वो कार से बाहर नही निकल सकता था. कुछ ही देर में बारिश थम गयी और सुनील के चारों तरफ एक सफेद धुआँ फैलने लगा वो धुआँ सुनील को उड़ा ले जाना चाहता था पर सुनील वहीं जमा रहा.
कुछ पलों बाद जब सुनील का जिस्म उखडने लगा तभी अचानक एक आकृति उभरी और सुनील के जिस्म में समा गयी. इधर ये आकृति उभरी उधर सुनेल का जिस्म बेजान हो गया पर कोई शक्ति अब भी उसके दिल की धड़कन को चला रही थी. डॉक्टर्स हैरान हो गये. सुनेल का जिस्म बरफ की तरहा ठंडा हो चुका था, जिस्म की सारी लाली गायब हो चुकी थी. सुनेल को कोमा में घोषित कर दिया गया, जिस्म बिल्कुल बेजान था पर दिल धड़क रहा था. और दिल की धड़कन भी गैर मामूली थी यूँ लगा रहा था अभी रुकी अभी रुकी. डॉक्टर्स ने कुछ जान बचाने वाले इंजेक्षन लगाए जिन से दिल की धड़कन बढ़ जाए , पर कुछ असर ना हुआ और डॉक्टर्स ने सब वक़्त पे छोड़ दिया.
यहाँ जैसे ही वो आकृति सुनील के जिस्म में समाई, सुनेल जो उस वक़्त सुनील के जिस्म में था उसे ताक़त मिल गयी और वो अपनी साधना में लीन रहा वो तुफ्फान और ज़ोर का उठा पर सुनील(सुनेल) का कुछ बिगाड़ ना सका.
काफ़ी उत्पात के बाद वो तूफान शांत हो गया एक सफेद धुएँ की लाकीर यकायक लूप्त हो गयी.
सुनील ने अपनी आँखें खोली और इधर उधर छानबीन करने लगा.
उसे प्रोफ़ेसर. का ब्रीफकेस मिल गया , लपक के उसने वो उठाया और बिजली की गति से दौड़ता हुआ विजय की तरफ भागा . विजय ने उसे आता देख कार स्टार्ट करी और सुनील के बैठते ही तूफ़ानी गति से वहाँ से निकल पड़ा.
सुनील ने ब्रीफ केस में से दो मालाएँ निकाली और विजय को दी. एक उसने वहीं उसी वक़्त विजय को पहनने को कहा और एक हॉस्पिटल पहुँच सुनेल को पहनाने को कहा फिर वो रास्ते में कहीं उतर गया और नज़दीक किसी शमशन घाट पे चला गया.
वहाँ पहुँच उसने वहाँ के करम चारी से एकांत में कोई जगह माँगी जहाँ उसे कोई तंग ना करे और उस स्थान पे जा कर वो बॅग में से डाइयरी निकाल के पढ़ने लग गया. जैसे जैसे वो डाइयरी पढ़ता गया उसके रोंगटे खड़े होते चले गये.
क्या था उस डाइयरी में , ????????????????????????