desiaks
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नानिया के चेहरे पर गम्भीरता थी। बगल में खड़ा कोचवान धीमे स्वर में कह उठा।
रानी साहिबा, अब हमारी खैर नहीं।” ।
चुप रहो। सोहनलाल सब ठीक कर लेगा। चिमटा जाति भी कालचक्र से बाहर निकलना चाहती है।” नानिया बोली।
सरदार ने जगमोहन और सोहनलाल को देखकर कहा।। मुझे न पता था कि रानी साहिबा तुम लोगों के साथ हैं।”
अब तो पता चल गया।” जगमोहन ने कहा।
रानी साहिबा को हमारे हवाले कर दो।” सरदार ने कहा-“इसने हमारे लोग कैद कर रखे हैं।”
जगमोहन पलटकर नाचिया से बोला।।
ये सच कह रहा है?
” हां।”
तुम्हें इसके लोगों को आजाद करना होगा।” जगमोहन कह उठा।
तुम सेवक होकर मुझे आदेश कैसे दे सकते हो?” नानिया उखड़ी।
क्या तुम्हें सरदार के हवाले कर दें।” जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा। ।
“ऐसा मत करना, ये ठीक नहीं होगा।” नानिया जल्दी से कह उठी।
। “ये जो कहे, वो मानो।” सोहनलाल बोला—“इसी में मेरी खुशी
“ठीक है। मैं चिमटा जाति के लोगों को आजाद कर देंगी।” नानिया बोली-“तुम्हारी खुशी के लिए।”
जगमोहन ने सरदार से कहा। सुन लिया तुमने ।”
मुझे रानी साहिबा पर भरोसा नहीं ।” सरदार बोला। पीछे खड़े उसके लोग भी कह उठे।
हां हमें इस औरत पर जरा भी भरोसा नहीं है।”
“मुझ पर भरोसा है?” जगमोहन ने कहा।
तुम पर?”
हां। मैं...।”
लेकिन तुम तो अभी कह रहे थे कि तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है।”
“मुझे नहीं है, परंतु तुम्हें मुझ पर भरोसा है क्या? सोबरा ने कहा था कि मैं तुम लोगों को कालचक्र से बाहर ले जाऊंगा।”
“तुम्हें हम पर भरोसा नहीं तो हम तुम पर कैसे भरोसा कर सकते हैं। भरोसा तो बनते-बनते ही बनता है।”
तो अब तुम क्या चाहते हो?”
“हम रानी साहिबा को तब तक अपने यहां बंदी बनाकर रखेंगे, जब तक हमारे लोग इसकी कैद से लौट नहीं आते ।”
इसके लिए जरूरी है कि नानिया महल में जाए और तुम्हारे साथियों को आजाद करे।”...जगमोहन ने कहा।
ये हम नहीं जानते। परंतु हम रानी साहिबा को कैद...।”
तभी सोहनलाल कह उठा।
“तुम तब तक इसे कैद रख सकते हो जब तक नानिया तुम्हारे लोगों को आजाद नहीं करती।”
“मुझे?” जगमोहन पल-भर के लिए सकपका उठा।
हां-तुम...।”
“मैं ही क्यों, तुम क्यों नहीं?” जगमोहन का स्वर कड़वा हो गया।
“मैं..तो...मैं...।”
“बेटे औरत का नशा तेरे सिर पर चढ़ गया है।” जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा।
“ये बात नहीं, मैं तो...।”
तभी सदार कह उठा। “हमें मंजूर है। हम इसे कैद में रखेंगे।”
“हो गया फैसला।” जगमोहन ने सोहनलाल को देखते हुए कड़वे स्वर् में कहा।
“मैं नानिया के साथ महल जाकर, चिमटा जाति के लोगों को कैद से जल्दी छुड़वाऊंगा।” सोहनलाल कह उठा।
“क्यों नहीं, अब तो तू महल का राजा है। क्योंकि रानी तेरे पर फिदा है।”
ये बात नहीं मैं तो...।”
तभी सरदार जगमोहन से कह उठा।।
तुम हमारे साथ चलो। मुझे तुमसे कई बातें भी करनी हैं।”
बातें?" जगमोहन ने उसे देखा।
हां, यही कि तुम हमें कालचक्र से कैसे बाहर निकालोगे। मैं तुम्हें बाहर निकलने का रास्ता भी बताऊंगा।”
| जगमोहन ने सोहनलाल से कहा।
नानिया जिस किताब का जिक्र कर रही थी, मुझे वो किताब भी चाहिए।”
सरदार के लोगों को छोड़ने के बाद तुम महल में...।” ।
“मैं महल में कैसे आऊंगा। मुझे क्या पता कि महल कहां पर है।” जगमोहन झल्लाया।
सोहनलाल की निगाह नानिया की सेविकाओं पर गई, तभी नानिया कह उठी।
“मेरी एक सेविका तुम्हारे पास रहेगी। वो तुम्हें महल तक ले आएगी।”
“रानी साहिबा का हुक्म सिर-आंखों पर ।” कोमा ने कहा और जगमोहन के पास आ खड़ी हुई।
जगमोहन ने कोमा को घूरा। कोमा मुस्करा पड़ी।
‘हर तरफ मुसीबत ही मुसीबत है।' जगमोहन बड़बड़ा उठा।
नानिया आगे बढ़ी और सोहनलाल का हाथ थाम लिया। सोहनलाल ने कश लिया तो नानिया मुस्कराकर बोली। धुएं की सुगंध कितनी अच्छी है।”
सोहनलाल उसे देखकर मुस्कराया। तभी कोचवान ने नानिया से कहा।
हम चलें रानी साहिबा। फैसला हो गया। अब हमारा यहां कोई काम नहीं ।” ।
“हां, हमें चलना चाहिए। क्यों सोहनलाल?” नानिया ने सोहनलाल
को देखा ।
हां-हां...चलो।”
उल्लू का पट्ठा।” जगमोहन कह उठा–“चिमटा जाति के लोगों को जल्दी ही आजाद करा के भेजना।” ।
“मैं जाते ही ये काम करूंगा।” सोहनलाल बोला—“क्यों नानिया?” ।
“हां, सोहनलाल ।” नानिया ने कहा-“तब अंधेरा हो जाएगा।
परंतु ये काम अंधेरे में कर दिया जाएगा।” ।
उसके बाद कोचवान, एक सेविका, सोहनलाल और नानिया वहां से आगे बढ़ गए।
जगमोहन ने सरदार को देखा। सरदार मुस्कराकर बोला। “तुमने कैसे सोच लिया कि मैं तुम्हें आजाद कर दूंगा।”
क्या कहना चाहते हो?”
तुम मुझे कालचक्र से बाहर निकाल सकते हो। हम सबको बाहर निकाल सकते हो, तो मैं तुम्हें अपने से दूर क्यों जाने दूंगा।”
जगमोहन मुस्करा पड़ा।
ये हमसे चालाकी कर रहा है जग्गू।” कोमा कह उठी।
“जग्गू?” जगमोहन ने कोमा को देखा।
वो तुम किसी से बात कर रहे थे पेड़ पर। वो मुझे नजर नहीं आ रहा था। वो तुम्हें जग्गू ही तो कह रहा था।”
और तुमने मेरा नाम याद रख लिया।”
क्यों न दूंगी। तुम मुझे अच्छे जो लगते हो।” कोमा ने प्यार से कहा।
“कहां जाऊँ? जगमोहन बड़बड़ाया फिर रिवॉल्वर निकालकर सरदार से कहा-“इसे जानते हो। इसी ने मेरे इशारे पर बोगस को मारा था। इससे मैं तुम सब लोगों को मार दूंगा।”
सरदार के चेहरे पर भय के भाव उभरे।
मैं यहां तुम्हारे लिए नहीं, अपने लिए रुका हूं। ताकि तुमसे कालचक्र की बातें जान सकें। उस रास्ते के बारे में जान सकें, जिसका तुम जिक्र कर रहे हो। याद रखो, मुझसे तुम लोग मेहमानों की तरह बर्ताव करोगे। जहां भी तुम लोगों ने चालाकी दिखाई, वहीं मैं सबको बोगस की तरह मार दूंगा।”
सरदार बेचैन दिख रहा था।
रही बात कालचक्र से तुम लोगों को बाहर निकालने की तो अगर मैं ऐसा कर सका तो, जरूर करूंगा। मुझे खुशी होगी तुम लोगों के काम आकर। अब चलो, मुझे वो जगह दिखाओ, जहां पर तुम लोग रहते हो।”
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रानी साहिबा, अब हमारी खैर नहीं।” ।
चुप रहो। सोहनलाल सब ठीक कर लेगा। चिमटा जाति भी कालचक्र से बाहर निकलना चाहती है।” नानिया बोली।
सरदार ने जगमोहन और सोहनलाल को देखकर कहा।। मुझे न पता था कि रानी साहिबा तुम लोगों के साथ हैं।”
अब तो पता चल गया।” जगमोहन ने कहा।
रानी साहिबा को हमारे हवाले कर दो।” सरदार ने कहा-“इसने हमारे लोग कैद कर रखे हैं।”
जगमोहन पलटकर नाचिया से बोला।।
ये सच कह रहा है?
” हां।”
तुम्हें इसके लोगों को आजाद करना होगा।” जगमोहन कह उठा।
तुम सेवक होकर मुझे आदेश कैसे दे सकते हो?” नानिया उखड़ी।
क्या तुम्हें सरदार के हवाले कर दें।” जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा। ।
“ऐसा मत करना, ये ठीक नहीं होगा।” नानिया जल्दी से कह उठी।
। “ये जो कहे, वो मानो।” सोहनलाल बोला—“इसी में मेरी खुशी
“ठीक है। मैं चिमटा जाति के लोगों को आजाद कर देंगी।” नानिया बोली-“तुम्हारी खुशी के लिए।”
जगमोहन ने सरदार से कहा। सुन लिया तुमने ।”
मुझे रानी साहिबा पर भरोसा नहीं ।” सरदार बोला। पीछे खड़े उसके लोग भी कह उठे।
हां हमें इस औरत पर जरा भी भरोसा नहीं है।”
“मुझ पर भरोसा है?” जगमोहन ने कहा।
तुम पर?”
हां। मैं...।”
लेकिन तुम तो अभी कह रहे थे कि तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है।”
“मुझे नहीं है, परंतु तुम्हें मुझ पर भरोसा है क्या? सोबरा ने कहा था कि मैं तुम लोगों को कालचक्र से बाहर ले जाऊंगा।”
“तुम्हें हम पर भरोसा नहीं तो हम तुम पर कैसे भरोसा कर सकते हैं। भरोसा तो बनते-बनते ही बनता है।”
तो अब तुम क्या चाहते हो?”
“हम रानी साहिबा को तब तक अपने यहां बंदी बनाकर रखेंगे, जब तक हमारे लोग इसकी कैद से लौट नहीं आते ।”
इसके लिए जरूरी है कि नानिया महल में जाए और तुम्हारे साथियों को आजाद करे।”...जगमोहन ने कहा।
ये हम नहीं जानते। परंतु हम रानी साहिबा को कैद...।”
तभी सोहनलाल कह उठा।
“तुम तब तक इसे कैद रख सकते हो जब तक नानिया तुम्हारे लोगों को आजाद नहीं करती।”
“मुझे?” जगमोहन पल-भर के लिए सकपका उठा।
हां-तुम...।”
“मैं ही क्यों, तुम क्यों नहीं?” जगमोहन का स्वर कड़वा हो गया।
“मैं..तो...मैं...।”
“बेटे औरत का नशा तेरे सिर पर चढ़ गया है।” जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा।
“ये बात नहीं, मैं तो...।”
तभी सदार कह उठा। “हमें मंजूर है। हम इसे कैद में रखेंगे।”
“हो गया फैसला।” जगमोहन ने सोहनलाल को देखते हुए कड़वे स्वर् में कहा।
“मैं नानिया के साथ महल जाकर, चिमटा जाति के लोगों को कैद से जल्दी छुड़वाऊंगा।” सोहनलाल कह उठा।
“क्यों नहीं, अब तो तू महल का राजा है। क्योंकि रानी तेरे पर फिदा है।”
ये बात नहीं मैं तो...।”
तभी सरदार जगमोहन से कह उठा।।
तुम हमारे साथ चलो। मुझे तुमसे कई बातें भी करनी हैं।”
बातें?" जगमोहन ने उसे देखा।
हां, यही कि तुम हमें कालचक्र से कैसे बाहर निकालोगे। मैं तुम्हें बाहर निकलने का रास्ता भी बताऊंगा।”
| जगमोहन ने सोहनलाल से कहा।
नानिया जिस किताब का जिक्र कर रही थी, मुझे वो किताब भी चाहिए।”
सरदार के लोगों को छोड़ने के बाद तुम महल में...।” ।
“मैं महल में कैसे आऊंगा। मुझे क्या पता कि महल कहां पर है।” जगमोहन झल्लाया।
सोहनलाल की निगाह नानिया की सेविकाओं पर गई, तभी नानिया कह उठी।
“मेरी एक सेविका तुम्हारे पास रहेगी। वो तुम्हें महल तक ले आएगी।”
“रानी साहिबा का हुक्म सिर-आंखों पर ।” कोमा ने कहा और जगमोहन के पास आ खड़ी हुई।
जगमोहन ने कोमा को घूरा। कोमा मुस्करा पड़ी।
‘हर तरफ मुसीबत ही मुसीबत है।' जगमोहन बड़बड़ा उठा।
नानिया आगे बढ़ी और सोहनलाल का हाथ थाम लिया। सोहनलाल ने कश लिया तो नानिया मुस्कराकर बोली। धुएं की सुगंध कितनी अच्छी है।”
सोहनलाल उसे देखकर मुस्कराया। तभी कोचवान ने नानिया से कहा।
हम चलें रानी साहिबा। फैसला हो गया। अब हमारा यहां कोई काम नहीं ।” ।
“हां, हमें चलना चाहिए। क्यों सोहनलाल?” नानिया ने सोहनलाल
को देखा ।
हां-हां...चलो।”
उल्लू का पट्ठा।” जगमोहन कह उठा–“चिमटा जाति के लोगों को जल्दी ही आजाद करा के भेजना।” ।
“मैं जाते ही ये काम करूंगा।” सोहनलाल बोला—“क्यों नानिया?” ।
“हां, सोहनलाल ।” नानिया ने कहा-“तब अंधेरा हो जाएगा।
परंतु ये काम अंधेरे में कर दिया जाएगा।” ।
उसके बाद कोचवान, एक सेविका, सोहनलाल और नानिया वहां से आगे बढ़ गए।
जगमोहन ने सरदार को देखा। सरदार मुस्कराकर बोला। “तुमने कैसे सोच लिया कि मैं तुम्हें आजाद कर दूंगा।”
क्या कहना चाहते हो?”
तुम मुझे कालचक्र से बाहर निकाल सकते हो। हम सबको बाहर निकाल सकते हो, तो मैं तुम्हें अपने से दूर क्यों जाने दूंगा।”
जगमोहन मुस्करा पड़ा।
ये हमसे चालाकी कर रहा है जग्गू।” कोमा कह उठी।
“जग्गू?” जगमोहन ने कोमा को देखा।
वो तुम किसी से बात कर रहे थे पेड़ पर। वो मुझे नजर नहीं आ रहा था। वो तुम्हें जग्गू ही तो कह रहा था।”
और तुमने मेरा नाम याद रख लिया।”
क्यों न दूंगी। तुम मुझे अच्छे जो लगते हो।” कोमा ने प्यार से कहा।
“कहां जाऊँ? जगमोहन बड़बड़ाया फिर रिवॉल्वर निकालकर सरदार से कहा-“इसे जानते हो। इसी ने मेरे इशारे पर बोगस को मारा था। इससे मैं तुम सब लोगों को मार दूंगा।”
सरदार के चेहरे पर भय के भाव उभरे।
मैं यहां तुम्हारे लिए नहीं, अपने लिए रुका हूं। ताकि तुमसे कालचक्र की बातें जान सकें। उस रास्ते के बारे में जान सकें, जिसका तुम जिक्र कर रहे हो। याद रखो, मुझसे तुम लोग मेहमानों की तरह बर्ताव करोगे। जहां भी तुम लोगों ने चालाकी दिखाई, वहीं मैं सबको बोगस की तरह मार दूंगा।”
सरदार बेचैन दिख रहा था।
रही बात कालचक्र से तुम लोगों को बाहर निकालने की तो अगर मैं ऐसा कर सका तो, जरूर करूंगा। मुझे खुशी होगी तुम लोगों के काम आकर। अब चलो, मुझे वो जगह दिखाओ, जहां पर तुम लोग रहते हो।”
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