desiaks
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सवाल मत करो। मेरी सुनो। मैं तुम्हें समझाता हूँ कि तुम दोनों ने उस बस्ती में जाकर क्या करना है।”
बोलो।”
मोमो जिन्न बताने लगा। जिसे सुनकर दोनों असहमत दिखे।
“हम ये नहीं करेंगे। हम...।” ।
इसी में तुम्हारा और मेरा भला है। वरना जथूरा के सेवक समझ जाएंगे कि मोमो जिन्न ठीक से काम नहीं कर रहा। तुम फिक्र मत करो। तब मैं कोई चेष्टा करूंगा कि हालात ज्यादा न बिगड़ें।” मोमो जिन्न बोला-“मखानी को वहां कमला रानी मिल गई होगी। तब तो दोनों और भी खतरनाक हो जाएंगे। मुझे कुछ करना होगा। परंतु तुम वही करना जो मैंने कहा है।”
हमारा ऐसा करना जरूरी है?”
हां। तुम दोनों मेरी कही बात पर चलोगे तो कालचक्र में दर्ज हो जाएगा कि मोमो जिन्न का काम ठीक से चल रहा है। इसी की आड़ लेकर तो मैं हालातों को ठीक करने की चेष्टा करूंगा कि कोई मुझ पर शक न कर सके।”
उस बस्ती तक तुम हमें ले चलो।”
कुछ देर रुको। पहले उन सबको वहां फंस लेने दो।”
यहां हम किस तरफ जा रहे हैं।” महाजन कह उठा। जगमोहन महाजन के साथ टापू पर एक दिशा में बढ़ता जा रहा था।
टापू का ज्यादा हिस्सा हम देख लें तो ठीक रहेगा।” जगमोहन ने कहा।
लेकिन इस तरफ तो टापू का जंगल गहरा होता जा रहा है।”
महाजन ने कहा “हमें दूसरी दिशा में देखना चाहिए।”
उधर मोना चौधरी और पारसनाथ देख रहे हैं।”
हमें घंटे-भर में वापस भी लौटना था। घंटा बीत चुका है।” महाजन ने कहा।।
“तुम आगे बढ़ने से कतरा क्यों रहे हो?”
तुम तो ऐसे आगे बढ़ रहे हो जैसे जानते हो कि कहां जाना
जगमोहन मुस्करा पड़ा। “शायद जानता हूं।”
क्या मतलब?” महाजन ने जगमोहन को देखा।
चलते रहो, अभी पता चल जाएगा।” जगमोहन बराबर मुस्करा रहा था।
तुम अजीब-सी बातें कर रहे हों जगमोहन ।” तभी जगमोहन के कानों में शौहरी की फुसफुसाहट गूंजी।
थोड़ा-सा आगे और जाना है मखानी। वो तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं।”
चलते-चलते जगमोहन उर्फ मखानी ने सिर हिला दिया।
कितनी अजीब जगह है।” महाजन बोला–“पक्षी या जानवर भी नजर नहीं आ रहा।”
मैं भी यहीं सोच रहा हूं।” महाजन एकाएक ठिटका ।
मखानी भी रुका।
क्या हुआ?”
बस, हमें अब वापस चलना चाहिए।” महाजन ने कहा।
इतना आगे आ गए हैं तो कुछ आगे और देख लेते हैं।” मखानी ने आगे बढ़ने का उपक्रम किया।
“ये टापू ख़ाली है। कोई यहां होता तो हमें अब तक आभास हो चुका होता।”
* “जब आगे जाने में मुझे एतराज नहीं तो तुम क्यों कतरा रहे हो?”
हमें वापस भी पहुंचना...”
आओ भी।” मखानी, महाजन की कलाई पकड़कर आगे बढ़ गया—“अभी पलटकर वापस चलते हैं।” |
महाजन अनमने मन से मख़ानी के साथ चल पड़ा। जाने क्यों उसे इस वक्त जगमोहन का व्यवहार अजीब-सा लग रहा था। वो एक ही दिशा में आगे बढ़ता जा रहा था। दिशा का रास्ता उसने एक बार भी नहीं बदला था। जैसे कि वो कहीं पहुंचना चाहता हो
और रास्ता उसे अच्छी तरह मालूम हो।
जल्दी ही महाजन का अंदेशा सही हो गया। उन्हें आवाजें सी सुनाई देने लगीं।
ये क्या?” महाजन के होंठों से निकला। बस्ती लगती है।”
जंगली बस्ती?”
ऐसा ही कुछ।”
हमें सतर्क रहना होगा। वो हमें देखते ही मार सकते हैं।” महाजन ने कहा।
परवाह मत करो। वो हमें कुछ नहीं कहेंगे। मैं उन्हें जानता हूं।” मखानी मुस्कराकर बोला। ।
“जानते हों?" चलते-चलते महाजन ने हैरानी से उसे देखा–“क्या तुम पहले यहां आए हो?”
बस्ती में पहुंचकर तुम सब समझ जाओगे। तुम्हारे सवालों का जवाब तुम्हें मिल जाएगा।”
“तुम इस वक्त बहुत अजीब बातें कर रहे हो ।”
तभी सामने जंगल में बनी बस्ती नजर आने लगी।
बोलो।”
मोमो जिन्न बताने लगा। जिसे सुनकर दोनों असहमत दिखे।
“हम ये नहीं करेंगे। हम...।” ।
इसी में तुम्हारा और मेरा भला है। वरना जथूरा के सेवक समझ जाएंगे कि मोमो जिन्न ठीक से काम नहीं कर रहा। तुम फिक्र मत करो। तब मैं कोई चेष्टा करूंगा कि हालात ज्यादा न बिगड़ें।” मोमो जिन्न बोला-“मखानी को वहां कमला रानी मिल गई होगी। तब तो दोनों और भी खतरनाक हो जाएंगे। मुझे कुछ करना होगा। परंतु तुम वही करना जो मैंने कहा है।”
हमारा ऐसा करना जरूरी है?”
हां। तुम दोनों मेरी कही बात पर चलोगे तो कालचक्र में दर्ज हो जाएगा कि मोमो जिन्न का काम ठीक से चल रहा है। इसी की आड़ लेकर तो मैं हालातों को ठीक करने की चेष्टा करूंगा कि कोई मुझ पर शक न कर सके।”
उस बस्ती तक तुम हमें ले चलो।”
कुछ देर रुको। पहले उन सबको वहां फंस लेने दो।”
यहां हम किस तरफ जा रहे हैं।” महाजन कह उठा। जगमोहन महाजन के साथ टापू पर एक दिशा में बढ़ता जा रहा था।
टापू का ज्यादा हिस्सा हम देख लें तो ठीक रहेगा।” जगमोहन ने कहा।
लेकिन इस तरफ तो टापू का जंगल गहरा होता जा रहा है।”
महाजन ने कहा “हमें दूसरी दिशा में देखना चाहिए।”
उधर मोना चौधरी और पारसनाथ देख रहे हैं।”
हमें घंटे-भर में वापस भी लौटना था। घंटा बीत चुका है।” महाजन ने कहा।।
“तुम आगे बढ़ने से कतरा क्यों रहे हो?”
तुम तो ऐसे आगे बढ़ रहे हो जैसे जानते हो कि कहां जाना
जगमोहन मुस्करा पड़ा। “शायद जानता हूं।”
क्या मतलब?” महाजन ने जगमोहन को देखा।
चलते रहो, अभी पता चल जाएगा।” जगमोहन बराबर मुस्करा रहा था।
तुम अजीब-सी बातें कर रहे हों जगमोहन ।” तभी जगमोहन के कानों में शौहरी की फुसफुसाहट गूंजी।
थोड़ा-सा आगे और जाना है मखानी। वो तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं।”
चलते-चलते जगमोहन उर्फ मखानी ने सिर हिला दिया।
कितनी अजीब जगह है।” महाजन बोला–“पक्षी या जानवर भी नजर नहीं आ रहा।”
मैं भी यहीं सोच रहा हूं।” महाजन एकाएक ठिटका ।
मखानी भी रुका।
क्या हुआ?”
बस, हमें अब वापस चलना चाहिए।” महाजन ने कहा।
इतना आगे आ गए हैं तो कुछ आगे और देख लेते हैं।” मखानी ने आगे बढ़ने का उपक्रम किया।
“ये टापू ख़ाली है। कोई यहां होता तो हमें अब तक आभास हो चुका होता।”
* “जब आगे जाने में मुझे एतराज नहीं तो तुम क्यों कतरा रहे हो?”
हमें वापस भी पहुंचना...”
आओ भी।” मखानी, महाजन की कलाई पकड़कर आगे बढ़ गया—“अभी पलटकर वापस चलते हैं।” |
महाजन अनमने मन से मख़ानी के साथ चल पड़ा। जाने क्यों उसे इस वक्त जगमोहन का व्यवहार अजीब-सा लग रहा था। वो एक ही दिशा में आगे बढ़ता जा रहा था। दिशा का रास्ता उसने एक बार भी नहीं बदला था। जैसे कि वो कहीं पहुंचना चाहता हो
और रास्ता उसे अच्छी तरह मालूम हो।
जल्दी ही महाजन का अंदेशा सही हो गया। उन्हें आवाजें सी सुनाई देने लगीं।
ये क्या?” महाजन के होंठों से निकला। बस्ती लगती है।”
जंगली बस्ती?”
ऐसा ही कुछ।”
हमें सतर्क रहना होगा। वो हमें देखते ही मार सकते हैं।” महाजन ने कहा।
परवाह मत करो। वो हमें कुछ नहीं कहेंगे। मैं उन्हें जानता हूं।” मखानी मुस्कराकर बोला। ।
“जानते हों?" चलते-चलते महाजन ने हैरानी से उसे देखा–“क्या तुम पहले यहां आए हो?”
बस्ती में पहुंचकर तुम सब समझ जाओगे। तुम्हारे सवालों का जवाब तुम्हें मिल जाएगा।”
“तुम इस वक्त बहुत अजीब बातें कर रहे हो ।”
तभी सामने जंगल में बनी बस्ती नजर आने लगी।