XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़ - Page 23 - SexBaba
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XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़

” नगीना ने खामोशी से चल रहे देवराज चौहान को देखा। “आप भी तो कुछ कहिए।” नगीना ने कहा।

मेरे पास कहने को कुछ नहीं है।” देवराज चौहान बोला।

अगर पोतेबाबा ने सच कहा है तो रात को बहुत कुछ हो सकता है।”

जब तक हालात मेरे सामने न हों, मैं कुछ नहीं कह सकता।” देवराज चौहान का स्वर कठोर था।

“हालात तो रात को ही हमारे सामने आएंगे।” नगीना बोली।

रुस्तम राव कुछ कहने लगा कि शब्द उसके होंठों में ही रह गए।
‘खटका’ हुआ था।

स्पष्ट आवाज उभरी थी। जैसे किसी के पांव के नीचे सुखी टहनियां आ गई हैं।

वे चारों ठिठके। नजरें हर तरफ घूम ।।

तभी एक आदमी दिखा। जिसके हाथ में कुल्हाड़ी जैसा हथियार था। वो सूखी लकड़ियों पर खड़ा था। उन लकड़ियों पर या तो उसने पैर जान-बूझकर रखा था या अनजाने में आ गया था।

उसे देखते ही देवराज चौहान के चेहरे पर छाई कठोरता में बढ़ोत्तरी हो गई।

पोतेबाबा की पहली बात तो सच होईला बाप ।”

यो त कल्ला ही दिखो हो। साथ में कोई न होवे। अंम इसो को ‘वड' दयो।”

तभी देवराज चौहान बिजली की सी तेजी से पलटा उसके कानों ने सरसराहट सुनी थी। दूसरी तरफ उसने दो व्यक्ति देखे।

फिर उनके गिर्द फैले आदमियों के दिखने में बढ़ोत्तरी होने लगी। पूरा घेरा था जो उन पर पड़ चुका था।

" “हम घिर चुके हैं।” देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा—“ये संख्या में बहुत ज्यादा है। इनका मुकाबला करना बेवकूफी होगी ।”

“यों तो म्हारे को कुत्तों की तरहो खींचो के ले जायो ।”

घेरा तंग होने लगा। बचने को कोई रास्ता नहीं था।
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मोना चौधरी और पारसनाथ तेजी से आगे बढ़े जा रहे थे। वो जिस तरफ चल पड़े थे वो चट्टानों से भरा खुला इलाका था। सूर्य पश्चिम की तरफ चलता रहा था। समुद्र से लहरें टकराकर उनकी आंखें चौंधिया रही थीं। ठंडी हवा उन्हें राहत पहुंचा रही थी। वे दोनों समुद्र के किनारे-किनारे आगे बढ़ते रहे थे। ।

“अगर यहां कोई रहता है तो समुद्र के किनारे अवश्य कोई इंसान दिखेगा।” मोना चौधरी बोली।

हता तो जरूर होगा मोना चौधरी ।” पारसनाथ ने कहा। ये तुम कैसे कह सकते हो?”

वीरान जगह पर हमें ला फेंकने से जथूरा का कोई मतलब हल नहीं होने वाला।”

“क्या पता वो चाहता हो कि हम यहां पर भूख-प्यास से तड़पकर मर जाएं।”

ये सम्भव नहीं।”

क्यों?" ।

जगमोहन ने मुझे अपनी और पोतेबाबा की बातचीत के बारे में बताया था, पतेबाबा ने कहा था कि जथूरा हम सब लोंगों पर सीधे-सीधे कोई वार नहीं कर सकता कि जिससे हमारी मौत हो सके। जथूरा का ऐसा वार तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक हम इस पूर्वजन्म में प्रवेश न कर जाएं ।”
पारसनाथ बोला–“वो हममें झगड़ा करवाकर ही हमें मौत दे सकता है और इसी कारण उसने हम सबको एक जगह इकट्ठा किया है।”

“हम झगड़ा नहीं करेंगे।” ।

मेरे खयाल में जथूरा की निगाहों में सबसे कमजोर कड़ी तुम हो।

” मैं—वो कैसे?”

क्योंकि तुम्हें जल्दी गुस्सा आ जाता है।”

एक बार तो मुझसे गलती हो गई पारसनाथ जो मैं सपन चड्ढा की बातों में आ गई। परंतु अब ऐसा नहीं होगा। सपन चड्ढा और लक्ष्मण दास पर जथूरा के गुलाम मोमो जिन्न ने काबू पाया हुआ है। दोनों उसके कहने पर चलने को मजबूर थे।” (ये सब विस्तार से जानने के लिए पढ़े राजा पॉकेट बुक्स से अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'जथूरा' ।)

मोमो जिन्न इस वक्त टापू पर ही मौजूद है।”

क्योंकि लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा भी यहां हैं।” मोना चौधरी की निगाह आगे बढ़ते हुए बातें करते हुए हर तरफ घूम रही थी। रास्ते में आने वाले छोटे-बड़े पहाड़ी पत्थरों को वो पार करते जा रहे थे। ।

“हां। उन दोनों की हरकतों से हमें सतर्क रहना होगा। वो मोमो जिन्न के हाथों फंसे, फिर कोई गड़बड़ कर सकते हैं।”

दोनों के बीच कुछ चुप्पी आ ठहरी।

उनके शरीर पर पड़ने वाली सीधी धूप कभी-कभी शरीर में चुभन् पैदा कर देती थी।

कुछ देर बाद ये चट्टानी इलाका खत्म होता दिखा। दूर, सामने घने पेड़ों का जंगल नजर आ रहा था।

“अभी तक कोई नजर नहीं आया।” पारसनाथ ने कहा।

हो सकता है उन पेड़ों की तरफ कोई आबादी हो।” मोना चौधरी बोली।।

हमें वापस भी जाना है।”

काम अधूरा छोड़कर वापस जाने का कोई फायदा नहीं। हम आगे जाएंगे। टापू का पूरा चक्कर लगाकर लौटेंगे।”

क्या पता टापू कितना बड़ा है।” पारसनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा।।

देखते हैं।” मोना चौधरी ने पारसनाथ को देखा_“शायद आगे हमें जगमोहन-महाजन मिल जाएं।”

पारसनाथ ने सहमति से सिर हिला दिया। दोनों आगे बढ़ते रहे।

“सोहनलाल का हम सबके बीच न होना अजीब बात है।” पारसनाथ बोला—“सिर्फ बो ही नहीं है यहां ।”

इसकी अवश्य ही कोई वजह होगीं ।”

क्या तुम्हें जथूरा की कुछ याद है?”

“नहीं।” मोना चौधरी ने कहा—“अभी तक तो ये नाम मुझे सुना हुआ नहीं लगता।”

तभी एक पत्थर उनके आगे आकर गिरा। दोनों चौंके। उसी पल फुर्ती से पलटे। फिर दोनों के चेहरों पर ही आश्चर्य नाच उठा।
 
पीछे, कुछ कदमों के फासले पर मुस्कराता हुआ पेशीराम (फकीरबाबा) खड़ा था। शरीर पर सफेद धोती। माथे पर चंदन का तिलक। चांदी जैसे बाल पीछे को जाते हुए। गले में मालाएं पड़ी थीं। चेहरे पर ऐसा तेज था कि देखते ही बनता था। अब उसके चेहरे की झुर्रियों में कुछ बढ़ोत्तरी हो गई थी पहले के मुकाबले ।” । |

मोना चौधरी और पारसनाथ ने कम-से-कम इस वक्त तो पेशीराम को देखने की कल्पना नहीं की थी।
दोनों ने अपने चेहरे पर छाए हैरानी के भावों को संभाला।

पेशीराम तुम?” मोना चौधरी के होंठों से निकला।

“कैसी हो मिन्नों?”

“ठीक हूं...।”

*और तुम परसू मजे में हो?” पेशीराम ने पारसनाथ से पूछा। पारसनाथ ने उसे देखते हुए सहमति में सिर हिला दिया।
पेशीराम दो कदम आगे आया और ठिठक गया। सामने ही दूर तक जाता कभी न ख़त्म होने वाला समुद्र था।

मैंने सोचा था कि इस बार तुममें से किसी से नहीं मिलूंगा। हालातों का मुकाबला तुम लोगों को स्वयं ही करने दूंगा।”

तों अब क्यों आए पेशीराम?” मोना चौधरी ने पूछा।

हालात बिगड़ चुके हैं।”

“ये तुम्हें अब पता चला?”

मैं सब हालातों पर नजर रखे हुए था। परंतु अब मुझे सामने आना ही पड़ा। तुम लोग कालचक्र में फंसे हुए हो।”

मालूम है पेशीराम ” । बात सिर्फ इतनी ही होती तो मैं सामने न आता।”

तो?" ।

“तुम लोगों का मुकाबला जथूरा से है। वो शैतान है या यूं कह लो कि बड़ा विद्वान है।”

मोना चौधरी और पारसनाथ की नजरें पेशीराम पर रहीं।

जथूरा के मौत के खेल के सामने तुम लोग कमजोर हो। वो तुम सबको हरा देगा।”

यही कहने आए हो।” पेशीराम गम्भीर नजर आने लगा।

मैं चाहता हूं कि तुम सब वापस पलट जाओ। जथूरा के रास्ते से हट जाओ।”

मोना चौधरी के होंठ सिकुड़े। चेहरे पर कड़वे भाव आ ठहरे।

सुना मोना चौधरी ।” पारसनाथ ने कठोर स्वर में कहा।

“अच्छी तरह से सुना।”

“तुम जानती हो मिन्नो कि मैं तुम्हें कभी भी गलत राय नहीं दूंगा।” पेशीराम बोला।

“लेकिन अब तू बूढ़ा हो गया है पेशीराम।” मोना चौधरी ने व्यंग से कहा।

“बेशक मैं बूढ़ा हो गया हूं।” पेशीराम ने गम्भीर स्वर में कहा-“मैं तो कब से इस शरीर को त्यागने की इच्छा रखता हूं। परंतु श्राप में फंसा पड़ा हूं। जब तक तेरे और देवा में दोस्ती न करा दें, तब तक मुझे श्राप से मुक्ति नहीं मिलेगी। मैं अपने इस शरीर को त्याग नहीं सकता। बूढ़े पर बूढ़ा होता जाऊंगा। तीन जन्मों से मैं इस शरीर के साथ जी रहा हूं। अगर तुम्हारे इस जन्म में भी मैं अपनी कोशिश में सफल न हुआ तो मुझे तुम लोगों के चौथे जन्म का इंतजार करना होगा। फिर वहां कोशिश...।”

“ये बातें पुरानी हो चुकी हैं।”

मेरे लिए तो नई हैं। मेरा तो वो ही जन्म चला आ रहा है।”

“पहले जन्म में सब तेरी ही गलतियां थीं। तूने ही मुझे देवा के खिलाफ भड़काया था।”

उसी का फल तो मैं अभी तक भुगत रहा हूं।”

पेशीराम ।” पारसनाथ कह उठा–“बात अब की, इन हालातों की करो तो बेहतर होगा। हमारे पास वक्त कम है। अंधेरा होने वाला है।”

पेशीराम ने अपने बूढ़े चेहरे पर हाथ फेरा।। कुछ पलों तक वहां खामोशी रहीं, फिर पेशीराम कह उठा।।
“तुम लोग शायद जथूरा का मुकाबला न कर सको। वो तुम पर भारी पड़ेगा।”

तुम क्यों चिंता करते हो।” मोना चौधरी ने कहा।

“मुझे ही तो चिंता करनी है। अगर तेरे को या देवा को कुछ हो गया तो मुझे तुम दोनों के अगले जन्म का इंतजार करना पड़ेगा। इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम लोग जथूरा के रास्ते से हट जाओ।”

“हममें से कोई भी जथूरा के रास्ते में नहीं आया। जथूरा ही हमारे रास्ते में आया था पेशीराम ।” ।

“हां उसकी शक्तियां उसे संकेत दे रही थीं कि देवा और मिन्नो का पूर्वजन्म के उस हिस्से में प्रवेश हो सकता है, जहां उसका साम्राज्य फैला हुआ है। ऐसा होना जथूरा के लिए नुकसानदेह होगा यही वजह रही कि आशंका में भरा जथूरा पहले से ही ऐसे इंतजाम में लग गया कि, तुम लोग पूर्वजन्म में प्रवेश न कर सको। परंतु उल्टा होता रहा। जथूरा की चेष्टाएं तुम लोगों के इरादों को मजबूत करती चली गईं, पूर्व जन्म में प्रवेश करने को। बेशक ये जथूरा की गलती थी, तुम लोगों को रोकने की चेष्टा करना। परंतु ये सच है कि वो तुम सब से ताकतवर है। उसका कुछ बिगाड़ पाना आसान नहीं

तुम हमें पीछे हटने को कह रहे हो?”

पीछे कैसे हटेंगे। हम तो जथूरा के फेंके कालचक्र में फंसे पड़े हैं।” मोना चौधरी बोली।

“मैं तुम सबको कालचक्र से बाहर ले जाऊंगा। तुम लोगों की सामान्य दुनिया में पहुंचा दूंगा।”

“फिर क्या होगा?”

“फिर तुम लोगों का सामना जथूरा से नहीं होगा। सब कुछ पहले की तरह हो जाएगा।”

“तुम हमें कालचक्र से बाहर निकालने को क्यों उतावले हो रहे हो?

“क्योंकि जथूरा भी ऐसा ही चाहता है।”

जथूरा से मिले हो तुम?" ।

“नहीं। परंतु मैंने अपनी शक्तियों से जथूरा के विचारों को महसूस किया है।”

जथूरा ऐसा चाहता है तो वो हमें इस कालचक्र से स्वयं ही निकाल सकता है।”

 
जथूरा ऐसा चाहता है तो वो हमें इस कालचक्र से स्वयं ही निकाल सकता है।”

वो मजबूर है। नहीं निकाल सकता।”

क्यों?”

“अपनी मर्जी से वो किसी को भी कालचक्र में फंसा सकता है, परंतु कालचक्र में फंसे व्यक्ति को, कालचक्र से बाहर निकाल पाना उसके बूते से बाहर की बात है। जब कोई कालचक्र में फंसता है तो कालचक्र की भीतरी शक्तियां सक्रिय हो उठती हैं, जिन पर जथूरा का कोई अधिकार नहीं है। फिर तो वो ही होगा जो कालचक्र की शक्तियां चाहेंगी।”

जथूरा या तुम हमें कालचक्र से बाहर निकालने को व्याकुल क्यों हो?"

मैंने अपनी वजह तुम्हें बता ही दी है और जथूरा भी नहीं चाहता कि तुम लोग का पूर्वजन्म में प्रवेश हो। तुम लोग अगर पूर्वजन्म में प्रवेश कर जाओगे तो जथूरा की ताकतों से तुम लोगों का झगड़ा होगा। जथूरा सोचता है कि ऐसा होने पर उसका कीमती समय बर्बाद होगा। उसके सेवकों का वक्त बर्बाद होगा।”

तो तुम चाहते हो कि जथूरा का वक्त बर्बाद न हो।”

मैंने जथुरा की सोंचों को पढ़ा है।”

“तुम भी तो चाहते हो कि हम पूर्वजन्म में प्रवेश न करें।”

“अवश्य चाहता हूं। क्योंकि जथूरा से कोई मुकाबला नहीं कर सकता। वो आज के वक्त की महाशक्ति हैं।” पेशीराम ने गम्भीर स्वर में कहा“मुझे तुम लोगों की चिंता है। आने वाले बुरे वक्त को मैं रोकना चाहता हूं।”

क्या तुमने आने वाले वक्त की झलक देखी है?”

नहीं। मैंने भविष्य में नहीं झांका। अपने विचार ही व्यक्त कर रहा हूं।” पेशीराम बोला।

“तुम्हें भविष्य में झांकना चाहिए था। शायद जीत हमारी हो।”

अब भविष्य में झांकने का वक्त निकल चुका है। वैसे तुम्हें मेरी राय मान लेनी चाहिए।” ।

देवराज चौहान से इस बारे में बात की?"

“देवा से तभी बात करूंगा, जब तुम्हारी हा हो। हमेशा तुम्हारी तरफ से ही समस्या आती है मिन्न।”

“मुझे अब पीछे हटना गंवारा नहीं।” मोना चौधरी ने ठोस स्वर में कहा।।

“मैं जानता था मिन्नो कि तू मेरी बात नहीं मानेगी।” ।

जथूरा हमारे रास्ते में आया। उसी ने हमसे झगड़ा किया। पीछे हटना है तो वो हटे, हम क्यों हटें?”

“वों ताकतवर है।” “जो होगा देखा जाएगा। मैं इससे डरती नहीं।”

तुम्हारा क्या बिचार है परसू। क्या तुम मिन्नों को समझाओगे कि...।”

मैं मोना चौधरी के जवाब से सहमत हूं पेशीराम।” “तुम और नील सिंह को तो मिन्नो की बात कभी गलत लगती नहीं।

पहले जन्म में भी, मिन्नों की बात पर आंख मूंदकर विश्वास कर लेते थे

और अब भी वो ही सब कुछ है। कुछ भी तो नहीं बदला।” | मोना चौधरी कह उठी।।

हमारे पास वक्त कम है पेशीराम। हमें जाना है।”

जबर्दस्ती तो मैं कर नहीं सकता। लेकिन आज तुम्हें एक बात कहना चाहूंगा मिन्नो।”

कहो।”

मैंने हमेशा तुम्हें रोका है कि देवा से झगड़ा नहीं करो। परंतु आज कहूंगा कि देवा से झगड़ा कर ।” ।

मोना चौधरी चौंकी। पारसनाथ के माथे पर बल पड़े।

तू सच में बूढ़ा हो गया है पेशीराम।” मोना चौधरी के होंठों से निकला।

पेशीराम मुस्कराया।
क्या कहना चाहता है तू? सीधी तरह बता।” “जथूरा ने कालचक्र का वक्त कम कर दिया है। सिर्फ आज की रात बाकी है कालचक्र की, उसके बाद कालचक्र सिमट जाएगा, अपने में। परंतु आज की रात फैसले की है।”

कैसे फैसले की?”
 
जथूरा आज रात तेरे और देवा में झगड़ा कराकर, एक को तो जरूर खत्म करवाना चाहेगा।”

और तू चाहता है कि मैं देवा के साथ झगड़ा करूं?”

“हो ।”

ये नहीं होगा।” ।

कमला रानी सब इंतजाम कर चुकी है। उसके आदमी तुम दोनों को ले जाने के लिए आ रहे हैं।”

कमला रानी कौन है?”

कालचक्र का ही हिस्सा है वो। इसी टापू पर कालचक्र की एक बस्ती है, उन सबकी बड़ी बनी हुई है कमला रानी इस वक्त ।”

| मना चौधरी के होंठ भिंच गए।

“देवा और अन्य लोग कमला रानी की कैद में पहुंच चुके हैं।” पेशीराम ने पुनः कहा।

“तू मेरा दिमाग खराब कर रहा...।”

“मैं नहीं कर रहा, कालचक्र ने तुम सबको परेशान कर रखा है। मेरी बात भूलना मत। आज रात तेरे को देवा से झगड़ना...।”

“कभी नहीं। मैं जथूरा की चाल को सफल नहीं होने देंगी।” मोना चौधरी गुर्रा उठी।

पेशीराम मुस्कराया। “तू कुछ छिपा रहा है पेशीराम ।” पारसनाथ बोला।

“मैं तो सिर्फ इतना कह रहा हूं कि जथूरा, कालचक्र के माध्यम से देवा और मिन्नो में झगड़ा कराकर एक को खत्म करवा देना चाहता है। रात की सारी तैयारियां कमला रानी कर चुकी है।”

“तू मोना चौधरी को झगड़ा करने को कह रहा...।” ।

इसी में मिन्नो का भला है।”

भला, वो कैसे?” ।

सब सामने आ जाएगा। एक बात और कह दें कि जग्गू बहरूप है, वो असली नहीं है।”

“ओह, तो जगमोहन कहां है?”

जग्गू और गुलचंद भी कालचक्र में हैं। वो दोनों इकट्ठे हैं।” मोना चौधरी के चेहरे पर कठोरता आ ठहरी थी। पारसनाथ के होंठ भी भिंच गए थे।

अब मेरा जाने का वक्त हो गया है।” पेशीराम ने गम्भीर स्वर में कहा जो बातें मैंने कही हैं, वो याद रखना। कुछ ही देर में कमला रानी के लोग तुम दोनों को पकड़ने के लिए यहां होंगे। उनसे मुकाबला करने की चेष्टा मत करना। कोई फायदा नहीं होंगा।” इसके साथ ही पेशीराम का शरीर धुंधला-सा पड़ता चला गया।

कुछ पलों के लिए ऐसा लगा, जहां वो खड़ा है, वहां धुंध-सी आ गई हो। पेशीराम का शरीर उसी धुंध में छिप-सा गया था।

| जब वो धुंध छंटीं तो पेशीराम वहां नहीं था।

मोना चौधरी का सोच से भरा चेहरा कठोर हुआ पड़ा था। पारसनाथ बोला।

“पेशीराम जाते-जाते कह गया है कि जो उसने कहा है, वो ही याद रखा जाए। वो किया जाए।”

लेकिन उसने मुझे देवराज चौहान से झगड़ा करने को क्यों कहा?”

ये तो वो ही जानता होगा।”

मैं उसकी बात नहीं मानूंगी । जैसे हालात सामने आएंगे, उसी के मुताबिक...।”

“वो आ गए।” पारसनाथ के होंठों से निकला। मोना चौधरी की निगाह घूमी। छोटे-से घेरे में पच्चीस-तीस को अपनी तरफ आते देखा उन्होंने।

कुछ मत करना पारसनाथ। अपने आप को इनके हवाले कर दो।” मोना चौधरी कठोर स्वर में कह उठी।

दो घंटे की लगातार भाग-दौड़ के बाद कमला रानी ने झोंपड़ी में प्रवेश किया। उसके चेहरे पर थकान-सी नजर आ रही थी। लकड़ी की बनी कुर्सी पर वो जा बैठी कि तभी कानों में भौरी की आवाज पड़ी।

“थक गई कमला रानी?” ।

“हां।” कमला रानी ने गहरी सांस ली–“सारे काम अपनी आंखों के सामने कराए।”

“तू मेहनती है। तेरे को पूर्वजन्म में ले जाकर अपनी सेविका बनाऊंगी। मखानी से काम क्यों नहीं लिया?”

वो चुम्मी मांगता है।”

तो क्या हो गया, दे देती।”

तू नहीं जानती भौरी।” कमला रानी ने कहा-“उसका हाथ पकड़ो तो वो गर्म हो जाता है। चुम्मी देती तो जाने क्या हाल हो जाता उसका ।”

भौरी की हंसी सुनाई दी कमला रानी को। *औरत के मामले में वो कमजोर हैं। हर वक्त तैयार रहता है।”

तेरे को तो पसंद है बो।”

पसंद तो है।”

“तुम दोनों को इस काम के बाद पूर्वजन्म में ले जाएंगे। आज की रात तो बाकी है।”

“हां, सिर्फ आज की रात...।”

कल सुबह हम सब पूर्वजन्म में होंगे।” मुझे अपने काम की चिंता है कि काम कैसे भी हो, पूरा कर

देवा-मिन्नो में से एक को खत्म करने को कह रही है।”

“हां, ये ही काम तो तूने मेरे को सौंपा है।”

“ये काम हो जाए तो जथूरा खुश हो जाएगा। तब हमें ईनाम अवश्य देगा।” ।

“मुझे ईनाम की जरूरत नहीं। मैं तो सफल होना चाहती हूं।” कमला रानी ने कहा। ।

“तू मेहनत कर रही है तो जरूर सफल होगी। मखानी किधर है?

होगा कहीं। मैं तो व्यस्त थी उधर-वो...।” कमला रानी के शब्द अधूरे रह गए। तभी उसने मोमो जिन्न को एकाएक बड़े होते देखा। तीन इंच के रूप में पहले से ही झोंपड़े में था, परंतु कमला रानी उसकी मौजूदगी भांप नहीं सकी थी। कमला रानी बुरी तरह चौंकी।
 
कौन हो तुम?” ।

मोमो जिन्न हूँ कमला रानी...?” ।

मैं तुम्हें नहीं जानती ।”

“भौरी से पूछ मेरे बारे में।”

“तू भौरी को कैसे जानता है?” ।

जथूरा का सेवक हूं। सबको जानता हूं। जिस काम को तुम कर रही हो। उसे मैं पहले से ही कर रहा था।”

ये कौन है भौरी?” कमला रानी ने पूछा।

“है तो जथूरा का सेवक, मोमो जिन्न ही।” भौरी की आवाज कानों में पड़ी-“लेकिन...।”

क्या लेकिन?” । ।

“ये कुछ बदला-बदला लग रहा है। ठीक नहीं लग रहा मुझे। पूछ तो इससे?”

“भौरी कहती है कि तू कुछ बदला-बदला लग रहा है, ऐसा क्यों

| मोमो जिन्न का दिल धड़का, परंतु शांत स्वर में कह उठा।

“बहुत देर से काम पर लगा हुआ हूं। आराम करने का वक्त नहीं मिला। लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा को संभालना आसान नहीं ।” ।

जिन्न होकर तू ऐसी बात करता है।” कमला रानी बोली।
मेरे सामने भी तो परेशानियां आती हैं।”
कमला रानी।” भौरी की फुसफुसाहट कानों में पड़ी—“इसकी जिन्न जैसी अकड़ कहां गायब हो गई?”

“पूछ ।”

“तुम्हारी जिन्न जैसी अकड़ कहां गायब हो गई?”

“तुम्हारे सामने उस अकड़ को क्या दिखाना। हम सब एक ही तो हैं, जथूरा के सेवक। जथूरा महान है।”

“इसमें कोई शक नहीं।” कमला रानी ने कहा-“तू मेरे पास क्यों आया?”

तुम्हारे आदमियों ने लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा को पकड़ लिया है।”

“तो?"

वो मेरे सेवक हैं।”

“आज रात कालचक्र की आखिरी रात है। सुबह कालचक्र सिमट जाएगा।”

फिर तो मुझे उन दोनों को वापस ले जाना चाहिए।”

तू चिंता क्यों करता है उनकी । उनके साथ जो होता है, होने दे।”

उन्होंने जथूरा का बहुत काम किया है। वो भी जथूरा को महान मानते हैं, उसके सेवक बनना चाहते हैं।”

तो?"

“मैं उन्हें जथूरा की दुनिया में ले जाऊंगा।”

क्यों भौरी ।” कमला रानी बोली-“इसकी बात का क्या जवाब दूं?” *

“ये जो करना चाहता है, करने दे। इसकी बातों से हमारा कोई नाता नहीं ।”

“तू जो मर्जी कर मोमो जिन्न। जब भी चाहे, उन दोनों को तू यहां से ले जा सकता है।”

मेरे लायक कोई सेवा बता कमला रानी।”

“क्या सेवा करेगा तू?" ।

जो तू कहेगी। जो जथूरा के हक में होगी। मैं तो जथूरा की सेवा करने के लिए हमेशा तैयार रहता हूं।”

*अभी तो कोई सेवा नहीं है। होगी तो बताऊँगी।”

मेरे को पता लगा है कि तू देवा और मिन्नो में आज रात झगड़ा कराने जा रही है।”

“हां।”

। “उन्होंने सोच रखा है कि वो झगड़ा नहीं करेंगे।” कमला रानीं विषैले स्वर में मुस्करा पड़ी।
मेरे जाल से वो बच नहीं सकेंगे।
 
“उन्होंने सोच रखा है कि वो झगड़ा नहीं करेंगे।” कमला रानीं विषैले स्वर में मुस्करा पड़ी।
मेरे जाल से वो बच नहीं सकेंगे।

देदूंगा।” मोमों जिन्न ने सिर हिलाया—“मैं तुम्हारे पास ही रहूंगा। तुम पुकारोगी तो मैं हाजिर हो जाऊंगा।”

कमला रानी ने सिर हिलाया।। तभी जगमोहन के रूप में मखानी ने भीतर प्रवेश किया।

तू यहां।” मखानी मोमो जिन्न को देखते ही कह उठा। ।

“सबका सेवक हूं।”

लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा को कैद में नहीं रखा, वो खुले में हैं।” मखानी बोला।

। “शुक्रिया।” फिर मोमो जिन्न कमला रानी से कह उठा–“मैं जाता हूं। जरूरत पड़े तो बुला लेना।”

कमला रानी के सिर हिलाने पर मोमो जिन्न बाहर चला गया। मखानी आगे बढ़कर स्टूल जैसी जगह पर बैठता कह उठा।

मैं तेरे से नाराज हूं।”

मैं तेरी परवाह नहीं करती।” कमला रानी ने मुंह बनाकर कहा।

परवाह नहीं करती?”

“नहीं।” कमला रानी मुस्करा पड़ी।

“साली झूठ मत बोल। नखरे मत दिखा। एक चुम्मा ही मांगा है। और तू हवा में उड़ने लगी।”

चुम्मे के बाद तू अपने पर काबू नहीं रख पाएगा। मैं तेरी आदत जानती हूं।”

“तो क्या हो गया। वो सब भी हो गया तो।”

ये काम का वक्त है और...।”

“तू तो बूढ़ी औरतों की तरह बात कर रही...।”

पहले मैं बूढ़ी थी, अब जवान हूं। एकदम कडक ।”

तभी मखानी ने बाज की तरह झपट्टा मारा और कुर्सी पर बैठी कमला रानी को जकड़ लिया।

ये क्या करता है मखानी ।” कमला रानी हड़बड़ाई। कानों में भौरी की हंसी गूंजी। छोड़। छोड़ मुझे।” । मखानी ने उसी पल उसकी चुम्मी ली और उसे छोड़कर पीछे हट गया।

कमला रानी ने अपने को संभाला और उठ खड़ी हुई। मखानी को घूरा।।

मख़ानी दांत फाड़कर मुस्कराया।

मैं तेरे को छोडूंगी नहीं मखानी के बच्चे।”

चुम्मी लेने पे तेरा क्या घिस गया।”

ये काम का वक्त है।”

“मैंने कब कहा कि तू काम न कर।”

कमला रानी ने गहरी सांस ली और मुस्करा पड़ी।
तू बहुत शरारती है मखानी।”

तो हो जाए।” मखानी मुस्करा रहा था।

क्या?”

पीछे कमरे में...।”

हो गया ना गर्म ।” कमला रानी कह उठी “इसी वास्ते तेरे को चुम्मी नहीं देती थी।”

मखानी कुछ कहने लगा कि शौहरी की फुसफुसाहट कानों में पड़ी।

“ये गम्भीर वक्त चल रहा है और तू क्या कर रहा है।”

“म...मैंने क्या किया है। एक चुम्मी ही तो ली है कमला रानी की।”

*अब तू उसे पीछे वाले कमरे में चलने को कह रहा है।”

वो तो वो तो, मैंने सोचा शायद कमला रानी का मन कर आया हो कि...।”

“चुप कर।” शौहरी का स्वर सख्त हुआ—“ये रात कालचक्र की आखिरी रात है। तुम लोगों ने सफल होना है।”

मखानी ने सिर हिला दिया फिर बोला।
 
मुझे काम बता।”

कमला रानी के साथ रह।”

“ठीक है।”

मखानी ।” कमला रानी कह उठी–“मैं कैदियों से मिलने जा रही हूं।”

मैं भी साथ चलता हूं।”

“चल ।” दोनों झोंपड़ी से बाहर निकले।
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रात का अंधेरा चारों तरफ फैल गया था। बस्ती में मशालों द्वारा रोशनी होनी शुरू हो गई थी। जगह-जगह मशालों की रोशनी चमक रही थी। बस्ती वाले आते-जाते नजर आ रहे थे। आज बस्ती में उत्साह का माहौल था। शोर सा पैदा हो रहा था। एक जगह लक्ष्मण दास, सपन चढ्डा और मोमो जिन्न बैठे थे कि दोनों को आते पाकर मोमो जिन्न फुर्ती से उठा और कमर पर हाथ बांधे दिखावे के लिए अकड़कर खड़ा हो गया।

उनके पास आते ही मोमो जिन्न ऊंचे स्वर में कह उठा।।

कमला रानी और मखानी आ रहे हैं। सलाम करो इन्हें ।”

लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा ने फौरन उठकर दोनों को सलाम किया।

जो भी खाने-पीने को मांगना है इन्हें कह दो।” मोमों जिन्न बोला।

खाने-पीने को?” सपन चड्ढा अचकचाया।

“तुम मुझसे कह रहे थे कि भूख लगी है। वो इनसे कहो।”

ह...हां। हमें भूख लगी है।” सपन चड्ढा ने जल्दी से दोनों से कहा।

किसी भी बस्ती वाले से कह दो। वो खाने को दे देगा।” कमला रानी ने कहा और मखानी के साथ आगे बढ़ गई। मोमो जिन्न सपन चड्ढा के कानों में बोला।

जो भी खाने को मिले, मुझे देना। मुझे बोत भूख लगी है।”

तू कब मरेगा?” सपन चड्ढा परेशान सा कह उठा।

नाराज मत हौवो। इस वक्त तुम मेरे कारण ही बस्ती के मेहमान बने हो, वरना कैदी होते।”

“तू अगर हमें यहां नहीं लाता तो ये सब नौबत ही नहीं आती।” लक्ष्मण दास कह उठा।

“जथूरा के सेवकों का हुक्म था, बजाना पड़ा।

तो उन्हें ये भी कह कि तेरे में इंसानी इच्छाएं लौट आई हैं और तुझे भूख लगने लगी है।” ।

“ये उन्हें पता चल गया तो, बों मुझे मार देंगे। धीरे बोलो, कोई सुन लेगा। अब जाओ, खाने को लेकर आओ।”

“कमला रानी ।” भौरी की फुसफुसाहट कानों में पड़ी_मोमो जिन्न को जब भी देखती हूं तो अजीब-सा लगता है।”

क्या अजीब-सा?”

वो मुझे जिन्न नहीं लगता। उस पर कोई संदेह होता है।”

ये कैसे हो सकता है। तूने हीं तो मुझे मोमो जिन्न के बारे में बताया था। अब संदेह कैसा?”

कुछ समझ नहीं आता। वो कुछ बदला-बदला-सा लगता है।”

वहम हो गया है तुझे ।” कमला रानी ने कहा।

कुछ तो बात है। आज की रात बीत जाए फिर मैं ऊपर कहकर मोमो जिन्न का चैकअप करवाऊंगीं ।”

ये बात तू जान।”

तभी सामने से हंसराज आता दिखा। वो करीब आया। “हंसराज। हमें कैदियों के पास ले चल ।”

कौन-से कैदियों के पास जाएंगी?” हंसराज ने पूछा।

क्या मतलब?”

कैदियों को जैसे-जैसे पकड़ा है, वैसे ही अलग-अलग रखा गया है।” हंसराज ने बताया।

देवा के पास चलते हैं पहले।” मखानी कह उठा।

“आइए।” कहकर हंसराज दो कदम आगे चल पड़ा।

सब तैयारी ठीक से हो गई है?”

हां, कमला रानीं ।”

‘अब आएगा मजा।' कमला रानी बड़बड़ा उठी।

मुझे भी तो बता कि तूने क्या तैयारी की है।” मखानी ने पूछा।

अभी देख लेना। ज्यादा वक्त नहीं बचा।”

मतलब कि तू नहीं बताएगी। नखरे झाड़ रही है।” कमला रानी ने मुस्कराकर मखानी को देखा।

एक बात कहूं—सुनकर चौड़ा मत हो जाना।”

बोल ।”

जग्गू के रूप में तू जंचता है।” मखानी ने गहरी सांस ली और मुंह फेर लिया।

क्या हुआ?

इसमें मेरे चौड़ा होने की क्या बात है। तूने जग्गू की तारीफ की है। चौड़ा होगा तो वो होगा।”

“कल सुबह भौरी मुझे पूर्वजन्म में ले जाएगी और शौहरी तेरे को ले जाएगा।” ।

“क्या पता वहां हमारा मिलना इतना भी न हो, जितना कि अब हो रहा है।”

“वहां हमारा ज्यादा मिलना होगा। भौरी ने मुझे इस बात का विश्वास दिलाया है।”

तभी आगे जाता हंसराज एक झोंपड़े में प्रवेश कर गया। कमला रानी और मखानी उसके पीछे थे। झोंपड़े के भीतर जाकर वे ठिठक गए।

सामने ही झोंपड़े के कच्चे फर्श पर देवराज चौहान, नगीना, बांके और रुस्तम पड़े थे। उनके हाथ-पांव बंधे हुए थे। एक तरफ मशाल जल रही थी। जिसका प्रकाश झोंपड़े में हर तरफ फैला था।

“तो ये हैं हमारे शिकार ।” कमला रानी कह उटी–“क्यों देवा कैसा है तू?" |

देवराज चौहान, नगीना, बांके और रुस्तम राव की निगाह मखानी पर टिकी थीं, जो जगमोहन के रूप में सामने था।

“तंम जगमोहनो नेई हौवो। अंम थारे को ‘वड’ दयो।” बांकेलाल राठौर गुर्रा उठा।

मखानी मुस्कराया। “ईक बारो म्हारे हाथ-पांव खोलो तम, अंम थारे को...।”
 
बोत तड़प रहा है तू।” मखानी कड़वे स्वर में बोला।

तंम मखानो होवे। अंम थारे को पक्को ‘वड' दयो हो।”

*आपुन तो इसकी टांगें तोड़ेला ।” रुस्तम राव ने खतरनाक स्वर में कहा।

“तुमने ही मेरे सिर पर डंडा मारकर मुझे बेहोश किया था।

हां।” मखानी हंस पड़ा—“वो मैं ही था देवा ।”

“तब तुम्हारे साथ नगीना कौन थी?” ।

ये, कमला रानी।” मखानी ने कमला रानी की तरफ इशारा किया लेकिन तब मेरे से गलती हो गई थी। बेहोशी की दवा मिली काफी का प्याला, तुम्हारी अपेक्षा, कमला रानी उर्फ नगीना को दे दिया था। ये तो अच्छा हुआ कि मैंने तेरे को बेहोश कर दिया बरना मेरी सारी मेहनत बेकार हो जाती। बुरा बचा था तब मैं।” ।

“मैंने तुम्हें जगमोहन समझा। इसी धोखे में मात खा गया।” देवराज चौहान ने कहा।

“धोखा ही तो देना था तेरे को। इस काम में मैं सफल रहा देवा।”

तभी कमला रानी कह उठी।

काम की बात कर ली जाए।”

सबकी निगाह कमला रानी पर गई। कमला रानी देवराज चौहान को देख रही थी।

मैं तेरा भला करने तेरे पास आई हूं।”

तू मेरा भला कर ही नहीं सकती।” देवराज चौहान मुस्करा पड़ा।

कर सकती हूं।”

थारे को चक्कर में लायो देवराज चौहान ।”

कमला रानी पीठ पर दोनों हाथ बांधे, चहलकदमी करती कह उठी।
मैं तेरी जिंदगी बचा सकती हूं।” ।

मेरी?”

तेरे सब साथियों की भी।” कमला रानी ठिठककर मुस्कराई। यकीन नहीं होता।” बदले में तेरे को मेरी सिर्फ एक बात माननी होगी।”

क्या?"

मिन्नो से झगड़कर उसे खत्म कर दे।”

“तुमने कैसे सोच लिया कि मैं तुम्हारी ये बात मान जाऊंगा।”
मेरी बात मानने में ही तेरा भला है देवा।”

तेरे द्वारा मेरा भला नहीं हो सकता।”

मखानी ने चिढ़कर कमला रानी से कहा।
ये तेरी बात नहीं मानेगा।”

“देवा।” कमला रानी गम्भीर स्वर में कह उठी–“आज की रात फैसले की रात है। जथूरा के कालचक्र ने दिन निकलते ही सिमट जाना है। उस स्थिति में तुम्हारा पूर्वजन्म में प्रवेश करना जरूरी हो जाएगा। परंतु मैं तुम्हें बचा सकती हूं। पूर्वजन्म में मौत से भरे खतरे होते हैं। तुम उन खतरों से बचना चाहोगे। ये तभी हो सकता है जब तुम मेरी बात मानो। मिन्नो को खत्म कर दो। उसे मारने का तुम्हें अच्छा मौका मिल रहा है। उसे खत्म करोगे तो मैं तुम सबको तुम्हारी दुनिया में भेज देंगी। फिर तुम सबको पूर्वजन्म का सफर नहीं करना पड़ेगा। मजे से अपनी जिंदगी बिताओगे। इस बार पूर्वजन्म में पहुंचे तो जिंदा वापस लौट नहीं सकोगे। क्योंकि तुम्हारा मुकाबला जथूरा से होगा। आज जथूरा पूर्वजन्म की महाशक्ति बना हुआ है। वो सबको मार देगा।”

“हमारी बात मानने में भला है तुम्हारा।” मखानी बोला।

“इनकी बात कभी मत मानना।” नगीना कठोर स्वर में कह उठी।

कमला रानी ने मुस्कराकर नगीना को देखा और बोली।
ये बात तुम इसलिए कह रही हो, क्योंकि तुम जथूरा की ताकत को नहीं जानती। जथूरा महान है।”

“अंम उसकी महानता को ‘वड' दयो।”

*आपुन तेरे साथ होईला बाप ।”

जवाब दे देवा।” ।

नहीं, मैं मोना चौधरी से झगड़ा नहीं करूंगा।”

कमला रानी दांत पीस उठी।
झगड़ा तो तू करेगा देवा। करना ही पड़ेगा। चल मखानी।” कमला रानी और मखानी वहां से बाहर आ गए।

“बहुत टेढ़ा इंसान है देवराज चौहान ।” मखानी बोला।

आज रात सीधा हो जाएगा।”

लगता तो नहीं ।”

तू अभी देख तमाशा।”

कमला रानी क्रोध में थी। वो बाहर खड़े हंसराज से बोली-“मिन्नो के पास चल ।”

आओ।” तीनों आगे बढ़ गए।

दो मिनट में ही वो एक झोंपड़े में मोना चौधरी के सामने खड़े थे। मोना चौधरी के हाथ-पांव भी बंधे हुए थे। हंसराज झोंपड़े के बाहर ही रहा। पारसनाथ भी एक तरफ बंधा पड़ा था।
 
मैं कमला रानी हूं मिन्नो।”

मैं मखानी।” जगमोहन के रूप में मखानी कहते हुए मुस्कराया।

“क्या तुम पूर्वजन्म के सफर पर जाना चाहती हो?” कमला रानी ने पूछा।

इच्छा तो नहीं है।”

“आज रात के बाद कालचक्र सिमट जाएगा। कल सुबह तुम लोगों को पूर्वजन्म में प्रवेश करना ही पड़ेगा। क्योंकि कालचक्र तुम सब को ऐसी जगह ले आया है कि जहां से वापस आया ही नहीं जा सकता।”

“तुम कहना क्या चाहती हो?”

मखानी फौरन सिर हिलाकर बोला।

हम तुम्हें पूर्वजन्म के सफर से रोककर, तुम्हें वापस तुम्हारी दुनिया में पहुंचा सकते हैं।”

“अच्छा, वो कैसे?”

ये कोई चालाकी कर रहे हैं।” तभी पारसनाथ कह उठा।

सुन तो लेने दो इनकी बात।” मोना चौधरी ने कहा।

तुम्हें देवा से लड़ना होगा। उसे मार देना होगा। ऐसा होते ही तुम सबको वापस तुम्हारी दुनिया में पहुंचा दिया जाएगा।”

मैं देवराज चौहान से झगड़ा नहीं करूंगी।”

“मेरी बात मानेगी तो खुश रहेगी।”

कभी नहीं ।” मोना चौधरी ने इंकार में सिर हिलाया।

कमला रानी क्रूर अंदाज में मुस्करा पड़ी।
“झगड़ा तो तुम करोगी ही। खुद कहोगी देवराज चौहान को मारने के लिए।”

मैं नहीं कहूंगी।” ।

“कुछ ही देर में सब कुछ तुम्हारे सामने होगा। मैं तो चाहती थी कि सब कुछ तुम लोगों की मर्जी से हो जाए। मुझे मेहनत न करनी पड़े। परंतु लगता है तुम्हें मौत की सैर करानी ही पड़ेगी।” मोना चौधरी एकटक कमला रानी को देख रही थी।

जगमोहन कहां है?” पारसनाथ ने मख़ानी को देखकर पूछा।

इस वक्त वो गुलचंद के साथ कालचक्र में फंसा हुआ है।” मखानी ने कहा।

हम भी तो इस वक्त कालचक्र में हैं। जगमोहन-सोहनलाल तो कहीं नहीं दिखे।” ।

वो दोनों कालचक्र के दूसरे हिस्से में हैं।”

हंसराज।” कमला रानी ने ऊंचे स्वर में पुकारा।
हंसराज फौरन भीतर आया।
काम शुरू कर दो।”

समझ गया।” हंसराज ने गर्दन हिलाई।।

मान जा मिन्नो सुखी रहेगी।” मखानी कह उठा।

मोना चौधरी होंठ भींचे मखानी को देखती रही।
 
चल मखानी।” कमला रानी बाहर की तरफ बढ़ते कह उठी-अभी अक्ल ठिकाने आ जाएगी।

मखानी व कमला रानी बाहर निकल गए।

पेशीराम ने कहा था कि तुम्हें देवराज चौहान से झगड़ा करना है।” पारसनाथ कह उठा।

मोना चौधरी की निगाह हंसराज पर थीं।

कमला रानी क्या करने को कह गई है तेरे को?” मोना चौधरी ने हंसराज से कहा।

जवाब में हंसराज बेहद शांत अंदाज में मुस्कराया।
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लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा इस वक्त बहुत बड़े खुले मैदान में बैठे थे। पूरा मैदान मशालों से जगमगा रहा था। सैकड़ों लोग बैठे और खड़े हुए थे, जैसे उत्सव आरम्भ होने वाला हो। आकाश में तारे भी चमक रहे थे और काले बादलों के झुंड भी मंडरा रहे थे। चांद पूरा निकला हुआ था, जिसकी पर्याप्त रोशनी जमीन और पेड़ों पर पड़ रही थी, परंतु जब चांद के सामने बादलों का झुंड आ जाता तो, अंधेरा-सा घिर आता।

मशालों की रोशनी में चमकते मैदान पर चांद के छिपने-न-छिपने का कोई असर नहीं पड़ रहा था।

| एक ऊंचे पेड़ के नीचे बड़ा-सा अलाव जल रहा था। जिस पर पत्थरों के सहारे बहुत बड़ा कड़ाहा रखा हुआ तप रहा था। कड़ाहे में आधे से ज्यादा तेल था, जो कि उबल रहा था। कड़ाहा इतना बड़ा था कि एक आदमी सीधे-सीधे उसके भीतर आसानी से लेट सकता था। उसमें उबलता तेल जैसे दिल को धड़का रहा था।

कंपा देने वाली बात तो ये थी कि उस पेड़ पर, कड़ाहे के ऊपर, मोटे रस्से के सहारे मोना चौधरी को बांधकर लटका रखा था। अगर रस्सा ढीला कर दिया जाए तो मोना चौधरी ने सीधे-सीधे, कड़ाहे में खौलते तेल पर आ गिरना था। उबलते तेल की गर्मी अभी भी मोना चौधरी को महसूस हो रही थी।

मैदान के बीचोबीच देवराज चौहान, नगीना, बांके, रुस्तम राव,
पारसनाथ और महाजन को हाथ-पांव बांधे डाल रखा था। वो सब बेबस-से ये सारा तमाशा देख रहे थे।

“यार सपन।” लक्ष्मण दास कह उठा–“ये हम कौन-से नर्क में आ फंसे हैं।”

“शुक्र कर कि हम बचे हुए हैं।” सपन चड्ढा धीमे स्वर में बोला।

“मुझे तो मोमो जिन्न् पर क्रोध आ रहा है। वो ही हमें यहां लाया और...।” ।

गुस्सा तो मुझे भी आ रहा है, लेकिन हम उसका कुछ नहीं कर सकते।” । “कड़ाहे में तेल खौल रहा है। मोमो जिन्न को उसमें फेंक दें

तो?”

“तों हम भी नहीं बचेंगे। कमला रानी और मखानी हमारी जान ले लेंगे।”

सब तरफ मुसीबत ही मुसीबत है।”

असली मुसीबत में तो इस वक्त मोना चौधरी फंसी पड़ी है।” सपन चड्ढा ने व्याकुल भाव में कहा“खौलते कड़ाहे के ऊपर। रस्सा ढीला हुआ नहीं कि वो सीधा कड़ाहे में। जिंदगी खत्म। मांस गल जाएगा और पलों में हड्डियों का ढांचा तेल में दिखने लगेगा। मोना चौधरी की हालत क्या हो रही होगी इस वक्त ।”

समझ में नहीं आता कि यहां क्या होने वाला है।”

बुरा ही होगा, जो होगा।”

मोमो जिन्न कहां चला गया?" लक्ष्मण दास ने इधर-उधर देखा।।

उधर अंधेरे में गया है। हमारा माल खाने । उसके कहने पर हम खाने का सामान वहीं छोड़ आए थे।”

“साला अभी तक माल पाड़ रहा है।” लक्ष्मण दास ने कड़वे स्वर में कहा।

एकाएक सपन चड्ढा बेचैनी से बोला। मोमो जिन्न हमें बकरा बना रहा है।”

बकरा—क्या वो हमें खाने वाला है।” लक्ष्मण दास हड़बड़ाया।

“वों बकरा नहीं, दूसरा बकरा। याद है उसने क्या कहा था करने को?”

याद है। अभी कुछ देर पहले दोबारा हमें समझा रहा था।”
 
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