desiaks
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“तुम्हारी खैरियत जानने के लिए फोन किया।” देवराज चौहान को देखते पारसनाथ शांत स्वर में बोला।
‘हैरानी है, पहले तो कभी भी तुमने खैरियत जानने के लिए फोन नहीं किया।”
“यूं ही अब कर...।”
“सितारा कैसी है?” उधर से मोना चौधरी ने पूछा। (सितारा के बारे में विस्तार से जानने के लिए अनिल मोहन के देवराज चौहान और मोना चौधरी एक साथ वाले पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'देवदासी’, ‘इच्छाधारी’, ‘नागराज की हत्या’, ‘विषमानव अवश्य पढ़ें)।
“वो ठीक है, शॉपिंग के लिए गई हुई है। तुमने कोई नया काम हाथ में लिया क्या?”
फौरन मोना चौधरी की तरफ से आवाज नहीं आई।
हां। लेकिन तुमने क्यों पूछा?”
मैं जानना चाहता हूं कि वो काम क्या है?" पारसनाथ का गम्भीर स्वर सामान्य था।
देवराज चौहान की निगाह पारसनाथ पर थी।
“तो तुम्हें मालूम हो गया कि मैंने क्या काम हाथ में लिया है?" मोना चौधरी की आवाज कानों में पड़ी।
“तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं।”
देवराज चौहान को खत्म करने का मौका हाथ में आया है।” मोना चौधरी की आवाज में सख्ती आ गई थी।
पारसनाथ ने गहरी सांस ली।
तीन करोड़ में।” ।
“तुम्हें कैसे पता?” उधर से मोना चौधरी की आवाज में उलझन आ गई थी।
मैं तुम्हें बाद में फोन करता हूं।
” लेकिन तुम्हें कैसे...?” परंतु पारसनाथ ने फोन बंद किया और गम्भीर स्वर में देवराज चौहान से बोला।
तुम सही थे।” । ।
“मोना चौधरी को तुम्हें बता देना चाहिए था कि मैं यहां हूं, ताकि वो काम निबटा लेती।”
“प्लीज देवराज चौहान ।” पारसनाथ बोला—“मैं नहीं जानता कि क्या बात है, परंतु मोना चौधरी, तुम्हारे नाम से ही उखड़ जाती है। ये शायद पूर्वजन्म का कोई असर हो सकता है। तुम जरा संयम से काम लो। मैं मोना चौधरी से बात...।”
“मैं तुम्हारे पास इसलिए नहीं आया कि तुम मोना चौधरी से बात करो। मैं मौना चौधरी से मिलने आया हूं।”
“और तुम सोचते हो कि मैं तुम्हें उसका पता दे दूंगा।
” दे देना चाहिए। मोना चौधरी को भी मेरी तलाश है।
” तुम दोनों का एक-दूसरे के सामने पड़ना ठीक नहीं ।”
“मुझे मारने के लिए मोना चौधरी मेरी तलाश कर रही है।” देवराज चौहान बोला।
पारसनाथ ने अपनी खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरा।।
तुम ये बात भूल जाओ। मैं मोना चौधरी से बात करूंगा, उसे समझाऊंगा कि...।”
“तो मुझे खुद ही मोना चौधरी का ठिकाना ढूंढना होगा।” देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ।
पारसनाथ उसे देखता रहा।
देवराज चौहान वहां से हटा और बाहर की तरफ बढ़ता चला गया।
पारसनाथ वहीं बैठा उसे देखता रहा, जब तक वो बाहर निकलकर नजरों से ओझल न हो गया। उसकी आंखों में बेचैनी स्पष्ट दिखाई दे रही थी। उसने फोन निकाला और महाजन का नम्बर मिलाने लगा।
‘हैरानी है, पहले तो कभी भी तुमने खैरियत जानने के लिए फोन नहीं किया।”
“यूं ही अब कर...।”
“सितारा कैसी है?” उधर से मोना चौधरी ने पूछा। (सितारा के बारे में विस्तार से जानने के लिए अनिल मोहन के देवराज चौहान और मोना चौधरी एक साथ वाले पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'देवदासी’, ‘इच्छाधारी’, ‘नागराज की हत्या’, ‘विषमानव अवश्य पढ़ें)।
“वो ठीक है, शॉपिंग के लिए गई हुई है। तुमने कोई नया काम हाथ में लिया क्या?”
फौरन मोना चौधरी की तरफ से आवाज नहीं आई।
हां। लेकिन तुमने क्यों पूछा?”
मैं जानना चाहता हूं कि वो काम क्या है?" पारसनाथ का गम्भीर स्वर सामान्य था।
देवराज चौहान की निगाह पारसनाथ पर थी।
“तो तुम्हें मालूम हो गया कि मैंने क्या काम हाथ में लिया है?" मोना चौधरी की आवाज कानों में पड़ी।
“तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं।”
देवराज चौहान को खत्म करने का मौका हाथ में आया है।” मोना चौधरी की आवाज में सख्ती आ गई थी।
पारसनाथ ने गहरी सांस ली।
तीन करोड़ में।” ।
“तुम्हें कैसे पता?” उधर से मोना चौधरी की आवाज में उलझन आ गई थी।
मैं तुम्हें बाद में फोन करता हूं।
” लेकिन तुम्हें कैसे...?” परंतु पारसनाथ ने फोन बंद किया और गम्भीर स्वर में देवराज चौहान से बोला।
तुम सही थे।” । ।
“मोना चौधरी को तुम्हें बता देना चाहिए था कि मैं यहां हूं, ताकि वो काम निबटा लेती।”
“प्लीज देवराज चौहान ।” पारसनाथ बोला—“मैं नहीं जानता कि क्या बात है, परंतु मोना चौधरी, तुम्हारे नाम से ही उखड़ जाती है। ये शायद पूर्वजन्म का कोई असर हो सकता है। तुम जरा संयम से काम लो। मैं मोना चौधरी से बात...।”
“मैं तुम्हारे पास इसलिए नहीं आया कि तुम मोना चौधरी से बात करो। मैं मौना चौधरी से मिलने आया हूं।”
“और तुम सोचते हो कि मैं तुम्हें उसका पता दे दूंगा।
” दे देना चाहिए। मोना चौधरी को भी मेरी तलाश है।
” तुम दोनों का एक-दूसरे के सामने पड़ना ठीक नहीं ।”
“मुझे मारने के लिए मोना चौधरी मेरी तलाश कर रही है।” देवराज चौहान बोला।
पारसनाथ ने अपनी खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरा।।
तुम ये बात भूल जाओ। मैं मोना चौधरी से बात करूंगा, उसे समझाऊंगा कि...।”
“तो मुझे खुद ही मोना चौधरी का ठिकाना ढूंढना होगा।” देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ।
पारसनाथ उसे देखता रहा।
देवराज चौहान वहां से हटा और बाहर की तरफ बढ़ता चला गया।
पारसनाथ वहीं बैठा उसे देखता रहा, जब तक वो बाहर निकलकर नजरों से ओझल न हो गया। उसकी आंखों में बेचैनी स्पष्ट दिखाई दे रही थी। उसने फोन निकाला और महाजन का नम्बर मिलाने लगा।