desiaks
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मण्डप वहीं पे सजा के रखियों का?" बांकेलाल राठौर की आवाज में गम्भीरता आ गई–“बात का हौवे?”
तुम रुस्तम राव को लेकर पहुंचो सब जान जाओगे।”
“इसो का मतलब खैर न हौवे ।”
“अभी कुछ पता नहीं ।”
“लो। छोरा आ गयो। बातें मारो ले, उसी के साथ।”
दो पल बीते कि सोहनलाल के कानों में रुस्तम राव की आवाज पड़ी।
क्यों बाप, कैसा चल रईला है?”
मैं ठीक हूं रुस्तम । तुम बांके के साथ देवराज चौहान के बंगले पर आ जाओ।”
गड़बड़ होईला क्या?”
शायद ।”
देवराज चौहान और जगमोहन भी उधर होईला बाप?”
“जगमोहन होगा, देवराज चौहान मुम्बई से बाहर है। तुम बांके के साथ आ रहे हो न?” ।
“अपुन पक्का पौंचेला बाप। नाश्ता भी उधर ही करेला ।”
हम इकट्ठे ही नाश्ता करेंगे। साथ में लेते आना ।”
बांके को...।” । ।
“हां और नाश्ता भी।” सोहनलाल ने कहा और फोन बंद कर दिया–“वो कुछ देर में बंगले पर पहुंच जाएंगे।”
जगमोहन ने सिर हिलाया।
मेरे खयाल में हम पोतेबाबा को बंदी बना लेंगे। देखते हैं।” जगमोहन बरबस ही मुस्करा पड़ा।
शाम के 3.30 बजे थे। जगमोहन और सोहनलाल कुछ देर पहले ही नींद से उठे थे। नहा-धोकर उन्होंने कपड़े बदले। जगमोहन सोहनलाल को धूप देता कह उठा। इसे जला दो। हाल में, बेडरूम में, किचन में। ताकि इसके धुएं में पोतेबाबा की आकृति से उसकी मौजूदगी का स्पष्ट एहसास पा सकें। धूप को इस तरह रखना कि इसका धुआं हर तरफ जाए।”
सोहनलाल धूप जलाने में व्यस्त हो गया। दस मिनट बाद इस काम से फारिग हुआ।
अब हर जगह धूप की स्मैल फैली हुई थी। धुआं वहां भरने लगा था। जगमोहन कॉफी बना लाया था। दोनों कॉफी के प्याले थामे सोफों पर आ बैठे थे। सोहनलाल बोला।।
देवराज चौहान का कोई फोन नहीं आया?”
“नहीं।” जगमोहन कॉफी का प्याला रखता कह उठा“उससे बात करता हूं।”
जगमोहन ने फोन निकालकर देवराज चौहान का नम्बर मिलाया।
“यहां के हालात उसे बताओगे?” सोहनलाल ने पूछा।
नहीं। मैं उसे व्यर्थ में चिंता में नहीं डालना चाहता।” नम्बर लग गया। देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी।
हैलो ।”
“तुम दिल्ली में ही हो?” जगमोहन ने पूछा।
हां। एक-दो दिन तक वापस जा जाऊंगा। वहां सब ठीक है?” उधर से देवराज चौहान ने पूछा।
सब ठीक है। लेकिन तुम दिल्ली में किस काम को कर रहे हो?”
“आकर बताऊंगा।”
मेरी जरूरत हो तो आ जाता हूं।”
नहीं। तुम्हारी ज़रूरत नहीं है।” बात करके जगमोहन ने फोन बंद किया।
“एक-दो दिन तक आने को कह रहा है।” जगमोहन ने सोहनलाल से कहा।
“पोतेबाबा नहीं आया अभी तक।” सोहनलाल बोला–“मैंने उसे दोपहर में आने को कहा था।”
“मैं तो दोपहर में ही आ गया था।” पोतेबाबा की आवाज उन्हें सुनाई दी।
जगमोहन और सोहनलाल की निगाहें आवाज की तरफ घूमीं।
चंद कदमों की दूरी पर, सोफे पर बैठे पोतेबाबा की धुएं में आकृति का आभास हुआ।
तुम रुस्तम राव को लेकर पहुंचो सब जान जाओगे।”
“इसो का मतलब खैर न हौवे ।”
“अभी कुछ पता नहीं ।”
“लो। छोरा आ गयो। बातें मारो ले, उसी के साथ।”
दो पल बीते कि सोहनलाल के कानों में रुस्तम राव की आवाज पड़ी।
क्यों बाप, कैसा चल रईला है?”
मैं ठीक हूं रुस्तम । तुम बांके के साथ देवराज चौहान के बंगले पर आ जाओ।”
गड़बड़ होईला क्या?”
शायद ।”
देवराज चौहान और जगमोहन भी उधर होईला बाप?”
“जगमोहन होगा, देवराज चौहान मुम्बई से बाहर है। तुम बांके के साथ आ रहे हो न?” ।
“अपुन पक्का पौंचेला बाप। नाश्ता भी उधर ही करेला ।”
हम इकट्ठे ही नाश्ता करेंगे। साथ में लेते आना ।”
बांके को...।” । ।
“हां और नाश्ता भी।” सोहनलाल ने कहा और फोन बंद कर दिया–“वो कुछ देर में बंगले पर पहुंच जाएंगे।”
जगमोहन ने सिर हिलाया।
मेरे खयाल में हम पोतेबाबा को बंदी बना लेंगे। देखते हैं।” जगमोहन बरबस ही मुस्करा पड़ा।
शाम के 3.30 बजे थे। जगमोहन और सोहनलाल कुछ देर पहले ही नींद से उठे थे। नहा-धोकर उन्होंने कपड़े बदले। जगमोहन सोहनलाल को धूप देता कह उठा। इसे जला दो। हाल में, बेडरूम में, किचन में। ताकि इसके धुएं में पोतेबाबा की आकृति से उसकी मौजूदगी का स्पष्ट एहसास पा सकें। धूप को इस तरह रखना कि इसका धुआं हर तरफ जाए।”
सोहनलाल धूप जलाने में व्यस्त हो गया। दस मिनट बाद इस काम से फारिग हुआ।
अब हर जगह धूप की स्मैल फैली हुई थी। धुआं वहां भरने लगा था। जगमोहन कॉफी बना लाया था। दोनों कॉफी के प्याले थामे सोफों पर आ बैठे थे। सोहनलाल बोला।।
देवराज चौहान का कोई फोन नहीं आया?”
“नहीं।” जगमोहन कॉफी का प्याला रखता कह उठा“उससे बात करता हूं।”
जगमोहन ने फोन निकालकर देवराज चौहान का नम्बर मिलाया।
“यहां के हालात उसे बताओगे?” सोहनलाल ने पूछा।
नहीं। मैं उसे व्यर्थ में चिंता में नहीं डालना चाहता।” नम्बर लग गया। देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी।
हैलो ।”
“तुम दिल्ली में ही हो?” जगमोहन ने पूछा।
हां। एक-दो दिन तक वापस जा जाऊंगा। वहां सब ठीक है?” उधर से देवराज चौहान ने पूछा।
सब ठीक है। लेकिन तुम दिल्ली में किस काम को कर रहे हो?”
“आकर बताऊंगा।”
मेरी जरूरत हो तो आ जाता हूं।”
नहीं। तुम्हारी ज़रूरत नहीं है।” बात करके जगमोहन ने फोन बंद किया।
“एक-दो दिन तक आने को कह रहा है।” जगमोहन ने सोहनलाल से कहा।
“पोतेबाबा नहीं आया अभी तक।” सोहनलाल बोला–“मैंने उसे दोपहर में आने को कहा था।”
“मैं तो दोपहर में ही आ गया था।” पोतेबाबा की आवाज उन्हें सुनाई दी।
जगमोहन और सोहनलाल की निगाहें आवाज की तरफ घूमीं।
चंद कदमों की दूरी पर, सोफे पर बैठे पोतेबाबा की धुएं में आकृति का आभास हुआ।