hotaks444
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नीतू भाभी का कामशास्त्र
नीतू भाभी अपने ख्यालों में कुच्छ डूबी हुई मेरी तरफ चुपचाप देखती रही. और फिर आहिस्ते से बोली, "जानते हो, मुझे तुमको यह सब सीखाना अच्छा लगता है. पता नही यह बात ठीक है कि नही. पर मुझे बहुत अच्छा लगता है. तुमको भी अच्छा लग रहा है ना? तुम भी कुच्छ कुच्छ सोचते रहते हो?"
"जी……"
"ज़रूर सोचते होगे…..है ना?"
वो अपने अंगूठे और दो उंगलियों से मेरे लंड के सूपदे को कभी पकड़कर दबाती, कभी मसालती, कभी सूपदे के टोपी के अंदर अपने नाख़ून से चारो तरफ धीरे से खरोचती.
"यह बहुत ज़रूरी होता है कि आपस मे इन बातों के बारें मे खुलापन हो….." वो अपनी हाथ मे मेरे खड़े लंड को देख रही थी. उनकी आवाज़ कुच्छ धीमी हो रही थी, और ऐसा लग रहा था कि वो अपनी ख्यालों मे डूब गयी हैं. "मैं सोच रही थी कि तुमको ठीक तरह से मज़ा लेना सिखाउ…..ठीक तरह से…….कुच्छ सोचना नही….कोई और ख्याल नही हो दिमाग़ मे….मज़े करते वक़्त सिर्फ़ मज़े करना……."
वो उंगलियाँ से मेरे सूपदे को बहुत ही प्यार से दबा रही थी, और बीच बीच मे आहिस्ते से सूपदे के छेद में नाख़ून से छेड़ रही थी. नीतू भाभी ने और रातों की तरह आज रात भी कमरे में एक छ्होटे कटोरे में कुच्छ गरम सरसो का तेल रख लिया था. उनकी उंगलियाँ सरसो के तेल में डुबोई हुई थी.
"समझ रहे हो, कि मैं क्या कह रही हूँ?"
"जी."
"मज़े करते समय, और कोई ख्याल नही होना चाहिए…..कुच्छ सोचना नही चाहिए…..सिर्फ़ मज़ा लेना और मज़ा देना…बस….सिर्फ़ मज़े का ख्याल!…" वो मेरे मेरे लंड को एक नज़र से देख रही थी और सूपड़ा के चारो तरफ अपनी उंगली को घुमा रही थी. बाहर चाँदनी रात थी, और खिड़की से चाँदनी की रोशनी आ रही थी. नीतू भाभी के बाल खुल गये थे और उनकी आँचल कब का गिर चुका था. मेरे जैसे लड़के को उनके बाल, उनका सुंदर चेहरा, उनकी आधी खुली हुई ब्लाउस से निकलती हुई चुचियाँ और उनका इकहरा बदन ही पागल बनाने के लिए काफ़ी था, पर वो तो अपनी हाथ से मेरे लंड को इस तरह प्यार से तरह तरह से दबा रही थी, नाख़ून से खरॉच रही थी मैं नशे मे मस्त हो रहा था. चाँदनी की उस रोशनी मे मेरा सरोसो के तेल मे मालिस किया लंड चमक रहा था, और नीतू भाभी की गेंहूआ रंग की मुथि और उंगलियों मे से मेरा लौदा बीच बीच में झाँकता, और फिर छुप जाता.
"यह मेरी एक ख्वाहिश है……सच पूच्छो तो मज़ा तो सभी इंसान कर ही लेते हैं…पर ज़्यादातर लोगों को बस थोरी देर के लिए प्यास बुझती हैं….ना मर्द पूरी तरह से खुश होते हैं और ना औरतें….जानते हो ना….ज़्यादातर औरतें प्यासी ही रह जाती हैं…..और चिर्चिरि मिज़ाज़ की हो जाती हैं…..और वही हाल मर्दों का भी!" भाभी ने इस बार मेरे सूपदे से लेकर लौदे के बिल्कुल जड़ तक दबा दिया. वो मेरे गांद के उपर अपनी उंगली भी फेर रही थी अब. मैने पूचछा, "नीतू भाभी, और क्या ख्वाहिशें हैं?"
"अभी नही बताउन्गि!…..अभी बस इतना ही!"
वो मेरे लंड को बहुत ही नाज़ुक सा सहला रही थी अब. फिर धीरे से हंस दी. कुच्छ शरमाते हुए, फिर बोली. "ख्याल तो बहुत हैं, पर क्या करूँ, थोरी शरम भी तो आती है!" मैं भाभी की चुचियों को ब्लाउस के अंदर ही हाथ डालकर आहिस्ते से दबा रहा था. वो चुप हो गयी. फिर आँखें मूंदकर एक गहरी साँस लेकर बोली," तुम्हारे हाथों में तो जादू है…..आह…आहह …...तुमको इतनी कम उमर मे ही औरतों के बदन का पूरा पता है….तुम्हारे हाथ तो सारे बदन में सिहरन ला देते हैं….हाअन्न्न्न!"
अब मैने नीतू भाभी की सारी को उतारने लगा. ब्लाउस के हुक्स खुले हुए थे और ब्रा भी उतर चुका था. उनकी चुचि के घुंडी को मैं मसल रहा था, और भाभी ने अपने पेटिकोट के नाडे को खोल दिया. नीतू भाभी फिर खरी हो गयी पर मुझसे कहा कि मैं उसी तरह बिस्तर के किनारे लेटा रहूं. अपनी पेटिकोट निकालकर भाभी आई और मेरे टाँगों के दोनो तरफ अपने पैरों को फैलाकर मेरे उपर आ गयी. मेरे सख़्त लंड को उन्होने फिर गौर से देखा और उसको अपनी हाथों मे पकड़े रखा. फिर अपनी चूतड़ कुच्छ उपर उठाकर उन्होने सूपदे को अपनी चूत की पत्तियों मे फँसा दिया, मानो उनकी चूत के पंखुरियाँ मेरे सूपदे को प्यार से, हल्के से चूम रही हो!
मैं ने अपना कमर थोड़ा उठाया,"एम्म."
"अच्छा लग रहा है?"
"जी……….…. हां"
"आहिस्ते से? ……इस तरह?"
"म्म्म, जी."
उनकी नज़र मेरे चेहरे पर थी. मेरे चेहरे को गौर से देख रही थी कि मुझे कैसा लग रहा है उनका मेरे सूपदे को अपनी बुर की पट्टियों पर रगड़ना. हल्का हल्का रगड़ना, और कभी कभी बुर के झाँत मे ज़ोर्से रगड़ना. बोली, "जब मेरे हाथ
में तुम्हारा लंड सख़्त होने लगता है ना, तो मुझे बहुत मज़ा आता है…. मुरझाया हुआ लंड जब बड़ा होने लगता है….बड़ा होता जाता है….बड़ा और गरम!" वो अब अपने घुटनों के बल बैठ गयी और मुझसे कहा, " लो, तुम मेरी चूत के दाने को प्यार करो….जब तक मैं तुम्हारे इस लौदे को एक गरम लोहे का हथौरा बना देती हूँ!"
मैने उनकी चूत को खोलकर उनके अंदर के दाने को सहलाने लगा, उसपर उंगली को फेरने लगा. उनसे पूचछा, "इस तरह?"
उन्होने आँख मूंद ली, जैसे की बिल्कुल मशगूल होकर किसी चीज़ का ज़ायज़ा ले रही हों. जैसे कुच्छ माप रही हों. " हां….इसी तरह…… आहिस्ता…….आहिस्ता….हाअन्न्न्न"
वो मेरे उपर ही घुटनों के बल बैठी रहीं और मेरे लौदे को और भी गरम करती रहीं, और जैसे मैं उनके चूत में अपनी उंगली घुमा रहा था मैं ने अपने गर्दन को आगे बढ़ाकर उनकी चुचि को अपने मुँह में लेने लगा. उनकी खूबसूरत,
गोल-गोल कश्मीरी सेब जैसी चुचियाँ मेरे मॅन को लुभा रही थी. जैसे मैने चुचि के घुंडी को मुँह मे लेकर चूसा, वो सिहर गयी और बोली,"बस….इसी तरह से..मुँह मे लेकर आहिस्ते से चूसो ….हां…..अभी ज़ोर्से नही…..हान्न्न्न…..इसी तरह…….अभी बस चूसो."
अब उनकी साँसें बढ़ने लगी. जल्दी ही उन्होने कहा, "अब लो….", और अपने घुटनों के बल उठकर उन्होने नीचे मेरे लौदे के तरफ गौर किया और उसको बिल्कुल सीधा खरा किया. अपने साँस को रोकते हुए और मेरे लौदे को अपने मुथि में उसी तरह से पकरे हुए अब उन्होने अपनी गीली चूत पर उपर से नीचे, फिर नीचे उपर रगड़ कर मेरी तरफ प्यार से देखा. मेरी तो हालत खराब हो रही थी; अब रुकना बेहद मुश्क़िल हो रहा था. मेरे मुँह से सिसकारी निकलने लगी.
"अच्छा लग रहा है?", उन्होने पूचछा.
"म्म्म्मम….जी"
"मुझे भी मज़ा आ रहा है……म्म्म्मममम…………अहह…." नीचे देखते
हुए वो बोली, "जानते हो……..उमर के हिसाब से तुम्हारा लौदा काफ़ी बड़ा है…… बहुत कम मर्दों का इतना तगड़ा लौदा होता है…… मुझे तो ताज्जुब होता है कि तुम कितने सख़्त और गरम हो जाते हो! अहह …. ह्म्म्म्मम"
वो मेरे सूपदे के टिप को अपनी बुर के अंदर लेकर मेरे कंधों पर अपनी हथेली रख दी. " अब तुम आराम से मज़ा लो, जबतक मैं तुम्हारे लौदे को अपनी चूत में लेती हूँ. आराम से….मज़ा लो……कोई जल्दिबाज़ी नही… जब लगे कि झरने लगॉगे….तो उस से पहले बता देना…..ठीक?"
"जी….ठीक!"
नीतू भाभी अपने ख्यालों में कुच्छ डूबी हुई मेरी तरफ चुपचाप देखती रही. और फिर आहिस्ते से बोली, "जानते हो, मुझे तुमको यह सब सीखाना अच्छा लगता है. पता नही यह बात ठीक है कि नही. पर मुझे बहुत अच्छा लगता है. तुमको भी अच्छा लग रहा है ना? तुम भी कुच्छ कुच्छ सोचते रहते हो?"
"जी……"
"ज़रूर सोचते होगे…..है ना?"
वो अपने अंगूठे और दो उंगलियों से मेरे लंड के सूपदे को कभी पकड़कर दबाती, कभी मसालती, कभी सूपदे के टोपी के अंदर अपने नाख़ून से चारो तरफ धीरे से खरोचती.
"यह बहुत ज़रूरी होता है कि आपस मे इन बातों के बारें मे खुलापन हो….." वो अपनी हाथ मे मेरे खड़े लंड को देख रही थी. उनकी आवाज़ कुच्छ धीमी हो रही थी, और ऐसा लग रहा था कि वो अपनी ख्यालों मे डूब गयी हैं. "मैं सोच रही थी कि तुमको ठीक तरह से मज़ा लेना सिखाउ…..ठीक तरह से…….कुच्छ सोचना नही….कोई और ख्याल नही हो दिमाग़ मे….मज़े करते वक़्त सिर्फ़ मज़े करना……."
वो उंगलियाँ से मेरे सूपदे को बहुत ही प्यार से दबा रही थी, और बीच बीच मे आहिस्ते से सूपदे के छेद में नाख़ून से छेड़ रही थी. नीतू भाभी ने और रातों की तरह आज रात भी कमरे में एक छ्होटे कटोरे में कुच्छ गरम सरसो का तेल रख लिया था. उनकी उंगलियाँ सरसो के तेल में डुबोई हुई थी.
"समझ रहे हो, कि मैं क्या कह रही हूँ?"
"जी."
"मज़े करते समय, और कोई ख्याल नही होना चाहिए…..कुच्छ सोचना नही चाहिए…..सिर्फ़ मज़ा लेना और मज़ा देना…बस….सिर्फ़ मज़े का ख्याल!…" वो मेरे मेरे लंड को एक नज़र से देख रही थी और सूपड़ा के चारो तरफ अपनी उंगली को घुमा रही थी. बाहर चाँदनी रात थी, और खिड़की से चाँदनी की रोशनी आ रही थी. नीतू भाभी के बाल खुल गये थे और उनकी आँचल कब का गिर चुका था. मेरे जैसे लड़के को उनके बाल, उनका सुंदर चेहरा, उनकी आधी खुली हुई ब्लाउस से निकलती हुई चुचियाँ और उनका इकहरा बदन ही पागल बनाने के लिए काफ़ी था, पर वो तो अपनी हाथ से मेरे लंड को इस तरह प्यार से तरह तरह से दबा रही थी, नाख़ून से खरॉच रही थी मैं नशे मे मस्त हो रहा था. चाँदनी की उस रोशनी मे मेरा सरोसो के तेल मे मालिस किया लंड चमक रहा था, और नीतू भाभी की गेंहूआ रंग की मुथि और उंगलियों मे से मेरा लौदा बीच बीच में झाँकता, और फिर छुप जाता.
"यह मेरी एक ख्वाहिश है……सच पूच्छो तो मज़ा तो सभी इंसान कर ही लेते हैं…पर ज़्यादातर लोगों को बस थोरी देर के लिए प्यास बुझती हैं….ना मर्द पूरी तरह से खुश होते हैं और ना औरतें….जानते हो ना….ज़्यादातर औरतें प्यासी ही रह जाती हैं…..और चिर्चिरि मिज़ाज़ की हो जाती हैं…..और वही हाल मर्दों का भी!" भाभी ने इस बार मेरे सूपदे से लेकर लौदे के बिल्कुल जड़ तक दबा दिया. वो मेरे गांद के उपर अपनी उंगली भी फेर रही थी अब. मैने पूचछा, "नीतू भाभी, और क्या ख्वाहिशें हैं?"
"अभी नही बताउन्गि!…..अभी बस इतना ही!"
वो मेरे लंड को बहुत ही नाज़ुक सा सहला रही थी अब. फिर धीरे से हंस दी. कुच्छ शरमाते हुए, फिर बोली. "ख्याल तो बहुत हैं, पर क्या करूँ, थोरी शरम भी तो आती है!" मैं भाभी की चुचियों को ब्लाउस के अंदर ही हाथ डालकर आहिस्ते से दबा रहा था. वो चुप हो गयी. फिर आँखें मूंदकर एक गहरी साँस लेकर बोली," तुम्हारे हाथों में तो जादू है…..आह…आहह …...तुमको इतनी कम उमर मे ही औरतों के बदन का पूरा पता है….तुम्हारे हाथ तो सारे बदन में सिहरन ला देते हैं….हाअन्न्न्न!"
अब मैने नीतू भाभी की सारी को उतारने लगा. ब्लाउस के हुक्स खुले हुए थे और ब्रा भी उतर चुका था. उनकी चुचि के घुंडी को मैं मसल रहा था, और भाभी ने अपने पेटिकोट के नाडे को खोल दिया. नीतू भाभी फिर खरी हो गयी पर मुझसे कहा कि मैं उसी तरह बिस्तर के किनारे लेटा रहूं. अपनी पेटिकोट निकालकर भाभी आई और मेरे टाँगों के दोनो तरफ अपने पैरों को फैलाकर मेरे उपर आ गयी. मेरे सख़्त लंड को उन्होने फिर गौर से देखा और उसको अपनी हाथों मे पकड़े रखा. फिर अपनी चूतड़ कुच्छ उपर उठाकर उन्होने सूपदे को अपनी चूत की पत्तियों मे फँसा दिया, मानो उनकी चूत के पंखुरियाँ मेरे सूपदे को प्यार से, हल्के से चूम रही हो!
मैं ने अपना कमर थोड़ा उठाया,"एम्म."
"अच्छा लग रहा है?"
"जी……….…. हां"
"आहिस्ते से? ……इस तरह?"
"म्म्म, जी."
उनकी नज़र मेरे चेहरे पर थी. मेरे चेहरे को गौर से देख रही थी कि मुझे कैसा लग रहा है उनका मेरे सूपदे को अपनी बुर की पट्टियों पर रगड़ना. हल्का हल्का रगड़ना, और कभी कभी बुर के झाँत मे ज़ोर्से रगड़ना. बोली, "जब मेरे हाथ
में तुम्हारा लंड सख़्त होने लगता है ना, तो मुझे बहुत मज़ा आता है…. मुरझाया हुआ लंड जब बड़ा होने लगता है….बड़ा होता जाता है….बड़ा और गरम!" वो अब अपने घुटनों के बल बैठ गयी और मुझसे कहा, " लो, तुम मेरी चूत के दाने को प्यार करो….जब तक मैं तुम्हारे इस लौदे को एक गरम लोहे का हथौरा बना देती हूँ!"
मैने उनकी चूत को खोलकर उनके अंदर के दाने को सहलाने लगा, उसपर उंगली को फेरने लगा. उनसे पूचछा, "इस तरह?"
उन्होने आँख मूंद ली, जैसे की बिल्कुल मशगूल होकर किसी चीज़ का ज़ायज़ा ले रही हों. जैसे कुच्छ माप रही हों. " हां….इसी तरह…… आहिस्ता…….आहिस्ता….हाअन्न्न्न"
वो मेरे उपर ही घुटनों के बल बैठी रहीं और मेरे लौदे को और भी गरम करती रहीं, और जैसे मैं उनके चूत में अपनी उंगली घुमा रहा था मैं ने अपने गर्दन को आगे बढ़ाकर उनकी चुचि को अपने मुँह में लेने लगा. उनकी खूबसूरत,
गोल-गोल कश्मीरी सेब जैसी चुचियाँ मेरे मॅन को लुभा रही थी. जैसे मैने चुचि के घुंडी को मुँह मे लेकर चूसा, वो सिहर गयी और बोली,"बस….इसी तरह से..मुँह मे लेकर आहिस्ते से चूसो ….हां…..अभी ज़ोर्से नही…..हान्न्न्न…..इसी तरह…….अभी बस चूसो."
अब उनकी साँसें बढ़ने लगी. जल्दी ही उन्होने कहा, "अब लो….", और अपने घुटनों के बल उठकर उन्होने नीचे मेरे लौदे के तरफ गौर किया और उसको बिल्कुल सीधा खरा किया. अपने साँस को रोकते हुए और मेरे लौदे को अपने मुथि में उसी तरह से पकरे हुए अब उन्होने अपनी गीली चूत पर उपर से नीचे, फिर नीचे उपर रगड़ कर मेरी तरफ प्यार से देखा. मेरी तो हालत खराब हो रही थी; अब रुकना बेहद मुश्क़िल हो रहा था. मेरे मुँह से सिसकारी निकलने लगी.
"अच्छा लग रहा है?", उन्होने पूचछा.
"म्म्म्मम….जी"
"मुझे भी मज़ा आ रहा है……म्म्म्मममम…………अहह…." नीचे देखते
हुए वो बोली, "जानते हो……..उमर के हिसाब से तुम्हारा लौदा काफ़ी बड़ा है…… बहुत कम मर्दों का इतना तगड़ा लौदा होता है…… मुझे तो ताज्जुब होता है कि तुम कितने सख़्त और गरम हो जाते हो! अहह …. ह्म्म्म्मम"
वो मेरे सूपदे के टिप को अपनी बुर के अंदर लेकर मेरे कंधों पर अपनी हथेली रख दी. " अब तुम आराम से मज़ा लो, जबतक मैं तुम्हारे लौदे को अपनी चूत में लेती हूँ. आराम से….मज़ा लो……कोई जल्दिबाज़ी नही… जब लगे कि झरने लगॉगे….तो उस से पहले बता देना…..ठीक?"
"जी….ठीक!"