Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास ) - Page 9 - SexBaba
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Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )

"तब तुम मुझे लेजर दोगे ?"

"हां । वादा ।"

"लेजर से मुझे क्या हासिल होगा ?"

"उससे तुम्हें मालूम होगा कि एलैग्जैण्डर के दो नंबर के पैसे का हिसाब क्या है। यह सबूत मिलेगा कि वह शैली भटनागर को और चावला उसे ब्लैकमेल कर रहा था।"

"यह शैली भटनागर कौन हुआ ?
" मैं बताया, सविस्तार बताया।
"इस लिहाज से तो वह भी गुनहगार हो सकता है।"
"कमला चावला का पीछा छोड़ो तो कोई भी गुनहगार हो सकता है।"
"हो सकता होगा। लेकिन फिलहाल तो मेरा पसंदीदा कैंडीडेट वही है ।"
"यह बात तुम्हें अजीब नहीं लगती कि कमला चावला जैसी नाजुक औरत चौधरी जैसे गोरिल्ले पर चाकू का घातक वार कर पाई ?"
"अजीब लगती है लेकिन नामुमकिन नहीं लगती । वह चाकू बड़ा अनोखा है। चाकू की जगह उसे खंजर कहा जाए तो ज्यादा मुनासिब होगा । ये लंबा तो फल था उसका और धार ऐसी पैनी कि कागज से पतली ।"
"आहे से थोड़ा मुड़ा हुआ ?" - मैं बौखलाकर बोला - "दस्ते के पास सितारा बना हुआ ?"
"हां ।"
"दस्ता ऐसा जैसे उस पर किसी जानवर की खाल मढ़ी हुई हो ?"
"हां ।
तुमने कब देख लिया वो चाकू ?"
"वो चाकू है कहां ?"
"मेरे पास है।"
"दिखाओ !
" उसने मेज की दराज से चाकू निकालकर मेरे सामने रख दिया। मेरा रहा-सहा शक भी दूर हो गया।' वह चाकू आपके खादिम का था। "इस पर किसी की उंगलियों के निशान मिले ?" - कई क्षण की खामोशी के बाद मैंने सवाल किया ।
"नहीं ।"
"यह चाकू मेरा है।"
"वो तो चाकू का जिक्र सुनकर तुम्हारे बौखलाने से ही मुझे महसूस हो रहा था ।"
राद पून "और इसमें एक ऐसी जिनेशन है जिसकी वजह से हत्यारे को पकड़ा जाना लाजिमी है।"
"ऐसी क्या खास बात है इराओं ?" - एकदम चौकन्ना हो उठा।
"यह चाकू बरतर के एक दिनासी कबीले में इस्तेमाल होता है। खास बात इसके हत्थे में है । इस चाकू पर एक ऐसे जानवर की खाल में हुई है जिस पर कि कील जैसे सख्त और सुई जैसे बारीक कांटे उगते हैं। वे कांटे इतने सूक्ष्म होते है कि न तो आंखों को दिखाई देते हैं और न स्पर्श से महसूस होते हैं यानि कि आमतौर पर सहज भाव से अगर चाकू को हैंडल रो पड़। ७||ए ॥ ते कांटे हथेली को नहीं चुभते लेकिन किसी पर वार करने की नीयत से चाकू का हैंडल हथेली में जकड़वार थाना होता है और उसे जोर लगाकर शत्रु के जिस्म में धकेलना होता है । इसलिए ऐसा । करने पर वे वांटे खड़े हो जाते हैं और वार करने वाले की हथेली में धंस जाते हैं । कहने का मतलब यह है कि जिस किसी ने भी इस चाकू का पाक वार चौधरी पर किया था, उसका हाथ जरूर लहूलुहान हो गया होगा और अब इस कस के संदिग्ध व्यक्तियों के हाथों का मुआयना करके ही यह जाना जा सकता है कि हत्यारा कौन है !"
"ऐसा अजीब चाकू है या !" - यादव मंत्रमुग्ध स्वर में बोला। "हां । किसे कबीले की यह ईजाद है, वे किसी के कत्ल की बड़ा गंभीर और जिम्मेदारी का मामला समझते हैं । वे कहते हैं कि मारने वाले को भी अपने कुकृत्य का एहसास होना चाहिए और इसीलिए यह चाकू बनाया गया है कि जब हत्प्राण का खून बहे तो हत्यारे का भी खून बहे ।”
"कमाल है !
देखने में तो हैंडल में कोई खासियत दिखाई नहीं देती ।”
"लेकिन है ।"
"तुम मुझे कोई कहानी तो नहीं सुना रहे हो ?"
"यह कहानी नहीं, हकीकत है और तुम्हारे केस का हल है । जिस किसी ने भी चौधरी के सीने में खंजर उतारा है, उसकी हथेली तुम्हें घायल मिलेगी।" यादव का ध्यान मेरी बात की तरफ नहीं था । वह बड़ी बारीकी से चाकू के हैंडल का मुआयना कर रहा था और मेरी बात से कतई आश्वस्त नहीं लग रहा था।
एकाएक उसने चाकू को हैंडल से थमा और उसका एक भीषण प्रहार लकड़ी की मेज पर किया । चाकू का फल लकड़ी में धंस गया । उसने तुरंत दस्ते पर से अपना हाथ हटा लिया । चाकू झनझनाता हुआ कुछ क्षण आगे-पीछे झूलता रहा और फिर स्थिर हो गया। यादव हक्का-बक्का सा अपनी हथेली को देख रहा था, जिस पर से उस वक्त खून के बड़े सूक्ष्म फव्वारे छूट रहे थे।
“मुझे दर्द तो नहीं हो रहा ।" - वह बोला ।
"इसलिए क्योंकि पंक्चर बूंड (जख्म) सुई से भी बारीक है । लेकिन बाद में होगा ।
ऐसा अनोखा चाकू तुम्हारे पास कहां से आया ?"
"उस कबीले की एक लड़की ने मुझे यह भेंटस्वरूप दिया था।"
"मैं अभी कमला चावला को यहां तलब करता हूं। अगर उसकी हथेली घायल हुई तो खेल आज ही खत्म हो जाएगा
"उसे ही क्यों तलब करते हो ? कस से संबन्धित सारे व्यक्तियों को एक जगह इकट्ठा क्यों नहीं करते हो ? इस तरह तुम अलग-अलग एक-एक के पीछे भागने से बच जाओगे।"
“मुझे मिसेज चावला से आगे नहीं भागना पड़ेगा।"
*****************
 
"शायद तुम्हारी यह मुराद पूरी न हो।"
"लेकिन मिसेज चावला का हाथ तो मैं अभी देखेगा ।"
"बहुत बड़ी गलती करोगे । अगर हत्यारी वह न हुई लेकिन हत्यारे से उसका गंठजोड़ हुआ तो वह हत्यारे को चेतावनी नहीं दे देगी कि तुम किस फिराक में हो !"
“हत्यारा क्या करेगा ? वह अपना हाथ काटकर फेंक देगा या उसे किसी स्वस्थ हाथ से बदल लेगा ?"
"वह गायब हो जाएगा और तब प्रकट होगा जब उसका हाथ एकदम ठीक हो चुका होगा ।
" वह बात यादव को जंची ।
"ठीक है ।" - वह निर्णयात्मक स्वर में बोला - "आज शाम आठ बजे में केस से संबन्धित सारे लोगों को मिसेज चावला की कोठी पर जमा करूगा । तुम भी आना ।"
"मैं जरूर आऊंगा ।
और तुम बंबई पुलिस से संपर्क जरूर करना ।"
"करूगा ।
कल मुझे लेजर बुक मिल जाये ।"
"जरूर मिल जाएगी ।"
"न मिली तो तुम्हारी खैर नहीं ।"
"न का कोई मतलब ही नहीं ।”
"फूटो ।”
"यानि कि मैं आजाद हूं?"
"अब क्या लिखकर देना होगा ?"
"नहीं । ऐसे ही चलेगा।" मैं वहां से विदा हो गया। मैं ग्रेटर कैलाश पहुंचा। वहां अपने फ्लैट के आगे मुझे एलैग्जैण्डर की इम्पाला खड़ी न दिखाई दी। यानी कि एलेग्जैण्डर या उसके चमचे का एक फेरा और वहां लग चुका था।
अपने फ्लैट में मुझे वो अव्यवस्था न दिखाई दी जो कि पुलिस और एलैग्जैण्डर के आदमियों के वहां आगमन के बाद अपेक्षित थी । मैं यह तक अंदाजा न लगा सका कि चौधरी की लाश मेरे बैडरूम में पाई गई थी या ड्राइंगरूम में ।।
अच्छी और संतोषजनक खबर यह थी कि लैजर बुक टॉयलेट में अपनी जगह मौजूद थी। मैंने ऑफिस में फोन किया। "दिस इज यूअर एम्प्लायर स्पीकिंग।" - डॉली लाइन पर आई तो मैं बोला।
"नहीं हो सकता।" –
मेरी मेहरबान सैक्रेट्री बोली - "मेरा एम्प्लायर तो जेल में है।"
अरे, मैं ही बोल रहा हूं।" मैं झल्लाया - "राज ।"
“कमाल है ! यानी कि अब जेल की कोठरियों में भी टेलीफोन लग गए हैं !"

"मैं अपने फ्लैट से बोल रहा हूं।"
"अछ। ! बड़ी जल्दी छूट गए आप !"
"अफसोस हो रहा होगा तुम्हें इस बात का !"
"नहीं, मैं तो आपके लिए बहुत फिक्रमंद थी ।"
"फिक्रमंद भी तो कुछ किया नहीं ?"
"वया वरती ?"
"किसी वकील के पास जाती । मुझे जमानत पर छुड़ाने की कोशिश करती ।"
"सॉरी । भूल गयी । अगली बार ऐसा ही करूगी ।" ।
"यानि कि तुम्हें भूल-सुधार का मौका देने के लिए मुझे फिर गिरफ्तार होना पड़ेगा ?"
"कितने समझदार हैं आप !"
"और कितनी कमबख्त हो तुम !"
वह हंसी।
"हंस रही हो ? यानी कि बेवकूफ भी हो ? यह भी नहीं जानती हो कि कब हंसना होता है, कब रोना होता है ?"
"जानती हूं । हंस रही हूं लेकिन फूट-फूटकर । चाहें तो आकर देख लीजिये।"
"मेरा कोई फोन आया था ?"
 
"सिर्फ मिसेज चावला का । मैं उसे समझाया कि आप जेल में थे और वहां से आपके छूटते-छूटते सन बदल सकता है लेकिन वो है फिर भी बार-बार फोन किए जा रही है। दिलोजान से फिदा मालूम होती है वो आप पर ।"
जवाब मैंने फोन बंद करके दिया। मैंने कमला चावला को फोन किया। वह लाइन पर आई तो मैं बोला - "शर्मा बोल रहा हूं।"
"जेल से छूट गए !" - वह बोली ।
"हां ।"
"कैसे छूटे ?"
"वैसे ही जैसे कोई बेगुनाह आदमी छूटता है।"
"लेकिन पेपर में तो..."
"पेपर को छोड़ो । तुम्हारी जानकारी के लिए खुद पुलिस मेरी गवाह है कि चौधरी का खून मैंने नहीं किया ।"
"अच्छा ! वो कैसे ?"
"कल रात पुलिस का एक आदमी तुम्हारी कोठी की निगरानी कर रहा था। वही इस बात का गवाह है कि कल सारी रात मैं कोठी से बाहर नहीं निकला था।"
,,, उसके छक्के छूट गए।
"क..कोई पुलिस का आदमी....क..कोठी की निगरानी कर रहा था ?"
"हां ।"
"ऐसा नहीं हो सकता !"
"क्यों नहीं हो सकता ?"
"अगर ऐसा कोई आदमी होता तो..."
"तो वह तुम्हें दिखाई दिया होता । यही कहने जा रही थीं न तुम ?"
“राज, मैं तुमसे मिलना चाहती हूं।"
"जरूर । मैं शाम को हाजिर होऊंगा।"
"अभी आओ ।”
"अभी मुमकिन नहीं । अभी मुझे बहुत काम है।"
"लेकिन मेरे काम की अहमियत तुम्हारी निगाह में ज्यादा होनी चाहिए । आखिर मैं..."
"सी यू स्वीटहार्ट !" मैंने लाइन काट दी।
अब शाम तक तो वह यह सोच-सोचकर तड़पती कि पिछली रात का उसका कोठी से डेढ़ घंटे के लिए गायब होना कोई राज नहीं रहा था। मैंने नहा-धोकर नए कपड़े पहने । फिर टॉयलेट की टंकी में से मैंने लैजर बुक निकाली और उसे लेकन एन ब्लाक मार्केट पहुंचा। वहां से मैंने लैजर बुक के हर पेज की जेरोक्स कॉपी बनवाई।
मैं करोल बाग पहुंचा। हरीश पाण्डे अपने घर पर मौजूद था जो कि अच्छा था । वह वहां न मिलता तो मुझे उसकी तलाश में कई जगह भटकना पडता ।।
हम बैठ गए तो मैंने सवाल किया - "अब जरा ठीक से बताओ । कल क्या हुआ था ?"
"कल मैंने बताया तो था ।”
"वो पुलिस को बताया था।"
"एक ही बात न हुई ?"
"नहीं हुई। और मेरे साथ ज्यादा पसरने की कोशिश मत करो । कल तुम्हारे माथे पर लिखा था कि तुम पुलिस को मुकम्मल बात नहीं बता रहे थे।"
"लेकिन..."
"अब बक भी चुको ।”
"अच्छा, सुनो । साढ़े सात बजे के करीब मैं वहां पहुंचा था। अभी मैं बंगले का जुगराफिया ही समझने की कोशिश
,,, कर रहा था कि वहां एक टैक्सी पहुंची थी और हाथ में एक एयरबैग लिए एक सूट-बूटधारी व्यक्ति उसमें से बाहर निकला था। वह सीधा जूही चावला के बंगले में दाखिल हो गया था।"
"तुम कहां थे?"
"सड़क के पार । एक लैम्पपोस्ट के पीछे ।"
"फिर ?"
 
- "बंगले के मुख्यद्वार पर जाकर उसने कॉलबेल बजाई । दरवाजा खुला । वह भीतर दाखिल हो गया और मेरी निगाहों से ओझल हो गया। मैं बदस्तूर बाहर जमा रहा । फिर कोई पौने घंटे के बाद दरवाजा खुला और एयरबैग वाला जो आदमी भीतर गया था, वह एक खूबसूरत औरत के साथ बाहर निकला । वे दोनों कम्पाउंड में खड़ी एक सफेद मारुति में सवार हो गए । ड्राइविंग सीट पर औरत बैठी थी और वह आदमी उसकी बगल में । फिर कार वहां से चली गई । दस-पंद्रह मिनट मैंने बंगले से बाहर ही बिताये । जब वह कार वापिस न लौटी तो मैंने बंगले के कम्पाउंड में कदम रखा। कई बार मेंने कॉलबेल बजाई । दरवाजा भी ट्राई किया लेकिन वो बंद था। मैंने यही समझा कि मेरे वहां पहुंचने से पहले ही जूही कहीं चली गई थी। मैं उसके इंतजार में बंगले के बरामदे में बैठ गया।" "यानि कि जो औरत मारूती पर वहां से गई थी, वो जूही नहीं थी ?"
"नहीं।"
"फिर ?"
"फिर कोई एक घंटा मैं वहां बैठा रहा । जब कोई मुझे पहुंचता न दिखाई दिया तो मैं पिछवाड़े में पहुंचा। पिछवाड़े के भी तमाम दरवाजे बंद थे लेकिन वहां किचन के दरवाजे और रोशनदान की झिर्रियों में से निकलती गैस की गंध मेरे नथुनों से टकराई । मैंने रोशनदान पर चढ़कर भीतर किचन में झांका तो मैंने जूही को किचन के फर्श पर पड़ा पाया। तब मैंने पुलिस को फोन कर दिया।"
"जो आदमी टैक्सी पर वहां आया था, उसका हुलिया बयान करो ।”
"नाम ही न बता दें उसका ?
" मैंने घूरकर पाण्डेय को देखा। "तुम्हें उस शख्स का नाम मालूम है ?"
"हां ।”
"क्या नाम है उसका?"
"सोनी साहब ।"
"तुम्हें कैसे मालूम? तुम उस आदमी को पहचानते हो ?"
"नहीं ।”
"तो?"
"कॉलबैल के जवाब में जब जूही ने बंगले का दरवाजा खोला था तो उसने उस शख्स की शक्ल देखते ही बड़ी घबराहट में कहा था - "सोनी साहब, आप फिर आ गए ?"
"तुमने उसे सोनी साहब कहते साफ सुना था ?"
"हां ।”
,,,
"उसका हुलिया फिर भी बयान करो।"
उसने किया।
वह सरासर वकील बलराज सोनी का हुलिया बयान कर रहा था। मैं गोल्फ लिंक पहुंचा।
वहां चावला की कोठी के कम्पाउंड में जहां कई वाहन खड़े थे, वहां उनमें एक पुलिस जीप भी थी। विशाल ड्राइंगरूम में मुझे सब लोग मौजूद मिले । वकील बलराज सोनी और कमला चावला एक तरफ एक सोफे पर बैठे थे और सिर जोड़े किसी बड़ी संजीदा बात पर बहस मुबारसा कर रहे थे। एलेग्जैण्डर और शैली भटनागर एक अन्य सोफे पर इकट्टे बैठे दिखाई दिए। उनमें भी गुफ्तगू का माहौल गर्म था । कस्तूरचन्द और सब-इंस्पेक्टर यादव एक -एक सोफाचेयर पर अकेले बैठे थे।
_ मैंने देखा, कस्तूरचन्द अपने हाथों में सफेद सूती दस्ताने पहने था।
सबकी निगाह मुझ पर पड़ी लेकिन मेरी क्लायंट समेत किसी के भी चेहरे पर ऐसा भाव न आया जैसे किसी को मेरे | आगमन से खुशी हुई हो । अलबत्ता यादव अपने स्थान से उठा और मेरे करीब आकर मुझे बांह पकड़कर ड्राइंगरूम से बाहर स्विमिंग पूल वाली साइड के लॉन में ले आया।
"मैंने बम्बई पुलिस से बात की थी ।" - वह बोला ।
"अच्छा ! क्या मालूम हुआ ?"
"यह कि शैली भटनागर कभी बम्बई में अमर चावला का मैनेजर हुआ करता था। उसी ने कम्पनी के माल का कुछ ऐसा घोटाला किया था कि पुलिस केस बन गया था। तब वे एक फाइनांस कम्पनी चलाते थे और घोटाला पब्लिक के पैसे से ताल्लुक रखता था । इस वजह से जेल दोनों ही जा सकते थे लेकिन चावला किसी तरह बच गया - था और शैली भटनागर को दो साल कैद की सजा हुई थी । जेल से छुट्टकर भटनागर बम्बई छोड़कर दिल्ली आ गया था। तब से अब तक उसने फिर ऐसा कोई काम नहीं किया है जो इखलाकी या कानूनी तौर पर गलत समझा जाये।
 
"बशर्ते कि उसने चावला का कत्ल न किया हो जो कि इखलाकी और कानूनी दोनों ही तरीकों से गलत काम है।"
"वह कातिल हो सकता है ?"
"उद्देश्य तो है उसके पास । आखिर चावला ने अपने आपको सेफ करके उसे जेल भिजवाया था ।”
“यह तो कई साल पुरानी बात है !" ।
“कई लोगों की बासी कढ़ी में उबाल कुछ ज्यादा ही देर से आता है।"
"उसके पास चावला के कत्ल के वक्त की एलीबाई है।”
“तुमने चैक की है उसकी एलीबाई ?"
"हां।"
"कस्तूरचन्द दस्ताने पहने हुए है।"
“मैंने देखा है। अभी मालूम करते हैं कि वह क्यों दस्ताने पहने है।”
हम वापिस ड्राइंगरूम में दाखिल हुए। यादव फौरन ही कस्तूरचन्द से मुखातिब हुआ - "आप बरायमेहरबानी अपने दस्ताने उतारिये ।"

"काहे ?" - कस्तूरचन्द हड़बड़ाया।
"जो कहा जाये वो कीजिये ।”
“पिरन्तु काहे को ? म्हारे दस्तानों से आप नें के तकलीफ हुई गई ?"
,,, "आपको एतराज है दस्ताने उतारने से ?"
"एतराज तो नां है, पिरन्तु फिर भी थुम म्हारे ने दस्ताने पहने ही रहण दो।"
"क्यों ?"
"क्योंकि म्हारे दोनों हाथां पर लाल - लाल छाले पड़े हुए हूं और कई जगहों यूं खाल फटी पड़ी हूं । नजारा घना खराब हूं । देखा न जावेगा थारे हूं।"
"ऐसा कैसे हो गया?"
"म्हारे बागवानी के शौक से हो गया । कोई जहरीला कांटा चुभ गया दोनों हाथां मां ।"
"फिर भी आप दस्ताने उतारिये । हम नजारा बर्दाश्त कर लेंगे।"
"अजीब बात हूं या तो । आप म्हारे दस्तानों के पीछू के पड़े हुए हूं ?"
"कस्तूरचन्द जी । प्लीज ! कहना मानिए । यह एक पुलिस इनक्वायरी है, जिसके लिए आपको दस्ताने उतारना जरूरी है।"
"अच्छा !"
उसने दोनों दस्ताने उतारे और अपने हाथ सामने फैला दिए । नजारा वाकई हौलनाक था । उसकी हथेलियां सूजकर लाल सुर्ख हो गई थीं और उन पर कुछ फूटे हुए और कुछ अभी भी सलामत छाले दिखाई दे रहे थे। ऊपर से दोनों हथेलियों पर कोई सफेद मलहम सी मली दिखाई दे रही थी। उतना बुरा हाल मेरे अनोखे चाकू से, और वह भी दोनों हथेलियों का, नहीं हो सकता था।
"शुक्रिया ।" - यादव तनिक आंदोलित स्वर में बोला - "आप दस्ताने पहन लीजिये।"
वह दस्ताने पहन चुका तो तभी मौजूद लोगों ने दोबारा उसकी तरफ निगाह डाली।
“साहबान" - यादव गंभीरता से बोला - "तीन दिन में तीन कत्ल हो चुके हैं और हालात बताते हैं कि तीनों कत्ल किसी एक आदमी का काम है। यहां आप लोगों को इसलिए तलब नहीं किया गया क्योंकि हमें आप में से किसी के कातिल होने का शक है बल्कि आपको इसलिए तलब किया गया है कि आप सब लोग किसी-न-किसी रूप में किसी-न-किसी हत्प्राण से सम्बंधित थे और आप हमें ऐसा कुछ बता सकते हैं जो कि इन हत्याओं के केस को सुलझाने में मददगार साबित हो सकता है। मसलन मिसेज चावला पहले हत्प्राण की बेवा हैं और कस्तूरचन्द जी एक तरह से पहले हत्प्राण के लैंडलार्ड थे। मिस्टर एलेग्जेंडर का हत्प्राण नम्बर तीन, चौधरी, कर्मचारी था। सोनी । साहब हत्प्राण नम्बर एक के वकील थे और मिस्टर भटनागर हत्प्राण नंबर दो, जूही चावला, के एम्प्लायर थे । राज एक प्राइवेट डिटेक्टिव है जो कि मौजूदा केस में मिसेज चावला की मुलाजमत में है।" एक-एक नाम लेते समय यादव उनके हाथों का भी मुआयना कर रहा था । मेरी भी निगाह हर किसी की दायीं हथेली पर थी ।
किसी भी हथेली पर चाकू के दस्ते से बने पंक्चर मार्क नहीं थे।
"मैं आपसे उम्मीद करता हूं" - यादव आगे बढ़ा - "कि एक जिम्मेदार शहरी होने के नाते आप पुलिस को सहयोग देंगे ताकि अपराधी गिरफ्तार हो सके और अपने किये की सजा पा सके । मुझे उम्मीद है कि आप लोग मेरे इस सवाल । का सीधा, सच्चा और ईमानदाराना जवाब देंगे। कोई-न-कोई सवाल आपको नागवार भी गुजर सकता है लेकिन उसका भी जवाब आप पुलिस पर यह भरोसा दिखाते हुए दीजियेगा कि उसका पूछा जाना जरूरी था।" सबने बड़ी संजीदगी से सहमति में सर हिंलाया।
,,, "तो मैं आप लोगों से सहयोग की उम्मीद रखू ?"
सबने हामी भरी । "मिस्टर एलैग्जैण्डर, आपका आदमी चौधरी शर्मा के फ्लैट में मरा पाया गया । हमें पहले से गारंटी न होती कि शर्मा उसके कत्ल के लिए जिम्मेदार नहीं हो सकता था तो जरूर शर्मा इस वक्त हवालात में होता । मैं आपसे यह पूछना चाहता हूं कि चौधरी शर्मा के फ्लैट में कैसे पहुंच गया ?"

= "जरूर शर्मा से बदला उतारने की नीयत से ही पहुंचा होगा ।" - एलैग्जैण्डर सहज भाव से बोला - "परसों रात शर्मा उसकी इतनी धुनाई जो करेला था । चौधरी यूं किसी से चुपचाप पिट जाने वाला आदमी नहीं था।"
"यानी कि आपने उसे शर्मा के यहां नहीं भेजा था ?"
"अपुन ने ? काहे कू ?
शर्मा की धुलाई के वास्ते ?"
"नहीं ।
किसी ऐसी चीज की तलाश के वास्ते जिसके आप तलबगार थे और जो शर्मा के फ्लैट में हो सकती थी।"
“अपुन ऐसा नहीं कियेला है।
शर्मा !"
"हां ।" - मैं हड़बड़ाकर बोला ।
“तेरे को मालूम, अपुन खुद तेरे फ्लैट की तलाशी लियेला था ?"
"मालूम !"
"फिर ? जो एक काम अपुन खुद कियेला था, उसी को दोबारा चौधरी से कराने का मतलब ? क्या अपुन चौधरी जितना काबिल और होशियार आदमी भी नहीं ?"
मुझे कबूल करना पड़ा कि उसकी दलील में दम था।
"आपको" - यादव बोला -"तलाश किस चीज की थी ?"
| "थी कोई चीज ।" - एलैग्जैण्डर बोला - "उस चीज का कत्ल से कोई वास्ता नहीं । अपुन के पास इस बात के आधा दर्जन गवाह हैं कि जिस वक्त चावला का कत्ल हुआ था, उस वक्त अपुन छतरपुर से दो दर्जन मील दूर राजेन्द्रा प्लेस में, अपने ऑफिस में बैठेला था । जिस वक्त जूही चावला का खून हुआ था, उस वक्त अपुन पंजाबी बाग में उन्हीं छः गवाहों के साथ अपने घर पर बैठेला था । चौधरी के कत्ल के वक्त भी अपुन अपने घर पर बैठेला था। अपुन को नहीं मालूम कि चौधरी शर्मा के फ्लैट में किस वास्ते गया । वह गया तो अपनी मर्जी से गया । बस अपुन को और कुछ नहीं कहने का है।"
 
“शर्मा कहता है कि कल रात आपके आदमियों ने इसको अगुवा किया, इसे आपकी कोठी पर जबरन बन्दी बनाकर रखा और इसे मारा पीटा ।"
"यह बण्डल मारेला है । उलटे इसी ने अपुन की कोठी पर आकर अपुन के दो आदमियों को मारा पीटा । बहुत गर्म मिजाज है इसका ।"
"यह आपकी कोठी पर आया क्यों था ?"
"मेरे से कोई बात करने का था। वहां बात तो कुछ किया नहीं, उलटे बद्तमीजी करने लगा और मेरे आदमियों से उलझने लगा।"
"इसने आपके आदमियों को मारा पीटा ?"
"बरोबर ।"
,,, "आपने इसके खिलाफ रिपोर्ट क्यों नहीं लिखाई ?"
"अपुन की कोठी में जब चूहा घुसेला है तो उसे अपुन खुद खलास करेला है । उसके लिये अपुन कमेटी के दफ्तर नहीं जाना मांगता ।"
"आप शर्मा को मौत की धमकी दे रहे हैं ? मेरे सामने धमकी दे रहे हैं ?"
_ "अपुन तो एक चूहे की बात करेला है।" - एलैग्जैण्डर लापरवाही से बोला - "अगर यह चूहा है तो यह इसे अपने = लिये धमकी समझ सकता है।"
* यादव एलेग्जैण्डर को घूरने लगा। उस पर अपने घूरने का कोई असर न होता पाकर वह कस्तूरचन्द की तरफ घूमा ।
"आपने मुझे बताया था कि चावला के कत्ल के वक्त आप सिनेमा देख रहे थे । अब बरायमेहरबानी यह बताइये कि जूही चावला और चौधरी के कत्ल के वक्त आप कहां थे?"
"मैं अपने घर पर था, जी ।" - कस्तूरचंद बोला ।
"घर पर और कौन था ?"
"कोई नहीं ।"
"हमेशा ही घर पर कोई नहीं होता या कल नहीं था ?"
"कल नहीं था।"
"यानी कि आपकी बात के सच होने की गवाही देने वाला कोई नहीं ?"
"कोई नहीं ।" - कस्तूरचन्द बड़ी सादगी से बोला।
"मिस्टर भटनागर, आप आखिरी बार जूही चावला से कब मिले थे ?"
"पांच-छ: दिन हो गए।" - भटनागर बोला - "तब वह मेरे ऑफिस में आई थी और हमने एक सिल्क मिल की साड़ियों के विज्ञापन की एक नई सीरीज के बारे में विचार-विमर्श किया था।"
"तब वह आपको किसी बात से डरी या सहमी हुई लगी थी ?"
"नहीं ।"
"उसके हाव-भाव, व्यवहार में कोई असाधारण बात नोट नहीं की थी आपने ?"
“आपका उससे क्या रिश्ता था ?"
"वही जो एक फैशन मॉडल का एक ऐड एजेंसी के हैड से हो सकता है।"
"यानी कि बिजनेस के अलावा आपका उससे कोई रिश्ता नहीं था ?"
"नहीं था।"
"कोई रोमांटिक, कोई इमोशनल अटैचमेंट ?"
"न न।"
"तीनों कत्लों के वक्त आप कहां थे?"
"मैं अपने ऑफिस में था।"
"चौधरी का कत्ल तो आधी रात के बहुत बाद हुआ था। तब भी आप अपने ऑफिस में थे ?"
"जी हां। कल रात मैं वहीं सोया था। मेरे ऑफिस में एक छोटा सा बैडरूम भी है। कई बार जब वहां बहुत देर हो | जाती है और मेरा घर जाने का मूड नहीं होता तो वहीं सो रहता हूं।"
 
"इस बात का कोई गवाह कि कल रात आप अपने ऑफिस में ही सोये थे ?"
"वहां के चौकीदार के अलावा कोई नहीं ।”
आप मिस्टर एलैग्जैण्डर से वाकिफ हैं?"
"हां, हूं।"
"खूब अच्छी तरह से ?"
"हां ।"
"आपने कभी कोई एकमुश्त मोटी रकम इन्हें दी है ?
" वह हिचकिचाया । उसने व्यग्र भाव से एलैग्जैण्डर की तरफ देखा । एलैग्जैण्डर ने अपना पाइप सुलगा लिया था और उसके कश लगाता हुआ अपलक भटनागर को देख रहा था।
"जवाब दीजिये ।" - यादव जिदभरे स्वर में बोला ।
"हां" - भटनागर एलैग्जैण्डर की तरफ से निगाह फिराकर बोला - "दी है।"
"कितनी बड़ी रकम?"
“बीस हजार रुपये।"
किसलिए ?"
भटनागर फिर खामोश हो गया । एकाएक वह बहुत व्याकुल दिखाई देने लगा था।
उसी क्षण वहां एक हवलदार के साथ एक युवक ने कदम रखा। उसकी जेब के ऊपर एक तिकोना बिल्ला लटका हुआ था जो कि उसके टैक्सी ड्राईवर होने की चुगली कर रहा था। दोनों यादव के समीप पहुंचे । हवलदार ने यादव के कान के पास मुंह ले जाकर कुछ कहा । यादव ने सहमती में सिर हिलाया और फिर युवक को आंख के इशारे से आदेश दिया। युवक बारी-बारी वहां मौजूद हर आदमी की सूरत देखने लगा। उसकी निगाह वकील बलराज सोनी पर अटक गई। "ये वो साहब हैं" - फिर वह उसकी उंगली उठाता हुआ बोला - "जिन्हें मैं कल रात आठ बजे के करीब नारायण विहार के सत्तर नम्बर बंगले पर छोड़कर आया था।"
यादव कुछ क्षण टैक्सी वाले से कुछ सवाल पूछता रहा । फिर उसने उसे रुखसत कर दिया और वह बलराज सोनी की तरफ आकर्षित हुआ । वह उसे ड्राइंगरूम के एक कोने में ले गया और ऐसे दबे स्वर में उससे मुखातिब हुआ कि उनके करीब जाये बिना वार्तालाप सुन पाना मुमकिन न था।
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कमला मेरे करीब पहुंची।
जरा इधर आओ।" - वह बोली।
,,, "इधर" उस रेलवे प्लेटफार्म जैसे विशाल ड्राइंगरूम का दूसरा कोना था।
"क्या बात है?" - मैं बोला ।
"राज" - वह व्याकुल भाव से बोली - "मेरी मदद करो ।"
"क्या मदद करू ?"
"यह इंस्पेक्टर जानता है कि चौधरी के कत्ल के वक्त में यहां कोठी में नहीं थी ।"
"यह तो मैं भी जानता हूं लेकिन मदद क्या चाहती हो तुम ? मैं यह साबित कर के दिखाऊं कि यह बात गलत है कि कल रात तुम पूरा डेढ़ घंटा यहां से गायब रही थीं ? मैं स्याह को सफेद कर के दिखाऊं ?"
"तुम भी समझते हो, चौधरी का खून मैंने किया है ?"
"मेरी समझ से कुछ नहीं होता । सवाल इस बात का है कि पुलिस क्या समझती है ! तुम्हारी हर हरकत शक पैदा । करने वाली है और तुम्हारी कोई हरकत पुलिस से छुपी नहीं । यादव तुम्हें किसी भी क्षण गिरफ्तार कर सकता है।"
वह खामोश रही ।
"मैं तुम्हारी मदद करने की कोशिश कर रहा हूं, शुरू से ही तुम्हारी मदद करने की कोशिश कर रहा हूं। तुम्हारी • खातिर अपने आपको खतरे तक में डाला है। अगर तुम फंस गई तो तुम्हारे मददगार के तौर पर मेरा भी फंस जाना । लाजमी है। फिर भी तुमने मेरे साथ धोखा किया।"
"मैंने क्या धोखा किया तुम्हारे साथ ?"
"तुमने कल रात मुझे विस्की में बेहोशी की दवा मिलाकर नहीं पिलाई ?"
"हरगिज नहीं ।”
"तुम्हारे बैडरूम में मैं होश में था ?"
. "नहीं । लेकिन होश तुमने नशे की वजह से खोया था ।”
“पागल हुई हो ! मैंने आज तक बोतल पी के होश नहीं खोया ।"
"राज, मेरा विश्वास करो, मैंने तुम्हें बेहोशी की दवा नहीं पिलाई। मैंने किसी का कत्ल नहीं किया।"
"तो फिर रात के दो बजे तुम कहां गई थीं ? क्या करने गई थीं ?"
"मुझे किसी का फोन आया था । ऐसा फोन आया था जिसे सुनकर मेरा यहां से जाना जरूरी हो गया था।"
“ऐसा क्या जरूरी फोन था?"
"ऐसा ही जरूरी फोन था ।"
"किसका?"
"बलराज सोनी का ।"
"उसने तुम्हें रात के दो बजे फोन किया था?"
"हां ।"
"और उस फोन कॉल के जवाब में तुम्हें आनन-फानन यहां से जाना पड़ा था ?"
सर्प, धू।।
"हां ।"
"ऐसी क्या आफत आ गई थी ?"
"आफत ही आ गई थी।"
"क्या ?"
= "वह आत्महत्या करने पर आमादा था।" - तभी यादव और बलराज सोनी हमारे करीब पहुंचे। हमारे वार्तालाप का आखिरी हिस्सा शायद उन्होंने भी सुना ।
यादव के चेहरे पर उलझन के भाव थे।
 
“मिसेज चावला" - वह सख्ती से बोला - "मैं आपसे एक बड़ा सीधा सवाल पूछ रहा हूं। बरायमेहरबानी मुझे उसका सीधा और सच्चा जवाब मिल जाये। कल रात दो बजे से लेकर साढ़े तीन बजे तक आप कहां थीं ?"

"मैं" - वह बोली - "सोनी साहब के साथ इनके फ्लैट में थी।"

"इतनी रात गये आप वहां क्या करने गई थीं ?"

"यह मेरा जाती मामला है।” तब तक बाकी लोग भी उठकर हमारे करीब आ गए थे।
"आप सोनी साहब से मुहब्बत करती हैं ?" बलराज सोनी ने यूं कमला की तरफ देखा जैसे उस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए वह यादव से ज्यादा व्यग्र हो ।

"नहीं ।" - कमला कठिन स्वर में बोली ।

"लेकिन सोनी साहब आपसे मुहब्बत करते हैं और आपसे शादी करना चाहते हैं ?"

"हां । ये जबरदस्ती मेरे पीछे पड़े हुए हैं। कल रात दो बजे भी इसी बाबत इन्होने मुझे फोन किया था और मेरे इनकार की सूरत में फौरन आत्महत्या कर लेने की धमकी दी थी।" "आप इन्हें ऐसी किसी हरकत से रोकने के लिए इतनी रात गए वहां गई थीं ?"

"हां ।"

मुझे लगा यादव वह बात बलराज सोनी से पहले ही कुबुलवा चूका था ।

"आप सुन्दर नगर में स्थित इनके फ्लैट पर तीन बजे के करीब पहुंची थीं। यहां से सुन्दर नगर का फासला तो कार द्वारा मुश्किल से दस मिनट का है । फिर आपको वहां पहुंचने में इतनी देर क्यों लगी ?"
"क्योंकि मैं दुविधा में पड़ गई थी । मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं जाऊं या न जाऊं । दो-तीन बार मैं रास्ते से। वापिस लौटी थी । लेकिन अंत में मेरी अंतरात्मा मुझे बुरी तरह कचोटने लगी थी और मैं वहां चली गई थी। मेरी वजह से किसी की जान जाये, यह मुझे मंजूर नहीं हुआ था।"

"हूं। कल शाम ये साहब जूही चावला के बंगले पर नारायण विहार भी पहुंचे थे। वहां ये साहब आपके साथ आपकी कार में वापिसी के लिए रवाना हुए थे लेकिन ये फरमाते हैं कि अपने थोड़ी ही दूर पहुंचने पर इन्हें रस्ते में ही उतार दिया था। ऐसा क्यों किया था आपने ?"

"क्योंकि ये कार में ही तमाशा खड़ा करने लगे थे। ऐसी हरकतें और बातें करने लगे थे जो इन्हें अपने दोस्त की बेवा से नहीं करनी चाहिए थीं ।"

"इन्हें रास्ते में उतारकर आप कहां गई थीं ?"

"सीधी यहां आई थी मैं ।"

"आप वापिस जूही चावला के बंगले पर नहीं गई थीं ?"

"नहीं।"

- उस उत्तर के बाद बड़े ही अप्रत्याशित ढंग से यादव ने कॉन्फ्रेंस वहीं समाप्त कर दी। * वह औरत पतंगबाज थी तो वह पुलिसिया भी कम पतंगबाज नहीं था । ढील दे-देकर खींच रहा था । खींच-खींच कर ढील दे रहा था। लोग विदा लेने लगे।

कमला ने मुझे रुकने के लिए इशारा किया । जाने से पहले एलैग्जैण्डर मेरे पास पहुंचा । "मेरे ऑफिस में आने का है।" - वह बोला।

"तौबा ! एक बार आया था" - मैं हातिमताई के अंदाज में बोला - "दोबारा आने की कतई हवस नहीं है।"

"तो तू जगह बोल ?"

"मेरे फ्लैट में ।"

"कब ?"

"कल सुबह ।"

"कितना मांगता है ?"

"फिफ्टी ।"

"ठीक है। आयेंगा।"

"अकेले आना ।"

उसने सहमति में सिर हिलाया और वहां से विदा हो गया। बाकी लोग भी विदा हो गये । कमला पीछे स्टडी में चली गई। वहां केवल मैं और यादव रह गये।

“लैजर बुक निकालो” - यादव बोला।
तुम कमला चावला को गिरफ्तार कर रहे हो ?"

"वो एक जुदा मसला है। उसका लैजर बुक से कोई वास्ता नहीं है।"

"मेरी राय में सारे कत्ल एलेग्जैण्डर ने किये हैं या करवाए हैं।"

"अपनी राय अपने पास रखो और लैजर बुक निकालो।"

"अगर एलैग्जैण्डर को गिरफ्तार करने का इरादा हो तो बरायमेहरबानी उसे कल दोपहर बाद गिरफ्तार करना ।"

"लैजर बुक !"

,,, मैंने जेब से लैजर बुक की जेरोक्स कापियां निकलकर उसे सौंप दी ।
 
"असल कहां है ?"

"असल कल मिलेगी।"

"क्यों ? आज क्यों नहीं ? अभी क्यों नहीं ?"

"अभी वो मेरे पास नहीं है। मैं कल खुद लैजर बुक तुम्हारे पास पहुंचा दूंगा।"

"पक्की बात ?"
"हां ।”

"कोई घोटाला करने की कोशिश न करना ।"

"नहीं करूंगा।"

"बड़ी गारंटी कर रहे थे तुम" - अब उसके स्वर में व्यंग्य का पुट आ गया - "कि सबकी हथेलियां देखने पर यह पता लग जाएगा कि कत्ल किसने किये हैं। जिसकी हथेलियों पर पंक्चर मार्क होंगे वही हत्यारा होगा।

" मैं खिसियानी-सी हंसी हंसा ।

"जानते हो !" - यादव बोला ।

"क्या ?"

"यहां मौजूद तमाम लोगों में से सिर्फ एक ही शख्स की हथेली में पंक्चर मार्क थे।"

"किसकी ?" - मैं उत्तेजित स्वर में बोला ।

"मेरी ।" - उसने अपना दायां हाथ मेरे सामने फैला दिया। मुझे जवाब न सूझा ।
कमला मुझे स्टडी में मिली । वह बार के सामने खड़ी थी। उसके हाथ में ड्रिंक का गिलास था और उसका चेहरा फिक्रमंद और पीला लग रहा था। मेरे से बिना पूछे ही उसने मेरे लिए ड्रिक तैयार कर दिया। मैं उसके करीब पहुंचा तो उसने खामोशी से गिलास मुझे थमा दिया । मैंने एक घुट पिया और गिलास काउण्टर पर रख दिया ।
| वह मेरे करीब आई । उसने मेरी आंखों में आंखें डाली । उसकी आंखों में ऐसा भाव था जैसे बकरी जिबह करने के
लिए ले जाई जा रही हो । मैं कुछ ऐसा प्रभावित हुआ कि अपने आप ही मेरी बाहें खुल गई । वह मेरे आगोश में आ गई और हौले-हौले सुबकने लगी । अपने होठों से उसके खूबसूरत कपोलों पर से आंसुओं की बूंदे चुनता हुआ मैं उसे दिलासा देता रहा । अंत में वह खामोश हुई और मुझसे अलग हुई।

"तुम कुछ दिन यहीं ठहर जाओ।" - वह बोली ।।

"सॉरी, स्वीट हार्ट” - मैंने फिर अपना गिलास उठा लिया - "यह मुमकिन नहीं।"

"या सिर्फ आज रात ।"

"क्यों ? क्या फिर मुझे बेहोश करके कहीं जाने का इरादा है ?"

"राज, मैं पहले ही कह चुकी हूं कि मैंने तुम्हें बेहोशी की दवा नहीं पिलाई थी ।"

"छोड़ो । कोई और मतलब की बात करो ।”

“मतलब की बात क्या?"

"बीस हजार की डाउन पेमंट के बाद मुझे कुछ और रकम भी मिलने वाली थी।"

"मिलेगी । जरूर मिलेगी ।"

"वह रकम मैं अभी चाहता हूं।"

"क्यों ? क्योंकि तुम समझते हो मैं गिरफ्तार हो जाने वाली हूं और गिरफ्तार होकर फांसी चढ़ जाने वाली हूं?"

मैं खामोश रहा । मेरे मन में ऐसा ही कुछ था ।

"तुम शायद भूल रहे हो कि मुझे इस झमेले से निकालने के बाद ही तुम उस रकम के हकदार बन सकते हो।”

"तुम पर जो बीतनी है, वह आने वाले दो-तीन दिनों में सामने आ जायेगी । तुम मुझे एक हफ्ते बाद की तारीख डाल . के चैक दे दो।"

"बड़े बेमुरब्बत आदमी हो ।”

"सिर्फ पैसे के मामले में"

"अच्छी बात है । देती हूं चैक ।"

उसने मुझे एक लाख अस्सी हजार रुपये का चैक काट दिया। चैक हाथ में आने पर मैंने महसूस किया कि उस रकम का मालिक बनने के लिए अब मेरे लिए जरूरी था कि मैं या तो कमला को बेगुनाह साबित करके दिखाऊं और या किसी अत्यंत विश्वसनीय तरीके से उसका अपराध किसी और के सिर थोपकर दिखाऊं।

और इस काम के लिए एक कैंडिडेट था मेरी निगाह में - जान पी एलैग्जैण्डर ।

अगली सुबह जान पी एलैग्जैण्डर मेरे फ्लैट पर पहुंच गया।

"वैलकम ।" - मैं बोला।

उसने खमोशी से मेरे फ्लैट में कदम रखा। “तुम जरा बैठो।" - मैं बोला - "मैं अभी आया ।"

"किधर जाने का है?" - वह बोला ।

"ज्यादा दूर नहीं । जरा नीचे तक । यह तस्दीक करने के लिए कि तुम अकेले आये हो ।”
 
"अबे छोकरे, किसी का विश्वास करना सीख ।"

"सीखूगा । सीखने के लिए अभी सारी उम्र पड़ी है।"

मैंने नीचे का चक्कर लगाया । नीचे ड्राईवर तक नहीं था। वह अपनी इम्पाला खुद चला कर आया था।
| मैं वापिस लौटा।

,,, "एक बात बताओ ।" - मैं बोला ।

"क्या ?" - एलेग्जेण्डर बेसब्रेपन से बोला ।

"तुम्हारी लेजर चावला के हाथ कैसे पड़ गई ?"

"अपुन का एक बहुत भरोसे का आदमी अपुन को धोखा दियेला था। वह लैजर की बाबत खबर रखेला था। उसने लेजर चोरी करके चावला को बेच दी ।"

"वह आदमी अब कहां है?"

"वहीं जहां ऐसे धोखेबाज आदमी को होना चाहिए।"

"कहां ?"

"जहन्नुम में।"

"चावला के कत्ल की खबर तुम्हें इतनी जल्दी कैसे लग गई कि तुमने आनन-फानन चौधरी को उसकी स्टडी की तलाशी लेने भेज दिया ।"

"वजह वो नहीं जो तू सोचेला है । अपुन का चावला के कत्ल से कोई वास्ता नहीं ।”

"तो फिर ?"

"पुलिस में अपुन का एक सोर्स है । उसी ने फोन पर बताया था।"

"लेकिन...."

"शर्मा, अपुन इधर तेरी इन्क्वायरी के लिए नहीं आयेला है । लैजर के लिए आयेला है । लैजर निकाल ।”

"पहले माल निकालो।" । । उसने सौ-सौ के नोटों की पांच गड्डी मेरे सामने फेंकी।

मैंने जेब से लैजर बुक निकालकर उसकी तरफ उछाल दी और नोटों की तरफ हाथ बढ़ाया। उसके बाद वही हुआ जिसके होने की मुझे उम्मीद थी । एलैग्जैण्डर के हाथ में एक रिवॉल्वर प्रकट हुई । “खबरदार !" - वह बोला। मैं ठिठक गया।

"छोकरे, तूने वाकई सोच लिया था कि तू एलैग्जैण्डर को ब्लैकमेल कर सकता था।

" मैं ब्लैकमेल नहीं कर रहा हूं।" - मैं धैर्यपूर्ण स्वर में बोला - "मैं माल की कीमत हासिल कर रहा हूं।"

"जो माल तेरा नहीं तू उसकी कीमत कैसे हासिल करेला है।" उसने नोट उठा लिए ।

"तुम मुझे डबल क्रॉस कर रहे हो?"

"ऐसा समझना चाहता है तो ऐसा समझ ले ।"

"बेकार है फिर भी बच नही पाओगे ।"
"मतलब ?" |

"इस लेजर बुक के हर पेज की फोटोकॉपी सब-इंस्पेक्टर यादव के पास पहुंच चुकी है ।"

उसके नेत्र फैल गये। उसने कहर भरी निगाहों से मेरी तरफ देखा।

"हरामजादे !" - वह दांत पीस।। ।। गो।। - "हरामजादे !"
| गोली चलाने की जगह उसने रिवॉल्वर को मेरी कनपटी पर दे मारने की कोशिश की । मैंने झुकाई देकर वार बचाया
और अपने दायें हाथ का प्रचंड घूँसा उसके पेट पर रसीद किया। मेरे दूसरे हाथ का घूसा उसके पेट में पड़ा । वह पीछे को लड़खड़ाया । उसे संभलने का मौका दिए बिना मैंने उस पर कई वार कर दिये । रिवॉल्वर उसके हाथ से निकल गई और वह मेरे सोफे पर जाकर ऐसा गिरा कि फिर न उठा। मैंने फर्श पर से उसकी रिवॉल्वर उठाई । मैंने उसमें से गोलियां निकाल लीं और रिवॉल्वर उसके सामने मेज पर रख दी।

फिर मैंने उसकी जेब में से लैजर और पचास हजार के नोट निकाले । नोटों में से पहले मेरा इरादा सिर्फ अपने बाईस हजार रुपये वापिस हासिल करने का था लेकिन फिर मैंने वे सभी नोट अपने अधिकार में कर लिए ।

मैं उसके होश में आने की प्रतीक्षा करने लगा।

कोई और दो मिनट बाद वह होश में आया । अपने आपको सोफे पर गिरा पड़ा पाकर वह हड़बड़ाकर सीधा हुआ। | फिर सामने पड़ी रिवॉल्वर पर झपटा।
 
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