Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास ) - Page 10 - SexBaba
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Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )

"खाली है ।" - मैं उसे गोलियां दिखाता हुआ बोला । रिवॉल्वर उसने फिर भी उठाकर पतलून की बेल्ट में खोंस ली । फिर उसने अपनी जेबें टटोलनी आरम्भ कीं ।

पचास हजार रुपये मैंने तुम्हारी जेब से निकाल लिए हैं । इनमें से बाईस हजार रुपये तो मेरे ही हैं। बाकी के अट्ठाईस हजार रुपये मेरी रकम का ब्याज और उस मार का खामियाजा समझकर मैंने अपने पास रख लिए हैं जो कि मैंने तुम्हारे आदमियों से खाई है।"

"हरामजादे ।" - वह सांप की तरह फुफकारा ।

"वो तो मैं हूं ही । इसमें नई बात क्या बता रहे हो तुम मुझे ?"

वह उठकर खड़ा हुआ। "अब जाते-जाते यह तो कबूल कर जाओ कि तीनों कत्ल तुमने किये हैं।"

"अपुन कोई कत्ल नहीं करेला है ।" - इस बार वह अपेक्षाकृत शान्त स्वर में बोला।

"तो करवाये होंगे ?"

"नहीं । अपुन का किसी कत्ल से कोई वास्ता नहीं ।"

"जो मर्जी कहो । तुमसे सच कुबुलवाना मेरा काम नहीं ।"

"यही सच है।"

,,, उसके स्वर में संजीदगी का पुट था। मुझे अब कमला चावला की और ज्यादा फिक्र होने लगी। फिर वही मुझे हत्यारी लगने लगी।

"अब फूटो यहां से ।"

"लैजर किधर है ?"

"वो अब तुम्हारे किसी काम की नहीं । इसलिए लैजर लैजर भजना छोड़ दो अब, सिकन्दर दादा ।”

"लैजर की कॉपी तू पुलिस को दियेला है ?"

"हां ।"

"क्यों ?"

"क्योंकि मुझे पता था कि तुम मुझे डबलक्रॉस करोगे । इसलिए मैंने तुम्हें डबलक्रॉस किया ।"

"तेरी खैर नहीं ।"

"अब तो अपनी खैर मना ले, सिकन्दर महान !"

वह फिर न बोला । नफरत से धधकती उसकी आंखें वैसे ही बहुत कुछ कह रही थीं। ग्यारह बजे मेरी यादव से मुलाकात हुई। मैंने उसे लैजर बुक सौंप दी ।

"अब एलैग्जैण्डर को गिरफ्तार समझें ?" - मैं बोला।

"वो किसलिए ?" - यादव बोला।

"वो किसलिए !" - मैं हैरानी से बोला - "भाई, यह लैजर बुक उसके खिलाफ सबूत है।"

"किस बात का ?"

"कत्ल का और किस बात का ? चावला इस लैजर बुक की बिना पर एलैग्जैण्डर को ब्लैकमेल कर रहा था।"

"नहीं कर रहा था।"

"कौन कहता है।"

"एलैग्जैण्डर कहता है।"

"और तुम्हें उसकी बात का विश्वास है,?"

"हां । इसलिये विश्वास है क्योंकि यह बात निर्विवाद रूप से साबित हो चुकी है कि तीनों में से कोई भी कत्ल उसने नहीं किया है।"

"कैसे साबित हो चुकी है ?"
 
"तफ्तीश से साबित हो चुकी है, और कैसे साबित हो चुकी है। मैं इस बात की पक्की तस्दीक कर चुका हूं कि तीनों ही हत्याओं के वक्त एलेग्जैण्डर घटनास्थल से बहुत दूर कहीं था। यानी कि यह लैजर बुक किसी कत्ल का उद्देश्य नहीं है । तुम्हारी जानकारी के लिए ब्लैकमेल का खतरा एलैग्जैण्डर को नहीं चावला को था । इसीलिए उसने किसी प्रकार एलेग्जैण्डर की यह लैजर बुक चुरा ली थी ताकि इसकी धमकी से वह एलैग्जैण्डर को उसे ब्लैकमेल करने से रोक सकता।"

"चावला को किस बिना पर ब्लैकमेल किया जा सकता था ?"

"चरस और अफीम की स्मगलिंग की बिना पर । वह अपनी कारों में ये चीजें छुपाकर बम्बई पहुंचाया करता था।

चावला जो इतना रईस बना हुआ था, वह सैकेण्डहैण्ड कारें बेच बेचकर नहीं बना हुआ था । स्मगलिंग से वह रईस बना था और यह बात एलैग्जैण्डर को मालूम हो गई थी। वह अपनी जुबान बंद रखने की कीमत चाहता था।

चावला को ऐसी मुसलसल ब्लैकमेल में फंसना गंवारा नहीं था। फिर किसी प्रकार उसे एलेग्जैण्डर की डायरी की । खबर लग गई और वह उसे हासिल करने में कामयाब हो गया । उस डायरी की वजह से ही वह एलैग्जैण्डर की ब्लैकमेलिंग का शिकार होने से बचा ।"

"यह स्मगलिंग वाली बात तुम्हें कैसे मालूम हुई ?"

"एलैग्जैण्डर ने बताई ।"

"बात की सच्चाई को परख लिया तुमने?"

"न सिर्फ परख लिया, बल्कि परखकर उस पर अमल भी कर लिया।"

"मतलब ?"

“मतलब यह कि अफीम और चरस की स्मगलिंग के रैकेट में शरीक चावला के चार साथी गिरफ्तार भी हो चुके हैं।
और अफीम और चरस का एक तगड़ा स्टॉक चावला मोटर्स के ऑफिस से बरामद भी हो चुका है।"

"कमाल है।"

यादव बड़े संतुष्टिपूर्ण ढंग से मुस्कराया।

"एलैग्जैण्डर ने यह बात तुम्हें क्यों बताई?" - मैंने पूछा।

पुलिस को सहयोग की भावना से बताई और क्यों बताई?"

"नॉनसैंस ।"

"किसी भी वजह से बताई बहरहाल बताई।"

"उसे गिरफ्तार तो तुम्हें फिर भी करना चाहिए।"

फिर भी क्यों?"

"इस लैजर बुक में निहित जानकारी की बिना पर । काला धन छुपाने का, इनकमटैक्स इनवेजन का केस तो उस पर फिर भी बनता है।"

"वह कत्ल जितना बड़ा अपराध नहीं !"

"लेकिन केस तो बनता है।"

"गिरफ्तारी के काबिल नहीं । गिरफ्तारी हो भी तो ऐसे केस में तीस मिनट में जमानत हो जाती है। एंटीसिपेटरी बेल तक हासिल हो जाती है।"

अब मुझे अपनी फिक्र सताने लगी। मैंने एलैग्जैण्डर जैसे दादा पर हाथ उठाया था। मैं उसकी फौरन गिरफ्तारी की उम्मीद कर रहा था। अब उसका आजाद रहना मेरे लिए खतरनाक साबित हो सकता था।

"यादव साहब" - मैं चिंतित स्वर में बोला - "तुम्हारी बातों से मुझे लगता है कि तुम एलेग्जैण्डर को गिरफ्तार करने के
,,, ख्वाहिशमन्द नहीं ।"

"मैं कत्ल की तफ्तीश करने वाला सब-इंस्पेक्टर हूं" - वह लापरवाही से बोला - "कत्ल की बिना पर मैं उसे गिरफ्तार कर सकता था। लेकिन कत्ल उसने नहीं किये । अगर कोई और अपराध उसने किया है तो उसकी तफ्तीश पुलिस का दूसरा महकमा करेगा।"

"लेकिन....."

"और कत्ल का केस क्लोज हो चुका है।"

"क्लोज हो चूका है ! कैसे क्लोज हो चुका है?"

"वैसे ही जैसे होता है । जब अपराधी गिरफ्तार हो जाता है तो पुलिस तफ्तीश के लिहाज से केस क्लोज मान लिया जाता है।"

"अपराधी गिरफ्तार हो चुका है ?"
 
"हां । कब का !"

"कौन है अपराधी ?"

"जैसे तुम जानते नहीं !"

"पहेलियां मत बुझाओ । किसे गिरफ्तार किया है तुमने ?"

“मिसेज कमला चावला को ।"

"वह गिरफ्तार है?"

"हां । आज सुबह सवेरे मैंने उसे उसकी कोठी पर गिरफ्तार किया था। उस पर चार्ज लगाकर उसे कोर्ट में पेश भी किया जा चुका है और उससे पूछताछ के लिए छः दिन का रिमांड भी हासिल किया जा चुका है।"

"बड़े फुर्तीले निकले यादव साहब !"

वह मुस्कराया।

"तो आपकी तफ्तीश यह कहती है की तीनो कत्ल कमला ने किये हैं ?"

"हां ।"

"इस बात का आपके पास क्या जवाब है कि वह चौधरी के कत्ल के वक्त वकील बलराज सोनी के फ्लैट पर थी ?"

"वह वहां तीन बजे पहुंची थी । चौधरी का कत्ल इस वक्त से पहले हो चुका था। अपनी कोठी से वह दो बजे निकली थी । चौधरी का कत्ल करके तीन बजे तक बड़े आराम से बलराज सोनी के यहां पहुंच सकती थी। अब तुम कहोगे । कि तुम्हारे उस अनोखे हैंडल वाले चाकू से उसके हाथ में पंक्चर के निशान क्यों नहीं बने थे तो इसका बड़ा सीधा । और सिंपल जवाब यह है कि वह दस्ताने पहने थी । ड्राइविंग के वक्त दस्ताने तो वह पहनती ही है । उन्ही दस्तानों को पहने पहने उसने चाकू चलाया होगा।"

"जूही चावला की कोठी से वह वकील बलराज सोनी के साथ रवाना हुई थी" - मैंने नया एतराज किया - "अब तुम क्या यह कहना चाहते हो कि उसके कत्ल में वे दोनों शामिल थे ?"

"नहीं ।" - वह बड़े इत्मीनान से बोला ।

"तो ?"

"कल के लिए वह वापिस लौटी थी। उसने जानबूझकर बलराज सोनी को रस्ते में अपनी कार में से उतार दिया था। ताकि वह वापिस आकर जूही चावला का कत्ल कर सके ।"

"वह यूं वापिस लौटी होती तो जूही चावला के बंगले की निगरानी करते मेरे आदमी को वह दिखाई दी होती !"

"शायद दिखाई दी हो।"
"मतलब ?"

"पाण्डे तुम्हारा आदमी है । कमला चावला तुम्हारी क्लायंट है । अगर तुम्हें पाण्डे की कोई बात कमला के खिलाफ जाती दिखाई देगी तो तुम क्या करोगे ?"

"ओह, तो तुम समझ रहे हो कि पाण्डे को मैंने पट्टी पढ़ाई है कि वह कमला से ताल्लुक रखती ऐसी किसी बात को छुपाकर रखे ?"

"क्या ऐसा नहीं हो सकता ?" - वह बड़ी मासूमियत से बोला ।

"कमला ने अपना अपराध कबूल कर लिया है ?"

"अभी नहीं किया है, लेकिन करेगी। जरूर करेगी । क्यों नहीं करेगी ? किये बिना कैसे बात बनेगी ? इसीलिए तो हमने छः दिन का रिमांड हासिल किया है।"

"यानी कि तुम उस पर थर्ड डिग्री इस्तेमाल करके जबरन उससे उसका अपराध कबूल करवाओगे ?"

"वह जो करेगी, अपनी मर्जी से करेगी।"

“वह बेगुनाह है।"

"हर अपराधी यही कहता है।"

"और तुम्हारा एलैग्जैण्डर की तरफ से एकदम उदासीन हो जाना मुझे एक बहुत खतरनाक बात सोचने पर मजबूर कर रहा है।"

"क्या ?" - वह आंखें निकालकर बोला ।
 
मुझे जवाब देने का अवसर न मिला । तभी एक हवालदार यादव के समीप पहुंचा और उसने झुककर यादव के कान में कुछ कहा। यादव फौरन उठकर खड़ा हो गया। "साहब को बाहर का रास्ता दिखाओ।" - वह हवालदार से बोला ।

"साहब को बाहर का रास्ता मालूम है।" - मैं उठता हुआ बोला।

मैं हैडक्वार्टर की इमारत से बाहर निकला।

पार्किंग की इमारत में मुझे एलैग्जैण्डर की इम्पाला खड़ी दिखाई दी। मैं सोचने लगा । एलैग्जैण्डर वहां क्या करने आया था? मैंने अपने ताबूत की एक कील सुलगाई और खम्बे की ओट लेकर खड़ा हो गया। दस मिनट बाद एलैग्जैण्डर हैडक्वार्टर की ईमारत से बहार निकला। उसके चेहरे पर मुझे बड़े संतोष और इत्मीनान के भाव दिखाई दिये। वह कार में आकर बैठा तो मैं खम्बे की ओट से निकलकर उसके सामने आ खड़ा हुआ ।

"हल्लो !" - मैं बोला। मुझे देखकर उसके माथे पर बल पड़ गए । फिर वह मुस्कुराया। "कहीं जाने का है" - वह बोला - "तो इधर गाड़ी में आ जा । ड्राप कर देगा ।"

"कहां ड्राप कर दोगे ? यमुना में ?"

वह हंसा ।

"सौदा हो गया यादव से ?" - मैंने अंधेरे में तीर छोड़ा - "लैजर बुक खरीद ली ?"

"हां, खरीद ली ।" - वह बड़े इत्मीनान से बोला - "और उसकी वो जेरोक्स कापियां भी जो तू कल यादव को दियेला
था । देख ।"

उसने जेब से निकाल कर मुझे लाल जिल्द वाली लैजर बुक और जेरोक्स कापियां दिखाई। मेरा खून खौल गया । मेरा जी चाहने लगा कि, मैं अभी भीतर हैडक्वार्टर में वापिस जाऊं और जाकर यादव का गला घोंट दूँ ।

"कितना रोकड़ा दिया ?" - मैंने पूछा।

जितना तेरे को देने का था, उससे पचास हजार रूपया कम ।”

"यानी कि यादव को भी रिवॉल्वर दिखाकर डायरी उससे जबरन झटककर लाये हो?"

"नहीं । अपुन उससे डायरी का जो सौदा कियेला है, वो रोकड़े से ज्यादा कीमती है । अपुन की वजह से यादव स्मगलरों के उस गैंग का पर्दाफाश कियेला है जिसका सरगना चावला था । यादव चार आदमी गिरफ्तार कियेला है। और कई किलो अफीम और चरस बरामद कियेला है । यह उसका ज्यादा बड़ा इनाम है । यह डायरी की ज्यादा बड़ी कीमत है। यह एक इतना बड़ा केस पकड़ने से उसकी परमोशन पक्की हो गई है है । वो इसी महीने इंस्पेक्टर बन जाने का है। क्या ?"

मैं चुप रहा। "और छोकरे" - एकाएक उसका स्वर बेहद हिंसक हो उठा - "खुशकिस्मत समझ अपने-आपको कि एलैग्जैण्डर पर हाथ उठाने के बाद भी, उसका माल पीटने के बाद भी, तू जिन्दा बचेला है।"

"क्यों जिन्दा बचा हूं ?"

"क्योंकि मौजूदा हालात में यादव नहीं चाहता कि तेरे कू कुछ हो जाए । चार दिन में चार कत्ल हो जाने पर केस की तफ्तीश उससे सीनियर किसी अफसर के हाथ जा सकती है। तब अपुन पर तमाम कत्ल का शुबा फिर से हो सकने का है जो कि इस वक्त अपुन को मंजूर नहीं । इसलिए घर जा और सैलीब्रेट कर कि तेरी जान बच गई । न बचने के काबिल तेरी जान बन गई । खामखाह बच गई।" फिर उसने गाडी स्टार्ट की, अविश्वसनीय रफ्तार से उसे बैक किया और फिर वह वहां से यह जा, वह जा ।

मैं वापिस हैडक्वार्टर की इमारत में दाखिल हुआ। यादव अपने कमरे में नहीं था। वह इमारत में भी नहीं था। मैंने उसके मातहतों से और कई अन्य लोगों से भी पूछताछ की लेकिन किसी को मालूम नहीं था कि वह कहां चला गया था।

,,, मैं जनपथ पहुंचा। शैली भटनागर अपने ऑफिस में नहीं था। मालूम हुआ कि वह किसी जरूरी काम से निजामुद्दीन में कहीं गया था और शाम से पहले लौटने वाला नहीं था ।

शाम तक वहां इंतजार करने की मेरी कोई मर्जी नहीं थी। 3 मैं वापिस यादव के द्वार पर लौटा। - वह तब भी वहां नहीं था।

अगर मैंने इंतजार ही करना था तो वहां इंतजार करना ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकता था। यादव के कमरे के बाहर पड़े एक बैंच पर मैं जमकर बैठ गया । यादव शाम के चार बजे लौटा। "तुम यहां क्या कर रहे हो ?" - मुझे देखते ही वह बोला ।

"तुम्हारा इंतजार ।" - मैं बोला।

"क्यों ? दोबारा यहां आने की क्या जरूरत पड़ गई ?"

"दोबारा क्या मतलब ? मैं सुबह का आया यहां से गया ही कहां हूं !"

"तुम सुबह से ही यहां बैठे हो ?"

"हां । बस सिर्फ थोड़ी देर के लिए नीचे पार्किंग में गया था जहां कि मेरी एलैग्जैण्डर से बात हुई थी और जहां उसने मुझे लैजर बुक दिखाई थी। बड़ी क्विक सर्विस है तुम्हारी । लैजर बुक मेरे हाथ से निकली नहीं कि एलैग्जैण्डर के हाथ पहुंच भी गई।"

"क्या चाहते हो ?"

“यहीं बताऊं?"

"हां ।"

"बेहतर । मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूं कि उस लैजर बुक के हर वर्क की एक-एक फोटोकॉपी अभी और है मेरे पास

वह सकपकाया । उसने घूरकर मुझे देखा। मैंने उसके घूरने की परवाह न की। "मैं आगे बढू" - मैं बोला - "या बाकी बात भीतर तुम्हारे कमरे में चलकर करें ?"

"आओ।" - वह कठिन स्वर में बोला।
 
"बैंक्यू !" मैं उसके साथ कमरे में दाखिल हुआ। उसने खुद मेरे पीछे दरवाजा बन्द किया । हम दोनों बैठ गए तो वह बोला - "क्या चाहते हो ?"

"मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूं" - मैंने तोते की तरह रट दिया -"कि उस लैजर बुक के हर वर्के की एक-एक फोटो
कॉपी अभी भी मेरे पास है "

* तुम और क्या कहना चाहते हो ?"

*और कहना चाहता हूं कि वे फोटोकॉपीज लेजर बुक के अस्तित्व को जरूर साबित करेंगी क्योंकिओरिजिनल के बिना तो कॉपी बनती नहीं । फिर कोई तुम्हारा बड़ा साहब, वो नहीं तो कोई अखबार वाला, शायद मेरी इस बात पर विश्वास कर ले कि असल लेजर बुक मैंने तुम्हें सौंपी थी जो कि तुमने आगे" - मैंने स्वर जानबूझकर धीमा कर दिया - "एलेग्जेण्डर को बेच दी ।”

“मैंने" - वह भी दबे स्वर में बोला - "उससे कोई रकम हासिल नहीं की..."

मुझे मालूम है । मेहरबानी कैश या काण्ड दोनों तरीकों से होती है। उस डायरी के बदले में उसने तुम्हें एक ऐसा केस पकड़वाया है जो कि तुम्हारी प्रोमोशन करवा सकता है, तुम्हें प्रशस्ति-पत्र दिला सकता है।"

*और तुम मेरी प्रोमोशन में और मेरे प्रशस्ति-पत्र में हिस्सेदारी चाहते हो ।”

"नहीं। ऐसी कोई हिस्सेदारी मुमकिन नहीं ।”

"तो ?"

"जैसी मेहरबानी तुम्हें हासिल हुई है, वैसी ही मेहरबानी में तुमसे हासिल करना चाहता हूं।"

"क्या ?"

"मैं चाहता हूं कि कमला चावला को बेगुनाह साबित करने में तुम मेरी मदद करो।”

"मेरा काम गुनहगार का गुनाह साबित करना है न कि..."

"वो" - मैंने बीच में बात काटी - "गुनहगार नहीं है । वो बेगुनाह है।”

"जो कि तुम जादू के जोर से साबित कर सकते हो ?"

"नहीं, जादू के जोर से तो नहीं कर सकता । जादू तो मुझे आता नहीं।”

"देखो, अगर तुम यह समझते हो कि तुम मुझ पर दबाव डालकर मुझे उसे रिहा करने पर मजबूर कर सकते हो तो यह ख्याल अपने मन से निकाल दो । वह हिरासत में नहीं है बल्कि बाकायदा चार्ज के साथ गिरफ्तार है। मैं उसे रिहा करूगा तो यह होगा कि मेरी नौकरी चली जायेगी और वह फिर गिरफ्तार हो जायेगी।"

"मैं उसे रिहा करने के लिए नहीं कह रहा ।"

"तो और क्या कह रहे हो ?"

"मैं यह कह रहा हूं कि उसे बेगुनाह साबित करने में तुम मेरी मदद करो।”

"वो मैं सुन चुका हूं लेकिन कैसे मदद करू ?"

"शुरूआत मेरी कमला से एक मुलाकात करवाकर करो ।”

"यह नहीं हो सकता ।"

"क्यों नहीं हो सकता ?"

"वह गिरफ्तार है ।"

"तो क्या हुआ ? जहां वो गिरफ्तार है, वो जगह चांद पर तो नहीं ।”

,,, "लेकिन..."

"मेरी उससे एक मुलाकात करवाओ, यादव साहब ।"

"धमकी दे रहे हो ?" - वह आंखें निकालकर बोला ।

"हां ।"

वह मुंह से तो कुछ न बोला लेकिन कितनी ही देर मुझे घूरता रहा । मैंने उसके घूरने की परवाह न की ।

"लैजर बुक की दूसरी कॉपी निकालो।" - कुछ क्षण बाद वह बोला।

"मिल जायेगी ।" - मैं लापरवाही से बोला - "जल्दी क्या हैं ?"

"अगर तुम मुझसे कोई मेहरबानी चाहते हो तो-"।

"मेरी कमला से मुलाकात का इंतजाम करो, वह कॉपी मैं पूरी हिफाजत के साथ तुम्हारे घर छोड़ के जाऊंगा।"
 
चेहरे पर उलझन और सन्देह के भाव लिए वह फिर मुझे घूरने लगा। मैंने उसके घूरने की परवाह नहीं की। अन्त में उसने एक कागज-कलम अपनी तरफ घसीटा और कागज पर तेजी से कुछ लिखा। "वह निजामुद्दीन के थाने में है।" - वह कागज दोहरा करता हुआ बोला ।

"तो ?"

"यह रुक्का" - वह कागज मेरी तरफ उछालता हुआ बोला - "वहां दिखा देना मुलाकात हो जायेगी।"

"शुक्रिया ।" मैं फौरन वहां से विदा हो गया ।। निजामुद्दीन थाने में मेरे यादव की चिट्ठी पेश करते ही मुझे एक हवलदार के हवाले कर दिया गया। एक लम्बे कॉरीडोर में चलाता हुआ वह मुझे एक बन्द दरवाजे के करीब लाया जिसके सामने एक लेडी हवलदार खड़ी थी।

"लो।" - वह लेडी हवलदार से बोला - "एक और आ गया।"

"उसी से मिलने ?" - स्त्री बोली।

"हां । देखना, अभी तो और आयेंगे। तांता लगेगा यहां इसके हिमायतियों का । किसी रईस की बीवी को गिरफ्तार करना क्या कोई हंसी-खेल हैं !" हवलदार मुझे वहां छोड़कर विदा हो गया। स्त्री ने दरवाजा खोला और मुझे भीतर दाखिल होने का इशारा किया । मैंने कमरे में कदम रखा। स्त्री ने मेरे पीछे दरवाजा बंद कर दिया।

मैं दरवाजे पर ही ठिठका खड़ा रहा। भीतर कमला के सामने वकील बलराज सोनी बैठा था।

,,, कमला एक शादी साड़ी पहने थी । उस वक्त उसके जिस्म पर कोई जेवर नहीं था और चेहरे पर कोई मेकअप नहीं था लेनि । गिर भी खूबसूरत लग रही थी।

"देख लिया ?" - कमला व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली ।

"क्या ?" - में तनिक हड़बड़ाकर बोला ।

"कि में कहां हूं ?"

में खामोश रहा।

"अच्छे मददगार निकले तुम मेरे ! अच्छे डिटेक्टिव हो तुम !"

"डिटेक्टिव तो में अच्छा ही हूं । इसीलिए तो जानता हूं कि तुम बेगुनाह हो ।”

"तुम्हारे जानने से क्या होता है ? साबित करके दिखाते तो मुझे हवालात का मुंह देखना पड़ता ?"

"कमला ।" - बलराज सोनी बोला - "मैंने तो पहले ही कहा था कि यह आदमी किसी काम का नही ।"

"ओह !" - मैंने बोला - "तो यह बात तुम पहले भी कह चुके हो ?"

उसने एक तिरस्कारपूर्ण निगाह मेरी तरफ डाली और फिर परे देखने लगा।

"आओ, बैठो।" - कमला बोली। मैं उनके करीब पड़े एक स्टूल पर बैठ गया।

"आप तशरीफ ले जा रहे है ?" - मैं बलराज सोनी से सम्बोधित हुआ।

"तुम कौन होते हो मुझे यहां से भेजने वाले ?" - वह भड़ककर बोला ।

"मैं कहां भेज रहा हूं आपको ! मैंने सोचा था कि शायद आपकी कॉन्फ्रेंस खत्म हो गई हो और आप जा रहे हों !"

"सोनी साहब कहीं नहीं जा रहे ।" - जवाब कमला ने दिया - "ये मेरे वकील हैं । अदालत में भी इन्होंने ही मेरी पैरवी करनी है । और कहना न होगा कि तुम्हारे मुकाबले में अब मुझे इनसे कहीं ज्यादा उम्मीदें हैं।"

उस वक्त पता नहीं क्यों मुझे वकील के बच्चे से बहुत झुंझलाहट हो रही थी । साला हर जगह मुझे पहले से ही मौजूद मिलता था।

"कुछ किया है तुमने ?" - कमला ने पूछा।

"किया तो बहुत कुछ है लेकिन हुआ कुछ नहीं है।" - मैं बोला - "और अगर कुछ हुआ है तो तुम्हारे हक में गलत हुआ है।

" "मसलन ?"

"मसलन एलैग्जैण्डर से पुलिस पूरी तरह से संतुष्ट हो चुकी है कि वह बेगुनाह है। मसलन पुलिस को मालूम हुआ है। कि तुम्हारा पति अफीम और चरस का स्मगलर भी था और इस धन्धे में उसके चार जोड़ीदार भी पुलिस ने गिरफ्तार किए हैं । एलैग्जैण्डर की तुम्हारे पति की स्टडी से बरामद हुई लैजर बुक, जो मैंने इस उम्मीद में पुलिस को सौंपी थी। कि अब एलैग्जैण्डर तुरन्त गिरफ्तार हो जायेगा, वापिस एलैग्जैण्डर के पास पहुंच गई है।"

"वो कैसे ?"

"उस पुलिसिये की मेहरबानी से जो इस केस की तफ्तीश कर रहा है।"

"तुम्हे इस बारे में कुछ करना चाहिए। तुम्हें उस रिश्वतखोर पुलिसिये को एक्सपोज करना चाहिए।"

"कैसे ?" अब तो मैं उस लैजर बुक के अस्तित्व को भी साबित नहीं कर सकता।"

"अग व हो तुम !" "क " - बलराज सोनी बोला - "मैंने तो पहले ही कहा था कि..."

"तुम ना थोड़ा बन्द रखो ।" - मैं भड़ककर बोला' - "मुझे मालूम है तुमने पहले क्या कहा था !"

"नी ।" • कमला बोली - "अब तुम्हारे पास काम करने के लिए कोई ऐंगल नहीं ?"

"ए ऐंगल हैं" - मैं बोला - "मुझे मालूम है कि जब तुम्हारा पति बम्बई में रहता था तो वहां शैली भटनागर उसका । मैनेजर ॥ और वो उसके बिजनेस में ऐसा घोटाला हुआ था कि तुम्हारे पति की मेहरबानी से उसे दो साल की सजा काटनी पी थी । हो सकता है उस बात का बदला उसने आज उतारा हो ।”

"चावला साहब का खून करके ?"

"हो ।"

"और बाकी खून ?" ।
 
"वो उस एक खून को छुपाने के लिए किए गए हो सकते हैं ।"

"डिटेक्टिव साहब, तुम्हारी जानकारी के लिए अभी एक घंटा पहले शैली भटनागर भी यहां आया था और उसके पास हर कत्ल के बारे में निहायत सिक्केबंद एलीबाई है।"

"वो यहां आया क्या करने था ? निश्चय ही अपनी एलीबाई के बारे में बताने तो आया नहीं होगा।"

"नहीं।"

"तो।"

"वो मेरे से चावला साहब की बम्बई की लाइफ के बारे में ही सवाल कर रहा था। तब मुझे यह बात तो मालूम नहीं थी कि वह चावला साहब की वजह से बम्बई में जेल की सजा काट चुका था। अब मुझे लगता है कि वह यही | भांपने आया था कि मैं चावला साहब की बम्बई की जिन्दगी के बारे में कुछ जानती थी या नहीं और इस बात के जाहिर होने का अन्देशा था या नहीं कि वह एक सजायाफ्ता मुजरिम था। वो यहां से आश्वस्त होकर गया था कि यह बात खुलने वाली नहीं थी लेकिन उसे यह नहीं सूझा होगा कि यह बात तुम्हें भी मालूम हो सकती है।"

"मुझे क्या, पुलिस को भी मालूम है।"

"वह आदमी" - बलराज सोनी बोला - "चावला साहब का हत्यारा हो सकता है।"

"लेकिन उसकी एलीबाई...." - कमला ने कहना चाहा।

"गढी हुई हो सकती है। एलीबाई उसे अपने स्टाफ से हासिल है और उसका स्टाफ तो उसकी खातिर कुछ भी कहने को तैयार हो जायेगा । कोशिश की जाये तो" - उसने आग्नेय नेत्रों से मेरी तरफ देखा - "उसकी एलीबाई को तोड़ा जा सकता है, झूठी करार दिया जा सकता है।"

"राज" - कमला बोली - "तुम्हें ऐसी कोशिश करनी चाहिए। तुम्हें शैली भटनागर के पीछे पड़ना चाहिए।"

मैंने बड़े अनमने ढंग से सहमति में सिर हिलाया।

"इसकी ऐसा कुछ करने की नीयत नहीं लगती” - बलराज सोनी बोला - "यह एक मौकापरस्त आदमी है और दौलत का दीवाना है। अपनी माली हालत सुधारने के लिए ऐसे लोग अपने क्लायंट को भी धोखा दे सकते हैं । ये रईस लोगों में उठने-बैठने का मौका पाते हैं तो रईसी के सपने देखने लगते हैं। अपनी औकात से ऊपर उठने की इनकी ख्वाहिश इनसे कुछ भी करवा सकती है। इसी आदमी को देखो । रहता तो है ये ऐसे कबूतर के दड़बे जैसे फ्लैट में जिसकी बैठक की दीवार का उधड़ा हुआ पलस्तर तक यह ठीक नहीं करवा सकता लेकिन सपने देखता है यह चावला साहब जैसे लोगों की विशाल कोठियों के।"

मेरे कान खड़े हो गए । मैंने अपलक बलराज सोनी की तरफ देखा । बड़ी कठिनाई से अपने मन के भाव मैं अपने चेहरे पर प्रकट होने से रोक पाया।

"जिस उधड़े पलस्तर का तुमने जिक्र किया है" - मैं बोला - "वो दीवार पर बोतल मारकर मैंने खुद उधेड़ा था और वो मेरे लिए मेरी जिन्दगी की एक बड़ी अहम घटना की यादगार है इसलिए वो उधड़ा पलस्तर हमेशा उधड़ा ही रहेगा।
और जहां तक अपनी माली हालत सुधारने की बात है, कोई साधू-महात्मा या कोई अक्ल का अंधा ही ऐसी कोशिश से दूर रह सकता है । हैरानी है कि किसी का महत्वाकांक्षी होना तुम्हें एक गलत और काबिलेएतराज बात लगती है। वह आदमी क्या जो महत्वाकांक्षी ना हो ! तुम एक सिड़ी दिमाग के आदमी हो और बूढ़े हो । तुम एक नौजवान आदमी के दिल को और उसके दिमाग के अन्दाज को नहीं समझ सकते । तुम तो मेरी कमला से शादी करने की ख्वाहिश को भी मौकापरस्ती का दर्जा दोगे।"
कमला चौंकी।

"अभी क्या सुना मैंने ?"

"वही जो मैंने कहा" - मैं बड़ी संजीदगी से बोला - "मुझे अफसोस है कि यह बात मुझे ऐसे माहौल में कहनी पड़ी। लेकिन इस आदमी ने मेरी गैरत को ललकारकर मुझे मजबूर किया है।"

"लेकिन तुम..."

"हां, कमला । मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं।" मैंने बलराज सोनी की तरफ देखा । वह अपलक परे कहीं देख रहा था। कमला के चेहरे पर अजीब-सी उलझन, हैरानी और अविश्वास के भाव आ जा रहे थे।

"तुम वाकई मुझ से शादी करना चाहते हो ?" - वह धीरे से बोली।

"हां ।" - मैं दृढ़ स्वर में बोला - "जबसे मैंने तुम्हें देखा है, तभी से मैं तुम्हारा दीवाना बन गया हूं। अपने मन की बात मैं तुम पर बड़े सलीके ओर इत्मीनान से जाहिर करना चाहता था लेकिन अब ऐसी नफासत की गुंजायश नहीं । इस आदमी ने मुझे मजबूर किया कि है मैं तुम्हारे प्रति अपने प्यार और निष्ठा को साबित करके दिखाऊं । मैं तुमसे फौरन शादी करना चाहता हूं, कमला ।"

"लेकिन मैं गिरफ्तार हूं।"
 
"कोई बात नहीं । शादी गिरफ्तारी में भी हो सकती है। मैं कल सुबह ही तुमसे शादी कर लेना चाहता हूं।"

“यहां ? हवालात में ?"

"हां । कल सुबह मैं कुछ गवाहों और पंडित के साथ यहां आऊंगा । वह यहीं हमारी शादी करा देगा।"

"ये थाने वाले ऐसा होने देंगे ?"

"मैं पुलिस कमिश्नर की इजाजत लेकर आऊंगा।" ।

"और अगर मैं कत्ल के इल्जाम में फांसी चढ़ गई तो ?"

"नहीं चढोगी । कोई पति अपनी पत्नी को यूं फांसी पर नहीं चढने दे सकता । तुम्हें बेगुनाह साबित करने के लिए मैं
जमीन-आसमान एक कर दूंगा । तभी तो तुम्हें मेरी निष्ठा और ईमानदारी का सबूत मिले।।” |

"यह जमीन-आसमान एक" - बलराज सोनी बोला - "तुम्हे फांसी से बचाने के निरन, राके लिये करेगा । यह तुम्हारी दौलत हथियाने के लिए तुमसे शादी करना चाहता है।"

"तुम गन्दे दिमाग के आदमी हो" - मैं नफरतभरे स्वर में बोला- “इसलिए कोई गन्द ३ ३ । । बीते युग के आदमी हो । तुम आज की तेजरफ्तार दुनिया को नहीं समझते । तुल रु ।” कमला की तरफ घूमा - "कमला, तुम हां बोलो । देखना, सारी दुनिया के अखबारों में राम |
अनोखी शादी कभी किसी ने नहीं की होगी । बोलो हो ।”

"हां ।"


"मैं भी पंजाबी पुत्तर हूं।" - मैं खुद अपनी छाती ठोकता हुआ बोला - "और एक डर मैं किसी बात के पीछे पड़ जाऊं सही । फिर या तो वो बात नहीं या मैं नहीं । अगर है न दिखाया तो समझ लेना मैं अपने बाप की औलाद नहीं। अगर मेरी बीवी धर उसकी चिता में कूद गया तो कहना।"
-
निजामुद्दीन से जनपथ मैं सीधा न गया । पहले मैं कनाट प्लेस पहुंचा । सारे रास्ते मेरी निगाह कार के रियरव्यू मिरर पर । टिकी रही । सारे रास्ते एक कार मुझे अपने पीछे लगी दिखाई दी। मैं अपने ऑफिस पहुंचा । डॉली ऑफिस बन्द करके जा चुकी थी। मैंने अपनी चाबी से ताला खोला और भीतर दाखिल हुआ । जब से वह केस शुरू हुआ था, तब से पहली बार मेरे अपने ऑफिस में कदम पड़े थे । मैंने अपने ऑफिस में जाकर खिड़की का पर्दा तनिक सरकाकर बाहर झांका । जो कार मेरे पीछे लगी हुई थी, वो मुझे नीचे पार्किंग में खड़ी दिखाई दी।

मैंने यादव को फोन किया । गनीमत थी कि तुरन्त सम्पर्क स्थापित हो गया। मैंने उसे वस्तुस्थिति समझाई और बताया कि मैं क्या चाहता था। बड़ी मुश्किल से उसने अपने दल-बल के साथ शैली भटनागर की एडवरटाइजिंग एजेन्सी में पहुंचने की हामी भरी ।। मैं फिर ऑफिस से निकला और कार में सवार हुआ। तब भी मैं सीधा जनपथ न गया । मैं पटियाला हाउस में स्थित रजिस्ट्रार के दफ्तर में पहुंचा। वहां बतौर रिश्वत एक मोटी रकम खर्च करके मैंने अमर चावला की रजिस्टर्ड वसीयत की कॉपी निकलवाई । मैंने बहुत गौर से वह वसीयत पढ़ी और फिर उसे तह करके अपनी जेब में रख लिया। हत्यारे की दुक्की पीटने के लिये जो उद्देश्य की कमी थी, वह वसीयत की उस कॉपी ने पूरी कर दी थी। मैं जनपथ पहुंचा। मेरे पीछे लगी कार ने तब भी मेरा पीछा छोड़ नहीं दिया था। शैली भटनागर के ऑफिस में मेरी उससे मुलाकात हुई।

"कैसे आये ?" - वह बोला।

"आपने कहा था" - मैं मधुर स्वर में बोला - "कि अगर मैं फिर कभी हाजिर होऊं तो आपको असुविधा नहीं होगी।"

"यू आर मोस्ट वैलकम ।" - वह भी मुस्कुराया - "लेकिन सिर्फ इस वजह से तो तुम यहां नहीं आये होवोगे ।”

"हां" - मैंने कबूल किया - "सिर्फ इस वजह से तो नहीं आया।"

"कोई खास ही वजह होगी ?"

"खास भी है।"

"क्या ?"

"मैं दिन में भी यहां आया था। तब आप यहां नहीं थे। तब आप शायद मिसेज कमला चावला से मिलने गये हुए थे।

"कैसे जाना ?" - वह तनिक हड़बड़ाकर बोला ।

"खुद मैडम ने बताया ।"
 
वहां क्यों गये थे, यह मैडम को भी नहीं मालूम था ।"

।। ।। मैं वहां ?"

" क्या मैडम की वजह से आपकी यह पोल खुल सकती थी कि आप एक सजायाफ्ता ……

एकाएक वह बेहद खामोश हो गया। "पने इ भांपा कि मैडम की वजह से ऐसा कोई अन्देशा आपकी यहां दिल्ली शहर में बनी नेकनामी को नहीं था

"लेकिन वजह तो अब और पैदा हो गई" - वह चिन्तित भाव से बोला - "तुम जानते हो इस बात को ।”

*पुलिस भी जानती है।"

"फिर तो हो गया काम ।"

"नहीं हुआ। मेरा या पुलिस का आपको एक्सपोज करने का कोई इरादा नहीं है।"

* अपने बारे में तो तुम ऐसा कह सकते हो लेकिन पुलिस की क्या गारंटी कर सकते हो ?"

"पुलिस को आपकी पिछली जिन्दगी से कोई मतलब तभी हो सकता हैं जबकि आप चावला साहब के या और दो जनों के कत्ल के अपराधी हो, जैसा कि आप नहीं हैं।"

"तुम मानते हो यह बात ?"

"अब मानता हूं। इसलिए मानता हूं क्योंकि अब मैं असली अपराधी को जानता हूं।"

यानी कि कमला चावला अपराधी नहीं ?"

"हरगिज भी नहीं । मैडम भी उतनी ही बेगुनाह हैं जितने कि आप ।"

"तो फिर असली अपराधी कौन है ?"

"असली अपराधी एक मदारी है।"

"मतलब ?"

"मदारी जब अपना खेल दिखाता हैं तो क्या करता है ? वह अपने हाथ की सफाई दिखाता है। अगर उसने कोई करतब अपने दायें हाथ से दिखलाना होता है तो आपकी तवज्जो वह अपने बायें हाथ की तरफ रखता है। अपने पर से तवज्जो हटाये रखने के लिये ऐसा ही कुछ असली अपराधी ने किया है। अगर वह खुद करतब करने वाला दायां । हाथ है तो पब्लिक की तवज्जो के लिए निर्दोष बायां हाथ उसने किसी को तो बनाना ही था। वह बायां हाथ उसने मिसेज कमला चावला को बनाया ।"

भटनागर चेहरे पर उलझन और असमंजस के भाव लिए मुझे देखता रहा।

"अब दायां हाथ बायें हाथ से अलग तो किया नहीं जा सकता । इसलिए अगर हत्यारे को हम दायां हाथ मानें और मैडम को बायां हाथ माने तो यह मेरे बिना कहे भी आप समझ सकते है कि हर कत्ल के वक्त जहां मैडम रही होंगी,
,,, वहां हत्यारा भी रहा होगा। अब मदारी का करतब पकड़ने के लिये जरूरी बात यह है कि जो वह चाहता है, वो न हो । वह आपकी तवज्जो अपने बायें हाथ की तरफ रखना चाहता है ताकि वह अपने दायें हाथ से ऐसा कुछ कर सके जो कि बाद में जादू लगे। अब अगर आपकी जिद यह हो कि आप उसके दायें हाथ से निगाह नहीं हटायेंगे तो फिर सोचिये, भला कैसे कामयाब हो पायेगा वो ?"

"बहुत रहस्यभरी बातें कर रहे हो बरखुरदार !"

"भटनागर साहब, आज हर रहस्य का पर्दाफाश यही आपके ऑफिस में होने वाला है।"

2 "अच्छा ! वो कैसे ?"

"आज जब यहां मदारी अपना करतब दिखायेगा तो हम उसके बायें हाथ को नहीं देंखेंगे । हम अपनी मुकम्मल तवज्जो उसके दायें हाथ पर रखेंगे।"

"असली अपराधी यहां ?" - भटनागर हैरानी से बोला ।

"जी हां ।”

"मुझे तो यहां कोई नहीं दिखाई दे रहा !"

"मुझे दिखाई दे रहा है।"

"बरखुरदार, कहीं तुम्हारा इशारा मेरी ही तरफ तो नहीं ?"
 
मैंने मुस्कराते हुए इनकार में सिर हिलाया।

"देखो ।" - वह बड़ी संजीदगी से बोला - "जहां यह बात सच है कि जेल की सजा मैंने चावला साहब की वजह से काटी, वहां यह भी हकीकत है कि आज जिस शानदार जगह पर तुम इस वक्त बैठे हुए हो, वह भी चावला साहब का ही जहूरा है। आज मैं इतनी बड़ी और प्रतिष्ठित एडवरटाइजिंग एजेंसी का और उसके इतने मुफीद धन्धे का मालिक हूं तो वह चावला साहब की वजह से । बम्बई में जिस रोज मैं जेल से छूटा था उस रोज चावला साहब मुझे पहले से
जेल के दरवाजे पर खड़े मिले थे । वही मुझे दिल्ली लाये थे और उन्होंने ही मेरे इस पसन्दीदा धन्धे को फाइनांस करके मुझे किसी काबिल बनने का मौका दिया था । फाइनांस कम्पनी के रुपए पैसे के घोटाले की सारी मुसीबत । अपने सिर लेकर मैंने उन्हें जेल जाने से बचाया था। ऐसा करके जो एहसान मैंने उन पर किया था, उसका कई गुणा बदला मुझे हासिल हो चुका है । चावला साहब कोई अहसानफरामोश और यारमार आदमी साबित हुए होते तो मुमकिन था कि मैंने उनका कत्ल कर दिया होता । लेकिन वो ऐसे नहीं थे। उन्होंने तो जिन्दगी में हमेशा मेरी हर मुमकिन मदद की है। बरखुरदार, अपनी तरफ रोटी का निवाला बढ़ाने वाले हाथ पर थूक देने जैसी फितरत शैली भटनागर की नहीं है। कहने का मतलब यह है कि चावला साहव का कत्ल करने की बाबत मैं तो सपने में भी नहीं सोच सकता था।"

"मुझे आपकी बात पर विश्वास है।"

"आई एम ग्लैड ।"

मैंने खिड़की से बाहर झांका।

"पिछली बार उस पिछली इमारत के बारे में आपने क्या बताया था मुझे, क्या है वो ?"

"वो हमारा साउण्ड स्टूडियो हैं।"

"हां । साउण्ड स्टूडियो । वहां क्या होता है ?"

"वहां पब्लिसिटी फिल्म की शूटिंग होती है।"

"आजकल कुछ नहीं हो रहा वहां ?" –

"हो रहा है। वहां एक सिल्क मिल के उत्पादनों की शूटिंग हो रही है । मिल के उत्पादनों को वक्त से कहीं आगे की चीज साबित करने के लिए वहां मैंने चांद-सितारों का सैट लगाया है जिनमें से होकर एक स्पेसशिप गुजरता है और फिर चांद-सितारों के बीच उस सिल्क मिल की साड़ियां पहने सुंदरियां उतरती हैं। उन सुंदरियों में प्रमुख जूही चावला थी । वो बेचारी मर गई, इसलिए मुझे शूटिंग स्थगित कर देनी पड़ी।"

"मैंने कभी साउण्ड स्टूडियो नहीं देखा । मैंने कभी शूटिंग का सैट नहीं देखा । अलबत्ता ख्वाहिश बहुत है । अगर
आपको तकलीफ न हो तो दिखाइये कि यह सब सिलसिला कैसा होता है ?"

"इस वक्त तो सेट उजाड़ पड़ा है। जब शूटिंग हो रही हो, तब देखना ।”

"तब भी देख लेंगे, अब भी दिखा दीजिये।"

"ठीक है । चलो ।"

"आपको कोई असुविधा तो नहीं होगी ?"

"नहीं, मुझे क्या असुविधा होनी हैं ! अलबत्ता तुम्हारी इस ख्वाहिश पर हैरानी जरुर हो रही है मुझे ।"

मैं केवल मुस्कुराया।

"आओ ।"

मैं उसके साथ हो लिया ।
पिछवाड़े से निकलकर हमने पिछले कम्पाउण्ड में कदम रखा ।

कम्पाउण्ड पार करते समय मैंने एक गुप्त निगाह चारों तरफ दौड़ाई । सब-इंस्पेक्टर यादव या उसके किसी आदमी के मुझे कहीं दर्शन न हुए । मैं चिन्तित हो उठा। पता नहीं यादव आया भी था या नहीं। कम्पाउण्ड पार करके हम साउण्ड स्टूडियो की इमारत के करीब पहुंचे। मैंने देखा, स्टूडियो का लकड़ी का फाटकनुमा दरवाजा खुला था । भीतर दाखिल होते समय भटनागर ने मेरी बांह थाम ली लेकिन मैंने उसका हाथ झटक दिया।

“आप मुझसे अलग होकर चलिये।" - मैं बोला।

"क्यों ?" - वह हैरानी से बोला - "ऐसी क्या बात है जो...?"

"है कोई बात । कहना मानिये ।"

"बेहतर ।"

हमने भीतर कदम रखा। भीतर अन्धेरा था। भटनागर ने दो-तीन बत्तियां जलाई । भीतर चांद-सितारों का सैट लगा हुआ था । न दिखाई देने वाली तारों के साथ सैट के ऐन बीच में एक स्टारट्रैक स्टाइल स्पेसशिप लटका हुआ था । हम स्पेसशिप के करीब पहुंचे।

भटनागर अब उत्कण्ठा और रहस्य से बहुत ज्यादा अभिभूत लग रहा था।

"मैं जरा इस स्पेसशिप का मुआयना करता हूं" - मैं धीरे से बोला - "आप उधर अन्धेरे में चले जाइये और वहां से दरवाजे पर निगाह रखिये । ओके ?"

उसने सहमति में सिर हिलाया और बोला - "यहां क्या होने वाला है ?"

"यहां हत्यारा आने वाला है ।" - मैं फुसफुसाया ।

"क्यों ?"

"मेरी हत्या करने के लिए।"

"क..क्या ?"

"जाइये ।"

"ल...लेकिन.."

"कहना मानिये । जाइए।"

,,, वह स्पेसशिप से परे अन्धेरे में सरक गया। मैं स्पेसशिप का मुआयना करने लगा, या यूं कहिये कि मुआयना करता होने का अभिनय करने लगा। उस विशाल स्टूडियो का प्रवेश-द्वार वहां से काफी दूर था। तब मुझे सूझा की मुझे भटनागर से पूछना चाहिए था कि क्या वहां और भी कोई दरवाजा था लेकिन अब उसे वापिस बुलाना या पुकारना मुझे मुनासिब ने लगा। ठण्डी हवा का एक झोंका मेरे जिस्म से टकराया। वह झोंका किधर से आया हो सकता था ?
जरूर दरवाजे की ही तरफ से ।।

मैंने आंखें फाड़कर दरवाजे की तरफ देखा । वहां के नीमअंधेरे में मैं यह भी न देख सका कि दरवाजा पहले जितना ही भिड़का हुआ था या तनिक खुल गया था।

"सावधान !" - एकाएक भटनागर गला फाड़कर चिल्लाया।
 
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