hotaks444
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कृष्णा अभी भी हैरत से अपने बाप को देख रहा था. मानो एक पल के लिए तो उसके दिमाग़ का काम करना बंद हो गया हो.
कृष्णा- बापू.............त..अयू....तुम.
बिरजू- क्यों नहीं आ सकता क्या मैं इस वक़्त अपने घर पर. तू तो ऐसे देख रहा है जैसे मैं तेरा बाप नहीं कोई और हूँ.
कृष्णा- लेकिन....इतनी रात को........इस वक़्त..कैसे आना....हुआ. सब ......ठीक तो ...........हैं ना.
बिरजू- ये तेरी आवाज़ को क्या हुआ. तू इतना हकला क्यों रहा हैं. सब ठीक तो हैं ना. चल अंदर चलते हैं. और बिरजू अंदर आने के लिए अपने कदम बढ़ाता हैं और कृष्णा की मानो साँस अटक जाती हैं.
कृष्णा- नहीं..बापू.. मेरा मतलब......आप. थोड़ा सा......नहीं नहीं... नहीं बापू........आप ऐसे.....अंदर .....नहीं जा .सकते.
बिरजू- ये तू क्या अनाप-सनाप बके जा रहा हैं. तेरा दिमाग़ तो नहीं खराब हो गया ना. मुझे क्या मेरे ही घर में क्या तेरी इजाज़त लेनी पड़ेगी अंदर जाने की .और बिरजू झट से घर के अंदर आ जाता हैं.
बिरजू- राधिका कहाँ हैं इस वक़्त कृष्णा..कहीं दिखाई नहीं दे रही.
कृष्णा- होगी .....अपने कमरे में. ..शायद......सो रही होगी.
बिरजू फिर अपने कदम बढ़ाते हुए सीधा राधिका के कमरे में चला जाता हैं और राधिका इस वक़्त अपने कपड़े पहन चुकी थी. उसको भी बड़ा झटका लगता है अपने बापू को ऐसे अचानक घर आया देखकर.
बिरजू की नज़र जब राधिका पर पड़ती हैं तब बिरजू बड़े गौर से राधिका को सिर से लेकर पाँव तक घूर घूर कर देखने लगता हैं. तभी पीछे से कृष्णा भी वहाँ आ जाता हैं. इस वक़्त राधिका भी अपने कपड़े सही ढंग से नहीं पहन पाई थी. उपर से उसकी जुल्फें खुली हुई थी और बिस्तेर भी अस्त-व्यस्त था. बिरजू कमरे को बड़े गौर से एक एक चीज़ देखने लगता हैं. और कमरे का नज़ारा देखकर उसको समझ में आ जाता हैं कि अभी थोड़े देर पहले यहाँ पर क्या चल रहा था. फिर वो कमरे से बाहर निकल कर अपने घर के एक एक चीज़ को गौर से देखने लगता हैं फिर वो पीछे बरामदे में जाता हैं और जब राधिका और कृष्णा के कपड़े उसे वहाँ मिलते हैं तब उसका शक़ पूरे यकीन में बदल जाता हैं और वो उन कपड़ों को उठा कर राधिका और कृष्णा के बीच लाकर रख देता हैं.
जब कृष्णा और राधिका की नज़र अपने कपड़ों पर पड़ती हैं तो उन्दोनो के होश उड़ जाते हैं.
बिरजू- ये सब क्या हैं राधिका. तेरे कपड़े और कृष्णा के कपड़े बाहर कैसे पड़े हुए हैं.
राधिका- वो मैं शाम को आई थी तो बारिश में मैं पूरी भीग गयी थी तो मैने वो कपड़े ...............................राधिका आगे कुछ बोल पाती इसी पहले बिरजू राधिका की बात काट देता हैं.
बिरजू- और तू क्या कहना चाहता हैं क्या तू भी वही कहेगा जो राधिका अभी अभी कही हैं. कृष्णा कुछ नहीं बोलता और हां में अपनी गर्दन हिला देता हैं.
बिरजू- चलो मान लिया कि तुम दोनो भीग गये थे तो तुम्हारे कपड़े तो बाथरूम में होने चाहिए थे ना. तो वो बाहर बरामदे में क्या कर रहे थे.
राधिका- वो मैं .........बाथरूम में रखने ही वाली थी.................इसी पहले राधिका आगे अपना शब्द पूरा कर पति बिरजू का एक ज़ोरदार थप्पड़ उसके गाल पर पड़ता हैं. और राधिका के आँख से आँसू छलक पड़ते हैं.
बिरजू- झूट.................झूट बोल रही हैं तू राधिका. ................सरसार झूट. सच तो ये हैं कि तू कृष्णा के साथ बारिश में उसका साथ अपनी हवस शांत करवा रही थी.
कृष्णा- बापू..ये तुम...........क्या बोल रहे हो.....ये झूट हैं....
बिरजू का एक ज़ोरदार थप्पड़ अब कृष्णा के गाल पर पड़ता हैं और कृष्णा अपना सिर झुका कर नीचे देखने लगता हैं.
बिरजू-क्यों मैं सही बोल रहा हूँ ना. राधिका तू इतना नीचे गिर जाएगी मैं कभी सपने में भी नहीं सोचा था. तुझे और कोई नहीं मिला अपनी हवस शांत करवाने के लिए. मिला भी तो तेरा अपना ही भाई.
राधिका नज़रें नीचे झुकाए अभी भी बिरजू के सामने खड़ी थी.
बिरजू- मैं तुझसे कुछ पूछ रहा हूँ राधिका. मेरे सवालों का जवाब मुझे चाहिए. इसी वक़्त.
राधिका- हां बापू आप जो समझ रहे हैं वो बिल्कुल सच हैं. मैं हर रात अपने भैया के साथ सोती हूँ.
बिरजू का एक और करारा थप्पड़ राधिका के गाल पर पड़ता हैं और इस बार राधिका के होंठों से खून निकल जाता हैं.
बिरजू- समझ में नहीं आता कि मैं तुझे क्या कहूँ.....एक रखैल........... या इस हरामी को ......बेहन्चोद. जिसे और कोई नहीं मिली चोदने के लिए. मिली भी तो अपनी ही बेहन. तुमने तो भाई बेहन के रिश्ते के मायने ही बदल कर रख दिए. कितना भरोसा था मुझे तुझ पर. मैं तो यही सोचता था कि मेरी बेटी कभी भी कोई ग़लत काम नहीं करेगी. मगर तूने तो मेरे विश्वास की धज़ियाँ उड़ा डाली. शरम आती हैं मुझे तुम जैसे औलाद को अपना औलाद कहते हुए. इससे अच्छा तो मैं तेरे पैदा होते ही तेरा गला घोंट देता. कम से कम आज तो ये दिन मुझे नहीं देखना पड़ता.
राधिका आगे बढ़कर बिरजू के दोनो हाथों को अपनी गर्दन पर रख देती हैं- लो बापू घोंट दो मेरा गला. कम से कम आपको मुझसे तो छुटकारा मिल ही जाएगा. मैं तो वैसे भी जीना नहीं चाहती.
कृष्णा आगे बढ़कर अपने बापू का हाथ छुड़ाता हैं- बापू मुझे जितना मारना हैं मार लो. मैं एक शब्द कुछ नहीं कहूँगा. जो कहना हैं मुझे कह लो. राधिका बिल्कुल बे-कसूर हैं.
बिरजू- तुझे क्या कहूँ एक बेहन का आशिक़ ...........या बेहन्चोद. इतना समझ ले मैं तेरी तरह बेहन्चोद नहीं हूँ जो अपनी ही बेहन चोद्ता हो. और ना ही मुझे शौक हैं कि तेरी तरह अपनी बेटी को चोदु. और मैं तेरी तरह बेटी चोद नहीं बनना चाहता. मैं मर जाना पसंद करूँगा मगर ऐसा नीच काम कभी नहीं करूँगा.
राधिका- बस कीजिए बापू. अब मुझसे ये सब और नहीं सुना जाएगा.
बिरजू फिर आगे बढ़कर राधिका के गाल पर तीन चार थप्पड़ जड़ देता हैं फिर उसके बालों को कसकर अपनी मुट्ठी में पकड़ लेता हैं- क्यों भाई के साथ रातें रंगीन करने पर शरम नहीं आई और अब ये सब सुनने में शरम आ रही हैं. और फिर से तीन चार थप्पड़ राधिका के गाल पर जड़ देता हैं. राधिका के चेहरे पर बिरजू के हाथों के निशान सॉफ दिखाई दे रहे थे. उसका चेहरा पूरी तरह से लाल पड़ गया था. और होंठो से खून भी बह रहा था. तभी कृष्णा आगे बढ़कर राधिका को छुड़ाता हैं.
कृष्णा- बस करो बापू. आज मार डालोगे क्या राधिका को.
बिरजू- जी तो कर रहा हैं कि इसकी आज जान ले लूँ. और बिरजू आकर वहीं फर्श पर बैठ जाता हैं.
राधिका आगे बढ़कर अपने बापू के पास जाती हैं- रुक क्यों गये बापू. मेरे लिए ये सौभाग्य की बात होगी कि मेरी मौत आपके हाथों हो. हां मैं मानती हूँ कि मैने भाई बेहन के रिश्ते को कलंकित किया हैं. मैं इन सब की कसूरवार हूँ. इसमें मेरे भैया का कोई दोष नहीं. मैने ही इन्हें मज़बूर किया था ये सब करने के लिए. मैं ही बहक गयी थी. मगर इन सब के पीछे वजह थी. आप ने तो बड़ी आसानी से मुझे ना जाने क्या क्या कह दिया पर मैं आपसे पूछ सकती हूँ कि आज तक आपने मेरे लिए क्या किया. आज तक आपने कभी भी अपने बाप होने का कोई भी फ़र्ज़ निभाया. क्या हमारी ज़रूरतें होती हैं कभी आपने सोचने की कोशिश की.
सिर्फ़ औलाद पैदा कर देने से वो बाप या मा नहीं कहलाता. बाप या मा का ये भी फ़र्ज़ होता हैं कि वो अपने औलाद का पालन पोषण करें. उसकी हर ज़रूरतो को पूरा करें. उसकी हर सुख दुख में बराबर का हिस्सेदार बने. मगर आपने तो मुझे पैदा करके छोड़ दिया. क्या मैं पूछ सकती हूँ कि आज तक आपने मेरे लिए क्या किया हैं. आप सिर्फ़ बाप कहलाने के हक़दार हो बाप नहीं हो............
बिरजू अब लगभग शांत हो चुका था और वो राधिका की बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था.
राधिका- अगर बचपन से लेकर अब तक आपने बाप होने का फ़र्ज़ निभाया होता तो आज ये सब नौबत नहीं आती. कृष्णा भैया भी आपकी ही राहों पर चल रहें थे. दिन रात शराब सिग्रेट और रंडी बाज़ी ये सब इनका रोज़ का काम था. अगर मैने इन्हें सुधारने के लिए अपने आप को इनके हवाले किया तो क्या ग़लत किया.
अगर आज ये सब कुछ छोड़ कर एक अच्छा इंसान बन रहे हैं तो मेरा भी फ़र्ज़ बनता हैं कि मैं इनकी खुशी के लिए इनका हर इच्छा पूरी करूँ चाहे वो इच्छा बीवी की क्यों ना हो. मैं तन मन से इनकी सेवा करूँ. क्या ये सब करके मैने ग़लत किया.
अगर बचपन में आपने मेरा दामन थाम लिया होता तो आज ये सब कभी नहीं होता. आज आपके अंदर भी ज़िमेदारी नाम की कोई चीज़ होती. अगर आपने इस घर की ज़िम्मेदारी नहीं उठाई और इस घर की पूरी ज़िम्मेदारी मैने अपने उपर ली तो क्या मैने ग़लत किया. मुझे जवाब दो क्या इन सब सवलों जवाब हैं आपके पास.
राधिका की ऐसी बातें सुनकर तो आज बिरजू की भी बोलती बंद हो गयी थी वो भी सोच में डूब जाता हैं और राधिका के एक एक शब्दों का जवाब ढूँढने की कोशिश करता हैं.
कृष्णा- बापू.............त..अयू....तुम.
बिरजू- क्यों नहीं आ सकता क्या मैं इस वक़्त अपने घर पर. तू तो ऐसे देख रहा है जैसे मैं तेरा बाप नहीं कोई और हूँ.
कृष्णा- लेकिन....इतनी रात को........इस वक़्त..कैसे आना....हुआ. सब ......ठीक तो ...........हैं ना.
बिरजू- ये तेरी आवाज़ को क्या हुआ. तू इतना हकला क्यों रहा हैं. सब ठीक तो हैं ना. चल अंदर चलते हैं. और बिरजू अंदर आने के लिए अपने कदम बढ़ाता हैं और कृष्णा की मानो साँस अटक जाती हैं.
कृष्णा- नहीं..बापू.. मेरा मतलब......आप. थोड़ा सा......नहीं नहीं... नहीं बापू........आप ऐसे.....अंदर .....नहीं जा .सकते.
बिरजू- ये तू क्या अनाप-सनाप बके जा रहा हैं. तेरा दिमाग़ तो नहीं खराब हो गया ना. मुझे क्या मेरे ही घर में क्या तेरी इजाज़त लेनी पड़ेगी अंदर जाने की .और बिरजू झट से घर के अंदर आ जाता हैं.
बिरजू- राधिका कहाँ हैं इस वक़्त कृष्णा..कहीं दिखाई नहीं दे रही.
कृष्णा- होगी .....अपने कमरे में. ..शायद......सो रही होगी.
बिरजू फिर अपने कदम बढ़ाते हुए सीधा राधिका के कमरे में चला जाता हैं और राधिका इस वक़्त अपने कपड़े पहन चुकी थी. उसको भी बड़ा झटका लगता है अपने बापू को ऐसे अचानक घर आया देखकर.
बिरजू की नज़र जब राधिका पर पड़ती हैं तब बिरजू बड़े गौर से राधिका को सिर से लेकर पाँव तक घूर घूर कर देखने लगता हैं. तभी पीछे से कृष्णा भी वहाँ आ जाता हैं. इस वक़्त राधिका भी अपने कपड़े सही ढंग से नहीं पहन पाई थी. उपर से उसकी जुल्फें खुली हुई थी और बिस्तेर भी अस्त-व्यस्त था. बिरजू कमरे को बड़े गौर से एक एक चीज़ देखने लगता हैं. और कमरे का नज़ारा देखकर उसको समझ में आ जाता हैं कि अभी थोड़े देर पहले यहाँ पर क्या चल रहा था. फिर वो कमरे से बाहर निकल कर अपने घर के एक एक चीज़ को गौर से देखने लगता हैं फिर वो पीछे बरामदे में जाता हैं और जब राधिका और कृष्णा के कपड़े उसे वहाँ मिलते हैं तब उसका शक़ पूरे यकीन में बदल जाता हैं और वो उन कपड़ों को उठा कर राधिका और कृष्णा के बीच लाकर रख देता हैं.
जब कृष्णा और राधिका की नज़र अपने कपड़ों पर पड़ती हैं तो उन्दोनो के होश उड़ जाते हैं.
बिरजू- ये सब क्या हैं राधिका. तेरे कपड़े और कृष्णा के कपड़े बाहर कैसे पड़े हुए हैं.
राधिका- वो मैं शाम को आई थी तो बारिश में मैं पूरी भीग गयी थी तो मैने वो कपड़े ...............................राधिका आगे कुछ बोल पाती इसी पहले बिरजू राधिका की बात काट देता हैं.
बिरजू- और तू क्या कहना चाहता हैं क्या तू भी वही कहेगा जो राधिका अभी अभी कही हैं. कृष्णा कुछ नहीं बोलता और हां में अपनी गर्दन हिला देता हैं.
बिरजू- चलो मान लिया कि तुम दोनो भीग गये थे तो तुम्हारे कपड़े तो बाथरूम में होने चाहिए थे ना. तो वो बाहर बरामदे में क्या कर रहे थे.
राधिका- वो मैं .........बाथरूम में रखने ही वाली थी.................इसी पहले राधिका आगे अपना शब्द पूरा कर पति बिरजू का एक ज़ोरदार थप्पड़ उसके गाल पर पड़ता हैं. और राधिका के आँख से आँसू छलक पड़ते हैं.
बिरजू- झूट.................झूट बोल रही हैं तू राधिका. ................सरसार झूट. सच तो ये हैं कि तू कृष्णा के साथ बारिश में उसका साथ अपनी हवस शांत करवा रही थी.
कृष्णा- बापू..ये तुम...........क्या बोल रहे हो.....ये झूट हैं....
बिरजू का एक ज़ोरदार थप्पड़ अब कृष्णा के गाल पर पड़ता हैं और कृष्णा अपना सिर झुका कर नीचे देखने लगता हैं.
बिरजू-क्यों मैं सही बोल रहा हूँ ना. राधिका तू इतना नीचे गिर जाएगी मैं कभी सपने में भी नहीं सोचा था. तुझे और कोई नहीं मिला अपनी हवस शांत करवाने के लिए. मिला भी तो तेरा अपना ही भाई.
राधिका नज़रें नीचे झुकाए अभी भी बिरजू के सामने खड़ी थी.
बिरजू- मैं तुझसे कुछ पूछ रहा हूँ राधिका. मेरे सवालों का जवाब मुझे चाहिए. इसी वक़्त.
राधिका- हां बापू आप जो समझ रहे हैं वो बिल्कुल सच हैं. मैं हर रात अपने भैया के साथ सोती हूँ.
बिरजू का एक और करारा थप्पड़ राधिका के गाल पर पड़ता हैं और इस बार राधिका के होंठों से खून निकल जाता हैं.
बिरजू- समझ में नहीं आता कि मैं तुझे क्या कहूँ.....एक रखैल........... या इस हरामी को ......बेहन्चोद. जिसे और कोई नहीं मिली चोदने के लिए. मिली भी तो अपनी ही बेहन. तुमने तो भाई बेहन के रिश्ते के मायने ही बदल कर रख दिए. कितना भरोसा था मुझे तुझ पर. मैं तो यही सोचता था कि मेरी बेटी कभी भी कोई ग़लत काम नहीं करेगी. मगर तूने तो मेरे विश्वास की धज़ियाँ उड़ा डाली. शरम आती हैं मुझे तुम जैसे औलाद को अपना औलाद कहते हुए. इससे अच्छा तो मैं तेरे पैदा होते ही तेरा गला घोंट देता. कम से कम आज तो ये दिन मुझे नहीं देखना पड़ता.
राधिका आगे बढ़कर बिरजू के दोनो हाथों को अपनी गर्दन पर रख देती हैं- लो बापू घोंट दो मेरा गला. कम से कम आपको मुझसे तो छुटकारा मिल ही जाएगा. मैं तो वैसे भी जीना नहीं चाहती.
कृष्णा आगे बढ़कर अपने बापू का हाथ छुड़ाता हैं- बापू मुझे जितना मारना हैं मार लो. मैं एक शब्द कुछ नहीं कहूँगा. जो कहना हैं मुझे कह लो. राधिका बिल्कुल बे-कसूर हैं.
बिरजू- तुझे क्या कहूँ एक बेहन का आशिक़ ...........या बेहन्चोद. इतना समझ ले मैं तेरी तरह बेहन्चोद नहीं हूँ जो अपनी ही बेहन चोद्ता हो. और ना ही मुझे शौक हैं कि तेरी तरह अपनी बेटी को चोदु. और मैं तेरी तरह बेटी चोद नहीं बनना चाहता. मैं मर जाना पसंद करूँगा मगर ऐसा नीच काम कभी नहीं करूँगा.
राधिका- बस कीजिए बापू. अब मुझसे ये सब और नहीं सुना जाएगा.
बिरजू फिर आगे बढ़कर राधिका के गाल पर तीन चार थप्पड़ जड़ देता हैं फिर उसके बालों को कसकर अपनी मुट्ठी में पकड़ लेता हैं- क्यों भाई के साथ रातें रंगीन करने पर शरम नहीं आई और अब ये सब सुनने में शरम आ रही हैं. और फिर से तीन चार थप्पड़ राधिका के गाल पर जड़ देता हैं. राधिका के चेहरे पर बिरजू के हाथों के निशान सॉफ दिखाई दे रहे थे. उसका चेहरा पूरी तरह से लाल पड़ गया था. और होंठो से खून भी बह रहा था. तभी कृष्णा आगे बढ़कर राधिका को छुड़ाता हैं.
कृष्णा- बस करो बापू. आज मार डालोगे क्या राधिका को.
बिरजू- जी तो कर रहा हैं कि इसकी आज जान ले लूँ. और बिरजू आकर वहीं फर्श पर बैठ जाता हैं.
राधिका आगे बढ़कर अपने बापू के पास जाती हैं- रुक क्यों गये बापू. मेरे लिए ये सौभाग्य की बात होगी कि मेरी मौत आपके हाथों हो. हां मैं मानती हूँ कि मैने भाई बेहन के रिश्ते को कलंकित किया हैं. मैं इन सब की कसूरवार हूँ. इसमें मेरे भैया का कोई दोष नहीं. मैने ही इन्हें मज़बूर किया था ये सब करने के लिए. मैं ही बहक गयी थी. मगर इन सब के पीछे वजह थी. आप ने तो बड़ी आसानी से मुझे ना जाने क्या क्या कह दिया पर मैं आपसे पूछ सकती हूँ कि आज तक आपने मेरे लिए क्या किया. आज तक आपने कभी भी अपने बाप होने का कोई भी फ़र्ज़ निभाया. क्या हमारी ज़रूरतें होती हैं कभी आपने सोचने की कोशिश की.
सिर्फ़ औलाद पैदा कर देने से वो बाप या मा नहीं कहलाता. बाप या मा का ये भी फ़र्ज़ होता हैं कि वो अपने औलाद का पालन पोषण करें. उसकी हर ज़रूरतो को पूरा करें. उसकी हर सुख दुख में बराबर का हिस्सेदार बने. मगर आपने तो मुझे पैदा करके छोड़ दिया. क्या मैं पूछ सकती हूँ कि आज तक आपने मेरे लिए क्या किया हैं. आप सिर्फ़ बाप कहलाने के हक़दार हो बाप नहीं हो............
बिरजू अब लगभग शांत हो चुका था और वो राधिका की बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था.
राधिका- अगर बचपन से लेकर अब तक आपने बाप होने का फ़र्ज़ निभाया होता तो आज ये सब नौबत नहीं आती. कृष्णा भैया भी आपकी ही राहों पर चल रहें थे. दिन रात शराब सिग्रेट और रंडी बाज़ी ये सब इनका रोज़ का काम था. अगर मैने इन्हें सुधारने के लिए अपने आप को इनके हवाले किया तो क्या ग़लत किया.
अगर आज ये सब कुछ छोड़ कर एक अच्छा इंसान बन रहे हैं तो मेरा भी फ़र्ज़ बनता हैं कि मैं इनकी खुशी के लिए इनका हर इच्छा पूरी करूँ चाहे वो इच्छा बीवी की क्यों ना हो. मैं तन मन से इनकी सेवा करूँ. क्या ये सब करके मैने ग़लत किया.
अगर बचपन में आपने मेरा दामन थाम लिया होता तो आज ये सब कभी नहीं होता. आज आपके अंदर भी ज़िमेदारी नाम की कोई चीज़ होती. अगर आपने इस घर की ज़िम्मेदारी नहीं उठाई और इस घर की पूरी ज़िम्मेदारी मैने अपने उपर ली तो क्या मैने ग़लत किया. मुझे जवाब दो क्या इन सब सवलों जवाब हैं आपके पास.
राधिका की ऐसी बातें सुनकर तो आज बिरजू की भी बोलती बंद हो गयी थी वो भी सोच में डूब जाता हैं और राधिका के एक एक शब्दों का जवाब ढूँढने की कोशिश करता हैं.