Antarvasna Sex kahani वक़्त के हाथों मजबूर - Page 14 - SexBaba
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Antarvasna Sex kahani वक़्त के हाथों मजबूर

राधिका के चेहरे पर चिंता की लकीरे और गहरी हो जाती हैं. वो आचे से जानती थी कि आज जो उसने कदम उठाया हैं वो उसे सीधा मौत के मूह तक लेकर जाएगा. मगर उसके पास और कोई चारा भी तो नहीं था. और वो ये बात भी अच्छे से जानती थी कि आने वाला वो पल उसके लिए कितना भयानक होने वाला हैं मगर आज उसको इन सब हालातों से अकेले सामना करना था शायद अपनों की ज़िंदगी बचाने के लिए...........

शाम को राहुल राधिका से मिलने आता हैं. राधिका राहुल को देखकर दौड़ कर उसके सीने से लिपट जाती हैं और फफक फफक कर रोने लगती हैं. राधिका को ऐसे रोता देखकर राहुल भी थोड़ा घबरा जाता हैं. और उसके सिर पर बड़े प्यार से अपने हाथ फिराता हैं.

राहुल- क्या हुआ जान. किसी ने कुछ कहा क्या ????

राधिका- नहीं राहुल कुछ अच्छा नहीं लग रहा. मुझे बहुत घबराहट हो रही हैं. पता नहीं एक डर सा लग रहा हैं. आज हो सके तो तुम यहीं पर मेरे पास रुक जाओ. आज की रात मैं तुम्हारे साथ बिताना चाहती हूँ फिर पता नहीं कब दुबारा ये मौका मिले ना मिले..

राहुल एक नज़र राधिका को देखता हैं- क्या बात हैं राधिका तुम ऐसी बाते क्यों कर रही हो. कहीं कोई बुरा ख्वाब तो नहीं देखा ना.

राधिका अपने ज़ज्बात को काबू में करती हैं- हां शायद..............कोई बुरा सपना ही देखा होगा.

राहुल- क्या करू जान मैं तो यही सोचकर आया था कि आज मैं तुम्हारे साथ रहूँगा मगर अभी डीजीपी सर का फोन आया था मुझे आज रात में ही मुंबई निकलना पड़ेगा. वहाँ पर एक केस फँसा हुआ हैं और डीजीपी सर का आदेश हैं कि वो केस मैं ही हॅंडल करूँ.

राधिका समझ गयी थी कि ये सब बिहारी ने ही करवाया हैं -कितना वक़्त लग जाएगा राहुल तुम्हें आने में.

राहुल- मैं बहुत जल्द कोशिश करूँगा जान फिर भी एक हफ़्ता तो लग ही जाएगा. और जैसे ही मैं आउन्गा हम दोनो तुरंत शादी कर लेंगे. आख़िर 8 दिन ही तो बचे हैं हुमारी शादी को. फिर मैं तुमसे कभी दूर नहीं जाउन्गा.

राधिका के चेहरे पर मायूसी छा जाती हैं मगर वो राहुल को रोकने की कोशिश नहीं करती.

राहुल बड़े प्यार से राधिका के लिप्स को चूम लेता हैं और उसकी आँखों में बड़े प्यार से देखने लगता हैं. अब भी राधिका की आँखों में आँसू थे.

राहुल- क्या हुआ जान तुम्हारे चेहरे पर ऐसी उदासी अच्छी नहीं लगती. बस एक हफ्ते की तो बात हैं मेरा भी बिल्कुल मन नहीं कर रहा जाने को मगर क्या करें ये नौकरी साली हैं ही ऐसी चीज़. जहाँ ले जाए जाना पड़ता हैं. और चिंता मत करो मैने आने से पहले ही निशा को फोन कर दिया था. वो अब थोड़ी देर में आती ही होगी. आज वो तुम्हारे पास रुक जाएगी फिर तुम्हें मेरी याद भी नहीं आएगी.

राधिका- ठीक हैं राहुल जैसा तुम्हें ठीक लगे.

राहुल- अब मैं चलता हूँ जान. मैं पहले घर जाउन्गा फिर मुझे समान भी तो पॅक करना हैं. और वैसे भी फोन से बराबर तुमसे बात होती ही रहेगी. बस अपना ख्याल रखना. और राहुल इतना बोलकर वो बाहर जाने के लिए मुड़ता हैं तभी राधिका दौड़ कर राहुल के पीछे से लिपट कर रोने लगती हैं. राहुल फिर राधिका की ओर मूह करता हैं फिर उसे अपने सीने से लगा लेता हैं.

राहुल- बस करो जान. मैं कोई हमेशा के लिए थोड़ी ही ना जा रहा हूँ. बस एक हफ्ते की तो बात हैं. देख लेना एक हफ़्ता यू ही गुजर जाएगा. फिर मैं प्रॉमिस करता हूँ कि उसके बाद तुमसे कभी दूर नहीं जाउन्गा.

राधिका- जा रहे हो राहुल मैं तुम्हें नहीं रोकूंगी मगर इतना याद रखा कि राधिका हर पल हर घड़ी तुम्हारे लौटने का इंतेज़ार करेगी. मुझे तुम्हारा इंतेज़ार रहेगा मगर इतना ज़रूर याद रखना कहीं ऐसा ना हो कि तुम्हारी राह देखते देखते कहीं मेरी जान ना निकल जाए. मैं तुम्हारा बेसब्री से इंतेज़ार करूँगी राहुल........आइ लव यू.
 
राहुल राधिका को अपने सीने से लगा लेता हैं फिर वो तेज़ी से घर के बाहर निकल जाता हैं. वो जानता था कि और वो थोड़ी देर राधिका के पास रुका तो वो भी रो देगा. बड़े मुश्किल से वो अपने ज़ज्बात को काबू में रखता हैं और सीधा अपने घर की ओर निकल जाता हैं. राधिका वहीं बुत की तरह खड़ी चुप चाप राहुल को जाता हुआ देख रही थी. अब भी उसकी आँखों में आँसू थे. राहुल को तो इस बात का अंदाज़ा भी नहीं था कि आज राधिका कितनी बड़ी मुसीबत में हैं. शायद यही तो वो प्यार और समर्पण की भावना थी राधिका के अंदर जो अपनी परवाह किए बगैर बस वो अपने प्यार पर कोई आँच तक नहीं आने देना चाहती थी.

राधिका कुछ देर तक ऐसे ही गुम सूम सी बैठी रहती हैं फिर वो जाकर शराब की बॉटल निकाल कर पीने लगती हैं. थोड़ी देर के बाद निशा भी आ जाती हैं.

निशा जब राधिका के हाथों में शराब की बॉटल देखती हैं तो वो कुछ कह नहीं पाती . वो जानती थी कि आज राधिका कितनी टूट चुकी हैं. वो उसे और दुखी नहीं करना चाहती थी.

निशा- राधिका कभी तो ये शराब को अपने से दूर रखा कर. देख अपने आप को क्या हालत बना रखी हैं. अगर ऐसे ही पीती रहेगी तो मर जाएगी एक दिन.

राधिका- अच्छा तो हैं निशा और वैसे भी अब जीने में क्या रखा हैं. लेकिन भगवान मेरे जैसे को मौत भी इतनी आसानी से नहीं देगा.

निशा- चुप कर राधिका. हर वक़्त उल्टी सीधी बातें करती रहती हैं. मैं जानती हूँ कि आज तेरे दिल पर क्या गुजर रही होगी मगर ये कोई तरीका नहीं हैं अपने गम भूलने का.

राधिका- तू फिर शुरू हो गयी. ठीक हैं आज तू भी अपनी भडास निकाल ले. और वैसे अब तू ही तो हैं जो अब मेरे पास है.

निशा कुछ नहीं कहती और राधिका को अपने सीने से लगा लेती हैं. कुछ देर तक वो दोनो ऐसे ही एक दूसरे से ऐसे ही लिपटे रहते हैं.

निशा- चल तू आराम कर मैं तेरे लिए खाना बना देती हूँ. फिर निशा जाकर खाना बनाने लगती हैं. फिर थोड़ी देर के बाद वो राधिका के पास आती हैं फिर दोनो खाना खाते हैं.

राधिका- एक बात कहूँ निशा तू बुरा तो नहीं मानेगी ना.

निशा- हां पूछ मैं तेरी बातो का क्यों बुरा मानूँगी.

राधिका- कहीं ऐसा तो नहीं हैं ना कि तू भी राहुल से ही प्यार करती हैं. अगर ऐसा हैं तो मुझे बता देना मैं राहुल से तेरे लिए बात करूगी. वो अक्सर तेरी तारीफ़ करता हैं.

निशा को राधिका की ऐसी बातो को सुनकर एक झटका लगता हैं- तू ये सब क्या बोल रही हैं........राहुल मेरा अच्छा दोस्त हैं मैं उससे कोई प्यार व्यार नहीं करती. और तेरी शादी होने वाली हैं राहुल से भला तू ऐसी बातें कैसे कर सकती हैं.

राधिका- आइ आम सॉरी निशा मुझे ऐसा लगा कि तू भी राहुल को चाहती होगी इस लिए पूछ लिया. पर तूने बताया नहीं कि तेरे बाय्फ्रेंड का क्या हुआ.

निशा- वो इस वक़्त सहर के बाहर हैं. अगर आ जाएगा तो मैं उससे बात करूँगी. चल तू भी अब सो जा बहुत रात हो गयी हैं और नशे में तू कुछ भी बके जा रही हैं. फिर राधिका और निशा वहीं एक ही बेड पर सो जाते हैं. मगर निशा को कहाँ नींद आने वाली थी वो तो बस राधिका की बातो को सोचने लगती हैं. ये बात तो निशा समझ रही थी कि राधिका ने उससे मज़ाक में कहीं हैं मगर राधिका ने आज उससे कोई मज़ाक नहीं किया था.

निशा के दिमाग़ में इस वक़्त कई तरह के सवाल उठ रहे थे. वो यही सोच रही थी अगर राधिका को ये बात पता चल जाएगी कि वो भी राहुल को चाहती हैं तो राधिका के दिल पर क्या बीतेगी. ये तो आने वाला वक़्त ही बताने वाला था कि राहुल की ज़िंदगी में कौन आता हैं........राधिका ....या फिर.....निशा.

उधेर राहुल भी तैयार होता हैं और राधिका का एक पासपोर्ट साइज़ फोटो वो अपने पर्स में रख लेता हैं. और वहीं एक बड़ा सा राधिका का फोटो फ्रेम पर दो गुलाब को फूल रखकर वो मुस्कुरा उठता हैं. ....बहुत जल्द तुम इस घर की रानी बनोगी............. दिल में राधिका के लिए कई तरह के सपने सँजोकर वो अपनी जीप में बैठकर अपने घर से बाहर मुंबई के लिए निकल पड़ता हैं.

सुबेह निशा उठती हैं फिर फ्रेश होकर वो अपने घर के लिए निकल जाती है. राधिका भी उठकर फ्रेश होती हैं. राधिका के दिल में बेचैनी और डर का मिला जुला रूप था. उसका मन सुबह से कहीं नहीं लग रहा था वो बार बार बिहारी की बातो को सोच रही थी. तभी बिहारी का कॉल आता हैं. राधिका ना चाहते हुए भी वो फोन रिसीव करती हैं.
 
बिहारी- मेरा आदमी अभी थोड़ी देर में तेरे पास आ जाएगा. उसके हाथों से मैं तेरे लिए कपड़े भिजवा रहा हूँ. तू वो ही पहन कर आएगी. और हां जिस तरह से तू अपने भैया के लिए तैयार हुई थी आज तुझे भी उसी तरह तैयार होकर मेरे पास आना हैं. और एक बात तेरी गर्देन के नीचे तेरे शरीर पर कहीं बाल नहीं होना चाहिए. तू समझ रही हैं ना कि मेरा इशारा किस तरफ हैं. अगर नहीं समझी तो बोल खुल कर समझा देता हूँ.

बिहारी की ऐसी बातो को सुनकर राधिका का चेहरे शरम से लाल हो जाता हैं. वो तुरंत बोल पड़ती हैं- मैं समझ गयी.........तुम्हारा इशारा किस तरफ हैं...जैसे तुम चाहते हो वैसा ही होगा. फिर बिहारी फोन रख देता हैं. और राधिका एक बार फिर से गहरे विचारों में डूब जाती हैं. थोड़ी देर के बाद वो बाथरूम में जाकर अपने जिस्म के सभी हिस्सों के बाल सॉफ करती हैं. फिर वो बाथ लेती हैं.

करीब 11.30 बजे राधिका के घर के सामने एक क्ष्य्लो कार आकर रुकती हैं. उसमें से एक आदमी बाहर निकलता हैं और अपने हाथ में एक पॅकेट लेकर दरवाजे पर दस्तक देता हैं. दस्तक की आहट सुनकर राधिका का दिल ज़ोरों से धड़कने लगता हैं. राधिका थोड़ी सी हिम्मत करके वो जाकर दरवाज़ा खोलती हैं. सामने एक आदमी काला चस्मा पहने हुए हाथों में एक पार्सल लेकर खड़ा था. वो तुरंत राधिका को देखकर बोल पड़ता हैं-मुझे बिहारी ने आपके पास भेजा हैं. आपको लेने के लिए. और इसमें आपके लिए कपड़े हैं. फिर वो पार्सल राधिका को थमा देता हैं.

राधिका- ठीक हैं तुम यहीं पर बैठो मैं थोड़ी देर में तैयार होकर आती हूँ. फिर राधिका बाथरूम में जाकर अपने सारे कपड़े उतार देती हैं. फिर वो पार्सल खोलती हैं. उसके मन में ये सवाल बार बार आ रहा था कि पता नहीं बिहारी ने मेरे लिए कैसे कपड़े भेजे होंगे. कहीं वो शॉर्ट कपड़े होंगे तो...........कपड़े चाहे जैसे भी हो मगर उसे तो वो पहेने ही थे. जब राधिका पार्सल खोलती हैं तो उसमें एक ट्रॅन्स्परेंट ब्लॅक कलर की साड़ी थी और एक डीप कट ब्लाउस, एक पेटिकोट, साथ में ब्लॅक ब्रा और पैंटी. या यू कहा जाए कि सारे कपड़ों का कलर ब्लॅक था. मगर कपड़े बहुत ही कीमती थे.

वो सबसे पहले पैंटी पहनती हैं फिर ब्रा और बाद में साड़ी. बिहारी ने जो कपड़े राधिका के लिए भेजवाए थे उसमें राधिका पूरी कयामत लग रही थी. गोरी तो पहले से ही थी और उपर से ब्लॅक स्लेवेललेस उसकी खूबसूरती को और रंग बिखेर रहा था. उसे तो उमीद नहीं थी कि बिहारी उसके लिए साड़ी भेजवाएगा. फिर वो बाथरूम से बाहर निकल कर अपने कमरे में जाती हैं और जाकर एक मॅचिंग कलर का बिंदी , हल्का पिंक कलर का लिपस्टिक, और कान में झुमके कुल मिलाकर वो एक बला की खूबसूरत लग रही थी. फिर वो जाकर अपने अलमारी में से अपनी डायरी और पेन रख लेती हैं. वो कहीं भी जाती थी मगर अपनी डायरी साथ रखती थी. वो उसे अपने बॅग में रख लेती हैं और साथ में अपना मोबाइल भी. फिर वो उस आदमी के साथ अपने घर को लॉक करके वो उस गाड़ी में जाकर बैठ जाती हैं.

थोड़ी देर में वो क्ष्य्लो कार तेज़ी से वहाँ से रवाना हो जाती हैं. जैसे जैसे वक़्त बीतता जाता हैं राधिका की घबराहट और बेचैनी बढ़ने लगती हैं. करीब 1/2 घंटे के सफ़र के बाद वो क्ष्य्लो सहर के बाहर जंगल में जाती हुई दिखाई देती हैं. जंगल में करीब 5 किमी. अंदर जाने पर वो क्ष्य्लो वहीं रुक जाती हैं. राधिका आस पास इधेर उधेर देखने लगती हैं मगर उसे कहीं कुछ दिखाई नहीं देता सिवाए घने पेड़ों के..

राधिका- ये तुम मुझे कहाँ ले जा रहे हो. और तुमने यहाँ जंगल के बीचों बीच गाड़ी क्यों रोक दिया.

ड्राइवर- मालिक ने आपको यहीं पर लाने को कहा था. आप गाड़ी से उतार जाइए यहाँ पर एक अंडरग्राउंड गेस्ट हाउस हैं. मैं आपको वहाँ लेकर चलता हूँ. और वैसे भी इस जगह के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. फिर वो ड्राइवर एक बड़े से पेड़ के नीचे गाड़ी पार्क करता हैं. फिर उसे पेड़ की पत्तियों से धक देता हैं. फिर वो राधिका को अपने साथ चलने का इशारा करता हैं. थोड़ी दूर जाने पर एक लता से घिरा एक ख़ुफ़िया दरवाज़ा मिलता हैं. वो नौकर वो दरवाज़ा खोलता हैं. फिर वो अंडरग्राउंड रास्ते से होते हुए ज़मीन के नीचे एक तहख़ाने में वो जाता हैं और एक मेन गेट ओपन करता हैं. जब दरवाज़ा खुलता हैं तो राधिका की आँखें चौधया जाती हैं.
 
वो जगह बेहद सुन्दर था. ऐसा लग रहा था जैसे वो स्वर्ग में आई हो. अंदर एक बड़ा सा हाल था और अंदर कम से कम तीन चार कमरे थे. चारों तरफ लाइट की रोशनी कुल मिलाकर वो एक आलीशान महल जैसा लग रहा था. राधिका ने तो सोचा भी नहीं था कि इस ज़मीन के अंदर ऐसा भी घर हो सकता हैं. फिर वो बड़े गौर से उन सब चीज़ों को देखने लगती हैं. और वो ड्राइवर उसे वहीं सोफे पर बैठकर वो बाहर निकल जाता हैं.


थोड़ी देर में उस कमरे का दरवाज़ा खुलता हैं और राधिका की धड़कनें फिर से तेज़ हो जाती हैं. सामने बिहारी था. वो मुस्कुराता हुआ राधिका के पास आता हैं और वही सोफे पर बैठ जाता हैं.


बिहारी- कैसा लगा मेरा ये छोटा सा आशियाना. और तुम्हें कोई तकलीफ़ तो नहीं हुई ना यहाँ तक आने में.


राधिका कुछ नहीं कहती और बस चुप चाप बिहारी को देखने लगती हैं.


बिहारी- वैसे एक बात कहूँ राधिका आज तू पूरी क़यामत लग रही हैं. जैसा मैने इन कपड़ों में जैसा सोचा था तू उससे कहीं ज़्यादा सुंदर लग रही हैं. मैं बहुत दिनों से तुझे इन कपड़ो में देखना चाहता था. और मैं जानता था कि तू इन कपड़ों में बेहद खूबसूरत लगेगी. और वैसे भी मेरे पसंदीदा कलर काला ही हैं. क्या हैं ना बचपन से काले काम करते करते मेरी चाय्स ही काली हो गयी.


राधिका एक नज़र बिहारी को देखती हैं फिर अपना मूह दूसरी तरफ फेर लेती हैं.


बिहारी- जानती हैं ये जगह ........ये मेरे ख़ास आदमियों को ही पता हैं. और उन ख़ास आदमियों में अब तू भी शामिल हैं. क्या हैं ना जब कोई लफडा होता हैं तो मुझे कभी कभी अंडरग्राउंड भी होना पड़ता हैं. इस वजह से मैं कुछ दिन यहाँ आकर रुक जाता हूँ.


राधिका- हां बिहारी तूने तो कमाल की जगह ढूंढी हैं छुपने के लिए. वैसे ये जगह बहुत खूबसूरत हैं.


बिहारी- मगर तुमसे ज़्यादा खूबसूरत नहीं. और वैसे भी मेरा सपना तुझे पाने का आज पूरा हो गया खैर..............


बिहारी- तो अब मुद्दे पर आते हैं. जैसा कि तू जानती हैं कि आज के बाद तू मेरी रखैल बनकर रहेगी. जो मैं चाहूँगा वो तू सब कुछ करेगी बिना सवाल के. या यू समझ ले तू एक हफ्ते तक मेरी गुलाम रहेगी. अगर तूने मेरे किसी भी बात का विरोध किया तो मैं तुझे दुबारा मौका नहीं दूँगा बाकी तू खुद समझदार हैं.


राधिका- हां मैं जानती हूँ तुम मेरी तरफ से बेफिकर रहो बिहारी. मैं तुम्हें किसी भी चीज़ के लिए मना नहीं करूँगी. बस तुम अपनी शर्त याद रखना और मैं अपनी. बोलो अब मैं अपने कपड़े यहीं उतारू या कहीं और ....


बिहारी हंसते हुए- नहीं मेरी जान इतनी जल्दी भी क्या हैं. वैसे भी आज तारीख तुझे पता ही होगा. वैसे तेरी जानकारी के लिए बता देता हूँ. 13-जून-2010. यानी 21-जून को तेरी शादी राहुल से होने वाली हैं और 20 जून को तू यहाँ से आज़ाद हो जाएगी. अब तेरे पास पूरा एक हफ़्ता हैं. और हां मैं चाहता हूँ कि तू हम सब का पूरा साथ देगी कहीं मुझे ऐसा ना लगे कि मैं तेरा बलात्कार कर रहा हूँ.


राधिका- हम सब का.....................मतलब. और कौन कौन लोग होंगे तुम्हारे साथ.


बिहारी- यार तू सवाल बहुत पूछती हैं. चल आज तुझे एक ऐसे शख्स से मिलवाता हूँ जिससे मिलकर तेरे पाँव तले ज़मीन खिसक जाएगी. तू जानना चाहती थी ना कि राहुल के पीछे जो हमले हुए थे उसका मास्टरमाइंड कौन था. अगर तू उसे एक बार देख लेगी तो तू कभी विश्वास नहीं करेगी. ये देख तेरे सामने हैं वो........तभी बिहारी अपने हाथ से डरवज़े की ओर इशारा करता हैं. और तभी दरवाज़ा खुलता हैं. सामने एक शख्स खड़ा हुआ था. वो अपने बढ़ते कदमों से राधिका के करीब आता हैं और जब राधिका उस सख्स के चेहरे को पहचान लेती हैं तो उसके होश उड़ जाते हैं.


राधिका- ऐसा नहीं हो सकता.......................इतना बड़ा फरेब......इतना बड़ा विश्वासघात...
 
वक़्त के हाथों मजबूर--38



बिहारी- क्यों झटका लगा ना. मैं जानता था कि तुझे बिल्कुल यकीन नहीं होगा. पर जो तेरे सामने हैं वही सच हैं चाहे तू मान या मत मान.


राधिका के मूह से एक ही शब्द निकल पाया और वो था............................विजय!!!!!


विजय- कैसी हो मेरी जान तुझे यहाँ पर देखकर मुझे आज कितनी खुशी हो रही हैं इसका मैं तुझे बयान नहीं कर सकता. कहते हैं ना अगर किसी चीज़ के पीछे जी जान से लग जाओ तो दुनिया की कोई भी ताक़त उससे उसको पाने से नहीं रोक सकती. और देख आज ना जाने कितने महीनों के बाद आज हमने तुझे हासिल कर ही लिया.


राधिका- धोका.............धोका किया हैं तुम लोगों ने मेरे साथ. आख़िर मैं पूछती हूँ तुम लोगों ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया. किस गुनाह की सज़ा मुझे दे रहे हो तुम सब. आख़िर मेरा कसूर क्या हैं...


विजय- कसूर तेरा नहीं बल्कि तेरी ये खूबसूरती का हैं जो तू हमे पहली ही नज़र में भा गयी. कसूर तेरा नहीं बल्कि उस कमिने राहुल का हैं जिसकी तू अब बीवी बनने वाली हैं. कसूर उस राहुल का हैं जिसकी वजह से आज मेरी ये हालत हुई हैं. आज उस कमिने राहुल की वजह से मेरा आज सब कुछ बर्बाद हो गया. और जिस इंसान की वजह से मैं बर्बाद हुआ हूँ उसे मैं कैसे आबाद होता हुआ देख सकता हूँ. मैं जानता हूँ कि उस कमिने की जान तेरे में बसी हैं. और तुझे कोई तकलीफ़ होगी तो उसे दर्द होगा. और मैं उसे वो जख्म दूँगा कि साला ना कभी चैन से जी पाएगा और ना ही मर पाएगा. और जब तक जीयेगा तड़प्ता ही रहेगा.


राधिका के चेहरे का रंग फीका पड़ गया था विजय की ऐसी बातो को सुनकर- क्या.............क्या करोगे तुम मेरे राहुल के साथ...


विजय- चिंता मत कर वक़्त आने दे सब पता चल जाएगा.


राधिका- आख़िर तुम्हारी दुश्मनी क्या हैं राहुल से. क्यों तुम उसके पीठ पीछे ये सब कर रहे हो. शक तो मुझे तुम पर बहुत पहले से था कि राहुल पर जितने हमले हुए हैं उन सब के पीछे तुम्हारा ही हाथ है. मगर अब यकीन हो गया. तुम सच में दोस्त के नाम पर एक गाली हो.


विजय हंसते हुए- चल सबसे पहले तो तेरे मन में उठ रहे सारे सवालों का जवाब दे देता हूँ. तुझे बता दूँगा तो मेरा भी मन थोड़ा हल्का हो जाएगा. जानना चाहती हैं ना कि आख़िर मैं तेरे आशिक़ को क्यों मारना चाहता हूँ और उससे मेरी दुश्मनी की वजह क्या हैं तो सुन..................................


बात तब की हैं जब मैं 8 साल का था. उस समय राहुल भी मेरी ही उमर का था. उसके पिताजी और मेरे पिताजी एक अच्छे दोस्त थे. रोज़ रोज़ आना जाना उठना बैठना सब होता था. ऐसे ही दिन अच्छे से बीत रहे थे. राहुल के पापा एक सर्जिन थे. वो अक्सर ट्रीटमेंट के लिए मनाली से बाहर जाया करते थे. और जब भी जाते वो अपनी पत्नी को साथ लेकर जाते और राहुल को हमारे घर छोड़ जाते. क्यों कि वो अभी पड़ाई कर रहा था जिसके वजह से बार बार जाने आने से उसकी पड़ाई डिस्टर्ब होती थी. ऐसे ही एक रोज़ वो दोनो अपनी कार में बैठकर एक एमर्जेन्सी ऑपरेशन के लिए निकल पड़े तभी तेज़ी से उनके सामने से एक ट्रक आता हुआ दिखाई दिया. वो इसी पहले की कुछ समझ पाते ट्रक बुरी तरह से उनके कार से टकरा चुकी थी. आक्सिडेंट इतना ज़बरदस्त था कि राहुल के मम्मी पापा की ऑन दा स्पॉट डेत हो गयी थी. और वो ट्रक ड्राइवर भी उस आक्सिडेंट में मारा गया था.


जब ये खबर मेरे पापा और मम्मी को पता लगी तो उनको बहुत बड़ा झटका लगा. उन्हें फिर राहुल की चिंता सताने लगी. वो नहीं समझ पा रहे थे कि राहुल को इस बारे में कैसे बतायें. फिर एक दिन मेरे पिताजी ने हिम्मत कर के ये बात राहुल को बता दी. राहुल का तो रो रो कर बुरा हाल था. ना वो खाना ख़ाता था और ना ही स्कूल जाता था. बस दिन रात रोता रहता था. इसकी सदमे की वजह से उसकी तबीयात बिगड़ने लगी. तभी डॉक्टर ने राहुल को सदमे से बाहर निकालने की बात कही. मेरे पिताजी ने उसे अपने बेटे का दर्जा दे दिया. उस दिन के बाद से वो हमारे साथ हमारे ही घर पर रहने लगा.


राहुल बचपन से ही सीधा साधा लड़का था. वो ज़्यादा ना बेवजह किसी से बात करता और ना ही किसी से ज़्यादा दोस्ती रखता. राहुल धीरे धीरे पढ़ाई पर कॉन्सेंट्रेट करने लगा और समय के साथ साथ मेरे पिताजी और मम्मी की चाहत उसके प्रति बढ़ती गयी. मेरा शुरू से ही पढ़ाई में मन नही लगता था और धीरे धीरे मेरे कुछ आवारा लड़कों से मेरी दोस्ती हो गयी. मेरा एक छोटा भाई भी था उसका नाम कुणाल था. वो मुझ से दो साल छोटा था. वक़्त बीतता गया और मैं धीरे धीरे नशे का अडिक्ट हो गया. वहीं मेरा छोटा भाई भी मुझसे दो कदम आगे निकल गया. वो तो यहाँ तक ड्रग्स भी छुप छुप के लेने लगा था और कभी कभी घर से पैसे भी चुराता था.


ये सब करते हुए एक दिन राहुल ने देख लिया था और जाकर मेरे पापा को सारी बातें बता दी. बस फिर क्या था हम दोनो की खूब पिटाई हुई. मगर ड्रग्स का लत इतनी आसानी से कहाँ छूटती है. मेरा भाई धीरे धीरे ग़लत काम में अडिक्ट हो गया. वहीं दूसरी तरफ राहुल दिन ब दिन स्कूल और सारी चीज़ों में टॉप करता रहा. जिसके वजह से मेरे मा बाप की नज़र में वो सबका लाड़ला बन गया और उसके वजह से हमारे प्रति चाहत मेरे मा बाप की कम होने लगी. यही सब देखकर मुझे अब राहुल से जलन होने लगी थी. मगर मैं उसके खिलाफ जा भी तो नहीं सकता था. अगर वो कोई ग़लत काम करता तभी तो मैं उसकी कमी निकालता. मैं भी बस मौके की तलाश में रहता मगर कभी सफल नहीं हो पाया.


राहुल को हमारे घर रहते करीब 10 साल हो चुके थे. और इधेर कुणाल ड्रग्स का सप्लाइयर बन गया था. और मैं भी मेडिकल की पढ़ाई कर रहा था. अपने भाई की वजह से मैं भी धीरे धीरे ड्रग्स लेने लगा था. और या यू कह लो कि मैं भी ड्रग्स का अडिक्ट हो चुका था. फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि मेरी ज़िंदगी ही बदल गयी.
 
[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]एक दिन कुणाल बॅग लेकर घर आया. उस बॅग में ड्रग्स के कुछ छोटे छोटे पॅकेट्स थे. शायद वो डेलिवरी देने के लिए लाया होगा. वो जैसे ही अलमारी में अपना बॅग रखा वैसे ही शायद उस बॅग का चैन खुला होगा ड्रग्स के के दो पॅकेट नीचे फर्श पर गिर गये. राहुल की नज़र उस ड्रग्स के पॅकेट पर पड़ चुकी थी. मगर उसे नहीं मालूम था कि वो क्या चीज़ हैं. कुणाल ने उसे झूठा बहाना बना दिया था. तभी दोपहर में जब सब कोई घर पर था पोलीस ने हमारे घर पर छापा मार दिया. और वे लोग कमरे की तलाशी लेने लगे. मेरे पिताजी तो पोलीस को देखकर चौंक पड़े. पोलीस वालों ने बताया कि तुम्हारा बेटा ड्रग्स का धंधा करता हैं और ड्रग्स भी लेता हैं. थोड़े देर तक वे लोग पूरे घर की तलाशी लेते रहे मगर उन्हें घर में कुछ नहीं मिला.[/font]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]तभी पोलिसेवाले ने एक ड्रग्स का सॅंपल अपनी जेब से निकाला. प्लास्टिक के पॅकेट में सफेद पाउच था. वो उसे मेरे पापा को दिखाने लगा. तभी राहुल को भी सब समझ में आ गया कि सुबेह जो कुणाल के बॅग में वो पॅकेट था वो ड्रग्स ही था. तभी राहुल ने उस पोलिसेवाले को बताया कि आज ही वो कुणाल के पास ऐसा पॅकेट देखा था. फिर क्या था पोलीस वाले ने वहीं पर दो तीन डंडे लगाए तब जाकर कुणाल ने अपना गुनाह माना. फिर वो एक कमरे में (जहाँ पुरानी चीज़ें रखते हैं) उस कमरे में से वो बॅग निकाल का ले आया. फिर क्या था पोलीस ने मेरे बाप के सामने ही कुणाल को हथकड़ी लगा दी.[/font]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]तभी मौके का फ़ायदा उठाकर वो एक पोलिसेवाले की कमर में बँधा रेवोल्वेर निकाल लिया और उन पोलिसेवालों पर रेवोल्वेर तान दी. ये सब देखकर तो मेरे बाप के होश उड़ गये. तभी एक हवलदार और वो इनस्पेक्टर आगे बढ़ कर कुणाल को पकड़ने के लिए आगे बढ़े ही थे कि कुणाल ने उन्दोनो पर फाइरिंग कर दी. हवलदार की तो ऑन दा स्पॉट डेत हो गयी और उस इनस्पेक्टर ने भी कुछ देर में अपना दम तोड़ दिया. फिर कुणाल वहाँ से तेज़ी से घर के बाहर निकल गया. और उस दिन के बाद से जो वो घर से बाहर गया फिर आज तक नहीं लौटा. फिर ये सब देखकर तो मेरे बाप को विश्वास ही नहीं हुआ कि उनका अपना बेटा ऐसा काम भी कर सकता हैं. वो ये सदमा नहीं बर्दास्त कर पाए और दूसरे दिन उन्होने पंखे से लटकार अपनी जान दे दी.[/font]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]मैं चुप चाप बैठकर अपने घर की बर्बादी देखता रहा. ये सब उस राहुल की वजह से हुआ था. इतना सब कुछ होने के बावजूद मेरी मा ने उसको दोषी नहीं माना. फिर मुझसे भी नहीं बर्दास्त हुआ और मैने राहुल से एक दिन झगड़ा करके उसे अपने घर से निकाल दिया. कुछ दिन तक तो मेरी मा मेरे साथ रही मगर वो भी जान गयी थी कि मैं भी कुणाल की लाइन पर चल रहा हूँ. वो भी एक दिन मुझसे लड़कर अपने गाँव चली गयी और फिर आज तक नहीं आई. शायद मैने राहुल को अपने घर से अलग कर दिया था.[/font]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]बाद मैं मैने राहुल से माफी माँगी मगर मेरा इरादा तो उससे प्रतिशोध लेने का था और समय भी मेरा ठीक नहीं चल रहा था. इसलिए मैं उसके साथ बना रहा ताकि उसकी हर जानकारी लेता रहूं और कभी ऐसा मौका मिलेगा तो मैं वो मौका नहीं चुकुंगा. मैं ना जाने कितने सालों तक अपने भाई को खोजता रहा मगर वो कहीं नहीं मिला. बाद में पता चला कि वो एक प्राइवेट एजेंट हैं ड्रग्स का. मैं भी उससे मिलने वाला था मगर मेरी बदक़िस्मती कि मेरे पहुचने के पहले ही पोलीस उस तक पहुँच चुकी थी. बाद में पोलीस मुठभेड़ में वो मारा गया. और जानती हैं मेरे भाई को मारने वालो में तेरा आशिक़ भी शामिल था यानी राहुल मल्होत्रा. पोलीस की एक टीम ने मिलकर इस घटना को अंजाम दिया था. हालाकी दो तीन पोलीस वाले भी ज़ख़्मी हुए थे मगर मेरे भाई के साथ उसके पाँच आदमी भी मारे गये थे.[/font]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]मेरा अच्छा ख़ासा हँसता खेलता हुआ परिवार सब उस कमिने की वजह से तबाह हो गया था. फिर मैने भी धीरे धीरे अपने भाई की जगह ले ली और बाद में मुझे बिहारी का साथ मिल गया. उस दिन के बाद मैने ठान लिया कि मैं राहुल को बर्बाद कर दूँगा. इसलिए आज भी मुझे उससे नफ़रत हैं.[/font]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]राधिका विजय की बातो को बड़े ध्यान से सुनती है.- लेकिन मेरे ख्याल से तो इसमें राहुल की कोई ग़लती नहीं हैं. सब कुछ तो तुम्हारे भाई कुणाल का ही किया धरा था. और किसी की ग़लती किस पर थोपना ये तो सरासर बेवकूफी है.[/font]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]विजय- अरे कितना भी है तो वो तेरा आशिक़ हैं और तू उसका पक्ष नहीं लेगी तो किसका लेगी. उसे तो मैं वो जख्म दूँगा कि वो मरते दम तक नहीं भूलेगा. उसे तो मैं अब ऐसा ज़ख़्म दूँगा कि वो जब तक ज़िंदा रहेगा तब तक वो हर पल मरता रहेगा.[/font]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]विजय की बातो को सुनकर राधिका कुछ कह नहीं पाती क्यों कि वो जानती थी कि इस वक़्त बिहारी का पलड़ा भारी हैं. मेरे चाहने या ना चाहने से कुछ नहीं होगा. आज राधिका अपने आप को बिल्कुल मज़बूर और बेबस महसूस कर रही थी.[/font]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]बिहारी- एक बात और तुझे बताना चाहता हूँ. अब तो तू ये बात जान ही गयी होगी कि विजय मेरा राइट हॅंड है और अब मैं तुझे अपने लेफ्ट हंड आदमी से मिलवाना चाहता हूँ. उसे तो तू अच्छे से जानती होगी. अरे वो तो एक बार तेरी ही वजह से जैल जा चुका हैं. मैं जानता हूँ तू उसे एक बार देख लेगी तो तुरंत पहचान लेगी.[/font]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]राधिका का चेहरा फीका पड़ गया था बिहारी की ऐसी बातो को सुनकर- कौन हैं वो और तुम किसकी बात कर रहे हो और मैने किसको जैल भिजवाया था..................[/font]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]बिहारी-बताता हूँ मेरी जान थोड़ा धर्य तो रख वो देख सामने फिर बिहारी अपनी एक उंगली से दरवाज़े की ओर इशारा कर देता हैं.[/font]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]तभी दरवाज़ा फिर से खुलता हैं और एक शख्स अंदर कमरे में आता हैं. लंबे बाल हाथों में सिगरेट पकड़े हुए- कैसी हैं मेरी चिड़िया. अरे तूने तो मुझे बहुत तडपाया था तेरे लिए तो मैं कितना बेचैन था. तेरी वजह से मुझे पूरे तीन महीने की सज़ा भी हुई. मगर तुझे यहाँ पर देखकर मुझे बहुत खुशी हो रही है. उस दिन तो तू बहुत उड़ रही थी ना. अब देख तेरे पंख हम सब बारी बारी मिलकर कुतेरेंगे.फिर देखता हूँ तू कैसे फुदक्ति हैं..............फिर मज़ा आएगा तेरा शिकार करने में.[/font]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]राधिका को ये आवाज़ जानी पहचानी लग रही थी. वो बड़े गौर से उस शास को देखने लगती हैं. जब उस शख्स पर राधिका की नज़र पड़ती हैं तो वो अपने मूह पर दोनो हाथ रखकर अस्चर्य से उस शख्स को देखने लगती हैं. नहीं ये नहीं हो सकता. राधिका के मूह से बस इतने ही शब्द निकल पाए थे............जग्गा.. वो शख्स और कोई नहीं बल्कि ........................जग्गा था.[/font]

[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=large]एक दिन कुणाल बॅग लेकर घर आया. उस बॅग में ड्रग्स के कुछ छोटे छोटे पॅकेट्स थे. शायद वो डेलिवरी देने के लिए लाया होगा. वो जैसे ही अलमारी में अपना बॅग रखा वैसे ही शायद उस बॅग का चैन खुला होगा ड्रग्स के के दो पॅकेट नीचे फर्श पर गिर गये. राहुल की नज़र उस ड्रग्स के पॅकेट पर पड़ चुकी थी. मगर उसे नहीं मालूम था कि वो क्या चीज़ हैं. कुणाल ने उसे झूठा बहाना बना दिया था. तभी दोपहर में जब सब कोई घर पर था पोलीस ने हमारे घर पर छापा मार दिया. और वे लोग कमरे की तलाशी लेने लगे. मेरे पिताजी तो पोलीस को देखकर चौंक पड़े. पोलीस वालों ने बताया कि तुम्हारा बेटा ड्रग्स का धंधा करता हैं और ड्रग्स भी लेता हैं. थोड़े देर तक वे लोग पूरे घर की तलाशी लेते रहे मगर उन्हें घर में कुछ नहीं मिला.[/font][/size]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=large]तभी पोलिसेवाले ने एक ड्रग्स का सॅंपल अपनी जेब से निकाला. प्लास्टिक के पॅकेट में सफेद पाउच था. वो उसे मेरे पापा को दिखाने लगा. तभी राहुल को भी सब समझ में आ गया कि सुबेह जो कुणाल के बॅग में वो पॅकेट था वो ड्रग्स ही था. तभी राहुल ने उस पोलिसेवाले को बताया कि आज ही वो कुणाल के पास ऐसा पॅकेट देखा था. फिर क्या था पोलीस वाले ने वहीं पर दो तीन डंडे लगाए तब जाकर कुणाल ने अपना गुनाह माना. फिर वो एक कमरे में (जहाँ पुरानी चीज़ें रखते हैं) उस कमरे में से वो बॅग निकाल का ले आया. फिर क्या था पोलीस ने मेरे बाप के सामने ही कुणाल को हथकड़ी लगा दी.[/font][/size]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=large]तभी मौके का फ़ायदा उठाकर वो एक पोलिसेवाले की कमर में बँधा रेवोल्वेर निकाल लिया और उन पोलिसेवालों पर रेवोल्वेर तान दी. ये सब देखकर तो मेरे बाप के होश उड़ गये. तभी एक हवलदार और वो इनस्पेक्टर आगे बढ़ कर कुणाल को पकड़ने के लिए आगे बढ़े ही थे कि कुणाल ने उन्दोनो पर फाइरिंग कर दी. हवलदार की तो ऑन दा स्पॉट डेत हो गयी और उस इनस्पेक्टर ने भी कुछ देर में अपना दम तोड़ दिया. फिर कुणाल वहाँ से तेज़ी से घर के बाहर निकल गया. और उस दिन के बाद से जो वो घर से बाहर गया फिर आज तक नहीं लौटा. फिर ये सब देखकर तो मेरे बाप को विश्वास ही नहीं हुआ कि उनका अपना बेटा ऐसा काम भी कर सकता हैं. वो ये सदमा नहीं बर्दास्त कर पाए और दूसरे दिन उन्होने पंखे से लटकार अपनी जान दे दी.[/font][/size]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=large]मैं चुप चाप बैठकर अपने घर की बर्बादी देखता रहा. ये सब उस राहुल की वजह से हुआ था. इतना सब कुछ होने के बावजूद मेरी मा ने उसको दोषी नहीं माना. फिर मुझसे भी नहीं बर्दास्त हुआ और मैने राहुल से एक दिन झगड़ा करके उसे अपने घर से निकाल दिया. कुछ दिन तक तो मेरी मा मेरे साथ रही मगर वो भी जान गयी थी कि मैं भी कुणाल की लाइन पर चल रहा हूँ. वो भी एक दिन मुझसे लड़कर अपने गाँव चली गयी और फिर आज तक नहीं आई. शायद मैने राहुल को अपने घर से अलग कर दिया था.[/font][/size]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=large]बाद मैं मैने राहुल से माफी माँगी मगर मेरा इरादा तो उससे प्रतिशोध लेने का था और समय भी मेरा ठीक नहीं चल रहा था. इसलिए मैं उसके साथ बना रहा ताकि उसकी हर जानकारी लेता रहूं और कभी ऐसा मौका मिलेगा तो मैं वो मौका नहीं चुकुंगा. मैं ना जाने कितने सालों तक अपने भाई को खोजता रहा मगर वो कहीं नहीं मिला. बाद में पता चला कि वो एक प्राइवेट एजेंट हैं ड्रग्स का. मैं भी उससे मिलने वाला था मगर मेरी बदक़िस्मती कि मेरे पहुचने के पहले ही पोलीस उस तक पहुँच चुकी थी. बाद में पोलीस मुठभेड़ में वो मारा गया. और जानती हैं मेरे भाई को मारने वालो में तेरा आशिक़ भी शामिल था यानी राहुल मल्होत्रा. पोलीस की एक टीम ने मिलकर इस घटना को अंजाम दिया था. हालाकी दो तीन पोलीस वाले भी ज़ख़्मी हुए थे मगर मेरे भाई के साथ उसके पाँच आदमी भी मारे गये थे.[/font][/size]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=large]मेरा अच्छा ख़ासा हँसता खेलता हुआ परिवार सब उस कमिने की वजह से तबाह हो गया था. फिर मैने भी धीरे धीरे अपने भाई की जगह ले ली और बाद में मुझे बिहारी का साथ मिल गया. उस दिन के बाद मैने ठान लिया कि मैं राहुल को बर्बाद कर दूँगा. इसलिए आज भी मुझे उससे नफ़रत हैं.[/font][/size]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=large]राधिका विजय की बातो को बड़े ध्यान से सुनती है.- लेकिन मेरे ख्याल से तो इसमें राहुल की कोई ग़लती नहीं हैं. सब कुछ तो तुम्हारे भाई कुणाल का ही किया धरा था. और किसी की ग़लती किस पर थोपना ये तो सरासर बेवकूफी है.[/font][/size]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=large]विजय- अरे कितना भी है तो वो तेरा आशिक़ हैं और तू उसका पक्ष नहीं लेगी तो किसका लेगी. उसे तो मैं वो जख्म दूँगा कि वो मरते दम तक नहीं भूलेगा. उसे तो मैं अब ऐसा ज़ख़्म दूँगा कि वो जब तक ज़िंदा रहेगा तब तक वो हर पल मरता रहेगा.[/font][/size]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=large]विजय की बातो को सुनकर राधिका कुछ कह नहीं पाती क्यों कि वो जानती थी कि इस वक़्त बिहारी का पलड़ा भारी हैं. मेरे चाहने या ना चाहने से कुछ नहीं होगा. आज राधिका अपने आप को बिल्कुल मज़बूर और बेबस महसूस कर रही थी.[/font][/size]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=large]बिहारी- एक बात और तुझे बताना चाहता हूँ. अब तो तू ये बात जान ही गयी होगी कि विजय मेरा राइट हॅंड है और अब मैं तुझे अपने लेफ्ट हंड आदमी से मिलवाना चाहता हूँ. उसे तो तू अच्छे से जानती होगी. अरे वो तो एक बार तेरी ही वजह से जैल जा चुका हैं. मैं जानता हूँ तू उसे एक बार देख लेगी तो तुरंत पहचान लेगी.[/font][/size]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=large]राधिका का चेहरा फीका पड़ गया था बिहारी की ऐसी बातो को सुनकर- कौन हैं वो और तुम किसकी बात कर रहे हो और मैने किसको जैल भिजवाया था..................[/font][/size]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=large]बिहारी-बताता हूँ मेरी जान थोड़ा धर्य तो रख वो देख सामने फिर बिहारी अपनी एक उंगली से दरवाज़े की ओर इशारा कर देता हैं.[/font][/size]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=large]तभी दरवाज़ा फिर से खुलता हैं और एक शख्स अंदर कमरे में आता हैं. लंबे बाल हाथों में सिगरेट पकड़े हुए- कैसी हैं मेरी चिड़िया. अरे तूने तो मुझे बहुत तडपाया था तेरे लिए तो मैं कितना बेचैन था. तेरी वजह से मुझे पूरे तीन महीने की सज़ा भी हुई. मगर तुझे यहाँ पर देखकर मुझे बहुत खुशी हो रही है. उस दिन तो तू बहुत उड़ रही थी ना. अब देख तेरे पंख हम सब बारी बारी मिलकर कुतेरेंगे.फिर देखता हूँ तू कैसे फुदक्ति हैं..............फिर मज़ा आएगा तेरा शिकार करने में.[/font][/size]


[font="lucida grande", "trebuchet ms", Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif][size=large]राधिका को ये आवाज़ जानी पहचानी लग रही थी. वो बड़े गौर से उस शास को देखने लगती हैं. जब उस शख्स पर राधिका की नज़र पड़ती हैं तो वो अपने मूह पर दोनो हाथ रखकर अस्चर्य से उस शख्स को देखने लगती हैं. नहीं ये नहीं हो सकता. राधिका के मूह से बस इतने ही शब्द निकल पाए थे............जग्गा.. वो शख्स और कोई नहीं बल्कि ........................जग्गा था.[/font][/size]
 
जग्गा- कुछ याद आया मेरी जान वो कॉलेज का कॅंपस जहाँ मैने तुझे एक बार छेड़ा था और बदले में तूने मेरी इज़्ज़त सारे कॉलेज के सामने उतारी थी. आज मैं अपनी बेइज़्ज़ती का बदला तुझसे एक एक कर लूँगा. आज मैं तेरी इज़्ज़त यहाँ इन सब के सामने उतारूँगा फिर तुझे भी पता चलेगा कि इज़्ज़त उतरते समय कैसा महसूस होता हैं.


राधिका गुस्से से चीख पड़ती हैं- बिहारी ये क्या तमाशा लगा रखा हैं तुमने. मैं कोई रंडी नही हूँ कि तुम जिसके साथ जैसा चाहो मुझे ये सब करने को कहोगे और मैं करूँगी. अगर तुम्हारा इरादा मेरे साथ इन सब के साथ सेक्स करवाने का हैं तो मुझसे ये सब नहीं होगा.


बिहारी बड़े प्यार से राधिका की ओर देखने लगता हैं- नाराज़ क्यों होती हो मेरी जान बात ये हुई थी कि मैं जो तुझसे कहूँगा तू वही करेगी चाहे मैं तुझे जिसके साथ भी सेक्स करने को क्यों ना कहूँ. और हां ये तेरी नादानी को मैं आख़िरी बार माफ़ कर रहा हूँ अगर दुबारा उँची आवाज़ में मुझसे बात की तो तेरा वो हाल करूँगा कि तुझे अपनी परछाई से भी डर लगेगा.


राधिका चुप चाप अपनी नज़रें नीची कर लेती हैं तभी विजय उसके पास आता हैं और राधिका के पीछे खड़ा होकर अपने दोनो हाथों से राधिका के दोनो बूब्स को कसकर अपनी मुट्ठी में थाम लेता हैं और पूरी ताक़त से उसे मसल देता हैं. राधिका के मूह से एक तेज़्ज़ सिसकारी निकल पड़ती हैं. वो इस अचानक हमले से वो चौंक जाती हैं तभी बिहारी ज़ोर से विजय को गाली देता हैं और राधिका से दूर हटने को बोलता हैं.


बिहारी- ये क्या तरीका हैं विजय. मैने कहा राधिका से दूर हट जाओ. और अब राधिका को दुबारा छूने की कोशिश भी मत करना. और हां अब मेरी मर्ज़ी के बिना अब कोई भी राधिका को हाथ नहीं लगाएगा.


विजय एक नज़र घूर कर बिहारी को देखता हैं मगर कुछ नहीं कहता. गुस्सा तो उसे बिहारी पर बहुत आता हैं मगर वो जानता था कि अगर बिहारी से इस समय बहस हुआ तो राधिका उसके हाथ से निकल जाएगी और वो किसी भी हाल में राधिका जैसी आइटम को अपनी हाथों से जाने नहीं देना चाहता था.


बिहारी- ये मेरा घर हैं और अब यहाँ पर मैं जैसा चाहूँगा वैसा ही होगा. अगर मेरी बात तुम सबको बुरी लगती हैं तो तुम सब बेशक यहाँ से जा सकते हो. मगर जब तक यहाँ पर रहोगे जो मैं बोलूँगा जैसा बोलूँगा तुम सब को मेरी बात मानना पड़ेगा. नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा.


बिहारी की चेतावनी से विजय और जाग्गा वहीं चुप चाप खामोशी से वहीं पर बैठ जाते हैं. दोनो अच्छे से जानते थे कि अब बिहारी की बात मानने में ही भलाई हैं.


तभी बिहारी एक नौकर को बुलाता हैं और राधिका के लिए जूस लाने को बोलता हैं. थोड़े देर में वो नौकर राधिका के लिए जूस लेकर आता हैं. साथ में कुछ नमकीन भी थी.


बिहारी- चिंता मत कर राधिका अब कोई भी मेरी मर्ज़ी के बिना तुझे हाथ नहीं लगाएगा. फिर बिहारी राधिका को वो जूस पीने का इशारा करता हैं. राधिका बिना किसी सवाल के वो जूस से भरा काँच का ग्लास उठाती हैं और फिर धीरे धीरे पूरा पी जाती हैं.


बिहारी- क्या करूँ राधिका पता नहीं क्यों तुझ में कोई तो बात हैं जो मेरा ध्यान बार बार तेरी ओर खीच लेती हैं. चल आज तुझे मैं एक मौका देता हूँ तेरी आज़ादी के लिए. और दुवा करूँगा कि तू यहाँ से आज़ाद हो जाए.


राधिका फिर से सवालियों नज़र से बिहारी को देखने लगती हैं- मैं कुछ समझी नहीं बिहारी तुम आख़िर क्या कहना चाहते हो.


बिहारी- चल आज एक गेम खेलते हैं. अगर इस खेल में तू जीती तो मैं तुझे पूरेय इज़्ज़त के साथ इसी वक़्त यहाँ से तुझे अपने घर जाने दूँगा अगर तू हार गयी तो फिर तू पूरे एक हफ्ते के बाद यहाँ से जाएगी और मेरी गुलाम बनकर रहेगी. बोल मज़ूर हैं तुझे एक आखरी बाज़ी..............खेलना चाहेगी क्या ये खेल???


राधिका के चेहरे पर थोड़ी खुशी आ जाती है और वो तुरंत हां में इशारा करती हैं- मुझे मंज़ूर हैं. राधिका के पास इस वक़्त यहाँ से निकलने का कोई दूसरा ऑप्षन नहीं था. इसलिए वो बिना सोचे समझे झट से हां कह देती हैं.


बिहारी के मूह से ऐसी बातें सुनकर विजय और जग्गा दोनो गुस्से से बौखला जाते हैं. वो अच्छे से जानते थे कि बिहारी ज़ुबान का पक्का इंसान हैं. और अगर राधिका ये गेम जीत गयी तो वो सच में उसे हाथ नहीं लगाएगा और इतना अच्छा मौका राधिका को चोदने का हाथ से निकल जाएगा. अपने हाथ से ये मौका निकलता देखकर विजय गुस्से से पागल हो जाता हैं.


विजय- मुझे अब कोई गेम नहीं खेलना है. अरे इतना अच्छा मौका मिला हैं और तुम अब राधिका को बिना कुछ किए बगैर कैसे जाने दे सकते हो मुझे तुम्हारे इस खेल में कोई शौक नहीं हैं.


बिहारी- मैने पहले भी कहा था और अब भी कहता हूँ अगर तुम मेरे हिसाब से नहीं चल सकते तो बेसक तुम यहाँ से जा सकते हो. आइन्दा मैं दखल अंदाज़ी बिकुल बर्दास्त नहीं करूँगा.


विजय ना चाहते हुए भी पैर पटक कर वहीं गुस्से से बैठ जाता हैं.
 
बिहारी- देख इस वक़्त घड़ी में 3 बज रहे हैं. गेम ये हैं की मैं तुझे दो घंटे का टाइम दूँगा. यानी 5 बजे तक. गेम के हिसाब से हम सब तुझे सिड्यूस करेंगे इन दो घंटों में. अगर तू इन दो घंटों के अंदर मेरे कदमों में गिरकर तू मुझसे सेक्स के लिए भीक नहीं माँगेगी तो तू शाम के 5 बजे तक बिल्कुल आज़ाद हैं. और अगर इन दो घंटों के अंदर तूने मेरे सामने अपने घुटने टेक दिए तो फिर मैं तुझे जो कुछ कहूँगा तू वो सब करेगी. जिसके साथ सेक्स के लिए कहूँगा तू उसके साथ सेक्स करेगी. बोल तुझे मंज़ूर हैं.


राधिका के चेहरे पर खुशी के भाव छलकने लगते हैं. वो तुरंत बोल पड़ती हैं- ठीक हैं बिहारी मुझे मंज़ूर हैं.


बिहारी के चेहरे पर एक बार फिर से कुटिल मुस्कान तैर जाती हैं. वो अच्छे से जानता था कि राधिका जिस गेम को जितना आसान समझ रही हैं बिहारी उस खेल का मँज़ा हुआ खिलाड़ी हैं. वो तो उसके जैसी लड़की को 1/2 घंटे के अंदर सिड्यूस रखने की ताक़त रखता था. अब यहाँ पर राधिका के सहन शक्ति और धर्य का इम्तिहान होना था. और देखना ये था कि राधिका को इस खेल में जीत मिलती है या फिर हार. ये तो आने वाला वक़्त ही बताने वाला था कि ये दो घंटे राधिका पर भारी पड़ने वाले थे या उन तीनों पर..


राधिका कुछ देर तक सोचती हैं फिर बिहारी से कहती हैं- ठीक हैं बिहारी मैं ये गेम खेलने को तैयार हूँ मगर मेरी भी एक शर्त है अगर तुम्हें मंज़ूर हो तो मैं कहूँ.............


बिहारी बड़े प्यार से एक नज़र राधिका को देखता हैं- बोलो राधिका कैसी शर्त हैं तुम्हारी. बिहारी तुम्हारी हर ख्वाहिश पूरी करेगा.


राधिका- शर्त ये हैं कि मैं चाहती हूँ कि तुम और तुम्हारे ये दोनो साथी मुझे इन दो घंटों तक मेरे बदन को हाथ नहीं लगाएँगे. तुम मुझे सिड्यूस बेशक करो मगर बिना मेरे बदन को हाथ लगाए. अगर तुम्हें मेरी ये शर्त मज़ूर हो तो..


बिहारी थोड़ी देर तक सोचता हैं फिर कहता हैं- ठीक हैं राधिका मुझे तेरी ये शर्त भी मंज़ूर हैं तू यही चाहती हैं ना कि इन दो घंटों में तुझे हम में से कोई भी तेरे बदन को हाथ नहीं लगाएगा मुझे मंज़ूर हैं मगर मेरी भी एक शर्त हैं.


राधिका- बोलो बिहारी क्या हैं तुम्हारी शर्त.


बिहारी अपने जेब से एक वाइट कलर का डिल्डो निकालकर राधिका को दिखाता हैं. डिल्डो करीब 3 इंच मोटा और 9 इंच लंबा था- तू तो ये जानती होगी कि ये क्या हैं और इसका इस्तेमाल कहाँ पर किया जाता हैं. अगर नहीं जानती तो बोल दे मैं तुझे बता देता हूँ.


राधिका बिहारी की बातो से शरमा जाती हैं और अपनी नज़रें नीची कर लेती हैं- मैं जानती हूँ ये क्या है.


बिहारी- तो फिर ठीक हैं शर्त के मुताबिक इसे तू तब तक नहीं निकालेगी जब तक मैं ना कहूँ. इसे तुझे पूरे दो घंटे तक अपने चूत में रखना हैं. बोल मंज़ूर हैं तुझे.


राधिका शरम से हां में अपनी गर्देन नीचे झुका लेती हैं.


बिहारी- तो फिर देर किस बात की हैं चल फटाफट तू इस डिल्डो को सही जगह पर रख जहाँ इसे होना चाहिए.


राधिका- यहाँ पर.............क्या इन सब के बीच???


बिहारी- अगर तुझे शरम आ रही हैं तो तू बाथरूम में जा सकती हैं मगर इतना ध्यान रहे हमारे साथ धोका करने की कोशिश मत करना. वैसे भी मुझे पता चल ही जाएगा. फिर सोच लेना तेरा अंजाम क्या होगा अगर तूने ज़रा भी हम से चालाकी करने की कोशिश की तो...


राधिका वो डिल्डो बिहारी से ले लेती हैं और झट से बाथरूम में चली जाती हैं. राधिका के जाते ही विजय और जग्गा अपने गुस्से की भडास बिहारी पर निकालते हैं.


विजय- तेरा दिमाग़ फिर गया हैं. एक तो तू ऐसा चूतियापा खेल खेल रहा हैं और उपर से ऐसी घटिया शर्त. मैं दावे से कहता हूँ कि राधिका अब हमारे हाथ से निकल जाएगी और अगर ऐसा हुआ तो फिर मुझसे बुरा कोई नहीं होगा.


जग्गा- अरे उसको बिना हाथ लगाए तो हम उसे सिड्यूस कर चुके. वो अब हमारे हाथ नहीं आने वाली. इस बाज़ी में हमे सिर्फ़ हार मिलेगी.


बिहारी- अरे यार तुम लोग बेवजह परेशान हो रहे हो. देख लेना राधिका बस एक घंटे के अंदर मेरे कदमों में गिरकर अपनी चुदाई की भीक माँगेगी. और ये बात मैं पूरे दावे के साथ कह सकता हूँ. मैने भी कोई कच्ची गोलियाँ नहीं खेली हैं. आज मुझे 20 साल हो गये इस धंधे में और मैं अच्छे से जनता हूँ कि किसी भी लड़की को सिड्यूस कैसे किया जाता हैं. तुम लोग बस देखते जाओ और जैसा मैं बोलूँगा वैसे ही करना.


विजय- लेकिन मुझे ये समझ में नहीं आया कि इस गेम से क्या होगा. और इसी हमे क्या फ़ायदा होने वाला हैं.
 
बिहारी- बताउन्गा सब कुछ बताउन्गा धीरे धीरे सब समझ में आ जाएगा. और एक बात तुम्हें मैं बता देता हूँ शायद तुम्हारे चेहरे पर थोड़ी मुस्कान आ जाए. अभी मैने राधिका को जूस पीने को कहा था वो कोई नॉर्मल जूस नहीं था. उसमें मैने वायग्रा मिलाया हुआ था. अब बस आधे घंटे के बाद उसके जिस्म में वो वियाग्रा इतनी गर्मी भर देगा कि राधिका बिना कुछ सोचे समझे अपनी चूत खुद ही हमे सौंप देगी. फिर वो अपने हाथ में एक छोटा सा रिमोट विजय और जग्गा को दिखाता हैं..


जग्गा- ये कैसा रिमोट हैं बिहारी तेरे हाथों में.


बिहारी के चेहरे पर फिर से कुटिल मुस्कान तैर जाती है- यू समझ ले कि ये राधिका की चूत को कंट्रोल करने का रिमोट है. नहीं समझे ठीक हैं मैं समझाता हूँ. अभी अभी जो मैने राधिका को जो डिल्डो दिया हैं ये उसका कंट्रोलर हैं. और तुम लोग जिसे वो डिल्डो समझ रहे हो वो डिल्डो नहीं बल्कि एक वाइब्रटर हैं. और अभी थोड़े देर के बाद मैं तुम्हें उसका कमाल दिखाउन्गा जब राधिका उस वाइब्रटर को अपने चूत में रखी होगी. यहाँ से मैं उस वाइब्रटर की स्पीड को कम या ज़्यादा कर सकता हूँ और सोच लो अगर ये वाइब्रटर को मैं पूरे दो घंटे तक ऑन रखूँगा तो राधिका की क्या दशा होगी इसका तुम अनुमान नहीं लगा सकते. सोचो थोड़ी देर के बाद वियाग्रा अपना असर दिखना शुरू कर देगा और इधेर ये डिल्डो राधिका की चूत के अंदर घी में आग का काम करेगा और हम सब उससे इतनी नंगी बातें करेंगे कि वो कुछ देर के अंदर अपने आप को हमारे कदमों में सौप देगी. बिहारी के मूह से ऐसी बातो को सुनकर जग्गा और विजय के होंठो पर मुस्कान तैर जाती हैं.


विजय- वाह बिहारी वाह तेरा जवाब नहीं अब तू देखते जा आज साली से ऐसी गंदी गंदी बातें करूँगा कि खुद ही शरम से डूब मरेगी और उसके बाद उसकी ऐसी चुदाई होगी कि वो हमे कभी नहीं भूल पाएगी. आज आख़िर तूने फिर से अपना कमीनपन दिखा ही दिया...


बिहारी- हां विजय मैने जीवन में किसी भी चीज़ को हासिल करना सीखा है चाहे छल से या बल से. और राधिका को पाने के लिए तो मैं सारे साम दाम लगा दूँगा. तुम सब देखते जाओ आगे आगे क्या होता हैं....


इन सब से बेख़बर राधिका बाथरूम में अपनी पैंटी नीचे सरका कर उस वाइब्रटर को अपनी चूत में डाल रही थी. थोड़ी मुश्किल के बाद वो वाइब्रटर उसकी चूत में पूरा चला जाता हैं फिर वो अपनी पैंटी उपर करके दुबारा पहन लेती हैं. उसे पता नहीं क्यों पर आज अपने आप पर तो उसे भरोसा था मगर उसका जिस्म उसका साथ देगा उसे इसी बात को लेकर थोड़ी चिंता थी फिर भी वो कुछ सोचकर और अपने इरादे मज़बूत करके वो बाथरूम से बाहर निकलती हैं. और कुछ देर में वो उन तीनों के पास मौजूद होती हैं.


बिहारी- शर्त के मुताबिक देख घड़ी में 3:15 बज रहे हैं और ये गेम पूरे 2 घंटे तक चलेगा यानी 5:15 तक. और इन दो घंटों में कोई तेरे बदन को हाथ नहीं लगाएगा मगर तुझसे हम अश्लियल बातें बेशक कर सकते हैं. तो फिर चलो गेम शुरू करते हैं. राधिका भी सहमति में अपनी गर्देन हां में हिला देती हैं.फिर बिहारी का नंगा खेल शुरू हो जाता हैं..
 
वक़्त के हाथों मजबूर--39


बिहारी- वैसे राधिका तू सच में पूरी क़यामत लग रही हैं. मैं जानता था कि ये ब्लॅक साड़ी तेरे पर बहुत जचेगि इसलिए मैने तेरे लिए ख़ास ये स्पेशल साड़ी भेजवाया था. वैसे तूने बताया नहीं अब तक कि तेरा फिगर का साइज़ क्या हैं.


राधिका अच्छे से जानती थी कि अभी तो ये शुरूवात हैं ऐसे कई अश्लील सवाल ये सब मिलकर करेंगे और उसे उन सारे सवालों के जवाब देने पड़ेंगे.


राधिका- 36-28-32 यही हैं मेरी फिगर का साइज़.


बिहारी- थोड़ा डीटेल में बता ना राधिका मुझे ऐसे समझ में नहीं आता.


राधिका थोड़ा हिम्मत करके फिर से कहती हैं- मेरे सीने का साइज़ 36 और मेरी कमर का साइज़ 28 और मेरी आस का साइज़ 32 हैं.


विजय- अच्छे से बोल ना राधिका पूरे सॉफ सॉफ लफ़्ज़ों में और सरल हिन्दी भाषा में. हमे ज़्यादा अँग्रेज़ी समझ में नहीं आती.


राधिका ना चाहते हुए भी कहती हैं- मेरे बूब्स का साइज़ 36.....................


बिहारी- क्या जानेमन बूब्स तो इंग्लीश वर्ड हैं शुद्ध हिन्दी में बोल. और हां अब दुबारा से ग़लती मत करना वरना तुझसे एक ग़लती के बदले एक और सवाल.


राधिका इस बार फिर थोड़ी हिम्मत करके बोलती हैं- मेरे दूध का साइज़ 36 है ,मेरी कमर का साइज़ 28 और मेरी गान्ड का साइज़ 32 है. राधिका ही जानती थी कि ये शब्ध उसने कैसे बोले थे. उसकी साँसें बहुत तेज़ चल रही थी.


बिहारी- तुझे पता हैं आदमी और औरत में क्या फ़र्क होता हैं?? कॅन यू एक्सप्लेन????


राधिका शरम से अपनी नज़रें नीची कर लेती हैं. और कुछ देर तक यूँ ही खामोश रहती हैं तभी बिहारी अपनी उंगली को थोड़ी सी हरकत करता हैं और अगले ही पल राधिका वही उछल पड़ती हैं. राधिका की चूत में रखा वो वाइब्रटर ऑन हो जाता हैं और राधिका को ऐसा लगता हैं कि किसी ने उसकी चूत में ड्रिलिंग मशीन चला दी हो. फिर बिहारी वो वाइब्रटर की स्पीड तुरंत फुल कर देता है और राधिका अपनी चूत पर दोनो हाथ रखकर वही बैठ जाती हैं. थोड़ी देर के बाद बिहारी उस वाइब्रटर की स्पीड कम करता हैं मगर बंद नहीं करता.


राधिका को अब समझ में आ गया था कि उस वाइब्रटर को अपनी चूत में रखकर कितनी बड़ी ग़लती की हैं- उसकी चूत ने अब धीरे धीरे पानी छोड़ना शुरू कर दिया था. और उपर से वियाग्रा का असर राधिका आब धीरे धीरे गरम होने लगी थी.


बिहारी- तूने मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया. मैं तुझसे कुछ पूछ रहा हूँ राधिका.


राधिका फिर धीरे से खड़ी होती है फिर बड़ी मुश्किल से बोलती हैं- आदमी और औरत में बस उसका लिंग अलग होता हैं. लिंग से ही पहचान होती हैं कि वो इंसान आदमी है या औरत.


जग्गा- तो क्या मेरी पहचान करने के लिए क्या मुझे हर जगह अपना लिंग दिखाना पड़ेगा कि मैं आदमी हूँ कि औरत. अगर मैं तेरे से कहूँ कि तू औरत हैं तो क्या तू भी अपनी चूत दिखाएगी. जवाब दे मेरे सवालो का.


जग्गा की बातो से राधिका का चेहरा शरम से लाल पड़ जाता हैं- मेरा............... वो कहने का मतलब नहीं था.


बिहारी- अरे मेरी जान हम से इतना शरमाएगी तो कैसे काम चलेगा. सॉफ सॉफ क्यों नहीं कह देती कि आदमी के पास लंड होता हैं और औरत के पास चूत होती हैं.
 
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