hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
अत: इस व्यूह का केन्द्र चमन में है, और केंन्द्र पर हमने तुम्हें नियुक्त किया है । जहाँ तक हमारा अनुमान है, अगर सारे जासूस एक ही समय पर चमन में पहुंचे तो चमन में बेशक दुनिया के महान जासूसों का जबरदस्त टकराव होगा । हमारी राय यह है कि उस टकराव में तुम शरीक नहीं होगे ।”'
" तो फिर वहाँ क्या तमाशा देखूंगा ?"
-"'बेशक ।"
"'क्या मतलब हैं" विकास चौंका।
" वैसे तो हम जानते हैं प्यारे दिलजले कि काम अपने ढंग से करोगे और हमारे समझाने से कुछ नहीं होगा ।" ने , कहा-"लेकिन फिर भी आदत खराब हो गई-समझाए बिना रहेंगे नहीं । सुनो, तुम वहा पहुंचोगे, लेकिन वतन के अलावा कोई यह नहीं जान सकेंगा कि विकास वहां पहुच गया है तुम्हारा काम् वतन, उसके आविष्कार और फार्मूले की हिफाजत करना होगा । जिस वक्त हैरी, बागारोफ, जेम्स बाण्ड, तुगलक अली , नुसरत खान, सांगपोक, हवानची और सिंगसीं वहां पहुंच जाएंगे तो एक-दूसरे के बारे में निश्चित रूप से पता लग जाएगा । लक्ष्य एक ही है । अत: मिलकर वे काम नहीं कर सकेंगे। एक
दूसरे का विरोध करेंगें टकराव होगा । सम्भव है कि उस टकराव में इनमें से एकाध का कल्याण हो जाए । इनके बीच नहीं कुदोगे । आपसी लड़ाई में जीतने के बाद जो भी वतन तक पहुंचने की कोशिश करे, उसे संभालना तुम्हारा काम होगा ।"
लेकिन अाप सब लोग चीन, अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और पाकिस्तान में क्या करेंगे ?"
" अखण्ड कीर्तन ।" झुझलाकर विजय ने कहा---"अवे, पहले पूरी बात सुन लिया करो, तब चोंच खोला करो । ये माना कि तुम अभिमन्यु बनकर उस व्यूह में घुसे होगे, लेकिन प्यारे, मालूम है न कि अभिमन्यु व्यूह में फंस कर ही रह गया था । बही डर हमें भी है, माना कि तुम कामयाब न हो सहे और इनमें से कोई यन्त्र और फार्मूला प्राप्त करने में कामयाब हो गया तो क्या केरोगे ?"
"मेरे ख्याल से ऐसा होगा ही नहीं गुरु ।"
" तुम्हारे ख्याल रेत की दीवारों से ज्यादा मज़बूत नहीं होते प्यारे ।" विजय ने कहा…"और हमारे ख्याल अक्सर पत्थर की लकीर कहलाते हैं । अपने ख्यालों को जेब में रखो और हमारी बात को कान में आंवले का अचार डालकर सुनो । तुम्हें एक विशेष ट्रांसमीटर दिया जाएगा। उसकी मदद से जब चाहो----- विक्रमादित्य, झान-झरोखे, गोगियापाशा से सम्बन्ध्र स्थापित कर सकते हो । माना कि दुश्मनों में से कोई अपने अभियान में कामयाब हो गया तो तुम यह सूचना उसके देश में मौजूद हममें से किसी 'को भी दे दोगे । मानो कि जेम्स बाण्ड कामयाब हो जाता है तो तुम फौरन यह सूचना मिस रोगियापाशा को दे दोगे, क्यों ? …-वयोंकि ब्रिटेन में वही होगी । अत: फिर जेम्स बाण्ड को अपने चीफ तक न पहुंचने देने का काम उसका होगा है"
"मतलब यह कि अगर चीनी जासूस कामयाब हो तो उसकी सुचना मैं आपको दे दूं ?" बिकास ने कहा ।
" वो मारा साले पापढ़ वाले को--अब समझे न हमारी बात…गधे की लात ।"-विजय ने कहा--"हेरी कामयाब हो जाए तो झानझरोखे क्रो, तुगलक और नुसरत कामयाब हों, तो परवेज को कहने का तात्पर्य ये कि जिस देश का कामयाब हो, उसी देश में मौजूद भारतीय सीक्रेंट सर्विस के एजेण्ट को सूचना दे दी जाएगी!"
"यह तो मैं समझ गया गुरू !" विकास ने कहा’--“लेकिन माना कि चचा बागारोफ कामयाब हो जाते हैं, तो सीधी…सी बात है कि मैं रूस में मौजूद- विक्रम अंकल को सूचित कर दूं, वे हरकत में अा जायेगे । यह ठीक है-मगर अन्य देशों में मौजूद साथी जैसे चीन में आपका क्या काम रह जायेगा ?"
"पीर्किग की ठण्डी सडकों पर टहलकर वापस आ जाएंगे ।"
मेरे ख्याल से तो बेकार में इतना लम्बा लफड़ा फैला रहे हो गुरु ।" विकास ने कहा ।
" जिस दिन से तुम्हारी तुच्छ बुद्धि में हमारी महान बातें फिट होने लगेंगी प्यारे दिलजले, उस दिन से लोग तुम्हे विकास नहीं, विजय कहेंगे ।" विजय कहता ही चला गया…"तुम एक ही बार में यह योजना सुन लो जो हमने बनाई है, उसे शान्तिपुर्वक सुनने के बाद शायद तुम्हें किसी तरह का कोई सवाल करने की जरूरत न पडे । सुनो-हम सब लोग उन देशों को रवाना होंगे जो वतन के स्टेटमेंट से हरकत में अाए है । हमारी सबसे पहली कोशिश यह होगी कि हम उस देश के जासूस को चमन तक न पहुंचने दे, जहा तुम हों । माना कि मैं चीन जाता हूं । मेरा प्रयास यह होगा
कि सागपोक एण्ड पार्टी को मैं चमन में न पहुंचने दूं लेकिन अगर वो मेरे चीन पहुंचने से पहले ही चीन से निकेल लें अथवा अपनी कोशिश के बावजूद भी मैं उन्हें न रोक पाऊं तो चमन में उनका टकराव 'तुमसे होगा । हालांकि तुम भी उन्हें उनके अभियान में कामयाब नहीं होने दोगे लेकिन अगर मान भी लिया जाए कि कामयाब हो जाते हैं तो चीन में हम फिर होंगे ! क्योंकि अभी यह कोई नहीं कह सकता कि कौन कामयाब होगा ? जो भी सफल होगा उसी के देश में मौजूद भारतीय सीक्रेटस सर्विस का एजेण्ट हरकत में अा जाएगा । बाकी लोग चुपचाप भारत लौट जाएंगे ।"
"चक्रव्यूह तो आपने बनाया गुरू ।"
" अजी हमारे क्या कहने ।" विजय सीना तानकर बोला----" हम तो न जाने क्या-क्या बना डालते हैं ।"
विकास और ब्लेक बंवाय सिर्फ मुस्कराकर रह गए ।
फिर कुछ देर की बातों और ब्लेक व्वाय द्वारा दिया गया कुछ ऐसा सामान जो इस अभियान में उसके काम आने वाला था-लेकर वह गुप्त भवन से निकल गया । दुनिया के महान जासूसों से टकराब के ख्वाब देखता विकास घर पहुंचा । "
पहुंचते ही रैना ने उसे आडे़ हाथों लिया । बिकास जब इधर-उधर के बहाने वनाने लगा तो रैना ने कहा ---मुझे मालूम है कि अब तू वतन के पास जाएगा ।"
खोपड़ी बुरी तरह झन्ना उठी उसकी, बोला…"क्या मतलब ?"
"मतलब ये ।" कहने के साथ ही रैना ने उसके हाथ पर एक कागज रख दिया ।
धड़कते दिल से यह सोचता हुआ विकास कागज की तह खोलने लगा कि यह कागज किसका अौर इसमें क्या लिखा है ।
और उसने खोला,-पढा---
"प्यारे गुरुदेव, चरण सपर्श !"
आप तों विजयं गुरु के केहने में चलते हो ना ? न जाने वतन की मदद के लिए चमन में कव आओगे, शायद उस वक्त जव मेरे भाई का अन्जाम खत्म हो चुका होगा जो डॉक्टर भावा-का हुआ । मगर...मैं चुप नहीं बैठ सकता । मैं आज़ ही चमन जा रहा हूं अापके चरणों की कसम, वतन की तरफ कोई आंखें भी उठाए तो मैं उसकी आखें न निकाल लूं तो मेरा नाम मोणटो नहीं । मैं जा रहा हूं---मगर जरूरत समझो तो अपने बच्चे की मदद के लिए चमन जा जाना । ज़रूरी न समझो तो आपकी इच्छा । "
अपका धनुषंटकार ।
विकास ने पढ़ा । एक पल के लिए तो-दिमाग चकराकर रह गया उसका।
उसने देखा…कागज में सबसे ऊपर तारीख पड़ी थी । पिछले दिन की तारीख । सचमुच कल शाम से ही धनुषटंकार उसे नहीं चमका था ।
मगर उसे तो ख्वाबों में भी उम्मीद नहीं थी कि धनुषटंक्रार अकेला ही चमन पहुच जाएगा ।
घण्टियों की आवाज सुनते ही धनुषटंकार उछलकर खड़ा हो गया था । वह जान गया था कि उसका भाई आ रहा है वतन ! उसने जाल्दी से पब्बे का ढक्कन, बन्द करके जेब में डाला, और जैसे ही उसने कक्ष के दरवाजे की तरफ देखा-- दूध जैसा सफेद बकरा कमरे में प्रविष्ट हो रहा था । धनुषटंकार उसकी तरफ झपटा, अपोलो धनुषटंकार की तरफ । बड़े अजीब ढंग से एक दूसरे के गालों को प्यार क्रिया उन्होंने । अभी वे प्यार कर ही रहे थे कि दरवाजे पर नजर आया-वतन । दूध जैसे सफेद कपडे, आखों पर चढ़ा सुनहरे फ्रेम और गाढे-काले शीशों का शानदार चश्मा ।
इस बार वतन के हाथ में एक नई चीज थी…एक छडी़ का रग भी दूध जैसा सफेद था । उसे देखते ही धनुषटंकार अपालो से अलग हुआ ।
उसकी तरफ देखता वतन मुस्करा रहा था ।।
धनुकांकार ने एकदन जम्प लगा-दी और बांहें वतन के गले में डालकर उसके सीने पर लग गया, न सिर्फ झूल गया, बल्कि पागलों की, तरह वह वतन गाल चूम रहा था । वतन ने भी प्यार से उसे लिपटा लिया ।
"अकेले ही आए हो क्या ?" वतन ने सबसे पहला सबाल यही किया था ।
धनुषटंकार ने इशारे से ‘हां' कहा । .
यह थी वतन और धनुषटकार की वह पहली मुलाकात जब भारत से चमन पहुचने पर लह वतन से मिला ।
राष्ट्रपति भवन के मुलाजिमों ने उसे यह कहकर कक्ष में बैठा दिया था, कि वे अभी महाराज को सूचना देते हैं ।
और-----कुछ ही देरे बाद कक्ष में अपोलो और वतन पहुंचे थे ।
फिर-राष्ट्रपति-भवन में धनुषटंकार की जबरदस्त खातिर की गई । अतिधि हॉल में तब, वे नाश्ता कर रहे थे । वतन की छडी उसकी कुर्सी से सटी रखी थी । नाश्ते के 'बीच ही वतन ने उससे पूछा था…"मोण्टो !. यूं ही घूमने चले अाए या कोई खास बात ?"
जवाब में धनुषटंकार ने उसे अपनी डायरी का एक लिखा हुआ पृष्ठ पकडा दिया । उस कागज में धनुषटंकार ने लिखा था आपने आविष्कार के विषय में अख़बारों में स्टेटमेंट देकर अच्छा नहीं क्रिया । दुनिया क्री महाशक्तियां, माने जाने वाले राष्ट्र, उस आविष्कार को प्राप्त करने की कोशिश करेंगे । इस आविष्कार के कारण ही आपकी (वतन) जान भी खतरे में है । आपकी मदद के लिए ही मैं यहां आया हुं । "
पढ़कर बडे आकर्षक ठंग से मुस्कराया वतन, बोला --"तुम वहुत ही पगले हो, मोण्टो ।"
"क्यों ?" धनुषटंकार ने इशारे से पूछा ।
" इसलिए कि तुम व्यर्थ ही चिन्तित हो उठे ।" वतन ने कहा…"जिस देश का शासन मैं चला रहा हूं , वह छोटा जरुर है, लेकिन इस देश का शासक दुनिया की महाशक्तियों के हथकण्डों
से पूर्णतया परिचित है । मैं जानता हूं कि मेरे स्टेटमेंट से दुनियां में खेलती मच गई है । यहीं चाहता भी था मैं ।"
"क्यो ?" धनुषटंकार ने पुन: इशारे से पूछा ।
"इसलिए कि सारी दुनिया को यह बता सकू कि दुनिया में सिर्फ अमेरिका और रूस ऐसे देश नहीं हैं जिनके बिज्ञान की दुनिया पर एकाधिकार है । मैंने साबित कर दिया कि उनके मुकाबले चमन जैसा छोटा राष्ट्र भी कुछ कर सकता है । क्या दुनिया की महाशक्तियां चमन के इस आविष्कार से चिंतित न ही उठी है?"
"'दुनिया की ये महाशक्तियां सिर्फ चित्तित होकर ही नहीं रह जाती हैं ।" धनुषटंकार ने डायरी के पेज पर लिखकर वतन को दिया--"बल्कि जलने लगती हैं । ईर्ष्या से जलती ही रहे -तब भी वे शायद हमारा कुछ न बिगाड़ सकें, लेकिन इनकी आदत है कि ये किसी: भी तरह उस शक्ति को समाप्त कर डालती है, जो उनके करीब जाना चाहती हैं । डाँक्टर भावा का नाम तो सुना ही होगा भैया, उन्होंने भी तुम्हारी ही तरह यह धोषणा कर दी थी कि उन्होंने एक ऐसा आविष्कार कर लिया है जिससे वे समूचे है भारत पर किरणों का एक ऐसा जाल बिठा देगे कि दुनिया का कोई भी अणु/बम भारत को लेशमात्र भी क्षति ऩ पहुचा सकेगा उनका अन्जाम तो तुम..."
" अच्छी तरह जानता हूं ।" हल्के से मुस्कराकर वतन ने कहा-"लेकिन मैं डॉक्टर भावा नहीं हू मोण्टो ! डॉक्टर भावा-इन दरिन्दो को जानते नहीं थे और ठीक उनके विपरीत मैं इन हरामजादों की नस-नस से वाकिफ हूं । मैं अच्छी तरह जानता हू कि कौन-से पल में, क्रिस हद तक घिनोनी चाल चल सकते हैं । तो ऐसा नहीं है मोण्टो, कि मैंने अखबारों को बिना कुछ सोचे समझे स्टेटमेंट दे दिया है । अखबारों को मैंने जो कुछ दिया है, बहुत अच्छी तरह सोच-समझकर दिया है । मुझे मालुम था कि मेरे इस स्टेटमेंट से दुनिया में हलचल मचेगी । महाशक्तियों को चमन के रूप में मंडराती अपने उपर मौत नजर आएगी । अपनी ताकत के मद में चूर जो राष्ट्र अन्धे हुए जा रहे हैं, उन्हें एक ठोकर लगेगी । वे पलटकर चमन की शक्ति का कारण यानी वह यन्त्र छीन लेना चाहेंगे जो मैंने बनाया है । उनका प्रयास तो यही होगा कि वे चमन की शक्ति के ,स्रोत यानी वतन को ही खत्म कर दें ।"
धनुषटंकार ने पुन: लिखा----" इतना सब कुछ जानते हुए यह स्टेटमेंट..... "
वतन ने पढा, धीरे…से मुस्कराया, बोता-----" हां , क्योंकि मैं उन्हें बता देना चाहता था कि हर भारतीय डॉक्टर भावा नहीं है । मैं तो चाहता ही यह हूं कि वे अपनी कोशिशें करें । तुम लोगों को यहाँ से गये छ: महीने हुए हैं न मोण्टो ! हां छ: महीने हुए हैं, मेरे चमन को आजाद हुए । इन छ: महीनों में मैंने यही एकमात्र काम किया ' है । जो तुमने अखबारों में पढ़ा है, इसके अतिरिक्त भी बहुत-से काम किए हैं । ऐसे कि इन महाशक्तियों को इनकी किसी भी गलत हरकत का मुंह-तोड़ जवाब दे सकू।"
"जैसे ?"' धनुषटंकार ने लिखा ।
" तो फिर वहाँ क्या तमाशा देखूंगा ?"
-"'बेशक ।"
"'क्या मतलब हैं" विकास चौंका।
" वैसे तो हम जानते हैं प्यारे दिलजले कि काम अपने ढंग से करोगे और हमारे समझाने से कुछ नहीं होगा ।" ने , कहा-"लेकिन फिर भी आदत खराब हो गई-समझाए बिना रहेंगे नहीं । सुनो, तुम वहा पहुंचोगे, लेकिन वतन के अलावा कोई यह नहीं जान सकेंगा कि विकास वहां पहुच गया है तुम्हारा काम् वतन, उसके आविष्कार और फार्मूले की हिफाजत करना होगा । जिस वक्त हैरी, बागारोफ, जेम्स बाण्ड, तुगलक अली , नुसरत खान, सांगपोक, हवानची और सिंगसीं वहां पहुंच जाएंगे तो एक-दूसरे के बारे में निश्चित रूप से पता लग जाएगा । लक्ष्य एक ही है । अत: मिलकर वे काम नहीं कर सकेंगे। एक
दूसरे का विरोध करेंगें टकराव होगा । सम्भव है कि उस टकराव में इनमें से एकाध का कल्याण हो जाए । इनके बीच नहीं कुदोगे । आपसी लड़ाई में जीतने के बाद जो भी वतन तक पहुंचने की कोशिश करे, उसे संभालना तुम्हारा काम होगा ।"
लेकिन अाप सब लोग चीन, अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और पाकिस्तान में क्या करेंगे ?"
" अखण्ड कीर्तन ।" झुझलाकर विजय ने कहा---"अवे, पहले पूरी बात सुन लिया करो, तब चोंच खोला करो । ये माना कि तुम अभिमन्यु बनकर उस व्यूह में घुसे होगे, लेकिन प्यारे, मालूम है न कि अभिमन्यु व्यूह में फंस कर ही रह गया था । बही डर हमें भी है, माना कि तुम कामयाब न हो सहे और इनमें से कोई यन्त्र और फार्मूला प्राप्त करने में कामयाब हो गया तो क्या केरोगे ?"
"मेरे ख्याल से ऐसा होगा ही नहीं गुरु ।"
" तुम्हारे ख्याल रेत की दीवारों से ज्यादा मज़बूत नहीं होते प्यारे ।" विजय ने कहा…"और हमारे ख्याल अक्सर पत्थर की लकीर कहलाते हैं । अपने ख्यालों को जेब में रखो और हमारी बात को कान में आंवले का अचार डालकर सुनो । तुम्हें एक विशेष ट्रांसमीटर दिया जाएगा। उसकी मदद से जब चाहो----- विक्रमादित्य, झान-झरोखे, गोगियापाशा से सम्बन्ध्र स्थापित कर सकते हो । माना कि दुश्मनों में से कोई अपने अभियान में कामयाब हो गया तो तुम यह सूचना उसके देश में मौजूद हममें से किसी 'को भी दे दोगे । मानो कि जेम्स बाण्ड कामयाब हो जाता है तो तुम फौरन यह सूचना मिस रोगियापाशा को दे दोगे, क्यों ? …-वयोंकि ब्रिटेन में वही होगी । अत: फिर जेम्स बाण्ड को अपने चीफ तक न पहुंचने देने का काम उसका होगा है"
"मतलब यह कि अगर चीनी जासूस कामयाब हो तो उसकी सुचना मैं आपको दे दूं ?" बिकास ने कहा ।
" वो मारा साले पापढ़ वाले को--अब समझे न हमारी बात…गधे की लात ।"-विजय ने कहा--"हेरी कामयाब हो जाए तो झानझरोखे क्रो, तुगलक और नुसरत कामयाब हों, तो परवेज को कहने का तात्पर्य ये कि जिस देश का कामयाब हो, उसी देश में मौजूद भारतीय सीक्रेंट सर्विस के एजेण्ट को सूचना दे दी जाएगी!"
"यह तो मैं समझ गया गुरू !" विकास ने कहा’--“लेकिन माना कि चचा बागारोफ कामयाब हो जाते हैं, तो सीधी…सी बात है कि मैं रूस में मौजूद- विक्रम अंकल को सूचित कर दूं, वे हरकत में अा जायेगे । यह ठीक है-मगर अन्य देशों में मौजूद साथी जैसे चीन में आपका क्या काम रह जायेगा ?"
"पीर्किग की ठण्डी सडकों पर टहलकर वापस आ जाएंगे ।"
मेरे ख्याल से तो बेकार में इतना लम्बा लफड़ा फैला रहे हो गुरु ।" विकास ने कहा ।
" जिस दिन से तुम्हारी तुच्छ बुद्धि में हमारी महान बातें फिट होने लगेंगी प्यारे दिलजले, उस दिन से लोग तुम्हे विकास नहीं, विजय कहेंगे ।" विजय कहता ही चला गया…"तुम एक ही बार में यह योजना सुन लो जो हमने बनाई है, उसे शान्तिपुर्वक सुनने के बाद शायद तुम्हें किसी तरह का कोई सवाल करने की जरूरत न पडे । सुनो-हम सब लोग उन देशों को रवाना होंगे जो वतन के स्टेटमेंट से हरकत में अाए है । हमारी सबसे पहली कोशिश यह होगी कि हम उस देश के जासूस को चमन तक न पहुंचने दे, जहा तुम हों । माना कि मैं चीन जाता हूं । मेरा प्रयास यह होगा
कि सागपोक एण्ड पार्टी को मैं चमन में न पहुंचने दूं लेकिन अगर वो मेरे चीन पहुंचने से पहले ही चीन से निकेल लें अथवा अपनी कोशिश के बावजूद भी मैं उन्हें न रोक पाऊं तो चमन में उनका टकराव 'तुमसे होगा । हालांकि तुम भी उन्हें उनके अभियान में कामयाब नहीं होने दोगे लेकिन अगर मान भी लिया जाए कि कामयाब हो जाते हैं तो चीन में हम फिर होंगे ! क्योंकि अभी यह कोई नहीं कह सकता कि कौन कामयाब होगा ? जो भी सफल होगा उसी के देश में मौजूद भारतीय सीक्रेटस सर्विस का एजेण्ट हरकत में अा जाएगा । बाकी लोग चुपचाप भारत लौट जाएंगे ।"
"चक्रव्यूह तो आपने बनाया गुरू ।"
" अजी हमारे क्या कहने ।" विजय सीना तानकर बोला----" हम तो न जाने क्या-क्या बना डालते हैं ।"
विकास और ब्लेक बंवाय सिर्फ मुस्कराकर रह गए ।
फिर कुछ देर की बातों और ब्लेक व्वाय द्वारा दिया गया कुछ ऐसा सामान जो इस अभियान में उसके काम आने वाला था-लेकर वह गुप्त भवन से निकल गया । दुनिया के महान जासूसों से टकराब के ख्वाब देखता विकास घर पहुंचा । "
पहुंचते ही रैना ने उसे आडे़ हाथों लिया । बिकास जब इधर-उधर के बहाने वनाने लगा तो रैना ने कहा ---मुझे मालूम है कि अब तू वतन के पास जाएगा ।"
खोपड़ी बुरी तरह झन्ना उठी उसकी, बोला…"क्या मतलब ?"
"मतलब ये ।" कहने के साथ ही रैना ने उसके हाथ पर एक कागज रख दिया ।
धड़कते दिल से यह सोचता हुआ विकास कागज की तह खोलने लगा कि यह कागज किसका अौर इसमें क्या लिखा है ।
और उसने खोला,-पढा---
"प्यारे गुरुदेव, चरण सपर्श !"
आप तों विजयं गुरु के केहने में चलते हो ना ? न जाने वतन की मदद के लिए चमन में कव आओगे, शायद उस वक्त जव मेरे भाई का अन्जाम खत्म हो चुका होगा जो डॉक्टर भावा-का हुआ । मगर...मैं चुप नहीं बैठ सकता । मैं आज़ ही चमन जा रहा हूं अापके चरणों की कसम, वतन की तरफ कोई आंखें भी उठाए तो मैं उसकी आखें न निकाल लूं तो मेरा नाम मोणटो नहीं । मैं जा रहा हूं---मगर जरूरत समझो तो अपने बच्चे की मदद के लिए चमन जा जाना । ज़रूरी न समझो तो आपकी इच्छा । "
अपका धनुषंटकार ।
विकास ने पढ़ा । एक पल के लिए तो-दिमाग चकराकर रह गया उसका।
उसने देखा…कागज में सबसे ऊपर तारीख पड़ी थी । पिछले दिन की तारीख । सचमुच कल शाम से ही धनुषटंकार उसे नहीं चमका था ।
मगर उसे तो ख्वाबों में भी उम्मीद नहीं थी कि धनुषटंक्रार अकेला ही चमन पहुच जाएगा ।
घण्टियों की आवाज सुनते ही धनुषटंकार उछलकर खड़ा हो गया था । वह जान गया था कि उसका भाई आ रहा है वतन ! उसने जाल्दी से पब्बे का ढक्कन, बन्द करके जेब में डाला, और जैसे ही उसने कक्ष के दरवाजे की तरफ देखा-- दूध जैसा सफेद बकरा कमरे में प्रविष्ट हो रहा था । धनुषटंकार उसकी तरफ झपटा, अपोलो धनुषटंकार की तरफ । बड़े अजीब ढंग से एक दूसरे के गालों को प्यार क्रिया उन्होंने । अभी वे प्यार कर ही रहे थे कि दरवाजे पर नजर आया-वतन । दूध जैसे सफेद कपडे, आखों पर चढ़ा सुनहरे फ्रेम और गाढे-काले शीशों का शानदार चश्मा ।
इस बार वतन के हाथ में एक नई चीज थी…एक छडी़ का रग भी दूध जैसा सफेद था । उसे देखते ही धनुषटंकार अपालो से अलग हुआ ।
उसकी तरफ देखता वतन मुस्करा रहा था ।।
धनुकांकार ने एकदन जम्प लगा-दी और बांहें वतन के गले में डालकर उसके सीने पर लग गया, न सिर्फ झूल गया, बल्कि पागलों की, तरह वह वतन गाल चूम रहा था । वतन ने भी प्यार से उसे लिपटा लिया ।
"अकेले ही आए हो क्या ?" वतन ने सबसे पहला सबाल यही किया था ।
धनुषटंकार ने इशारे से ‘हां' कहा । .
यह थी वतन और धनुषटकार की वह पहली मुलाकात जब भारत से चमन पहुचने पर लह वतन से मिला ।
राष्ट्रपति भवन के मुलाजिमों ने उसे यह कहकर कक्ष में बैठा दिया था, कि वे अभी महाराज को सूचना देते हैं ।
और-----कुछ ही देरे बाद कक्ष में अपोलो और वतन पहुंचे थे ।
फिर-राष्ट्रपति-भवन में धनुषटंकार की जबरदस्त खातिर की गई । अतिधि हॉल में तब, वे नाश्ता कर रहे थे । वतन की छडी उसकी कुर्सी से सटी रखी थी । नाश्ते के 'बीच ही वतन ने उससे पूछा था…"मोण्टो !. यूं ही घूमने चले अाए या कोई खास बात ?"
जवाब में धनुषटंकार ने उसे अपनी डायरी का एक लिखा हुआ पृष्ठ पकडा दिया । उस कागज में धनुषटंकार ने लिखा था आपने आविष्कार के विषय में अख़बारों में स्टेटमेंट देकर अच्छा नहीं क्रिया । दुनिया क्री महाशक्तियां, माने जाने वाले राष्ट्र, उस आविष्कार को प्राप्त करने की कोशिश करेंगे । इस आविष्कार के कारण ही आपकी (वतन) जान भी खतरे में है । आपकी मदद के लिए ही मैं यहां आया हुं । "
पढ़कर बडे आकर्षक ठंग से मुस्कराया वतन, बोला --"तुम वहुत ही पगले हो, मोण्टो ।"
"क्यों ?" धनुषटंकार ने इशारे से पूछा ।
" इसलिए कि तुम व्यर्थ ही चिन्तित हो उठे ।" वतन ने कहा…"जिस देश का शासन मैं चला रहा हूं , वह छोटा जरुर है, लेकिन इस देश का शासक दुनिया की महाशक्तियों के हथकण्डों
से पूर्णतया परिचित है । मैं जानता हूं कि मेरे स्टेटमेंट से दुनियां में खेलती मच गई है । यहीं चाहता भी था मैं ।"
"क्यो ?" धनुषटंकार ने पुन: इशारे से पूछा ।
"इसलिए कि सारी दुनिया को यह बता सकू कि दुनिया में सिर्फ अमेरिका और रूस ऐसे देश नहीं हैं जिनके बिज्ञान की दुनिया पर एकाधिकार है । मैंने साबित कर दिया कि उनके मुकाबले चमन जैसा छोटा राष्ट्र भी कुछ कर सकता है । क्या दुनिया की महाशक्तियां चमन के इस आविष्कार से चिंतित न ही उठी है?"
"'दुनिया की ये महाशक्तियां सिर्फ चित्तित होकर ही नहीं रह जाती हैं ।" धनुषटंकार ने डायरी के पेज पर लिखकर वतन को दिया--"बल्कि जलने लगती हैं । ईर्ष्या से जलती ही रहे -तब भी वे शायद हमारा कुछ न बिगाड़ सकें, लेकिन इनकी आदत है कि ये किसी: भी तरह उस शक्ति को समाप्त कर डालती है, जो उनके करीब जाना चाहती हैं । डाँक्टर भावा का नाम तो सुना ही होगा भैया, उन्होंने भी तुम्हारी ही तरह यह धोषणा कर दी थी कि उन्होंने एक ऐसा आविष्कार कर लिया है जिससे वे समूचे है भारत पर किरणों का एक ऐसा जाल बिठा देगे कि दुनिया का कोई भी अणु/बम भारत को लेशमात्र भी क्षति ऩ पहुचा सकेगा उनका अन्जाम तो तुम..."
" अच्छी तरह जानता हूं ।" हल्के से मुस्कराकर वतन ने कहा-"लेकिन मैं डॉक्टर भावा नहीं हू मोण्टो ! डॉक्टर भावा-इन दरिन्दो को जानते नहीं थे और ठीक उनके विपरीत मैं इन हरामजादों की नस-नस से वाकिफ हूं । मैं अच्छी तरह जानता हू कि कौन-से पल में, क्रिस हद तक घिनोनी चाल चल सकते हैं । तो ऐसा नहीं है मोण्टो, कि मैंने अखबारों को बिना कुछ सोचे समझे स्टेटमेंट दे दिया है । अखबारों को मैंने जो कुछ दिया है, बहुत अच्छी तरह सोच-समझकर दिया है । मुझे मालुम था कि मेरे इस स्टेटमेंट से दुनिया में हलचल मचेगी । महाशक्तियों को चमन के रूप में मंडराती अपने उपर मौत नजर आएगी । अपनी ताकत के मद में चूर जो राष्ट्र अन्धे हुए जा रहे हैं, उन्हें एक ठोकर लगेगी । वे पलटकर चमन की शक्ति का कारण यानी वह यन्त्र छीन लेना चाहेंगे जो मैंने बनाया है । उनका प्रयास तो यही होगा कि वे चमन की शक्ति के ,स्रोत यानी वतन को ही खत्म कर दें ।"
धनुषटंकार ने पुन: लिखा----" इतना सब कुछ जानते हुए यह स्टेटमेंट..... "
वतन ने पढा, धीरे…से मुस्कराया, बोता-----" हां , क्योंकि मैं उन्हें बता देना चाहता था कि हर भारतीय डॉक्टर भावा नहीं है । मैं तो चाहता ही यह हूं कि वे अपनी कोशिशें करें । तुम लोगों को यहाँ से गये छ: महीने हुए हैं न मोण्टो ! हां छ: महीने हुए हैं, मेरे चमन को आजाद हुए । इन छ: महीनों में मैंने यही एकमात्र काम किया ' है । जो तुमने अखबारों में पढ़ा है, इसके अतिरिक्त भी बहुत-से काम किए हैं । ऐसे कि इन महाशक्तियों को इनकी किसी भी गलत हरकत का मुंह-तोड़ जवाब दे सकू।"
"जैसे ?"' धनुषटंकार ने लिखा ।