desiaks
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दूसरे दिन की सुबह अन्तिम सुबह थी क्योंकि रविवार का दिन शुरू हो चुका था। हम सभी एक बार फिर तैयार हो चुके थे, हम सभी के बीच यह तय हुआ कि शाम छः बजे तक बारी-बारी से एक दूसरे से अदला बदली की जाये।
आज सभी मर्द एक बार फिर हम औरतों के कहने पर अपनी गांड मरवाने को तैयार हो गये थे।
शुरूआत मेरे से ही हुई, अश्वनी मेरे पास आया और मेरे हाथ को पकड़ कर चूमा और मेरी तरफ एक गुलाम की तरह उसने अपना सर झुका लिया और फिर मेरी दोनों टांगों को फैला कर मेरी चूत में अपनी जीभ लगा दी। जैसे ही अश्वनी ने मेरी चूत पर अपनी जीभ लगाई मेरे दोनों टांगे खुद-ब-खुद उसके गर्दन के इर्द-गिर्द लिपट गई, अश्वनी ने भी मुझे थोड़ा सा अपनी ओर खींच लिया। अब वो मेरी जांघ पर अपनी जीभ फिराता तो कभी मेरी चूत के ऊपर चाटता तो कभी मुझे उसकी जीभ मेरी चूत के अन्दर महसूस होती। अश्वनी का एक हाथ मेरी चूची को जोर-जोर से भींच रहा था, मेरी आँखें बन्द थी और मैं केवल अश्वनी को ही महसूस कर रही थी, मुझे पता नहीं चल रहा था कि बाकी सभी लोग क्या कर रहे हैं, बस हा हो हा हो की आवाज मेरे कानों में सुनाई पड़ रही थी। तभी मुझे अहसास हुआ कि किसी का लंड मेरे होंठों को पुचकार रहा है, मैंने बन्द आँखों से ही उसके लंड को पकड़ा और महसूस करने की कोशिश करने लगी कि यह लंड किसका हो सकता है। लंड का आकार जैसे ही मुझे समझ में आया, हल्की सी मुस्कुराहट के साथ मेरे होंठ खुले और मेरी जीभ बाहर निकली और लंड के अग्र भाग को टच कर गई। लंड के रस की एक बूंद मेरी जीभ से टकराई और फिर मैंने आँखें खोल कर अभय सर को देखा।
मुझे देखते ही अभय सर बोले- अब मुझे तुमसे कोई दूर नहीं कर सकता। मेरा लंड तुम्हारी जीभ की तलाश में इधर आ गया। मैंने बिना कुछ कहे अपनी आँखे बन्द की, अभय सर ने मेरे सिर पर अपना हाथ रखा और अपने लंड को मेरे मुंह की सैर कराने लगे। नीचे अश्वनी मेरी चूत को सुख पहुंचा रहा था और ऊपर मैं अभय सर के लंड को सुख पहुंचा रही थी। अभय सर थोड़ी ही देर में खलास हो गये और अपना पूरा माल मेरे मुंह के अन्दर छोड़ दिया। फिर अभय सर मेरे होंठ को चूमने के लिये झुके तो मैंने तुरन्त ही उनके मुंह के अन्दर उनके वीर्य को वापस कर दिया। अश्वनी ने भी मेरी चूत चाटना बन्द कर दिया और मुझे घोड़ी बनने के लिये कहा।
मैं खड़ी हुई और घोड़ी की पोजिशन में खड़ी हो गई, उसके बाद अश्वनी पीछे से ही मेरी चूत के साथ-साथ मेरी गांड को भी चोदना शुरू कर दिया। अश्वनी का लंड मेरी चूत और गांड में बदल बदल कर चल रहा था जबकि उसके हाथ मेरे चूचों को मस्त कर रहे थे। मेरी चुदाई खूब मस्त चल रही थी, मैं आँखें बन्द करके अपनी चुदाई के अहसास का मजा ले रही थी, मैं अपनी चूत के अन्दर झन्नाटेदार झटके को महसूस कर रही थी। अश्वनी का हर शॉट मुझे एक अलग मजा दे रहा था, आह-ओह की आवाज के साथ अश्वनी मेरी चुदाई कर रहा था।
फिर वो कुर्सी पर बैठ गया और मुझे उसने अपने लंड के ऊपर बैठा लिया। मैं झड़ चुकी थी, लेकिन मैं चाह रही थी कि उसका लंड मेरी चूत के अन्दर ही पड़ा रहे। अश्वनी बारी-बारी मेरी चूचियों को चूसने लगा, वो बड़े ही कस कर मेरी चूची को चूस रहा था और मेरी पीठ में अपनी हथेली को गड़ा रहा था। मैं भी अपने जिस्म को हरकत देते हुए उसके लंड को अपने अन्दर हिलाने डुलाने लगी। करीब पांच मिनट बाद अश्वनी ने मुझे जल्दी से अपने ऊपर से उतारा, मैं समझ गई कि अश्वनी के झड़ने का टाईम आ गया, मैंने अपना मुंह उसके लंड के सामने खोल दिया। कुछ सेकेन्ड अश्वनी ने अपने लंड को फेंटा और फिर एक सफेद लहराती हुई धार मेरे मुंह के अन्दर गिरने लगी।
जब उसका पूरा रस मेरे मुंह के अन्दर आ गया तो उसकी बची हुई बूंद को लेने के लिये मैंने अपनी जीभ बाहर निकाली और अश्वनी ने अपने लंड को मेरी जीभ से टच कर दिया।
मैंने उस रस की आखरी बूंद को भी चाट कर साफ कर दिया। जब मैं अश्वनी से फ्री हुई तो देखा कि सब अपने अन्तिम पड़ाव में हैं और सभी औरतें लंड से निकलने वाले रस चाटने का मजा ले रही हैं। केवल अभय सर अकेले बैठे हुए थे, मैं उनके पास गई, वो कुछ सोच रहे थे, उनकी नुन्नी बिल्कुल नुन्नी हो चुकी थी। मुझे देख कर वे मुस्कुराये और हल्का सा सरक गये, मैं उनके बगल में बैठ गई और उनकी जांघों में हाथ फेरने लगी। दीपाली भी बगल में आकर बैठ गई और अभय सर की नुन्नी से खेलने लगी। फिर धीरे धीरे मेरा और दीपाली मैम का खेल अभय सर के साथ शुरू हो गया, वो उनके सुपारे को अपने अंगूठे से रगड़ रही थी और मैं उनके निप्पल के दानो को अपने दाँतों के बीच लेकर चूस रही थी। फिर हम दोनों ही थोड़ा सा नीचे आई और उनके लंड को अपनी जीभ से बारी-बारी चाटने लगी। मेरा ध्यान केवल अपने, अभय सर और दीपाली की हरकतों पर ही था, और बाकी लोग क्या कर रहे थे, मैं नहीं ध्यान नहीं दे रही थी। हम दोनों उनके लंड को चाटे जा रही थी जबकि अभय सर हम दोनों के चूचियों से खेल रहे थे। कभी हमारे गोलों को पम्प करते तो कभी निप्पल को चिकोटी काटते। कुछ देर तो ऐसा ही चलता रहा, फिर हम दोनों घोड़ी के पोजिशन में हो गई और अपनी गांड और चूत का मुंह अभय सर की तरफ कर दी। अभय सर हम दोनों की गांड और चूत को बारी बारी से चाटकर गीला करने लगे। दीपाली मेरी चूची को दबा रही थी और मैं दीपाली की चूची दबा रही थी।
घोड़ी वाले पोजिशन में आने के बाद जब मेरी नजर बाकी सभी पर पड़ी तो देखा कि नमिता और सुहाना अमित के साथ वही क्रिया कर रही है जो मैं और दीपाली अभय सर के साथ कर रही थी। मीना रितेश के साथ लगी हुई थी। जबकि अश्वनी और टोनी एक सौफे पर बैठ कर एक दूसरे का लंड को फेंट रहे थे। तभी मेरी गांड में लंड का प्रवेश हुआ और फिर धक्का लगने लगा। फिर लंड बाहर था और उंगली अन्दर... 2 मिनट बाद ही मेरी गांड गीली हो गई। मतलब साफ था कि अभय सर फ्री हो गये थे और सोफे पर बैठ कर हांफ रहे थे।
आज सभी मर्द एक बार फिर हम औरतों के कहने पर अपनी गांड मरवाने को तैयार हो गये थे।
शुरूआत मेरे से ही हुई, अश्वनी मेरे पास आया और मेरे हाथ को पकड़ कर चूमा और मेरी तरफ एक गुलाम की तरह उसने अपना सर झुका लिया और फिर मेरी दोनों टांगों को फैला कर मेरी चूत में अपनी जीभ लगा दी। जैसे ही अश्वनी ने मेरी चूत पर अपनी जीभ लगाई मेरे दोनों टांगे खुद-ब-खुद उसके गर्दन के इर्द-गिर्द लिपट गई, अश्वनी ने भी मुझे थोड़ा सा अपनी ओर खींच लिया। अब वो मेरी जांघ पर अपनी जीभ फिराता तो कभी मेरी चूत के ऊपर चाटता तो कभी मुझे उसकी जीभ मेरी चूत के अन्दर महसूस होती। अश्वनी का एक हाथ मेरी चूची को जोर-जोर से भींच रहा था, मेरी आँखें बन्द थी और मैं केवल अश्वनी को ही महसूस कर रही थी, मुझे पता नहीं चल रहा था कि बाकी सभी लोग क्या कर रहे हैं, बस हा हो हा हो की आवाज मेरे कानों में सुनाई पड़ रही थी। तभी मुझे अहसास हुआ कि किसी का लंड मेरे होंठों को पुचकार रहा है, मैंने बन्द आँखों से ही उसके लंड को पकड़ा और महसूस करने की कोशिश करने लगी कि यह लंड किसका हो सकता है। लंड का आकार जैसे ही मुझे समझ में आया, हल्की सी मुस्कुराहट के साथ मेरे होंठ खुले और मेरी जीभ बाहर निकली और लंड के अग्र भाग को टच कर गई। लंड के रस की एक बूंद मेरी जीभ से टकराई और फिर मैंने आँखें खोल कर अभय सर को देखा।
मुझे देखते ही अभय सर बोले- अब मुझे तुमसे कोई दूर नहीं कर सकता। मेरा लंड तुम्हारी जीभ की तलाश में इधर आ गया। मैंने बिना कुछ कहे अपनी आँखे बन्द की, अभय सर ने मेरे सिर पर अपना हाथ रखा और अपने लंड को मेरे मुंह की सैर कराने लगे। नीचे अश्वनी मेरी चूत को सुख पहुंचा रहा था और ऊपर मैं अभय सर के लंड को सुख पहुंचा रही थी। अभय सर थोड़ी ही देर में खलास हो गये और अपना पूरा माल मेरे मुंह के अन्दर छोड़ दिया। फिर अभय सर मेरे होंठ को चूमने के लिये झुके तो मैंने तुरन्त ही उनके मुंह के अन्दर उनके वीर्य को वापस कर दिया। अश्वनी ने भी मेरी चूत चाटना बन्द कर दिया और मुझे घोड़ी बनने के लिये कहा।
मैं खड़ी हुई और घोड़ी की पोजिशन में खड़ी हो गई, उसके बाद अश्वनी पीछे से ही मेरी चूत के साथ-साथ मेरी गांड को भी चोदना शुरू कर दिया। अश्वनी का लंड मेरी चूत और गांड में बदल बदल कर चल रहा था जबकि उसके हाथ मेरे चूचों को मस्त कर रहे थे। मेरी चुदाई खूब मस्त चल रही थी, मैं आँखें बन्द करके अपनी चुदाई के अहसास का मजा ले रही थी, मैं अपनी चूत के अन्दर झन्नाटेदार झटके को महसूस कर रही थी। अश्वनी का हर शॉट मुझे एक अलग मजा दे रहा था, आह-ओह की आवाज के साथ अश्वनी मेरी चुदाई कर रहा था।
फिर वो कुर्सी पर बैठ गया और मुझे उसने अपने लंड के ऊपर बैठा लिया। मैं झड़ चुकी थी, लेकिन मैं चाह रही थी कि उसका लंड मेरी चूत के अन्दर ही पड़ा रहे। अश्वनी बारी-बारी मेरी चूचियों को चूसने लगा, वो बड़े ही कस कर मेरी चूची को चूस रहा था और मेरी पीठ में अपनी हथेली को गड़ा रहा था। मैं भी अपने जिस्म को हरकत देते हुए उसके लंड को अपने अन्दर हिलाने डुलाने लगी। करीब पांच मिनट बाद अश्वनी ने मुझे जल्दी से अपने ऊपर से उतारा, मैं समझ गई कि अश्वनी के झड़ने का टाईम आ गया, मैंने अपना मुंह उसके लंड के सामने खोल दिया। कुछ सेकेन्ड अश्वनी ने अपने लंड को फेंटा और फिर एक सफेद लहराती हुई धार मेरे मुंह के अन्दर गिरने लगी।
जब उसका पूरा रस मेरे मुंह के अन्दर आ गया तो उसकी बची हुई बूंद को लेने के लिये मैंने अपनी जीभ बाहर निकाली और अश्वनी ने अपने लंड को मेरी जीभ से टच कर दिया।
मैंने उस रस की आखरी बूंद को भी चाट कर साफ कर दिया। जब मैं अश्वनी से फ्री हुई तो देखा कि सब अपने अन्तिम पड़ाव में हैं और सभी औरतें लंड से निकलने वाले रस चाटने का मजा ले रही हैं। केवल अभय सर अकेले बैठे हुए थे, मैं उनके पास गई, वो कुछ सोच रहे थे, उनकी नुन्नी बिल्कुल नुन्नी हो चुकी थी। मुझे देख कर वे मुस्कुराये और हल्का सा सरक गये, मैं उनके बगल में बैठ गई और उनकी जांघों में हाथ फेरने लगी। दीपाली भी बगल में आकर बैठ गई और अभय सर की नुन्नी से खेलने लगी। फिर धीरे धीरे मेरा और दीपाली मैम का खेल अभय सर के साथ शुरू हो गया, वो उनके सुपारे को अपने अंगूठे से रगड़ रही थी और मैं उनके निप्पल के दानो को अपने दाँतों के बीच लेकर चूस रही थी। फिर हम दोनों ही थोड़ा सा नीचे आई और उनके लंड को अपनी जीभ से बारी-बारी चाटने लगी। मेरा ध्यान केवल अपने, अभय सर और दीपाली की हरकतों पर ही था, और बाकी लोग क्या कर रहे थे, मैं नहीं ध्यान नहीं दे रही थी। हम दोनों उनके लंड को चाटे जा रही थी जबकि अभय सर हम दोनों के चूचियों से खेल रहे थे। कभी हमारे गोलों को पम्प करते तो कभी निप्पल को चिकोटी काटते। कुछ देर तो ऐसा ही चलता रहा, फिर हम दोनों घोड़ी के पोजिशन में हो गई और अपनी गांड और चूत का मुंह अभय सर की तरफ कर दी। अभय सर हम दोनों की गांड और चूत को बारी बारी से चाटकर गीला करने लगे। दीपाली मेरी चूची को दबा रही थी और मैं दीपाली की चूची दबा रही थी।
घोड़ी वाले पोजिशन में आने के बाद जब मेरी नजर बाकी सभी पर पड़ी तो देखा कि नमिता और सुहाना अमित के साथ वही क्रिया कर रही है जो मैं और दीपाली अभय सर के साथ कर रही थी। मीना रितेश के साथ लगी हुई थी। जबकि अश्वनी और टोनी एक सौफे पर बैठ कर एक दूसरे का लंड को फेंट रहे थे। तभी मेरी गांड में लंड का प्रवेश हुआ और फिर धक्का लगने लगा। फिर लंड बाहर था और उंगली अन्दर... 2 मिनट बाद ही मेरी गांड गीली हो गई। मतलब साफ था कि अभय सर फ्री हो गये थे और सोफे पर बैठ कर हांफ रहे थे।