Antervasna मुझे लगी लगन लंड की - Page 9 - SexBaba
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Antervasna मुझे लगी लगन लंड की

दूसरे दिन की सुबह अन्तिम सुबह थी क्योंकि रविवार का दिन शुरू हो चुका था। हम सभी एक बार फिर तैयार हो चुके थे, हम सभी के बीच यह तय हुआ कि शाम छः बजे तक बारी-बारी से एक दूसरे से अदला बदली की जाये।

आज सभी मर्द एक बार फिर हम औरतों के कहने पर अपनी गांड मरवाने को तैयार हो गये थे।

शुरूआत मेरे से ही हुई, अश्वनी मेरे पास आया और मेरे हाथ को पकड़ कर चूमा और मेरी तरफ एक गुलाम की तरह उसने अपना सर झुका लिया और फिर मेरी दोनों टांगों को फैला कर मेरी चूत में अपनी जीभ लगा दी। जैसे ही अश्वनी ने मेरी चूत पर अपनी जीभ लगाई मेरे दोनों टांगे खुद-ब-खुद उसके गर्दन के इर्द-गिर्द लिपट गई, अश्वनी ने भी मुझे थोड़ा सा अपनी ओर खींच लिया। अब वो मेरी जांघ पर अपनी जीभ फिराता तो कभी मेरी चूत के ऊपर चाटता तो कभी मुझे उसकी जीभ मेरी चूत के अन्दर महसूस होती। अश्वनी का एक हाथ मेरी चूची को जोर-जोर से भींच रहा था, मेरी आँखें बन्द थी और मैं केवल अश्वनी को ही महसूस कर रही थी, मुझे पता नहीं चल रहा था कि बाकी सभी लोग क्या कर रहे हैं, बस हा हो हा हो की आवाज मेरे कानों में सुनाई पड़ रही थी। तभी मुझे अहसास हुआ कि किसी का लंड मेरे होंठों को पुचकार रहा है, मैंने बन्द आँखों से ही उसके लंड को पकड़ा और महसूस करने की कोशिश करने लगी कि यह लंड किसका हो सकता है। लंड का आकार जैसे ही मुझे समझ में आया, हल्की सी मुस्कुराहट के साथ मेरे होंठ खुले और मेरी जीभ बाहर निकली और लंड के अग्र भाग को टच कर गई। लंड के रस की एक बूंद मेरी जीभ से टकराई और फिर मैंने आँखें खोल कर अभय सर को देखा।

मुझे देखते ही अभय सर बोले- अब मुझे तुमसे कोई दूर नहीं कर सकता। मेरा लंड तुम्हारी जीभ की तलाश में इधर आ गया। मैंने बिना कुछ कहे अपनी आँखे बन्द की, अभय सर ने मेरे सिर पर अपना हाथ रखा और अपने लंड को मेरे मुंह की सैर कराने लगे। नीचे अश्वनी मेरी चूत को सुख पहुंचा रहा था और ऊपर मैं अभय सर के लंड को सुख पहुंचा रही थी। अभय सर थोड़ी ही देर में खलास हो गये और अपना पूरा माल मेरे मुंह के अन्दर छोड़ दिया। फिर अभय सर मेरे होंठ को चूमने के लिये झुके तो मैंने तुरन्त ही उनके मुंह के अन्दर उनके वीर्य को वापस कर दिया। अश्वनी ने भी मेरी चूत चाटना बन्द कर दिया और मुझे घोड़ी बनने के लिये कहा।

मैं खड़ी हुई और घोड़ी की पोजिशन में खड़ी हो गई, उसके बाद अश्वनी पीछे से ही मेरी चूत के साथ-साथ मेरी गांड को भी चोदना शुरू कर दिया। अश्वनी का लंड मेरी चूत और गांड में बदल बदल कर चल रहा था जबकि उसके हाथ मेरे चूचों को मस्त कर रहे थे। मेरी चुदाई खूब मस्त चल रही थी, मैं आँखें बन्द करके अपनी चुदाई के अहसास का मजा ले रही थी, मैं अपनी चूत के अन्दर झन्नाटेदार झटके को महसूस कर रही थी। अश्वनी का हर शॉट मुझे एक अलग मजा दे रहा था, आह-ओह की आवाज के साथ अश्वनी मेरी चुदाई कर रहा था।

फिर वो कुर्सी पर बैठ गया और मुझे उसने अपने लंड के ऊपर बैठा लिया। मैं झड़ चुकी थी, लेकिन मैं चाह रही थी कि उसका लंड मेरी चूत के अन्दर ही पड़ा रहे। अश्वनी बारी-बारी मेरी चूचियों को चूसने लगा, वो बड़े ही कस कर मेरी चूची को चूस रहा था और मेरी पीठ में अपनी हथेली को गड़ा रहा था। मैं भी अपने जिस्म को हरकत देते हुए उसके लंड को अपने अन्दर हिलाने डुलाने लगी। करीब पांच मिनट बाद अश्वनी ने मुझे जल्दी से अपने ऊपर से उतारा, मैं समझ गई कि अश्वनी के झड़ने का टाईम आ गया, मैंने अपना मुंह उसके लंड के सामने खोल दिया। कुछ सेकेन्ड अश्वनी ने अपने लंड को फेंटा और फिर एक सफेद लहराती हुई धार मेरे मुंह के अन्दर गिरने लगी।

जब उसका पूरा रस मेरे मुंह के अन्दर आ गया तो उसकी बची हुई बूंद को लेने के लिये मैंने अपनी जीभ बाहर निकाली और अश्वनी ने अपने लंड को मेरी जीभ से टच कर दिया।

मैंने उस रस की आखरी बूंद को भी चाट कर साफ कर दिया। जब मैं अश्वनी से फ्री हुई तो देखा कि सब अपने अन्तिम पड़ाव में हैं और सभी औरतें लंड से निकलने वाले रस चाटने का मजा ले रही हैं। केवल अभय सर अकेले बैठे हुए थे, मैं उनके पास गई, वो कुछ सोच रहे थे, उनकी नुन्नी बिल्कुल नुन्नी हो चुकी थी। मुझे देख कर वे मुस्कुराये और हल्का सा सरक गये, मैं उनके बगल में बैठ गई और उनकी जांघों में हाथ फेरने लगी। दीपाली भी बगल में आकर बैठ गई और अभय सर की नुन्नी से खेलने लगी। फिर धीरे धीरे मेरा और दीपाली मैम का खेल अभय सर के साथ शुरू हो गया, वो उनके सुपारे को अपने अंगूठे से रगड़ रही थी और मैं उनके निप्पल के दानो को अपने दाँतों के बीच लेकर चूस रही थी। फिर हम दोनों ही थोड़ा सा नीचे आई और उनके लंड को अपनी जीभ से बारी-बारी चाटने लगी। मेरा ध्यान केवल अपने, अभय सर और दीपाली की हरकतों पर ही था, और बाकी लोग क्या कर रहे थे, मैं नहीं ध्यान नहीं दे रही थी। हम दोनों उनके लंड को चाटे जा रही थी जबकि अभय सर हम दोनों के चूचियों से खेल रहे थे। कभी हमारे गोलों को पम्प करते तो कभी निप्पल को चिकोटी काटते। कुछ देर तो ऐसा ही चलता रहा, फिर हम दोनों घोड़ी के पोजिशन में हो गई और अपनी गांड और चूत का मुंह अभय सर की तरफ कर दी। अभय सर हम दोनों की गांड और चूत को बारी बारी से चाटकर गीला करने लगे। दीपाली मेरी चूची को दबा रही थी और मैं दीपाली की चूची दबा रही थी।

घोड़ी वाले पोजिशन में आने के बाद जब मेरी नजर बाकी सभी पर पड़ी तो देखा कि नमिता और सुहाना अमित के साथ वही क्रिया कर रही है जो मैं और दीपाली अभय सर के साथ कर रही थी। मीना रितेश के साथ लगी हुई थी। जबकि अश्वनी और टोनी एक सौफे पर बैठ कर एक दूसरे का लंड को फेंट रहे थे। तभी मेरी गांड में लंड का प्रवेश हुआ और फिर धक्का लगने लगा। फिर लंड बाहर था और उंगली अन्दर... 2 मिनट बाद ही मेरी गांड गीली हो गई। मतलब साफ था कि अभय सर फ्री हो गये थे और सोफे पर बैठ कर हांफ रहे थे।
 
दीपाली ने मेरी तरफ देखा और फिर बुरा सा मुंह बनाते हुए बोली- बस इसके साथ यहीं तक का साथ होता है, खुद जल्दी झड़ जाता है और फिर मेरी चूत में आग लगी रहती है।

मैंने दीपाली को इशारे से चुप कराया और अश्वनी और टोनी जो एक दूसरे के लंड को मसल रहे थे हम दोनों जाकर सीधा उन दोनों की गोद में बैठ गई, मैं टोनी की गोद में थी और दीपाली अश्वनी की गोद में बैठ गई, दोनों के हाथ सीधे हमारी चूचियों को मसलने लगे।

अचानक मेरी नजर घड़ी पर पड़ी तो छः बजने वाले थे। कल ही शाम की गाड़ी से मुझे ऑफिस के काम से अपने ससुर के साथ कोलाकाता जाना था। खैर मैं अभी मजे लेने के विचार में थी, मैं टोनी की गोद से उतरी और उसके लंड को चूसना शुरू कर दिया। दीपाली ने भी वही किया, वो भी अश्वनी के लंड को अपने मुंह में लिये हुई थी। मैं टोनी को इस अन्तिम चुदाई के खेल का मजा देना चाहती थी। मेरे कहने पर टोनी सोफे से थोड़ा बाहर आया और अपने दोनों पैरों को सोफे पर रख लिया। अब मेरे लिये उसके गांड का छेद, गोले और लंड तीनों के साथ खेलना आसान हो गया। जब मेरा एक हाथ उसके लंड को सहला रहे होते तो मैं उसके लंड को चूसती और दूसरे हाथ की उंगली उसके छेद को सुरसुराहट दे रही होती।

टोनी के मुंह से- उम्म्ह... अहह... हय... याह... बस ऐसे ही करो बड़ा मजा आ रहा है,

ऐसे शब्द सुनकर मेरे भी हौंसले और बढ़ रहे थे, कभी मैं उसकी गांड को अपनी जीभ का मजा देती तो कभी अपनी उंगली का मजा देती। इसी तरह कभी उसका लंड मेरे मुंह में होता तो कभी मेरा अंगूठा उसके सुपारेसे खेल रहा होता। फिर मेरी जीभ टोनी के पूरे जिस्म में अपना खेल दिखाने लगी, उसके लंड और जांघ को चाटते हुए मेरी जीभ उसकी नाभि में हलचल पैदा करने लगी। जैसे जैसे मैं उसके जिस्म को अपने जिस्म से रगड़ते हुए ऊपर उसकी छाती की तरफ बढ़ रही थी, वैसे वैसे ही टोनी का जिस्म सोफे से नीचे की तरफ आ रहा था। अब मेरी जीभ उसके निप्पल को मजा दे रही थी और,

टोनी की आवाज- आह-आह ओह-ओह मिसरी की तरह मेरे कान में घुल रही थी।

मेरी जीभ तो टोनी के निप्पल के ऊपर तो चल ही रही थी, पर मेरी चूत में उठ रही खुजली को शांत भी करना जरूरी था तो मेरी एक हथेली मेरी चूत की सेवा करने में लगी हुई थी। शायद यह बात टोनी को समझ में आ गई, उसने मुझे सोफे पर पटक दिया और मेरे चूत पर अपने मुंह को लगा दिया। मेरी हथेली जो चूत पर थी, उसको हटा कर फांकों को फैलाते हुए अपनी जीभ को अन्दर पेल दिया और अन्दर ही अपनी जीभ को घुमाने लगा, जहां तक उसकी जीभ अन्दर जा सकती थी उसने अन्दर डाल दी, फिर मेरी क्लिट को अपने दांतों के बीच लेकर उसे चबाने लगा और चूसने लगा। कुछ देर ऐसा करने के बाद वो हाफ पोजिशन में खड़ा होकर मेरी चूत में अपने लंड को डाल कर सीधा खड़ा हो गया। इससे मेरे कमर का हिस्सा हवा में झूल रहा था और बाकी सोफे से टिक गया था। टोनी मुझे बड़ी ताकत से चोद रहा था। टोनी लगातार ताकत के साथ मेरी चूत चोदे जा रहा था और उसके लंड का अहसास मुझे अन्दर तक हो रहा था। थोड़ी देर तक चूत चोदने के बाद टोनी ने मुझे उल्टा किया और मेरी गांड में अपनी जीभ चलाने लगा और अंगूठे से छेद के ऊपर रगड़ रहा था। फिर उसके बाद एक ही झटके से मेरी गांड में अपना लंड पेल दिया। मुझे वो बहुत ही स्पीड से चोद रहा था, कभी मेरी गांड की चुदाई करता और कभी चूत के अन्दर लंड डाल कर मेरी चूत का भोसड़ा बनाने में लगा था। खैर जितनी स्पीड से चोद रहा था, उतनी ही तेज वो चिल्ला रहा था। साथ में मेरी चूत का भोसड़ा बनाने की बात कहे जा रहा था, मेरे दोनों छेद की चुदाई अच्छे से कर रहा था। मैं एक बार और झड़ गई थी।

इधर दिपाली की भी हालत खराब थी, क्योंकि अश्वनी भी दीपाली की चूत और गांड का बाजा बजा रहा था। फिर टोनी ने लंड को मेरे मुंह में पेल दिया और धक्के लगाने लगा। उसके हर धक्के के साथ उसका माल मेरे गले के नीचे उतर रहा था। मेरा दम घुट रहा था पर टोनी जब तक पूरा मेरे मुंह में झड़ नहीं गया तब तक उसने अपने लंड को मेरे मुंह से बाहर नहीं निकाला। अश्वनी ने दो चार बूंद दीपाली के मुंह के अन्दर गिराई और बाकी उसके चेहरे पर और फिर अपने हाथ से ही अपने माल को दीपाली के चेहरे पर मलने लगा, ऐसा लग रहा था कि वो दीपाली के चेहरे को क्रीम लगा रहा था। जो लोग निपटते जा रहे थे वे हमारे पास आकर हमारी चुदाई देख रहे थे। जब हम चारों भी निपट गये तो हम सभी एक दूसरे के गले मिलने लगे। फिर सभी एक दूसरे को इस प्रोग्राम के लिये थैंक्स बोलने लगे।

रितेश ने पूछने पर सभी ने इस एक्सपीरिएन्स को बहुत ही अच्छा बताया और फिर मौका पड़ने पर मिलने का वादा किया।अमित और रितेश ने टोनी और मीना को स्टेशन छोड़ा, जबकि बॉस और दीपाली ने अश्वनी और सुहाना को स्टेशन छोड़ दिया।

अन्त में मैं, रितेश, नमिता और अमित भी बॉस से विदा होकर चलने लगे तो बॉस ने एक बार मुझे गले लगाया और मेरे गाल को चूमते हुए मुझे थैक्स कहा और कल शाम कलकत्ता जाने की बाद भी याद दिलाई। हम लोग घर पहुंचे, सास के हाथ का बना बढ़िया बढ़िया खाना खाया और थके होने के कारण जल्दी से सो गये।

सुबह उठ कर सब काम निपटाने के बाद मैं ऑफिस के लिये निकलने वाली ही थी कि डोर बेल बजी। दरवाजे खोलने पर सामने अभय सर खड़े थे, अन्दर बुलाकर उनका सबसे इन्ट्रोड्क्शन कराया। फिर अभय सर ने मुझे दो पैकेट दिया और सबसे दुआ सलाम करने के बाद यह कहते हुए चले गये कि शाम के जाने की तैयारी करो। आज ऑफिस से छुट्टी है।

मैं उनके जाते ही जैसे पैकेट खोलने वाली थी कि मोबाईल की रिंग बजी। अभय सर की कॉल ही थी, जैसे ही मैंने कॉल पिक की, अभय सर बोले एक पैकेट में 25000/- रू॰ और टिकट था, 25000/- रू॰ वो थे जो कलकत्ते में होने वाले खर्चे के लिये थे और दूसरा पैकेट तुम्हारा पर्सनल है, सबके सामने मत खोल देना। इतना कहकर उन्होंने फोन काट दिया। मैंने पैसे वाला पैकेट ससुर जी को पूरी बात बता कर पकड़ा दिया और दूसरा पैकेट लेकर अपने कमरे में आ गई। चूंकि पैकिंग हो चुकी थी, मैं अब इत्मीनान से थी कि मुझे कोई एक्सट्रा काम नहीं करना है।

रितेश अभी भी ऑफिस जाने के लिये तैयार हो रहा था, पैकेट देखकर पूछने लगा, मैंने उसे पूरी बात बताई, वो भी मेरे बगल में बैठ गया। हम दोनों ने उस पैकेट को खोला, पैकेट में पैन्टी और ब्रा के अलावा कुछ नहीं था, 5 सेट पैन्टी और ब्रा के थे और पांचों डिजाईनर थे। एक नेट की था, एक ट्रांसपेरेन्ट थी, एक तो केवल दो पत्तों से मिला कर बनाई गई थी और उसको इलास्टिक से जोड़ दिया गया था, वो केवल चूत को ढक सकती थी और पीछे वाली पत्ती तो मेरे गांड के छेद में छुप गई थी, रितेश के कहने पर मैं उसको पहन-पहन कर दिखा रही थी। जब सभी पैन्टी और ब्रा की ट्रॉयल हो गया तो,
 
रितेश बोला- यार, अगर मैं तुम्हारे साथ जा रहा होता तो इस पैन्टी का कुछ यूज भी होता। पापा साथ जा रहे हैं तो इसका कोई मतलब नहीं रह जाता।

मैंने उसकी नाक को कस कर पकड़ा और बोली- तुम जाते तो इसको पहनने का बिल्कुल भी मौका नहीं मिलता। पापा के साथ जाने से कम से कम में इसको पहन सकती हूँ।

मेरी इच्छा थी कि रितेश आज ऑफिस से छुट्टी ले ले और मेरे साथ रहे क्योंकि मेरा जिस्म बहुत दर्द कर रहा था, मैं चाहती थी कि रितेश मेरी मालिश भी कर दे।

पर रितेश बोला- यार, तुम्हारा बॉस तुम्हें चूत के बदले छुट्टी दे सकता है, पर मेरा बॉस भी मर्द है और मेरे पास लंड ही है। इसलिये मुझे छुट्टी नहीं मिल सकती।

कहकर वो अपने ऑफिस को चल दिया।

अब मैं लेटी-लेटी करवट बदलने लगी कि तभी सूरज आ गया। मैं लेटी हुई थी,

मेरा देवर मेरे बगल में बैठते हुए बोला- क्या हुआ भाभी, लेटी हुई क्यों हो?

मैं- 'कुछ नहीं, थोड़ी थकान जग रही है।'

वह बोला- भाभी, कहो तो तुम्हारे बदन की मसाज कर दूँ?

मैं- 'यार, मैं चाहती भी यही थी।'

मेरा इतना कहना ही था,

सूरज बोला- भाभी, तुम कपड़े उतार कर नंगी हो जाओ, मैं तेल लेकर आता हूँ!

कहकर वो ड्रेसिंग टेबिल से तेल की शीशी निकाल लाया, मैं भी जब तक कपड़े उतार कर नंगी होकर पेट के बल लेट गई। सूरज मेरी नंगी पीठ पर तेल की एक एक बूंद धीरे-धीरे से टपकाने लगा, फिर उसने अपने हाथ का कमाल मेरी पीठ पर दिखाने लगा, पीठ की मालिश करते हुए वो फिर मेरे चूतड़ों और जांघों की मालिश करने लगा, बीच-बीच में मेरे चूतड़ को चूची समझ कर बहुत तेज भींच देता था और चूतड़ों के बीच छेद में तेल की दो बूंद टपकाने के बाद अपनी एक उंगली उसके अंदर डाल कर मालिश करता। मेरे जिस्म को थोड़ा आराम मिल रहा था और सूरज जिस तरह से मेरी मालिश कर रहा था, वो भी आनन्द दे रहा था। जब सूरज ने मेरे जिस्म के पीछे की हिस्से की मालिश कर ली तो उसके कहने पर पलट गई।

एक बार फिर बड़ी मस्ती के साथ सूरज मेरी मालिश कर रहा था, वो मेरे चूची को अच्छे से दबाता, चूत और उसके आस पास की जगह भी वो बहुत ही बढ़िया मालिश कर रहा था। जब उसने अच्छे से मेरी मालिश कर दी तो,

सूरज बोला- भाभी, तुम्हारी झांटें बड़ी हो गई हैं, झांट तो बना लेती!

मैंने अलसाते हुए सूरज को बताया कि आज शाम को उसके पापा यानि मेरे ससुर के साथ कोलकाता जा रही हूँ और थोड़ा झूठ बोलते हुए कहा कि काम के वजह से झांट बनाने का मौका नहीं मिला।

सूरज मेरी बात को सुनने के बाद बोला- कोई बात नहीं भाभी, तुम नहा कर आ जाओ, मैं तुम्हारी चूत को अच्छे से चिकनी कर दूंगा।

सूरज के कहने पर मैं नहा ली और जब वापस कमरे में पहुंची तो सूरज वीट की क्रीम, कुछ कॉटन, एक मग में पानी और तौलिया लेकर मेरा इंतजार कर रहा था। सबसे मजे की बात तो यह थी कि सूरज ने जमीन पर एक चादर भी बिछा रखी थी, ताकि मैं आराम से लेट सकूं। मैं सीधी लेट गई, सूरज ने तुरन्त ही मेरी चूत पर और उसके आस पास जहां भी उसकी नजर में बाल के हल्के फुल्के रोंयें थे, वहां उसने क्रीम लगा दी और फिर मेरे पास आकर मेरे निप्पल से खेलने लगा। मैं आँखें बन्द करके उसकी हरकतों का मजा ले रही थी। सूरज कभी मेरे निप्पल को दबाता तो कभी चूचियों को मसलता। उसके ऐसा करते रहने के कारण मेरी बीच बीच में हल्की सी सीत्कार सी भी निकल जाती। करीब दस मिनट बीतने के बाद सूरज ने कॉटन लिया और मेरी चूत पर लगे क्रीम को साफ करने लगा। फिर थोड़ा और कॉटन को गीला करके और अच्छे से मेरी चूत साफ कर दी, आखिर में उसने तौलिये से मेरी चूत साफ की और,

फिर बोला- लो भाभी, तुम्हारी चूत फिर पहले जैसी चिकनी हो गई है।
 
मैंने हाथ लगा कर देखा तो वास्तव में चूत काफी चिकनी हो चुकी थी। मैंने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ सूरज को अपना ईनाम लेने का ऑफर किया। पहले तो उसने मना किया, फिर बोला- आप आज ट्रेवल करोगी, इसलिये आज जाने दो। जब वापस आओगी तो अच्छे से लूंगा।

लेकिन मैं उसकी बात काटते हुए बोली- देखो, तुमने अभी मेरे साथ बहुत मेहनत की है और तुम अब अपनी मेहनत का फल ले लो।

मेरे बहुत कहने पर सूरज ने पलंग से दो तकिये उठाए और मेरी कमर के नीचे लगा दिया। हालांकि मेरी भी बहुत ज्यादा इच्छा नहीं थी और चाहती थी कि जिस पोजिशन में मैं लेटी हूँ, उसी पोजिशन में सूरज मुझे चोदे और सूरज ने मेरी कमर के नीचे दो तकिया लगा कर मेरे मन की बात कर दी थी। उसके बाद उसने अपने लंड को मेरी चूत में पेल दिया और धक्के लगाने लगा, थोड़ी देर तक वो मुझे उसी तरह चोदता रहा, उसके बाद वो मेरे ऊपर लेट गया, मेरे निप्पल को अपने मुंह में लेकर बारी बारी से चूसने लगा। वो इसी तरह कुछ देर तो चूत को चोदता और फिर थोड़ा रूककर मेरे निप्पल को चूसता। करीब पंद्रह-बीस मिनट तक तो इसी तरह से चोदता रहा, मैं झड़ चुकी थी, मेरे झड़ने के एक मिनट बाद ही सूरज भी झड़ गया और मेरे ऊपर निढाल होकर लेट गया। थोड़ी देर तक वो उसी तरह मेरे ऊपर लेटा रहा, फिर मेरे से अलग हुआ,

तो मैं उससे बोली- मैं तो सोच रही थी कि तुम अपनी मलाई मुझे चटाओगे लेकिन तुम तो मेरे अन्दर ही झड़ गये?

वो पास पड़े तौलिये को उठाकर मेरी चूत को साफ करते हुए बोला- आज मेरा मन अन्दर ही झड़ने का हो रहा था, इसलिये मैं तुम्हारे अन्दर झड़ गया।

मेरी चूत को तौलिये से साफ करने के बाद अपने लंड को भी साफ किया और फिर मेरे माथे को चूम कर चला गया। मैंने भी दरवाजे को बन्द किया और नंगी ही सो गई। मुझे हल्की सी हरारत लग रही थी, सोचा थोड़ी देर में दवा ले लूंगी, तभी रितेश भी ऑफिस से हाफ डे की छुट्टी ले कर आगया।

लेकिन रितेश के आने के बाद और फिर ट्रेवल की तैयारी करने में पता ही नहीं चला कि मैंने दवा खाई नहीं है और स्टेशन चलने का वक्त भी आ गया था। इसी आपाथापी में हरारत का अहसास ही नहीं हुआ। मैं तैयार होकर नीचे आई तो देखा कि पापाजी जींस और सफेद टी-शर्ट पहने हुए थे और क्या डेशिंग लग रहे थे, क्लीन शेव्ड, छोटे-छोटे बाल, काला चश्मा लगा कर वो तो अपने तीनों लड़कों से यंग लग रहे थे। आज से पहले मैंने कभी पापाजी को इतने ध्यान से नहीं देखा था लेकिन आज देखने पर लग रहा था कि छः फ़ीट लम्बे मेरे ससुर जी तो जींस और सफेट टी-शर्ट में तो कयामत लग रहे थे।

खैर मुझे क्या! लेकिन दोस्तो, ऐसी कहानी मैं कभी नहीं चाहती थी जो मेरे साथ होने वाली थी और वो सिर्फ मेरी लापरवाही का नतीजा ही था जिससे इस कहानी का जन्म हुआ। हम लोग स्टेशन पहुंचे, थोड़ी देर में ही गाड़ी भी आ गई और मेरे बॉस अभय सर ने जिस बोगी में रिजर्वेशन कराया था, वो केबिन थी। उस केबिन में मुझे और मेरे ससुर को ही सफर करना था।

केबिन देखकर रितेश मुझसे बोला- मैं चूक गया, काश इस केबिन में पापा न होते, मैं होता तो कोलकाता तक का सफर बड़े मजे से कटता।
 
ट्रेन चलने तक मेरे और रितेश के बीच बातचीत होती रही लेकिन जब ट्रेन चली तो मैं सोचने लगी कि जब बॉस को मालूम था कि मेरे साथ मेरे ससुर जायेंगे तो फिर उन्होंने केबिन वाले कोच का रिजर्वेशन क्यों कराया। मैं इसी सोच विचार में थी और गाड़ी अपनी स्पीड पकड़ चुकी थी। ससुर जी ने शायद दो तीन बार आवाज दी होगी, लेकिन मैं सोच में डूबी हुई थी कि उनकी आवाज सुन ना सकी तो उन्होंने मुझे झकझोरते हुए पूछा कि मैं क्या सोच रही हूँ।

मैं बोली- कुछ नहीं।

फिर ससुर जी बोले- आकांक्षा, मैं बाहर जा रहा हूँ, तुम चाहो तो चेंज कर लो और फ्री हो जाओ।

मैं- 'कोई बात नहीं पापा जी, मैं ऐसे ही ठीक हूँ। हाँ मैं बाहर जाती हूँ, अगर आप चेंज करना चाहो तो कर लो।'

कहकर मैंने अपना मोबाईल उठाया और केबिन के बाहर आकर मैंने बॉस को कॉल मिलाई और,

मैंने उनसे पूछा- जब आपको मालूम था कि मेरे साथ मेरे ससुर जी भी जा रहे हैं तो आपने केबिन क्यों बुक कराया?

बॉस ने बताया कि मैंने राकेश को ऑप्शन दिया था कि जिसमें सीट खाली मिले, उसे बुक करा ले और उसने केबिन का रिजर्वेशन करा दिया।

मैं- 'राकेश॰॰॰ हम्म... अच्छा

और होटल के बारे में पूछने पर बताया कि लिफाफे में ही होटल का ऐड्रेस है, यह एक महीने पहले से ही बुक है। सुईट रूम है। इसलिये इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता था।

इतना सुनना था कि मेरे मुंह से निकला- लौड़े के... जब होटल में सुईट रूम एक महीने पहले से बुक कराया था तो मुझे क्यों नहीं बताया?

बॉस को खरी-खोटी सुनाकर मैं केबिन में आ गई।

पापा जी कैपरी और वेस्ट में थे, मेरी कानी नजर उन पर पड़ी, क्या शरीर था उनका... किसी पहलवान से कम नहीं थे, क्या बड़े-बड़े बल्ले थे, चौड़ा सीना और सीने में घने-घने बाल! वो सामने वाली सीट पर लेटे हुए थे, मैं भी अपने को समेटते हुए लेट गई और बॉस ने जिस बन्दे (राकेश),का नाम लिया उसके बारे में सोचने लगी।

बड़ा ही हरामखोर था, साले का वजन भी 40 किलो से ज्यादा न था लेकिन हरामीपन में वो सभी को मात करता था। एक दिन उस हरामी ने मुझे अभय सर के साथ देख लिया, बस मेरे पीछे ही पड़ गया। जहां कभी भी मौका देखता, मेरे पिछवाड़े आकर अपना हाथ सेक लेता। हालांकि वो मेरा कुछ कर नहीं सकता था, लेकिन मैं उसे एवाईड कर देती थी। राकेश मेरे पिछवाड़े हाथ लगाने के अलावा कभी आगे नहीं बढ़ा। और ऑफ़िस में चूत चुदवाई की घटना याद आ गई, चूंकि वो हमारे ऑफिस का कम्प्यूटर हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर देखता था और अकसर उससे काम पड़ जाता था। इसी में एक दिन उसे मौका लग गया।

हुआ यूं कि मुझे अपने हेड ऑफिस एक रिपोर्ट मेल करनी थी, रिपोर्ट मैं तैयार कर चुकी थी और बस मेल करने जा ही रही थी कि सिस्टम अपने आप ही ऑफ हो गया।
 
हुआ यूं कि मुझे अपने हेड ऑफिस एक रिपोर्ट मेल करनी थी, रिपोर्ट मैं तैयार कर चुकी थी और बस मेल करने जा ही रही थी कि सिस्टम अपने आप ही ऑफ हो गया।

मुझे लगा कि मेरी गलती के कारण ही कम्प्यूटर बन्द हो गया होगा, मैंने एक बार स्टार्ट किया, लेकिन कम्प्यूटर बार-बार ऑन करने के बाद भी ऑन नहीं हो रहा था। मैं चाह रही थी कि किसी तरह वो रिपोर्ट फाईल ही मिल जाये तो मैं किसी और कम्प्यूटर पर जाकर मेल कर दूंगी, पर मेरा पूरा प्रयास व्यर्थ हो रहा था। हार कर मैंने राकेश को फोन लगाया तो पता चला कि वो लीव पर है और नहीं आ सकता है। रिपोर्ट इतनी जरूरी थी कि उस पर कम्पनी का करोड़ों दांव पर लगा था और एक चूक का मतलब था कि करोड़ों का नुकसान! मैं नहीं चाहती थी कि मेरी वजह से बॉस को कोई बात सुननी पड़े... भले ही मेरी चूत के कारण, बॉस हमेशा मेरा सपोर्ट करता था।

मेरे बहुत कहने पर राकेश आने को तैयार हो गया था, लेकिन साले मादरचोद ने बदले मेरी चूत चोदने की डिमांड कर दी। वैसे तो किसी का लंड मेरी चूत में जाये, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था, बस थोड़ा राकेश से चिढ़ सी थी तो मैं उसे उतना भाव नहीं देती थी। पर वो दिन उसका था, नहीं चाहते हुए भी मैंने हां कर दी। ऑफिस बन्द होने का समय भी हो रहा था, राकेश ऑफिस आ चुका था,

कम्प्यूटर चेक करने के बाद बोला- बिना फार्मेट हुए नहीं चल सकता।

मुझे अगले 10 मिनट में मेल करनी थी, तो एक बार फिर

मैंने राकेश से बोला- किसी तरह मेल करा दो, फिर फार्मेट करना!

वो बोला 'ठीक है!' - मैं मेल तो करा दे रहा हूँ लेकिन जब मैं सिस्टम फार्मेट करूं तो तुम मेरे साथ रहोगी।

मेरे हां बोलने में उसने 2-3 मिनट में सिस्टम को ऑन करके रिपोर्ट निकाल ली और फिर उस रिपोर्ट को मेल भी कर दिया।

मेल करने के बाद वो मुझसे बोला- देखो मैंने तुम्हारा काम कर दिया, अब तुम्हारी बारी है।

मैं- 'मैं तैयार हूँ, बोलो कहां?'

राकेश- 'यहीं ऑफिस में... मैं तुम्हारे कम्प्यूटर को सही करूंगा और तुम मेरे!'

मैं- 'लेकिन अभी तो काफी लोग हैं।'

राकेश बोला- पांच मिनट के बाद ऑफिस खाली हो जायेगा, बॉस से कह कर तुम रूक जाना!

राकेश ने मुझे बताया कि मुझे बॉस से क्या कहना है। मैं और राकेश दोनों ही बॉस के सामने थे और जैसा राकेश ने मुझसे कहने को कहा, वैसा मैंने बॉस से कह दिया। बॉस ने चपरासी दीपक जो 60 वर्ष का था को बुला कर रूकने के लिये बोला, बेचारा बॉस के सामने कुछ भी न बोल पाया, पर हम दोनों के पास आकर अपनी परेशानी बताई

और बोला- जब भी आपका काम खत्म हो जाये तो मुझे कॉल कर देना, मैं तुरन्त आकर ऑफिस बन्द कर दूँगा।

मेरे बोलने से पहले ही राकेश बोल उठा- हाँ हाँ जाओ, पर समय पर आ जाना।

थोड़ी देर बाद पूरा ऑफिस खाली हो गया था, सबके जाने के बाद दीपक भी चला गया। सब के जाते ही राकेश ने मुझे पीछे से जकड़ लिया और मेरी गर्दन को चूमने लगा, मेरे कान को दांतों से काटने लगा और मेरी चूची को जोर जोर से दबाने लगा।

मैं उसकी गिरफ्त से निकलते हुये बोली- सिस्टम को रिपेयर भी करते चलो और जो भी तुमको मेरे साथ करना है वो करो, ज्यादा समय नहीं है, घर भी जाना है।

राकेश अपने कपड़े को उतारता हुआ बोला- चलो, तुम भी अपने कपड़े उतारो, अब ऑफिस में कोई नहीं है।

सेक्स करते हुए जब तक तक कि जिस्म पूरा नंगा न हो, मुझे मजा नहीं आता है। इसलिये राकेश के कहने पर मैंने भी अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए।

राकेश देखने में ही पतला दुबला था लेकिन उसका लटका हुआ लंड भी बड़ा तगड़ा लग रहा था।
 
कपड़े उतारते हुए राकेश बोला- बेबी, आज जब तुम मेरा लंड अपनी चूत में लोगी तो तुम सभी लंड को भूल जाओगी!

कह कर एक सीडी निकाली, कम्प्यूटर पर लगा दी और कम्प्यूटर को इन्स्टॉलेशन पर कर दिया और मुझको अपने जिस्म में चिपकाते हुए मेरी पीठ और हिप पर हाथ फिराने लगा। मैंने भी राकेश को कस कर पकड़ लिया। वो मेरे दरार में भी अपनी उंगली को रगड़ता। राकेश के इस तरह करते रहने से मेरी जीभ स्वतः ही उसके निप्पल को चूसने लगी। जैसे ही मेरी जीभ ने राकेश को अपना कमाल दिखाना शुरू किया, वैसे ही राकेश के हाथ भी मेरे चूतड़ों को सहलाता, मेरी गांड में उंगली करता और मेरी छाती को कस कर मसलता था। मेरा हाथ और मुंह उसके निप्पल पर ही थे, मैं उसके दानों को दांतों से काट रही थी, वो हल्के से सिसकारी लेता और उतनी ही तेजी से मेरे जिस्म के जिस हिस्से में उसके हाथ होते वो कस कर मसल देता। मेरे और राकेश के बीच में जंग चल रही थी, मेरे हाथ उसके लंड को भी पकड़े हुए थे और अगर मेरे हाथों में उसके गोले आ जाते तो मैं उसको भी मसलने से नहीं चूकती और राकेश भी कुछ इसी तरह से मेरे साथ बदला लेता, वो मेरे चूत के अन्दर अपनी उंगली बड़ी ही बेदर्दी के साथ डालता और मेरे पुत्तियों को मसल देता और मेरी क्लिट को भी बुरी तरह नोचता।

सीत्कारें दोनों ही तरफ से हो रही थी और शायद इसमें हम दोनों को ही मजा आ रहा था। फिर राकेश मेरे होंठों को चूसने लगा और मेरी जीभ को अपने मुंह के अन्दर लेकर चूस रहा था। जब तक इन्स्टॉलेशन का पहला पार्ट चल रहा था, तब तक हम दोनों यही करते रहे, फिर राकेश ने सिस्टम को आगे की कमाण्ड देकर मेरी कमर को पकड़ कर वही खाली पड़ी हुई दूसरी कम्प्यूटर टेबल पर बैठा दिया और मेरी टांगों को फैला कर मेरी चूत को चूम लिया और फिर धीरे-धीरे सहलाने लगा। उसके बाद अपने उंगलियों पर खूब सारा थूक लिया, उसको मेरी चूत पर मल दिया और फिर चूत की दोनों फांकों को फैला कर अपनी जीभ चलाने लगा। जिस तरह से राकेश पिछले पंद्रह मिनट से मुझे मजा दे रहा था, उससे मैं झड़ने के काफी करीब आ गई थी और

सिसकारते हुए बोली- राकेश, मैं झड़ने वाली हूँ।

लेकिन राकेश ने शायद मेरी बात अनसुनी कर दी और जोर जोर से अपनी जीभ को मेरी चूत में चलाना चालू रखा। आखिरकार मैं अपने को रोक नहीं सकी और मेरा पानी छूटने लगा लेकिन राकेश को इसकी भी परवाह नहीं थी। वो मेरी चूत उसी तरह चाटता रहा और जब उसने मेरे निकलते हुए पानी की एक एक बूंद को चाट लिया तो वो खड़ा हो गया और मुझे उसी टेबल पर लेटा दिया और हल्के से मुझे अपनी तरफ खींच लिया, मेरी पीठ ही टेबल पर थी, बाकी का हिस्सा हवा में ही लटका हुआ था, राकेश ने अपने लंड को मेरी चूत में एक झटके से पेल दिया। राकेश का लंड वास्तव में तगड़ा और लम्बा था। भला हो जो मेरी चूत रोज रोज किसी न किसी का लंड जाता था, तो राकेश के तगड़े लंड का असर मुझे न हुआ। राकेश मेरी चूत को पेलता रहा और मैं कल्पना करने लगी कि राकेश अनचुदी लड़की का क्या करता होगा, निश्चित रूप से जो लड़की उससे पहली बार चुदती होगी, वो पक्का उसकी फाड़ कर रख देता होगा।

राकेश के धक्के समय के साथ-साथ और तेज होते गये और जितनी तेज उसके धक्के होते गये उतने ही तेज उसके और मेरे मुंह से 'उम्म्ह... अहह... हय... याह...' की आवाज आती जा रही थी।

तभी राकेश बोला- आकांक्षा मैं झड़ने वाला हूँ, अपना माल कहाँ निकालूँ? तुम्हारी चूत के अन्दर या फिर तू मेरे माल का स्वाद चखेगी?

राकेश के साथ चुदाई की शुरूआत से पहले तक मैं उसे पसन्द नहीं करती थी और न ही अपने पास फटकने देती थी, हाँ आज जिस तरह से उसने मुझे मजा दिया, मैं सब कुछ भुला बैठी और उठकर उसके लंड को अपने हाथ में लिया और बड़े प्यार से सहलाने लगी। अगर उस समय स्केल होती तो मैं जरूर नापती, लेकिन मुझे फिर भी लग रहा था कि कम से कम नौ इंच का तो होगा ही। मैंने उसके सुपारे पर अपनी जीभ रखी। पहले तो मुझे मेरे ही पानी का स्वाद मिला और फिर दो चार बार जीभ फेरने से उसके लंड ने फव्वारा छोड़ दिया, मेरा पूरा मुंह उसके वीर्य से भर गया था, कुछ बूंद मेरे चेहरे पर थी और कुछ मेरी दोनों चूचियों के ऊपर पेट पर और जमीन पर गिरी थी। उसके लंड से एक-एक बूंद निकल चुकी थी लेकिन लंड उतना ही टाईट था और एक बार और मेरी चूत की अच्छे से चुदाई कर सकता था। इधर सिस्टम भी फार्मेट हो चुका था और जरूरी सॉफ्टवेयर भी लोड हो चुका था। मैं अपने कपड़े पहनने लगी तो राकेश ने फिर मुझे पीछे से पकड़ लिया और एक राउन्ड के लिये और बोला लेकिन मुझे देर हो रही थी, सो उससे नेक्स्ट टाईम के लिये बोला तो वो भी मेरी बात को मान गया,

बस इतना ही बोला- आकांक्षा, तुम्हारी जैसी गांड आज तक मुझे देखने को नहीं मिली, बस पाँच मिनट रूको तो मैं तुम्हारी गांड को अपनी जीभ से थोड़ा सा गीला कर दूं!

उसकी बात सुनकर मेरी गांड में झुरझुरी सी होने लगी थी, मैं उसकी बात काट नहीं पाई, मैंने अपने ज़ींस को एक बार फिर जमीन पर गिरा दिया और उसी कम्प्यूटर टेबल पर अपने हाथों को टिका दिया।
 
राकेश मेरे दोनों उभारों को पकड़ कर भींचने लगा और फिर थोड़ा सा फैलाते हुए अपनी जीभ छेद पर लगा दी और फिर बाकी का काम उसकी जीभ कर रही थी। थोड़ी देर तक गांड चाटने के बाद राकेश उठा, चपरासी दीपक को फोन किया। दीपक के आने तक हम दोनों ही अपने कपड़े पहन चुके थे। दीपक ने ऑफिस को बन्द किया और मैं और राकेश ने अपने-अपने रास्ते को पकड़ लिया। राकेश से साथ हुई चुदाई को सोच कर कब मुझे नींद आ गई ट्रेन में, पता ही नहीं चला जब ट्रेन हावड़ा पहुँच गई तो ससुर जी ने मुझे जगाया। मैं खुद को फ्रेश महसूस कर रही थी लेकिन वो नई पैंटी जो अभय सर ने मुझे दी थी, गीली हो चुकी थी।

हम दोनों ट्रेन से उतरकर सर के बताये हुए होटल में पहुँचे। होटल का मैनेजर बाकी की फार्मेल्टी निभाते निभाते लगातार मुझे ही घूरे जा रहा था। उसके बाद मैं और पापा जी अपने कमरे में आ गये।

रात के लगभग 12 बज रहे थे और मुझे एक बार फिर हरारत लग रही थी लेकिन पापा जी परेशान न हो इसलिये मैंने उनसे कुछ नहीं बताया और हल्का-फुल्का खाकर जब लेटने की बारी आई तो उस सुईट कमरे में कहाँ सोया जाये, मैं यही सोच रही थी।

मेरी परेशानी को समझते हुए बाबूजी बोले- तुम परेशान न हो, मैं सोफे पर सो जाता हूँ, तुम बेड पर सो जाओ। अगर तुम चाहो तो अपने कपड़े चेंज कर सकती हो।

इतना कहते हुए पापाजी ने अपनी लुंगी निकाल कर पहन ली और सोफे पर सोने चले गये।

मैंने भी गाऊन निकाल कर पहना और बेड पर आकर लेट गई। एक तो पहले से ही हरारत और दूसरा A.C. चलने के कारण मुझे ठंड भी लगने लगी, मैंने अपने आपको सिमटा लिया। बुखार धीरे धीरे बढ़ने लगा था और मैं बुखार से काम्पने लगी, उम्म्ह... अहह... हय... याह... मेरी आँखों से पानी भी बह रहा था। वैसे भी लेटते लेटते एक बज गया था।

मुझे कराहते हुए देखकर पापाजी मेरे पास आये, मेरे माथे के छुआ और फिर रिसेप्शन पर फोन लगाया, फिर मेरे पास आकर बैठ गये। उनके कहे हुए शब्द मेरे कान में नहीं पड़ रहे थे। फिर मुझे लगा कि मेरे माथे पर गीली पट्टी रखी जा रही है। मेरा जिस्म लगातार तप रहा था। फिर मेरे साथ क्या हुआ, मुझे पता ही नहीं चला।
 
सुबह जब मेरी नींद खुली और मैं थोड़ा उठकर बैठने के काबिल हुई तभी मुझे अहसास हुआ कि मेरे जिस्म पर कोई कपड़ा नहीं है और मेरे चूतड़ के नीचे एक पन्नी है जो गीली है। तभी मेरी नजर बाथरूम में गई, बाथरूम का दरवाजा खुला हुआ था और पापाजी पेशाब कर रहे थे।

मैं अपनी नजर वहाँ से हटाने की लाख कोशिश कर रही थी, लेकिन पापाजी के लंड के कारण हट नहीं रही थी। पापाजी लुंगी को कमर के ऊपर तक चढ़ा कर पेशाब कर रहे थे, इसलिये उनके लम्बे लंड को मैं साफ-साफ देख पा रही थी, शायद राकेश और रितेश या अभी तक जितने मर्दो ने मुझे चोदा था, उन सबसे लम्बा उनका लंड लग रहा था और पापाजी के चूतड़, गोल आकार के, उठे हुए... न चाहते हुए भी मैं आँख चुराकर देखने की कोशिश कर रही थी। पेशाब करने के बाद पापाजी अन्दर ही कुछ धुले हुए कपड़े फैला रहे थे। फिर वो बाहर निकलने लगे, तो मैंने अपने ऊपर पड़ी हुई रजाई को ऊपर तक कर लिया, ताकि पापाजी को न पता चले कि मैं नंगी हूँ।

पापाजी मेरे पास आकर बैठ गये और मेरे माथे को छूकर देखने लगे और,

फिर सन्तुष्ट होते हुए बोले- चलो अब बुखार उतर गया, लेकिन तुम तैयार हो लो, फिर डॉक्टर के पास चल कर दवा लेते हैं।

कहकर चुप हो गये और अपने दोनों हाथों को आपस में मलने लगे और कुछ चिन्तित से दिखाई पड़ रहे थे। मुझे लगा कि वो कुछ बोलना चाह रहे हैं इसलिये मैं उनसे उनकी चिन्ता का कारण जब पूछने लगी,

तो वो बोले- बेटा, चिन्ता तो कुछ नहीं है, लेकिन एक अफसोस है और इसलिये मैं परेशान हूँ।

मैं- 'अफसोस?' मैंने पूछा,

तो बोले- हाँ, अफसोस! और मैं तुमसे माफी भी मांगता हूँ।

मैं- 'माफी!?' अब मैं चिन्तित होने लगी थी।

तभी पापाजी ने कहना शुरू किया- रात में तुम्हें बहुत तेज बुखार था, मैंने दवाई के लिये रिसेप्शन पर कॉल किया।

(यह बात जो पापा जी मुझे बता रहे थे, शायद ये सब मेरी आँखों के सामने हो रहा था, पर उसके बाद जो पापा जी ने बोला, वो बोलते गये और मेरे होश उड़ते गये।)

पापा जी कह रहे थे और मैं सर को नीचे किये हुए सुन रही थी।

पापा जी पूरी बात बताने लगे:

जब रिशेप्शन से कोई हेल्प नहीं मिली तो मैं मग में पानी लेकर गीली पट्टी तुम्हारे माथे पर रख रहा था, लेकिन बुखार उतरने का नाम नहीं ले रहा था कि तभी मुझे कुछ गीला सा लगा। क्योंकि मैं तुम्हारे पैर के पास ही बैठा हुआ था, तो मुझे लगा कि पानी गिर गया होगा, लेकिन मग तो मेरे हाथ में था।,मैंने तुम्हारी रजाई को उठाया तो देखा कि तुम्हारी पेशाब निकल रही है और तब तक तुम काफी कर भी चुकी थी। अब मेरे सामने समस्या यह थी कि तुम्हारे बुखार के वजह से मैं तुम्हें गीला नहीं रख सकता था और न ही मैं तुम्हारे कपड़े उतार सकता था, तो करूँ तो मैं क्या करूँ... होटल में कोई ऐसी लेडी स्टॉफ नहीं थी कि उससे मैं इस समस्या को कह सकूं।

अब इस समस्या से निपटने के लिये मुझे ही कुछ करना था, इस विश्वास के साथ कि तुम मेरी बात को सुननेके बाद बुरा नहीं मानोगी, मैंने तुम्हारी पैन्टी उतार कर उसी से तुम्हारी योनि अच्छे से साफ की और फिर पन्नी वाली थैली को दूसरे जगह बिछाकर वहां तुम्हें लेटाने के लिये जैसे तुम्हें उठाया तो पाया कि तुम्हारा गाउन भी गीला है। मैंने तुरन्त ही A.C. बन्द किया और फिर तुम्हारे गाउन को उतार कर तुम्हे सूखी जगह पर लेटा दिया और तुम्हारे गीले कपड़े को बाथरूम में डाल दिया, जिसको अभी मैं धोकर फैला कर आ रहा हूँ।

शर्म के मारे मेरी नजर जमीन पर गड़ी जा रही थी, अभी मेरे कानों को और भी कुछ सुनना था।

पापा जी फिर बोले:

देखो आकांक्षा, मेरी नियत पर शक मत करना, अगर मजबूरी न होती तो मैं यह कभी भी नहीं करता। उसके बाद भी मैं तुम्हारे माथे पर पट्टी रख रहा था, लेकिन बुखार उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था।

तभी मुझे याद आया कि तुम्हारी मम्मी के साथ मैं सम्भोग करना चाह रहा था, वैसे भी तुम्हारी मम्मी मुझे कभी भी मना नहीं करती थी, लेकिन उस दिन जैसे ही मैंने उसके बदन को टच किया तो उसको भी बुखार था, मेरे पूछने पर उसने बताया कि दवा तो ली थी पर बुखार उतरने का नाम ही नहीं ले रहा है। मैंने दुबारा दवा देनी चाही तो उसने बताया कि उसने कुछ देर ही पहले दवा ली है। मेरी इच्छा तो बहुत हो रही थी कि मैं उसके साथ सम्भोग करूँ, लेकिन उसके बुखार को देखकर मैंने अपनी इच्छा त्याग दी और अपने हाथ से ही अपने लिंग से खेलने लगा तो तुम्हारी मम्मी बोली कि उसके होते हुये मुझे अपने हाथ से काम चलाना पड़े, उसे अच्छा नहीं लगेगा, तुम्हारी मम्मी ने मुझे सम्भोग कर लेने के लिए कहा।

लेकिन मैंने तुम्हारी सास को सान्त्वना देते हुए कहा 'देखो, तुम्हें बुखार है और मैं तुम्हारे साथ नहीं कर सकता! हो सकता है कि तुम्हें और तेज बुखार हो जाये। चलो, मैं सो जाता हूँ और तुम भी सो जाओ' कहकर मैंने करवट बदल ली।

लेकिन मेरी आँखों से नींद गायब हो चुकी थी और रह रह कर मैं करवट बदल रहा था। यह बात मेरी बीवी समझ रही थी,

उसने मुझसे एक बार फिर कहा 'देखो मैं जानती हूँ कि इस समय तुम्हें जो चाहिये, नहीं मिल रहा है और मैं नहीं चाहती कि तुम रात भर करवट बदलो, तो आ जाओ और सवारी कर लो ताकि तुम सो सको, कल तुम मुझे डॉक्टर को दिखा देना।'

अब मुझसे भी बर्दाश्त नहीं हो रहा था तो मैंने उसके पेटीकोट को उठाया और उसकी पैन्टी को उतार कर अपने लिंग को उसकी योनि में डाल दिया। हालाँकि उस रात के पहले जब भी मैं उसके साथ सेक्स करता था तो काफी मजे लेकर करता था और वो भी मुझे खूब मजे देती थी लेकिन उस रात केवल लिंग को उसकी योनि में प्रवेश करा कर धक्का मारने लगा और फिर मेरा जो भी माल था उसी की योनि में गिरा दिया और उसको चिपका कर सो गया।

सुबह जब हम दोनों सोकर उठे तो देखा कि तुम्हारी सास का बुखार उतर चुका था और वो पहले की तरह फुर्ती से अपने काम निपटा रही थी। उसके बाद अब जब भी तुम्हारी सास को बुखार होता तो इसी तरह हम दोनों सम्भोग करते। इसलिये जैसे ही यह वाकया मुझे याद आया तो मैंने तुम्हारी ब्रा भी उतार दी और अपने भी कपड़े उतारकर तुम्हें अपने से चिपका लिया और फिर तुम्हारी योनि में अपने लिंग को प्रवेश करा दिया और फिर अपने वीर्य को तुम्हारे योनि के अन्दर ही डाल दिया और फिर तुम्हें अपने से चिपकाकर मैं सो गया।

ये अन्तिम वाक्य पापाजी के मुंह से सुनकर मेरा मुंह खुला रह गया 'जो नहीं होना चाहिये था, इस बुखार की वजह से हो चुका था।' मैं अपने ही ससुर से चुद चुकी थी। मेरे आँखों में आंसू आ रहे थे।
 
मेरे आंसू पौंछते हुए पापा बोले- देखो, मैं तुमसे पहले ही माफी मांग चुका हूँ। चूँकि मेरे पास इसके अलावा कोई चारा नहीं था, तो मैंने किया। चलो अब जो हुआ वो हो चुका है, उठ कर तैयार हो जाओ, तुम्हें डॉक्टर को दिखा देता हूँ और फिर मैं कोई दूसरे होटल में शिफ्ट हो जाता हूँ, जब तुम्हारा काम खत्म हो जाये तो फिर हम लोग वापस अपने घर चले जायेंगे।

कहकर वो उठने लगे।

मुझे उनकी बात समझ में आ चुकी थी, क्योंकि मुझे बुखार बहुत तेज था और मैं बेहोश थी। कोई हेल्प न मिलने के कारण उन्होंने मेरे साथ सम्भोग किया,

मैंने उनका हाथ पकड़ा और बोली- पापा जी, आज से आप मेरे दोस्त भी हो, जो आदमी उस समय हेल्प करे जब उसकी सबसे ज्यादा जरूरत हो तो उससे अच्छा तो कोई दोस्त हो ही नहीं सकता।

पापाजी ने मेरे सर पर हाथ फेरा और सोफे पर बैठ कर अखबार पढ़ने लगे।

अब मैं सोचने लगी, भले ही बेहोशी में ही सही, पापाजी का इतना लम्बा और मोटा लंड मेरी चूत की सैर कर चुका है।

तभी मुझे पॉटी महसूस हुई, मैंने रजाई को अपने सीने से चिपकाये रखा और उठने की कोशिश करने लगी। लेकिन इस समय कमजोरी बहुत लग रही थी, मैं वापस बेड पर गिर गई। पापा जी तुरन्त मेरे पास आये और बार बार मुझसे पूछने लगे। मुझे पता था कि वो समझ चुके है कि मुझे क्या समस्या है लेकिन फिर भी पापा मुझसे पूछे जा रहे थे।

तभी पापा ने कहा- देखो, अभी तुमने मुझे अपना दोस्त कहा है और अब तुम ही अपने दोस्त को नहीं बता रही हो?

उनके इतना कहते ही मैं उनकी तरफ देखकर बोली- पापा जी, पॉटी बहुत तेज आ रही है और कमजोरी के कारण मैं चल नहीं पा रही हूँ।

मुझे नंगी ही बिना किसी हिचक के उन्होंने अपनी गोदी में उठा लिया और बोले चलो- मैं तुम्हें लिये चलता हूँ, ऐसा न हो रात की तरह तुम बिस्तर पर ही पॉटी भी कर दो।

पापा ने मुझे ले जाकर पॉटी सीट पर बैठा दिया।

पॉटी करके जब मैं उठने लगी तो मेरे ससुर जी ने वहीं पास पड़ी हुई कुर्सी को बाथरूम के अन्दर रख दिया और फिर मुझे सहारा देकर उस पर बैठा दिया ताकि मैं ब्रश कर सकूं। उन्होंने मेरे ऊपर चादर डाल दी। जितनी देर तक मैं ब्रश करती रही, उतनी ही देर में ससुर जी ने एक बाल्टी को गर्म पानी से भर दिया। मुझे बहुत दुख हो रहा था कि मैं इस अवस्था में हूँ और मेरे ससुर जी को मेरी सेवा करनी पड़ रही थी। वो मेरे ऊपर इतना ध्यान रख रहे थे कि मैं उसको बता नहीं सकती थी। उसके बाद ससुर जी ने गर्म पानी में तौलिया भिगो कर मेरे जिस्म को अच्छी तरह से साफ किया और बाहर लाकर मुझे पैन्टी, ब्रा पहनाने लगे। और फिर मेरी जो सबसे अच्छी ड्रेस (सलवार-सूट) उनके हिसाब से थी, वो पहना दी और बाकी सजने संवरने का सामान मुझे दे दिया। उसके बाद नाश्ता करके ससुर जी मुझे लेकर जो होटल के आस-पास डॉक्टर था, ले कर गये। डॉक्टर ने मुझे दो-तीन दिन आराम करने के लिये कहा।

चेक अप करवाने के बाद में वापस आई। मैं बड़ी चिन्तित थी, जिस काम के लिये कोलकाता आई थी, वो ही पूरा नहीं होगा और मुझे एक जगह बैठ कर टाईम बिताना अच्छा भी नहीं लग रहा था। फिर भी ससुर जी के कहने पर मैंने अभय सर को फोन किया और सारी स्थिति बता दी, लेकिन दूसरे दिन से ऑफिस जाने की बात भी कही। मेरे ससुर मेरी तरफ देख रहे थे।

जैसे ही मैंने फोन काटा, वो बोले पड़े- बेटा, जब डॉक्टर ने तुम्हें दो-तीन दिन का आराम करने को कहा है तो आराम करो। चलो आज शाम को वापस चलते हैं। जब तुम ठीक हो जाओगी, तो रितेश के साथ चली आना।

ससुर जी की बात मेरे कानो में गूंज रही थी, लेकिन मेरे दिमाग में कुछ और चल रहा था। अब ससुर जी के सामने मैं बेपर्दा हो चुकी थी और वो मेरे जिस्म के एक एक अंग को नंगा देख चुके थे, मैंने अपने ट्रिप को सही करने का सोचा।

तभी उन्होंने झकझोरा, बोले- क्या हुआ बेटी, क्या सोचने लगी?

मैं अचकचा कर बोली- कुछ नहीं पापा जी!

इन सब बातो में इतना पता तो मुझे चल गया था कि पापा जी के मन में मेरे प्रति कुछ भी गलत नहीं था, बस कल रात जो कुछ भी हुआ वो मेरी बिगड़ती तबीयत की वजह से हुआ और शायद इसीलिये वो इतना मुझे तवज्जो नहीं दे रहे थे। फिर भी मेरे दिमाग में कीड़ा चलने लगा।

वो एक बार फिर बोले- तो ठीक है, चलो मैं पैकिंग किये देता हूँ और शाम की कोई गाड़ी पकड़ लेंगे और टीटीई को कुछ ले देकर सीट का जुगाड़ बैठा लूंगा।

कहकर वो उठे और सामान उठाने लगे।

तभी मैं उनसे बोली- नहीं पापा जी, मेरी तबियत इतनी ठीक नहीं है कि मैं ट्रेवेल कर पाऊँ... आज रात रूकते हैं, अगर कल मैं ठीक नहीं हुई और घर चलने के काबिल रही तो हम कल चलेंगे।

कहकर मैं चुप हो गई और टी॰वी॰ देखने लगी। मैं बड़ी देर तक यही करती रही और सोच रही थी कि किसी तरह से पापा जी पहल करें तो कुछ बात बने। लेकिन पूरे दो घंटे बीत गये थे और पाप जी पेपर पढ़ने के बाद वही सोफे पर लेट गये, लेकिन अपनी तरफ से कुछ नहीं बोले।
 
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