hotaks444
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मनिका के दोनो हाथो को उसने बेड पर दबोच रखा था..ताकि वो उसे रोक ना पाए...बेचारी उसके नीचे दबकर सिर्फ़ छटपटाने के अलावा कुछ नही कर पा रही थी.उसके अंदर उठ रही तरंगे उसके जिस्म को उपर की तरफ उचका रही थी..और वो अपने कूल्हे उठाकर अपनी चूत को जयसिंह के खड़े हुए लंड से टच करवाने की नाकाम कोशिश कर रही थी.
लेकिन जयसिंह बड़ी ही चालाकी से अपने लंड को उसकी चूत से दूर रखकर उसकी बेकरारी को बड़ा रहा था.
जयसिंह उसके बूब्स को चूसता - 2 नीचे की तरफ बढ़ने लगा...उसकी नाभि पर पहुँचकर उसने अपनी जीभ उसके अंदर डाल दी...और उसकी नाभि को अपनी जीभ से चोदने लगा..
ये देखकर दूर बैठी कनिका ने भी अपनी टी शर्ट उठाकर अपनी नाभि की गहराई देखी की क्या वो भी जीभ से चोदने लायक है या नही...वो उतनी गहरी नही थी जितनी मनिका की थी...कारण था मनिका का गदराया हुआ जिस्म, जिसकी वजह से उसकी नाभि उसके पेट में थोड़ा अंदर जा धँसी थी...और इस वक़्त जयसिंह उसी नाभि को अच्छी तरह से चाटकर उसे पूरी तरह से उत्तेजित कर रहा था.
थोड़ी देर बाद उसने फिर से दक्षिण का रुख़ किया और उसकी जीभ की जीप मनिका की चूत के द्वार पर जाकर रुक गयी...
जयसिंह ने उपर मुँह करके उसके चेहरे को देखा...वो साँस रोके उसके अगले कदम की प्रतीक्षा कर रही थी.
जयसिंह ने उसकी स्कर्ट के बटन खोले और उसकी पेंटी समेत उसे नीचे की तरफ खींच दिया..
जैसे-2 उसकी पेंट उतरती गयी,उसकी कमाल की चूत उभरकर जयसिंह के सामने आती चली गयी.
कमाल की इसलिए की एक तो वो बिल्कुल गोरी थी...और उपर से उसकी जिस अंदाज में ट्रिमिंग की गयी थी,उसे देखकर जयसिंह अचंभित रह गया..चूत के चारों तरफ हल्के-2 बाल छोड़कर एक डिज़ाइन सा बना दिया गया था..और बाकी हर जगह से वो एकदम सफाचट थी...और ये सब इतने महीन तरीके से किया गया था की वो खुद तो ये कर ही नही सकती थी..जयसिंह समझ गया की उसकी चूत की कलाकारी में कनिका का हाथ है.
जरासल आज दोपहर ही कनिका और मनिका ने एक दूसरे के चुतो की सफाई की थी
उसने कनिका की तरफ देखा तो वो अपनी चूत मसलते हुए जयसिंह को देखकर मुस्कुरा उठी...और अपने बूब्स को प्रेस करके एक सिसकारी भी मारी...जयसिंह समझ गया की मनिका की चूत के बाल इसी चुहिया ने कुतरे है..
अब जयसिंह के सामने एकदम रसीली और जूस से भरी हुई चूत पड़ी थी...उसने अपनी जीभ को तैयार किया और टूट पड़ा उसकी चूत की नदी में .
सेलाब तो कब से उमड़ रहा था उसकी चूत में ....अब जयसिंह की जीभ ने चप्पू चलाकर उस नदी में सैलाब लेकर आना था....और वो ये काम करना बख़ुबी जानता था.
जयसिंह मनिका की चुत चूसने लगा था, तभी कनिका बोल पड़ी, पापा दीदी की चुत खट्टी मीठी है ना
मनिका ने बुरा सा मुँह बनाकर कनिका को डांटा : "अब तू ऐसे मौके पर ये सब शिकायते करने यहाँ आई है....''
कनिका : "नही दीदी....मैं तो एक आइडिया लेकर आई हूँ ...जिसमे पापा को इसे सक्क करने में ज़्यादा मज़ा आएगा...''
इतना कहकर वो भागकर किचन में गयी और फ्रिज खोलकर एक छोटी सी शहद की शीशी निकाल लाई...जयसिंह समझ गया की ये क्या करने वाली है...
वो करीब आई और उसने वो ठंडा-2 शहद मनिका की चूत के उपर उडेल दिया....एक गाड़ी सुनहरे रंग की लकीर के रूप में वो शहद धीरे-2 मनिका की गरमा गरम चूत को अपने रंग में रंगने लगा..थोड़ा शहद उसने उसकी गांड की तरफ से भी डाल दिया,जो धीरे-२ बहकर उसकी चुत तक पहुँचने लगा
जयसिंह देख पा रहा था की कनिका वो शहद उड़ेलते हुए अपनी जीभ ऐसे लपलपा रही थी जैसे वो बरसो की प्यासी हो....
शहद की पूरी शीशी उड़ेलने के बाद वो बोली : "लो पापा....अब आपकी ये स्वीट डिश आपके लिए तैयार है...''
और ये कहकर जैसे ही वो उठकर जाने लगी, जयसिंह ने उसकी कलाई पकड़ ली और बोला : "अब इतना काम कर दिया है तो थोड़ा और कर दो मेरे लिए....इसे अपनी दीदी की चुत पर फेला भी दो...अपने अंदाज में ..''
ये बात सुनते ही कनिका के होंठ थरथरा उठे...उसके पूरे शरीर के रोँये खड़े हो गये....
वो सोचने लगी की क्या इसका मतलब ये है की पापा उसे इस सेक्स के खेल में शामिल होने के लिए बोल रहे है...
और दूसरी तरफ मनिका को भी झटका लगा...वो नही चाहती थी की आज के दिन कनिका उनके इस चुदाई वाले खेल में शामिल हो...वो बस यही चाहती थी की वो दूर बैठकर ये खेल सिर्फ़ देखे......जैसा की दोनो के बीच समझोता हुआ था..
लेकिन कनिका के चेहरे और मनिका के दिमाग़ में चल रही बातो को जैसे जयसिंह ने पढ़ लिया था...वो बोला... : "देखो....तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ ये एक छोटा सा काम करोगी...और कुछ नही...उसके बाद वापिस अपनी जगह पर जाकर बैठ जाओगी...अच्छे बच्चो की तरह....ओके ..''
कनिका के लिए ये एक सपने जैसा ही था...वो अपनी बहन की शहद से भीगी चूत को चूसने वाली थी...उसी चूत को जिसे उसके पापा सिर्फ़ दस मिनट बाद चोदने वाले थे...यानी उसके पापा चाहते थे की वो अपनी बहन की चूत खुद तैयार करे,ताकि वो बाद में उसकी चुदाई सही से कर सके
मनिका ने भी कुछ नही कहा...वैसे भी उसे एक्साइट करने के लिए सही ढंग से चूत की चुसाई करना बहुत ज़रूरी था ...और ये काम कनिका से अच्छी तरह कोई और कर ही नही सकता था...
जयसिंह मनिका की टाँगो के बीच से उठकर उपर बेड की तरफ चला गया...और कनिका उसकी जगह पर आकर बैठ गयी...उसने मनिका की दोनो टाँगो को दोनो दिशाओं में फेलाया और अपनी जीभ निकाल कर उसकी नोक से ढेर सारा शहद समेटा और दोनो हाथों की उंगलियों से मनिका की चूत की फांके फेला कर नीचे से उपर की तरफ लेजाते हुए उसकी चूत का अभिषेक कर दिया...एक लंबी आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह के साथ मनिका ने अपनी बगल में बैठे जयसिंह के लंड को बुरी तरह से पकड़ा और ज़ोर से मसल डाला...
''आआआआआआआआआआआआआआआआआहह ओह...... कनिकाआआआआआअ......''
कनिका की जीभ ने वो ठंडा -2 शहद उसकी खुली हुई चूत के अंदर धकेलना शुरू कर दिया था...
ये शहद वाली ट्रिक उसने कई दीनो से सोच के रखी हुई थी किसी लड़की के लिए...लेकिन उसे करने का मौका ऐसे आएगा ये उसने सपने में भी नही सोचा था...वो भी अपनी सगी बहन के साथ
जयसिंह भी अपने घुटनो के बल बैठकर अपने लंड को उसके मुँह के करीब ले आया...और मनिका उसे किसी गली की कुतिया की तरह चाटने लगी...अपनी जीभ से लपलपा कर उसने जयसिंह के लंड को अपने ही शहद से तर-बतर कर दिया...ठीक उसी तरह जिस तरह से उसकी चूत को कनिका ने कर दिया था इस वक़्त..
कनिका तो बड़े ही चाव से उसकी चूत के हर भाग को शहद में लपेट कर चाट रही थी....चूत से निकलता खट्टापन अब शहद में मिलकर कुछ अलग ही स्वाद दे रहा था...जो कनिका को काफ़ी पसंद आया...और उसे पता था की पापा को भी ये स्वाद पसंद आएगा...
कुछ देर बाद वो अपने रस से भीगे होंठ वहां से उठा कर बोली : "आओ पापा....अब ट्राइ करो...''
जयसिंह ने एक लंबी छलाँग लगाई
और बेड से नीचे उतर आया...कनिका के हटते ही उसने मोर्चा संभाल लिया और जब उसकी जीभ मनिका की चूत से टकराई तो वहां के बदले स्वाद को महसूस करते ही वो पागल सा हो गया...और पहले से कही ज़्यादा तेज़ी से उसकी चूत को अपने मुँह से चोदने लगा...
करीब दस मिनट तक अच्छी तरह से चूसने के बाद उसे एहसास हो गया की चूत की ऐसी चुसाई से बड़ा मजा इस दुनिया में और कोई नहीं है
और उसे ये भी अहसास हो गया की अब मनिका की चूत अंदर और बाहर से पूरी तरह गीली है...यही सही मौका है....उसका किला फतह करने का..
वो उठा और अपने लंड पर थोड़ी सी थूक मलकर उसने मनिका की गर्म चूत पर टीका दिया..
ये वो मौका था जब मनिका और कनिका अपनी साँसे रोके एक साथ उस पॉइंट को देख रही थी...जहाँ पर जयसिंह के लंबे लंड और मनिका की कमसिन चूत का मिलन हो रहा था.
जयसिंह ने धीरे-2 करके अपने लंड को उसके अंदर धकेलना शुरू किया...
मनिका : "उम्म्म्म.....पापा.....दर्द तो नही होगा ना....'' मनिका 2 बार चुद चुकी थी पर आज वो ऐसे रियेक्ट कर रही थी मानो उनकी पहली चुदाई हो
जयसिंह : "नही मेरी जान.....इतनी देर तक जो तेरी चूत को तैयार किया है, वो इसलिए ही ना की ये दर्द ना हो....अब सिर्फ़ मज़ा ही मज़ा मिलेगा...दर्द नही...''
और जैसे-2 उसका लंड मनिका के अंदर जाता जा रहा था, उसके चेहरे के एक्शप्रेशन बदलते जा रहे थे...
और धीरे-2 करते हुए जयसिंह ने अपना आधे से ज़्यादा लंड उसकी चूत में डाल दिया....अब तक मनिका की आँखो से आंसू निकलने लग गये थे....पर वो अपने मुँह पर हाथ रखकर अपनी चीख को बाहर नही निकालने दे रही थी...
जयसिंह ने उसके दोनो हाथो को बेड पर टीकाया और धीरे से उसके उपर झुकते हुए बोला : "बस बैबी.....थोड़ा सा और....'''
वो कुछ बोल पाती, इससे पहले ही जयसिंह ने अपना पूरा का पूरा भार उसके उपर एक झटके मे डाल दिया ....और उसका खंबे जैसा लंड मनिका की चूत को किसी ककड़ी की तरह चीरता हुआ अंदर तक घुसता चला गया....
''आआआआआआआआआआआआहह ऊऊऊऊऊऊओह मररर्र्र्र्र्र्र्र्र्रर्र्र्ररर गईईईईईईईईईईईईईईsssssssss ..... आआआआआआआआआहहsssssssssss पापाsssssssss..................................''
कनिका भागकर उसके करीब आई और बेड पर चड़कर वो मनिका के चेहरे को चूमने लगी
वो तो ऐसे दिलासा दे रही थी उसे जैसे वो बरसो से चुदती आई है, कनिका अपने होंठ उसके होंठो पर रखकर उसे बुरी तरह से चूसने भी लगी.
कनिका की किस्स्स का जवाब भी देना शुरू कर दिया था मनिका ने....दोनो एक दूसरे के होंठों को किसी भूखी बिल्लियों की तरह से चूस रही थी...और कनिका ने जब देखा की मनिका का दर्द अब गायब हो चुका है तो वो बेमन से वापिस अपनी जगह पर जाकर बैठ गयी..
मनिका ने जाते हुए उसे थेंक्स भी कहा...और फिर अपने पापा के साथ वो एक बार फिर से मस्ती के खेल में शामिल हो गयी.
अब तो वो अपनी टांगे दोनो दिशाओ में फेलाकर पूरे जोश से अपने पाप के लंबे लंड को अंदर तक ले रही थी...और सिसकारियाँ मारकर उसे और ज़ोर से चोदने के लिए उकसा भी रही थी...
''आआआआआआआआहह पापा........ मेरी जानssssssssss ....... और तेज़ी से करो.................. उम्म्म्ममममममममममम...... आहह पापा.............. मजा आ रहा है ....................... उम्म्म्ममममममममम..... इसी मज़े के लिए कब से तरस रही थी..... आआआआआआआआहह ........ ऐसे ही................... हमेशा मेरे अंदर ही रहना ...................... दिन रात...................चोदो मुझे ..................मेरे प्यारे पापा............................ सिर्फ़ मेरे पापा.................''
दूर बैठी छुटकी कनिका बुदबुदा उठी ..'तेरे ही क्यो....मेरे भी तो है...'
लेकिन जयसिंह बड़ी ही चालाकी से अपने लंड को उसकी चूत से दूर रखकर उसकी बेकरारी को बड़ा रहा था.
जयसिंह उसके बूब्स को चूसता - 2 नीचे की तरफ बढ़ने लगा...उसकी नाभि पर पहुँचकर उसने अपनी जीभ उसके अंदर डाल दी...और उसकी नाभि को अपनी जीभ से चोदने लगा..
ये देखकर दूर बैठी कनिका ने भी अपनी टी शर्ट उठाकर अपनी नाभि की गहराई देखी की क्या वो भी जीभ से चोदने लायक है या नही...वो उतनी गहरी नही थी जितनी मनिका की थी...कारण था मनिका का गदराया हुआ जिस्म, जिसकी वजह से उसकी नाभि उसके पेट में थोड़ा अंदर जा धँसी थी...और इस वक़्त जयसिंह उसी नाभि को अच्छी तरह से चाटकर उसे पूरी तरह से उत्तेजित कर रहा था.
थोड़ी देर बाद उसने फिर से दक्षिण का रुख़ किया और उसकी जीभ की जीप मनिका की चूत के द्वार पर जाकर रुक गयी...
जयसिंह ने उपर मुँह करके उसके चेहरे को देखा...वो साँस रोके उसके अगले कदम की प्रतीक्षा कर रही थी.
जयसिंह ने उसकी स्कर्ट के बटन खोले और उसकी पेंटी समेत उसे नीचे की तरफ खींच दिया..
जैसे-2 उसकी पेंट उतरती गयी,उसकी कमाल की चूत उभरकर जयसिंह के सामने आती चली गयी.
कमाल की इसलिए की एक तो वो बिल्कुल गोरी थी...और उपर से उसकी जिस अंदाज में ट्रिमिंग की गयी थी,उसे देखकर जयसिंह अचंभित रह गया..चूत के चारों तरफ हल्के-2 बाल छोड़कर एक डिज़ाइन सा बना दिया गया था..और बाकी हर जगह से वो एकदम सफाचट थी...और ये सब इतने महीन तरीके से किया गया था की वो खुद तो ये कर ही नही सकती थी..जयसिंह समझ गया की उसकी चूत की कलाकारी में कनिका का हाथ है.
जरासल आज दोपहर ही कनिका और मनिका ने एक दूसरे के चुतो की सफाई की थी
उसने कनिका की तरफ देखा तो वो अपनी चूत मसलते हुए जयसिंह को देखकर मुस्कुरा उठी...और अपने बूब्स को प्रेस करके एक सिसकारी भी मारी...जयसिंह समझ गया की मनिका की चूत के बाल इसी चुहिया ने कुतरे है..
अब जयसिंह के सामने एकदम रसीली और जूस से भरी हुई चूत पड़ी थी...उसने अपनी जीभ को तैयार किया और टूट पड़ा उसकी चूत की नदी में .
सेलाब तो कब से उमड़ रहा था उसकी चूत में ....अब जयसिंह की जीभ ने चप्पू चलाकर उस नदी में सैलाब लेकर आना था....और वो ये काम करना बख़ुबी जानता था.
जयसिंह मनिका की चुत चूसने लगा था, तभी कनिका बोल पड़ी, पापा दीदी की चुत खट्टी मीठी है ना
मनिका ने बुरा सा मुँह बनाकर कनिका को डांटा : "अब तू ऐसे मौके पर ये सब शिकायते करने यहाँ आई है....''
कनिका : "नही दीदी....मैं तो एक आइडिया लेकर आई हूँ ...जिसमे पापा को इसे सक्क करने में ज़्यादा मज़ा आएगा...''
इतना कहकर वो भागकर किचन में गयी और फ्रिज खोलकर एक छोटी सी शहद की शीशी निकाल लाई...जयसिंह समझ गया की ये क्या करने वाली है...
वो करीब आई और उसने वो ठंडा-2 शहद मनिका की चूत के उपर उडेल दिया....एक गाड़ी सुनहरे रंग की लकीर के रूप में वो शहद धीरे-2 मनिका की गरमा गरम चूत को अपने रंग में रंगने लगा..थोड़ा शहद उसने उसकी गांड की तरफ से भी डाल दिया,जो धीरे-२ बहकर उसकी चुत तक पहुँचने लगा
जयसिंह देख पा रहा था की कनिका वो शहद उड़ेलते हुए अपनी जीभ ऐसे लपलपा रही थी जैसे वो बरसो की प्यासी हो....
शहद की पूरी शीशी उड़ेलने के बाद वो बोली : "लो पापा....अब आपकी ये स्वीट डिश आपके लिए तैयार है...''
और ये कहकर जैसे ही वो उठकर जाने लगी, जयसिंह ने उसकी कलाई पकड़ ली और बोला : "अब इतना काम कर दिया है तो थोड़ा और कर दो मेरे लिए....इसे अपनी दीदी की चुत पर फेला भी दो...अपने अंदाज में ..''
ये बात सुनते ही कनिका के होंठ थरथरा उठे...उसके पूरे शरीर के रोँये खड़े हो गये....
वो सोचने लगी की क्या इसका मतलब ये है की पापा उसे इस सेक्स के खेल में शामिल होने के लिए बोल रहे है...
और दूसरी तरफ मनिका को भी झटका लगा...वो नही चाहती थी की आज के दिन कनिका उनके इस चुदाई वाले खेल में शामिल हो...वो बस यही चाहती थी की वो दूर बैठकर ये खेल सिर्फ़ देखे......जैसा की दोनो के बीच समझोता हुआ था..
लेकिन कनिका के चेहरे और मनिका के दिमाग़ में चल रही बातो को जैसे जयसिंह ने पढ़ लिया था...वो बोला... : "देखो....तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ ये एक छोटा सा काम करोगी...और कुछ नही...उसके बाद वापिस अपनी जगह पर जाकर बैठ जाओगी...अच्छे बच्चो की तरह....ओके ..''
कनिका के लिए ये एक सपने जैसा ही था...वो अपनी बहन की शहद से भीगी चूत को चूसने वाली थी...उसी चूत को जिसे उसके पापा सिर्फ़ दस मिनट बाद चोदने वाले थे...यानी उसके पापा चाहते थे की वो अपनी बहन की चूत खुद तैयार करे,ताकि वो बाद में उसकी चुदाई सही से कर सके
मनिका ने भी कुछ नही कहा...वैसे भी उसे एक्साइट करने के लिए सही ढंग से चूत की चुसाई करना बहुत ज़रूरी था ...और ये काम कनिका से अच्छी तरह कोई और कर ही नही सकता था...
जयसिंह मनिका की टाँगो के बीच से उठकर उपर बेड की तरफ चला गया...और कनिका उसकी जगह पर आकर बैठ गयी...उसने मनिका की दोनो टाँगो को दोनो दिशाओं में फेलाया और अपनी जीभ निकाल कर उसकी नोक से ढेर सारा शहद समेटा और दोनो हाथों की उंगलियों से मनिका की चूत की फांके फेला कर नीचे से उपर की तरफ लेजाते हुए उसकी चूत का अभिषेक कर दिया...एक लंबी आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह के साथ मनिका ने अपनी बगल में बैठे जयसिंह के लंड को बुरी तरह से पकड़ा और ज़ोर से मसल डाला...
''आआआआआआआआआआआआआआआआआहह ओह...... कनिकाआआआआआअ......''
कनिका की जीभ ने वो ठंडा -2 शहद उसकी खुली हुई चूत के अंदर धकेलना शुरू कर दिया था...
ये शहद वाली ट्रिक उसने कई दीनो से सोच के रखी हुई थी किसी लड़की के लिए...लेकिन उसे करने का मौका ऐसे आएगा ये उसने सपने में भी नही सोचा था...वो भी अपनी सगी बहन के साथ
जयसिंह भी अपने घुटनो के बल बैठकर अपने लंड को उसके मुँह के करीब ले आया...और मनिका उसे किसी गली की कुतिया की तरह चाटने लगी...अपनी जीभ से लपलपा कर उसने जयसिंह के लंड को अपने ही शहद से तर-बतर कर दिया...ठीक उसी तरह जिस तरह से उसकी चूत को कनिका ने कर दिया था इस वक़्त..
कनिका तो बड़े ही चाव से उसकी चूत के हर भाग को शहद में लपेट कर चाट रही थी....चूत से निकलता खट्टापन अब शहद में मिलकर कुछ अलग ही स्वाद दे रहा था...जो कनिका को काफ़ी पसंद आया...और उसे पता था की पापा को भी ये स्वाद पसंद आएगा...
कुछ देर बाद वो अपने रस से भीगे होंठ वहां से उठा कर बोली : "आओ पापा....अब ट्राइ करो...''
जयसिंह ने एक लंबी छलाँग लगाई
और बेड से नीचे उतर आया...कनिका के हटते ही उसने मोर्चा संभाल लिया और जब उसकी जीभ मनिका की चूत से टकराई तो वहां के बदले स्वाद को महसूस करते ही वो पागल सा हो गया...और पहले से कही ज़्यादा तेज़ी से उसकी चूत को अपने मुँह से चोदने लगा...
करीब दस मिनट तक अच्छी तरह से चूसने के बाद उसे एहसास हो गया की चूत की ऐसी चुसाई से बड़ा मजा इस दुनिया में और कोई नहीं है
और उसे ये भी अहसास हो गया की अब मनिका की चूत अंदर और बाहर से पूरी तरह गीली है...यही सही मौका है....उसका किला फतह करने का..
वो उठा और अपने लंड पर थोड़ी सी थूक मलकर उसने मनिका की गर्म चूत पर टीका दिया..
ये वो मौका था जब मनिका और कनिका अपनी साँसे रोके एक साथ उस पॉइंट को देख रही थी...जहाँ पर जयसिंह के लंबे लंड और मनिका की कमसिन चूत का मिलन हो रहा था.
जयसिंह ने धीरे-2 करके अपने लंड को उसके अंदर धकेलना शुरू किया...
मनिका : "उम्म्म्म.....पापा.....दर्द तो नही होगा ना....'' मनिका 2 बार चुद चुकी थी पर आज वो ऐसे रियेक्ट कर रही थी मानो उनकी पहली चुदाई हो
जयसिंह : "नही मेरी जान.....इतनी देर तक जो तेरी चूत को तैयार किया है, वो इसलिए ही ना की ये दर्द ना हो....अब सिर्फ़ मज़ा ही मज़ा मिलेगा...दर्द नही...''
और जैसे-2 उसका लंड मनिका के अंदर जाता जा रहा था, उसके चेहरे के एक्शप्रेशन बदलते जा रहे थे...
और धीरे-2 करते हुए जयसिंह ने अपना आधे से ज़्यादा लंड उसकी चूत में डाल दिया....अब तक मनिका की आँखो से आंसू निकलने लग गये थे....पर वो अपने मुँह पर हाथ रखकर अपनी चीख को बाहर नही निकालने दे रही थी...
जयसिंह ने उसके दोनो हाथो को बेड पर टीकाया और धीरे से उसके उपर झुकते हुए बोला : "बस बैबी.....थोड़ा सा और....'''
वो कुछ बोल पाती, इससे पहले ही जयसिंह ने अपना पूरा का पूरा भार उसके उपर एक झटके मे डाल दिया ....और उसका खंबे जैसा लंड मनिका की चूत को किसी ककड़ी की तरह चीरता हुआ अंदर तक घुसता चला गया....
''आआआआआआआआआआआआहह ऊऊऊऊऊऊओह मररर्र्र्र्र्र्र्र्र्रर्र्र्ररर गईईईईईईईईईईईईईईsssssssss ..... आआआआआआआआआहहsssssssssss पापाsssssssss..................................''
कनिका भागकर उसके करीब आई और बेड पर चड़कर वो मनिका के चेहरे को चूमने लगी
वो तो ऐसे दिलासा दे रही थी उसे जैसे वो बरसो से चुदती आई है, कनिका अपने होंठ उसके होंठो पर रखकर उसे बुरी तरह से चूसने भी लगी.
कनिका की किस्स्स का जवाब भी देना शुरू कर दिया था मनिका ने....दोनो एक दूसरे के होंठों को किसी भूखी बिल्लियों की तरह से चूस रही थी...और कनिका ने जब देखा की मनिका का दर्द अब गायब हो चुका है तो वो बेमन से वापिस अपनी जगह पर जाकर बैठ गयी..
मनिका ने जाते हुए उसे थेंक्स भी कहा...और फिर अपने पापा के साथ वो एक बार फिर से मस्ती के खेल में शामिल हो गयी.
अब तो वो अपनी टांगे दोनो दिशाओ में फेलाकर पूरे जोश से अपने पाप के लंबे लंड को अंदर तक ले रही थी...और सिसकारियाँ मारकर उसे और ज़ोर से चोदने के लिए उकसा भी रही थी...
''आआआआआआआआहह पापा........ मेरी जानssssssssss ....... और तेज़ी से करो.................. उम्म्म्ममममममममममम...... आहह पापा.............. मजा आ रहा है ....................... उम्म्म्ममममममममम..... इसी मज़े के लिए कब से तरस रही थी..... आआआआआआआआहह ........ ऐसे ही................... हमेशा मेरे अंदर ही रहना ...................... दिन रात...................चोदो मुझे ..................मेरे प्यारे पापा............................ सिर्फ़ मेरे पापा.................''
दूर बैठी छुटकी कनिका बुदबुदा उठी ..'तेरे ही क्यो....मेरे भी तो है...'