hotaks444
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संजू ने धीरे से उसके कंधे पर अपना हाथ रखा.., वो लड़की उसका हाथ रखते ही बुरी तरह से काँप गयी.., सिर उठाकर देखा तो संजू बोला
– घबराओ नही.., वो लोग भाग गये अब तुम्हें डरने की कोई ज़रूरत नही है…!
लड़की उठकर उसके सीने से लिपट गयी और फुट-फुट कर रो पड़ी.., संजू ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा – कॉन हो तुम और यहाँ क्या कर रही थी…?
लड़की – मे कोचिंग से आ रही थी.., कि तभी ये गुंडे मेरे पीछे लग लिए.., मेने तेज-तेज कदम बढ़ाकर बचने की कोशिश की लेकिन यहाँ अंधेरे में आते ही उन्होने मुझे ज़बरदस्ती पकड़ लिया और मेरे साथ….सू..सू…सू..!
संजू – कहाँ रहती हो, आओ मे तुम्हें छोड़ देता हूँ..,
लड़की – मे कुछ दूर पर एक कमरा किराए पर लेकर रहती हूँ, गाओं से यहाँ पढ़ने आई थी.., भगवान आपका भला करे..,
समय पर आकर आपने मेरी इज़्ज़त बचा ली.., वरना मे कहीं मूह दिखाने लायक नही रहती..!
संजू – चलो मे तुम्हें तुम्हारे कमरे तक छोड़ देता हूँ.., इतना कहकर वो अपनी बाइक पर जा बैठा, पीछे वो लड़की भी बैठ गयी…!
कुछ देर बाद वो एक मामूली सी बस्ती के एक कोने में बने एक छोटे से मकान के एक बाहरी साइड बने कमरे में बैठे थे…!
लड़की – मे आपको क्या कहकर बुलाऊ..?
संजू – मेरा नाम संजू है.., तुम मुझे अपना भाई मान सकती हो..,
लड़की – मेरा नाम निर्मला है.., और सच कहूँ तो आप मुझे मेरे भाई ही लगे.., जिसने अपनी जान जोखिम में डाल कर आज एक अंजान लड़की की इज़्ज़त बचाकर अपने भाई होने का सबूत दिया है…!
वैसे आप करते क्या हैं…?
संजू उसके इस सवाल पर चुप रह गया.., जब कुछ देर उसने कुछ नही बोला तो निर्मला बोली – कोई बात नही अगर आप नही बताना चाहते तो ना सही..,
वैसे भी इस अंजान शहर में आपको भाई मानकर मेने कोई तो अपना पाया है.., अब काम जो भी हो उससे हमारे नये रिश्ते पर क्या फरक पड़ना है…?
संजू – ऐसी बात नही है निर्मला.., दरअसल मे जो करता हूँ, उसे जानकर कहीं तुम मुझसे नफ़रत ना करने लगो..,
ना जाने मेरे मूह से क्यों तुम्हारे लिए बेहन शब्द निकल गया.., वरना मे तो इतना गिरा हुआ इंसान हूँ.., जिसने अपनी खुद की सग़ी बेहन को अपनी नाकामियों की बलि चढ़ा दिया…!
इतना कहते कहते संजू का गला भर आया.., लाख रोकने पर भी उसकी आँखों में दो बूँद पानी की तैर गयी…!
निर्मला ने उसके पास जाकर अपना सिर उसके कंधे पर टिका दिया.., हाथ से उसकी पीठ पर बड़े स्नेह से सहलाते हुए बोली –
मे ये कभी नही मान सकती कि तुम्हारे जैसा भाई अपनी बेहन के साथ कुछ भी ग़लत कर सकता हो या किया हो…!
ज़रूर कुछ ऐसे हालत रहे होंगे.., जिनके हाथों इंसान हमेशा मजबूर होता आया है.., अगर चाहो तो अपना गम इस बेहन के साथ शेयर कर सकते हो, मन हल्का हो जाएगा….!
संजू ने एक लंबी साँस लेकर अपनी आप बीती उसे सुनाई.., जिसे सुनकर उन दोनो की आँखें झर-झर बरसने लगी.., फिर माहौल को हल्का करते हुए निर्मला बोली…!
आज से ये बेहन हमेशा अपने भाई के साथ खड़ी होगी.., अब तुम अपने आपको अकेला मत समझना भाई…, मुझे तुम्हारे इन कामों से कोई गिला नही है..,
बस में ये चाहूँगी कि हो सके तो मुझे भी ऐसे हालातों से लड़ने लायक बना दो, जिससे फिर एक बार अपनी बेहन को हालातों की वजह से खोना ना पड़े…!
चार पैसे कमाने के लिए कोई भी काम ग़लत नही होता.., ग़लत होता है सही के साथ ग़लत करना.., अगर तुम चाहो तो मे भी तुम्हारे इस काम में हाथ बँटाना चाहूँगी.., जिससे तुम्हें ये ना लगे कि तुम कुछ ग़लत करते हो…!
कुछ देर तक उसे संजू ये सब ना करने की सलाह देता रहा.., फिर जब निर्मला ने कहा कि अगर तुम समझते हो कि ये काम मेरे लिए ग़लत है, तो फिर तुम भी छोड़ दो…!
उसके तर्क सुनकर संजू को झुकना ही पड़ा.., और उसे अपने साथ शामिल करने का प्रॉमिस करके वो वहाँ से चला गया…!
दूसरे दिन लीना ने भानु को अपने गॅंग के मेन मेन लोगों से मिलवाया.., युसुफ उससे पहले ही मिल चुका था.., लेकिन संजू आज ही मिला था..!
भानु की एहमियत लीना के लिए अपने से ज़्यादा देखकर संजू को कुछ अट-पटा सा लगा.., लेकिन अपने में मस्त रहने वाला संजू इस बात को नज़रअंदाज कर गया..!
बहरहाल कुछ दिन और ऐसे ही निकल गये.., इस बीच संजू निर्मला को कुछ लड़ाई के दाँव-पेंच सिखाने लगा..,
फिर एक दिन उसने उसे लीना से भी मिलवाया, और उसकी इच्छा उसे बताई.., लीना को स्टूडेंट्स की तो वैसे ही ज़रूरत रहती थी.., क्योंकि सबसे ज़्यादा ड्रग्स सप्लाइ कॉलेजस में ही होती है…!
तो भला उसे क्या एतराज हो सकता था.., लिहाजा निर्मला और संजू ज़्यादातर साथ साथ रहने लगे…, दोनो एक दूसरे की बहुत इज़्ज़त करते थे,
दोनो में भाई-बेहन का पाक रिस्ता था.., दोनो के बीच किस तरह का रिस्ता है ये बात संजू ने अपने वाकी साथियों को भी बता दी थी..!
फिर भला उसके गॅंग में किसकी मज़ाल जो उसे गंदी नज़र से देख भी सके…, धीरे-धीरे निर्मला के और दोस्त भी उसके साथ आगये और धंधे में संजू का हाथ बंटाने लगे..!
धंधे की बातों के अलावा लीना उर्फ कामिनी और भानु के बीच अक्सर ये बातें होती रहती थी कि कैसे और किस तरह से अंकुश से कुछ इस तरह से बदला लिया जाए कि वो जिंदा रहते हुए भी तिल-तिल कर मरे…!
उधर इन सारी साज़िशों से दूर शरमा फॅमिली में खुशियों की नित नयी कहानियाँ जनम लेती रहती थी.., सब लोग मिल-जुलकर शहर वाले बंगले में रहने लगे थे…!
हफ्ते में दो एक बार प्राची और एसएसपी कृष्ण कांत आकर परिवार के साथ समय बिताते थे.., वहीं बाबूजी महीने में एक दो बार गाओं जाकर दोनो चाचियों के साथ समय व्यतीत कर लेते थे..,
मे भी कभी कभार छोटी चाची से मिलने चला जाता था, वो भी अपने बेटे को मिलने चाचा के साथ शहर आ जाती थी…!
भाभी और निशा दोनो बहनें मेरे लिए कभी-कभी जन्नत भरा माहौल पैदा कर देती..,
कुल मिलाकर कुछ किलोमीटर की दूरियाँ भी हम सबके बीच ना के बराबर ही थी…!
– घबराओ नही.., वो लोग भाग गये अब तुम्हें डरने की कोई ज़रूरत नही है…!
लड़की उठकर उसके सीने से लिपट गयी और फुट-फुट कर रो पड़ी.., संजू ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा – कॉन हो तुम और यहाँ क्या कर रही थी…?
लड़की – मे कोचिंग से आ रही थी.., कि तभी ये गुंडे मेरे पीछे लग लिए.., मेने तेज-तेज कदम बढ़ाकर बचने की कोशिश की लेकिन यहाँ अंधेरे में आते ही उन्होने मुझे ज़बरदस्ती पकड़ लिया और मेरे साथ….सू..सू…सू..!
संजू – कहाँ रहती हो, आओ मे तुम्हें छोड़ देता हूँ..,
लड़की – मे कुछ दूर पर एक कमरा किराए पर लेकर रहती हूँ, गाओं से यहाँ पढ़ने आई थी.., भगवान आपका भला करे..,
समय पर आकर आपने मेरी इज़्ज़त बचा ली.., वरना मे कहीं मूह दिखाने लायक नही रहती..!
संजू – चलो मे तुम्हें तुम्हारे कमरे तक छोड़ देता हूँ.., इतना कहकर वो अपनी बाइक पर जा बैठा, पीछे वो लड़की भी बैठ गयी…!
कुछ देर बाद वो एक मामूली सी बस्ती के एक कोने में बने एक छोटे से मकान के एक बाहरी साइड बने कमरे में बैठे थे…!
लड़की – मे आपको क्या कहकर बुलाऊ..?
संजू – मेरा नाम संजू है.., तुम मुझे अपना भाई मान सकती हो..,
लड़की – मेरा नाम निर्मला है.., और सच कहूँ तो आप मुझे मेरे भाई ही लगे.., जिसने अपनी जान जोखिम में डाल कर आज एक अंजान लड़की की इज़्ज़त बचाकर अपने भाई होने का सबूत दिया है…!
वैसे आप करते क्या हैं…?
संजू उसके इस सवाल पर चुप रह गया.., जब कुछ देर उसने कुछ नही बोला तो निर्मला बोली – कोई बात नही अगर आप नही बताना चाहते तो ना सही..,
वैसे भी इस अंजान शहर में आपको भाई मानकर मेने कोई तो अपना पाया है.., अब काम जो भी हो उससे हमारे नये रिश्ते पर क्या फरक पड़ना है…?
संजू – ऐसी बात नही है निर्मला.., दरअसल मे जो करता हूँ, उसे जानकर कहीं तुम मुझसे नफ़रत ना करने लगो..,
ना जाने मेरे मूह से क्यों तुम्हारे लिए बेहन शब्द निकल गया.., वरना मे तो इतना गिरा हुआ इंसान हूँ.., जिसने अपनी खुद की सग़ी बेहन को अपनी नाकामियों की बलि चढ़ा दिया…!
इतना कहते कहते संजू का गला भर आया.., लाख रोकने पर भी उसकी आँखों में दो बूँद पानी की तैर गयी…!
निर्मला ने उसके पास जाकर अपना सिर उसके कंधे पर टिका दिया.., हाथ से उसकी पीठ पर बड़े स्नेह से सहलाते हुए बोली –
मे ये कभी नही मान सकती कि तुम्हारे जैसा भाई अपनी बेहन के साथ कुछ भी ग़लत कर सकता हो या किया हो…!
ज़रूर कुछ ऐसे हालत रहे होंगे.., जिनके हाथों इंसान हमेशा मजबूर होता आया है.., अगर चाहो तो अपना गम इस बेहन के साथ शेयर कर सकते हो, मन हल्का हो जाएगा….!
संजू ने एक लंबी साँस लेकर अपनी आप बीती उसे सुनाई.., जिसे सुनकर उन दोनो की आँखें झर-झर बरसने लगी.., फिर माहौल को हल्का करते हुए निर्मला बोली…!
आज से ये बेहन हमेशा अपने भाई के साथ खड़ी होगी.., अब तुम अपने आपको अकेला मत समझना भाई…, मुझे तुम्हारे इन कामों से कोई गिला नही है..,
बस में ये चाहूँगी कि हो सके तो मुझे भी ऐसे हालातों से लड़ने लायक बना दो, जिससे फिर एक बार अपनी बेहन को हालातों की वजह से खोना ना पड़े…!
चार पैसे कमाने के लिए कोई भी काम ग़लत नही होता.., ग़लत होता है सही के साथ ग़लत करना.., अगर तुम चाहो तो मे भी तुम्हारे इस काम में हाथ बँटाना चाहूँगी.., जिससे तुम्हें ये ना लगे कि तुम कुछ ग़लत करते हो…!
कुछ देर तक उसे संजू ये सब ना करने की सलाह देता रहा.., फिर जब निर्मला ने कहा कि अगर तुम समझते हो कि ये काम मेरे लिए ग़लत है, तो फिर तुम भी छोड़ दो…!
उसके तर्क सुनकर संजू को झुकना ही पड़ा.., और उसे अपने साथ शामिल करने का प्रॉमिस करके वो वहाँ से चला गया…!
दूसरे दिन लीना ने भानु को अपने गॅंग के मेन मेन लोगों से मिलवाया.., युसुफ उससे पहले ही मिल चुका था.., लेकिन संजू आज ही मिला था..!
भानु की एहमियत लीना के लिए अपने से ज़्यादा देखकर संजू को कुछ अट-पटा सा लगा.., लेकिन अपने में मस्त रहने वाला संजू इस बात को नज़रअंदाज कर गया..!
बहरहाल कुछ दिन और ऐसे ही निकल गये.., इस बीच संजू निर्मला को कुछ लड़ाई के दाँव-पेंच सिखाने लगा..,
फिर एक दिन उसने उसे लीना से भी मिलवाया, और उसकी इच्छा उसे बताई.., लीना को स्टूडेंट्स की तो वैसे ही ज़रूरत रहती थी.., क्योंकि सबसे ज़्यादा ड्रग्स सप्लाइ कॉलेजस में ही होती है…!
तो भला उसे क्या एतराज हो सकता था.., लिहाजा निर्मला और संजू ज़्यादातर साथ साथ रहने लगे…, दोनो एक दूसरे की बहुत इज़्ज़त करते थे,
दोनो में भाई-बेहन का पाक रिस्ता था.., दोनो के बीच किस तरह का रिस्ता है ये बात संजू ने अपने वाकी साथियों को भी बता दी थी..!
फिर भला उसके गॅंग में किसकी मज़ाल जो उसे गंदी नज़र से देख भी सके…, धीरे-धीरे निर्मला के और दोस्त भी उसके साथ आगये और धंधे में संजू का हाथ बंटाने लगे..!
धंधे की बातों के अलावा लीना उर्फ कामिनी और भानु के बीच अक्सर ये बातें होती रहती थी कि कैसे और किस तरह से अंकुश से कुछ इस तरह से बदला लिया जाए कि वो जिंदा रहते हुए भी तिल-तिल कर मरे…!
उधर इन सारी साज़िशों से दूर शरमा फॅमिली में खुशियों की नित नयी कहानियाँ जनम लेती रहती थी.., सब लोग मिल-जुलकर शहर वाले बंगले में रहने लगे थे…!
हफ्ते में दो एक बार प्राची और एसएसपी कृष्ण कांत आकर परिवार के साथ समय बिताते थे.., वहीं बाबूजी महीने में एक दो बार गाओं जाकर दोनो चाचियों के साथ समय व्यतीत कर लेते थे..,
मे भी कभी कभार छोटी चाची से मिलने चला जाता था, वो भी अपने बेटे को मिलने चाचा के साथ शहर आ जाती थी…!
भाभी और निशा दोनो बहनें मेरे लिए कभी-कभी जन्नत भरा माहौल पैदा कर देती..,
कुल मिलाकर कुछ किलोमीटर की दूरियाँ भी हम सबके बीच ना के बराबर ही थी…!