Bhabhi ki Chudai देवर भाभी का रोमांस - SexBaba
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Bhabhi ki Chudai देवर भाभी का रोमांस

hotaks444

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लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)




आईईईईईईईईई……. भाबीईईईईईईई………..मररररर….. गय्ाआ…..रीईईईईईईईईईईईईईईईईईई……उफ़फ्फ़…उफ़फ्फ़….रुकूओ…प्लीज़…

क्या हुआ मेरे शेर….को…, मेरे लेडल देवेर को…! पुच….!! मेरा राजा बेटा..!! क्या हुआ..? बताओ मुझे….? मोहिनी भाभी अपने लाड़ले देवर अंकुश के गाल को प्यार से सहलाते हुए बोली.

अंकुश – अरे… उठो.. जल्दी…मेरा फटा जा रहा है…! आईईई….माआ…!

मोहिनी – अरे क्या फटा जा रहा है..…. ?

अंकुश – अरे भाभी ! समझा करो… प्लीज़ उठो मेरे उपर से.. मेरा लंड फट गया… अह्ह्ह्ह…

मोहिनी अपनी एक चुचि को उसके मूह में ठूँसती हुई बोली- कुच्छ नही फटा, लो इसको चूसो.. सब ठीक हो जाएगा…!

कितना नाटक करता है ये लड़का.. उफ़फ्फ़… सांड़ हो रहा है, अभी भी कहता है फटा जा रहा, अरे तुम्हारी उमर के लड़के कोरी चूत को भोसड़ा बना देते हैं, और ये लाट साब… उफ़फ्फ़… हां ऐसे ही चूसो… इस्से… खा.. जाओ… शाबाश… ये हुई ना मर्दों वाली बात..आहह…..

फिर धीरे से और थोड़ा सा दबाब डाल दिया अपनी 38” की मोटी गान्ड का उसके लंड के उपर और आधे लंड को अपनी चूत के अंदर कर लिया…!

एक बच्चे की माँ मोहिनी भाभी की चूत भी आधे लंड में ही पानी देने लगी, क्योंकि उसके लाड़ले देवर का लंड था ही इतना मोटा तगड़ा.

भाभी के दबाब डालते ही अंकुश ने उसकी चुचि को मूह से बाहर निकाल कर एक बार फिर से चीख उठा…भाभिईिइ… मान जाओ ना…. दर्द हो रहा है…प्लीज़…!

अभी भी दर्द हो रहा है… लो इसे चूसो, और उसने दूसरी चुचि उसके मूह में ठेल दी… और उसके माथे को चूमते हुए उसके बालों को मसाज देती हुई, आँख बंद करके पूरी गान्ड उसकी जांघों पर रख दी….

एक साथ दोनो की ही चीख निकल गयी, और अब वो लंबी-2 साँसें ले रहे थे..

मोहिनी अब शांति से उसकी जांघों पर अपनी गान्ड को लंड पर रख कर बैठी थी, फिर उसके चेहरे के उपर झुक कर उसके होंठो को चूम लिया और शरारती स्माइल अपने होठों पर लाकर बोली – सच में बड़ा कमाल का लंड हैं मेरे प्यारे देवर का..

एक बच्चे की माँ की भी ऐसी की तैसी कर दी इसने तो…एकदम खुन्टा सा गढ़ गया है…. हूंम्म…!

अंकुश – ये आपका ही सब किया धरा है… 5 साल से मालिश कर रही हो आप ! तो होगा ही ना..!

मोहिनी – हूंम्म… सो तो है.. वैसे अब दर्द तो नही हो रहा मेरे राजा को…!

अंकुश – अभी थोड़ा सा फील होता है.. कभी- 2, पर ज़्यादा नही है..

मोहिनी – तो फिर शुरू करें अब.. और उसने अपनी गान्ड को धीरे से उपर उठाया, और उसके साडे सात इंच लंबे लंड के सुपाडे तक अपनी चूत के मूह को लाई, और फिरसे धीरे से बैठ गयी…!

दोनो के अंगों में इतनी जोरदार सुर सुराहट हुई कि एक साथ दोनो की सिसकी निकल गयी और उनकी आँखें मूंद गयी…

ईईीीइसस्स्स्स्स्शह……आअहह…..सस्स्सुउउऊहह….. मेरी चुचियों को मस्लो देवरजीीीइ… बहुत मज़ा है इनमें…. हाआँ… और जोर्र्र्र्सस्सीई….आहह…

अब धीरे-2 उसके उठने बैठने की गति बढ़ती जा रही थी….

अंकुश जिसकी आज जीवन की पहली चुदाई थी… वो तो पता नही कोन्से लोक में था आज… उसकी प्यारी भाभी ने आज अपना वायदा जो पूरा किया था…

कुच्छ देर में ही मोहिनी की राम प्यारी ने हथियार डाल दिए और वो अपने लाड़ले देवर के उपर पसर गयी.
 
कुच्छ देर में ही मोहिनी की राम प्यारी ने हथियार डाल दिए और वो अपने लाड़ले देवर के उपर पसर गयी.

अंकुश को लगा कि पता नही भाभी को क्या हुआ, घबरा कर उसने उसके कंधे पकड़ कर हिलाया, भाभी..भाभी… क्या हुआ आपको… ?

वो मस्ती में कुन्मुनाई, और धीरे से अपनी बोझिल आँखों से उसकी ओर देखा और मुस्कुराकर बोली… मुझे तो कुच्छ नही हुआ, बस इस कोरे करार मूसल की मार मेरी मुनिया ज़्यादा देर झेल नही पाई इसलिए थोड़ा सुस्ता रही थी..

अंकुश – लेकिन में क्या करूँ, ये साला फटा जा रहा है, अब इसका क्या होगा..?

मोहिनी – अरे ! तो मैं हूँ ना, ये बस स्टार्ट-अप था, इसके उद्घाटन का..खेल तो अब शुरू होगा… लेकिन बाबू, अब तुम्हें मेहनत करनी होगी ठीक है..

और वो उसके उपर से साइड में लुढ़क गयी और अपनी टाँगें चौड़ा कर लेट गयी..
लो आ जाओ, और बुझालो इसकी प्यास, लेकिन प्यार से मोरे राजा बेटा, तुम्हारा मूसल ज़्यादा कुटाई ना कर्दे मेरी ओखली की…

अंकुश का बुरा हाल हो रहा था, अब उसको जितनी जल्दी हो अपने लंड को शांत करना था, वरना फटने का ख़तरा बढ़ने लगा था.

उसने भाभी की टाँगों के बीच घुटने मोड़ कर बैठते ही आव ना देखा ताव अनाड़ी बालमा… लिसलीसी चूत के उपर रॅंडम्ली अपना सोता सा लंड अड़ा दिया और लगा धक्का देने….

वो तो अच्छा हुआ कि दोनो हथेलिया भाभी के दोनो बगल में होके पलंग पर टिक गयी और वो चोदु पीर गिरने से बच गया, वरना आज भाभी का मूह सूजना तय था उसके सर की चोट से.

हुआ यूँ कि, पट्ठे को चुदाई का कोई आइडिया तो था नही, उसने सोचा लंड चूत के उपर तो रख ही दिया है, चला ही जाएगा अंदर जैसे कि चूत मूह खोले उनके साब का ही इंतेज़ार कर रही हो.

जैसे ही आवेश में आकर धक्का लगाया, चिकनी हो रही चूत, सर्ररर… से फिसलता हुआ मुसलचंद भाभी की नाभि के होल से अटक गया…

ईीीइसस्स्शह….. क्या करते हो मेरे अनाड़ी देवर…? हटो ज़रा….!!

वो थोड़ा उपर हुआ तो भाभी ने अपनी पतली-2 उंगलियों से अपनी दुलारी के होठों को खोला और बोली – लो अब कुच्छ दिख रहा है…?

अंकुश – आहह… भाभी अंदर से क्या मस्त लाल-लाल दिख रही आपकी चूत… आह जी कर रहा है, इसे खा जाउ…!

मोहिनी – अह्ह्ह्ह… तो रोका किसने है… खा जाओ ना..!

अंकुश ने झट से उसकी लाल अंदरूनी दीवारों को अपनी खुरदूरी जीभ से खूब ज़ोर लगा कर रगड़ दिया….

आअहह…….हाइईईईईई….मैय्ाआ…. उफफफ्फ़…ये कर डॅलायया…. अब चूसो ईसीई…खा जाओ…मेरे प्यरीए…हान्न्न.. ऐसी.. हीईिइ…चूसो…अपनी जीभ घुसा दो…और अंदर…..सस्सिईईईईई…..आईई…राअंम्म्म……मार्रीइ…रीए…

अंकुश ने मज़े-2 में अपनी प्यारी भाभी की चूत के पटों को अपने मूह में भर लिया और उसको ज़ोर से दाँत गढ़ा दिए…

नहियीई…इतनी ज़ोर से मत कॅटू…

अब मोहिनी भाभी से कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा था, अंकुश तो बाबलों की तरह लगा था, उसको कुच्छ ठीक से सूझ ही नही रहा था, जहाँ नज़र जाती, जन्नत ही लगने लगती और उसी में डूबने लग जाता..

मोहुनी ने उसके बाजू पकड़ कर अपने उपर खींच लिया और उसके होठों को चूम कर बोली – आहह… अब देर मत करो… लो डालो इसमें और अपनी चूत की फांकों को खोल दिया…
 
[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अब अंकुश को समझ आया कि असल होल कॉन्सा है, तो उसने अपने लंड का सुपाडा उसके मूह पर रखा, उसका लंड इतना गरम हो चुका था मानो, किसी भट्टी से निकाल के लाया हो.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अब आराम से धीरे-2 इसको अंदर डालो… देवर जीि…. हाआँ … ऐसे ही… आराम से… हां.. डालते जाओ… हान्ं बस… रूको ज़रा…आअहह… कितना गया… ईसस्शह… फिर उसने खुद ही अपनी उंगलियों से टटोल कर चेक किया.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अभी तीन-चौथाई लंड ही अंदर गया था, और मोहिनी की चुदि-चुदाई चूत ऐसी धँसा-डॅस भर गयी थी, मानो अब उसकी इच्छा ही ना हो और लेने की.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मोहिनी – हां अब धीरे-2 पहले इतने से ही अंदर-बाहर करो इसे..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अंकुश ने उतना ही लंड अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया, कुच्छ देर में ही भाभी को मज़ा बढ़ने लगा और उसने नीचे से अपनी कमर उचकाना शुरू कर दिया…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अंकुश और भाभी चुदाई में ऐसे खो गये कि उन्हें पता ही नही चला कि कब पूरा लंड उसकी चूत में चला गया, अब उसको उसका सुपाडा अपनी बच्चेदानी के एन मूह पर फील होने लगा था.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अंकुश को अब अपने उपर कोई अंकुश नही रहा, और अपनी हथेलियों को पलग पर जमा कर पूरी ताक़त से तेज-तेज धक्के लगाने लगा, मज़े ने उसे अब सब सिखा दिया.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]भाभी को अपनी जिंदगी की अब तक की सारी चुदाई फीकी लगने लगी आज की चुदाई के आगे. वो एक बार और झड चुकी थी, लेकिन अपने प्यारे राजा को उसने रोका नही.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]चाहे जो हो जाए आज वो उसको खुशी देकर ही रहेगी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उसने थोड़ा उसके सीने पर हाथ रखके रुकने का इशारा किया, और अपने उपर से हटा कर वो उल्टी हो गयी और अपनी चौड़ी गान्ड को अंकुश की आगे करके कुतिया की तरह औंधी हो गयी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अंकुश को अब और कुच्छ समझने की ज़रूरत नही थी, उसे तो बस अब सिर्फ़ चूत का छेद ही दिखाई दे रहा था.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]झट से पीछे आया, और सट से एक ही झटके में पूरा लंड पेल दिया भाभी की रसीली चूत में.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]भाभी के मूह से फिरसे एक मादक कराह निकली, लेकिन उसे रोका नही..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]इस पोज़ में अंकुश को और ज़्यादा मज़ा आ रहा था, उसके धक्कों की स्पीड इतनी तेज थी, कि अगर कोई गिनना चाहे तो डेफनेट्ली नाकाम हो जाएगा..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]आख़िरकार उसको अपनी मंज़िल नज़र आने ही लगी, उसको लगा जैसे कोई बहुत बड़ा झंझावाट सा उसके पेलरों से उठ रहा है, जो झटके मारता हुआ, लंड के रास्ते भाभी की चूत में देदनादन पिचकारियाँ छोड़ने लगा.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]बाप रे ! इतना माल, लंड अंदर होते हुए भी चूत से बाहर घी जैसा उसका मसाला भाभी की जांघों से रिसने लगा.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उसकी पिचकारी की धार से भाभी भी मस्त होकर फिर एक बार झड़ने लगी और इतनी झड़ी कि उसकी पूरी टंकी खाली हो गयी और वो औंधे मूह बिस्तर पर पसर गयी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अंकुश भी भाभी की चौड़ी पीठ पर ही लद गया, और हाँफने लगा.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]कुच्छ देर ऐसे ही बेसुधि में दोनो पड़े रहे, फिर वो भाभी की बगल को पलट गया, तब उसका लंड पच… की आवाज़ के साथ चूत से बाहर आया.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अपने अध्खडे लंड को भाभी की कमर से सटाये, उसकी पीठ पर अपना एक हाथ और जांघों पर अपनी एक टाँग चढ़ा कर वो भाभी की बगल में पड़ा-2 सो गया….!![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]शंकर लाल शर्मा, *** गाओं के अति-प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, एक बार को अपना काम भले ही बिगड़ता रहे, लेकिन अगर कोई मदद माँगने इनके द्वार पर आगया, तो खाली हाथ तो कम-से-कम जाएगा नही. यथासंभव उसे यहाँ से मदद ज़रूर मिलेगी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उनकी इसी नेक-नीयत के चर्चे आस-पास के सभी गाँवो में थे. अपने जमाने के इस गाओं के वो सबसे अधिक शिक्षित व्यक्ति थे और गाओं के ही स्कूल में शिक्षक के तौर पर कार्यरत थे.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अपने पिता के चारों बेटों में सबसे बड़े शंकर लाल, शिक्षा का महत्व जानते थे, इसी कारण अपने छोटे भाइयों को भी पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया करते थे, लेकिन वो पढ़ नही पाए.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]दो बहनें भी थी जो तीन भाइयों से छोटी थी, लड़कियों को उस जमाने में ज़्यादा पढ़ाया लिखाया नही जाता था, फिर भी उनके कहने पर गाओं की आठवी क्लास तक की शिक्षा उन्हें दिलवाई ही दी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]पिता के देहांत के बाद सारे परिवार की ज़िम्मेदारी उनको ही उठानी पड़ी, हालाँकि सभी भाई बहनों की शादियाँ तो पिता के सामने ही हो गयीं थीं.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]शंकर लाल की पत्नी विमला देवी ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की परिवार को एक सुत्र में बाँधने की, लेकिन छोटे भाइयों के विचार ना मिलने के कारण सभी परिवार अलग-2 रहने लगे.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]पिता लंबी-चौड़ी जायदाद छोड़ कर गये थे, सो बराबर-2 हिस्सों में बाँट दी गयी. चूँकि शंकर लाल जी शिक्षक भी थे तो दूसरों से कुच्छ ज़्यादा अमन चैन से थे, उपर से उनके बच्चे भी अब बड़े हो चुके थे.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]शंकर लाल के तीन बेटे और एक बेटी थी, बेटी दो बेटों के बाद पैदा हुई थी और उसके बाद फिर एक और बेटा…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]सबसे छोटा बेटा जिसका नाम अंकुश है, जब आठवीं क्लास में पढ़ता था, तब उसके सबसे बड़े भाई राम मोहन की शादी हुई, शादी के समय राम मोहन शहर में रहकर ग्रॅजुयेशन कर रहे थे.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]दूसरे भाई कृष्णा कांत 12थ में पढ़ रहे थे, बेहन रमा अपने भाई कृष्णा कांत के साथ ही साइकल पर बैठ कर उन्ही के स्कूल में पढ़ती थी, जो इस समय 10थ में थी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]शंकर लाल अपने सभी बच्चों का समान रूप से ध्यान रखते थे, और उनकी हर जायज़ माँगों को पूरा करने की कोशिश करते जिससे उनके बच्चों को अपना भविष्य बनाने में कोई अड़चन ना आए.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]गाओं में उस दौरान शादियाँ छोटी उमर में ही करदी जाती थी. शादी के समय राम मोहन की पत्नी मोहिनी 12थ में पढ़ती थी, नयी बहू के घर आने के तीसरे दिन ही उनके मायके विदा करा ले गये और गौने का छेता लगभग दो साल बाद का निकला.[/font]
 
[font=Arial, Helvetica, sans-serif]शादी के समय मोहिनी एकदम पतली दुबली कमजोर सी लड़की, लगता था मानो किसी लकड़ी के फ्रेम पर बनारसी साड़ी टाँग दी हो, और वैसे भी कुच्छ ज़्यादा समय अपनी ससुराल में गुज़ार भी नही पाई, ये भी हो सकता है कि भाई राम मोहन अपनी पत्नी की शक्ल भी देख पाए थे कि नही.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अब गाओं की रस्मो-रिवाज.. निभानी तो थी ही. बेचारे राम मोहन… शादी हुई ना हुई एक बराबर.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]खैर घर परिवार के लिए तो खुशी की बात थी, उनके भरे-पूरे परिवार में वो सबसे पहली शादी जो थी, तो स्वाभाविक था कि खूब धूम-धाम से खुशियाँ मनाई गयी. सभी चाचा भतीजों ने खूब बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]शादी के एक साल के अंदर ही राम मोहन का ग्रॅजुयेशन पूरा हो गया और अब वो बी.एड की पढ़ाई में जुट गये, पिता का प्लान उनको किसी कॉलेज में लेक्चरर बनाने का था.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अब कृष्णा कांत भी बड़े भाई के पास शहर पहुँच गये थे अपने ग्रॅजुयेशन करने के लिए,[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]सब कुच्छ सही चल रहा था, कि ना जाने विमला देवी को कोन्सि बीमारी ने घेर लिया, उन्होने बिस्तर ही पकड़ लिया, बहुत इलाज़ कराया लेकिन कोई फ़ायदा नही हुआ.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]बेटे के गौने की तिथि में अभी 6 महीने वाकी थे लेकिन माँ की हालत दिनो दिन गिरती देख पिताजी ने बेटे का गौना अति-शीघ्र करने के लिए अपने समधी से बात की.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]वो भी भले लोग समस्या को समझ, राज़ी हो गये और आनन-फानन में बेटे का गौना करा लिया, बहू के आते ही माँ विमला देवी परलोक सिधार गयी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मोहिनी अभी खुद भी एक बच्ची ही थी, जो अभी 19 वे साल में चल ही रही थी, उसको अपने छोटी ननद और देवर को अपने बच्चों की तरह संभालना था… कैसे ? ये उसकी समझ में नही आ रहा था.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]पति शहर में रहकर शिक्षा ले रहे थे, ससुर से घूँघट करना पड़ता था.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]ससुर बहू के बीच का कम्यूनिकेशन ज़्यादा तर छोटे बेटे अंकुश के या ननद रमा के माध्यम से ही होता था.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]वैसे ननद- भौजाई में 3-4 साल का ही एज डिफरेन्स था, रमा ने समझदारी दिखाते हुए, अपनी भाभी को अपनी दोस्त की तरह व्यवहार करना शुरू कर दिया, जिसके चलते मोहिनी का दिल इस घर में लगने लगा, और जल्दी ही वो परिश्थितियो के हिसाब से ढलने लगी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]कुच्छ ही दिनो में अंकुश का अपनी भाभी के प्रति एक माँ बेटे जैसा लगाव हो गया, अब वो उसकी हर ख्वाइश का ध्यान रखती, अंकुश भी हर छोटी बड़ी ज़रूरतों के लिए अपनी भाभी को ही बोलता.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]देवर भाभी का लगाव इतना बढ़ गया कि अब उसको अपनी भाभी के दुलार के वगैर नींद नही आती थी, कभी-2 तो वो उसकी गोद में ही सर रख कर सो जाता था. फिर वो बेचारी सोते हुए को जैसे-तैसे उठा कर उसके बिस्तर तक पहुँचाती या फिर वो खुद भी उसके बगल में ही सो जाती.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मोहिनी अब शादी के समय वाली दुबली पतली लड़की नही रही थी, बीते डेढ़ सालों में उसके शरीर में काफ़ी बदलाव आ गया था, वो अब एक सुंदर नयन नक्श की गोरी-चिटी मध्यम कद काठी 5’5” की हाइट 32-27-30 के फिगर वाली सुन्दर युवती हो गयी थी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]पतले-2 गुलाबी होठ, गोल चेहरा, हल्के भरे हुए गुलाबी गाल जिनमे दोनो साइड हँसने पर डिंपल पड़ते थे, सुराही दार लंबी गर्दन, कमर तक लंबे घने काले स्याह बाल, कुल मिलाकर एक पूर्ण युवती थी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]गौने के बाद अंकुश ने जब अपनी भाभी को बिना घूँघट के देखा तो वो उसे किसी देवी के मानिंद लगी, और वही छवि उसने अपने मनो-मस्तिष्क में उसकी बिठा ली…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]पति-पत्नी का मिलन उनके गौने के भी काफ़ी दिनो के बाद ही हुआ था, क्योंकि सास के देहांत के बाद कुच्छ महीनो तक तो सभी शोक संतप्त ही थे.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]राम मोहन जब भी घर आते थे, तो जैसे-तैसे सकुच-संकोच करके समय निकाल पाते, उपर से दुलारा देवर, जो हर समय अपनी प्यारी भाभी के दामन से ही चिपका रहता था.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]माँ का दुलारा, सबसे छोटा बेटा ही होता है, उनकी मौत के बाद भाभी उसको संभालने में कोई कसर नही रखना चाहती थी, बेचारे राम मोहन संकोच वश कुच्छ कह भी नही पाते थे, बिन माँ का बच्चा वो भी छोटा भाई… कहें भी तो क्या..?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]बहू के घर में रहते, पिता घर में कम ही आते थे… उनका ज़्यादा तर समय तो स्कूल में बच्चों के बीच, उसके बाद खेतिवाड़ी की देखभाल में ही चला जाता था. घर वो बस खाने के लिए ही आते थे.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]गौने के तीन महीने तक भी उनकी सुहागरात का कोई अता-पता नही था, फिर एक दिन रमा जो अब ऐसी परिस्थितियों को समझने लगी थी, उसने इशारों-2 में अपने छोटू (अंकुश को प्यार से सभी छोटू ही बुलाते थे) को समझाने की कोशिश की….[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अगर आप लोगों की इज़ाज़त हो तो यहाँ से ये कहानी अंकुश (छोटू) की ज़ुबानी शुरू करता हूँ.. इज़ाज़त है ना..! ओके दॅन..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]हम राम मोहन भैया को बड़े भैया और कृष्णा कांत भैया को छोटे भैया कह कर बुलाते हैं.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]बड़े भैया हर शनिवार की शाम घर आते थे, और मंडे अर्ली मॉर्निंग निकल जाते थे.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]एक दिन शनिवार देर शाम को भैया घर आने वाले थे, मे और भाभी आपस में बातें करते हुए, मस्ती मज़ाक भी कर रहे थे.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]भाभी जब हसती हैं तो उनके दोनो गालों में गड्ढे (डिम्पले) पड़ते हैं, मे उनमें अपनी उंगली घुसा कर हल्के-2 सहला देता था, तो भाभी और ज़्यादा मस्ती करने लगती.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]तो उस दिन भैया आने वाले थे, रमा दीदी ने मुझे इशारे से अपने पास बुलाया और बोली – छोटू ! भैया मेरी एक बात मानेगा..?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – हां ! दीदी बोलो क्या बात है…?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]रामा – बड़े भैया जब आते हैं ना तब तू ना ! थोड़ा भाभी से अलग रहा कर..![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे भोलेपन से बोला – क्यों दीदी ? ऐसा क्यों बोल रही हो..? उन्होने तो मुझे कभी ऐसा बोला नही ..![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]रामा – वो शर्म की वजह से कुच्छ नही बोलती, तू ना ! उतने टाइम मेरे पास आकर पढ़ लिया कर…![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – नही दीदी ! मुझे तो भाभी के पास बैठ कर पढ़ना ज़्यादा अच्छा लगता है..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]रामा – ओफफफू…तू समझा कर पागल..! देख भैया उनके पति हैं ना ![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – तो उसमें क्या..? मे थोड़ी ना उनको भाभी से बात करने के लिए ना बोलता हूँ..![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]रामा – तू बिल्कुल पागल ही है… अरे बुद्धू.. पति-पत्नी अकेले में ही ज़्यादा अच्छे से बात कर पाते हैं.. ! अब बोल मानेगा ना मेरी बात..![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – ठीक है दीदी, मे भाभी से बोलके आपके पास आ जाउन्गा.. लेकिन भाभी की तरह आपको मेरे साथ मस्ती करनी पड़ेगी जब बोर हो जाउन्गा तो..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]रामा – ठीक है ! मेरा प्यारा छोटू कितना समझदार है..! चल अब तू खेलने जा और आज हम दोनो रात को एक साथ बैठ कर पढ़ेंगे.. ओके.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे उनको ओके बोलकर बाहर खेलने चला गया. वैसे मे बहुत कम ही साथ के मोहल्ले के बच्चो के साथ खेलता था, क्योंकि वो सब आवारा किस्म के थे, पढ़ने लिखने से उनको कोई मतलब नही था.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उनके परिवार में भी कोई पढ़ने लिखने वाला नही था, जो उनको रोके. इसलिए बाबूजी (पिताजी) ज़्यादा खेलने भी नही देते ऐसे बच्चों के साथ.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उस दिन देर शाम भैया घर आए, हम सबने मिलकर खाना खाया, बाबूजी ने भैया से दोनो भाइयों की पढ़ाई लिखाई के बारे में बात-चीत की फिर कुच्छ देर खाने के बाद भी बैठे साथ में.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]भाभी और दीदी ने मिलकर घर का काम निपटाया, फिर जब बाबूजी, बाहर चले गये तो दीदी ने मुझे अपने पास पढ़ने के बहाने से बुला लिया. हम दोनो पढ़ाई में लग गये.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]जब हम सब वहाँ से चले गये, भाभी किचेन में बर्तन साफ कर रही थी, भैया ने चुपके से उनको पीछे से जाकड़ लिया और उनके गले पर किस कर लिया.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अचानक बिना किसी उम्मीद के भाभी को एक झटका सा लगा और वो हड़बड़ा कर पलट गयी, हड़बड़ाहट में उनका सर भैया की नाक में लगा, भैया हाथों से नाक दबाए खड़े रह गये, दर्द से उनकी आँखों में पानी आ गया..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]भाभी झट से उनके पैरों में गिर गयी और गिडगिडाते हुए बोली- सॉरी जी ! माफ़ करदो ! मुझे नही पता था कि आप इस तरह से….! मे डर गयी थी कि पता नही कॉन…आ गया…?[/font]
 
[font=Arial, Helvetica, sans-serif]भैया अपना दर्द भूल गये और उन्होने बड़े प्यार से उनके कंधे पकड़ कर उठाया और उनके माथे पर एक किस करते हुए बोले – कोई बात नही मोहिनी ! ग़लती मेरी ही थी, मुझे तुम्हें आवाज़ देनी चाहिए थी..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]सब चले गये थे तो मेने सोचा कि आज तो कुच्छ बात हो जाए तुमसे..[/font]
[font=Arial, Helvetica, sans-serif]भाभी – छोटू भैया कहाँ हैं..?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]भैया – वो रमा के साथ पढ़ रहा है… शायद हमारी बेहन अब समझदार हो गयी है, उसने ही उसे बुला लिया था.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अब ये काम बंद करो, चल कर बातें करते हैं.. शादी को दो साल से उपर हो गये अभी तक हम मिले भी नही हैं, समय नष्ट ना करो प्रिय.. चलो अब.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]भाभी – आप चलिए जी ! मे बस अभी ये बर्तन ख़तम करके आती हूँ.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]भैया ने जाने से पहले उनके सुंदर से मुखड़े को जिस पर पानी की कुच्छ बूँदें पद छिटक कर आ गयी थी, अपने हाथों में लिया और बड़े प्यार से एक छोटा सा किस उनके होठों पर कर दिया…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]आह्ह्ह्ह… जीवन का पहला किस कैसा होता है ? मोहिनी को आज पता चला था, वो सिहर गयी और अपने आप ही उसकी आँखें बंद हो गयी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]भैया वहाँ से चले गये, लेकिन वो अभी भी वैसे ही खड़ी रही, जब कुच्छ देर कोई हलचल नही हुई तब उसने अपनी सीप जैसी आँखें खोली, पति को सामने ना पाकर वो खुद से ही शरमा गयी, उसके चेहरे पर शर्म की लाली सॉफ-2 दिखाई दे रही थी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]काम ख़तम करके एक बार मोहिनी ने रमा के कमरे में झाँक कर देखा, दोनो पढ़ने में व्यस्त थे, खास कर में, दीदी ने तिर्छि नज़र से भाभी को देखा और फिर पढ़ाई में लग गयी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]फ्रेश होकर भाभी ने आज थोड़ा शृंगार किया, अपने को थोड़ा सजाया-सँवारा, आज आपने प्रियतम की होने जो जा रही थी. साथ ही ईश्वर से मन ही मन मन्नत माँगी, कि आज उनके मिलन में कोई बाधा ना आए…![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]राम मोहन अपने कमरे में अपनी प्रियतमा के इंतेज़ार में इधर से उधर टहल रहे थे, एक बैचैनि सी उनके चेहरे पर सॉफ झलक रही थी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]कोई आधे-पोने घंटे बाद मोहिनी कमरे में आई, आहट पा कर मोहन ने जैसे ही अपनी पत्नी की तरफ देखा, वो जड़वत वहीं खड़े रह गये. अपनी पत्नी की सुंदरता को आज वो इतने ध्यान से देख पा रहे थे. राम मोहन अपनी पालक झपकाना ही भूल गये…..!![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]पति को यूँ अपनी ओर निहारते पाकर, मोहिनी तो जैसे शर्म से गढ़ी ही जा रही थी, वो वहीं जड़ होकर कमरे के फर्श को निहारने लगी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]राम मोहन हल्के कदमों से चलते हुए मोहिनी के पास पहुँचे और अपनी हथेलियों में उसके सुन्दर से मुखड़े को लेकर उपर किया और उसके माथे को चूम कर बोले- थोड़ा मेरी तरफ देखो मोहिनी… प्लीज़..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मोहिनी ने अपनी पलकें उपर की और अपने पति की ओर देखा, लेकिन वो ज़्यादा देर तक उनसे नज़रें मिला नही सकी, और फिर झुका ली…शर्म और रोमांच से उसके होठ थर-थरा रहे थे…….!![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]5’11” हाइट वाले राम मोहन चौड़ा सीना, नियम से कसरत करने के कारण उनका बदन एकदम हृष्ट-पुष्ट था, शालीनता की मिसाल ऐसी कि शायद ही उन्होने अबतक किसी लड़की या औरत की तरफ आँख उठा कर भी देखा हो. लोग उनकी शराफ़त के चर्चे उनके पिता से भी किया करते थे, जिसे सुनकर उनका सीना फक्र से चौड़ा हो जाता था.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मोहिनी की सुंदरता में लीन वो अपनी शराफ़त को भूलते जा रहे थे, और उनका हक़ भी था ये.. उन्होने मोहिनी को अपने कलेजे से चिपका लिया.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मोहिनी उनकी ठोडी तक ही आती थी, पहले बार अपने पति के सीने से लग कर उसे ऐसा लगा मानो दुनिया के सारे दुख-दर्द, भय सब दूर भाग गये हों.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]पति की मजबूत बाहों में उसे स्वर्ग की अनुभूति होने लगी और स्वतः ही उसकी पतली-2 कोमल बाहें उनकी पीठ पर कस गयी, वो अमरबेल की तरह उनसे लिपट गयी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]कितनी ही देर वो दोनो एक-दूसरे के आलिंगन में क़ैद वहीं यूँही खड़े रहे, मोहिनी का तो मन ही नही हो रहा था उनको छोड़ने का.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मोहिनी के रूई जैसे मुलायम अन्छुए उरोज जब राम को अपने सीने के निचले हिस्से पर फील हुए, तो उनके शरीर में एक अंजानी सी उत्तेजना बढ़ने लगी, और उनके पाजामे में क़ैद उनका सोया हुआ शेर सर उठाने लगा, जिसका आभास मोहिनी ने अपनी जांघों के बीच किया, वो उनसे और ज़ोर से चिपक गयी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]राम ने मोहिनी के कंधे पकड़ कर अपने से अलग किया और उसके हल्की लाली लगे पतले-2 होठों को चूम लिया और बोले – मे कितना नसीब वाला हूँ, जो मुझे तुम जैसी सुन्देर पत्नी मिली.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मेरे पास शब्द नही है मोहिनी ! जो तुम्हारी सुंदरता का बखान कर सकें….सच में तुम बहुत सुन्दर हो…![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मोहिनी चाह कर भी कुच्छ बोल नही सकी, उसके होठ बस थर-थरा कर रह गये… और वो फिरसे उसके सीने से लग गयी… मोहन का हाथ उसकी पीठ पर चल रहा था..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]फिर अनायास ही उसने जब उसके सुडौल गोल-मटोल छोटे-2 नितंबों को सहलाना शुरू कर दिया, मोहिनी बस अपनी आँखें बंद किए, आनंद के उडानखटोले में उड़ी चली जा रही थी, फिर मोहन के हाथों ने जैसे ही उसके नितंबों को मसला….[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अहह… ईीीइसस्स्स्शह… ना चाहते हुए उसके मूह से सिसकी निकल पड़ी..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]क्या हुआ जान…? मेने कुच्छ ग़लत कर दिया..?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उउन्न्ह… बस इतना ही निकला उसके मूह से और वो ऐसे ही चिपकी खड़ी रही..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]राम ने उसे अब अपनी गोद में उठा लिया और लाकर पलंग पर बड़े प्यार से लिटा दिया.. वो शर्म से दोहरी हुई जा रही थी, और करवट लेकर अपने घुटनों को पेट से लगा कर चेहरे को अपने सीने में छिपाने की कोशिश करने लगी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]राम अपना कुर्ता उतार कर बनियान और पाजामे में उसके बगल में बैठ गया और उसके कंधे पर हाथ रख कर प्यार से सहलाते हुए उसको सीधा करने की कोशिश की. वो किसी कठपुतली की तरह उसके इशारों पर चल रही थी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मोहिनी के सीधे लेटते ही राम उसके चेहरे पर झुकता चला गया और उसके होठों पर किस करते हुए उन्हें चूसने लगा.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]शुरू-2 में मोहिनी को कुच्छ अजीब सा फील हुआ, लेकिन कुच्छ ही देर में उसे इसमें मज़ा आने लगा और वो भी अपने पति का साथ देने लगी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]होठ चूस्ते हुए राम के हाथों ने एक बार उसके वक्षों को सहलाया, और अब उसकी उंगलिया उसके ब्लाउस के बटनों से खेल रही थी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मोहिनी ने सवालिया नज़रों से अपने पति की तरफ देखा, तो उसके चेहरे पर शरारती मुस्कान देख कर शर्म से अपना चेहरा दूसरी ओर कर लिया.[/font]
 
[font=Arial, Helvetica, sans-serif]राम ने एक बार फिर उसके चेहरे को अपनी तरफ घूमाकर उसके पलकों को चूम लिया और गालों को सहलाते हुए वो उसकी आँखों में झाँक कर बोला- जान इस घर में तुम खुश तो हो ना..?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उसने अपने पति की बात का जबाब सिर्फ़ हूंम्म… करके दिया और अपनी पलकें झुका ली.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]राम अब उसके ब्लाउस को खोल चुका था, उसके दोनो पटों को इधर-उधर करके उसने एक बार उसके सपाट चिकने पेट पर हाथ से सहलाया और उसी हाथ को उपर लाते हुए उसके उरोजो को ब्रा के उपर से ही सहलाने लगा.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मोहिनी अपनी आँखें मुंडे हुए पड़ी मस्ती की फ़ुआरों का मज़ा ले रही थी, अचानक राम के बड़े-2 हाथों ने उसकी 32” की चुचियों को अपनी मुट्ठी में कस लिया जो पूरे के पूरे उसके हाथ के नाप की ही थी और ज़ोर से उन्हें मसल दिया.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अहह……सीईईईई…. आरामम्म.. से प्राण नाथ…. उफफफ्फ़… नहियिइ…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]राम उसके बगल में बैठा था, फिर उसने मोहिनी को कंधों से पकड़ कर बिठा लिया और उसके ब्लाउस और ब्रा को उसके बदन से अलग कर दिया.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मक्खन जैसे मुलायम गोल-2 स्तन देख कर वो बौरा गया और उन पर किसी भूखे भेड़िए की तरह टूट पड़ा. उसके छोटे-2 स्तन को मूह में भरकर किसी वॅक्यूम पंप की तरह सक करने लगा.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मोहिनी तो मानो आसमानों में उड़ रही थी, उसे होश तब आया जब राम ने उसके एक अंगूर के दाने जैसे निपल को अपनी उंगलियों से पकड़ कर उमेठ दिया…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]हइई…….माआआ…..मररररर…गाइिईई…रीईईई….. और उसने उसके मूह को अपनी छाती पर दबा दिया…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]राम ने उसकी पतली कमर को दोनो हाथों के बीच लेकर उसे उठाया और अपनी गोद में बिठा कर उसकी साड़ी और पेटिकोट निकालने लगा.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मोहिनी ने लज्जावश अपने चेहरे को अपने हाथों से छिपा लिया…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]राम- क्या हुआ जानन्न… चेहरा क्यों छुपा रही हो…मे तो अब तुम्हारा ही हूँ ना..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मोहिनी – हूंम्म… फिर भी लाज आती है..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अब वो मात्र पेंटी में थी और अपनी इस अवस्था को देखार शर्म से दोहरी हुई जा रही थी. औरत की यही अदाएँ जो उसका स्वभाव है, आदमी के धैर्या के परखच्चे उड़ा देती हैं.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]राम ने भी अपने सारे कपड़े निकाल फेंके और अब वो भी मात्र एक अंडरवेर में था. उसने एक जेंटल टच उसकी गीली पेंटी के उपर से ही उसकी पूसी को दिया..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मोहिनी का पूरा शरीर थर-थरा गया.. उसके शरीर के रोँये खड़े हो गये…[/font]
[font=Arial, Helvetica, sans-serif]तब तो और ही गजब हो गया जब राम ने उसी गीली पेंटी के उपर से ही उसकी मुनिया[/font]
[font=Arial, Helvetica, sans-serif]को चूम लिया और फिर जीभ फैला कर चाट लिया..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]हइई…. दैयाआआ…… ये क्य्ाआ… किय्ाआ.. अपने…. छ्हीइ.. ! वहाँ भी कोई मूह लगाता है भलाआ….. आआ…. नहियीई… इसस्स्स्शह....मत करो ना प्लेआस्ीईए….[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]एक तरफ तो वो उसे मना कर रही थी, दूसरी तरफ उसका मन कर रहा था कि उसका पति उसकी मुनिया को काट खाए.. लेकिन नारी सुलभ ये सब वो कह ना सकी…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अब राम का लंड भी उसके अंडरवेर को फाड़ डालने को उतावला हो रहा था, उसने झट से मोहिनी की पेंटी उतार फेंकी, उसके उतावले पन की वजह से वो फट ही गयी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]च्चिईिइ… ये क्या जान, ये क्या जंगल बढ़ा रखा है तुमने, इसको साफ नही करती कभी.. राम उसकी बढ़ी हुई झान्टो को देख कर बोला, तो वो अपना सर उठा कर बोली- हमें पता ही नही कि इन्हें कैसे साफ किया जाता है..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]राम – ठीक है अगली बार मे तुम्हारे लिए हेर रिमूवर ले आउन्गा.. और फिर से अपने काम में लग गया.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]असल में उसका मन उसकी कोरी चूत को चूसने का था, लेकिन बालों की वजह से मन नही किया, तो वो समय बर्बाद ना करते हुए, उसकी टाँगों के बीच आकर बैठ गया, उसके घुटनों को मोड़ कर एम शेप में किया.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उसके बाद वो उसके उपर की ओर आया और मोहिनी के होठों को चूम कर अपने 6” लंबे लंड को सहलाया फिर उसकी चूत के होठ जो अभीतक बंद थे, धीरे से खोला.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उसकी कसी हुई चूत फैलने के बाद भी उसका लाल छेद थोड़ा सा ही खुल पाया.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उसने मोहिनी की आँखों में देख कर कहा – जान फर्स्ट टाइम है, थोड़ा सहन करना पड़ेगा, और अपना सुपाडा, उस छोटे से मूह पर टिका दिया….[/font]
[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उसकी कसी हुई चूत फैलाने के बाद भी उसका लाल छेद थोड़ा सा ही खुल पाया.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उसने मोहिनी की आँखों में देख कर कहा – जान फर्स्ट टाइम है, थोड़ा सहन करना पड़ेगा, और अपना सुपाडा उस छोटे से मूह पर टिका दिया….[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मोहिनी की पूसी कमरस से एक दम गीली हो रही थी, सो थोड़े से दबाब से ही लंड का टोपा तो फिट हो गया, लेकिन अंदर नही गया. उसने थोड़ा और पुश किया तो उसका 1” टोपा अंदर समा गया, लेकिन मोहिनी की कराह निकल गयी…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]राम का लंड बहुत ज़्यादा मोटा तो नही था, लेकिन मोहिनी की कोरी मुनिया, जिसने कभी उंगली भी नही देखी थी, अपना मूह खोल पाने में असमर्थ दिखाई दे रही थी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]राम ने अपने को अड्जस्ट किया और अपनी भारी जांघों का दबाब उसकी मक्खन जैसी जांघों के उपर बनाया और लंबी साँस लेकर एक जोरदार डक्का लगा ही दिया.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]आईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई…….माआआआआआआआ………मररर्र्र्र्र्र्र्ररर…..गाइिईईईईईईईईईई…. हइईईई…निकालूऊऊऊ….प्लएसईई… वो पलंग से उठने को हुई, पर राम का चौड़ा सीना सामने आगया…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]आधा लंड अंदर किए राम वहीं रुक गया और अपनी प्यारी नाज़ुक कली जैसी पत्नी के सर पर हाथ फिरा कर सहलाने लगा, फिर उसके होठों को चूमते हुए बोला- बस मेरी जान अब जो होना था सो हो गया…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]थोड़ा सा बस और.. फिर मज़े ही मज़े इतना कह कर वो फिर से उसके होठ चूसने लगा और साथ साथ उसकी चुचियों को सहलाता जा रहा था.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मोहिनी कुच्छ शांत हुई तो उसने धीरे से अपना लंड बाहर निकाला और सुपाडे तक लाकर धीरे से फिर उतना ही अंदर किया.. 5-6 बार ऐसे ही धीरे-2 अंदर-बाहर करने से मोहिनी की मुनिया फिरसे खुश दिखने लगी और अपनी लार से उसके लंड को चिकनाने लगी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]जब उसको आचे से मज़ा आने लगा तो वो भी नीचे से अपनी कमर मटकाने लग गयी.[/font]
 
[font=Arial, Helvetica, sans-serif]सही मौका देख, राम ने एक फाइनल स्ट्रोक लगा दिया और पूरा 6” लंड उसकी सील पॅक चूत में फिट कर दिया.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मोहिनी की फिर एक बार जोरदार चीख निकल गयी, लेकिन अब राम को रुकना मुश्किल हो रहा था, तो वो धीरे-2 आराम से धक्के लगाता रहा…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मोहिनी की चूत अब सेट हो चुकी थी, अब वो भी धीरे-2 अपनी लय में आती जा रही थी, और अपने पति के धक्कों का जबाब नीचे से देने लगी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]कहते हैं हर अंधेरी रात के बाद एक रुपहला सबेरा ज़रूर आता है, मोहिनी भी कुच्छ पल पहले की पीड़ा भूल कर दुगने जोश से चुदने लगी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]आख़िरकार दोनो पति पत्नी एक साथ अपनी मंज़िल पर पहुँच ही गये, और दोनो ही एक साथ स्खलित होकर लंबी-2 साँस लेते हुए एक-दूसरे से चिपक गये.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]कुच्छ देर बाद जब दोनो को थोड़ा राहत हुई तो अपने सुख-दुख, घर परिवार, आने वाले भविष्य की बातें करने लगे, साथ साथ अपने हाथों को हरकत भी देते जा रहे थे.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मोहिनी की अब झिझक कम हो गयी थी सो वो भी अपने हाथों को अपने पति के अंगों पर फिरा रही थी, उनके साथ खेल रही थी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]कुच्छ ही देर में एक बार फिर तूफान उठा और वो दोनो फिरसे एक दूसरे में समाते चले गये…[/font]


[font=Arial, Helvetica, sans-serif]पहली रात का भरपूर सुख उठाते हुए उन्हें सुबह के 4 बज गये, फिर एक ऐसी नींद में डूब गये, जो सीधी सुबह 7 बजे दरवाजा खट खटाने की आवाज़ सुन कर ही खुली.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]दूसरे दिन सनडे था, स्कूल बंद था, तो मैं थोड़ा देर तक सो लेता था. दीदी जब नहा धो कर फ्रेश हो गयी तब उन्होने मुझे जगाया.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]रोज़ तो भाभी सोते हुए झुक कर मेरे माथे पर किस करती थी, और बड़े प्यार से आवाज़ देकर मुझे उठाती थी, मे बिना आँखें खोले उनके गले लग जाता था.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]आज ऐसा नही हुआ, दीदी ने आते ही सीधा मुझे ज़ोर से हिलाया और ज़ोर से आवाज़ देने लगी, छोटू…छोटू… उठ जा 8 बज गये, कब तक सोएगा..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मेने सोचा भाभी ही होंगी, सो दोनो हाथ उनके गले लगने के लिए उपर किए…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]भाभी होती तो झुक कर उठती, दीदी पलंग के साइड में बैठ कर हिला रही थी, आँखें बंद किए ही मेने जैसे ही अपने दोनो हाथ उपर किए तो वो उनके बूब्स से टकरा गये….[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मुझे बंद आँखों से कोई अंदाज़ा नही लगा, सोचा भाभी का गला और थोड़ा उपर को है, तो ऐसे ही हाथों को उनके बदन से रगड़ते हुए उपर ले जाने लगा.[/font]
[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उनके बूब मेरे हाथों से एक तरह से मसल गये…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]हाथ लगते ही पहले तो दीदी ने सोचा ग़लती से लग गये होंगे.. और उन्हें ज़्यादा कुच्छ फील नही हुआ, लेकिन जब मेरे हाथों से उनके रूई जैसे मुलायम बूब्स मसल गये तो वो थोड़ा सॉक्ड हो गयी…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उसके कुंवारे मन की भावनाओ को करेंट सा लगा, और उन्होने मेरा हाथ पकड़ कर ज़ोर्से झटक दिया..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मेरा हाथ चारपाई की पाटी से जा टकराया, खटक से मेरी आँखें खुल गयी और मे उठकर अपना हाथ झटकने लगा…मेरे हाथ में दर्द होने लगा और मैं ज़ोर से दीदी के उपर चिल्लाया…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]क्या करती हो, मेरा हाथ तोड़ दिया… माआ…. आह्ह्ह्ह…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]दीदी गुस्से से चिल्लाती हुई बोली – ये क्या कर रहा था तू ..? हां..![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे और ज़ोर्से चिल्लाया – आप यहाँ क्या कर रही थी ?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]आवाज़ सुन कर भाभी दौड़ी हुई आई और बोली – अरे ! आप दोनो क्यों गुस्सा हो रहे हो..? हुआ क्या है..?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – देखो ना भाभी, दीदी ने मेरा हाथ तोड़ दिया, कितना दर्द हो रहा है.. और उल्टा मुझ पर ही चिल्ला रही है..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]भाभी ने दीदी की तरफ देखा… तो वो नज़र नीची करके बिना कुच्छ बोले वहाँ से चली गयी…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]भाभी ने मेरे पास बैठ कर मेरे हाथ को अपने हाथ में लेकर सहलाया और फिर प्यार से मेरे गाल पर हाथ रख कर बोली – कोई बात नही मेरे प्यारे लल्ला जी.. चलो अब उठ जाओ, मे आयोडेक्स लगा दुगी ठीक हो जाएगा.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे उठकर फ्रेश होने चला गया, दूसरी तरफ भाभी ने दीदी से उस घटना के बारे में पुछा तो उन्होने सकुचाते हुए सब बता दिया…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]भाभी थोड़ी देर मॅन ही मन मुस्काराई, फिर बोली – ये उस बेचारे ने जान बुझ कर तो नही किया होगा, उसको लगा होगा कि रोज़ की तरह में उसे उठाती हूँ, तो वो मेरे गले लग जाते हैं, बस यही सोच कर गले लगने जा रहे होंगे और ग़लती से हाथ टच हो गया होगा, इतना माइंड मत किया करो ठीक है..,![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]रामा – लेकिन भाभी आप भी उसे ज़्यादा सर मत चढ़ाओ, अब वो भी बड़ा हो रहा है…![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मोहिनी – मेरे लिए तो तुम दोनो बच्चे ही हो, तुम दोनो को संभालने की मेरी ज़िम्मेदारी है.. तुम छोटू के बारे में चिंता ना करो और मुझपे भरोसा रखो…..!![/font]
 
[font=Arial, Helvetica, sans-serif]हम दोनो तैयार होकर स्कूल के लिए निकल लिए. दोनो एक ही साइकल से स्कूल जाते थे, मे साइकल लेके घर से बाहर निकला तो देखा दीदी अपना बॅग लिए मेरे इंतजार में ही खड़ी थी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे भी अपने पिताजी और भाइयों की तरह काफ़ी तंदुरुस्त शरीर का था, इस उमर में भी मेरी हाइट भाभी के बराबर थी (5’5”) दीदी से लंबा था..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अच्छा खाना पीना दूध घी का, उपर से भाभी का एक्सट्रा लाड प्यार, तो थोड़ा भारी भी होता जा रहा था मेरा शरीर.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]वैसे तो माँ का दर्जा तो कोई और नही ले सकता, पर सच कहूँ तो भाभी के लाड प्यार ने मुझे अपनी माँ की ममता को भी भूलने पर विवश कर दिया था.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मेने दीदी को अनदेखा करके साइकल लेके चल दिया, तो दीदी ने आवाज़ देकर रुकने को कहा और बोली – अरे ! मुझे कॉन ले जाएगा..? तू तो अकेला ही भगा जा रहा है..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मेने साइकल तो रोक ली लेकिन कोई जबाब नही दिया और उल्टे अपने गाल फूला लिए, जैसे मे उनसे बहुत ज़्यादा नाराज़ हूँ.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]दीदी मेरे पास आई और अपने दोनो कानों को पकड़ कर सॉरी बोला – छोटू ! भैया अपनी दीदी को माफ़ कर्दे..! [/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मेने कहा ठीक है.. माफ़ किया.. लेकिन मेरे हाथ में अभी भी दर्द है तो मुझसे डबल बिठा कर साइकल नही चलेगी, आप चलो…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मजबूरी में दीदी ने साइकल लेली, और में पीछे कॅरियर पर बैठ गया. गाओं से निकल कर हम सड़क पर आ गये, लेकिन दीदी की साँस फूलने लगी, और वो साइकल खड़ी करके हाँफने लगी…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]आ..स्सा..आ..सससा.. उफ़फ्फ़…छोटू.. तू बहुत भारी है रे… मेरे से नही चलेगी.. तू जा अकेला.. मे पैदल ही आ जाती हूँ… ज्यदा दूर भी नही है… थोड़ा लेट ही होंगी और क्या..?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – हूंम्म… फिर शाम को बाबूजी से जूते पड़वाना हैं…! अगर उन्हें पता चला कि आप अकेली पैदल स्कूल गयी हो तो जानती हो ना क्या करेंगे वो…?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]वो – तो फिर क्या करें..? तेरे हाथ में तो दर्द है, डबल सवारी हॅंडल कैसे साधेगा तू..?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – एक काम हो सकता है, आप हॅंडल पकडो, मे कॅरियर पर दोनो ओर को पैर करके पेडल मारता हूँ..![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]वो – चला पाएगा तू ऐसे.. ?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – हां आप शुरू करो.. . फिर हम ने ऐसे ही साइकल चलाना शुरू कर दिया, मे पीछे से पेडल मारने लगा, लेकिन बिना कुच्छ पकड़े ताक़त लग ही नही पा रही थी..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]नोट : जिन लोगों ने इस तरह से साइकल चलाई हो वो इस सिचुयेशन को भली भाँति समझ सकते हैं..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – दीदी ! बिना कुच्छ पकड़े मेरी ताक़त पेडल के उपर नही लग पा रही, क्या करूँ?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]दीदी- तो सीट को आगे से पकड़ ले..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मेने दोनो हाथों को सीट के आगे ले गया लेकिन उनकी दोनो जांघे बीच में आ रही थी, मेने कहा दीदी अपने पैर तो उपर करो, तो उन्होने अपने दोनो पैर उठा कर आगे सामने वाले फ्रेम के डंडे पर रख लिए..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मेने सीट के दोनो साइड से हाथ आगे ले जाकर अपने हाथों की उंगलियों को एक-दूसरे में फँसा लिया और साइकल पर पेडल मारने लगा, अब मुझे ताक़त लगाने में आसानी हो रही थी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]लेकिन दीदी अपने पैर ज़्यादा देर तक डंडे से टिका नही पाई और उनके पैर नीचे की ओर सरकने लगे जिससे उनकी मोटी-2 मुलायम जांघे मेरी कलाईयों पर टिक गयी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]जोरे लगाने में मेरा सर भी आगे पीछे को होता तो मेरी नाक और सर उनकी पीठ से टच होने लगते.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]रामा को आज दूसरी बार अपने भाई के शरीर के टच का अनुभव हो रहा था, जो शुरू तो मजबूरी से हुआ लेकिन अब उसके कोमल मन की भावनाएँ कुच्छ और ही तरह से उठने लगी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]जांघों पर हाथों का स्पर्श, पीठ पर नाक और सर के बार टच होने से उसको सुबह अपने स्तनों पर हुए अपने भाई के हाथों का मसलना याद आने लगा, उसके कोमल अंगों में सुरसूराहट होने लगी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]ना चाहते हुए भी वो थोड़ा सा और आगे को खिसक गयी और आगे-पीछे हिला-हिलाकर अपनी मुनिया को अपने भाई की उंगलियों से टच करने लगी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उसकी पेंटी में गीला पन का एहसास उसे साफ महसूस हुआ और वो मन ही मन गुड-गुडाने लगी. वो अपने आप को कोस रही थी कि क्यों उसने सुबह अपने भाई को नाराज़ किया, थोड़ी देर और अपने स्तनों को मसलवा लेती तो कितना मज़ा आता.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]यही सब सोचती हुई वो मन ही मन खुश हो रही थी, और अब उसने अपने भाई को और अपने पास आने का मंसूबा बना लिया.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]वो दोनो स्कूल पहुँचे और अपनी-2 क्लास में जा कर पढ़ाई में लग गये.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उमर कोई भी हो, साथ के यार दोस्त सब तरह की बातें तो करते ही हैं, आप चाहो या ना चाहो, वो सब बातें आपको भी असर तो डालती ही हैं.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]रामा की भी क्लास में कुच्छ ऐसी लड़कियाँ थी, जो इस उमर में भी लंड का स्वाद ले चुकी थी, और आपस में वो एक दूसरे से इस तरह की बातें भी करती थी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]तो ऐसा तो बिल्कुल भी नही था कि रामा को इन सब बातों की कोई समझ ही ना हो, लेकिन वो उन दूसरी लड़कियों जैसी नही थी की कहीं भी किसी के भी साथ मज़े ले सके.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उसके अपने घर के संस्कार इसके लिए कतई उसको इस तरह की इज़ाज़त नही दे सकते थे..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]सारे दिन रामा का पढ़ाई में मन नही लगा, रह-रह कर आज उसको दिन की घटनयें याद आ रही थी, और उनसे पैदा हुई अनुभूतयों को सोच-2 कर रोमांचित होती रही.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]टाय्लेट करते समय आज पहली बार उसका मन किया कि अपनी पूसी को सहलाया जाए, और ये ख्याल आते ही उसका हाथ स्वतः ही अपनी पयर मुनिया पर चला गया, और वो उसे सहलाने लगी. [/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]थोड़ा अच्छा भी लगा उसे, पर अब वो अपनी बंद आँखों से इस आभास को अपने भाई की उंगलियों के टच से हुई अनुभूति से कंपेर करने लगी…..![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]स्कूल 9 बजे सुबह शुरू होता था और 3 बजे ऑफ हो जाता था, छुट्टी के बाद दोनो भाई बेहन घर लौट लिए. रामा ने लौटते वक़्त का कुच्छ और ही प्लान सोच लिया था.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]छुट्टी होते ही वो छोटू के पास आई जो स्टॅंड से अपनी साइकल निकाल कर पैदल ही गेट की तरफ आ रहा था. रामा पहले से ही गेट पर जाकर खड़ी हो गयी थी. [/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अपना स्कूल बॅग भी हॅड्ल पर लटकाते हुए बोली – भाई तेरे हाथ का दर्द अब कैसा है, कुच्छ कम हुआ या वैसा ही है..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – वैसे फील नही होता है, लेकिन कुच्छ करने पर थोड़ा दुख़्ता है.. [/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]रामा – मेने सोचा तुझे कॅरियर से पेडल मारने में थोड़ा ज़्यादा ताक़त लगानी पड़ रही थी ना सुबह, तो इधर से हम दोनो साथ में पेडल चलाएँगे…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – अरे ! लेकिन पेडल तो इतना छोटा है, उसपर दोनो के पैर कैसे आ पाएँगे..?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]रामा – अरे ! तू देख तो सही, आ जाएँगे, मे अपनी एडी से ज़ोर लगाउन्गी, तू बाहर से पंजों से लगाना. हो जाएगा देखना.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]तो वो सीट पर बैठ गयी और मे कॅरियर पर दोनो ओर पैर करके बैठ गया.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – लेकिन दीदी ! अब मे पाकडूँगा कैसे..?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]रामा – तू मेरी जांघों के उपर से सीट को पकड़ ले… और उसने अपनी एडियों से साइकल आगे बढ़ाई, मेने भी उसकी एडियों की बगल से बाहर की तरफ अपने पंजे जमा लिए और हम दोनो मिलकर पेडलों पर ज़ोर लगाने लगे.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]जैसे ही स्कूल की भीड़ से बाहर निकले, रामा ने सीट पकड़ने के लिए कहा. मेने अपने दोनो हाथ उसकी कमर की साइड से लेजा कर सीट की आगे की नोक पर जमा लिए.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]सुबह के मुकाबले अब मुझे ताक़त भी कम लगानी पड़ रही थी, रामा बोली- क्यों भाई अब तो ज़्यादा ज़ोर नही लगाना पड़ रहा तुझे…?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – हां दीदी ! अब सही है, और साइकल भी तेज चल रही है…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]हम दोनो मिलकर साइकल चलने लगे, दीदी के शरीर से उठने वाले पसीने की गंध मेरी नाक से अंदर जा रही रही थी.. और धीरे-2 मेने अपना गाल उसकी पीठ पर टिका दिया.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उधर अपने भाई की बाजुओं का दबाब अपनी जांघों पर बिल्कुल उसकी पूसी के बगल से पाकर रामा की मुनिया में सुर-सुराहट होने लगी और वो उसे आगे-पीछे हिल-हिल कर उसके हाथों से रगड़ने लगी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मज़े से उसकी आँखें बंद होने लगी, जिसकी वजह से साइकल लहराने लगी, छोटू को लगा कि साइकल गिरने वाली है, तो वो चिल्लाया – दीदी क्या कर रही हो..? साइकल गिर जाएगी..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अपने भाई की आवाज़ सुनकर रामा को होश आया और वो ठीक से बैठ कर हॅंडल पर फोकस करने लगी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]रामा – भाई तू मेरी पीठ से क्यों चिपका है.. ?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – अरे दीदी ! सीट पकड़ने के लिए हाथ आगे करूँगा तो मुझे भी आगे खिसक कर बैठना पड़ेगा ना..![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]रामा – तो तू एक काम कर..! सीट की जगह मुझे पकड़ ले.. और अपने एक हाथ से मेरा उधर का हाथ पकड़ कर अपनी जाँघ के जोड़ पर अंदर की तरफ रख दिया और बोली- दूसरा हाथ भी ऐसे ही रख ले… ठीक है..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मेने हां बोलकर दूसरा हाथ भी ऐसे ही रख लिया, अब मेरे दोनो हाथों की उंगलिया एकदम उसकी पूसी के उपर थी, मेरे मन में ऐसी कोई भावना नही थी कि अपनी बेहन को टीज़ करूँ लेकिन वो आगे-पीछे होकर अब मेरे हाथों से अपनी मुनिया की फुल मसाज करा रही थी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]घर पहुँचते पहुँचते रामा इतनी एक्शिटेड हो गयी, की उसका फेस लाल भभुका हो गया, कान गरम हो गये, और उसकी पेंटी पूरी तरह गीली हो गयी, जो मुझे लगा शायद पसीने की वजह से हो. [/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]घर पहुँचते ही वो जल्दी से साइकल मुझे पकड़ा कर बाथरूम को भागी, और करीब 10 मिनिट बाद उसमें से निकली, तब तक मेने साइकल आँगन में खड़ी की, दोनो बाग उतारे, और अपने कपड़े निकाल कर फ्रेश होने बाथ रूम की तरफ गया, वो उसमें से निकल रही थी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मेने पुछा- दीदी इतनी तेज़ी से बाथरूम में क्यों भागी..? तो वो बोली- अरे यार बहुत ज़ोर्से बाथरूम लगी थी….. मेने सोचा शायद ठीक ही कह रही होगी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे फ्रेश होकर भाभी के रूम में चला गया, वो बेसूध होकर सो रही थी, अब मुझे तो पता नही था कि बेचारी, रात भर भैया के साथ पलंग तोड़ कुश्ती खेलती रही हैं. [/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]सोते हुए वो इतनी प्यारी लग रही थी मानो कोई देवी की मूरत हो, साँसों के साथ उनका वक्ष उपर नीचे हो रहा था, जो आज कुच्छ ज़्यादा ही उठा हुआ लगा मुझे.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे उनके पास बैठ गया और उनका एक हाथ अपने हाथों मे लेकर अपने गाल पर रख कर सहलाया और धीरे से आवाज़ लगाई… लेकिन वो गहरी नींद में थी सो कोई असर नही पड़ा.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]तो मेने उनका हाथ हिलाकर थोड़ा उँची आवाज़ में पुकारा – भाभी ! भाभी .. उठिए ना… भूख लगी है.. खाना दो ..![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]वो थोड़ा सा कुन्मुनाई और मेरी ओर करवट लेकर फिर सो गयी, करवट लेते समय उनका दूसरा हाथ मेरी जाँघ पर आ गया. उनका साड़ी का पल्लू सीने से अलग हो गया और ब्लाउस में कसे उनके उरोजो का उपरी हिस्सा लगभग 1/3 दिखाई पड़ने लगा.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]दोनो उरोज एक-दूसरे से सट गये थे, अब उन दोनो के बीच एक पतली सी दरार जैसी बनी हुई थी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मेरा मन किया कि इस दरार में उंगली डाल कर देखूं, लेकिन एक ममतामयी भाभी की छवि ने मुझे रोक दिया, और मे उनके पास से चला आया.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]बाहर आकर देखा तो दीदी खाना लेकर खा रही थी, मेने कहा – मुझे नही बुला सकती थी खाने के लिए. [/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]वो बोली – मुझे लगा तू बिना भाभी के दिए नही खाएगा.. सो इसलिए नही पुछा, चल आजा मेरे साथ ही खाले दोनो मिलकर खाते हैं.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे भी दीदी के साथ ही बैठ गया खाने और फिर हम दोनो बेहन भाई ने एक ही थाली में बैठ कर खाना खाया, जो मुझे कुच्छ ज़्यादा अच्छा लगा एक साथ खाने में.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]आप भी कभी अपने परिवार के साथ एक थाली में ख़ाके देखना ज़्यादा टेस्टी लगेगा, ये मेरा अपना अनुभव है…[/font]
 
[font=Arial, Helvetica, sans-serif]शाम को भाभी टीवी के सामने बैठ कर सब्जी काट रही थी, दीदी बड़ी चाची के यहाँ गयी थी, नीलू भैया से नोट्स लेने.…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]यहाँ थोड़ा अपने परिवार के दूसरे सदस्यों के बारे में बताना ज़रूरी है..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मेरे 3 चाचा : बड़े राम किशन पिताजी से दो साल छोटे खेती करते हैं, उमर 44, चाची जानकी देवी उमर 42 इनके 3 बच्चे हैं दो बड़ी बेटियाँ रेखा और आशा, उमर 22 और 19, बड़ी बेटी की शादी मेरे भैया से एक साल बाद ही हुई थी, तीसरा बेटा नीलू जो रामा दीदी के बराबर का उन्ही की क्लास में पढ़ता है. [/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]दूसरे (मंझले) चाचा : रमेश उमर 41, ये भी खेती ही करते है, चाची निर्मला 38 की होंगी, इनके दो बच्चे हैं, दोनो ही लड़के हैं सोनू और मोनू.. सोनू मेरे से दो साल बड़ा है, और मोनू मेरी उमर का है लेकिन मेरे से एक क्लास पीछे है.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]दो बुआ – मीरा और शांति 36 और 33 की उमर दोनो की शादी अच्छे घरों में हुई है ज़्यादा डीटेल समय आने पर..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]तीसरे चाचा जो सब बेहन भाइयों में छोटे हैं नाम है राकेश 12थ तक पढ़े हैं, इसलिए पिताजी ने इन्हें स्कूल 4थ क्लास की नौकरी दिलवा दी और खेती तो है ही साथ में तो अच्छी कट रही है इनकी इस समय 30 के हो चुके हैं. [/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]छोटी चाची रश्मि उमर 26 साल, सच पुछो तो चाचा के भाग ही खुल गये, चाची एकदम हेमा मालिनी जैसी लगती हैं.. शादी के 6 साल बाद भी अभी तक कोई बच्चा पैदा नही कर पाए हैं. [/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]भाभी सोफे पर बैठी सब्जी काट रही थी शाम के खाने के लिए, मे बाहर आँगन में चारपाई पर बैठा अपना आज का होम वर्क कर रहा था.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]थोड़ी देर बाद भाभी मेरे पास आकर सिरहाने की तरफ बैठ गयी और पीछे से मेरे सर पर हाथ फेर्कर बोली – लल्ला ! होम वर्क कर रहे हो… ![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – हां भाभी आज टीचर ने ढेर सारा होम वर्क दे दिया है, उसी को निपटा रहा हूँ. वैसे हो ही गया है बस थोड़ा सा ही और है.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]वो – दूध लाउ पीओगे..?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – नही अभी नही रात को खाने के बाद पी लूँगा… अरे हां भाभी ! याद आया, आपकी तबीयत कैसी है अब?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]वो – हां ? मुझे क्या हुआ है..? भली चन्गि तो हूँ…![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – नही ! वो दो दिन से आप कुच्छ लंगड़ा कर चल रही थी, और जब मेने स्कूल से आके आपको बहुत जगाया, लेकिन आप उठी ही नही, सोचा शायद आपको कोई प्राब्लम हुई हो..?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]वो थोड़ा शरमा गयी, फिर शायद थोड़ी देर पिच्छली दो रातें याद आई होगी तो उनके चेहरे पर एक शामिली मुस्कान तैर गयी…और उनके दोनो गालों में गड्ढे बन गये..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मेने जैसे ही उनके डिंपल देखे, मेरा जी ललचाने लगा तो मेने अपनी उंगली के पोर को उनके डिंपल में घुसा दिया और उंगली को गोल-गोल सहला कर बोला- भाभी मे आपसे कुच्छ मांगू तो आप नाराज़ तो नही होगी ना..![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उन्होने हँसते हुए ही मेरे बालों में उंगलियाँ डाली और बोली – ये क्या बात हुई.. भला..? तुम्हें आज तक मेने किसी चीज़ के लिए मना किया है जो ऐसे माँग रहे हो..? सब कुच्छ तो तुम्हारा ही है इस घर में… [/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]बताओ मुझे क्या चाहिए मेरे प्यारे देवर को और ये कह कर मेरे गाल को प्यार से अपने एक अंगूठे और उंगली के बीच दबा कर हल्का सा चॉंट दिया.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – मेरा जी करता है, एक बार आपके डिंपल को चूमने का… बोलो चूम लूँ..?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]वो कुच्छ देर तक मेरे चेहरे की तरफ देखती रही, फिर एक मुस्कान उनके चेहरे पर तैर गयी और बोली – एक शर्त पर…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – क्या..? इसके लिए आप जो कहोगी मे करूँगा…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]वो – मुझे भी अपने गाल चूमने दोगे तो ही मे अपने चूमने दूँगी.. बोलो मंजूर है..?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – हे हे हे… इसमें क्या है ? आप तो कभी भी मेरा चुम्मा ले ही लेती हो ना.. [/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]वो – नही ये कुच्छ स्पेशल वाला होगा.. मेने कहा जैसे आप चाहो वैसे ले लेना.. तो वो हँसते हुए बोली ठीक हैं तो फिर तुम ले लो..पहले.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मेने उनके हँसते ही उसके गाल को चूम लिया और उनके डिंपल में अपनी जीभ की नोक डाल दी. वो खिल खिलाकर हँसते हुए बोली- हटो चीटिंग करते हो, जीभ लगाने की कब बात हुई थी..?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]फिर मेने बिना कहे दूसरे गाल पर भी ऐसा ही किया. [/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उन्होने कहा – बस हो गया..? अब मेरी बारी है फिर उन्होने मेरा सर अपने सीने से सता लिया और मेरे गाल पर अपने दाँत गढ़ा दिए.. [/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मेरे मुँह से चीख निकल गयी लेकिन उन्होने मेरा गाल नही छोड़ा और उसे अपने होठों में दबा कर पपोर लिया, और कुच्छ देर तक काटने वाली जगह पर अपने होठों से ही सहलाने लगी..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मेरा दर्द पता नही कहाँ च्छूमंतर हो गया और मुझे मज़ा आने लगा, मेरी आँखें बंद हो गयी, [/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]फिर उन्होने ऐसा ही दूसरे गाल पर भी किया, इस बार दर्द हुआ पर मे चीखा नही और उनके होठों के सहलाने का मज़ा लेता रहा.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]क्यों कैसा लगा मेरा चुम्मा जब भाभी ने पुछा तो मेने कहा – आहह.. भाभी मज़ा आ गया, ऐसा चुम्मा तो आप रोज़ लिया करो, [/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]और ये बोलकर मे उनकी जाँघ पर अपना सर रख कर लेट गया और उनकी पतली कमर में अपनी बाहें लपेट कर उनके ठंडे-2 पेट पर अपना मुँह रख कर बोला- भाभी आप कोई जादू तो नही जानती..?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]वो – क्यों मेने क्या जादू कर दिया तुम पर..?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – कुच्छ देर पहले मेरा दिमाग़ थका-2 सा लग रहा था, लेकिन आपने सारी थकान ख़तम करदी मेरी, ये बोलकर मेने उनके ठंडे पेट को चूम लिया.. ..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]वो मेरा सर चारपाई पर टिका कर हँसती हुई खाना बनाने चली गयी और मे फिर अपने होमे वर्क में लग गया…![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]दूसरी सुबह हम फिर स्कूल के लिए रेडी होकर ले साइकल निकाल लिए.. आज मेरा हाथ एकदम फिट था, सो मेने साइकल बढ़ा दी और दीदी को बैठने के लिए बोला.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]दीदी ने जैसे ही बैठने के लिए कॅरियर पकड़ा, वो सीट के नीचे वाले जॉइंट से अलग होकर पीछे को लटक गया.. दीदी चिल्लाई – छोटू रुक, ये कॅरियर तो निकल गया..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – तो अब क्या करें, चलो पैदल ही चलते हैं वहीं जाकर मेकॅनिक से ठीक करा लेंगे, बॅग दोनो साइकल पर टाँग उसके हॅड्ल को पकड़ कर हम दोनो निकल पड़े पैदल स्कूल को.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]पीछे से नीलू भैया साइकल पर आ रहे थे, उनके पीछे आशा दीदी जो अब 12थ में थी, लेट पढ़ने बैठी थी इसलिए वो अभी 12थ में ही थी. दोनो भाई बेहन एक ही क्लास में थे.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]हमें देख कर उन्होने भी अपनी साइकल रोकी और पुछा की क्या हुआ, हमने अपनी प्राब्लम बताई तो वो दोनो भी बोले कि ठीक है हम भी तुम दोनो के साथ पैदल ही निकलते हैं.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]रामा दीदी ने उनको कहा- अरे नही आप लोग निकलो क्यों खम्खा हमारी वजह से लेट होते हो, तो वो निकल गये..[/font]
 
[font=Arial, Helvetica, sans-serif]जैसे ही हम सड़क पर पहुँचे.. तो दीदी बोली – छोटू ! भाई ऐसे तो हम लोग लेट हो जाएँगे, पहला पीरियड नही मिल पाएगा, वो भी मेरा तो फिज़िक्स का है..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – तो क्या करें आप ही बताओ..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]वो – एक काम करते हैं, में आगे डंडे पर बैठ जाती हूँ.. कैसा रहेगा.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – मुझे कोई प्राब्लम नही है, आप बैठो.. तो वो आगे डंडे पर बैठ गयी और मे फिरसे साइकल चलाने लगा….!![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]स्कूल के लिए थोड़ा लेट हो रहा था तो मेने साइकल को तेज चलाने के लिए ज़्यादा ताक़त लगाई जिससे मेरे दोनो घुटने अंदर की तरफ हो जाते और सीना आगे करना पड़ता पेडल पर ज़्यादा दबाब डालने के लिए.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मेरे लेफ्ट पैर का घुटना दीदी के घुटनो में अड़ने लगा तो वो और थोड़ा पीछे को हो गयी, जिससे उनके कूल्हे राइट साइड को ज़यादा निकल आए और उनकी पीठ मेरे पेट से सटने लगी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मेरी राइट साइड की जाँघ उनके कूल्हे को रब करने लगी और लेफ्ट पैर उनकी टाँगों को.. [/font]
[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उनके कूल्हे से मेरी जाँघ के बार-बार टच होने से मेरे शरीर में कुच्छ तनाव सा बढ़ने लगा, और मेरी पॅंट में क़ैद मेरी लुल्ली, जो अब धीरे-2 आकर लेती जा रही थी थी अकड़ने लगी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]दीदी भी अब जान बूझकर अपनी पीठ को मेरे पेट और कमर से रगड़ने लगी, अपना सर उन्होने और थोड़ा पीछे कर लिया और अपना एक गाल मेरे चेहरे से टच करने लगी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]ज़ोर लगाने के लिए मे जब आगे को झुकता तो हम दोनो के गाल एक दूसरे से रगड़ जाते.. और पूरे शरीर में एक सनसनी सी फैलने लगती.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]आधे रास्ते पहुँच, दीदी बोली- छोटू थोड़ा और तेज कर ना लेट हो रहे हैं.. तो मेने अपने दोनो हाथ हॅंडल के बीच की ओर लाया जिससे और अच्छे से दम लगा सकूँ..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]लेकिन सही से पकड़ नही पा रहा था…. हॅंडल….! क्योंकि दीदी के दोनो बाजू बीच में आ रहे थे. तो उसने आइडिया निकाला और अपने दोनो बाजू मेरे बाजुओं के उपर से लेजाकर हॅंडल के दस्तानों को पकड़ लिया, जहाँ नोर्मली चलाने वाला पकड़ता है.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]हॅंडल को बीच की तरफ पकड़कर अब साइकल चलाने में दम तो लग रहा था और साइकल भी अब बहुत तेज-तेज चल रही थी लेकिन अब मेरे लेफ्ट साइड की बाजू दीदी के बूब्स को रगड़ने लगी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]दूसरी ओर मेरी दाई जाँघ दीदी के मुलायम चूतड़ को रगड़ा दे रही थी..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मेरे शरीर का करेंट बढ़ता ही जा रहा था, उधर दीदी की तो आँखें ही बंद हो गयी, वो और ज़्यादा अपने बूब्स को जानबूझ कर मेरे बाजू पर दबाते हुए अपनी जांघों को ज़ोर-ज़ोर्से भींचने लगी. [/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उत्तेजना के मारे हम दोनो के ही शरीर गरम होने लगे थे.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]स्कूल पहुँच दीदी ने साइकल से उतरते ही मेरे गाल पर एक किस कर दिया और थॅंक यू बोलकर भागती हुई अपनी क्लास रूम में चली गयी. [/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]छुट्टी के बाद लौटते वक़्त जब मेने दीदी को पुछा की आपने थॅंक्स क्यो बोला था, तो बोली – अरे यार समय पर स्कूल पहुँचा दिया तूने इसके लिए और क्या..! वैसे तू क्या समझा था..?[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मे – कुच्छ नही, मे क्या समझूंगा.., आज पहली बार आपने थॅंक्स बोला इसलिए पुछा. वो नज़र नीची करके स्माइल करने लगी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]घर लौटते वक़्त भी ऐसा ही कुच्छ हमारे साथ हुआ, बल्कि इससे भी आगे बढ़कर दीदी ने अपनी लेफ्ट बाजू मेरी जाँघ पर ही रखड़ी थी और अपने अल्प-विकसित उभारों को मेरी बाजू से रग़ाद-2 कर खुद भी उत्तेजित होती रही और मुझे भी बहाल कर दिया.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अब ये हमारा रोज़ का ही रूटिन सा बन गया था, दिन में एक बार कम से कम मे भाभी का चुम्मा लेता, बदले में वो भी मेरे गाल काट कर अपने होठों से सहला देती, कभी-2 तो मे अपना सर या गाल या फिर मुँह उनके स्तनों पर रख कर रगड़ देता.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]दूसरी तरफ दीदी और मे भी दिनों दिन मस्ती-मज़ाक में बढ़ते ही जा रहे थे, लेकिन सीमा में रह कर.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]ऐसे ही मस्ती मज़ाक में दिन गुज़रते चले गये, और ये साल बीत गया, मे अब नयी क्लास में आ गया था, दीदी 12थ में पहुँच गयी, ये साल हम दोनो का ही बोर्ड था, सो शुरू से ही पढ़ाई पर फोकस करना शुरू कर दिया….[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]उधर बड़े भैया का बी.एड कंप्लीट होने को था, घर में खर्चे भी कंट्रोल में होने शुरू हो गये थे क्योंकि बड़े भैया की पढ़ाई का खर्चा तो अब नही रहा था, और आने वाले कुच्छ महीनो में अब वो भी जॉब करने वाले थे.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]हम दोनो भाई-बेहन ने भाभी से जुगाड़ लगा कर एक व्हीकल लेने के लिए पहले भैया के कानो तक बात पहुँचाई और फिर हम सबने मिलकर बाबूजी को भी कन्विन्स कर लिया, जिसमें छोटे भैया का भी सपोर्ट रहा.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अब घर के सभी सदस्यों की बात टालना भी बाबूजी के लिए संभव नही था, ऐसा नही था कि उनको पैसों का कोई प्राब्लम था, लेकिन एक डर था कि मे व्हीकल मॅनेज कर पाउन्गा या नही.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]सबके रिक्वेस्ट करने पर वो मान गये और उन्होने एक बिना गियर की टू वीलर दिलवा दी, अब हम दोनो भाई-बेहन टाइम से स्कूल पहुँच जाते थे.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]दीदी ने भी चलाना सीख लिया तो कभी मे ले जाता और कभी वो, जब मे चलाता तो वो मेरे से चिपक कर बैठती और अपने नये विकसित हो रहे उरोजो को मेरी पीठ से सहला देती.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]जब वो चलती तो जानबूझ कर अपने हिप्स मेरे आगे रगड़ देती, जिससे मेरा पप्पू बेचारा पॅंट में टाइट हो जाता और कुच्छ और ना पता देख मन मसोस कर रह जाता, लेकिन दीदी उसे अच्छे से फील करके गरम हो जाती.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]ऐसे ही कुच्छ महीने और निकल गये, इतने में बड़े भैया को भी एक इंटर कॉलेज में लेक्चरर की जॉब मिल गयी, लेकिन शहर में ही जिससे उनके घर आने के रूटिन में कोई तब्दीली नही हुई.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]इस बार स्कूल में आन्यूयल स्पोर्ट्स दे मानने का आदेश आया था, रूरल एरिया का स्कूल था सो सभी देहाती टाइप के देशी गेम होने थे, जैसे खो-खो, कबड्डी, लोंग जंप, हाइ जंप…लड़कियों के लिए अंताक्षरी, संगीत, डॅन्स…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मेरी बॉडी अपने क्लास के हिसाब से बहुत अच्छी थी, सो स्पोर्ट्स टीचर ने मेरे बिना पुच्छे ही मेरा नाम स्पोर्ट्स के लिए लिख लिया, और सबसे प्रॅक्टीस कराई, जिसमें [/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मेरा कबड्डी और लोंग जंप में अच्छा प्रद्र्षन रहा और मे उन दोनो खेलों के लिए सेलेक्ट कर लिया.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]सारे दिन खेलते रहने की वजह से शरीर तक के चूर हो रहा था, पहले से कभी कुच्छ खेलता नही था, तो थकान ज़्यादा महसूस हो रही थी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]स्कूल से लौटते ही मेने बॅग एक तरफ को पटका और बिना चेंज किए ही आँगन में पड़ी चारपाई पर पसर गया. सारे कपड़े पसीने और मिट्टी से गंदे हो रखे थे.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]थोड़ी ही देर में मेरी झपकी लग गयी, जब भाभी ने आकर मुझे इस हालत में देखा तो वो मेरे बगल में आकर बैठ गयी, और मेरे बालों में उंगलिया फिराते हुए मुझे आवाज़ दी.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]मेने आँखें खोल कर उनकी तरफ देखा तो वो बोली – क्या हुआ, आज ऐसे आते ही पड़ गये, ना कपड़े चेंज किए, और देखो तो क्या हालत बना रखी है कपड़ों की.. बॅग भी ऐसे ही उल्टा पड़ा है…[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]किसी से कुस्ति करके आए हो..? मेने कहा नही भाभी, असल में आज स्कूल में स्पोर्ट्स दे के लिए गेम हुए, और मेरा दो खेलों के लिए सेलेक्षन हो गया है.[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]सारे दिन खेलते-2 बदन टूट रहा है, कभी खेलता नही हूँ ना.. इसलिए.. प्लीज़ थोड़ी देर सोने दो ना भाभी..[/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]अरे.. ! ये तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन ऐसे में कैसे नींद आ सकती है, शरीर में कीटाणु लगे हुए हैं, चलो उठो ! पहले नहा के फ्रेश हो जाओ, कुच्छ खा पीलो, फिर देखना अपनी भाभी के हाथों का चमत्कार, कैसे शरीर की थकान छुमन्तर करती हूँ.. चलो.. अब उठो..![/font]

[font=Arial, Helvetica, sans-serif]और उन्होने जबर्दुस्ति हाथ से पकड़ कर मुझे खड़ा कर दिया, और पीठ पर हाथ रख कर जबर्जस्ति पीछे से धकेलते हुए बाथरूम में भेज दिया….![/font]
 
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