hotaks444
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हम 60-70 किमी निकल आए थे, भैया ने जो जगह घूमने के लिए बताई थी, वो आने वाली थी…
आगे एक छोटे से गाओं के बाहर सड़क के किनारे चाय नाश्ते की टपरी सी थी, मेने उसके पास पहुँचकर अपनी बाइक रोकी और कुच्छ नाश्ते के लिए पुछा,
वो गरमा-गरम पालक-मेथी के पकोडे तल रहा था..
हमने उससे पकोडे लिए और खाने लगे… उसके बाद एक-एक चाइ ली जो कुच्छ ज़्यादा सही नही लगी.. अब ले ली थी तो पीनी पड़ी…
चाय पीते-2 मेने उस टपरी वाले से उस जगह के बारे में पुछा..
तो उसने बताया कि यहाँ से आधे किमी के बाद अपने ही हाथ पर एक कच्चा पत्तरीला रास्ता आएगा, उसी से वहाँ पहुँचा जा सकता है…
वो जगह रोड से करीब एक फरलॉंग ही अंदर को है…उसे चाय पकोडे के पैसे देकर हम फिर आगे बढ़ गये..
वो जगह वाकई में रोमांटिक थी.. घने उँचे पेड़ों के बीच एक छ्होटी सी झील जैसी थी, जिसका पानी एक सिरे पर स्थित कोई 15-20 फीट उँची पहाड़ियों से निकल रहा था, और झील में जमा हो रहा था… !
ओवरफ्लो होकर झील का पानी सबसे निचले किनारे से निकल कर जंगलों के बीच जा रहा था…
झील के दोनो किनारों पर उसके समानांतर तकरीबन 30-40 मीटर की चौड़ाई के हरी-हरी घास के मैदान थे… कुल मिलाकर प्रेमी जोड़ों के मज़े करने के लिए ये उत्तम जगह थी.
जब हम वहाँ पहुँचे तो दोपहर के 12-12:30 का समय था, इस वजह से और कोई वहाँ नही था, एक-दो जोड़े थे, वो भी निकलने की तैयारी में थे..
मेने बाइक पेड़ों के बीच खड़ी की और अपने बॅग उठाकर झील के किनारे की तरफ चल दिए… दीदी तो उस जगह को देख कर बहुत एक्शिटेड हो रही थी.
वाउ ! छोटू क्या मस्त जगह है यार ! मेरा तो मन कर रहा है, दो-चार दिन यहाँ से हिलू भी ना…
हमने झील के किनारे घास पर अपने बॅग रख दिए और कुच्छ दूर झील के किनारे-2 घूमने लगे…
रंग बिरंगी छोटी-बड़ी मछलिया.. हमें देख कर किनारे से और गहराई को तैरती हुई भाग जाती.. जो झील के साफ नीले पानी में काफ़ी दूर तक दिखाई देती..
वो एक जगह बैठ कर पानी में हाथ डालकर मछलियो से खेलने लगी…
वो कुच्छ देर दीदी के हाथ से दूर भाग जाती.. और एक जगह ठहर कर उसकी ओर देखने लगती, और फिर पुंछ हिला-हिलाकर इधर-उधर भाग लेती…
जुलाइ-अगुस्त के महीने में भी झील का पानी ठंडा था… कुच्छ देर मछलियो से खेलने के बाद दीदी बोली – भाई मेरा तो इसमें नहाने का मान कर रहा है..
मे – लेकिन दीदी हमें तैरना तो आता नही, अगर पानी गहरा हुआ तो..?
वो – लगता तो नही की ज़्यादा गहरा होगा.. चल धीरे-2 आगे बढ़ते हैं.. ज़्यादा अंदर तक नही जाएँगे.. और वो धीरे-2 पानी में उतरने लगी..
मे अभी भी किनारे पर खड़ा उसे पानी के अंदर जाते हुए देख रहा था..
दीदी काफ़ी अंदर तक चली गयी, फिर भी पानी उसके पेट से थोड़ा उपर तक ही था..
मेने कहा दीदी बस यहीं नहा लो, और आयेज मत जाना.. वो बोली- तू भी आजा ना यार ! साथ मे नहाते हैं.. मज़ा आएगा…
मेने कहा – नही तुम ही नहाओ, मे ऐसे ही ठीक हूँ, तो वो वहीं डुबकी लगाने लगी..
अब वो पूरी तरह भीग गयी थी, डुबकी लगाकर जैसे ही वो खड़ी हुई, उसकी झीने से कपड़े की टीशर्ट उसके शरीर से चिपक गयी और उसकी ब्रा साफ-साफ दिखाई देने लगी..
ब्रा से बाहर झलकते हुए उसके अमरूदो की छटा उसकी टीशर्ट से नुमाया हो रही थी..
उसे देखकर मेरा पप्पू भी मन चलाने लगा…मानो कह रहा हो- अरे यार क्या देखता ही रहेगा भेन्चोद ! कूद पड़ तू भी और ले ले मज़े… मौका है…
मे उसके भीगे बदन के मज़े ले ही रहा था कि उसने फिरसे डुबकी लगाई.. इस बार वो कुच्छ देर तक बाहर नही आई..
साफ पानी में उसका शरीर तो दिख रहा था लेकिन वो उपर नही आ रही थी…. मेरे मन में आशंका सी उठने लगी….
आधे मिनिट से भी उपर हो गया फिर भी वो बाहर नही आई तो मुझे कुच्छ गड़बड़ सी लगने लगी…
तभी दीदी झटके से उपर आई और एक लंबी साँस भरके…अपना एक हाथ उपर करके सिर्फ़ छोटू ही बोल पाई और फिरसे अंदर डूबती चली गयी………
मेने इधर उधर नज़र दौड़ाई, शायद कोई मदद करने वाला हो…लेकिन वहाँ दूर दूर तक ना इंसान ना इंसान की जात, कोई भी नही था…
जब कोई और सहारा ना दिखा, तो मेने ले उपर वाले का नाम, आव ना देख ताव.. अपनी टीशर्ट और पाजामा उतार किनारे पर फेंका और पानी में छलान्ग लगा दी…,
मे तेज़ी से दीदी की ओर बढ़ा…! और जैसे ही उसके पास पहुँचा.., झटके से वो उपर आई, और खिल-खिलाकर मेरे सामने पानी में खड़ी होकर हँसने लगी..
यहाँ पानी उसके गले से थोड़ा नीचे था, माने उसके बूब पानी के अंदर थे…
आगे एक छोटे से गाओं के बाहर सड़क के किनारे चाय नाश्ते की टपरी सी थी, मेने उसके पास पहुँचकर अपनी बाइक रोकी और कुच्छ नाश्ते के लिए पुछा,
वो गरमा-गरम पालक-मेथी के पकोडे तल रहा था..
हमने उससे पकोडे लिए और खाने लगे… उसके बाद एक-एक चाइ ली जो कुच्छ ज़्यादा सही नही लगी.. अब ले ली थी तो पीनी पड़ी…
चाय पीते-2 मेने उस टपरी वाले से उस जगह के बारे में पुछा..
तो उसने बताया कि यहाँ से आधे किमी के बाद अपने ही हाथ पर एक कच्चा पत्तरीला रास्ता आएगा, उसी से वहाँ पहुँचा जा सकता है…
वो जगह रोड से करीब एक फरलॉंग ही अंदर को है…उसे चाय पकोडे के पैसे देकर हम फिर आगे बढ़ गये..
वो जगह वाकई में रोमांटिक थी.. घने उँचे पेड़ों के बीच एक छ्होटी सी झील जैसी थी, जिसका पानी एक सिरे पर स्थित कोई 15-20 फीट उँची पहाड़ियों से निकल रहा था, और झील में जमा हो रहा था… !
ओवरफ्लो होकर झील का पानी सबसे निचले किनारे से निकल कर जंगलों के बीच जा रहा था…
झील के दोनो किनारों पर उसके समानांतर तकरीबन 30-40 मीटर की चौड़ाई के हरी-हरी घास के मैदान थे… कुल मिलाकर प्रेमी जोड़ों के मज़े करने के लिए ये उत्तम जगह थी.
जब हम वहाँ पहुँचे तो दोपहर के 12-12:30 का समय था, इस वजह से और कोई वहाँ नही था, एक-दो जोड़े थे, वो भी निकलने की तैयारी में थे..
मेने बाइक पेड़ों के बीच खड़ी की और अपने बॅग उठाकर झील के किनारे की तरफ चल दिए… दीदी तो उस जगह को देख कर बहुत एक्शिटेड हो रही थी.
वाउ ! छोटू क्या मस्त जगह है यार ! मेरा तो मन कर रहा है, दो-चार दिन यहाँ से हिलू भी ना…
हमने झील के किनारे घास पर अपने बॅग रख दिए और कुच्छ दूर झील के किनारे-2 घूमने लगे…
रंग बिरंगी छोटी-बड़ी मछलिया.. हमें देख कर किनारे से और गहराई को तैरती हुई भाग जाती.. जो झील के साफ नीले पानी में काफ़ी दूर तक दिखाई देती..
वो एक जगह बैठ कर पानी में हाथ डालकर मछलियो से खेलने लगी…
वो कुच्छ देर दीदी के हाथ से दूर भाग जाती.. और एक जगह ठहर कर उसकी ओर देखने लगती, और फिर पुंछ हिला-हिलाकर इधर-उधर भाग लेती…
जुलाइ-अगुस्त के महीने में भी झील का पानी ठंडा था… कुच्छ देर मछलियो से खेलने के बाद दीदी बोली – भाई मेरा तो इसमें नहाने का मान कर रहा है..
मे – लेकिन दीदी हमें तैरना तो आता नही, अगर पानी गहरा हुआ तो..?
वो – लगता तो नही की ज़्यादा गहरा होगा.. चल धीरे-2 आगे बढ़ते हैं.. ज़्यादा अंदर तक नही जाएँगे.. और वो धीरे-2 पानी में उतरने लगी..
मे अभी भी किनारे पर खड़ा उसे पानी के अंदर जाते हुए देख रहा था..
दीदी काफ़ी अंदर तक चली गयी, फिर भी पानी उसके पेट से थोड़ा उपर तक ही था..
मेने कहा दीदी बस यहीं नहा लो, और आयेज मत जाना.. वो बोली- तू भी आजा ना यार ! साथ मे नहाते हैं.. मज़ा आएगा…
मेने कहा – नही तुम ही नहाओ, मे ऐसे ही ठीक हूँ, तो वो वहीं डुबकी लगाने लगी..
अब वो पूरी तरह भीग गयी थी, डुबकी लगाकर जैसे ही वो खड़ी हुई, उसकी झीने से कपड़े की टीशर्ट उसके शरीर से चिपक गयी और उसकी ब्रा साफ-साफ दिखाई देने लगी..
ब्रा से बाहर झलकते हुए उसके अमरूदो की छटा उसकी टीशर्ट से नुमाया हो रही थी..
उसे देखकर मेरा पप्पू भी मन चलाने लगा…मानो कह रहा हो- अरे यार क्या देखता ही रहेगा भेन्चोद ! कूद पड़ तू भी और ले ले मज़े… मौका है…
मे उसके भीगे बदन के मज़े ले ही रहा था कि उसने फिरसे डुबकी लगाई.. इस बार वो कुच्छ देर तक बाहर नही आई..
साफ पानी में उसका शरीर तो दिख रहा था लेकिन वो उपर नही आ रही थी…. मेरे मन में आशंका सी उठने लगी….
आधे मिनिट से भी उपर हो गया फिर भी वो बाहर नही आई तो मुझे कुच्छ गड़बड़ सी लगने लगी…
तभी दीदी झटके से उपर आई और एक लंबी साँस भरके…अपना एक हाथ उपर करके सिर्फ़ छोटू ही बोल पाई और फिरसे अंदर डूबती चली गयी………
मेने इधर उधर नज़र दौड़ाई, शायद कोई मदद करने वाला हो…लेकिन वहाँ दूर दूर तक ना इंसान ना इंसान की जात, कोई भी नही था…
जब कोई और सहारा ना दिखा, तो मेने ले उपर वाले का नाम, आव ना देख ताव.. अपनी टीशर्ट और पाजामा उतार किनारे पर फेंका और पानी में छलान्ग लगा दी…,
मे तेज़ी से दीदी की ओर बढ़ा…! और जैसे ही उसके पास पहुँचा.., झटके से वो उपर आई, और खिल-खिलाकर मेरे सामने पानी में खड़ी होकर हँसने लगी..
यहाँ पानी उसके गले से थोड़ा नीचे था, माने उसके बूब पानी के अंदर थे…