hotaks444
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वर्षा ने दर्द के कारण अपनी आँखें बंद करके होठों को कस लिया..!
थोड़ा रुक कर मेने उसकी चुचियाँ सहलाकर पुछा – दर्द हो रहा है भौजी..?
उसने बिना कुछ कहे अपनी हां में गर्दन हिला दी.., फिर मुँह से साँस छोड़ते हुए बोली – ये इतना मोटा और बड़ा कैसे हो गया है…!
मेने उसे पीठ से उठाकर अपने सीने से लगाते हुए उसकी पीठ सहलाकर कहा – समय के साथ साथ इसने भी अपना आकार बढ़ा लिया है, आप चिंता मत करो, मे आपको दर्द नही होने दूँगा…!
ये कहकर मेने उसे फिरसे बिस्तर पर लिटाया, और थोड़ा लंड बाहर लेकर फाइनल धक्का लगा दिया..!
लंड जड़ तक उसकी चूत में समा गया, वर्षा की आँखों से दो बूँद पानी की निकल पड़ी, लेकिन मेरे लंड की चाह में उसने कोई शिकायत नही की…!
थोडा रुक कर मे उसके होत चूस्ते हुए उसके कांचे जैसे निप्प्लो से खेलता रहा, अब वो थोड़ा रिलॅक्स फील कर रही थी..,
उसकी आँखों में देखते हुए मेने पुछा – अब शुरू करूँ मेरी जान,
उसने पलकें झपका कर अपनी सहमति दे दी, और मेने अपने धक्के लगाना शुरू कर दिए..,
कुछेक धक्कों में ही चूत की कसावट कम हो गयी, अब वो रसीली होती जा रही थी.., फूच..फूच.. जैसी आवाज़ें शुरू हो गयी थी..,
वर्षा अपनी आँखें बंद किए मेरे लंड को चूत में फील करके मज़े से सिसक रही थी…
सस्सिईइ…देवर्जी…आअहह…बहुत मज़ा आरहा है.., आज फाड़ डालो मेरी चूत को, बना दो इसका भोसड़ा.., बहुत तर्सि है ये आपके मूसल को, कूटो राजा और ज़ोर्से कूटो मेरी ओखली को…,
उसकी बड़बड़ाहट सुनकर मेरा लॉडा और ज़्यादा फूल गया.., अब वर्षा भी नीचे से अपनी गान्ड उचका-उचका कर मस्त होकर चुदने लगी…!
वो एक बार झड चुकी थी, लेकिन अपनी चूत की प्यास बुझाने के चक्कर में उसने फील नही होने दिया, मे भी ढका-धक उसे पेलता रहा जब तक कि मेरे नाग ने उसकी सुरंग में अपना जहर नही उगल दिया…!
मेरे झड़ते ही वो मेरी छाती से जोंक की तरह चिपक गयी, अपनी चूत को मेरे लंड पर दबाकर वो एक बार फिर भल-भला कर झड़ने लगी…!
बाथरूम से लौटकर वर्षा नितन्ग नंगी ही अपनी गान्ड मटकाती हुई आकर मेरी गोद में बैठ गयी, कुछ देर मेरे छाती के बाल सहलाते हुए अपने पति के बारे में गीले शिकवे करती रही..,
अब मेरे पास उसकी समस्या का कोई स्थाई समाधान तो था नही, बस कुछ पल खुशी के दे सकता था सो देने का प्रयास कर रहा था..,
उसकी मखमली गान्ड की गर्मी से मेरा बाबूलाल एक बार फिर फॅड-फडाने लगा, जिसका अहसास अपनी गान्ड पर पाकर वर्षा ने फिरसे उसे अपने मुँह में ले लिया..,
एक बार फिर पंडितजी के घर में चुदाई का खेल शुरू हो गया…, एक बार और मेने जमकर उसकी चुदाई की.., अब वो कुछ हद तक तृप्त लग रही थी,
लेकिन रात में भाभी और निशा के साथ, अब दो बार वर्षा रानी के उपर बारिस होने से मुझे काफ़ी थकान सी महसूस होने लगी थी..,
फिर वर्षा ने अपने हाथों से ताज़ा और पौष्टिक बढ़िया सा चाइ के साथ नाश्ता करवाया जिससे मे पुनः ताज़ा दम हो गया…,
मुझे विदा करते वक़्त उसकी आँखों में आँसू थे, मेने उसकी पलकों को चूमकर उसे फिरसे जल्दी ही मिलने का वादा करके मे वहाँ से अपने घर वापस लौट आया………………………………………..,
हम सभी फॅमिली मेंबर दूसरे दिन ही शहर को निकल लिए, जिससे सभी को पार्टी के हिसाब से ज़रूरत की परचेसिंग कराई जा सके…!
उस रात हम सभी परिवारिजन अपने फ्लॅट में ही उपस्थित थे, कृष्णा भैया और प्राची भी वहाँ आगये,
मधु आंटी ने पूरे परिवार का दिल से स्वागत किया…
मेने सभी को सर्प्राइज़ के तौर पर फ्लॅट के बारे में बताया, और अपने बन रहे बंगले पर भी ले गया…!
बाबूजी, भैया, भाभी और यहाँ तक कि निशा को भी ये पता नही था, सो वो ये सब जानकार चकित रह गये, फिर उन्होने मुझे ढेर सारे आशीर्वाद से नवाजा,
बाबूजी ने मेरे सिर पर हाथ फेर कर कहा – ईश्वर करे तू ऐसे ही दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करे, फिर जब मेने उन्हें ये बताया कि ये सब गुप्ता जी की ही मेहरवानी है…
वो मुझे अपने घर का ही सदस्य मानते हैं, मेरी बिना सलाह के वो कोई भी नया काम नही करते, इसलिए मे आप लोगों को उनकी पार्टी में शामिल होने के लिए लाया हूँ…!
और एक बात बाबूजी, मेने सोचा है, कि जैसे ही हमारा ये बंगला रेडी हो जाएगा, हम सभी गाओं से यहाँ आकर शिफ्ट हो जाएँगे…!
बड़े भैया को छोड़कर सभी मेरी राई से सहमत थे, मे उनकी दुविधा भाँपते हुए बोला – आप अपने कॉलेज की वजह से राज़ी नही हो ना, तो उसका भी मेरे पास इलाज़ है…
सब मेरी ओर देखने लगे, मेने आगे कहा – मेने गुप्ता जी से बात कर ली है, वो अपने डिग्री कॉलेज में आपको बतौर प्रोफ़ेसर रखने वाले हैं…!
भैया – क्या..? तूने ये सब तय भी कर लिया… और मुझे अब बता रहा है…?
बाबूजी – लेकिन बेटा गाओं का घर, खेती वाडी.., उसका क्या होगा..?
मेने छोटे चाचा की तरफ देखा और कहा.., उसे हमारे तीनों चाचा मिल बाँट कर संभाल लेंगे, कम से कम कभी-कभार गाओं जाना होगा तो चाची खातिर तो किया करेंगी…!
क्यों चाची खातिर किया करोगी या भूल जाओगी, सबकी नज़र उनकी तरफ गयी, पर वो तो शायद वहाँ थी ही नही, बस गुम-सूम सी बैठी रही,
भाभी ने उनके कंधे को पकड़ कर हिलाया, वो जैसे नींद से जागी हों, भाभी ने पुछा – क्या हुआ चाची, आप की तबीयत तो ठीक है ना…!
चाची ने देर तक कुछ नही कहा, बस उनकी आँखों से दो बूँद पानी की नीचे को टपक पड़ी, बाबूजी ने उनके सिर पर हाथ रख कर कहा – क्या हुआ रश्मि बहू ?
चाची भर्राये गले से बोली – लल्ला की बातों से लगता है, आप सब लोग हमें अकेला गाओं में छोड़ आओगे, मे वहाँ अकेली कैसे रह पाउन्गि आप सब के बिना…!
मे – गाओं की सरपंच बनकर…!
सभी एक साथ बोल पड़े – क्या….???
थोड़ा रुक कर मेने उसकी चुचियाँ सहलाकर पुछा – दर्द हो रहा है भौजी..?
उसने बिना कुछ कहे अपनी हां में गर्दन हिला दी.., फिर मुँह से साँस छोड़ते हुए बोली – ये इतना मोटा और बड़ा कैसे हो गया है…!
मेने उसे पीठ से उठाकर अपने सीने से लगाते हुए उसकी पीठ सहलाकर कहा – समय के साथ साथ इसने भी अपना आकार बढ़ा लिया है, आप चिंता मत करो, मे आपको दर्द नही होने दूँगा…!
ये कहकर मेने उसे फिरसे बिस्तर पर लिटाया, और थोड़ा लंड बाहर लेकर फाइनल धक्का लगा दिया..!
लंड जड़ तक उसकी चूत में समा गया, वर्षा की आँखों से दो बूँद पानी की निकल पड़ी, लेकिन मेरे लंड की चाह में उसने कोई शिकायत नही की…!
थोडा रुक कर मे उसके होत चूस्ते हुए उसके कांचे जैसे निप्प्लो से खेलता रहा, अब वो थोड़ा रिलॅक्स फील कर रही थी..,
उसकी आँखों में देखते हुए मेने पुछा – अब शुरू करूँ मेरी जान,
उसने पलकें झपका कर अपनी सहमति दे दी, और मेने अपने धक्के लगाना शुरू कर दिए..,
कुछेक धक्कों में ही चूत की कसावट कम हो गयी, अब वो रसीली होती जा रही थी.., फूच..फूच.. जैसी आवाज़ें शुरू हो गयी थी..,
वर्षा अपनी आँखें बंद किए मेरे लंड को चूत में फील करके मज़े से सिसक रही थी…
सस्सिईइ…देवर्जी…आअहह…बहुत मज़ा आरहा है.., आज फाड़ डालो मेरी चूत को, बना दो इसका भोसड़ा.., बहुत तर्सि है ये आपके मूसल को, कूटो राजा और ज़ोर्से कूटो मेरी ओखली को…,
उसकी बड़बड़ाहट सुनकर मेरा लॉडा और ज़्यादा फूल गया.., अब वर्षा भी नीचे से अपनी गान्ड उचका-उचका कर मस्त होकर चुदने लगी…!
वो एक बार झड चुकी थी, लेकिन अपनी चूत की प्यास बुझाने के चक्कर में उसने फील नही होने दिया, मे भी ढका-धक उसे पेलता रहा जब तक कि मेरे नाग ने उसकी सुरंग में अपना जहर नही उगल दिया…!
मेरे झड़ते ही वो मेरी छाती से जोंक की तरह चिपक गयी, अपनी चूत को मेरे लंड पर दबाकर वो एक बार फिर भल-भला कर झड़ने लगी…!
बाथरूम से लौटकर वर्षा नितन्ग नंगी ही अपनी गान्ड मटकाती हुई आकर मेरी गोद में बैठ गयी, कुछ देर मेरे छाती के बाल सहलाते हुए अपने पति के बारे में गीले शिकवे करती रही..,
अब मेरे पास उसकी समस्या का कोई स्थाई समाधान तो था नही, बस कुछ पल खुशी के दे सकता था सो देने का प्रयास कर रहा था..,
उसकी मखमली गान्ड की गर्मी से मेरा बाबूलाल एक बार फिर फॅड-फडाने लगा, जिसका अहसास अपनी गान्ड पर पाकर वर्षा ने फिरसे उसे अपने मुँह में ले लिया..,
एक बार फिर पंडितजी के घर में चुदाई का खेल शुरू हो गया…, एक बार और मेने जमकर उसकी चुदाई की.., अब वो कुछ हद तक तृप्त लग रही थी,
लेकिन रात में भाभी और निशा के साथ, अब दो बार वर्षा रानी के उपर बारिस होने से मुझे काफ़ी थकान सी महसूस होने लगी थी..,
फिर वर्षा ने अपने हाथों से ताज़ा और पौष्टिक बढ़िया सा चाइ के साथ नाश्ता करवाया जिससे मे पुनः ताज़ा दम हो गया…,
मुझे विदा करते वक़्त उसकी आँखों में आँसू थे, मेने उसकी पलकों को चूमकर उसे फिरसे जल्दी ही मिलने का वादा करके मे वहाँ से अपने घर वापस लौट आया………………………………………..,
हम सभी फॅमिली मेंबर दूसरे दिन ही शहर को निकल लिए, जिससे सभी को पार्टी के हिसाब से ज़रूरत की परचेसिंग कराई जा सके…!
उस रात हम सभी परिवारिजन अपने फ्लॅट में ही उपस्थित थे, कृष्णा भैया और प्राची भी वहाँ आगये,
मधु आंटी ने पूरे परिवार का दिल से स्वागत किया…
मेने सभी को सर्प्राइज़ के तौर पर फ्लॅट के बारे में बताया, और अपने बन रहे बंगले पर भी ले गया…!
बाबूजी, भैया, भाभी और यहाँ तक कि निशा को भी ये पता नही था, सो वो ये सब जानकार चकित रह गये, फिर उन्होने मुझे ढेर सारे आशीर्वाद से नवाजा,
बाबूजी ने मेरे सिर पर हाथ फेर कर कहा – ईश्वर करे तू ऐसे ही दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करे, फिर जब मेने उन्हें ये बताया कि ये सब गुप्ता जी की ही मेहरवानी है…
वो मुझे अपने घर का ही सदस्य मानते हैं, मेरी बिना सलाह के वो कोई भी नया काम नही करते, इसलिए मे आप लोगों को उनकी पार्टी में शामिल होने के लिए लाया हूँ…!
और एक बात बाबूजी, मेने सोचा है, कि जैसे ही हमारा ये बंगला रेडी हो जाएगा, हम सभी गाओं से यहाँ आकर शिफ्ट हो जाएँगे…!
बड़े भैया को छोड़कर सभी मेरी राई से सहमत थे, मे उनकी दुविधा भाँपते हुए बोला – आप अपने कॉलेज की वजह से राज़ी नही हो ना, तो उसका भी मेरे पास इलाज़ है…
सब मेरी ओर देखने लगे, मेने आगे कहा – मेने गुप्ता जी से बात कर ली है, वो अपने डिग्री कॉलेज में आपको बतौर प्रोफ़ेसर रखने वाले हैं…!
भैया – क्या..? तूने ये सब तय भी कर लिया… और मुझे अब बता रहा है…?
बाबूजी – लेकिन बेटा गाओं का घर, खेती वाडी.., उसका क्या होगा..?
मेने छोटे चाचा की तरफ देखा और कहा.., उसे हमारे तीनों चाचा मिल बाँट कर संभाल लेंगे, कम से कम कभी-कभार गाओं जाना होगा तो चाची खातिर तो किया करेंगी…!
क्यों चाची खातिर किया करोगी या भूल जाओगी, सबकी नज़र उनकी तरफ गयी, पर वो तो शायद वहाँ थी ही नही, बस गुम-सूम सी बैठी रही,
भाभी ने उनके कंधे को पकड़ कर हिलाया, वो जैसे नींद से जागी हों, भाभी ने पुछा – क्या हुआ चाची, आप की तबीयत तो ठीक है ना…!
चाची ने देर तक कुछ नही कहा, बस उनकी आँखों से दो बूँद पानी की नीचे को टपक पड़ी, बाबूजी ने उनके सिर पर हाथ रख कर कहा – क्या हुआ रश्मि बहू ?
चाची भर्राये गले से बोली – लल्ला की बातों से लगता है, आप सब लोग हमें अकेला गाओं में छोड़ आओगे, मे वहाँ अकेली कैसे रह पाउन्गि आप सब के बिना…!
मे – गाओं की सरपंच बनकर…!
सभी एक साथ बोल पड़े – क्या….???