hotaks444
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चंबल का ब्रिज क्रॉस करते ही ललित बोला – वकील भैया आपके साइड में एक कच्चा रेतीला रास्ता होगा.., गाड़ी उसी रास्ते पर ले लेना…!
मेने एक नज़र ललित के भावशून्य चेहरे पर डाली.., मे समझ चुका था कि अब संजू ने पूरी तरह ललित के शरीर को अपने कब्ज़े में लेकर कमॅंड अपने हाथ में संभाल ली है…!
ये एक तरह से ज़रूरी भी था.., जितना इस इलाक़े के बारे में संजू को जानकारी थी उतनी मुझे नही…, अभी वो रास्ता आया नही था, मेने
उससे पुछा – पहले क्या करना चाहते हो..?
संजू – सबसे पहले मेरे शरीर का दाह संस्कार करना होगा वरना कीड़े-मकोडे उसे वैसे ही नष्ट कर देंगे.., और मेरी आत्मा पर हमेशा एक बोझ सा बना रहेगा…!
दूसरा जब तक मेरे शरीर को सदगति नही मिल जाती.., प्रेतलोक की शक्तियाँ मुझे हाँसिल नही हो पाएँगी.., और मे हमेशा आधी अधूरी शक्तियों के साथ इधर से उधर भटकता रहूँगा…!
एक बार मुझे सदगति दिला दो.., फिर खेलते हैं खुला खेल फ़ारुक्खाबादी इन हरामियो के साथ.., मे जब तक इनका समूल नाश नही कर देता तब तक मुझे चैन नही मिलेगा…!
मे – लेकिन मेरे भाई.., मृत शरीर को ढकने के लिए कम से कम एक कॅफन तो चाहिए.., ऐसा करते हैं.., पहले कस्बे में जाकर कुच्छ ज़रूरत का समान ले आते हैं.., फिर लौट कर पूरे विधि विधान से तुम्हारे शरीर का दाह संस्कार करना पड़ेगा…!
संजू ने इस पर कुच्छ नही कहा तो मेने अपनी गाड़ी सीधे कस्बे के लिए दौड़ा दी.., अब वो आँखें बंद किए शांत गाड़ी की सीट से टेक लागये बैठा था…!
अभी संजू ललित के उपर है या नही ये चेक करने के लिए मेने उससे पुछा – क्या तुम अपनी मौत का बदला उन लोगों से लेना चाहते हो संजू..?
मेरी बात सुनकर ललित ने झटके से अपनी आँखें खोल दी, मेरी तरफ अपनी लाल-लाल आँखों से देखते हुए बोला – मुझे अपने मरने का कोई गम नही है भैया…!
उसका बदला तो मे युसुफ को मारकर ले चुका हूँ.., लेकिन प्रिया मेरी जान उन दरिंदों की क़ैद में है.., उसे मे किसी भी सूरत में वहाँ नही
छोड़ सकता वरना वो हराम के बीज ना जाने क्या करेंगे उसके साथ…!
अगर उन्होने उसे भी किसी के हाथों बेच दिया जैसा कि उनका एक धंधा विमन ट्रीफिक्किंग का भी है तो मे अपने आपको कभी माफ़ नही
कर पाउन्गा…!
और अगर उसे वहाँ से निकालना है तो उनसे भिड़े बिना निकालना नामुमकिन है.., अगर आप मेरा साथ नही देना चाहते तो कोई बात नही.., मे अकेला ही उसे वहाँ से निकालने की कोशिश करूँगा..!
मे – ये तुम कैसी बात कर रहे हो मेरे भाई.., हमारे उपर तुमने इतने एहसान किए हैं कि उनके सामने मे अपने आपको बौना महसूस करने लगा हूँ…!
तुमने मेरे घर की इज़्ज़त के लिए अपनी जान न्यौच्छावर करदी, तो क्या मे तुम्हारे लिए इतना भी नही कर सकता…?
संजू – ये कहकर आपने मुझे पराया कर दिया भैया.., इतना कहते हुए उसका गला भर आया और ललित की उन शोले बरसाती आँखों से दो
बूँद पानी की अपना किनारा छोड़ कर नीचे गिर पड़ी…!
मेने कभी अपने आपको इस घर से अलग नही समझा लेकिन आज आपने अपने घर की इज़्ज़त का हवाला देकर मुझे पराया कर दिया, रूचि
को मे अपनी सग़ी भांजी से भी बढ़कर मानता था.., उसकी अस्मत बचना मेने अपना फ़र्ज़ समझा…!
मेने फ़ौरन उसका कंधा दबाते हुए कहा – ऐसा मत बोल मेरे भाई मुझे माफ़ कर दे यार.., पता नही कैसे ये शब्द मेरे मूह से निकल गये.., जिनपर अब मुझे खुद भी अफ़सोस हो रहा है…!
संजू मेरे गले से लगकर किसी बच्चे की तरह सूबकते हुए बोला.., पता नही वो कॉन सा पल था जब वो हरामजादि वहीदा फिर एक बार मेरे
सामने आगयि.., मेने आप लोगों के प्यार को ठुकरा दिया और उसके सुनहरे जाल में फँस गया…!
मेने एक हाथ से उसकी पीठ सहलाते हुए कहा – जो होना होता है वो होकर ही रहता है मेरे भाई.., अब अफ़सोस करके हम अपने आप को दोषी मानकर बस दुखी ही कर सकते हैं..,
एश्वर ने चाहा तो तुम्हें जल्दी ही इस योनि से मुक्ति मिल जाएगी…!
संजू मेरे से अलग होते हुए बोला – अब ईश्वर से मेरी एक ही विनती है.., अगर वो मुझे मेरे किसी भी नेक काम जो मेने अपनी जिंदगी में किया हो उसका फल देना चाहें तो मे फिरसे अपने इसी परिवार में जन्म लेकर आप लोगों के बीच आना चाहता हूँ…!
अपने इस जीवन की ग़लतियों की भूल सुधार कर एक अच्छे आदमी की तरह अपना नया जीवन जीना चाहता हूँ…!
मे – ईश्वर बड़ा न्यायकारी है.., जीवात्मा की मुराद पूरी अवश्य होती है, बस उसके लिए हमें अच्छे नेक काम करते रहना होता है…, वो तुम्हारी ये इक्च्छा भी आवश्या पूरी करेंगे..!
हम सब भी तुम्हें फिरसे अपने परिवार में देखना चाहते हैं मेरे दोस्त…!
संजू से बात करते करते मुझे बड़ा सुकून सा मिला.., समय का पता ही नही चला और हम कस्बे में दाखिल भी हो गये…!
ललित अब सामान्य हो चुका था.., हम दोनो ने पेट भरकर खाना खाया.., फिर संजू के दाह संस्कार में लगने वाली सभी ज़रूरत की चीज़ें हमने खरीदी और निकल लिए उसके बताए हुए रास्ते पर…!
मेने एक नज़र ललित के भावशून्य चेहरे पर डाली.., मे समझ चुका था कि अब संजू ने पूरी तरह ललित के शरीर को अपने कब्ज़े में लेकर कमॅंड अपने हाथ में संभाल ली है…!
ये एक तरह से ज़रूरी भी था.., जितना इस इलाक़े के बारे में संजू को जानकारी थी उतनी मुझे नही…, अभी वो रास्ता आया नही था, मेने
उससे पुछा – पहले क्या करना चाहते हो..?
संजू – सबसे पहले मेरे शरीर का दाह संस्कार करना होगा वरना कीड़े-मकोडे उसे वैसे ही नष्ट कर देंगे.., और मेरी आत्मा पर हमेशा एक बोझ सा बना रहेगा…!
दूसरा जब तक मेरे शरीर को सदगति नही मिल जाती.., प्रेतलोक की शक्तियाँ मुझे हाँसिल नही हो पाएँगी.., और मे हमेशा आधी अधूरी शक्तियों के साथ इधर से उधर भटकता रहूँगा…!
एक बार मुझे सदगति दिला दो.., फिर खेलते हैं खुला खेल फ़ारुक्खाबादी इन हरामियो के साथ.., मे जब तक इनका समूल नाश नही कर देता तब तक मुझे चैन नही मिलेगा…!
मे – लेकिन मेरे भाई.., मृत शरीर को ढकने के लिए कम से कम एक कॅफन तो चाहिए.., ऐसा करते हैं.., पहले कस्बे में जाकर कुच्छ ज़रूरत का समान ले आते हैं.., फिर लौट कर पूरे विधि विधान से तुम्हारे शरीर का दाह संस्कार करना पड़ेगा…!
संजू ने इस पर कुच्छ नही कहा तो मेने अपनी गाड़ी सीधे कस्बे के लिए दौड़ा दी.., अब वो आँखें बंद किए शांत गाड़ी की सीट से टेक लागये बैठा था…!
अभी संजू ललित के उपर है या नही ये चेक करने के लिए मेने उससे पुछा – क्या तुम अपनी मौत का बदला उन लोगों से लेना चाहते हो संजू..?
मेरी बात सुनकर ललित ने झटके से अपनी आँखें खोल दी, मेरी तरफ अपनी लाल-लाल आँखों से देखते हुए बोला – मुझे अपने मरने का कोई गम नही है भैया…!
उसका बदला तो मे युसुफ को मारकर ले चुका हूँ.., लेकिन प्रिया मेरी जान उन दरिंदों की क़ैद में है.., उसे मे किसी भी सूरत में वहाँ नही
छोड़ सकता वरना वो हराम के बीज ना जाने क्या करेंगे उसके साथ…!
अगर उन्होने उसे भी किसी के हाथों बेच दिया जैसा कि उनका एक धंधा विमन ट्रीफिक्किंग का भी है तो मे अपने आपको कभी माफ़ नही
कर पाउन्गा…!
और अगर उसे वहाँ से निकालना है तो उनसे भिड़े बिना निकालना नामुमकिन है.., अगर आप मेरा साथ नही देना चाहते तो कोई बात नही.., मे अकेला ही उसे वहाँ से निकालने की कोशिश करूँगा..!
मे – ये तुम कैसी बात कर रहे हो मेरे भाई.., हमारे उपर तुमने इतने एहसान किए हैं कि उनके सामने मे अपने आपको बौना महसूस करने लगा हूँ…!
तुमने मेरे घर की इज़्ज़त के लिए अपनी जान न्यौच्छावर करदी, तो क्या मे तुम्हारे लिए इतना भी नही कर सकता…?
संजू – ये कहकर आपने मुझे पराया कर दिया भैया.., इतना कहते हुए उसका गला भर आया और ललित की उन शोले बरसाती आँखों से दो
बूँद पानी की अपना किनारा छोड़ कर नीचे गिर पड़ी…!
मेने कभी अपने आपको इस घर से अलग नही समझा लेकिन आज आपने अपने घर की इज़्ज़त का हवाला देकर मुझे पराया कर दिया, रूचि
को मे अपनी सग़ी भांजी से भी बढ़कर मानता था.., उसकी अस्मत बचना मेने अपना फ़र्ज़ समझा…!
मेने फ़ौरन उसका कंधा दबाते हुए कहा – ऐसा मत बोल मेरे भाई मुझे माफ़ कर दे यार.., पता नही कैसे ये शब्द मेरे मूह से निकल गये.., जिनपर अब मुझे खुद भी अफ़सोस हो रहा है…!
संजू मेरे गले से लगकर किसी बच्चे की तरह सूबकते हुए बोला.., पता नही वो कॉन सा पल था जब वो हरामजादि वहीदा फिर एक बार मेरे
सामने आगयि.., मेने आप लोगों के प्यार को ठुकरा दिया और उसके सुनहरे जाल में फँस गया…!
मेने एक हाथ से उसकी पीठ सहलाते हुए कहा – जो होना होता है वो होकर ही रहता है मेरे भाई.., अब अफ़सोस करके हम अपने आप को दोषी मानकर बस दुखी ही कर सकते हैं..,
एश्वर ने चाहा तो तुम्हें जल्दी ही इस योनि से मुक्ति मिल जाएगी…!
संजू मेरे से अलग होते हुए बोला – अब ईश्वर से मेरी एक ही विनती है.., अगर वो मुझे मेरे किसी भी नेक काम जो मेने अपनी जिंदगी में किया हो उसका फल देना चाहें तो मे फिरसे अपने इसी परिवार में जन्म लेकर आप लोगों के बीच आना चाहता हूँ…!
अपने इस जीवन की ग़लतियों की भूल सुधार कर एक अच्छे आदमी की तरह अपना नया जीवन जीना चाहता हूँ…!
मे – ईश्वर बड़ा न्यायकारी है.., जीवात्मा की मुराद पूरी अवश्य होती है, बस उसके लिए हमें अच्छे नेक काम करते रहना होता है…, वो तुम्हारी ये इक्च्छा भी आवश्या पूरी करेंगे..!
हम सब भी तुम्हें फिरसे अपने परिवार में देखना चाहते हैं मेरे दोस्त…!
संजू से बात करते करते मुझे बड़ा सुकून सा मिला.., समय का पता ही नही चला और हम कस्बे में दाखिल भी हो गये…!
ललित अब सामान्य हो चुका था.., हम दोनो ने पेट भरकर खाना खाया.., फिर संजू के दाह संस्कार में लगने वाली सभी ज़रूरत की चीज़ें हमने खरीदी और निकल लिए उसके बताए हुए रास्ते पर…!