Chodan Kahani इंतकाम की आग - Page 5 - SexBaba
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Chodan Kahani इंतकाम की आग

हथकड़ियाँ पहना हुआ और पोलीस से घेरा हुआ सुधीर वेर हाउस से बाहर निकला. उसके साथ सब हथियार से लेस पोलीस थी क्योंकि वह कोई सीधा सादा क़ातिल ना होकर चार चार क़त्ल किया हुआ सीरियल किल्लर था. पोलीस ने सुधीर को उनके एक गाड़ी मे बिठाया. इंस्पेक्टर राज वेरहाउस के दरवाजे के पास पीछे ही रुक गया. राज ने अब तक ना जाने कितने क़त्ल के केसिज हॅंडल किए थी लेकिन इस केस से वह विचलित हुआ दिख रहा था.

कातिल को पकड़ने का सबसे महत्वपूर्ण काम तो अब पूरा हो चुका था. इसलिए अब उनके साथ गाड़ी मे बैठकर जाना उसे उतना ज़रूरी नही लगा. वह कुछ वक्त अकेले मे गुज़ारना चाहता था और उसे पीछे रुक कर एकबार इस वेरहाउस की पूरी छानबीन करनी थी. उसने अपने असिस्टेंट पवन को इशारा किया,

“तुम लोग इसे लेकर आगे निकल जाओ… में थोड़ी देर मे थोड़ी ही देर मे वहाँ पहुँचता हूँ…” राज ने कहा.

जिस गाड़ी मे सुधीर को बिठाया था वह गाड़ी शुरू हो गयी. उसके पीछे पोलीस की बाकी गाडिया भी शुरू हो गयी और सुधीर जिस गाड़ी मे बैठा था उसके पीछे तेज़ी से दौड़ने लगी. वे गाडिया निकल गयी… राज गंभीर मुद्रा मे उस धूल के बादल को धीरे धीरे नीचे बैठ ता हुआ देख रहा था.

जैसे ही सब गाड़ियाँ वहाँ से निकल गयी और औरा आस पास का वातावरण शांत हुआ राज ने वेर हाउस के एक चक्कर लगाया. चलते चलते उसने उपर आसमान की तरफ देखा. आसमान मे लाली फैल गयी थी और अब थोड़ी ही देर मे सूरज उगने वाला था. वह एक चक्कर लगा कर दरवाजे के पास आ गया और भारी चाल से वेरहाउस के अंदर चला गया.

अंदर वेरहाउस मे अब भी अंधेरा था. उसने कंप्यूटर के चमक रहे मॉनीटौर की रोशनी मे वेरहाउस के अंदर एक चक्कर लगाया और फिर उस कंप्यूटर के पास जाकर खड़ा हो गया. राज ने देखा कि कंप्यूटर पर एक सॉफ्टवेर अब भी ओपन किया हुआ था. उसने सॉफ्टवेर की लाग अलग ऑप्षन्स पर माउस क्लिक करके देखा. एक बटन पर क्लिक करते ही कंप्यूटर के बगल मे रखे एक उपकरण का लाइट ब्लिंक होने लगा. उसने वह उपकरण हाथ मे लेकर उसे गौर से देखा. वह एक सिग्नल रिसीवर था, जिसपर एक डिसप्ले था. उस डिसप्ले पर एक मेसेज चमक ने लगा. लिखा था ‘ इन सिग्नल रेंज / इन्स्ट्रक्षन = लेफ्ट’. उसने वह उपकरण वापस अपनी जगह रख दिया. उसने और एक सॉफ्टवेर का बटन दबाया, जिसपर ‘राइट’ ऐसा लिखा हुआ था.

फिर से सिग्नल रिसीवर ब्लिंक हुआ और उसपर मेसेज आया ‘इन सिग्नल रेंज / इन्स्ट्रक्षन = राइट’. आगे उसने ‘अटॅच’ बटन दया. फिर से सिग्नल रिसीवर ब्लिंक हो गया और उसपर मेसेज आया था. ‘इन सिग्नल रेंज / इन्स्ट्रक्षन = अटॅक’. राज ने वह उपकरण फिर से हाथ मे लिया और अब वह उसे गौर से देखने लगा. इतने मे उसे वेरहाउस के बाहर किसी चीज़ की आवाज़ आई. वह उपकरण वैसा ही हाथ मे लेकर वह बाहर चला गया.

वेर हाउस के बाहर आकर उसने आजूबाजू देखा.

यहाँ तो कोई नही…

फिर किस चीज़ का आवाज़ है…

होगा कुछ… जाने दो…

जब वह फिर से वेर हाउस मे वापस आने के लिए मुड़ा तब उसका ध्यान अनायास ही उसके हाथ मे पकड़े ब्लिंक हो रहे उपकरण की तरफ गया. अचानक उसके चेहरे पर आस्चर्य के भाव दिखने लगे. उस सिग्नल रिसीवर पर ‘आउट ऑफ रेंज / इन्स्ट्रक्षन = निल्ल’ ऐसा मेसेज आया था. वह आश्चर्य से उस उपकरण की तरफ देखने लगा. उसका मुँह खुला का खुला ही रह गया. उसके दिमाग़ मे अलग अलग सवालोने भीड़ की थी.

अचानक आस पास किसी की उपस्थिति से वह लगभग चौंक गया. देखता है तो वह एक काली बिल्ली थी और वह उसके सामने से दौड़ते हुए वेर हाउस मे घुस गयी थी. एक बार उसने अपने हाथ मे पकड़े उपकरण की तरफ देखा और फिर उस वेर हाउस के खुले दरवाजे की तरफ देखा, जिससे अभी अभी एक काली बिल्ली अंदर गयी थी.

धीरे धीरे सावधानी से उस बिल्ली का पीछा करते हुए वह अब अंदर वेर हाउस मे जाने लगा.
 
जाते जाते उसके दिमाग़ मे एक विचार लगातार घूमने लगा कि अगर वेरहाउस के बाहर तक भी सिग्नल जा नही सकता है तो फिर जो चार लोगो के क़त्ल हुए उनके घर तक सिग्नल कैसे पहुचा…?

दुविधा की स्थिति मे राज ने धीरे धीरे वेर हाउस मे प्रवेश किया. अंदर जाने के बाद वह इधर उधर देखते हुए उस बिल्ली को ढूँढ ने लगा. पहले ही अंधेरा और उपर से वह बिल्ली काले रंग की… ढूँढना मुश्किल था… उसने वेरहाउस मे सब तरफ अपनी ढूँढती हुई नज़र दौड़ाई… अब सुबह होने को आई थी. इसलिए वेरहाउस मे थोड़ा थोड़ा उजाला हो गया था. एक जगह उसे धूल से सनी हुई एक फाइल्स की गठरी दिखाई दी. वह उस फाइल्स की गठरी के पास गया… वह गठरी थोड़ी उँचान पर रखी हुई थी. राज की उत्सुकता बढ़ गयी थी.

क्या होगा उस फाइल्स मे…

ज़रूर केस के बारे मे और कुछ महत्वपूर्ण मुझे उस फाइल्स मे मिल सकता है…

वह अपने पैर के पंजे उँचे कर उस फाइल्स के गठरी तक पहुचने का प्रयास करने लगा. फिर भी वह वहाँ तक पहुँच नही पा रहा था. इसलिए वह उछल कर उस गठरी तक पहुँचने का प्रयास करने लगा. उस गठरी तक पहुचने के प्रयास मे उसका धक्का लग कर उपर से कुछ तो नीच गिर गया. काँच फूटने जैसे आवाज़ हुई. उसने नीच झुक कर देखा तो काँच के टुकड़े सब तरफ फैले हुए थे और नीचे एक फोटो की फ्रेम उल्टी पड़ी हुई थी. उसने वह उठाई और सीधी करके देखी.. वह एक ग्रूप फोटो था लेकिन वहाँ रोशनी काफ़ी नही होने से ठीक से दिखाई नही दे रहा था. वह फोटो लेकर वह कंप्यूटर के पास गया. कंप्यूटर का मॉनिटर अब भी शुरू था और चमक रहा था. इसलिए उस रोशनी मे वह फोटो ठीक से देखना मुमकिन था. मॉनिटर की रोशनी मे उसने वह ग्रूप फोटो देखा और वह आस्चर्य से हक्का बक्का सा रह गया. वह खुले मुँह से आस्चर्य से उस फोटो की तरफ देख रहा था.

वह उस हादसे से संभला भी नही कि उसके सामने कंप्यूटर का मॉनिटर बंद शुरू होने लगा.

कुछ एलेक्ट्रिक प्राब्लम होगा…

इसलिए वह कंप्यूटर का पावर स्विच और प्लग चेक करने लगा.

उसने पवर प्लग की तरफ देखा और चौंकते हुए डर के मारे वह पीछे हट गया. उसे आस्चर्य का दूसरा धक्का लगा था.

कंप्यूटर का पावर केबल पवर बोर्ड मे लगा नही था और वही बगल मे निकाल कर रखा हुआ था.

फिर भी कंप्यूटर शुरू कैसे…?

या यह पवर केबल दूसरी किसी चीज़ का होगा…

उसने वह पवर केबल उठाकर एक सिरे से दूसरे सिरे तक टटोलकर देखा, वह कंप्यूटर का ही पवर केबल था.

अब उसके हाथ पैर काँपने लगे…

वह जो देख रहा था वैसा उसने उसकी पूरी जिंदगी मे कभी नही देखा था.

अचानक कंप्यूटर का मॉनिटर बंद होना शुरू होना रुक गया. उसने मॉनिटर की तरफ देखा. उसके चेहरे पर अब भी डर और आस्चर्य झलक रहा था.

अचानक एक बड़ा भयानक हवा का झोंका वेरहाउस मे बहने लगा. इतना बड़ा झोंका बह रहा था और इधर राज पसीने से लथपथ हो गया था… बहुत जोरो से हवा चल रही थी..

और अब अचानक मॉनिटर पर तरह तरह के विचित्र और भयानक साए दिखने लगे.

क्रमशः……………
 
इंतकाम की आग--18

गतान्क से आगे………………………

राज को कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या हो रहा है.. जो भी हो रहा था वह उसके समझ और पहुच के बाहर था… आख़िर एक खूबसूरत जवान स्त्री का साया मॉनिटर पर दिखने लगा. वह साया भले ही सुंदर और मोहक था फिर भी राज के बदन मे एक डर की सिहरन दौड़ गयी. वह मोहक साया अब एक भयानक और डरावने साए मे परिवर्तित हुआ. फिर से एक हवा का बड़ा झोंका तेज़ी से अंदर आया. इसबार उस झोंके का ज़ोर और बहाव बहुत तेज था. इतना कि राज उस झोंके की मार सहन नही कर पाया और दो फिट उपर उड़ के नीच गिर गया. वैसे भी उसके हाथ पैर पहले ही कमजोर पड़ चुके थे. उस झोंके की मार का प्रतिकार करने की शक्ति उसमे बाकी नही थी. नीचे पड़े हुए स्थिति मे उसको एहसास हुआ कि धीरे धीरे वह होश खोने लगा है. लेकिन होश पूरी तरह खोने से पहले उसने मॉनिटर पर दिख रही उस स्त्री की आखों मे दो बड़े बड़े आँसू बहकर नीचे आते हुए दिखे.

वेरहाउस मे नीचे मॉनिटर के सामने अचेतन अवस्था मे पड़े राज के सामने से मानो एक एक प्रसंग फ्लॅशबॅक की तरह जाने लगा….

…. मीनू और शरद रास्ते के किनारे पड़े एक ड्रेनेज पाइप मे छिपे हुए थे. इतने मे अचानक उन्हे उनकी तरफ आते हुए किसी के दौड़ने का आवाज़ सुनाई दी. वे अब हिल डुल भी नही सकते थे. उन्होने अगर उन्हे ढूँढ लिया तो वे बुरी तरह उनके कब्ज़े मे फँसने वाले थे. उन्होने बिल्ली की तरह अपनी आखे मूंद ली और जितना हो सकता है उतना उस छोटी से जगह मे सिकुड़ने का प्रयास किया. उसके आलवा वे कर भी क्या सकते थे…?

अचानक उनको एहसास हुआ कि उनका पीछा करने वालो मे से एक दौड़ते हुए उनके पाइप के एकदम पास आकर पहुँचा है. वह नज़दीक आते ही शरद और मीनू एकदम शांत होकर लगभग सांस रोके हुए स्तब्ध होकर वैसे ही बैठे रहे. वह अब पाइप के काफ़ी पास पहुच गया था.

वह उन चारो मे से ही एक, चंदन था. उसने इर्द गिर्द अपनी नज़रे दौड़ाई.

“कहाँ गायब हो गये साले…?” वह खुद पर ही झल्ला उठा.

इतने मे चंदन का ध्यान पाइप की तरफ गया.

ज़रूर साले इस पाइप मे छुपे होंगे…

उसने सोचा.. वह पाइप के और पास गया. वह अब झुक कर पाइप मे देखने ही वाला था कि इतने मे…

“चंदन… जल्दी इधर आओ…” उधर से सिकेन्दर ने उसे आवाज़ दी.

चंदन पाइप मे देखने के लिए झुकते हुए रुक गया, उसने आवाज़ आई उस दिशा मे देखा और पलट कर वह दौड़ते हुए उस दिशा मे निकल गया.

जा रहे कदमो की आवाज़ सुनते ही मीनू और शरद ने राहत की सांस ली.

चंदन के जाते ही शरद ने अपने जेब से मोबाइल निकाला. उसने कोई उन्हे ट्रेस ना करे इसलिए फोन स्विच ऑफ कर के रखा था. उसने वह स्विच ऑन किया और एक नंबर डाइयल किया.

“किस को फोन कर रहे हो…?” मीनू ने दबे स्वर मे पूछा.

“अपना क्लासमेट सुधीर को… वह इसी गाँव का है…”

उतने मे फोन लग गया, “हेलो…”

“अरे क्या शरद कहाँ से बोल रहे हो… सालो तुम लोग कहाँ गायब हो गये हो.. इधर सारे लोग कितने परेशान हो गये है…” उधर से सुधीर ने कहा.

शरद ने उसे संक्षिप्त मे सब बताया और कहा, “अरे हम यहाँ एक जगह फँसे हुए है…”

“फँसे…? कहाँ…?” सुधीर ने पूछा.

“अरे कुछ बदमाश हमारा पीछा कर रहे है… हम लोग अब कहाँ है यह बताना ज़रा मुश्किल है…” शरद बोल रहा था. इतने मे मीनू ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींचते हुए टवर की तरफ इशारा किया.

“… हाँ यहाँ से एक टवर दिख रहा है जिसपर घड़ी लगी हुई है… उसके आसपास ही कही हम छिपे हुए है…” शरद ने उसे जानकारी दी…

“अच्छा… अच्छा… चिंता मत करो, पहले आपना दिमाग़ शांत करो और अपने आपका संभालो… और इतने बड़े शहर मे वे बदमाश तुम्हारा कुछ बिगाड़ सकते है यह डर दिल से पूरी तरह निकाल दो… हाँ निकाल दिया…?” उधर से सुधीर ने पूछा.

“हाँ ठीक है…” शरद ने कहा.

“ह्म्‍म्म… गुड. अब कोई टॅक्सी पाकड़ो और उसे हिल्टन होटेल को ले जाने के लिए कहो… वह वही कही नज़दीक उसी एरिया मे है…”

इतने मे उन्हे इतनी देर से कोई वहाँ नही दिखा था, लेकिन भगवान की कृपा से एक टॅक्सी उनकी तरफ आती हुई दिखाई दी…

“टॅक्सी आई है… अच्छा तुम्हे में बाद मे फोन करता हूँ…” शरद ने जल्दी से फोन कट कर दिया.

वे दोनो भी जल्दी जल्दी पाइप के बाहर आगये और शरद ने टॅक्सी को रुकने का इशारा किया. जैसे ही टॅक्सी रुक गयी वैसे दोनो टॅक्सी मे घुस गये.
 
“होटेल हिल्टन…” शरद ने कहा और टॅक्सी फिर से दौड़ने लगी.

टॅक्सी निकल गयी तो दोनो की जान मे जान आ गयी.. उन्होने राहत की सांस ली.

शिकेन्दर और उसके तीनो दोस्त अब भी पागलो की तरह मीनू और शरद को ढूँढ रहे थे…. आख़िर ढूँढ ढूँढ कर थकने के बाद फिर से जिस चोराहे से उन्होने उन्हे ढूँढ ने की शुरुआत की थी उस चोराहे पर शिकेन्दर और चंदन वापस आ गये… उनके पीछे पीछे बड़ी बड़ी साँसे लेते हुए साँसे फूला हुआ सुनील आ गया.

“मिल गयी…?” चंदन ने पूछा.

सुनील ने सिर्फ़ ना मे सर हिलाया.

“सालों को आसमान खा गया या पाताल निगल गया…?” सिकेन्दर चिढ़कर बोला.

इतने मे उन्हे दूर से अशोक उनकी और आता दिखाई दिया…. उन्होने बड़ी आस की साथ उसकी तरफ देखा. लेकिन उसने दूर से ही अपना अंगूठा नीचे कर वे नही मिलने का इशारा किया.

“सालो क्या बारह बजा हुआ मुँह लेकर आए हो… जाओ उसे ढुंढ़ो… और जब तक वह मिलती नही तब तक वापस मत आओ…”शिकेन्दर गरज उठा.

उतने मे शिकेन्दर के फोन की रिंग बजी.

शिकेन्दर ने फोन उठाया , “हेलो…”

“हे… में सुधीर बोल रहा हूँ…” उधर से मीनू और शरद का क्लास मेट सुधीर बोल रहा था.

“हाँ बोलो सुधीर…” शिकेन्दर बोला.

“एक खुशी की बात है.. मैने तुम्हारे लिए एक ट्रीट अरेंज की है…” उधर से सुधीर बोला.

“देखो सुधीर… अभी हमारा मूड कुछ ठीक नही है… और तुम्हारी ट्रीट अटेंड करना इतना तो है ही नही…” शिकेन्दर ने कहा.

“अरे फिर तो यह ट्रीट तुम्हारा मूड ज़रूर ठीक करेगी… पहले सुन तो लो… एक नया पंछी अपने शहर मे आया हुआ है… फिलहाल मैने उसे खास तुम्हारे लिए एक महफूस जगह भेजा है..” सुधीर का उधर से उत्साह से भरा स्वर आया.

“पंछी…? इस शहर मे नया… एक मिनिट.. एक मिनिट… क्या वह उसके बॉय फ्रेंड के साथ है..?” शिकेन्दर ने पूछा.

“हाँ…” उधर से सुधीर ने कहा.

“उसके गाल पर हस्ने के बाद डिंपल दिखने लगता है…?” शिकेन्दर ने पूछा.

“हाँ…” सुधीर ने कहा.

“उसके दाए हाथ पर शेर का टॅटू भी है… बराबर…” शिकेन्दर का चेहरा खुशी से खिलने लगा.

“हाँ… लेकिन यह सब तुम्हे कैसे पता…?” उधर से सुधीर ने आश्चर्य से पूछा.

“अरे वह तो वही लड़की है… अशोक, चंदन, सुनील और में सुबह से जिसके पीछे थे…. और अभी थोड़ी देर पहले वह हमे झांसा देकर यहाँ से गायब हो गयी है… लेकिन लगता है साली हमारे नसीब मे ही लिखी है…”

“सच…?” उधर से सुधीर भी आस्चर्य से बोला.

“यार… सुधीर… आज तो तुमने मेरा दिल खुश कर दिया है… इसे कहते है सच्चा दोस्त…” शिकेन्दर भी खुशी के मारे उत्तेजित होकर बोल रहा था.

“अरे अभी तो हम उसे पता नही कहाँ कहाँ ढूँढ रहे थे… किधर है वह…? सच कहूँ… हम लोग उसके बदले तुम्हे जो चाहिए दे देंगे…” शिकेन्दर ने खुशी के मारे वादा किया.

“देखो… फिर मुकर ना जाना…” सुधीर ने कहा.

“अरे नही.. इट्स गेंटल्मेन्स प्रॉमिस यार…” सिकेन्दर किसी राजा की तरह खुश होकर बोला.

“दो हज़ार डॉलर्स… हर एक के पास से… मंजूर…?” सुधीर ने भी वक्त के तकाज़े का फ़ायदा लेने की ठान ली.

“मंजूर…”शिकेन्दर ने बेफिक्र लहजे मे कहा.

शिकेन्दर, सुनील, चंदन और अशोक एक पुराने मकान मे, एक टेबल के इर्दगिर्द बैठे हुए थे. उनके हाथ मे आधे पिए हुए व्हिस्की के जाम थे… चारो भी अपने अपने विचारों मे खोए हुए व्हिस्की पी रहे थे… उनमे एक तनावपूर्ण सन्नाटा छाया हुआ था…

“उसे तुमने क्यों मारा…?” अशोक ने सन्नाटा तोड़ते हुए शिकेन्दर से सवाल किया.

वैसे तो तीनो मे से किसी की शिकेन्दर से इस तरह से सवाल पूछने की हिम्मत नही थी… लेकिन नौबत ही वैसी आ गयी थी.. और पीने की वजह से उनमे उतनी हिम्मत आगयि थी…

“आए… बेवकूफ़ की तरह बकबक मत कर.. मैने उसे मारा नही… वह उस हादसे मे मारी गयी…” शिकेन्दर ने बेफिक्र होकर कंधे उचकाते हुए कहा.

“हादसे मे…?”

भले ही सिकेन्दर इस बारे मे बेफिक्र है ऐसा जता रहा था फिर भी वह अंदर से बैचेन था.

अपनी बैचेनी छिपाने के लिए उसने व्हिस्की का एक बड़ा घूँट लिया, “देखो… वह कुछ ज़्यादा ही चिल्ला रही थी इसलिए… मैने उसका मुँह दबाकर बंद किया… और मुझे पता ही नही चला कि उसमे उसकी नाक भी दबकर बंद होगयि करके…”

“फिर अब क्या किया जाय…?” चंदन ने पूछा.

क्रमशः……………
 
इंतकाम की आग--19

गतान्क से आगे………………………

उन चारों मे चंदन और सुनील सबसे ज़्यादा डरे हुए दिख रहे थे.

“और अगर पोलीस ने हमे पकड़ लिया तो…?” सुनील ने अपनी चिंता व्यक्त की.

“देखो कुछ भी हुआ नही है ऐसा व्यवहार करो… किसी ने कुछ पूछा भी तो ध्यान रहे कि हम कल रात से यहाँ ताश खेल रहे है… फिर भी अगर कोई गड़बड़ हुई तो हम उसमे से भी कुछ रास्ता निकालेंगे… और यह मत समझो कि यह मेरी पहली बारी है.. कि मैने किसी को मारा है..” सिकेन्दर झूठमूठ का धाँढस बाँधने की चेष्टा करते हुए बोला.

“लेकिन वह तुमने मारा था… और तब तुम्हे उन्हे मारना ही था…” अशोक ने कहा.

“उससे क्या फ़र्क पड़ता है… मरना और हादसे मे मारना… मारना मारना होता है..” शिकेन्दर ने कहा.

उतने मे दरवाज़े पर किसी की आहट सुनाई दी… और किसी ने दरवाज़े पर हल्के से नॉक किया.

कमरे के सब लोगों का बोलना और पीना बंद होकर वे एकदम स्तब्ध होगये.

उन्होने एकदुसरे की तरफ देखा.

कौन होगा…?

पोलीस तो नही होंगी…?

कमरे मे एकदम सन्नाटा छा गया.

शिकेन्दर ने चंदन को कौन है यह देखने के लिए इशारा किया.

चंदन धीरे से चलते हुए आवाज़ ना हो इसका ख़याल रखते हुए दरवाज़े के पास गया. बाहर कौन होगा इसका अंदाज़ा लिया और धीरे से दरवाज़ा खोलकर तिरछा करते हुए उसमे से बाहर झाँकने लगा… सामने सुधीर था… चंदन ने उसे अंदर आने के लिए इशारा कर अंदर लिया… जैसे ही सुधीर अंदर आया उसने फिर से दरवाज़ा बंद कर लिया.

अशोक ने और एक व्हिस्की का जाम भरते हुए कहा, “अरे…. आओ.. जाय्न अवर कंपनी…”

सुधीर अशोक ने ऑफर किया हुआ व्हिस्की का जाम लेते हुए उनके साथ उनके सामने बैठ गया.

“चियर्स…” अशोक ने उसका जाम सुधीर के जाम से टकराते हुए कहा.

“चियर्स…” सुधीर ने वह जाम अपने मुँह को लगाया और वह भी उनकी कंपनी मे शामिल हो गया.

शिकेन्दर, अशोक, सुनील, चंदन और सुधीर टेबल के इर्द गिर्द बैठकर व्हिस्की के जाम पर जाम खालीकर रहे थे. शिकेन्दर और उसके तीन दोस्त पीकर टून होगये थे… सुधीर अपनी हद मे रह कर ही पी रहा था.

“फिर सुधीर… इतनी रात गये इधर किधर घूम रहे हो…?” चंदन ने सुधीर के पीठ पर हल्के से मारते हुए पूछा.

“सच कहूँ तो में तुम्हारे यहाँ उस ट्रीट के बारे मे बात करने के लिए आया था…” सुधीर ने मौके का फ़ायदा उठाते हुए असली बात पर आते हुए कहा.

“कौन से ट्रीट…?” सुनील ने पूछा.

“अबे पगले… वह उस लड़की के बारे मे बोल रहा है…” सुधीर बात स्पष्ट करने के पहले ही अशोक बीच मे बोला.

“बाइ दा वे… तुम्हे ट्रीट का माजा आया कि नही…” सुधीर ने पूछा.

सबलॉग एकदम स्तब्ध, शांत और सीरीयस हो गये.

“देखो… तुम्हारी ट्रीट शुरू शुरू मे अच्छी लगी… लेकिन आख़िर मे…”
 
“वह होता है ना कि कभी कभी सूप शुरू शुरू मे अच्छा लगता है लेकिन आख़िर मे तले मे बैठे नमकीन की वजह से उसका मज़ा किर किरा हो जाता है…” अशोक शिकेन्दर का वाक्य पूरा होने के पहले ही बोला.

“तुम लोग क्या बोल रहे हो यह मुझे तो कुछ समझ मे नही आ रहा है…” सुधीर उसके चेहरे की तरफ कुछ ना समझने के भाव मे देखते हुए बोला.

चंदन ने शिकेन्दर की तरफ देखते हुए पूछा, “क्या इसको बोला जाय…?”

“अरे क्यो नही… उसे मालूम कर लेने का हक़ है… आख़िर उस कार्य मे वह अपना बराबर का हिस्सेदार था….” सिकेन्दर ने कहा.

“कार्य…? कैसा कार्य…?” सुधीर ने बैचेन होकर पूछा.

“खून…?” अशोक ने ठंडे लहजे मे कहा.

“आए उसे खून मत बोल… वह एक आक्सिडेंट था…” सुनील ने बीच मे टोका.

सुधीर का चेहरा डर के मारे फीका पड़ चुका था.

“कही तुम लोगो ने उस लड़की का खून तो नही किया…?” सुधीर किसी तरह से हिम्मत जुटा कर बोला.

“तुम नही… हम… हम सब लोगो ने…” शिकेन्दर ने उसके वाक्य को सुधारा.

“एक मिनिट… एक मिनिट… तुम लोगो ने अगर उस लड़की को मारा होगा… तो यहाँ कहा मेरा संबंध आता है…” सुधीर ने अपना बचाव करते हुए कहा.

“देखो… अगर पोलीस ने हमे पकड़ लिया… तो वह हमे पूछेंगे… कि लड़की का अता पता तुम्हे किसने दिया…?” अशोक ने कहा (एक येई उनमे बहुत समझदार लड़का था….).

“तो हमने भले ही ना बताने का ठान लिया फिर भी हमे बताना ही पड़ेगा…” सुनील ने अधूरा वाक्य पूरा किया.

“… कि हमे हमारे जिगरी दोस्त सुधीर ने मदद की…” सुनील शराब के नशे मे बड़बड़ाया.

“देखो… तुम लोग बिना वजह मुझे इसमे लप्पेट रहे हो…” सुधीर अब अपना बचाव करने लगा था.

“लेकिन दोस्तो… एक बड़ी अजीब चीज़ होनेवाली है…”शिकेन्दर ने मंद मंद मुस्कुराते हुए कहा.

“कौन सी…?” अशोक ने पूछा…

“कि पोलीस ने हमे पकड़ा और बाद मे हमे फाँसी होगयि…”शिकेन्दर ने बीच मे रुक कर अपने दोस्तो की तरफ देखा. वे एकदम सीरीयस हो गये थे.

“अबे… सालो… मेरा मतलब है अगर हमे फाँसी हो गयी…” शिकेन्दर ने चंदन की पीठ हल्के से थपथपाते हुए कहा.

सुनील शराब का ग्लास सरपार रख कर अजीब तरह से नाचते हुए बोला, “हा…हाहाहा… अगर हमे फाँसी हो गयी तो…”

सुधीर को छोड़कर सारे लोग उसके साथ हँसने लगे…

फिर से कमरे का वातावरण पहले जैसे होगया.

“हाँ तो अगर हमे फाँसी हो गयी… तो हमे उसके बारे मे कुछ बुरा नही लगेगा… क्योंकि आख़िर हमने मिठाई खाई है… लेकिन उस बेचारे सुधीर को मिठाई हल्की सी चखने को भी नही मिली… उसे मुफ़्त मे ही फाँसी पर लटकना होगा…” सिकेन्दर ने कहा.

कमरे मे सब लोग, सिर्फ़ एक सुधीर को छोड़, ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे.
 
“सच कहूँ तो में तुम्हारे हर एक के पास से दो-दो हज़ार डॉलर्स लेने के लिए आया था…” सुधीर ने कहा.

“दो-दो हज़ार डॉलर्स…? मेरे दोस्त अब यह सब भूल जा…” अशोक ने कहा.

सुधीर उसकी तरफ गुस्से से देखने लगा.

“देख अगर सबकुछ ठीक हुआ होता तो हम तुम्हे कभी ना नही कहते… बल्कि हमारी खुशी से तुम्हे पैसे देते… लेकिन अब परिस्थिति बहुत अलग है… वह लड़की की मौत हो गयी…” अशोक उसे समझा बुझाने के स्वर मे बोला…

“…मतलब आक्सिडेंट्ली…” चंदन ने बीच मे ही जोड़ा..

“तो अब वह सब ठिकाने लगाने के लिए पैसा लगेगा…” अशोक ने कहा.

“सच कहूँ तो… हम ही तुम्हारे पास इस सब का निपटारा करने के लिए पैसे माँग ने वाले थे…” सुनील ने कहा.

फिर सब लोग, सुधीर को छोड़कर, ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे… पहले ही उन्हे चढ़ गयी थी और अब वे उसकी मज़ाक उड़ा रहे थे…

सुधीर के जबड़े कस गये… गुस्से से वह उठ खड़ा हुआ और पैर पटकते हुए वहाँ से चलते बना…. दरवाज़े से बाहर निकलने के बाद उसने गुस्से से दरवाज़ा ज़ोर से पटक दिया….

फिर उसके बाद सुधीर ने उन चारो को मारने का प्लान बनाया (जैसे राज ने डिसकवर चॅनेल पर देखा था) वैसी ही योजना सुधीर ने तैय्यार की और सुधीर ये सब प्लान बना रहा था लेकिन उसका दिमाग़ कल घटी बातों मे व्यस्त था… सुधीर अपने दिमाग़ मे चल रहे सोच के चक्कर से बाहर आगया.

अब अगर यह केस ऐसी ही चलती रही तो कभी ना कभी शिकेन्दर, अशोक, सुनील और चंदन अपने को इसमे घसीट ने वाले है…

फिर हम भी इस केस मे फँस जाय…

नही ऐसा कतई नही होना चाहिए…

मुझे कुछ तो रास्ता निकालना ही पड़ेगा…

सोचते हुए सुधीर अपने इर्दगिर्द खेल रही उस बिल्ली की तरफ देख रहा था… अचानक एक विचार उसके दिमाग़ मे कौंध गया और उसके चेहरे पर एक ग़ूढ मुस्कुराहट दिखने लगी…

अगर मैने इन चारों को रास्ते से हटाया तो कैसा रहेगा…?

ना रहेगा बाँस ना बजेगी बाँसुरी…

सुधीर ने इस मसले को पूरी तरह आर या पार करने का मन ही मन ठान लिया था. आख़िर उसे अपनी जान बचाना ज़रूरी था. क्या करना है यह उसने मन ही मन तय किया था… लेकिन पहले एक बार मीनू के भाई को मिलना उसे ज़रूरी लग रहा था. इसलिए वह अंकित के घर के पास जाने लगा…

क्रमशः……………
 
इंतकाम की आग--20end

गतान्क से आगे………………………

सुधीर अंकित के दरवाजे के सामने आकर खड़ा हो गया… वह अब बेल दबाने ही वाला था इतने मे बड़े ज़ोर से और बड़े अजीब ढंग से कोई चीखा… एक पल के लिए तो वह चौंक ही गया… कि क्या हुआ… उसका बेल दबानेवाला हाथ डर के मारे पीछे खिंच गया…

मामला कुछ सीरीयस लगता है…

इसलिए वह दरवाजे की बेल ना दबाते हुए अंकित के मकान के खिड़की के पास गया और उसने अंदर झाँक कर देखा….

… अंदर अंकित हाथ मे एक गुड्डा पकड़ा हुआ था… (इसके बाद आप सभी लोग तो जानते ही हो कि अंकित क्या क्या करता है… जिन्हे नही … पता तो एक बार फिर से स्टौरी पढ़ लेना… सब पता चल जाएगा…)

खिड़की से यह सब सुधीर काफ़ी देर से देख रहा था. वह देखते हुए अचानक उसके दिमाग़ मे एक योजना आ गयी…. उसके चेहरे पर अब एक वहशी मुस्कान दिखने लगी… वह खिड़की से हट गया और दरवाजे के पास गया… उसने कुछ सोचा और वह वैसा ही अंकित के दरवाज़े की बेल ना बजाते हुए ही वहाँ से वापस चला गया….

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राज वेरहाउस मे अब भी ज़मीन पर पड़ा हुआ था… लेकिन अब वह उस ट्रॅन्सस्टेट से बाहर आ गया था… वह झट से कंप्यूटर के मॉनिटर की तरफ देखा…. अब कंप्यूटर बंद था… उसने वेरहाउस मे इधर उधर देखा… अब बाहर सवेरा हो गया था और अंदर वेरहाउस मे अच्छी ख़ासी रोशनी आ रही थी… कुछ देर पहले ज़ोर ज़ोर से बह रही हवा के झोके भी थम गये थे… वह अब उठ कर खड़ा हो गया और सोचने लगा… इतने मे उसका ख़याल कुछ देर पहले नीचे गिरे हुए फोटो फ्रेम की तरफ गया…. उसने वह फ्रेम उठाई और सीधी कर देखी… वह एक ग्रूप फोटो था… सुधीर और उन चार मीनू के क़ातिलों का…

उसे अब एक एक बात एकदम सॉफ हो चुकी थी… वह जब नीचे पड़ा हुआ था और उसे जो एक एक द्रिश्य दिखाई दिया था, शायद मीनू की अद्रुश्य और अतृप्त रूह को वह उसे बताना था… लेकिन उसे वह बताने की ज़रूरत क्यों पड़ी थी…? वह उसे ना बताए हुए भी मीनू को जो चाहिए वह अब तक हासिल करते आई थी औरा आगे भी हासिल कर सकती थी…

फिर उसने यह उसे क्यों बताया था…?

ज़रूर कोई वजह होगी…?

इसमे उसका ज़रूर कोई उद्देश्य होगा…

सुधीर के केस की काफ़ी दिनो से कोर्ट मे कार्यवाही चल रही थी.. हर बार राज कोर्ट मे कामकाज के दौरान हाजिर रहता था और वहाँ बैठकर सब कार्यवाही सुनता था… इधर केस का कामकाज चलता था और उसके दिमाग़ मे वह एक ही सवाल घूमते रहता था कि मीनू ने वह सब बताने के लिए उसे ही क्यों चुना होगा…? और मीनू का वह सब बताने का क्या मकसद रहा होगा…?

कि वह सब कुछ उसने कोर्ट मे बयान करना चाहिए ऐसा तो मीनू को अपेक्षित नही होगा…?

लेकिन अगर वह सब उसने कोर्ट मे बताया तो उसपर कौन विश्वास करने वाला था…?

उल्टा एक ज़िम्मेदार इंस्पेक्टर के मुँह से ऐसे अंधश्रद्धा बातें सुनकर लोगो ने उसे ना जाने क्या क्या कहा होता…

सिर्फ़ कहा सुनाया ही नही तो उसका आगे का पूरा कैरयर् सवालो के और शक केग हियर मे आया होता…

वह सोच रहा था लेकिन आज उसे विचारों के जंजाल मे नही फँसना था… आज उसे कोर्ट की कार्यवाही पूरी तरह ध्यान देकर सुन नी थी… क्योंकि आज केस का नतीजा निकलने वाला था.

आख़िर इतनी दिनो से घसीट ते हुए चल रहे केस के सब जब जवाब हो चुके थे… राज की भी ज़बानी हो चुकी थी… उसने जो साबित किया जा सकता था वह सब बताया था.

आख़िर वह वक्त आया था. वह पल आ चुका था जिसकी सारे लोग बड़ी बेचैनी से राह देख रहे थे… केस के नतीजे की… राज अपने कुर्सी पर बैठकर जड्ज क्या फ़ैसला सुनाता है यह सुन ने के लिए जड्ज की तरफ देखने लगा… वैसे उसके चेहरे पर किसी भी भाव का अस्तित्व नही था.. कोर्ट रूम मे उपस्थित बाकी सब लोग सांस रोक कर जड्ज का आखरी फ़ैसला सुन ने के लिए बेताब थे…

जड्ज फ़ैसला सुना ने लगा –

“सारे सबूत, सारे जवाब, और खुद मिस्टर. सुधीर ने दिया स्टेट्मेंट की ओर ध्यान देते हुए कोर्ट इस नतीजे पर पहुँचा है कि मिस्टर. चंदन, मिस्टर. सुनील, मिस्टर. अशोक और मिस्टर. शिकेन्दर इन चारो के भी क़त्ल मे मिस्टर. सुधीर मुजरिम पाया गया है… उसने वह चारो खून जान भूज कर और पूरी योजना और सतर्कता के साथ किए है…”

“… इसलिए कोर्ट मुजरिम सुधीर को मौत की सज़ा सुनाता है…”

जड्ज ने आखरी फ़ैसला सुनाया था… इस फ़ैसले का जिन चार लोगो के क़त्ल हुए थे उनके रिश्तेदारो ने तालिया बजा कर स्वागत किया तो काफ़ी लोगो को यह फ़ैसला पसंद नही आया. मीनू का भाई अंकित तो नाराज़गी जाहिर करते हुए कोर्ट रूम से उठकर चला गया… लेकिन राज के चेहरे पर कोई भाव नही उभरे थे. ना खुशी के ना गम के… लेकिन फ़ैसला सुन ने के बाद राज काफ़ी दिनो से सता रहे सवाल का जवाब मिल गया था.

सुधीर को मौत की सज़ा सुनाई गयी थी… वो डेट भी अब नज़दीक आ गयी थी…

अब थोड़ी ही देर मे सुधीर को मौत की सज़ा दी जानी थी. इंस्पेक्टर राज , सज़ा देनेवाला अधिकारी, एक डॉक्टर और एक दो ऑफिसर्स फाँसी के रूम के सामने खड़े थे. इतने मे दो पोलीस अधिकारी हथकड़ियाँ पहने स्थिति मे सुधीर को वहाँ ले आए. मौत की सज़ा देने की जिस अधिकारी पर ज़िम्मेदारी थी, उसने अपने घड़ी की तरफ देखा और पोलीस अधिकारी को इशारा किया. पोलीस ऑफिसर्स सुधीर को फाँसी की तरफ ले गये…

फिर जल्लाद ने काले कपड़े से उसका चेहरा ढँका और फाँसी को उसके गले मे अटका कर पॅनल खींचने के लिए तैय्यार रहा … मुख्या अधिकारी ने जल्लाद की तरफ देखा और जल्लाद एकदम तैय्यार खड़ा था… फिर से वह अधिकारी अपनी घड़ी की तरफ देखने लगा… शायद उसकी उल्टी गिनती शुरू हो गयी थी…. अचानक उस अधिकारी ने जल्लाद को इशारा किया… जल्लाद ने पल भर की भी देरी ना करते हुए पॅनल खींच दिया… थोड़ी देर मे सुधीर की बॉडी उस फाँसी की रस्सी मे लटकी हुई थी..
 
“डॉक्टर…” उस अधिकारी ने डॉक्टर को पुकारा…

डॉक्टर झट से बॉडी की तरफ गया… और बोला “सर ही ईज़ डेड…”.

वह अधिकारी एक दम से मूड गया और वह जगह छोड़कर वहाँ से चला गया… वह जल्लाद वही बगल मे एक कमरे मे चला गया… वहाँ बाजू मे ही खड़ा एक स्टाफ मेंबर उस चेंबर मे, शायद चेंबर सॉफ करने के लिए घुस गया…. सबकुछ कैसे किसी मशीन की तरह चल रहा था… उन सब का भले ही वह हमेशा का काम हो फिर भी राज के लिए वह हमेशा होनेवाली बाते नही थी.. वह अब भी खड़ा एक एक चीज़ और एक एक हो रही बातें ध्यान से निहार रहा था.

अब डॉक्टर भी वहाँ से चला गया.

वहाँ सिर्फ़ राज अकेला ही बचा… वह अब भी वहाँ चुपचाप खड़ा था, उसके दिमाग़ मे शायद कुछ अलग ही चल रहा हो…

अचानक कोई जल्दी जल्दी उसके पीछे से वहाँ आगया.

“अच्छा… हो गया राज…” पीछे से आवाज़ आई.

राज ने मुड़कर पीछे देखा और उसका मुँह आस्चर्य से खुला का खुला ही रह गया… उसके सामने जल्लाद खड़ा था…. ये तो अभी अभी बगल के कमरे मे गया था…

फिर अभी के अभी ये इधर किधर पीछे से आ गया….

“साहब मुझे चिंता थी कि मेरी अनुपस्थिति मे पॅनल कौन ऑपरेट करेगा…” वह जल्लाद बोला.

“बाइ दा वे किसने ऑपरेट किया पॅनल…?” उस जल्लाद ने राज से पूछा…

राज को एक के बाद एक आस्चर्य के धक्के लग रहे थे…

राज ने बगल के कमरे की तरफ देखा…

“किसने ऑपरेट किया मतलब...? तुमने ही तो ऑपरेट किया…” राज ने अविश्वास के साथ कहा.

“क्या बात करते हो साहब…? में तो अभी अभी यहाँ आ रहा हूँ… कुछ काम से फँस गया था…” उस जल्लाद ने कहा.

राज ने फिर से चौंक कर उसकी तरफ देखा और फिर उस बगल के कमरे की तरफ देखा जिसमे वह थोड़ी देर पहले गया था.

“आओ मेरे साथ… आओ…” राज उसे उस बगल के कमरे की तरफ ले गया.

राज ने उस कमरे का दरवाज़ा धकेला… दरवाज़ा अंदर से बंद था… उसने दरवाज़े पर नॉक किया… अंदर से कोई प्रतिक्रिया नही थी… राज अब वह दरवाज़ा ज़ोर ज़ोर से ठोकने लगा… फिर भी अंदर से कोई प्रतिक्रिया नही थी… राज अपनी पूरी ताक़त के साथ उस दरवाज़े को धकेलने लगा.. वह भ्रम मे पड़ा जल्लाद भी अब उसे धकेलने मे मदद करने लगा.

ज़ोर ज़ोर से धकेल कर और धक्के देकर आख़िर राज ने और उस जल्लाद ने वह दरवाज़ा तोड़ा…

दरवाज़ा टूट ते ही राज और वह जल्लाद जल्दी जल्दी कमरे मे घुस गये… उन्होने कमरे मे चारो तरफ अपनी नज़रे दौड़ाई… कमरे मे कोई नही था… उन्होने एक दूसरे की तरफ देखा… उस जल्लाद के चेहरे पर असमंजस के भाव थे तो राज के चेहरे पर अगम्य ऐसे डर के भाव दिख रहे थे.

अचानक उपर से कुछ नीचे गिर गया… दोनो ने चौंक कर देखा… वह एक काली बिल्ली थी, जिसने उपर से छलाँग लगाई थी… वह बिल्ली अब राज के एक दम सामने खड़ी होगयि और एकटक राज की तरफ देखने लगी… वे आस्चर्य से मुँह खोलकर उस बिल्ली की तरफ देखने लगे धीरे धीरे उस काली बिल्ली का रूपांतर मीनू की सड़ी हुई मृत देह मे होने लगा… उस जल्लाद के तो हाथ पैर कापने लगे थे.. राज भी बर्फ जम जाय ऐसा एकदम स्थिर और स्तब्ध होकर उसके सामने जो घट रहा था वह देख रहा था धीरे धीरे उस सड़ी हुई मर्त्देह का रूपांतर एक सुंदर, जवान तरुणी मे हो गया.. हाँ, वह मीनू ही थी… अब उसके चेहरे पर एक सुकून झलक रहा था… देखते देखते उसकी आखों से दो बड़े बड़े आँसू निकल कर गालों पर बहने लगे और धीरे धीरे वह वहाँ से अद्रिश्य होकर गायब हो गयी… दोस्तो ये कहानी यही ख़तम होती है फिर मिलेंगे एक और नई कहानी के साथ आपका दोस्त राज शर्मा

समाप्त

दा एंड
 
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