hotaks444
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होटेल के एक कमरे मे मीनू और शरद बेड पर एकदुसरे के आमने सामने बैठे थे. शरद ने मीनू के चेहरे पर आती बालों की लाटो को एक तरफ हटाया.
"मुझे तो डर ही लगा था कि शायद हम उनके चुंगले मे ना फँस जाए..." मीनू ने कहा.
वह अभी भी उसे भयानक मन्स्थिति से बाहर नही निकल पाई थी..
"देखो... मेरे होते हुए तुम्हे चिंता करने की क्या ज़रूरत...? में तुम्हे कुछ भी नही होने दूँगा... आइ प्रॉमिस..." वह उसे सांत्वना देने की कोशिश करते हुए बोला.
उसने मंद मंद मुस्कुराते हुए उसके तरफ देखा.
सचमुच उसे उसके इस शब्दोसे कितना अच्छा लगा था...
धीरे से शरद उसके पास खिसक गया. मीनू ने उसकी आँखों मे देखा. शरद भी अब उसकी आँखों से अपनी नज़रे हटाने के लिए तैय्यार नही था. धीरे धीरे उनके सांसो की गति बढ़ने लगी. हल्के ही शरद ने उसे अपनी बाहों मे खींच लिया. उसे भी मानो उसकी सुरक्षित बाहों मे अच्छा लग रहा था.
शरद ने धीरे से उसे बेड पर लिटाकर उसका चेहरा अपनी हाथों मे लेकर वह उसकी तरफ एकटक देखने लगा. धीरे धीरे उसकी तरफ झुकता गया और उसके गर्म होंठ अब उसके तपते होंठोपर टिक गये. दोनो भी बेकाबू होकर एक दूसरे को आवेग मे चूमने लगे. इतने आवेग मे कि वे दोनो 'ढप्पक' से बेड के नीचे फर्शपर गिर गये. मीनू नीचे और उसके उपर शरद गिर गया. दर्द से कराहते हुए मीनू ने उसे दूर धकेला.
"मेरी क्या हड्डियाँ तोड़ोगे...?" वह कराहते हुए बोली.
शरद झट से उठ गया और उसे उपर उठाने का प्रयास करने लगा.
"आइ एम सौरी... आइ एम सो सॉरी..." वह बोला.
मीनू ने उसे एक थप्पड़ मारनेका अवीरभाव किया. उसने भी डर के मारे अपनी आँखें बंद कर अपना चेहरा दूसरी तरफ हटाया. मीनू मन ही मन मुस्कुराइ. किसी छोटे बच्चे की तरह मासूम भाव उसके चेहरे पर उभर आए थे. उसकी इसी मासूम आड़ा पर तो वह फिदा हुई थी. उसने उसका चेहरा अपने हाथों मे लिया और उसकी होंठो को वह कस कर चूमने लगी. वह भी उसी तड़प, उसी आवेग के साथ जवाब मे उसे चूमने लगा. अब तो उन्होने नीचे फर्शपर बिछे गाळीचे से उठकर उपर जाने के भी जहमत नही उठाई. असल मे वे एक क्षण भी गवाना नही चाहते थे. वे नीच गलिचे पर ही लेटकर एक दूसरे के उपर चुंबन की बरसात करने लगे. चूमने के साथ ही उनके हाथ एक दूसरे के कपड़े निकल ने मे व्यस्त थे. शरद अब उसके सारे कपड़े निकाल कर उसमे समा जाने को बेताब हुआ था. वह धीरे धीरे बड़ी बड़ी सांसो के साथ मीनू के उपर झुकने लगा. इतने मे.. इतने मे उनके कमरे के दरवाजे पर किसी ने नॉक किया. वे मानो जैसे थे वैसे बर्फ की तरह जम गये. गड़बड़कर वे एक दूसरे की तरफ देखने लगे.
हमे दरवाजा बजने का आभास तो नही हुआ...?
तब फिर से एकबार दरवाजे पर नॉक सुनाई दी... इसबार थोड़ी ज़ोर से..
सर्विस बॉय तो नही होगा...
"कौन है...?" शरद ने पूछा.
"पोलीस...." बाहर से आवाज़ आए.
दोनो गलिचे से उठकर कपड़े पहन ने लगे.
पोलीस यहाँ तक कैसे पहुँच गयी...?
शरद और मीनू सोचने लगे.
उन्होने अपने कपड़े पहन ने के बाद शरद सहमे हुए स्थिति मे दरवाजे तक गया. उसने फिर से एक बार मीनू की तरफ देखा. अब इस परिस्थिति का सामना कैसे किया जाए इसकी वे मन ही मन तैय्यार करने लगे थे. शरद की होल से बाहर झाँक कर देखने लगा. लेकिन बाहर अंधेरे के सिवा कुछ नज़र नही आ रहा था.
या उस की होल मे कुछ प्राब्लम होगा...
सावधानी से, धीरे से उसने दरवाज़ा खोला और दरवाज़ा थोड़ा तिरछा करते हुए बाहर झाँक ने का प्रयास कर रहा था और तभी .... शिकेन्दर, अशोक, सुनील और चंदन दरवाज़ा ज़ोर से धकेलते हुए कमरे मे घुस गये.
क्या हो रहा है यह समझने के पहले ही शिकेन्दर ने दरवाजे को अंदर से कुण्डी लगा ली थी. किसी चीते की फुर्ती से अशोक ने चाकू निकाल कर मीनू के गर्दन पर रख दिया और दूसरे हाथ से वह चिल्लाए नही इसलिए उसका मुँह दबाया.
"मुझे तो डर ही लगा था कि शायद हम उनके चुंगले मे ना फँस जाए..." मीनू ने कहा.
वह अभी भी उसे भयानक मन्स्थिति से बाहर नही निकल पाई थी..
"देखो... मेरे होते हुए तुम्हे चिंता करने की क्या ज़रूरत...? में तुम्हे कुछ भी नही होने दूँगा... आइ प्रॉमिस..." वह उसे सांत्वना देने की कोशिश करते हुए बोला.
उसने मंद मंद मुस्कुराते हुए उसके तरफ देखा.
सचमुच उसे उसके इस शब्दोसे कितना अच्छा लगा था...
धीरे से शरद उसके पास खिसक गया. मीनू ने उसकी आँखों मे देखा. शरद भी अब उसकी आँखों से अपनी नज़रे हटाने के लिए तैय्यार नही था. धीरे धीरे उनके सांसो की गति बढ़ने लगी. हल्के ही शरद ने उसे अपनी बाहों मे खींच लिया. उसे भी मानो उसकी सुरक्षित बाहों मे अच्छा लग रहा था.
शरद ने धीरे से उसे बेड पर लिटाकर उसका चेहरा अपनी हाथों मे लेकर वह उसकी तरफ एकटक देखने लगा. धीरे धीरे उसकी तरफ झुकता गया और उसके गर्म होंठ अब उसके तपते होंठोपर टिक गये. दोनो भी बेकाबू होकर एक दूसरे को आवेग मे चूमने लगे. इतने आवेग मे कि वे दोनो 'ढप्पक' से बेड के नीचे फर्शपर गिर गये. मीनू नीचे और उसके उपर शरद गिर गया. दर्द से कराहते हुए मीनू ने उसे दूर धकेला.
"मेरी क्या हड्डियाँ तोड़ोगे...?" वह कराहते हुए बोली.
शरद झट से उठ गया और उसे उपर उठाने का प्रयास करने लगा.
"आइ एम सौरी... आइ एम सो सॉरी..." वह बोला.
मीनू ने उसे एक थप्पड़ मारनेका अवीरभाव किया. उसने भी डर के मारे अपनी आँखें बंद कर अपना चेहरा दूसरी तरफ हटाया. मीनू मन ही मन मुस्कुराइ. किसी छोटे बच्चे की तरह मासूम भाव उसके चेहरे पर उभर आए थे. उसकी इसी मासूम आड़ा पर तो वह फिदा हुई थी. उसने उसका चेहरा अपने हाथों मे लिया और उसकी होंठो को वह कस कर चूमने लगी. वह भी उसी तड़प, उसी आवेग के साथ जवाब मे उसे चूमने लगा. अब तो उन्होने नीचे फर्शपर बिछे गाळीचे से उठकर उपर जाने के भी जहमत नही उठाई. असल मे वे एक क्षण भी गवाना नही चाहते थे. वे नीच गलिचे पर ही लेटकर एक दूसरे के उपर चुंबन की बरसात करने लगे. चूमने के साथ ही उनके हाथ एक दूसरे के कपड़े निकल ने मे व्यस्त थे. शरद अब उसके सारे कपड़े निकाल कर उसमे समा जाने को बेताब हुआ था. वह धीरे धीरे बड़ी बड़ी सांसो के साथ मीनू के उपर झुकने लगा. इतने मे.. इतने मे उनके कमरे के दरवाजे पर किसी ने नॉक किया. वे मानो जैसे थे वैसे बर्फ की तरह जम गये. गड़बड़कर वे एक दूसरे की तरफ देखने लगे.
हमे दरवाजा बजने का आभास तो नही हुआ...?
तब फिर से एकबार दरवाजे पर नॉक सुनाई दी... इसबार थोड़ी ज़ोर से..
सर्विस बॉय तो नही होगा...
"कौन है...?" शरद ने पूछा.
"पोलीस...." बाहर से आवाज़ आए.
दोनो गलिचे से उठकर कपड़े पहन ने लगे.
पोलीस यहाँ तक कैसे पहुँच गयी...?
शरद और मीनू सोचने लगे.
उन्होने अपने कपड़े पहन ने के बाद शरद सहमे हुए स्थिति मे दरवाजे तक गया. उसने फिर से एक बार मीनू की तरफ देखा. अब इस परिस्थिति का सामना कैसे किया जाए इसकी वे मन ही मन तैय्यार करने लगे थे. शरद की होल से बाहर झाँक कर देखने लगा. लेकिन बाहर अंधेरे के सिवा कुछ नज़र नही आ रहा था.
या उस की होल मे कुछ प्राब्लम होगा...
सावधानी से, धीरे से उसने दरवाज़ा खोला और दरवाज़ा थोड़ा तिरछा करते हुए बाहर झाँक ने का प्रयास कर रहा था और तभी .... शिकेन्दर, अशोक, सुनील और चंदन दरवाज़ा ज़ोर से धकेलते हुए कमरे मे घुस गये.
क्या हो रहा है यह समझने के पहले ही शिकेन्दर ने दरवाजे को अंदर से कुण्डी लगा ली थी. किसी चीते की फुर्ती से अशोक ने चाकू निकाल कर मीनू के गर्दन पर रख दिया और दूसरे हाथ से वह चिल्लाए नही इसलिए उसका मुँह दबाया.