hotaks444
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प्रिया और मेरे पप्पू की आँख मिचौली
तभी बाहर से घंटी कि आवाज़ आई और हम तीनों चौंक गए...
"रिंकी...रिंकीऽऽऽऽऽ...दरवाज़ा खोलो!" यह प्रिया की आवाज़ थी..
.
हम लोग सामान्य हो गए और अपनी अपनी जगह पर बैठ गए... और रिंकी नीचे दरवाज़ा खोलनें चली गई, जब वह उपर आई तो उसके साथ प्रिया थी ... उपर आते हुए प्रिया की नज़र मेरे कमरे में पड़ी और उसने मेरी तरफ देखकर एक प्यारी सी मुस्कराहट बिखेरी...और मुझे हाथ हिलाकर हाय किया और ऊपर चली गई... यह प्रिया और मेरा रोज का काम था, हम जब भी एक दूसरे को देखते तो प्रिया मुस्कराते हुये मेरी तरफ हाथ दिखाकर हाय कह देती थी।
अब सब कुछ सामान्य हो चुका था और राजेश भी अपने घर वापस चला गया था।
मैं अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था। मैंने एक छोटी सी निक्कर पहन रखी थी और थोड़ी देर पहले की घटना को याद करके अपने हाथों से अपने नंदलाल को सहला रहा था। कल की स्मिता आंटी द्वारा मेरी चोरी पकड़ी जाने की घटना भी मुझे अच्छे से याद थी। लेकिन दरवाजे को मै लाँक लगा नही सकता था क्योकि इससे तो दूसरो का शक और बढ़ जाता और इसलिये दरवाजे को लाँक लगानें या फिर निक्कर को नीचे करने के बजाय, मैनें उसके एक साइड से अपने छोटे-मियाँ को बाहर निकाल लिया था। जिससे किसी तरह की कोई आहट आते ही उसे तुरन्त अन्दर किया जा सके।
मैं रिंकी की हसीन चूचियों और चूत को याद करके मज़े ले रहा था और उनकी याद में मेरी आँखें कब बंद हो गईं पता ही नही चला। मैं अपने ही ख्यालों में डूबा अपने बनवारीलाल की हल्के हल्के मालिश किए जा रहा था कि तभी...
"ओह माई गॉड!!!! "...यह क्या है??"
एक खनकती हुई आवाज़ मेरे कानों में आई और मैंने झट से अपनी आँखे खोल लीं...मेरी नज़र जब सामने खड़े शख्स पर गई तो मैं चौंक पड़ा...
"तुम...यहाँ क्या कर रही हो...?? " मेरे मुँह से बस इतना ही निकला और मैं खड़ा हो गया...
मेरे सामने और कोई नहीं बल्कि प्रिया खड़ी थी जो अभी थोड़ी देर पहले ही घर वापस लौटी थी, उसके हाथों में एक प्लेट थी जिसमें वो मेरे लिए कुछ खाने को लेकर आई थी।
यह उसकी पुरानी आदत थी, जब भी वो कहीं बाहर से आती तो सबके लिए कुछ न कुछ खाने को लेकर आती थी।
खैर छोड़ो, मैं हड़बड़ा कर बिस्तर से उठ गया और उसके ठीक सामने खड़ा हो गया। मुझे काटो तो खून नहीं, कुछ सोचने समझने की ताक़त ही नहीं रही, सारा बदन पसीने से भर गया।
मैंने जब प्रिया की तरफ देखा तो पता चला कि उसकी आँखें मेरे पप्पू पर टिकी हुई हैं और वो अपना मुँह और आँखें फाड़ फाड़ कर बिना पलके झपकाए उसे देखे जा रही थी। हम दोनों में से किसी की भी जुबान से कोई शब्द नहीं निकल रहे थे।
तभी मेरे तन्नाये हुए नन्दकिशोर ने एक ठुमका मारा और प्रिया की तन्द्रा टूटी। उसने बिना देरी किये प्लेट सामने की मेज़ पर रखा और मेरी आँखों में एक बार देखा। उसके चेहरे पर एक अजीब सा भाव था मानो उसने कोई भूत देख लिया हो।
वो सीधा सीढ़ियों की तरफ दौड़ पड़ी लेकिन वहीं जाकर रुक गई। मेरी तो हालत ही ख़राब थी, मैं उसी हालत में अपने कमरे से यह देखने के लिए बाहर निकला कि वो रुक क्यूँ गई। पता नहीं मुझे क्या हो गया था, वो उत्सुकता थी या पकड़े जाने का डर... पर जो भी था मैं अपने तन्नाये नन्हे सोनू के साथ ही बाहर की तरफ आ गया और मैंने प्रिया को सीढ़ियों के पास दीवार से टेक लगाकर खड़ा पाया।
उसकी आँखें बंद थी और साँसें धौंकनी की तरह चल रही थीं। उसका चेहरा सुर्ख लाल हो गया था और माथे पर हल्की हल्की पसीने की बूँदें उभर आई थीं। उसका सीना तेज़ चलती साँसों की वजह से ऊपर नीचे हो रहा था और ज़ाहिर है कि सीने के उभार भी उसी तरह थिरक रहे थे।
पर मुझे उसकी चूचियों का ख्याल कम और यह डर ज्यादा था कि कहीं वो यह बात सब को बता न दे। सच बताऊँ तो मेरे हाथ पैर ठंडे होने लगे थे। मैंने थोड़ी सी हिम्मत जुटाई और उसकी तरफ यह बोलने के लिए बढ़ा कि वो यह बात किसी से न कहे। मैंने डरते डरते उसके कंधे पर हाथ रखा और उसे थोड़ा सा हिलाया- प्रिया...प्रिया...!
"हाँआँ...!"
उसने फिर से हड़बड़ा कर अपनी आँखें खोली और हम दोनों की आँखें फिर से एक दूसरे में अटक गईं। उसकी आँखों में एक अजीब सा सवाल था मानो वो मुझसे पूछना चाह रही हो कि यह सब क्या था...
"प्रिया...तुमने जो अभी देखा वो प्लीज किसी से मत बताना, वरना मेरी बदनामी हो जाएगी और मुझे सजा मिलेगी..." मैंने एक सांस में डरते डरते अपनी बात प्रिया से कह दी।
प्रिया ने हल्का सा सिर हिला कर एक मौन स्वीकृति दी और शरमा कर अपनी नज़र नीचे कर ली...
"हे भगवन...!!"
प्रिया के मुँह से फिर से एक चौंकाने वाली आवाज़ आई और वो मुड़कर सीढ़ियों से ऊपर की तरफ भाग गई।
मैं भाग कर अपने कमरे में घुस गया और दरवाज़ा बंद कर लिया। मैं उसी हालत में अपने बिस्तर पर लेट गया और छत को निहारने लगा। मेरे मन में अजीब सी उथल-पुथल चल रही थी।
अभी कल रात की छोटी बहन के तंग और उत्तेजक कपड़ों से झलकनें वाली उसकी गोरी गोरी नंगी जांघो तथा छोटे छोटे अनारों की दिवानगी से मै बाहर ही नहीं निकल पाया था कि आज दिन में बड़ी वाली के मदहोश कर देने वाले बिल्कुल नग्न हुस्न नें बिजली ही गिरा दी थी। आज मैं अपनें आप को बहुत ही लाचार मजबूर और बेसहारा महसूस कर रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे इस दुनियाँ में मेरा कोई नही है। मै सोच रहा था कि इसमें मेरी गलती क्या है? कल तक जो कुछ मैं अपने कंप्यूटर की स्क्रीन पर देख कर खुश होता रहता था आज वही सब कुछ अपनें आप ही मेरी असली जिन्दगी में घटित हो रहा था। अगर मैं कंप्यूटर की स्क्रीन पर यह सब देखते हुये अपना होश खो बैठता था तो असली जिन्दगी में भी वही सब कुछ देख कर होश खो बैठना कुदरती था।
एक तरफ मेरे पप्पू की बेलगाम इच्छायें और माँगें थीं जो कभी भी किसी भी वक्त बिना सोचे समझे एक बिगड़ैल घोड़े की तरह अपनें अस्तबत में उछल कूद मचानें लगती थीं और दूसरी ओर सारी पोल के खुल जाने का डर था। अब से पहले तो रामलला को खुश करनें में कभी कोई बाधा नही आई। एक नवजात शिशु की तरह जब कभी उसे भुख लगती तो थोड़ा आगे पीछे ही सही पर बिना किसी डर और झिझक के पूरी आजादी से उसको उसकी खुराक मिल ही जाती थी लेकिन अब परिस्थियाँ बिल्कुल बदल गईं थीं। जाने अनजाने में अब उसके पीछे तीन तीन चौकीदार लग गये थे जिनकी नजरों से बचना मुश्किल हो रहा था। जो लोग इस परेशानी का सबब थे, खुद को बचाना और छुपाना भी उन्ही से था। जो लोग चोरी करने को उकसा रहे थे, वही फिर चोरी पकड़ने निकल रहे थे। अजीब कशमकश थी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए।
आज जो हुआ उसका परिणाम पता नहीं क्या होगा। कहीं प्रिया इस बात को सबसे कह तो नहीं देगी या फिर मेरी बात मानकर चुप रहेगी...
यह सोचते सोचते मैंने अपनी आँखें बंद कर ली... तभी मेरी आँखों के सामने प्रिया की ऊपर नीचे होती चूचियाँ आ गईं...और मेरा हाथ अपने आप मेरे खड़े मिट्ठू मियां पर चला गया।
और यह क्या, मेरा पप्पू तो पहले से ज्यादा अकड़ गया था। मेरे होठों पर एक कुटिल मुस्कान आ गई और मैंने अपने आप को ही एक गाली दी, “साले चोदू...तू नहीं सुधरेगा!” और मैंने अपना अधूरा काम पूरा करने में ही भलाई समझी क्यूंकि इस खड़े बदमाश को चुप कराना जरूरी था। मैंने अपने बन्सीधर को प्यार से सहलाया और मुठ मारने लगा। मज़े की बात यह थी कि अब मेरी आँखों में दो दो दृश्य आ रहे थे, एक रिंकी की हसीन झांटों भरी चूत और दूसरा प्रिया की चूचियाँ...मेरा जोश दोगुना हो गया और फिर हमारे साहबजादे ने एक जोरदार पिचकारी मार कर अपना लावा बाहर निकाल दिया।
मैं बिल्कुल थक सा गया था मानो कोई लम्बी सी रेस दौड़ कर आया हूँ। और यूँ ही मेरी आँख लग गईं।
तभी बाहर से घंटी कि आवाज़ आई और हम तीनों चौंक गए...
"रिंकी...रिंकीऽऽऽऽऽ...दरवाज़ा खोलो!" यह प्रिया की आवाज़ थी..
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हम लोग सामान्य हो गए और अपनी अपनी जगह पर बैठ गए... और रिंकी नीचे दरवाज़ा खोलनें चली गई, जब वह उपर आई तो उसके साथ प्रिया थी ... उपर आते हुए प्रिया की नज़र मेरे कमरे में पड़ी और उसने मेरी तरफ देखकर एक प्यारी सी मुस्कराहट बिखेरी...और मुझे हाथ हिलाकर हाय किया और ऊपर चली गई... यह प्रिया और मेरा रोज का काम था, हम जब भी एक दूसरे को देखते तो प्रिया मुस्कराते हुये मेरी तरफ हाथ दिखाकर हाय कह देती थी।
अब सब कुछ सामान्य हो चुका था और राजेश भी अपने घर वापस चला गया था।
मैं अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था। मैंने एक छोटी सी निक्कर पहन रखी थी और थोड़ी देर पहले की घटना को याद करके अपने हाथों से अपने नंदलाल को सहला रहा था। कल की स्मिता आंटी द्वारा मेरी चोरी पकड़ी जाने की घटना भी मुझे अच्छे से याद थी। लेकिन दरवाजे को मै लाँक लगा नही सकता था क्योकि इससे तो दूसरो का शक और बढ़ जाता और इसलिये दरवाजे को लाँक लगानें या फिर निक्कर को नीचे करने के बजाय, मैनें उसके एक साइड से अपने छोटे-मियाँ को बाहर निकाल लिया था। जिससे किसी तरह की कोई आहट आते ही उसे तुरन्त अन्दर किया जा सके।
मैं रिंकी की हसीन चूचियों और चूत को याद करके मज़े ले रहा था और उनकी याद में मेरी आँखें कब बंद हो गईं पता ही नही चला। मैं अपने ही ख्यालों में डूबा अपने बनवारीलाल की हल्के हल्के मालिश किए जा रहा था कि तभी...
"ओह माई गॉड!!!! "...यह क्या है??"
एक खनकती हुई आवाज़ मेरे कानों में आई और मैंने झट से अपनी आँखे खोल लीं...मेरी नज़र जब सामने खड़े शख्स पर गई तो मैं चौंक पड़ा...
"तुम...यहाँ क्या कर रही हो...?? " मेरे मुँह से बस इतना ही निकला और मैं खड़ा हो गया...
मेरे सामने और कोई नहीं बल्कि प्रिया खड़ी थी जो अभी थोड़ी देर पहले ही घर वापस लौटी थी, उसके हाथों में एक प्लेट थी जिसमें वो मेरे लिए कुछ खाने को लेकर आई थी।
यह उसकी पुरानी आदत थी, जब भी वो कहीं बाहर से आती तो सबके लिए कुछ न कुछ खाने को लेकर आती थी।
खैर छोड़ो, मैं हड़बड़ा कर बिस्तर से उठ गया और उसके ठीक सामने खड़ा हो गया। मुझे काटो तो खून नहीं, कुछ सोचने समझने की ताक़त ही नहीं रही, सारा बदन पसीने से भर गया।
मैंने जब प्रिया की तरफ देखा तो पता चला कि उसकी आँखें मेरे पप्पू पर टिकी हुई हैं और वो अपना मुँह और आँखें फाड़ फाड़ कर बिना पलके झपकाए उसे देखे जा रही थी। हम दोनों में से किसी की भी जुबान से कोई शब्द नहीं निकल रहे थे।
तभी मेरे तन्नाये हुए नन्दकिशोर ने एक ठुमका मारा और प्रिया की तन्द्रा टूटी। उसने बिना देरी किये प्लेट सामने की मेज़ पर रखा और मेरी आँखों में एक बार देखा। उसके चेहरे पर एक अजीब सा भाव था मानो उसने कोई भूत देख लिया हो।
वो सीधा सीढ़ियों की तरफ दौड़ पड़ी लेकिन वहीं जाकर रुक गई। मेरी तो हालत ही ख़राब थी, मैं उसी हालत में अपने कमरे से यह देखने के लिए बाहर निकला कि वो रुक क्यूँ गई। पता नहीं मुझे क्या हो गया था, वो उत्सुकता थी या पकड़े जाने का डर... पर जो भी था मैं अपने तन्नाये नन्हे सोनू के साथ ही बाहर की तरफ आ गया और मैंने प्रिया को सीढ़ियों के पास दीवार से टेक लगाकर खड़ा पाया।
उसकी आँखें बंद थी और साँसें धौंकनी की तरह चल रही थीं। उसका चेहरा सुर्ख लाल हो गया था और माथे पर हल्की हल्की पसीने की बूँदें उभर आई थीं। उसका सीना तेज़ चलती साँसों की वजह से ऊपर नीचे हो रहा था और ज़ाहिर है कि सीने के उभार भी उसी तरह थिरक रहे थे।
पर मुझे उसकी चूचियों का ख्याल कम और यह डर ज्यादा था कि कहीं वो यह बात सब को बता न दे। सच बताऊँ तो मेरे हाथ पैर ठंडे होने लगे थे। मैंने थोड़ी सी हिम्मत जुटाई और उसकी तरफ यह बोलने के लिए बढ़ा कि वो यह बात किसी से न कहे। मैंने डरते डरते उसके कंधे पर हाथ रखा और उसे थोड़ा सा हिलाया- प्रिया...प्रिया...!
"हाँआँ...!"
उसने फिर से हड़बड़ा कर अपनी आँखें खोली और हम दोनों की आँखें फिर से एक दूसरे में अटक गईं। उसकी आँखों में एक अजीब सा सवाल था मानो वो मुझसे पूछना चाह रही हो कि यह सब क्या था...
"प्रिया...तुमने जो अभी देखा वो प्लीज किसी से मत बताना, वरना मेरी बदनामी हो जाएगी और मुझे सजा मिलेगी..." मैंने एक सांस में डरते डरते अपनी बात प्रिया से कह दी।
प्रिया ने हल्का सा सिर हिला कर एक मौन स्वीकृति दी और शरमा कर अपनी नज़र नीचे कर ली...
"हे भगवन...!!"
प्रिया के मुँह से फिर से एक चौंकाने वाली आवाज़ आई और वो मुड़कर सीढ़ियों से ऊपर की तरफ भाग गई।
मैं भाग कर अपने कमरे में घुस गया और दरवाज़ा बंद कर लिया। मैं उसी हालत में अपने बिस्तर पर लेट गया और छत को निहारने लगा। मेरे मन में अजीब सी उथल-पुथल चल रही थी।
अभी कल रात की छोटी बहन के तंग और उत्तेजक कपड़ों से झलकनें वाली उसकी गोरी गोरी नंगी जांघो तथा छोटे छोटे अनारों की दिवानगी से मै बाहर ही नहीं निकल पाया था कि आज दिन में बड़ी वाली के मदहोश कर देने वाले बिल्कुल नग्न हुस्न नें बिजली ही गिरा दी थी। आज मैं अपनें आप को बहुत ही लाचार मजबूर और बेसहारा महसूस कर रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे इस दुनियाँ में मेरा कोई नही है। मै सोच रहा था कि इसमें मेरी गलती क्या है? कल तक जो कुछ मैं अपने कंप्यूटर की स्क्रीन पर देख कर खुश होता रहता था आज वही सब कुछ अपनें आप ही मेरी असली जिन्दगी में घटित हो रहा था। अगर मैं कंप्यूटर की स्क्रीन पर यह सब देखते हुये अपना होश खो बैठता था तो असली जिन्दगी में भी वही सब कुछ देख कर होश खो बैठना कुदरती था।
एक तरफ मेरे पप्पू की बेलगाम इच्छायें और माँगें थीं जो कभी भी किसी भी वक्त बिना सोचे समझे एक बिगड़ैल घोड़े की तरह अपनें अस्तबत में उछल कूद मचानें लगती थीं और दूसरी ओर सारी पोल के खुल जाने का डर था। अब से पहले तो रामलला को खुश करनें में कभी कोई बाधा नही आई। एक नवजात शिशु की तरह जब कभी उसे भुख लगती तो थोड़ा आगे पीछे ही सही पर बिना किसी डर और झिझक के पूरी आजादी से उसको उसकी खुराक मिल ही जाती थी लेकिन अब परिस्थियाँ बिल्कुल बदल गईं थीं। जाने अनजाने में अब उसके पीछे तीन तीन चौकीदार लग गये थे जिनकी नजरों से बचना मुश्किल हो रहा था। जो लोग इस परेशानी का सबब थे, खुद को बचाना और छुपाना भी उन्ही से था। जो लोग चोरी करने को उकसा रहे थे, वही फिर चोरी पकड़ने निकल रहे थे। अजीब कशमकश थी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए।
आज जो हुआ उसका परिणाम पता नहीं क्या होगा। कहीं प्रिया इस बात को सबसे कह तो नहीं देगी या फिर मेरी बात मानकर चुप रहेगी...
यह सोचते सोचते मैंने अपनी आँखें बंद कर ली... तभी मेरी आँखों के सामने प्रिया की ऊपर नीचे होती चूचियाँ आ गईं...और मेरा हाथ अपने आप मेरे खड़े मिट्ठू मियां पर चला गया।
और यह क्या, मेरा पप्पू तो पहले से ज्यादा अकड़ गया था। मेरे होठों पर एक कुटिल मुस्कान आ गई और मैंने अपने आप को ही एक गाली दी, “साले चोदू...तू नहीं सुधरेगा!” और मैंने अपना अधूरा काम पूरा करने में ही भलाई समझी क्यूंकि इस खड़े बदमाश को चुप कराना जरूरी था। मैंने अपने बन्सीधर को प्यार से सहलाया और मुठ मारने लगा। मज़े की बात यह थी कि अब मेरी आँखों में दो दो दृश्य आ रहे थे, एक रिंकी की हसीन झांटों भरी चूत और दूसरा प्रिया की चूचियाँ...मेरा जोश दोगुना हो गया और फिर हमारे साहबजादे ने एक जोरदार पिचकारी मार कर अपना लावा बाहर निकाल दिया।
मैं बिल्कुल थक सा गया था मानो कोई लम्बी सी रेस दौड़ कर आया हूँ। और यूँ ही मेरी आँख लग गईं।