“ले कुतिया, आह हरामजादी रंडी, चूतमरानी बुर चोदी, आज से तू हमारी लंड रानी हुई रे,” और न जाने क्या क्या वे सम्मिलित स्वर में बड़बड़ाने लगे और धकाधक चोदने में मशगूल हो गये। मैं उनके बीच पिसती हुई इतने गंदे वासना के खेल में डूब गयी। फिर शुरू हुआ तीनों का मेरे साथ धकमपेल, चुदाई का तांडव। नीचे से बड़े दादाजी का लंड मेरी चूत में किसी इंजन के पिस्टन की तरह भचाभच अंदर बाहर हो रहा था, पीछे से नानाजी का लंड बड़ी बेरहमी मेरी गांड़ से होकर अंतड़ियों तक भच्च भच्च कुटाई किए जा रहा था और दादाजी का लौड़ा मेरे मुंह में तहलका मचा रहा था। मेरी चूत और गांड़ की चुदाई में भिड़े दोनों बूढ़े जब लयबद्ध तरीके से ठाप पर ठाप मारे जा रहे थे तो ऐसा लग रहा था मानो उनके मदमस्त लौड़े पेट कि अंतड़ियों और गर्भाशय के बीच की विभाजन दीवार को मिटा कर एकाकार होने की कोशिश में लगे हों। “आह वह चरम सुख का अद्भुत अहसास, आह अपने नारीत्व की पूर्णता का सुखद अहसास।”
10 मिनटों में ही मैं फिर झड़ने लगी “ओह मां ओह मां मैं गई मैं गई रे मादरचो्च्चोओ्ओ्ओद आ्आ्आह,” ओह वह अहसास, संभोग सुख का अद्भुत आनंद।
तीनों बूढ़े लगे रहे चोदने में, मानो उनमें चुदाई की प्रतियोगिता चल रही हो, और में चुदती चुदती फिर वासना के महासागर की अथाह गहराई में डूब कर स्वर्गीय आनंद का रसपान करती करती मदहोशी के आलम में बेशरम छिनाल की तरह बड़ बड़ करने लगी, “आह ओह चोद दादू, चोद मेरे चूत के रसिया, मेरे बुर के बलमा, हाय रे मैं रंडी, आपलोगों की बुर चोदी, हाय नानाजी मेरे कुत्ते बलमा, चोद ले साले कुत्ते, मादरचोद, आपलोगों की रंडी बन गई रे मैं आज, मुझे कुत्ती बनाके चोद, रंडी बना के चोद ले मेरे प्यारे बूढ़े चुदक्कड़ो, हाय मैं अब आपलोगों के लौड़ों की दासी बन गयी हूं, मुझे छोड़ना मत मेरे सजनो।”
“हां रे हमारी बुर चोदी मां, ले कुतिया और ले हम हम, ले लौड़ा ले, हम सब एक साथ तुझे अपनी औरत बनाएंगे रे रंडी मां, एक साथ एके बिस्तर में। कभी न छोड़ेंगे हरामजादी मां,” वे लोग भी बड़बड़ कर रहे थे।
करीब 30 मिनट वासना का बेहद रोमांचक और घिनौना नंगा खेल चलता रहा और अंततः हम आपस में गुंथ कर झड़ने लगे। सर्वप्रथम दादाजी ने मेरे मुंह में वीर्य पान कराना शुरू किया, दिन भर की दमित उत्तेजना से जमा कसैला और नमकीन प्रोटीनयुक्त वीर्य मेरे हलक में उतरता चला गया। वो स्खलित हो कर किसी भैंस की तरह हांफते हुए लुढ़क गये। फिर बड़े दादाजी फचफचा कर अपने वीर्य, मदन रस से मेरे गर्भाशय को सराबोर करते हुए झ़ड़ने लगे, “ओह रंडी रानी मां ले मेरा रस, मेरे बच्चे की मां बन जाआ्आ्आ्आ्आह,।” तभी मैं भी तीसरी बार छरछरा कर झड़ने लगी, “आह मैं गयी ये मेरे राजा, हां हां हां मुझे अपने बच्चों की मां बना्न्न्न्आ्आ्आ्आह्ह्ह ले रज्ज्ज्आ्आ्आह” उससे कस कर छिपकिली की तरह चिपक कर स्खलन के स्वर्गिक आनंद से सराबोर हो गई। वे भी शिथिल हो कर किसी भालू की तरह लुढ़क गये। हाय, नानाजी भी इसी समय झड़ने लगे। मुझे कुत्ते की तरह पीछे से जकड़ लिया और मेरे गुदा मार्ग में झड़ने लगे और हाय, मैं यह कैसे भूल बैठी थी कि उनका लंड आदमी के लंड की तरह नहीं बल्कि कुत्ते के लंड की तरह है।
उनका लंड जड़ तक मेरी गांड़ में घुसा हुआ था और ठीक गुदा द्वार के अंदर एक बड़ा सा बॉल बन कर अटक गया था। मैं ने अलग होने का प्रयास किया तो गांड़ फटने फटने को होने लगी और मैं उसी स्थिति में रुक गई। नानाजी भी लंड फंसाए किसी कुत्ते की तरह पलट गये। हमारी स्थिति कुत्ते कुत्ती की तरह थी। मैं जानती थी कि यह स्थिति आधे घंटे तक रहने वाली थी। “हाय मेरे कुत्ते सैंया, आखिर मुझे अपनी कुतिया बना ही डाला। मेरी चूत को पहले कुतिया की चूत बनाया और अब मेरी गांड़ को भी कुतिया की गांड़ बना दिया। हाय रे हाय मेरी गांड़।” बाकी दोनों बूढ़े इस मजेदार दृश्य का आनंद लें रहे थे।
“चुप कर कुतिया, जब तक लौड़ा फंसा है शांत रह, नहीं तो कुत्ते की तरह खींचता चलूंग और तू मेरी रांड कुतिया मेरे लंड से फंसी दर्द से बेहाल हो जाएगी।” नानाजी बोल उठे। करीब आधे घंटे बाद लंड का बॉल थोड़ा सिकुड़ कर छोटा हुआ और फच्च की जोरदार आवाज के साथ बाहर निकल आया। मेरी जान में जान आई और वहीं लस्त पस्त निढाल लुढ़क गई। उधर नानाजी भी किसी भालू की तरह हांफते हुए लुढ़क गए।हम चारों इस समय अपनी हवस शांत करके तृप्ति की सांस ले रहे थे।
अब मैं पूरी तरह इनकी हो गई थी, इनके वासनामय खेल की अभिन्न खिलाड़ी, पक्की रंडी, भोग्या, बिन ब्याही इनकी साझी पत्नी, जिसे वे जब चाहें, जैसे चाहें भोग सकते थे। मैं ने भी खुशी खुशी इस संबंध को स्वीकार कर लिया और अपने आप को उनके कदमों में निछावर कर मानो जन्नत पा लिया, आखिर इन बूढ़ों ने मुझे अपनी जवानी का लुत्फ लेने का इतना आनंददायक मार्ग जो दिखाया था। मैं ने मन में यही निर्णय लिया कि बस अब सिर्फ बुजुर्गों की ही अंकशायिनी बनूंगी। उनके जीवन के अस्ताचल में नया रंग भरने की कोशिश करती रहूंगी। मैं उन तीनों बूढ़ों के साथ नंग धड़ंग अवस्था में अस्त व्यस्त पसरी, एक टांग दादाजी के ऊपर, बड़े दादाजी का एक टांग मेरे ऊपर और नाना जी का हाथ मेरी चूचियों पर, एकदम बेहयाई की पराकाष्ठा, कितनी छिनाल बन गई थी इन तीन ही दिनों में।
उस वक्त रात का 1 बज रहा था। हम सभी नंग धड़ंग बिस्तर पर पसरे हुए थे। ऐसे ही कब हमारी आंख लगी पता ही नहीं। करीब 5:30 बजे अचानक मेरी नींद खुली और मैं हड़बड़ा कर उठ बैठी और चुद चुद कर दर्द और थकान से बेहाल शरीर में बमुश्किल शक्ति एकत्रित कर नाईटी पहन उन नंग भुजंग बूढ़ों को उसी अवस्था में छोड़ अपने कमरे की ओर लड़खड़ाते कदमों से भागी। खुदा का शुक्र था कि अब तक कोई नहीं उठा था। किसी को भनक तक नहीं लगा कि रात में मैं सारी शर्मोहया और रिश्ते नातों की मर्यादा (जिसकी परवाह इन हवस के पुजारी बूढ़ों को करनी चाहिए थी) को ताक में रखकर इस कामुकता भरे गंदे खेल की मस्ती में डूब कर पूरी रंडी बन चुकी थी। मैं धम्म से अपने बिस्तर पर गिरी और गिरते ही निढाल नींद के आगोश में समा गई।
प्रिय पाठकों यह भाग कैसा लगा, कृपया अपने विचारों से अवगत कराईएगा।