Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा - SexBaba
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Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा

desiaks

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Aug 28, 2015
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दोस्तो यह कहानी के पहले तीन भाग मेरी फेवरेट लेखिका कामिनी जी ने लिखे है जो आप इस फोरम पे "कामिनी" नाम से पढ़ चुके है अगर नही पढ़े तो जल्द पढ़ ले यह कहानी वही से आगे शुरू कर रहा हु जहां कामिनी जी ने छोड़ी थी मैं आशा करता हु कामिनी जी को मेरा यह प्रयास जरूर पसंद आएगा अपने बहुमोल कमेंट जरूर दे यह कहानी आगे जारी रखु या नही इस बारे में अपने सुझाव जरूर दे
....सलिल


अबतक आप लोगों ने पढ़ा कि किस तरह मैं तीन वासना के भूखे बूढ़ों की कामुकता की शिकार बन कर उनकी काम क्षुधा शांत करने की सुलभ साधन बन चुकी थी। उन्होंने अपनी कुटिल चाल से अपने जाल में फंसाकर अपनी कामुकता भरी विभिन्न वहशियाना तरीकों से मेरी देह का भोग लगा कर मुझ नादान अबोध बालिका को पुरुष संसर्ग के नितांत अनिर्वचनीय आनंद से परिचित कराया। अब आगे….

 
रात में दो बजे तक कामपिपाशु नानाजी ने मुझे कुत्ती की तरह चोद चोद कर मेरे तन का पुर्जा पुर्जा ढीला कर दिया था। सुबह करीब 8 बजे मेरी नींद खुली। हड़बड़ा कर उठी और सीधे बाथरूम घुसी। बड़े जोर का पेशाब लग रहा था, चुद चुद कर मेरी चूत का दरवाजा इतना बड़ा हो गया था कि पेशाब रोकने में सफल न हो सकी और टायलेट घुसते घुसते ही भरभरा कर पेशाब की धार बह निकली। नानाजी के विशाल श्वान लौड़े की बेरहम चुदाई से मेरी चूत फूल कर कचौरी की तरह हो गई थी और किसी कुतिया की तरह थोड़ी बाहर की ओर भी उभर आई थी। मेरी अर्धविकसित चूचियां जालिम नानाजी के बनमानुषि पंजों के बेदर्द मर्दन से लाल होकर सूज गई थी। मेरी चूचियों और चूत में मीठा मीठा दर्द उठ रहा था। टायलेट से फारिग हुई और नंग धड़ंग आदमकद आईने के सामने खड़ी हो कर अपने शरीर का बारीकी से मुआयना करने लगी और यह देख कर विस्मित थी कि दो ही दिन में मेरी काया कितनी परिवर्तित हो गई थी, निखरी निखरी और आकर्षक।

“इस लड़की को आखिर हुआ क्या है? इतनी देर तक तो सोती नहीं है। कामिनी उठ, इतनी देर तक कोई सोता है क्या?” मम्मी की आवाज से मेरा ध्यान भंग हुआ और “आती हूं मां,” कहती हुई हड़बड़ा कर फ्रेश हो कर बाहर आई।

ड्राइंग हॉल में जैसे ही आई, मैंने देखा कि तीनों बूढ़े एक साथ बैठे हुए आपस में खुसर फुसर कर रहे थे। जैसे ही उन्होंने मुझे देखा, चुप हो गये और बड़े ही अजीब सी नजरों से मुझे देखने लगे। उनके होंठों पर मुस्कान खेल रही थी और आंखों पर चमक।

“आओ बिटिया, लगता है रात को ठीक से नींद नहीं आई।” दादाजी रहस्यमयी मुस्कुराहट के साथ बोल उठे।

मैं ने नानाजी की ओर घूर कर देखा और बोली, ” नानाजी आप जरा इधर आईए,” और बोलते हुए बाहर बगीचे की ओर चली। पीछे-पीछे नानाजी किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह मेरे पास आए।

“क्या हुआ” उन्होंने पूछा।

” क्या बात कर रहे थे आपलोग?” मैं ने गुस्से से पूछा।

“अरे और क्या, ऊ लोग पूछ रहे थे कि रात को का का हुआ?” नानाजी बोले।

” और आपने उन्हें सब कुछ बता दिया, है ना?” मैं नाराजगी से बोल पड़ी।

” हां तो और का करता? पीछे ही पड़ गये थे साले। मुझे बताना ही पड़ा।” नानाजी बोले।

” हाय रे मेरे बेशरम कुत्ते राजा, आप सब बहुत हरामी हो।” मैं बोली। समझ गई कि मैं इन हवस के पुजारी बूढ़ों के चंगुल में फंसकर उनकी साझा भोग्या बन गयी हूं। मैं ने भी हालात से समझौता करने में कोई नुक्सान नहीं देखा, आखिर मैं भी तो उनकी कामुकता भरी कामकेलियों में बेशर्मी भरी भागीदारी निभा कर अभूतपूर्व आनंद से परिचित हुई और अपने अंदर के नारीत्व से रूबरू हुई। अपने स्त्रीत्व के कारण प्राप्त होने वाले संभोग सुख से परिचित हुई।

“ठीक है कोई बात नहीं मेरे कुत्ते राजा, मगर अपनी कुतिया की इज्जत परिवार वालों के सामने कभी उतरने मत देना। यह राज सिर्फ हम चारों के बीच ही रहनी चाहिए, ठीक है ना!” कहते हुए घर की ओर मुड़ी।

” ठीक है हमरी कुतिया रानी, ई बात किसी पांचवे को पता ना चलेगा।” कहते हुए मेरे पीछे पीछे आए और हम साथ नाश्ते की टेबल पर बैठे जहां दोनों बूढ़े, परिवार के बाकी लोगों के साथ बैठे थे। नाश्ते के वक्त पूरे समय तीनों बूढ़े मुस्कुराते मुझे शरारती नज़रों से देख रहे थे। मेरे मन में इन बूढ़ों के प्रति कोई गिला शिकवा नहीं रह गया था बल्कि अपने ऊपर चकित थी कि मुझे उन बूढ़े वासना के पुजारियों पर प्यार क्यों आ रहा था। मैं ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए मम्मी से शिकायत भरे लहजे में कहा “देखो ना मम्मी दादाजी और नानाजी मुझ पर हंस रहे हैं।”

मम्मी हमारे बीच के गुप्त रिश्ते से अनजान इसे नाती पोती नाना दादा के बीच वाली शरारती चुहलबाजी समझ कर मुस्कुरा के सिर्फ इतना ही कहा कि ” यह तुम लोगों का आपस का मामला तुम आपस में ही सलटो। मुझे बीच में मत घसीटो।” कह कर उठी और अपने कार्यों में व्यस्त हो गयी। भाई भी उठ कर अपने दोस्तों को साथ मटरगश्ती करने रफूचक्कर हो गया।

पापा बोले, “कल तो इन्हें वापस गांव लौटना है, क्यों नहीं इन्हें आज शहर घुमा देती, इनका भी टाइम पास हो जाएगा।”

“हां ई सही आईडिया है। चल बिटिया हम आज शहर घूम आते हैं।” दादाजी बोल उठे।

“मैं नहीं जाती इनके साथ।” मैं बनावटी गुस्से से बोली।

“अरे चल ना बेटी,” अब नानाजी मनुहार करते स्वर में बोले।

“ठीक है लेकिन आप लोग कोई शरारत नहीं कीजियेगा” मैं बोली।

“ठीक है बिटिया ठीक है” सब एक स्वर में बोल उठे।

हमारी नोंकझोंक से पापा मुस्कुरा उठे। फिर हम फटाफट तैयार हो कर बाहर निकले।

मैं निकलने से पहले उसी बूढ़े टैक्सी ड्राइवर को एस एम एस कर चुकी थी, फलस्वरूप वह चेहरे पर मुस्कान लिए अपनी टैक्सी के साथ हाजिर था। उसकी नजरों में मैं अपने लिए हवस भरी चमक और मूक निवेदन साफ साफ देख रही थी।

“वाह ई तो चमत्कारहो गया। ई तो गजब का संयोग है, हमारे लिए। चल आज हम तेरे ही टैक्सी में पूरा शहर घूमेंगे।” दादाजी बोल उठे।

मैं ने बहुत ही मादक अंदाज में मुस्कुरा कर ड्राईवर को देखा, ड्राईवर बेचारा तो घायल ही हो गया और अपनी सीट पर बैठे बैठे कसमसा उठा। मैं ने उसकी अवस्था भांप ली और मन-ही-मन बूढ़े कद्रदान ड्राईवर को शुक्रिया स्वरूप “तोहफा प्रदान” की योजना बनाने लगी। मुझे पता नहीं क्यों, बुजुर्गों के प्रति आकर्षण बढ़ गया था, अवश्य ही यह पिछले दो दिनों में मेरे साथ हुए तीन बूढ़ों के संग कामुकतापूर्ण अंतरंग संबंधों का असर था।

हम सब टैक्सी में बैठे, सामने बड़े दादाजी और पीछे मैं दादाजी और नानाजी के बीच में बैठी। मेरे बांई ओर नानाजी और दांई ओर दादाजी। मैं ने कहा, “पहले हम म्यूजियम जाएंगे फिर जू और उसके बाद किसी होटल में खाना खाना कर नेशनल पार्क और शाम को बाजार होते हुए घर, ठीक है?”

“ठीक है बिटिया”, नानाजी बोल उठे।

फिर हमारा ग्रुप चल पड़ा। जैसे ही टैक्सी चलना शुरू हुआ, नानाजी ने अपना दाहिना हाथ मेरी जांघों पर फिराना चालू किया और मैं गनगना उठी। दादाजी नें मुझको बांये हाथ से अपनी ओर चिपटा लिया और दाहिने हाथ से मेरी चूचियां सहलाने लगे, बीच बीच में दबा भी रहे थे। मैं एकदम गरम हो उठी। मेरी चूचियां तन गईं, मेरी चूत पनिया उठी। मेरे मुंह से हल्की सी आ्आ्आह निकल पड़ी। बड़े दादाजी ने पीछे मुड़कर यह कामुक दृष्य देखा तो वासनात्मक मुस्कान के साथ बोल उठा, “मेरे पीठ पीछे ई का हो रहा है भाई?”

“अरे कुछ नहीं तू आगे देख” नानाजी ने कहा।

उनका हाथ अब मेरी चूत सहला रहा था। मेरी गीली चूत का अहसास उन्हें हो चुका था। मैं भी बेशरम होकर उनके पैंट का जिप खोलकर टनटनाए लंड बाहर निकाल कर सहलाने लगी। मुठियाने लगी। हाय अगर मैं टैक्सी में न होती तो अभी ही चुदवाने लग जाती, इतनी उत्तेजित हो चुकी थी। नानाजी नें मेरा स्कर्ट उठा कर सीधे पैंटी में हाथ डाल दिया और भच्च से एक उंगली मेरी चूत में पेल कर उंगली से ही चोदना चालू कर दिया। “सी सी” कर मेरी सिसकारियां निकलने लगी। मैं ने अपनी दोनों हाथों में एक एक लंड कस कर पकड़ लिया और पागलों की तरह मूठ मारने लगी। उनके मुख से भी दबी दबी सिसकारियां निकलने लगी। हम दीन दुनिया से बेखबर दूसरी ही दुनिया में पहुंच चुके थे। पीछे सीट पर अभी वासना का तूफ़ान चल रहा था कि टैक्सी रुकी और ड्राईवर की आवाज आई, “साहब हम म्यूजियम पहुंच गये।”
 
हम जैसे अचानक आसमान से धरती पर आ गिरे। हड़बड़ा कर अपने कपड़े दुरुस्त कर मन ही मन ड्राईवर को कोसते हुए टैक्सी से उतरे। ड्राईवर मुझे निगल जाने वाली नजरों से घूरते हुए मुस्कुरा रहा था।
“आप लोग घूम आईए, मैं यहीं पार्किंग में रहूंगा।” ड्राईवर बोला।
मन मसोस कर हम म्यूजियम की ओर बढ़े।
खिसियाये हुए बड़े दादाजी बोले, “साले हरामियों, मुझे सामने बैठाकर पीछे सीट पर मजा ले रहे थे कमीनो। अब मैं पीछे बैठूंगा और मादरचोद तू,” दादाजी की ओर देख कर बोले, “आगे बैठेगा।”
“ठीक है ठीक है, गुस्सा मत कर भाई, आज हम तीनों इसे साथ में ही खाएंगे।” दादाजी बोले। मैं उनकी बातों को सुनकर सनसना उठी। तीन बूढ़ों के साथ सामुहिक कामक्रीड़ा, इसकी कल्पना मात्र से ही मेरा शरीर रोमांच से सिहर उठा। फिर भी बनावटी घबराहट से बोली, “तुम तीनों मेरे साथ इकट्ठे? ना बाबा ना, मार ही डालोगे क्या?”
“तू मरेगी नहीं खूब मज़ा करेगी देख लेना” दादाजी बोले।
“ना बाबा ना” मैं बोली।
“चुप मेरी कुतिया, तुमको हम कुछ नहीं होने देंगे। खूब मज़ा मिलेगा।” अब तक चुप नानाजी बोल उठे।
मैं क्या बोलती, मैं तो खुद इस नवीन रोमांचकारी अनुभव से गुजरने के लिए ललायित हो रही थी।
एक घंटा म्यूजियम में बिताने के पश्चात हम जू की ओर चले। करीब आधे घंटे का सफर था मगर इस सफर में दादाजी का स्थान बड़े दादाजी ने लिया और बैठते ना बैठते मुझे दबोच लिया और मेरी चूचियों का मर्दन चालू कर दिया, अपना विकराल लौड़ा मेरे हाथ में थमा दिया और फिर पूरे आधे घंटे के सफर में मेरे साथ वही कामुकता का खुला खेल चलता रहा। मेरे अंदर वासना की ज्वाला भड़क उठी थी। मैं कामोत्तेजना से पागल हुई जा रही थी और एक बार “इस्स्स” करती हुई झड़ भी गई।
खैर मैंने किसी तरह अपने को संयमित किया और जू पहुंचे। हम वहां दो घंटे घूमे। फिर एक रेस्तरां में खाना खा कर करीब 3 बजे वहां के मशहूर पार्क की ओर चले जो वहां से 10 मिनट की दूरी पर था। वहां घूमते हुए ऐसे स्थान में पहुंचे जहां ऊंची-ऊंची घनी झाड़ियां थीं और एकांत था। मैं ने झाड़ियों के बीच एक संकरा रास्ता देखा और उससे हो कर जब गुजरी तो झाड़ियों के बीच साफ सुथरा करीब 150 वर्गफुट का समतल स्थान मिला जो पूरा छोटे नरम घास से किसी कालीन की तरह ढंका हुआ था, जिसके चारों ओर ऊंची ऊंची सघन झाड़ियां थीं। मेरा अनुसरण करते हुए तीनों बुड्ढे उस स्थान पर जैसे ही पहुंचे, वहां का एकांत और खूबसूरत प्राकृतिक बिस्तर देखते ही उनकी आंखों में मेरे लिए वही पूर्वपरिचित हवस नृत्य करने लगा और आनन फानन मुझ पर भूखे भेड़िए की तरह टूट पड़े। इस अचानक हुए आक्रमण से मैं धड़ाम से नरम घास से बिछी जमीन पर गिर पड़ी। “आह हरामियों, जरा तो सब्र करो।” मैं गुर्राई।
मगर उन वहशी जानवरों को कोई फर्क नहीं पड़ा, उन्होंने मुझे दबोच कर फटाफट मेरी स्कर्ट उतार फेंकी, मेरा ब्लाउज, ब्रा, पैंटी सब कुछ और मुझे पूरी तरह मादरजात नंगी कर दिया। मैं जानती थी कि यही उनका अंदाज है, और मैं भी तो इतनी देर से कामोत्तेजना दबा कर इसी बात का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। फिर भी मैं झूठ मूठ की ना ना करती रही और दिखावे का विरोध करती रही और अंततः अपने आप को उनके हवाले कर दिया। उन्होंने अपने कपड़े उतार फेंके और जंगली भालुओं की तरह मुुुझ पर झपटे। अपने अपने फनफनाते विशाल लौड़ों से मुझे चोदने को बेताब इसी खुले आसमान के नीचे। दादाजी ने अपना लंड मेरे मुंह में डाल कर भकाभक मुख मैथुन चालू कर दिया। बड़े दादाजी मेरी चूचियां दबा दबा कर चूसने लगे। नानाजी अपनी लंबी खुरदुरी श्वान जिह्वा से मेरी बुर को चपाचप चाटने लगे। मैं उत्तेजना के चरमोत्कर्ष में चुदने को बुरी तरह तड़प रही थी।
अचानक न जाने कहां से चार बदमाश मुस्टंडे वहां टपक पड़े और सब गुड़ गोबर हो गया। “साले ऐसी जवान लौंडियों को बुड्ढे चोदेंगे तो हम जवान लोग क्या बुड्ढियों को चोदेंगे?” उनका लीडर बोल रहा था। “मारो साले मादरचोद बुड्ढों को, इस मस्त लौंडिया को तो हम चोदेंगे।” सब गुंडे मेरे बूढ़े आशिकों पर टूट पड़े
 
हमारे इतने रोमांचक कामुकता भरे खेल में खलल पड़ने से मैं बुरी तरह झल्ला गई थी। उसी तरह नंगधड़ंग अवस्था में उठ खड़ी हुई और उन गुंडों पर बरस पड़ी।
“मादरचोदो इन बूढ़ों पर मर्दानगी दिखा रहे हो? दम है तो मुझसे लड़ो।” मैं गुस्से में बोली।
“इस लौंडिया को तो मैं देखता हूं” बोलता हुआ सबसे कम उम्र का लड़का मेरी ओर झपटा। जैसे ही मेरे करीब आया, मेरे पैर का एक करारा किक उसके पेट पर पड़ा, वह दर्द से पेट पकड़कर सामने झुका तो मेरे घुटने का प्रहार उसके थोबड़े पर पड़ा और वह अचेत हो कर पर जमीन पर लंबा हो गया। अब मैं बिल्कुल जंगली बिल्ली बन चुकी थी। उनका हट्टा कट्टा लीडर यह देखकर गाली देता हुआ मेरी ओर बढ़ा, “साली रंडी अभी तुझे बताता हूं। तेरी तो,….” उसकी बाकी बातें मुंह में ही रह गई। मैं ने दहिने हाथ की दो उंगलियां V के आकार में कर के सीधे उसकी दोनों आंखों में भोंक दिया, उतने ही जोर से जितने में उसकी आंखें भी न फूटें और कुछ देर के लिए अंधा भी हो जाए। वह दर्द से कराह उठा, “आ्आ्आह”, इससे पहले कि वह सम्भल पाता मेरे मुक्कों और लातों से पल भर में किसी भैंस की तरह डकारता हुआ धराशाई हो कर धूल चाटने लगा। बाकी दोनों लफंगों नें ज्यों ही इधर का नजारा देखा, बूढ़ों को छोड़कर मेरी ओर झपटे। उनकी आंखों में खून उतर आया था। एक के हाथ में बड़ा सा खंजर चमक रहा था। अबतक मैं मासूम कोमलांगिनी से पूरी खूंखार जंगली बिल्ली बन चुकी थी। मेरे बूढ़े आशिक मेरे इस बदले स्वरूप को अचंभित आंखें फाड़कर देख रहे थे।
“साली हरामजादी कुतिया, अभी के अभी यहीं तुझे चीर डालूंगा” कहता हुआ चाकू वाला, चाकू का वार मेरे सीने पर किया मगर मैं नें चपलतापूर्वक एक ओर होकर अपने को बचाया और दाहिने हाथ से उसके चाकू वाले हाथ की कलाई पकड़ कर घुमा दिया। अपनी फौलादी पकड़ के साथ उसके हाथ को इतनी जोर से मरोड़ा कि हाथ मुड़कर पीठ की ओर घूम गया और दर्द के मारे चाकू नीचे गिर पड़ा। दूसरा गुंडा जैसे ही मेरे पास आया, मेरा एक जोरदार किक उसकी छाती पर पड़ा और उसका शरीर भरभरा कर दस फीट दूर जा गिरा। मेरी गिरफ्त में जो गुंडा था उसे मैं ने सामने ठेलाऔर एक लात उसके जांघों के बीच मारा। “आ्आ्आह” करता हुआ दर्द से दोहरा हो गया। फिर तो मैं ने उन्हें सम्भलने का अवसर ही नहीं दिया और अपनी लातों और घूंसों से बेदम कर दिया।
“साले हरामजादे, हराम का माल समझ रखा था, बड़े आए थे चोदने वाले। जा के अपनी मां बहन को चोद मादरचोदो।” गुस्से से मैं पागल हो रही थी। सारा मूड चौपट कर दिया। “मैं नीचे गिरे चाकू को उठा कर चाकूवाले के पास आई और चाकू लहराते हुए बोली, “साले मुझे चीरने चला था। आज मैं तेरा लंड ही काट देती हूं।”
“नहीं मेरी मां, माफ कर दो” गिड़गिड़ा उठा कमीना।
“अच्छा चल नहीं काटती, मगर सजा तो मिलनी ही है। मुझे चोदने चले थे ना, ले मेरी चूत का पानी पी,” कहते हुए मैंने एकदम एक बेशरम छिनाल की तरह उस असहाय गुंडे के मुंह के पास अपनी चूत लाई और बेहद बेशर्मी से मूतने लगी। मुझ से पिट कर घायल गुंडे उसी तरह पड़े कराह रहे थे। अब जाकर मेरी खीझ और कामक्रीड़ा में विघ्न से उपजी झुंझलाहट भरा गुस्सा थोड़ा शांत हुआ। मेंरे बूढ़े आशिक उसी नंग धड़ंग अवस्था में भौंचक बुत बने मेरे नग्न शरीर में चंडी का रूप देख रहे थे। वे सोच रहे थे कि क्या यही वह नादान कमसिन नाजुक बाला है जिसे उन्होंने अपने काम वासना के जाल में फंसाकर मनमाने ढंग से अपनी काम क्षुधा तृप्त की और वासना का नंगा तांडव किया?
अब मेरा ध्यान उन नंग भुजंग बूढ़ों की ओर गया जो मुझे अवाक देखे जा रहे थे और मेरी अपनी नग्न स्थिति पर भी। गुंडों पर अपनी खीझ उतार कर मेरा सारा गुस्सा कफूर हो चुका था और मैं उनकी ओर मुखातिब हो कर बोल पड़ी, “अब क्या? चलो फटाफट कपड़े पहनो और यहां से खिसको, शाम हो गई है, पार्क बन्द होने वाला है” कहते हुए मैं झटपट अपने कपड़े पहनी और गुन्डों को वहीं कराहते छोड़ मेरे बूढ़े चोदुओं के साथ पार्क से बाहर निकली। वे बूढ़े समझ चुके थे कि हमारे बीच जो रासलीला शुरू से अबतक हुई उसमें उनकी कामलोलुपता के साथ साथ परिस्थिति, अवसर और मेरी रजामंदी, सब की भागीदारी बराबर है। अगर मैं रजामंद न होती तो मेरे साथ कोई जबरदस्ती नहीं कर सकता। वह पल जब मैं कमजोर पड़ी, एक ऐसा पल था जब मैं वासना की आग में तप रही थी, जिस उपयुक्त मौके की ताक में बड़े दादाजी थे, उस पल वहां कोई भी ऐरा गैरा बड़ी आसानी से मेरा कौमार्य तार तार कर सकता था, जैसा कि सौभाग्य से बड़े दादाजी ने किया। यह वही एक कमजोर पल था जब मेरे कामातुर शरीर की मांग के आगे मेरा दिमाग कमजोर पड़ा। मगर उस पल को धन्यवाद जिसने मुझे नारीत्व का सुखद अहसास कराया और संभोग के चरम सुख से परीचित कराया जिसके लिए मैं बड़े दादाजी का आजीवन आभारी रहूंगी।
 
पार्क से बाहर ज्यों ही हम निकले, टैक्सी ड्राइवर बड़ी बेसब्री से इंतजार करता मिला। “बहुत देर कर दी आप लोगों ने?” उसने पूछा। “हां थोड़ी देर हो गई, अब चलो वापस घर” मैं बोली। अभी की घटना से सभी का मूड खराब हो चुका था मगर कई सारी चीजें स्पष्ट हो गयीं थीं। हमारा रिश्ता अब थोड़ा पहले से और अच्छा हो गया था जिसमें हमने एक दूसरे को और अच्छी तरह समझा।
मैं उस वक्त एक और योजना को कार्यरूप देने जा रही थी और वह थी आज की मेरी अधूरी प्यास बुझाने की, वह भी बूढ़े टैक्सी ड्राइवर को “शुक्रिया अदा करने” के रूप में।
घर पहुंचते पहुंचते संध्या 6:30 बज रहा था। मैं ने टैक्सी ड्राइवर को रुकने का इशारा किया और बूढ़े आशिकों को घर छोड़ कर मम्मी को बोली, “मां मैं रीना से मिल कर आती हूं” और धड़कते दिल से वापस टैक्सी में ठीक ड्राईवर के बगल वाली सीट पर बैठी। मैं ने कनखियों से देखा कि बह सिर्फ कुर्ते पजामे में था। उत्तेजना उस ड्राइवर के चेहरे पर साफ परिलक्षित हो रहा था। उत्तेजना के मारे उसका पजामा शनै: शनै: विशाल तंबू में परिणत हो रहा था।
“हां अब चलिए जी।” मैं बोली।
“कहां बिटिया?” ड्राईवर जानबूझ कर अनजान बन रहा था। “धत, अब ये भी मैं बताऊं” मैं ने बड़े मादक अंदाज में ठसके से कहा। “ओह, चलिए मेरे गरीबखाने में, पास ही है।” कहते हुए उसकी आंखें चमकने लगी। 5 मिनटों बाद टैक्सी एक छोटे से पक्के मकान के सामने खड़ी थी। घर की छत एस्बेस्टस की थी। दरवाजा पुराना और जर्जर हो चुका था। ड्राईवर छरहरे जिस्म का करीब 6 फुट 8 इंच लंबा, लंबी सफेद दाढ़ी, लंबोतरा चेहरा और तोते जैसी नाक। आगे बढ़ा और ताला खोलकर दरवाजा ठेला तो चर्र की आवाज से खुला। मुझे अंदर बुलाया और झट से दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। दो छोटे छोटे कमरे, एक किचन और पीछे एक टायलेट, यही था घर, गंदा, बदबूदार, अस्त व्यस्त, एक कमरे में वर्षों पुराना गंदा सा सोफा सेट और दूसरे कमरे में एक सिंगल बेड, जिस पर सलवटों भरी गंदी सी चादर। मुझे उसी बिस्तर पर बैठने को बोला और खुद बगल में बैठ गया और बोला “बिटिया तुमने मेरे गरीबखाने में पधार कर मुझ पर बहुत बड़ा अहसान किया है। मैं और तुम जानते हैं कि अब हमारे बीच क्या होने वाला है। दस साल पहले मेरी घरवाली के जन्नतनशीं होने के बाद से आजतक मैं ने किसी जनानी को हाथ नहीं लगाया है। आज इतने सालों बाद तुम जैसी कमसिन नाजुक खूबसूरत अप्सरा इस तरह मेरे पास आएगी यह मेरे ख्वाब में भी नहीं था। अब हमारे बीच जो होने वाला है उसमें अगर तुम्हें कुछ बुरा लगे तो बता देना।”
“हाय राम मुझे बुरा क्यों लगेगा भला। मैं अपनी मर्जी से आई हूं ना, फिर जो होगा उसे तो भुगतना तो होगा ही ना। आप चिंता मत कीजिए, जो मेरे साथ करना है बिंदास कर सकते हैं जी।” मैं ने उसका हौसला बढ़ाया।
फिर क्या था वह बूढ़ा आव देखा ना ताव, पल भर में मुझे मादरजात नंगी कर दिया और खुद भी नंगा हो गया। गजब का लंड था उसका। मुसलमान होने के कारण खतना किया हुआ लंड, सामने बड़ा सा गुलाबी टेनिस बॉल सरीखा बड़ा सा सुपाड़ा, भयानक, करीब करीब ८” लंबा और 2″ मोटा, नाग जैसा काला, फनफना रहा था। उसके लंबे छरहरे शरीर पर कोई बाल नही था, केवल लंड के ऊपर हल्के सफेद झांट।
उसने कोई भूमिका नहीं बांधी और सीधे मुद्दे पर आया। पहले मेरी चूचियों को वहशियाना ढंग से दबाता गया और जब मेरी चूत पनिया गई, मेरे पैरों को फैला कर बेड के किनारे तक खींचा और कमर से नीचे का हिस्सा बेड से बाहर करके हवा में उठा दिया और अपना सुपाड़ा मेरी चुदासी दपदपाती पनियायी चिकनी बुर के द्वार पर टिकाया। मेरे सारे शरीर में अपनी चूत पर इतने बड़े सुपाड़े के स्पर्श से दहशत भरी झुरझुरी दौड़ गई। फिर एक करारा ठाप लगा दिया जालिम दढ़ियल नें। इतना बड़ा सुपाड़ा मेरी बुर का मुंह चीरता हुआ अन्दर पैबस्त हो गया। दर्द के मारे मेरी चीख निकल पड़ी। “आ्आ्आह मर गई”।
“चुप कर बुर चोदी, मुझे बहुत तरसाई हो, अब खुद चुदने आई और चिल्ला रही है। टैक्सी की पिछली सीट पर बैठी खूब मज़ा ले रही थी ना बूढ़ों से, मुझे सब पता है, मुझ पर ज़रा सा भी रहम नहीं आया ना, अब चिल्ला मत कुतिया, थोड़ा सब्र कर फिर देख कितना मज़ा देता हूं।” कहता हुआ फिर एक जबरदस्त प्रहार से पूरा का पूरा लौड़ा जड़ तक अन्दर पेल दिया।”उह्ह्ह” “ओह मार डाला रे अम्मा ऊऊऊऊऊऊऊऊ” मैं तड़प उठी। लन्ड का सुपारा मेरे गर्भाशय तक का रास्ता फैलाता हुआ घुसा और गर्भाशय का द्वार पूरा खोल कर अंदर प्रवेश कर गया। उफ्फ वह अहसास, दर्द भी और अपनी संपूर्णता का भी। हंसूं या रोऊं। मैं ने अपने मन को कठोर किया और आगे जो होने वाला था उसे झेलने को तत्पर हो गई। कुछ देर उसी स्थिति में हम दोनों स्थिर रहे फिर आहिस्ते आहिस्ते रहीम चाचा नें लंड बाहर निकाला, ऐसा लग रहा था मानो सुपाड़े से फंसकर मेरा गर्भाशय भी बाहर आरहा हो। खैर जैसे ही लंड बाहर आया मेरी जान में जान आई। फिर तो मानों क़यामत बरपा दिया उस बुड्ढे नें। दुबारा बेरहमी से लंड घुसेड़ दिया। “आ्आ्आह ओह” करती रही और वह जालिम मेरी चूत का भुर्ता बनाने लगा।
 
पहले धीरे धीरे फिर रफ्तार बढ़ाने लगा, “ओह ओह आह आह” तूफानी गती से चुदती जा रही थी मैं। बेरहम कुटाई। हाय मैं कहां आ फंसी थी। लेकिन धीरे-धीरे मैं अभ्यस्त होती गई और चुदाई के अद्भुत आनंद में डूबती चली गई। “आह ओह आह आह” मेरे मुंह से बाहर निकल रही थी। सिसकारियां ले रही थी। अब मैं मस्ती में बड़बड़ करने लगी,”आह चोद चाचा चोद, आह मजा आ रहा है राजा, आह मेरे राजा, अपनी रानी को चोद ले, आह ओह चोदू चाचा, मुझे अपनी रानी बना ले मेरी चूत के रसिया, मेरे दढ़ियल बलमा,” और न जाने क्या क्या। उनका चोदने का अंदाज भी निराला था। एक खास ताल पर चोद रहे थे। चार छोटे ठापों के बाद एक करारा ठाप। फच फच फच फच फच्चाक। 10 मिनट बाद मैं झड़ गई, “आ्आ्आह” फिर ढीली पड़ गई मगर वह तो पूरे जोश और जुनून से चोदे जा रहा था। बीच बीच में मेरी गांड़ में उंगली भी करता जा रहा था जिससे मैं चिहुंक उठती, मैं फिर उत्तेजित होने लगी और हर ठाप का जवाब चूतड़ उछाल उछाल कर देने लगी। अब वह भी बड़बड़ करने लगा,”आह मेरी रानी, ओह मेरी बुर चोदी, लंड रानी, चूतमरानी, ले मेरा लंड ले, लौड़ा खा रंडी कुतिया” और भी गंदी गंदी बात बोल रहा था। फिर 10 मिनटों बाद झड़ने लगी, “आ्आ्आह ईईई” फिर ढीली पड़ गई मगर वह तो मशीनी अंदाज में अंतहीन चुदाई में मशगूल था। कुछ मिनटों में फिर उत्तेजित हो गई। फिर उस तूफानी चुदाई में डूब कर हर पल का लुत्फ उठाने लगी। हम दोनों पसीने से तर-बतर एक दूसरे में समा जाने की होड़ में गुत्थमगुत्था हो कर वासना के सैलाब में बहे जा रहे थे। अब करीब 45 मिनट के बाद जैसे अचानक वह पागल हो गया और भयानक रफ्तार में चोदने लगा और एक मिनट बाद कस के मुझसे चिपक गया और उसके लंड का सुपाड़ा मेरी कोख में समा कर वर्षों से जमे वीर्य के फौवारे से कोख को सींचने लगा और ओह मैं भी उसी समय तीसरी बार छरछरा कर झड़ने लगी। “अह ओह हां हां हम्फ”। चरमोत्कर्ष का अंतहीन स्खलन, अखंड आनंद ओह। स्खलित हो कर हम उसी गंदे बिस्तर पर पूर्ण सँतुष्टी की मुस्कान के साथ निढाल लुढ़क गये। करीब 10 मिनट तक उसी तरह फैली पड़ी रही, मैं जब थोड़ी संभली तो उस दढ़ियल के नंगे जिस्म से लिपट गई और उसके दाढ़ी भरे चेहरे पर चुम्बनों की बौछार कर पड़ी। उसके लंड की दीवानी हो गई थी। लंड को प्यार से चूम उठी। उस समय रात का 8 बज रहा था। न चाहते हुए भी मुझे घर जाना था। मैं अलसाई सी उठी और अपने कपड़े पहन जाने को तैयार हो गई। वह बूढ़ा भी भारी मन से तैयार हो कर मुझे छोड़ने चल पड़ा। घर पहुंचते ही टैक्सी से उतरने से पहले उसकी गोद में बैठ कर उसे एक प्रगाढ़ आत्मीय चुम्बन दिया और कहा, “आज से मैं आपकी रानी हो गई राजा, आपकी लंड रानी। जब जी चाहे बुला के चोद लीजिएगा।” फिर बाय करते हुए घर की ओर कदम बढ़ाया।अब तक आप लोगों ने पढ़ा कि किस तरह चार बुजुर्गों के साथ मेरा अंतरंग सम्बन्ध स्थापित हुआ और चार अलग-अलग तरह के बूढ़ों के साथ कामक्रीड़ा में शामिल हो कर अलग-अलग ढंग से उनकी कामपिपाशा शांत की और खुद भी नये अनुभवों से गुजरती हुई मैं संभोग सुख से परिचित हुई। हर बूढ़ा अलग था, मेरे यौवन का रसपान करने का उनका ढंग अलग था, निराला था, हर चुदाई का रोमांच अलग था। नया लंड, नया तरीका, नया रोमांच, दर्द भी और आनन्द भी।
रहीम चाचा ने तो अपने गदा सरीखे लंड की अंतहीन चुदाई से अचंभित कर दिया था। आरंभ में दहशतनाक दिखने वाला लंड चुदाई के अंतिम क्षणों में आश्चर्यजनक ढंग से करीब 9″ लंबा और 3″ मोटा हो कर और विकराल हो गया था। सामने का सुपाड़ा तो टेनिस बॉल की तरह था ही कुछ और बड़ा हो गया था। उनके गदारुपी लंड ने चुदाई करते हुए मेरी चूत की संकरी गुफा को मेरे गर्भाशय तक अपने अनुकूल फैला दिया था और सुगमतापूर्वक आवागमन करता रहा, नतीजतन आरंभिक पीड़ा के पश्चात मैं पूरी मस्ती के आलम में डूब कर उस विलक्षण चुदाई का अभूतपूर्व आनंद ले सकी और उस दढ़ियल के नये ताल में ठुकाई व दीर्घ स्तंभन क्षमता की मैं कायल हो गई। इतने विशाल लंड को अपने अंदर समाहित कर चुदाई के संपूर्ण आनंद का उपभोग कर सकने की अपनी क्षमता पर मुझे खुद पर नाज होने लगा।
चुदाई का नशा उतरने के बाद मैंने अनायास अपनी चूत को हाथ लगाया था, तो पाया था कि यह सूज कर पावरोटी बन गई थी। मेरी चाल ही परिवर्तित हो गई धी।
खैर जो भी हो, मैं तो इन बूढ़ों के हवस की भूख मिटाते मिटाते खुद भी शनै: शनै: इनके वासनामय गंदे खेल से उपजी अपने अंदर के अदम्य कमापिपाशा और काम सुख की आदी होती जा रही थी।
मैंने घर के अंदर प्रवेश किया, तो देखा सब लोग ड्राइंग हाल में बैठे गप्पें हांक रहे थे। सबकी प्रश्नवाचक निगाहें मुझ पर टिक गईं। “इतनी देर तक क्या कर रही थी?” मम्मी ने पूछा। ” कुछ नहीं मां, रीना को बता रही थी कि आज हम कहां कहां घूमे।” मैं बोली।
“ये आजकल की लड़कियां भी ना? पता नहीं है, आजकल इतनी रात तक लड़कियों का अकेले बाहर रहना कितना ख़तरनाक है?” मम्मी बोली।
“अरे मैं अकेली कहां थी। रीना और उसका भाई मुझे छोड़ने आए थे।” बोलती हुई अपने कमरे में चली गई। 10 मिनट बाद फ्रेश होकर फिर मैं भी बैठक में आई।
 
आज हम कहां कहां घूमे और क्या क्या किया उसी के बारे में बातें होने लगी (टैक्सी में और पार्क में जो कुछ हुआ उसको छोड़ कर)। दूसरे दिन नानाजी और दादाजी लोग वापस गांव लौटने वाले थे, उसके बारे में भी बातें होने लगी।
फिर अचानक नानाजी मुझसे बोले, “बिटिया, अभी तो तुम्हारी छुट्टियां चल रही है, क्यों न कुछ दिनों के लिए हमारे गांव चलती हो। छुट्टियां खत्म होते ही वापस आ जाना” उनकी आंखों में याचना और हवस दोनों परिलक्षित हो रहीं थीं। मैं असमंजस में पड़ गई, हालांकि मेरे पूरे बदन में रोमांचक झुरझुरी सी दौड़ गई, इस कल्पना से कि वहां तो कोई रोकने टोकने वाला होगा नहीं, पूरी आजादी से नानाजी मेरे साथ मनमाने ढंग से वासना का नंगा नाच खेलते हुए निर्विघ्न अपनी हवस मिटाते रहेंगे।
“हां ठीक ही तो कह रहे हैं तेरे नानाजी, पहले कभी गांव तो गयी नहीं, इसी बहाने गांव भी देख लेना।” मम्मी झट से बोल उठी।
“हम भी साथ ही चलेंगे, फिर रांची में दो दिन रुक कर अपने घर हजारीबाग चले जाएंगे।” दादाजी तुरंत बोल उठे, वे भी कहां पीछे रहने वाले थे।
मैं अभी भी द्विधा में थी कि जाऊं कि न जाऊं, “ठीक ही तो है। चली जाओ ना, छुट्टियां बिताने के लिए, एक नया जगह भी है। गौरव, (मेरा छोटा भाई) तुम भी साथ चले जाओ” पापा बोले।
मेरे घरवालों को क्या पता कि मैं उनकी नाक के नीचे इन्हीं हवस के पुजारी बूढ़ों द्वारा नादान कमसिन कली से नुच चुद कर वासना की पुतली, तकरीबन छिनाल औरत बना दी गई हूं।
“नहीं पापा मैं नहीं जा सकता, स्कूल का प्रोजेक्ट खत्म करना है।” झट से गौरव बोला।
मगर मैं, जो कामवासना के मोहपाश में बंधी इन बूढ़ों की मुंहमांगी गुलाम बन चुकी थी, मैंने धड़कते दिल से अपनी सहमति दी “ठीक है, ठीक है, जाऊंगी मगर एक हफ्ते के लिए, क्योंकि 10 दिन बाद मेरा कालेज खुल रहा है।” नानाजी का चेहरा खिल उठा।
रात को ही खाना खाने के बाद मैंने बैग वैग में अपना आवश्यक सामान पैक किया और सोने की तैयारी करने लगी क्योंकि तड़के सवेरे हमें निकलना था कि दरवाजे में दस्तक हुई। मैं झुंझला उठी, “अब कौन आ मरा”। रहीम चाचा की खौफनाक चुदाई से वैसे ही बेहाल, सारा बदन टूट रहा था। रात के करीब 10:30 बज रहे थे। सब अपने कमरों में घुस चुके थे। मैं ने दरवाजा खोला तो देखा दादाजी दरवाजे पर खड़े थे।
“अब क्या?” मैं बोली।
चुप रहने का इशारा करते हुए मेरी बांह पकड़ कर उस कमरे की ओर बढ़े जिसमें तीनों बूढ़े ठहरे हुए थे। मैं ने हल्का विरोध किया मगर फिर उनके साथ खिंची उनके कमरे की ओर चली। ज्यों ही मैं ने कमरे में कदम रखा, दादाजी ने फौरन दरवाजा बंद कर दिया। कमरे में नाईट बल्ब की मद्धिम रोशनी में मैंने देखा कि नानाजी और बड़े दादाजी सिर्फ लुंगी पहने बेसब्री से नीचे फर्श पर बिछे बिस्तर पर हमारा इंतजार कर रहे थे।
“आज दिन में जो न हो सका, वही मेहरबानी अब जरा हम पर कर दे बिटिया,” मेरे कान में दादाजी की फुसफुसाहट सुनाई पड़ी। “हाय मैं कहां आ फंसी।” मैं घबराई। रहीम चाचा की कुटाई से अभी संभली ही थी कि यह नई मुसीबत। अब तीनों बूढ़ों को झेलना। “नहीं, आप तीनों के साथ एक साथ? हाय राम नहीं नहीं।” मैं फुसफुसाई।
“अरे अब का मुश्किल है तेरे लिए, आराम से चोदेंगे बिटिया, दिन भर बहुत तरसाई हो। अब मान भी जा रानी।” कहते हुए दादाजी ने मुझे बिस्तर पर ठेल दिया। दोनों बूढ़ों नें मझे दबोच लिया और पागलों की तरह मेरे कपड़ों समेत चूचियां दबाना और चूमना चाटना चालू कर दिया। लुंगी के अन्दर कुछ नहीं पहना था उन्होंने। फटाफट लुंगी खोल कर फेंक दिया और मादरजात नंगे हो गए और उनके लपलपाते खौफनाक लौड़े बड़ी बेशर्मी से मुझे सलाम करने लगे। मैं भी सिर्फ नाईटी में थी, फलस्वरूप तीनों ने बड़ी आसानी से पलक झपकते मुझे नंगी कर दिया और मेरी दपदपाती काया को भंभोड़ डालने को तत्पर हो गये ।
मेरी चूचियां मेरी कामुकता को उकसाने वाले वो बटन थे, जिसके मर्दन से मेरे जिस्म में विद्युत की थारा बहने लगी और मैं चुदवाने के लिए छटपटाने लगी। नानाजी अपने कुत्ते जैसी लंबी खुरदुरी ज़बान से मेरी फकफकाती रहीम चाचा से चुद चुद कर सूजी चूत को चप चप चाटने लगे, बड़े दादाजी नें मेरी चूचियों को मसलना और चूसना चालू किया और दादाजी मेरे होंठों को चूसने लगे। मैं तो पागल हो उठी और दो ही मिनट में छरछरा कर झड़ने लगी, ओह यह कामुकता की पराकाष्ठा थी। मगर ये लगे रहे और दुबारा मैं उत्तेजना के सागर में गोते खाने लगी।
जैसे ही दादाजी ने मेरे होंठों को आजाद किया मैं सिसिया कर एकदम रंडी की तरह बोली, “अब चोद भी डालो हरामियों, तरसा तरसा के मार ही डालोगे क्या? ”
लोहा गरम देख बड़े दादाजी ने अपने लौड़े का सुपाड़ा मेरी चूत के मुहाने पर रखा और घप्प से एक करारा झटका मार कर एक ही बार में पूरा का पूरा लंड जड़ तक ठोक दिया, “आ्आ्आह” मेरी कराह निकल पड़ी। फिर मुझे अपने लंड में फंसाकर पलट गये। अब मैं उनके ऊपर थी और मेरे कुत्ते नानाजी को तो लगता है कि इसी पल का इंतज़ार था, आव देखा न ताव तुरंत अपने लंड को थूक से लसेड़ कर मेरे गोल गोल गुदाज गांड़ की संकरी गुफा में कुत्ते की तरह पीछे से हुमच कर जड़ तक ठोक दिया, “ले मेरी कुतिया, उह हुम।”
“आह मेरी गांड़ फटी रे” मैं सिसक उठी। मेरे आगे पीछे के छेदों में दोनों बूढ़ों का लंड घुस चुका था और मैं ने हांफते हुए ज्योंही मुंह खोला दादाजी ने अपने लंड को सटाक से मेरे हलक में उतार दिया, “अग्गह गों गों” मेरी घुटी घुटी आवाज के साथ दादाजी भी बोले, “ले हमार रंडी मां, हमार लौड़ा खा।” अत्यंत ही कामुक माहौल बन चुका था, वासना का बेहद गंदा और नंगा खेल चलने लगा। कामोत्तेजना के आलम में सब अत्यंत ही उत्तेजक गन्दी गन्दी घिनौनी गालियां फुसफुसा रहे थे।
 
“ले कुतिया, आह हरामजादी रंडी, चूतमरानी बुर चोदी, आज से तू हमारी लंड रानी हुई रे,” और न जाने क्या क्या वे सम्मिलित स्वर में बड़बड़ाने लगे और धकाधक चोदने में मशगूल हो गये। मैं उनके बीच पिसती हुई इतने गंदे वासना के खेल में डूब गयी। फिर शुरू हुआ तीनों का मेरे साथ धकमपेल, चुदाई का तांडव। नीचे से बड़े दादाजी का लंड मेरी चूत में किसी इंजन के पिस्टन की तरह भचाभच अंदर बाहर हो रहा था, पीछे से नानाजी का लंड बड़ी बेरहमी मेरी गांड़ से होकर अंतड़ियों तक भच्च भच्च कुटाई किए जा रहा था और दादाजी का लौड़ा मेरे मुंह में तहलका मचा रहा था। मेरी चूत और गांड़ की चुदाई में भिड़े दोनों बूढ़े जब लयबद्ध तरीके से ठाप पर ठाप मारे जा रहे थे तो ऐसा लग रहा था मानो उनके मदमस्त लौड़े पेट कि अंतड़ियों और गर्भाशय के बीच की विभाजन दीवार को मिटा कर एकाकार होने की कोशिश में लगे हों। “आह वह चरम सुख का अद्भुत अहसास, आह अपने नारीत्व की पूर्णता का सुखद अहसास।”
10 मिनटों में ही मैं फिर झड़ने लगी “ओह मां ओह मां मैं गई मैं गई रे मादरचो्च्चोओ्ओ्ओद आ्आ्आह,” ओह वह अहसास, संभोग सुख का अद्भुत आनंद।
तीनों बूढ़े लगे रहे चोदने में, मानो उनमें चुदाई की प्रतियोगिता चल रही हो, और में चुदती चुदती फिर वासना के महासागर की अथाह गहराई में डूब कर स्वर्गीय आनंद का रसपान करती करती मदहोशी के आलम में बेशरम छिनाल की तरह बड़ बड़ करने लगी, “आह ओह चोद दादू, चोद मेरे चूत के रसिया, मेरे बुर के बलमा, हाय रे मैं रंडी, आपलोगों की बुर चोदी, हाय नानाजी मेरे कुत्ते बलमा, चोद ले साले कुत्ते, मादरचोद, आपलोगों की रंडी बन गई रे मैं आज, मुझे कुत्ती बनाके चोद, रंडी बना के चोद ले मेरे प्यारे बूढ़े चुदक्कड़ो, हाय मैं अब आपलोगों के लौड़ों की दासी बन गयी हूं, मुझे छोड़ना मत मेरे सजनो।”
“हां रे हमारी बुर चोदी मां, ले कुतिया और ले हम हम, ले लौड़ा ले, हम सब एक साथ तुझे अपनी औरत बनाएंगे रे रंडी मां, एक साथ एके बिस्तर में। कभी न छोड़ेंगे हरामजादी मां,” वे लोग भी बड़बड़ कर रहे थे।
करीब 30 मिनट वासना का बेहद रोमांचक और घिनौना नंगा खेल चलता रहा और अंततः हम आपस में गुंथ कर झड़ने लगे। सर्वप्रथम दादाजी ने मेरे मुंह में वीर्य पान कराना शुरू किया, दिन भर की दमित उत्तेजना से जमा कसैला और नमकीन प्रोटीनयुक्त वीर्य मेरे हलक में उतरता चला गया। वो स्खलित हो कर किसी भैंस की तरह हांफते हुए लुढ़क गये। फिर बड़े दादाजी फचफचा कर अपने वीर्य, मदन रस से मेरे गर्भाशय को सराबोर करते हुए झ़ड़ने लगे, “ओह रंडी रानी मां ले मेरा रस, मेरे बच्चे की मां बन जाआ्आ्आ्आ्आह,।” तभी मैं भी तीसरी बार छरछरा कर झड़ने लगी, “आह मैं गयी ये मेरे राजा, हां हां हां मुझे अपने बच्चों की मां बना्न्न्न्आ्आ्आ्आह्ह्ह ले रज्ज्ज्आ्आ्आह” उससे कस कर छिपकिली की तरह चिपक कर स्खलन के स्वर्गिक आनंद से सराबोर हो गई। वे भी शिथिल हो कर किसी भालू की तरह लुढ़क गये। हाय, नानाजी भी इसी समय झड़ने लगे। मुझे कुत्ते की तरह पीछे से जकड़ लिया और मेरे गुदा मार्ग में झड़ने लगे और हाय, मैं यह कैसे भूल बैठी थी कि उनका लंड आदमी के लंड की तरह नहीं बल्कि कुत्ते के लंड की तरह है।
उनका लंड जड़ तक मेरी गांड़ में घुसा हुआ था और ठीक गुदा द्वार के अंदर एक बड़ा सा बॉल बन कर अटक गया था। मैं ने अलग होने का प्रयास किया तो गांड़ फटने फटने को होने लगी और मैं उसी स्थिति में रुक गई। नानाजी भी लंड फंसाए किसी कुत्ते की तरह पलट गये। हमारी स्थिति कुत्ते कुत्ती की तरह थी। मैं जानती थी कि यह स्थिति आधे घंटे तक रहने वाली थी। “हाय मेरे कुत्ते सैंया, आखिर मुझे अपनी कुतिया बना ही डाला। मेरी चूत को पहले कुतिया की चूत बनाया और अब मेरी गांड़ को भी कुतिया की गांड़ बना दिया। हाय रे हाय मेरी गांड़।” बाकी दोनों बूढ़े इस मजेदार दृश्य का आनंद लें रहे थे।
“चुप कर कुतिया, जब तक लौड़ा फंसा है शांत रह, नहीं तो कुत्ते की तरह खींचता चलूंग और तू मेरी रांड कुतिया मेरे लंड से फंसी दर्द से बेहाल हो जाएगी।” नानाजी बोल उठे। करीब आधे घंटे बाद लंड का बॉल थोड़ा सिकुड़ कर छोटा हुआ और फच्च की जोरदार आवाज के साथ बाहर निकल आया। मेरी जान में जान आई और वहीं लस्त पस्त निढाल लुढ़क गई। उधर नानाजी भी किसी भालू की तरह हांफते हुए लुढ़क गए।हम चारों इस समय अपनी हवस शांत करके तृप्ति की सांस ले रहे थे।
अब मैं पूरी तरह इनकी हो गई थी, इनके वासनामय खेल की अभिन्न खिलाड़ी, पक्की रंडी, भोग्या, बिन ब्याही इनकी साझी पत्नी, जिसे वे जब चाहें, जैसे चाहें भोग सकते थे। मैं ने भी खुशी खुशी इस संबंध को स्वीकार कर लिया और अपने आप को उनके कदमों में निछावर कर मानो जन्नत पा लिया, आखिर इन बूढ़ों ने मुझे अपनी जवानी का लुत्फ लेने का इतना आनंददायक मार्ग जो दिखाया था। मैं ने मन में यही निर्णय लिया कि बस अब सिर्फ बुजुर्गों की ही अंकशायिनी बनूंगी। उनके जीवन के अस्ताचल में नया रंग भरने की कोशिश करती रहूंगी। मैं उन तीनों बूढ़ों के साथ नंग धड़ंग अवस्था में अस्त व्यस्त पसरी, एक टांग दादाजी के ऊपर, बड़े दादाजी का एक टांग मेरे ऊपर और नाना जी का हाथ मेरी चूचियों पर, एकदम बेहयाई की पराकाष्ठा, कितनी छिनाल बन गई थी इन तीन ही दिनों में।
उस वक्त रात का 1 बज रहा था। हम सभी नंग धड़ंग बिस्तर पर पसरे हुए थे। ऐसे ही कब हमारी आंख लगी पता ही नहीं। करीब 5:30 बजे अचानक मेरी नींद खुली और मैं हड़बड़ा कर उठ बैठी और चुद चुद कर दर्द और थकान से बेहाल शरीर में बमुश्किल शक्ति एकत्रित कर नाईटी पहन उन नंग भुजंग बूढ़ों को उसी अवस्था में छोड़ अपने कमरे की ओर लड़खड़ाते कदमों से भागी। खुदा का शुक्र था कि अब तक कोई नहीं उठा था। किसी को भनक तक नहीं लगा कि रात में मैं सारी शर्मोहया और रिश्ते नातों की मर्यादा (जिसकी परवाह इन हवस के पुजारी बूढ़ों को करनी चाहिए थी) को ताक में रखकर इस कामुकता भरे गंदे खेल की मस्ती में डूब कर पूरी रंडी बन चुकी थी। मैं धम्म से अपने बिस्तर पर गिरी और गिरते ही निढाल नींद के आगोश में समा गई।

प्रिय पाठकों यह भाग कैसा लगा, कृपया अपने विचारों से अवगत कराईएगा।
 
मेरे दरवाजे पर दस्तक के साथ मम्मी की आवाज़ “अरे तुझे जाना है कि नहीं, घड़ी देखो 7 बज रहे हैं।” सुन कर मैं बदनतोड़ चुदाई से थकी, अथमुंदी आंखों से अलसाई सी उठती हुई बोली, “हां बाबा हां पता है जाना है, तैयार होती हूं,” मन में तो कुछ और ही बोल रही थी, “तुम लोगों के नाक के नीचे जब तीन तीन हवस के पुजारी बूढ़ों से रात को नुच चुद कर छिनाल बन रही थी तो घोड़े बेच कर सो रही थी और अब बड़ी आई है मुझे उठाने।”
खैर उठी और तैयार हो कर नाश्ते के टेबल पर आई तो देखा तीनों बूढ़े मुस्कुराते हुए मुझे ही देख रहे थे। मेरी बदली हुई चाल पर सिर्फ उन्हीं ने ध्यान दिया था क्योंकि ये उन्हीं के कमीनी करतूतों का नतीजा था। मैं उनपर खीझ भी रही थी और प्यार भी आ रहा था। ” साले हरामी बूढ़े, चोद चोद कर मेरे तन का कचूमर निकाल दिया और अब खींसे निपोरे हंस रहे हैं।” मैं खिसियानी सी मुस्कान के साथ उनसे बोली, “आपलोग तैयार हो गये क्या?”“ये तो कब से तैयार बैठे तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे हैं।” पापा बोले, “जल्दी नाश्ता करो और निकलने की तैयारी करो, मैं तुमलोगों को बस स्टैंड तक छोड़ दूंगा।” मैं नाश्ता कर के उन लोगों के साथ बस स्टैंड पहुंची। पापा ने हमलोगों का टिकट कटा कर बस में बैठाया और जब हमारी बस छूटने को थी, वे वापस लौट गए।
जब बस छूटी उस समय 9 बज रहा था। मौसम काफी खराब हो रहा था, घने बादल के साथ जोरों की बारिश शुरू हो चुकी थी। दिन में ही रात की तरह अंधकार छाया हुआ था। बस की सीट 3/2 थी। 3 सीटर सीट में मुझे बीच में बैठाकर दाहिनी ओर नानाजी और बाईं ओर बड़े दादाजी बैठ गये। दूसरी ओर 2 सीटर पर दादाजी बैठे कुढ़ रहे थे और बार बार हमारी ओर देख रहे थे। ये लोग धोती कुर्ते में थे और मैं स्कर्ट ब्लाउज में। तीन दिनों के ही नोच खसोट में मेरा ब्लाउज टाईट हो गया था और मैं काफी निखर गई थी। सीट का बैक रेस्ट इतना ऊंचा था कि हम पीछे वालों की नज़रों से छिप गए थे।
बगल वाले 2 सीटर पर दादाजी के साथ एक और करीब 60 – 62 साल का मोटा ताजा पंजाबी बूढ़ा बैठा हुआ था। बस जैसे ही चलने लगी, मैं ने अपनी दाई जांघ पर नानाजी के हाथ का रेंगना महसूस किया और बाईं जांघ पर बड़े दादाजी का हाथ रेंगने लगा।
तभी “टिकट?” कंडक्टर की आवाज आई, मैं ने देखा दुबला पतला काला कलूटा टकला, ठिगना, करीब 4 फुट 10 इंच का, 50-55 साल का, अपने सूअर जैसे चेहरे पर पान खा खा कर लाल मुंह में बाहर की तरफ भद्दे ढंग से निकले काले काले दांत निपोरे बड़ी अश्लीलता से मुझे देखता हुआ मुस्कुरा रहा था। हमारे चेहरों का रंग उड़ गया था। झट से बूढों ने अपने हाथ हटा लिए। मगर शायद उस कंंडक्टर की नज़रों ने इनकी कमीनी करतूतों को ताड़ लिया था। फिर वह मुस्कराते हुए अन्य यात्रियों के टिकट देखने आगे बढ़ा।
मेरा दिल धाड़ धाड़ धड़क उठा।। फिर भी ये खड़ूस बूढ़े अपनी गंदी हरकतों से बाज नहीं आ रहे थे। मैं ने हल्का सा प्रतिरोध किया, “ये क्या, यहां भी शुरू हो गये हरामियों।” मैं फुसफुसाई। मगर इन कमीनो पर कोई असर नहीं हुआ।
“अरे कोई नहीं देख रहा है बिटिया, तू बस चुपचाप मज़ा ले”, नानाजी फुसफुसाए। धीरे धीरे मै उत्तेजित होने लगी और मैं ने भी अर्धचेतन अवस्था में उनकी जांघों पर हाथ रख दिया। दादाजी कनखियों से हमारी हरकतों को देख देख कुढ़ते रहे।
दादाजी के बगल वाले सरदारजी का ध्यान भी हमारी हरकतों पर गया था जिसका अहसास हमें नहीं था। वे भी खामोशी से कनखियों से हमारी इन कमीनी हरकतों को देख रहे थे। धीरे धीरे नानाजी और बड़े दादाजी का हाथ मेरी जांघों में ऊपर सरकने लगा और स्कर्ट के अंदर प्रवेश कर मेरी फूली हुई चूत को पैन्टी के ऊपर से ही सहलाने लगे। “आ्आ्आह” मेरी सिसकारी निकल पड़ी। मेरी आंखें अधमुंदी हो गई। बेध्मानी में मेरे हाथ उनकी धोती सरकाकर कब उनके टनटनाए खंभों तक पहुंचे मुझे पता ही न चला। इधर उनके हाथ मेरी पैंटी के अंदर प्रवेश कर मेरी चूत सहलाने लगे और उधर उनके अंडरवियर के अंदर मेरे हाथों की गिरफ्त में थे उनके गरमागरम टनटनाए गधे सरीखे विशाल लंड। उत्तेजना के आलम में मेरी लंबी लंबी सांसें चल रही थीं जिस कारण मेरा सीना धौंकनी की तरह फूल पिचक यह था। वे भी लंबी लंबी सांसें ले रहे थे। अब और रहा नहीं जा रहा था, वासना की ज्वाला में हम जल रहे थे।
बड़े दादाजी ने मेरे कान में फुसफुसाया, “हमार गोदी में आ जा बिटिया,” मैं किसी कठपुतली की तरह कामोत्तेजना के वशीभूत सम्मोहन की अवस्था में उनकी गोद में बैठ गई। बड़े दादाजी ने धीरे से धोती हल्का सा सरकाया, अपना मूसलाकार लंड अंडरवियर से बाहर निकाला, मेरे स्कर्ट को पीछे से थोड़ा उठाया, पैंटी को चूत के छेद के एक तरफ किया और फुसफुसाया, “थोड़ा उठ,” मैं हल्की सी उठी, उसी पल उन्होंने लंड के सुपाड़े को बुर के मुंह पर टिकाया और फुसफुसाया, “अब बैठ”। मैं यंत्रचालित बैठती चली गई और उनका फनफनाता गधा सरीखा लौड़ा मेरी चूत रस से सराबोर फूली फकफकाती बुर को चीरता हुआ मेरे बुर के अंदर पैबस्त हो गया। “आआआआआआआआआआह” मेरी सिसकारी निकल पड़ी। “आह रानी, बड़ा मज़ा आ्आ्आ् रहा है,” बड़े दादाजी फुसफुसाए। ऊपर से देखने पर किसी को भनक तक नहीं लग सकता था कि हमारे बीच क्या चल रहा है। सब कुछ मेरी स्कर्ट से ढंका हुआ था।
टूटी-फूटी सड़क पर हिचकोले खाती बस में अपनी चूत में बड़े दादाजी का लौड़ा लिए बिना किसी प्रयास के चुदी जा रही थी। बीच-बीच में बड़े दादाजी नीचे से हल्का हल्का धक्का मारे जा रहे थे। ” आह मैं गई” फुसफुसा उठी और मेरा स्खलन होने लगा। अखंड आनंद में डूबती चली गई। “आ्आ्आह”। मगर यह बड़े दादाजी भरे बस में इतने यात्रियों के बीच बड़े आराम से मुझे चोदे जा रहे थे और मैं भी फिर एक बार जागृत कामोत्तेजना में मदहोश चुदती हुई एक अलग ही आनंद के सागर में गोते लगा रही थी, इस तरह दिन दहाड़े यात्रियों के बीच चुदने के अनोखे रोमांचक खेल में डूबी चुदती चुदती निहाल हुई जा रही थी।अचानक बड़े दादाजी ने मुझे कस कर जकड़ लिया और उनका लंड अपना मदन रस मेरी चूत में उगलने लगा और एक मिनट में खल्लास हो कर ढीले पड़ गए। इस बार मैं अतृप्त थी, मैं खीझ उठी मगर नानाजी ने स्थिति की नजाकत को भांपते हुए कहा, “अब तू मेरी गोद में आ जा। तेरे बड़े दादाजी थक गये होंगे।”
मैं बदहवास तुरंत नानाजी की गोद में ठीक उसी तरह बैठी जैसे बड़े दादाजी की गोद में बैठी थी।उनका कुत्ता लंड जैसे ही मेरी चूत में घुसा,”आह्ह्ह्” मेरी जान में जान आई। फिर वही चुदाई का गरमागरम खेल चालू हुआ। इस बार 5 मिनट में ही मैं झड़ गई। नानाजी तो इतनी देर से अपने को बमुश्किल संभाले हुए थे, इतनी आसानी से कहां छोड़ने वाले थे भला। करीब 20 मिनट की अद्भुत चुदाई के बाद फचफचा कर झड़ना लगे, और इसी पल मैं भी झरने लगी। ” हाय मैं गई” यह मेरा दूसरा स्खलन था। अचानक मेरा दिल धड़क उठा, हाय, नानाजी का लौड़ा तो मेरी चूत में फंस चुका था। अब क्या होगा? मैं परेशान हो गई।
 
इसी समय बस भी रुकी और कंडक्टर की आवाज आई, “जिसको जिसको चाय पीना है पी लीजिए। 10 मिनट बाद हम चलेंगे।” मैं बड़ी बुरी फंसी। “अब क्या होगा?” मैं फुसफुसाई। “अरे कुछ नहीं होगा तू चुपचाप बैठी रह” नानाजी फुसफुसाए। “अरे भाई इतनी बारिश में कौन बस से उतरेगा, दिमाग खराब है क्या? चलो चलो।” सभी यात्री एक स्वर में बोले। मेरी जान में जान आई और मैं ने चैन की लम्बी सांस ली। बस आगे चल पड़ी। करीब 25 मिनट तक उनका लंड मेरी चूत में अटका पड़ा था। 25 मिनट तक लंड फंसे रहने के कारण मैं फिर से उत्तेजित हो चुकी थी। जैसे ही उनके लंड से मुक्ति मिली मैं ने चैन की सांस ली।
“अब मेरा नंबर है” मेरे कानों में दादाजी की फुसफुसाहट सुनाई पड़ी। नानाजी ने बिना किसी हीले हवाले के दादाजी के साथ सीट की अदला बदली कर ली। “हाय, अब दादाजी भी चोदेंगे” वैसे भी अबतक मैं फिर से उत्तेजित हो कर चुदने को तैयार हो चुकी थी। आनन फानन में फिर उसी तरह चुदने का क्रम चालू हो गया। दादाजी के साथ आधे घंटे तक चुदाई चलती रही। अभी दादाजी नें अपना वीर्य मेरी चूत में झाड़ना चालू किया कि मैं भी थरथरा उठी और तीसरी बार छरछरा कर झ़ड़ने लगी। यह स्खलन थोड़ा लंबा चला और जैसे ही हम निवृत हुए, एक और फुसफुसाहट मेरे कानों में आई, ,” कुड़िए अब मेरा नंबर है,” मैं झुंझलाहट से मुड़ कर देखी तो मेरा गुस्से का पारावार न रहा, दादाजी के सीट की बगल वाला लंबा-चौड़ा सरदार खड़ा था। इससे पहले कि मैं कुछ बोलूं, उसने चुप रहने का इशारा किया और अपना मोबाइल निकाल कर मुझे दिखाते हुए धीरे से कहा, “जरा इसको देखो” कहते हुए दादाजी को उठा कर उनकी सीट पर बैठ गया और जो कुछ दिखाया उसे देख कर मेरे छक्के छूट गये। हमारी सारी कामुक हरकतों की वीडियो थी।
मेरी तो बोलती बंद हो गई। “चुपचाप अब तक जो हो रहा था, मुझे भी करने दे वरना…….” मैं समझ गई। अब यह सरदार मुझे चोदे बिना नहीं छोड़ेगा। मैं ने चुपचाप उनका कहा मानने में ही अपनी भलाई देखी। मैं ने अपने आप को परिस्थिति के हवाले छोड़ दिया। उधर दादाजी और नानाजी ने भी समझ लिया कि इस मुसीबत से बाहर निकलने का और कोई रास्ता नहीं है।
फिर सरदारजी ने मुझे उठ कर साथ चलने का इशारा किया और मैं उनके साथ यंत्रवत सबसे पीछे वाली सीट पर गयी जो पूरी तरह खाली थी। सबसे पीछे वाली सीट के आगे के सीट पर भी कोई नहीं था, मतलब यह कि सरदारजी को मेरे साथ मनमानी करने की पूरी आजादी थी। दादाजी, नानाजी और बड़े दादाजी चुप रहने को मजबूर थे और मैं उनकी मजबूरी समझ सकती थी। जैसे ही हम सीट पर बैठे, सरदारजी ने बड़ी बेसब्री से अपने पैजामे का नाड़ा ढीला कर आहिस्ते से नीचे खिसकाया और “हे भगवान” करीब साढ़े नौ इंच का 4″ मोटा फनफनाता लौड़ा फुंफकार उठा।
“नहीं मैं मर जाऊंगी सरदारजी” मैं फुसफुसाई।
“चुप रंडी, तीन तीन लौड़ा खा के मरने की बात करतीं है, चुपचाप मेरे लंड का मज़ा ले।” सरदार फुंफकार उठा। मैं क्या करती, बुरी तरह फंस चुकी थी। फिर उसने मेरी चड्डी पूरी तरह उतार दी और जैसे ही मेरी चुद चुद कर फूली चूत का दर्शन किया वह कामुकतापूर्ण मुस्कान से फुसफुसाया, “कुड़िए तू तो पूरी की पूरी तैयार मस्त माल है। तुझे चोदने में बड़ा मज़ा आएगा रानी। चल झुक कर पहले मेरा लौड़ा चूस।” और मेरा सिर पकड़ कर अपने लंड के पास ले आया। उस राक्षस जैसे सरदार का राक्षसी लंड देख कर मेरी तो घिग्घी बंध गयी। मैं थोड़ी हिचकिचाई तो सरदार ने जबर्दस्ती मेरा सिर पकड़ कर अपना दानवी लन्ड का मोटा सुपाड़ा मेरे मुंह में सटा दिया और मैं अपना मुंह खोल कर उस बदबूदार लंड को मुंह में लेने को मजबूर हो गई, नहीं तो पता नहीं वह और क्या रुख अख्तियार करता। मैं बड़ी मुश्किल से आधा लंड ही मुंह में ले सकी और चूसना शुरू कर दिया।
“आह मेरी रानी, ओह साली रंडी, चूस, और चूस कुतिया,” वह फुसफुसाये जा रहा था और मेरी चूत में अपनी मोटी उंगली पेल कर अंदर-बाहर करने लगा। अपनी उंगली से चोद रहा था और मैं पागलों की तरह उत्तेजित हो कर चपाचप लंड चूसे जा रही थी। करीब 5 मिनट बाद मैं फिर से झड़ने लगी, “आह ोोह हाय मैं गयी सरदारजी,” मेरे मुंह से फुसफुसाहट निकलने लगी थी। यह मेरा चौथा स्खलन था। मगर असली खेल तो अभी बाकी था।
मुझे सीधे सीट पर लिटा कर मेरे पैरों को फैला दिया और अपना दानवी लंड जो मेरी थूक से लिथड़ा हुआ था, मेरी चूत के मुहाने पर रखा और घप्प से एक ही करारे धक्के से मेरी चूत को चीरता हुआ जड़ तक ठोक दिया।
“हाय मैं मर जाऊंगी सरदारजी, आआआआआ” मैं फुसफुसाई। मेरी चूत फटने फटने को हो गई। “चुप साली रंडी, चुपचाप मेरे लन्ड का मज़ा ले और मुझे चोदने दे।” बड़ी वहशियाना अंदाज में फुसफुसाया कमीना। मेरी क़मर पकड़ कर एक झटके में पूरा लंड पेल दिया। “ओह मां मेरी तो सांस ही अटक गई थी।” फिर धीरे धीरे थोड़ा आराम और फिर सब कुछ आसान होने लगा। अब मैं भी आनंद के सागर में गोते खाने लगी, “अह ओह सरदारजी, चोद, चोदिए सरदारजी ओह राज्ज्ज्आ,” मैं पगली की तरह फुसफुसाए जा रही थी। ओह और अब जो भीषण चुदाई आरंभ हुआ, करीब 45 मिनट तक, “मेरी लंड दी कुड़िए, लौड़े दी फुद्दी, मेरी रांड, आज मैं तुझे दिखावांगा सरदार का दम रंडी,” बोलता जा रहा था और चोदता जा रहा था।
कुछ बस के हिचकोले और कुछ सरदारजी का झटका, “आह ओह कितना मज़ा, अनिर्वचनीय आनंद, उफ्फ।” मैं पागल हो चुकी थी। 10 मिनट में छरछरा कर झड़ने लगी “ओह गई मैं” कहते हुए झड़ गई। यह मेरा पांचवां स्खलन था। मैं तक कर चूर निढाल हो चुकी थी। मगर सरदार तो मेरे जैसी कमसिन लड़की की चूत पाकर पागलों की तरह चोदने में मशगूल, झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। करीब 45 मिनट की अंतहीन चुदाई के बाद जब उसने मुझे कस कर दबोचे अपना गरमागरम लावा सीधे मेरे गर्भाशय में भरने लगा, “ओह आह हाय” उफ्फ वह स्खलन, मैं तो पागल ही हो गई। सरदार का काफी लंबा स्खलन था और मैं उनके दीर्घ स्खलन से अचंभित और आनंदित आंखें मूंदकर उनके दानवी शरीर से चिपक कर अपने चूत की गहराइयों में उनके आधे कप के बराबर गरमागरम वीर्य का पान करते हुए निहाल हुई जा रही थी। यह हमारा सम्मिलित स्खलन था। यह मेरा छठवां स्खलन था। मैं थरथरा उठी।
“आह ओह राजा, हाय मेरे चोदू सरदारजी, आपके लंड की दीवानी बन गई मेरे बूढ़े सरदारजी,” मैं फुसफुसाई, और सरदारजी मुस्कुरा उठे।
“हां मेरी रांड, मेरा लंड भी तेरी चूत का दीवाना हो गया है मेरी कुतिया” सरदार कभी मुझे चोद कर निवृत्त हुआ ही था कि मेरे कानों में फुसफुसाहट सुनाई पड़ी, “अब मेरा नंबर है”,
 
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