Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा - Page 26 - SexBaba
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Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा

“अब क्या, तू आ गया है ना, अब जल्दी कर, और न तड़पा मुझे।” अपनी टांगें फैला कर अपनी चूत दिखाते हुए बोली। बेकरार हो रही थी चुदने के लिए।

“क्या करूं?” शैतान मजा ले रहा था।

“चोद मुझे हरामी, तब से छेड़ रहा था नादान।” खीझ उठी वह।

“कैसे?”

“ऐसे मां के लौड़े ऐसे।” खीझ कर उठी और झपट पड़ी क्षितिज पर। उसके टी शर्ट को नोच लिया रेखा ने। उसके बरमूडा को, जो इलास्टिक से कमर पर टिका हुआ था खींच कर उतार दिया झटके से रेखा ने। उत्तेजना का पारावार न था रेखा का।

हड़बड़ा ही तो गयी रेखा, जब उसका 8″ लंबा और वैसा ही मोटा लिंग फनफना कर उसके सामने उठक बैठक करने लगा। “बा्आ्आ्आ्आ्आ्आप्प्प्प्प्प् रे्ए्ए्ए्ए्ए बा्आ्आ्आ्आ्आ्आप्प्प्प्प्प्, इत्त्त्त्त््त्त्आ्आ्आ्आ्आ लंबा ््आआ््आआ््आआ और इत्त्त्त्त््त्त्आ्आ्आ्आ्आ मोटा्आ्आ््आआ।”

“क्य इत्त्त्त्ता लंबा और मोटा?”

“लंड रे लंड। तेरा लंड, गधे जैसा लंड।”

“ओह, मेरा लौड़ा? मैं तो समझता था यह नॉर्मल साईज है लंड का।”

“न न न न, तू रहने दे। मरना नहीं है मुझे। मेरी चूत फट जाएगी। तू जा बाबा जा।” सचमुच घबरा गयी थी वह।

“कभी हां कभी ना, क्या आंटी आप भी ना। साफ साफ बोलिए ना।”

“क्या बोलूं मैं। तेरे लंड ने तो डरा ही दिया।”

“आखिर करना क्या है इस लंड से जो आप इतना डर रही हैं?” हाय कितना भोला बन रहा था।

“तुझे पता नहीं है क्या किया जाता है लंड से?” ताज्जुब से बोली रेखा।

“नहीं” अनजान बनता हुआ बोला।

“हाय मेरे भोले बच्चे। चूत में लंड डालकर चोदते हैं रे, चुदाई करते हैं।”

“तो चोदने दीजिए ना।”

“फट जाएगी रे मेरी चूत शैतान।”

“आप मुझे बना रही हैं। इतने साल से चुदाई नहीं हो रही है क्या आपकी? फटी क्या?” ताज्जुब से बोला वह।

“हां फटी, पहली बार फटी।”

“फिर और नहीं चुदी क्या आप?”

“चुदी, कई बार चुदी।”

“क्यों चुदी कई बार?”

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“क्योंकि एक बार चुदने के बाद मेरी चूत फट कर बड़ी हो गयी, फिर मजा आने लगा।”

“आप ही बोल रही हैं कि पहली बार फट कर बड़ी हो गयी आपकी चूत फिर मजा आने लगा, तो अभी फिर फटकर थोड़ी और बड़ी हो जाएगी न आपकी चूत, फिर मजा आने लगेगा ना।” बड़ी मासूमियत से बोला वह।

“हां शायद तुम ठीक कह रहे हो। लेकिन तेरा लंड असाधारण रूप से बड़ा है, इसलिए डर रही हूं।”

“तो ठीक है मैं जाता हूं।” मायूसी से बोला।

“हाय मेरे बच्चे, मायूस मत हो। आजा बेटा आजा, चोद ले, फटेगी चूत तो फटने दे, झेल लूंगी मैं। ऐसी आग लगा दी है तेरी मां ने कि मैं जल रही हूं। खुद तो भाग गयी बदमाश और छोड़ गयी मुझे इस जलती आग में झुलसने के लिए।” जल्दी से बोल उठी वह। डर गयी थी कि कहीं आया हुआ इतना मस्त मर्द हाथ से निकल न जाए। दिल ही दिल में खुश हो गया वह। फंस गयी चिड़िया।

“यह हुई न बात। अब आगे क्या करूं?” शरारत पर उतर आया था वह।

“टूट पड़ मां के लौड़े। मुझ पर टूट पड़ मादरचोद। अब यह भी मैं बोलूं कि अपनी बांहों में ले ले हरामी। चोद मुझे, बुझा दे मेरे तन में लगी आग।” बेहद बेकरार हो रही थी साली कुतिया।

“वाह आंटी, बहुत खूब। सोच लीजिए, फट जाएगी आपकी चूत।”

“फटने दे साले कुत्ते।” वासना की आग क्या से क्या बना देती है इन्सान को।
 
“फटने दे साले कुत्ते।” वासना की आग क्या से क्या बना देती है इन्सान को।

“बहुत दर्द होगा।”

“होने दे कमीने, दर्द होने दे।” वाह, हिम्मत की दाद देती हूं रेखा की, अंधी हो गयी पगली।

“खून निकल आएगा।”

“अबे चोदू, फटेगी मेरी चूत, दर्द होगा मुझे, खून निकलेगी मेरी, तू काहे परेशान हो रहा है। बढ़कर दबोच ले मुझे लौड़े के ढक्कन।” हां विक्षिप्त हो गयी थी अब तक वह।

“मैं कहाँ परेशान हो रहा हूं? मुझे तो आपकी चिंता हो रही है।” अपनी शरारतों से बाज नहीं आ रहा था कमीना।

“मेरी चिंता मेरी चूत में डाल साले नादान चुदक्कड़। टूट पड़ मुझ पर, अब तो मेहरबानी कर मुझ पर बेदर्दी अनाड़ी चोदू। नोच मुझे, खसोट मुझे, भंभोड़ मुझे, रगड़ मुझे, निकाल दे मेरे शरीर की इस जालिम गरमी को, बुझा दे इस धधकती ज्वाला को हरामी।” पागलों की तरह चीख रही थी, इस बात से बेपरवाह कि कोई सुन भी लेगा।

बस और क्या चाहिए था क्षितिज को। बेकरार आमंत्रण का ही तो इंतजार कर रहा था वह। टूट ही तो पड़ा किसी भूखे भेड़िए की तरह। पटक दिया उसे और चढ़ गया उसके ऊपर। दनादन चूमने लगा रेखा के चेहरे को, होंठों को, चूसने लगा होंठों को, चूमने लगा उसकी गर्दन को, उसके सीने के खूबसूरत उभारों को अपने मजबूत पंजों में भर कर बेहताशा मसलने लगा। “आआआ्आआह्ह्ह्ह् ओओ्ओओ््ओओ््हह्ह्ह्ह, उफ्फ्फ्फ” कामुकता के उस सैलाब में बहती जा रही थी जिस सैलाब के बीच मैं उसे छोड़ आई थी। जिस बर्बरतापूर्ण तरीके से क्षितिज उसकी चूचियां मसल रहा था, कोई और होती चीख चिल्ला रही होती, मगर जिस भयानक वासना की आग में वह झुलस रही थी, उसे यह बर्बरता भी आनंद प्रदान कर रहा था। वह तो भूल ही भूल गयी थी कि मैं बाथरूम में हूं। बाथरूम के दरवाजे को हल्के से खोल कर सारा नजारा देख रही थी मैं और उत्तेजना के मारे मैं खुद अपने हाथों से अपनी चूचियां मसलने लगी। अपनी चूत मसलने लगी।

“ओह माई ब्लैक डायमंड आंटी। आप बेहद खूबसूरत हो” अपनी मजबूत बांहों में दबोचे मसल डालने को तत्पर भूखे भेड़िए की तरह पिल गया था क्षितिज।

“ओह्ह्ह्ह्ह्ह आह्ह् अम्म्म्म्आ्आ्आ्आ्आ, हां हां रे चोदू बेटे, समझती हूं आह, सब समझती हूं तेरी मस्कामारी, ओह रसिया।” पिसती हुई बोली रेखा।

“मस्का नहीं आंटी, सच में।” वह उसकी चूचियों को गूंथता हुआ, उसके पेट की ओर चूमने लगा, उसकी नाभी को चाटने लगा, और फिर नीचे, और नीचे उसकी दपदपाती योनि के ऊपर लंबे लंबे घने झांट तक पहुंचा, उसे भी चाटने लगा, और नीचे उसकी फड़कती चिकनी, किसी नवयौवना की तरह कसी काली काली चूत के ऊपर ज्योंही उसके होंठों का स्पर्श हुआ, तड़प ही तो उठी वह, किसी विक्षिप्त की तरह कमर उचकाने लगी।
 
“उफ्फ्फ्फ मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ, हां हां, आह चाट मेरी चूत आह चूस ओह मेरे पागल बलमा, खा खा, खा ही जा आह रे हरामी, ओह हाय हाय” बेकरारी के वे शब्द, वासना से भरे वे शब्द, क्षितिज जैसे नये नये चुदक्कड़ को तो मानो और उत्साहित कर रहे थे। अपनी जीभ से सटासट चाटने लगा, चपाचप चूसने लगा। ऐसी चूत पहली बार देख रहा था वह। कहां मेरा भैंस जैसे चुद चुद कर फूला हुआ विशाल भोंसड़ा, और कहां रेखा की नयी नकोर कमसिन नवयौवना जैसी छोटी सी चिकनी चमचमाती चूत। काली थी तो क्या हुआ, ऐसी चूत क्षितिज की कल्पना से परे, बेहद खूबसूरत थी। अब उसे समझ आ रहा था कि नयी नयी, अलग अलग नारी, मतलब नयी नयी खूबसूरत नारी तन और खूबसूरत चूत। नया नया अनुभव और नये नये नारी तन से संभोग का नया नया स्वाद।

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“उफ्फ्फ्फ आंटी, आपकी चूत तो गजब की खूबसूरत है। आह मेरी जान, इतनी मदमस्त चूत, गजब का स्वाद, चाटने में इतना स्वदिष्ट तो चोदने में कितना मजा आएगा।” पागलों की तरह चाटता हुआ बोला।

“आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह मममममममेरीईईईईईईई मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ मैं गय्य्य्य्ई्ई्ई्ई रे गयी।” थरथराती हुई दूसरी बार झड़ने लगी “इस्स्स्स्स्स्स्स्स्…….” यह उसके अनिर्वचनीय सुख की अभिव्यक्ति थी। निढाल होते हुए उसके तन को छोड़ा नहीं क्षितिज ने और कुत्ते की चाटता हुआ उसके योनि रस को हलक से उतारता चला गया।

“वाह आंटी, वाह, गजब का स्वाद।” उसकी चूचियों को छोड़ कर क्षितिज ने उसके गोल गोल नितंबों को पूरी शक्ति से दबोच कर चाटते हुए प्रशंसात्मक लफ्जों में बोला। लेकिन असली खेल तो अभी बाकी था। रेखा की न जाने कितने सालों से अनचुदी चूत की धज्जियां उड़ने वाला खेल।
 
अब तक आप लोगों ने पढ़ा कि किस तरह रेखा हम मां बेटों के जाल में फंस कर मेरे बिस्तर तक पहुंच गयी। पहले मैंने उसकी इतने सालों की दबी वासना की आग को भड़काने का काम किया और मैं उसके साथ समलैंगिक संबंध स्थापित करने में सफल हो गयी। इसी दौरान उसके अंदर पर पुरुष से समागम की इच्छा को भी जगाया। यह इच्छा इस कदर भड़की कि वह किसी भी पुरुष की अंशायिनी बनने के लिए तैयार हो गयी। तभी मेरे बेटे क्षितिज का आगमन हुआ। क्षितिज ने अपनी कामक्रीड़ा का ऐसा जादू चलाया कि वह चुदास के मार बेहाल हो उठी, इस बात से बेपरवाह कि क्षितिज एक भीमकाय आठ इंच लिंगधारी नादान चुदक्कड़ है। काफी देर के इस कामकेली के दौरान उत्तेजना के मारे खुद क्षितिज की हालत भी काफी खराब हो चुकी थी। अब आगे –

काफी देर से किस तरह क्षितिज ने खुद को संभाला हुआ था पता नहीं। कोई और होता तो अबतक रेखा के चूत की तिक्का बोटी करना शुरू कर चुका होता, लेकिन वाह भई वाह, कमाल का नियंत्रण था खुद पर। लेकिन कब तक। क्षितिज की कामुक हरकतों से पुनः बेकल होने लगी रेखा।

“ओह उफ्फ्फ्फ, आह, फिर से, ओह फिर से जगा दिया रे जादूगर बालक मेरी चुदास। ओह राजा बेटा, अब चोद ही डाल अपनी आंटी की चुदासी चूत। उफ्फ्फ्फ मां यह कैसी आग भड़क उठी तेरी शैतानी से। देख मेरी चूत का क्या हाल कर दिया तूने मां के लौड़े। खोज रही है लंड, आह अब खिला भी दे अपना लौड़ा इसे, ओह भगवाआआआआआन।” कामुकता की अग्नि में तड़पती एक नारी की कातर पुकार थी।

“ओके आंटी, चलिए अब तैयार हो जाईए।”

“तैयार ही हूं मां के लौड़े।”

इतना सुनना था कि क्षितिज ने रेखा के दोनों पैरों को उठा कर अपने कंधों पर चढ़ा लिया और अपने भीमकाय लिंग के सुपाड़े को उसकी नयी नकोर चमचमाती चूत के प्रवेश द्वार पर टिका कर मानो युद्ध की घोषणा कर बैठा, “लीजिए, संभालिए अपनी चूत में मेरा लौड़ा।” सिर्फ घोषणा ही नहीं किया, इससे पहले कि रेखा संभल पाती, भच्च से ठोंक भी दिया। “हुम्म्म्म्म्म्म्मा्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्”। इतने सालों से अनचुदी चूत, जो किसी नवयौवना की चूत सरीखी छोटी और संकीर्ण हो चुकी थी, ककड़ी की तरह फट गयी। क्षितिज का लिंग, रेखा की चूत के संकीर्ण मुख को फाड़ता हुआ एक तिहाई अंदर दाखिल हो चुका था।
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“आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह अम्म्म्म्आ्आ्आ्आ्आ, मममममर्र्र्र्र्र्र गय्य्य्यी्ई्ई्ई्ई्ई रे ओओओओओओफ्फ्फ्फ, आह।” एक दर्दनाक चीख से पूरा कमरा दहल उठा। एक पल क्षितिज रुका लेकिन अगले ही पल एक और हौलनाक हमला कर बैठा बिना रेखा की चीख की परवाह किए।
 
“चीखिए आंटी, चिल्लाईए आंटी, मगर अब इतनी देर से तरसते मेरे लौड़े को मिल गयी आह्ह्, इतनी मस्त टाईट चूत मिल गयी ओह्ह्ह्ह्ह्ह, देखिए आधा घुस्स्स्स्आ्आ्आ्आ्ह्ह गया।” भूखे दरिंदे की तरह बेपरवाह आवाज थी उसकी और रेखा बेचारी छटपटा रही थी, कसमसा रही थी उसके जालिम बंधन में किसी परकटी पंछी की तरह।

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“हाय्य्य्य्य हाय्य्य्य्य, फट्ट्ट्ट्ट गय्य्य्य्ई्ई्ई्ई, ओह्ह्ह्ह्ह्ह जालिम, मार्र डाला रेएएएएएए।” चीखती रही चिल्लाती रही मगर क्षितिज को तो मिल गया था एक नयी कसी हुई चूत का स्वाद। उसकी नग्न देह को बेरहमी से दबोचे घप्प से एक और भीषण प्रहार कर बैठा वह। “आह ओह्ह्ह्ह्ह्ह बस कर बस कर, निकाल अपना लंड आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह, मर जाऊंगी बाबा।” वह दर्द से बेहाल तड़प रही थी, किसी हलाल होती हुई बकरी की तरह। तीन चौथाई लंड उसकी चूत को चीरता हुआ दाखिल हो चुका था।

“चीख, और जोर से चीख, चिल्ला, जोर जोर से चिल्ला मेरी चूतमरानी आंटी, ताकि इस घर में सबको पता चल जाए कि एक आंटी चुद रही है अपने बेटे की उम्र के लड़के से। यही चाहती हो आप?” गुर्राहट निकली उसके मुख से। खून का स्वाद जो मिल गया था शेर को।

“ननननननह्ह्ह्हहींईंईंईंई, तू बस कर अब, छोड़ आंआंआंआंआंआ,” रोने लगी वह, आंसू आ गये उसकी आंखों में। हां आवाज अब मद्धिम थी।

“लीजिए, अब बस हो गया, छोड़ रहा हूं। हुम्म्म्म्म्म्म्मा्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्,” एक अंतिम प्रहार, और हो गया रेखा की चूत का काम तमाम। जड़ तक ठोक दिया क्षितिज ने।

“हा्हा्हा्आ्आ्आ्आ्य्य्य्य्य्य्य आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह, साली कुतिया कामिनी कहां मर गयी तू्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ आह।” मैं जानती थी कि मेरा बेटा किला फतह कर चुका है।

“आ गयी मैं, बोल।” मैं बाथरूम से उसी तरह नंग धड़ंग बाहर आ गई, अपने कपड़े समेटे।

“ओह मॉम यू आर ग्रेट। आंटी बड़ी मस्त है।” मुझे देख कर क्षितिज खुशी के मारे बोला।

“साले मां बेटे एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। आह ओह्ह्ह्ह्ह्ह, मुझे फंसा कर अपने बेटे से मरवा रही है आआआआ््ह््ह््हह्हह।” अब उसे सब समझ आ गया था। लेकिन चिड़िया तो खेत चुग गयी थी।

“समझ गयी ना। चलो अच्छा हुआ, अब चुद जा मेरे बेटे से। बोल रही थी न कोई भी मर्द, कैसा भी मर्द। मिल गया मर्द, तो रो काहे रही है साली बुरचोदी।” मैं कोई रहम दिखाने थोड़ी आई थी। मैं तो तमाशा देखना चाहती थी। मुझे मालूम था कि कुछ ही देर में रेखा दर्द भूल कर खूब मजे से चुदवाने लगेगी।

“आह्ह्ह् ओह्ह्ह्ह्ह्ह, मैंने मर्द बोला था हरामजादी, गधा नहीं। ओह मेरी मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ।” तड़प कर चीखी वह मुझ पर।

“जो समझना है समझ तू। क्षितिज बेटा, अब यह तेरे हवाले।” बोलती हुई मैं निकलने लगी।

“आप जा कहां रही हो मॉम? देख तो लो अपने बेटे की करामात।” तुरंत क्षितिज बोला।

“अब भाग कहां रही है कुतिया मुझे इस हाल में छोड़ कर? मर रही हूं रे हरामजादी, बाआआआआआआआप रेएएएएएए बाआआआआआप, अपने पागल कुत्ते को मुझे भंभोड़ने के लिए भिड़ा कर आह आह्ह् भागी कहां जा रही है साली बुरचोदी। रोक अपने लौंडे को, ओह मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ।” रेखा कलपती हुई बोली।

“ठीक है बाबा ठीक है, नहीं जाती, मगर रोक भी तो नहीं सकती ना, तेरी ऐसी खूबसूरत नंगी देह को देख कर कोई भी पगला जाएगा, फिर यह तो ठहरा नया नया चुदक्कड़” बैठ गयी वैसी ही नंग धड़ंग बेशरम हो कर सामने कुर्सी पर, “अब रोना धोना बंद कर, हो गया तेरी इतने सालों से अनचुदी चूत का रास्ता साफ। कुछ देर सब्र कर पगली, फिर देख चुदाई का मजा।” मैं रेखा की हालत देख कर तनिक द्रवित हो उठी।
 
“लेकिन मॉम, रेखा आंंटी तो ऐसे रो चिल्ला रही है कि मैं इनको हलाल कर रहा हूं।”

” क्षितिज बेटे, न जाने कितने सालों से चुदी नहीं है बेचारी, थोड़ा आराम से चोद। कुछ ही देर में सब ठीक हो जाएगा। एक तो इसकी इतनी छोटी, नयी लौंडिया जैसी चूत, और ऊपर से तेरा यह गधे जैसा आठ इंच का लंबा मोटा लंड, शायद पहली बार ऐसे लंड से पाला पड़ा है, चिंता न कर, कुछ ही देर में सब ठीक हो जाएगा। फिर देखना यह खुद बोलने लगेगी, चोद राजा चोद।” मैं उसे आश्वस्त करती हुई बोली। “तू भी तो ठहरा एक नंबर का अनाड़ी, पहली बार में ही कोई ऐसा चोदता है क्या ऐसी किसी कमसिन चूत को? थोड़ा प्यार से बेटा, आराम से।” यह एक प्रकार से क्षितिज का प्रशिक्षण भी था।

“ठी है मॉम ठीक है” कुछ देर क्षितिज उसी स्थिति में स्थिर रहा, उसका पूरा आठ इंच का लंड रेखा की चूत के अंदर पैबस्त था। रेखा भी अबतक समझ गयी थी कि मेरे सामने भी उसका रोना कलपना कुछ काम नहीं आ रहा है, उल्टे मेरी रुचि अपने बेटे को चोदने का प्रशिक्षण देने में है। वह यह भी समझ गयी थी कि यह सब हम मां बेटे का पूर्वनियोजित षड़यंत्र है, जिसमें वह फंस गयी है। उसे इस बात का भी अवश्य ताज्जुब हो रहा था कि मैं कितनी बेशरम मां हूं जो खुद नंगे बदन रहते हुए पूरी बेशरमी के साथ न सिर्फ बेटे की चुदाई देख रही थी बल्कि उसे निर्देश भी दे रही थी। क्षितिज हौले हौले लंड बाहर निकालने लगा, आराम से, बिल्कुल आराम से।

“आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह” क्षितिज और रेखा, दोनों के मुख से सिसकारी निकली, जहां क्षितिज के मुख से आनंद की वहीं रेखा के मुख से राहत की। “चूस रही है मॉम चूस रही है, रेखा आंटी की चूत चूस रही है मेरा लौड़ा, आह्ह्ह्।”

“चूसेगी बेटा चूसेगी, टाईट चूत जो है। अब कैसा लग रहा है रेखा बोल?” मैं बोली।

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“आआआआआह्ह्ह्ह्ह, अच्च्च्च्छ्छ्छा्आ्आ्आ, बहू्ऊ्ऊ्ऊ्ऊत अच्च्च्च्छ्छ्छा्आ्आ्आ।” एक दीर्घ निश्वास के साथ बोल उठी। क्षितिज अपने लंड के सुपाड़े को चूत के अंदर ही रहने दिया और कुछ पल स्थिर रहा। पुनः दबाव देने लगा अपने लंड का, हौले हौले, प्यार से, आराम से। “आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह, ई्ई्ई्ई्ईस्स्स्स्स्स” इस बार फिर रेखा सिसकी, लेकिन यह सिर्फ पीड़ा की नहीं थी, आनंद मिश्रित पीड़ा की सिसकी थी यह।

“आआआआआह्ह्ह्ह्ह, आंटी्ई्ई्ई्ई्ई्ई, उफ्फ्फ्फ आंटी्ई्ई्ई्ई्ई्ई, अब मत रोना, आह, अब मत चीखना।” कहकर चूमने लगा रेखा को, उसके रसीले होंठों को, उसके गालों को। रेखा अब दर्द पीड़ा सब भूलती जा रही थी। धीरे धीरे पूरा लंड डाल दिया क्षितिज नें।

“आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह,” यह आह थी रेखा की, रेखा की आनंदय स्वीकृति की। क्षितिज ने फिर निकाला लंड और “फच्च्चा्आ्आ्आक” फिर भोंक दिया, “हू्ऊ्ऊ्ऊम्म्म्म।” “आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह” आनंद की सिसकारी रेखा के मुख से। ठीक हो रहा था, ठीक हो गया था, हमारी योजना कामयाबी के अंतिम चरण में थी। अब क्षितिज सहज हो कर पहले धीरे धीरे, फिर ठोकने की रफ्तार बढ़ाने लगा। रेखा भी अब मस्ती में आने लगी, सारी पीड़ा छूमंतर हो गयी थी उसकी, चूतड़ उछालने लगी। “आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह क्षितू्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ बेटा्आ्आ्आ, ओह्ह्ह्ह्ह्ह चोदू्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ, ओह्ह्ह्ह्ह्ह रज्ज्ज्ज्ज्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह।” मस्त हो गयी चुदने में और मेरे बेटे की तो मानो निकल पड़ी, खुश, मगन, चुदाई की गाड़ी चल पड़ी, सरपट दौड़ने लगी, निर्बाध, बेलगाम। शुरू हो गया वासना का वीभत्स तांडव।

वही रेखा जो कुछ समय पहले रो रही थी चिल्ला रही थी, अब क्षितिज के गठे हुए नंगे तन के नीचे पिसती हुई, छिपकली की तरह चिपकी हुई, अपनी चूतड़ उछाल उछाल कर गपागप, सटासट, चूत में पूरे आठ इंच का गधे जैसे लंड को खाती जा रही थी, चुदती जा रही थी। “ओह राजा आह राजा, उफ्फ्फ्फ बेटा, चोद हरामी चोद, अपने लौड़े की रानी बना ले मुझे आह चोदू ओह मेरी चूत के स्वामी आह।” बड़बड़ाती जा रही थी।
“ओह आंटी्ई्ई्ई्ई्ई्ई, उफ्फ्फ्फ आंटी्ई्ई्ई्ई्ई्ई, मस्त आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह क्या मस्त टाईट चूत है आपकी, ओह मेरी जा्आ्आ्आ्आन, मजा आ रहा है ओह आंंटी कहां थी आज तक आह। ओह मॉम, ऐसी मस्त चुदक्कड़ आंटी के लिए थैंक्स, आह ओह मॉम, यू आर ग्रेट, ओह मेरी बुरचोदी आंटी्ई्ई्ई्ई्ई्ई, चूतमरानी आंटी्ई्ई्ई्ई्ई्ई,” क्षितिज भी मस्ती में भर कर चोदे जा रहा था। निचोड़े जा रहा था।

मैं खुश हो गयी। मेरी योजना सफल हो गयी। मैं उस घमासान चुदाई की दर्शक, मेरी क्या हालत हो रही थी बता नहीं सकती। मेरा एक हाथ मेरी चूचियां मसल रहा था, दूसरा हाथ मेरी चूत। मैं अपने पैर फैला कर पूरी बेशरमी के साथ अपनी योनि पर उंगली फिरा रही थी, योनि रगड़ रही थी, भगांकुर को मसल रही थी, अपनी उंगली योनि के अंदर डाल डाल कर हस्तमैथुन के आनंद में डूबी जा रही थी। भीषण चुदास के मारे मरी जा रही थी। उधर क्षितिज अब बिल्कुल पागल हो गया था। रेखा भी पगला गयी थी। एक दूसरे से गुत्थमगुत्थी हो कर जंगलियों की तरह एक दूसरे को नोच खसोट रहे थे। चूम रहे थे काट रहे थे। पलंग चरमरा रहा था, धमाधम कुटाई चल रही थी। वासना के सैलाब में बहते आपस में कामोत्तेजक शब्दों और बेहद गंदी गंदी गालियों की मानो प्रतियोगिता चल रही हो। करीब आधे घंटे की घमासान चुदाई चलती रही और अंततः एक दूसरे को भींचे स्खलन के स्वर्गीय सुख में खो गये।

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“आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह, ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह्ह््ह्ह, इस्स्स्स्स्स आं्आं्आंह्ह्ह्ह गय्य्य्य्ई्ई्ई्ई रेएएएएएए गय्य्य्य्ई्ई्ई्ई मैं्मैं्ऐं्ऐं्ऐं्ऐं” रेखा क्षितिज की बांहों में पिसती हुई लंबी सुखमय चीख के साथ थरथरा उठी और झड़ कर निढाल हो गयी।

उसके निढाल होते हुए नग्न शरीर को क्षितिज ने भंभोड़ना जारी रखा, “ओह आह आह आह, ओह्ह्ह्ह् ओह्ह्ह्ह्ह्ह, ले, और ले, मां की लौड़ी ले बुरचोदी, आह मेरी चूतमरानी आंटी्ई्ई्ई्ई्ई्ई”।” एक मिनट बाद ही क्षितिज भी छर्र छर्र झड़ने लगा। पूरी शक्ति से रेखा के तन को दबोच कर खल्लास हो गया और निढाल एक तरफ लुढ़क गया।

आगे की घटना अगली कड़ी में।
 
पिछली कड़ी में आप लोगों ने पढ़ा कि किस तरह मैं रेखा को अपनी जाल में फंसा कर अपने घर ले आई और पहले मैंने उसके साथ समलैंगिक संबंध बनाया और उसके पश्चात मेरे बेटे क्षितिज नें उसके तन के साथ वासना का खेल खेला। इस तरह उसने न सिर्फ एक नवीन स्त्री के साथ संभोग का सुखद अनुभव प्राप्त किया बल्कि रेखा की बरसों से दमित, शरीर की भूख को भी शांत किया। जहां रेखा तृप्ति के अहसास से सराबोर थी, वहीं क्षितिज एक अलग स्त्री के तन का स्वाद चख कर सुखद अहसास में मगन थक कर निढाल पड़ा था और मैं उनकी कामक्रीड़ा का दीदार करती हुई हवस की अग्नि में झुलसती एक कुर्सी में बैठ कर अपने यौनांगों से खेल रही थी। अब आगे –

तभी, और तभी अचानक भड़ाक से मेरे कमरे का द्वार खुला। दरवाजे पर हरिया और करीम घबराए हुए, बदहवास खड़े थे। अंदर का दृश्य देख कर उनकी आंखें फटी की फटी रह गयीं। इधर हम सब भौंचक, इस आकस्मिक उत्पन्न परिस्थिति में, यथास्थिति अपने स्थान पर मूर्ति बन गये थे।

“अरे अरे अरे, यह क्या हो रहा है यहां? हम तो चीख पुकार सुन कर दौड़े चले आये थे, और लो, यहां तो ये हो रहा है, चुदाई चल रही है।” अविश्वसनीय, चकित, विस्फारित नेत्रों से देखते हुए हरिया बोला।

“हां चुदाई चल रही है, तो?” घबराने या शरमाने की बजाए हरिया की ओर बेशरमी से देखती हुई बोली। फिर क्षितिज की ओर देखते हुए बोली, “बेटे तू टेंशन न ले। चोद लिया न एक बार? मजा आया न? तू परवाह न कर इनकी, मजा लेता रह और रेखा रानी, इस तरह आश्चर्य से न देख मुझे। एक नंबर की चुदक्कड़ हूं मैं। सॉरी कि मैंने तुमसे झूठ बोला। झूठ न बोलती तो क्या करती। ऐसे तुम मेरे सामने खुल कर अपनी भावना रख पाती क्या? अब तू बता, मजा आया कि नहीं?”

“हाय दैया, इन्होंने हमें इस हालत में देख लिया, उफ मां।” शरम से पानी पानी होती हुई झपट कर बिस्तर से उठने लगी।

“पड़ी रह बुरचोदी। वहीं पड़ी रह। इन हरामियों को तो मैं देखती हूं। तू बता, मजा आया कि नहीं?” मैं बोली।

“छि: छिनाल कहीं की, इनके सामने इतनी बेशरमी से पूछ रही है, मजा आ गया कि नहीं।” रेखा बिस्तर से उठ कर अपने कपड़ों की ओर झपटी।

“हा हा हा हा, हमने देख भी लिया और सुन भी लिया। अब काहे की शरम रेखा बिटिया।” कामुक नजरों से रेखा की नग्न देह को घूरते हुए हरिया बोला।

“सुन लिया तूने? ये हैं हमारे घर के बेशरम बुजुर्ग। इनके सामने शरम लिहाज का कोई मतलब नहीं है। बेहतर है, लगी रह इनकी परवाह किए बगैर क्षितिज के साथ मस्ती करने में।” मैं बोली।

“लेकिन, लेकिन…..”

“क्या? क्या लेकिन वेकिन। कोई फर्क नहीं पड़ता है मेरी रेखा रानी। ये भी एक नंबर के औरतखोर हैं।” थोड़ी आश्वस्त हुई वह। “अब बता, मजा आया कि नहीं क्षितिज से चुद कर?”

“हाय राम, कैसे पूछ रही है हरामजादी? मजा काहे नहीं आयेगा भला। एक नंबर का चुदक्कड़ बेटा पाया है तूने तो। खुश कर दिया। सालों बाद ऐसी खुशी मिली है।” अब भी लाज के मारे पानी पानी हो रही थी।

“तो फिर भागी कहां जा रही है? जा बिस्तर पर। जितना मजा लेना है ले बिंदास। इन बुड्ढों को तो मैं देखती हूं।” मैं तुरंत बोली।

“लेकिन मॉम” क्षितिज कुछ बोलना चाहता था। इस अटपटे परिस्थिति में वह भी झिझक रहा था।
 
“बेटे तू लगा रह तेरी रेखा आंटी के साथ। मजे कर, बेशरम हो जा, ऐसे ठरकी खूसट बूढ़ों से तो मैं निपटती हूं।”

” लेकिन तू इन बूढ़े हरिया और करीम के साथ यह क्या करने जा रही है?” रेखा बोली।

“रेखा रानी, ये केवल देखने में बूढ़े हैं। हैं एक नंबर के औरतखोर चुदक्कड़। सारे मर्द, खास कर हमारे घर के, ऐसे ही हैं। ज्यादा न ही सुन तो अच्छा है। रेखा तू तो बस मजे ले क्षितिज से, चुदती रह, सारी कसर निकाल ले इतने सालों के उपवास परहेज का। मैं देखती हूं इन मां के लौड़ों को।” खीझ कर मैं बोली। आनंद में विघ्न की खिन्नता झलक रही थी मेरे शब्दों में।

“लेकिन मॉम इनके सामने?”

“तू मजे लेता रह बालक, बेहिचक खेलता रह, खुला खेल फरुक्काबादी मेरे बच्चे।” क्षितिज से बोली मैं और हरिया और करीम की ओर मुखातिब हो कर बोली, “हां आपलोगों ने तो देख ही लिया क्या हो रहा है यहां। अब खड़े खड़े सोच क्या रहे हैं? या तो जाईए यहां से, या अंदर आ कर दरवाजा बंद कर लीजिए। वहां खड़े मत रहिए।”

“साली हरामजादी रंडी, बेशरम खुद नंगी हो कर अपने बेटे को चोदना सिखा रही है मां की लौड़ी और खुद बेशर्मी के साथ देख भी रही है बेटे का चोदना अपनी आंखों से छिनाल। लाज शरम नाम का तो जमाना ही नहीं रहा।” हरिया बोला।

“ओह रे ओ शरीफों के लौड़ों, ज्यादा शरीफ बनने की जरूरत नहीं है। हां मैं अपने बेटे और रेखा की चुदाई का आनंद ले रही हूं हरामियों। हां बेशरम हूं मैं, रंडी हूं मैं, आप लोगों की वजह से मादरचोदों। मेरी शरम हया तो घुस गयी है मेरे भोंसड़े में, सिर्फ, और सिर्फ आप लोगों के और आप लोगों जैसे कमीने, बेगैरत, बेशरम मर्दों के काले करतूतों की वजह से। साले मादरचोद कुत्तों, पचास साठ साल की उम्र में मुझ सोलह सत्रह साल की लड़की को चोद चोद कर वासना की गुलाम बनाते वक्त शरम लिहाज क्या तुम लोगों की गांड़ में घुस गयी थी? बड़े आये लिहाज सिखाने। साले, जिसने मेरी नानी को चोदा, मेरी मां को चोद कर मुझे पैदा किया और मुझे, अपनी सगी बेटी को, चोदने में जरा भी आगा पीछा नहीं सोचा और अब देख लो, देख रहे हो ना, तुमलोगों द्वारा बनाई गयी छिनाल के सुपुत्र को, यह भी तु्म्हीं लोगों के सम्मिलित चुदाई का ही तो प्रतिफल है। यह मेरी ही सीख का नतीजा है कि इतने दिनों तक यह लड़कियों से दूर रहता था। दो दिन पहले तक इसे कोई और लड़की पसंद ही नहीं थी। शायद मेरे अत्यधिक प्यार का नतीजा था कि यह मुझी पर मरा जा रहा था। नतीजा यह हुआ कि दो दिन पहले मुझी को चोद दिया, और मैं भी पुत्र मोह और वासना के सैलाब में बहती चुदवाती चली गयी इससे। हां अपने बेटे से चुद गयी मैं। बेटे की प्यार भरी जिद के आगे झुक गयी। यह पागल तो मेरे अलावा किसी और स्त्री की ओर आंख उठा कर देखना भी पसंद नहीं करता था। एक बार हो गया, दो बार हो गया, पसंद होते हुए भी, प्यार होते हुए भी, आखिर कब तक चुदती रहती अपने ही बेटे से। आखिर समाज नाम की भी कोई चीज है कि नहीं?” मैं बिना रुके बोलती जा रही थी।

“समाज? साली कुतिया, इतनी गंदे पारिवारिक माहौल में वासना के दलदल में आकंठ डूबी, समाज का कब से लिहाज करने लगी रे तू।” रेखा बोल उठी। चकित थी मेरे रहस्योद्घाटन से। घृणा नहीं थी मेरे प्रति उसके शब्दों में। यही हाल क्षितिज का भी था। वह भी विस्मय से मुझे देख रहा था, सुन रहा था।

“लिहाज करना पड़ता है रेखा, करना पड़ता है, वरना इस समाज के तथाकथित सभ्य लोग हमें जीते जी मार देंगे। तुम दोनों इस तरह दीदे फाड़ कर मत देखो मुझे। आज मैं जो भी हूं, जैसी भी हूं, खुश हूं। मैं चाहती हूं कि तुम लोग भी अपने मन मुताबिक जीवन जीना और जीने का आनंद लेना सीख लो, शरीफों का चोला ओढ़े।” फिर हरिया और करीम की ओर मुखातिब हो कर बोली, “हां तो, क्या कह रहे थे आप लोग मां के लौड़ों? बेशरम हूं मैं? हां बेशरम हूं। नंगी हूं मैं? हां नंगी हूं मैं। और कुछ कहना है?” बोलती बंद हो गयी उन दोनों की। लेकिन मैं बोलती चली गयी, “अभी इस वक्त देख रहे हो मेरी हालत? जल रही हूं मैं, हवस की आग में। चुदाई के भूख की भीषण आग लगी है मेरे तन में। मरी जा रही हूं मैं वासना की आग में। अगर अभी भी आपलोगों का लंड खड़ा होता हो और चोदने की मनोकामना है, तो आ जाओ आपलोग मुझे चोदने और बुझा डालो मेरे तन के अंदर धधकती वासना की आग को।” कामुकता की आग में जलती हुई बोली मैं। किसी बेहया रंडी की तरह नंग धड़ंग खड़ी हो गयी।
 
“आते हैं साली कुतिया, हम भी आते हैं, कुछ ज्यादा ही बोल गयी हमारे बारे में। हम तो हैं ही एक नंबर के चुदक्कड़। चोदने के लिए आज तक हमने कभी औरतों में कोई फर्क नहीं किया। अब चाहे हमें गाली दो चाहे कुछ भी कहो। हरिया के बारे में तो बहुत बोल गयी तुम। अपने दादाजी, बड़े दादाजी, नानाजी, पंडित जी, हब्शी बॉस, सरदार जी और न जाने किन किन मर्दों के लंड खा चुकी हो, उनके बारे में भी तो बताओ अपने बेटे और रेखा को।” अब तक चुप खामोश करीम बोला।

“हां हां बोलूंगी। सब कुछ बताऊंगी। शर्म किस बात की। मेरी नादानी का फायदा उठा कर मुझे कामुकता की भट्ठी में झोंकने वाले मेरे खुद के बुजुर्गों को शर्म नहीं आई तो मैं क्यों शरमाऊं? साठ पैंसठ साल के मेरे नाना जी, दादाजी, बड़े दादा जी और तुम जैसे औरतखोर लोगों नें ही तो मुझे सोलह सत्रह साल की नादान उम्र में ही नोच खसोट कर, खींच तान कर, चोद चोद कर समय से पहले ही औरत बना दिया। अपनी हमउम्र सहेलियों के संग खेलने, मस्ती करने की कच्ची उम्र में ही मुझे चुदाई के आनंद से परिचित करा दिया तुम हरामियों ने। कभी न बुझने वाली आग भर दी मेरे अंदर वासना की। धधकती रहती हूं, जलती रहती हूं मैं अंदर ही अंदर। फिर भी मुझे अब कोई मलाल नहीं है कि उस नादान उम्र में मेरा शील भंग किया एक बूढ़े ने, अब मैं अपनी इसी अवस्था में खुश हूं।”

“क्या? तुझे सचमुच कोई दुख नहीं है उस बात का कि एक बूढ़े नें तेरा शील भंग किया?” करीम बोला।

“बिल्कुल नहीं। नादान जरूर थी लेकिन मां बाप के तिरस्कार का दंश झेलने वाली मुझ लड़की को खुशी प्राप्त करने का एक मार्ग तो मिला।” मैं बोली। “मेरे अंदर वासना की भट्ठी सुलगा कर बूढ़े तो मर खप गये लेकिन चुदाई को ले कर मेरे मन में अपने पराये का भेद मिटा कर एक प्रकार से अच्छा ही किया। आखिर मेरे मां बाप भी कौन से दूध के धुले थे। बाप गांडू मिला। मां मिली एक नंबर की छिनाल, जो हरिया से लेकर नानाजी, दादाजी और न जाने किस किस से चुदवाती रही। आखिर उन्हीं का खून तो दौड़ रहा है ना मेरी रगों में। उस कमसिन उम्र में पुरुष संसर्ग के सुख से परिचित क्या हुई, फिसलती ही चली गयी और वासना की धधकती ज्वाला ने मुझे आज यहां ला खड़ा कर दिया है। अब तो ले दे कर उन चुदक्कड़ों में से तुम दोनों बूढ़े ही बचे हो। अब जब अपनी धधकती वासना की आग को तुम बूढ़े लोग भी नजरअंदाज करोगे तो मैं क्या करूं बताओ? खोजूंगी न कहीं और, तुम जैसे मर्दों की कमी है क्या इस दुनिया में? हां हां चुदी हूं। बहुत सारे मर्दों से चुदी हूं। अपने तन की जलन मिटाने के लिए खुद अपनी खुशी से उस टैक्सी ड्राईवर रहीम से चुदी, जो हमें शॉपिंग के लिए लेकर गया था और शहर घुमाया था। बस में दादाजी, बड़े दादाजी और नानाजी, जिन्होंने मुझ कमसिन कली को मसल कर फूल बना डाला था, उस वक्त हिजड़े बने बैठे रहे जब उनकी उपस्थिति सरदारजी नें मुझे ब्लैकमेल करके चोदा और वे असहाय देखते रहे, उसके साथ साथ बस के बदशक्ल गंदे कंडक्टर नें भी चोद लिया। सरदारजी ने ब्लैकमेल करके अपने बॉस हब्शी से चुदवाया। अपने तन की हवस मिटाने के लिए तुम लोगों के सामने ही, तुम लोगों की रजामंदी से ही उस काले कलूटे भैंस पंडित जी से चुदी। जिस ऑफिस में मैं आज प्रबंधक के रूप में कार्यरत हूं, उसमें उसी हब्शी नें उस वक्त मुझे काम दिया, जब मैं अपने पैरों पर खड़े होने के लिए संघर्ष कर रही थी। मैं अहसानमंद, उस काले कलूटे मुस्टंडे हब्शी बॉस से न जाने कितनी बार चुदी। अपने ऑफिस के क्लाईंट्स से अनुबंध प्राप्त करने के लिए, उनकी गंदी कामेच्छाओं को पूरा करने के लिए न जाने कितनी बार वाध्य हुई और चुदी, कई बार चुदी। कुछ क्लाईंट्स की घटिया, विकृत सेक्स को भी झेलने को वाध्य हुई। सुन लिया? तुम ठरकी लोगों की काम वासना की भूख नें मुझे कहां से कहां पहुंचा दिया। और भी कुछ सुनना है? बड़े आए हैं मुझे शराफत का पाठ पढ़ाने।” वासना की आग में झुलसती, कमरे के अंदर चल रही कामुकतापूर्ण खेल के मध्य व्यवधान की खीझ और अपने ऊपर इन बूढ़ों के आक्षेप से उपजे क्रोध के आवेश में मैं क्या बोल रही थी पता ही नहीं चला मुझे। उस आवेश के पलों में सब कुछ तो उगल दिया था अपने बारे में। अचंभित और आवाक, स्तब्ध रह गये, क्षितिज और रेखा मेरी इन बातोंं को सुन कर।
 
“ओह मॉम, इतना कुछ झेला आपने।” क्षितिज उसी तरह नंग धड़ंग बिस्तर से उठ कर मेरे पास आया और मेरी नग्न देह को बांहों में भर लिया। उन सबके समक्ष हम मां बेटे आलिंगनबद्ध हो गये, इस बात से बेपरवाह कि वहां उपस्थित बाकी लोग क्या सोच रहे होंगे। रेखा सन्न थी, यह सब सुन कर। ऐसी भी जिंदगी किसी स्त्री की हो सकती है, उसकी कल्पना से परे थी।

“ओह कामिनी, मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या कहूं।” रेखा बोली।

“कहने सुनने की और कुछ सोचने की आवश्यकता नहीं रे रेखा रानी। मैंने कहा न कि मै अपनी इस जीवनशैली से खुश हूंं। मैं अब जानती हूं कि हर आदमी को अपने ढंग से जीने की कोशिश करनी चाहिए। अपने शर्तों पर, अपनी मर्जी से, स्वतंत्रता के साथ, जीवन का पूरा मजा लेते हुए, बस केवल इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारे किसी भी कृत्य से किसी और का नुकसान न हो। अब तू अपनी ही बात ले ले, तेरा पति तुझ जैसी खूबसूरत औरत को छोड़ कर यहां वहां मुह मारता फिर रहा है और तू घुट घुट कर जीने को वाध्य है। ऐसा क्यों? अगर उसे परस्त्रीगमन में कोई झिझक या मलाल नहीं है तो तुझे क्यों हो? तू भी तो मानव है। तेरी भी इच्छाएं हैं, शारीरिक जरुरत है। तू क्यों घुट घुट कर जिए? मौज कर पगली, तू भी ऐश कर, मर्दों की कमी नहीं है इस दुनिया में।”

“सच कहा तूने। देख, सच में आज इतने सालों बाद क्षितिज से चुदते हुए मैंने मानो जीवन के एक अनोखे सुख का अनुभव किया। मुझे सुखद जीवन जीने का एक नया मार्ग तूने दिखा दिया। थैंक्स कामिनी और थैंक्स मेरे चोदू बेटे क्षितिज।” वह भी नंग धड़ंग बिस्तर से उठी और हरिया व करीम की उपस्थिति की परवाह किए बगैर आ कर मुझसे लिपट गयी। क्षितिज, मैं और रेखा, नंगे ही एक दूसरे से चिपक गये थे।

“थैंक्स किस बात की रे बुरचोदी? क्षितिज को चोदने के लिए एक स्त्री चाहिए थी और तुझे चुदने के लिए एक मर्द। तुझे मजा आया न पगली? कैसे रो चिल्ला रही थी साली कुतिया।”

“हां री हां मेरी कम्मो रानी, मजा आया, मगर इस क्षितिज के गधे सरीखे लौड़े नें तो पहले पहल रुला ही दिया था। मेरी चूत फाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ा था कमीने चोदू ने।”

“और तू रे चोदू बेटे? तू बता, कैसा लगा रेखा को चोदकर? कैसा लगा मेरा आईडिया? मजा आया कि नहीं?”

“आया मॉम, बहुत मजा आया। रेखा आंटी तो पूरी रसगुल्ला है। ओह मॉम, कमाल की खोज है आपकी। यू आर रीयली ग्रेट।” मुझे चूम लिया।

“बस, इसी तरह न जाने और कितनी लड़कियां, महिलाएं तेरे जैसे खूबसूरत गबरू जवान की बांहों में समा जाने को आतुर होंगी। जरा नजर उठा कर देखने की जरूरत है तुझे। समझा कि नहीं मेरे नादान बेटे?” मैं बेझिझक अपने बेटे को प्रोत्साहित कर रही थी बिंदास, अपना शिकार खुद खोज खोज कर शिकार करने के लिए।

“समझ गया मॉम सब समझ गया।”

“वाह, मेरा बेटा समझदार हो गया।” मैं लाड़ से उसके गाल पर थपकी देती हुई बोली।

“चलो ठीक है, हम सबके चरित्र का पर्दाफाश हो गया। सब के सब नंगे हो गये। एक यही कसर बाकी थी तुम्हारी अपने बेटे से चुदने की, वह भी हो गया। अपने बेटे को भी ले आई इस हमाम में, जहां हम सभी नंगे हैं। चलो अच्छा ही हुआ, कोई पर्दा नहीं रहा अब हमारे बीच। क्षितिज बेटे, सुन लिया न सब कुछ?” करीम नें कहा।

“हां नानाजी, सुन भी लिया, समझ भी लिया सब कुछ। सब एक से बढ़ कर एक हैं इस घर में।”

“और तू रेखा रानी, क्या ख्याल है तुम्हारा इस घर के लोगों के बारे में?”

“क्या कहूं मैं? ऐसी स्थिति की कल्पना भी मैंने नहीं की थी। अब सोच रही हूं, जो हुआ अच्छा ही हुआ। आप लोगों की बातें सुनकर मुझे अच्छा ही लगा। कामिनी के जाल में फंसने का अब कोई खेद नहीं है मुझे। ठीक जगह आ गयी हूं मैं। इतने सालों से मर मर कर जी रही थी। इतने खुले विचार वालों से पहले न मिल पाई, इस बात का मलाल है अब। मेरे मन के अंदर अब कोई अपराध बोध नहीं रहा। अब मैं खुल कर जी सकूंगी।”

आगे की घटना अगली कड़ी में।
 
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