desiaks
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“अब और सुन, क्षितिज नें भी मेरे साथ यही किया है। लेकिन मैं तो तेरी तरह रो नहीं रही? सच पूछो तो मुझे इस बात का तनिक भी मलाल नहीं है। मुझे तो खुशी है कि मैंने अपने बेटे पर ममता लुटाने के साथ साथ उसकी खुशी के लिए अपने तन को भी लुटाने में कोई गुरेज नहीं किया। उसकी खुशी देख कर मुझे तो बड़ा संतोष प्राप्त हुआ। सच कहूं तो इसमें मुझे आनंद भी बहुत मिला।” अब मैं उसके सामने नंगी हो चुकी थी। इसके अलावा उसका मुंह खुलवाने का और कोई दूसरा मार्ग नहीं सूझा। वह आंखे फाड़ कर अविश्वास से मुझे घूर रही थी। उसका रोना धोना एकाएक थम गया।
“तो तो…..तुम अपने बेटे क्षितिज के साथ….” इतना ही बोल पायी वह, चकित, अविश्वास से मुझे आंखेँ फाड़े देखती रह गयी।
“हां हां हां्आंआंआंआंआं, क्षितिज से चुद गयी मैं। मगर तेरी तरह रोयी नहीं, बल्कि खुश हुई, आनंदित हुई। उसनें जो किया, प्यार से किया और मैं भी पुत्र के प्यार में डूब कर खुद को उसके हवाले कर दिया, कसम से बड़ा आनंद मिला। काश तुम समझ पाती।” मैं बेशर्मी से बोली। रेखा के चेहरे का रंग बदलने लगा।
“तो तुम्हें जरा भी खेद नहीं है?’
“नहीं, जरा भी नहीं।”
“बड़ी बेशरम हो।”
“इसमें शरम कैसी? वह बेटा अवश्य है मेरा, किंतु है तो एक मर्द, जिसे औरत के प्यार की जरूरत है। मैं उसकी मां हूँ, लेकिन हूँ तो एक औरत। हां दिया मैंने प्यार, एक औरत होने के नाते, औरत होने का फर्ज निभाते हुए, एक औरत वाला भरपूर प्यार, पूरी शिद्दत से प्यार। खेलने दिया उसे मेरे तन से, पूर्ण समर्पिता बन कर। बुझाने दिया उसे अपनी वासना की भूख। काश तुम देख पाती उसके चेहरे पर खुशी, परम संतोष। उसके चेहरे की खुशी देखकर मैं कितनी गदगद थी। उसे एक नादान युवक से मर्द बनाया मैंने। एक बार मर्द बन गया, स्त्री सुख से परिचित हो गया, फिर उसने मुझे तो निहाल ही कर दिया, इतना सुख दिया कि मैं बता नहीं सकती। लेकिन यह सब मैं तुम जैसी तथाकथित शरीफजादी से क्यों कह रही हूं? तुमने तो देखा भी नहीं होगा कि तेरा बेटा कितना खुश हुआ होगा। छाती पीट पीट कर रोती रह शरीफजादी, कोसती रह खुद को और अपने बेटे को। एक बात और, यदि तेरा बेटा तेरे साथ यह सब कर सका तो इसमें कहीं न कहीं तुम भी कमजोर पड़ी होगी। तुम्हारे इनकार में दृढ़ता नहीं रही होगी, या खुल के बोलूं तो तेरे मन के किसी कोने में चुदास अवश्य थी, वरना यह संभव नहीं होता।” मैं बोलती जा रही थी और वह मंत्रमुग्ध सुनती जा रही थी। पता नहीं मेरी बात का असर हो रहा था या कुछ और चल रहा था उसके मन में। या शायद अंतर्द्वंद्व, उथल पुथल। मैने उसकी इस स्थिति का लाभ उठा कर बोलना जारी रखा,