Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा - Page 42 - SexBaba
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Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा

बताता हूं, बताता हूं। यह छ: महीने पहले की बात है।” अब उसनें अपनी हरकतें बंद कर दी थीं। मुझे तनिक राहत मिली, लेकिन वह अपनी बांयी हाथ से मेरी कमर पकड़ कर अब भी मुझे अपने से चिपकाए हुए था। इसपर मुझे कोई ऐतराज भी नहीं था। सांझ का झुटपुटा तनिक गहरा रहा था। एकांत भी था। इधर कोई आता जाता भी नहीं था। घर के अंदर तो सभी निश्चय ही व्यस्त होंगे, अतः मैं निश्चिंत उसकी बांह में सिमटी अपना सर उसके कंधे पर रख कर बैठी उसके विकराल लिंग को सहलाती जा रही थी। पंकज नें अपनी बात जारी रखी।

“””मैं प्लस टू के दूसरे साल में था। मेरे क्लास की लड़कियां मुझ पर आकर्षित थीं, लेकिन मैं सीधा सादा, पढ़ाकू किस्म का लड़का था, अतः उनपर ज्यादा ध्यान नहीं देता था। लड़कियों में एक, नैना नाम की लड़की तो मेरे पीछे ही पड़ गयी थी। वह सभी लड़कियों में ज्यादा स्मार्ट थी, बदमाश थी एक नंबर की। उमर भी हम लोगों से अधिक ही थी। पढ़ाई लिखाई में बाबाजी। दो बार एक ही क्लास में फेल हो चुकी थी। एकदम पकी पकाई जवान हो चुकी थी। खूबसूरत थी, भरा भरा गदराया बदन था उसका। एक दिन क्लास के बाद वह मेरे पीछे क्लास से निकली और मेरे पीछे पीछे चल पड़ी।

“पंकज, जरा रुक ना।” मैं रुका नहीं, और तेज चलने लगा। मैं लड़कियों के हॉस्टल को पार कर चुका था लेकिन वह अपने हॉस्टल में जाने की बजाए मेरे पीछे पीछे ही आ रही थी।

“अरे रुक ना।” मैं फिर भी रुका नहीं। उसने आगे बढ़ कर मेरा हाथ पकड़ लिया। करीब सौ मीटर आगे लड़कों का हॉस्टल है। जहां उसनें मेरा हाथ पकड़ा, वहां सड़क के बगल में ऊंची ऊंची घनी झाड़ियां थीं।

“सुना नहीं? मैं तुम्हीं से कह रही हूं।”

“छोड़ो मुझे।” मैंने उसका हाथ झटकने की कोशिश की, लेकिन उसकी पकड़ मजबूत थी। मैं जोर जबर्दस्ती नहीं करना चाहता था।

“नहीं छोड़ूंगी।” जिद पर आ गयी।

“छोड़ो नहीं तो ठीक नहीं होगा।” मैं गुस्से से बोला।

“तू मेरी बात नहीं सुनेगा तो ठीक नहीं होगा।”

“क्या करोगी तुम?”

“चिल्लाऊंगी।”

“क्या बोलोगी लोगों को?”

“यही कि पंकज मुझे छेड़ रहा है।” उसकी बात सुनकर मैं डर गया।

“बोलो, क्या बोलना है?”

“यहां नहीं, उधर चलो।” झाड़ियों की ओर इशारा कर रही थी। शाम का समय था। ठंढ के मौसम में पांच बजते बजते ही अंधेरा होने लगा था। मैं खिंचता चला गया। मुझे खींचते हुए झाड़ियों की बीच घुस गयी। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता, मैं झाड़ियों के उस पार था, नैना के साथ। नीचे हरी भरी घास थी। ऐसा लग रहा था मानो नैना वहां पहले भी कई बार आ चुकी है।

“यह कहाँ ले आई?”

“अरे आओ तो। आओ, बैठो यहां।”

“नहीं, जो बोलना है जल्दी बोलो। मुझे जाना है।”

“तू बैठ तो।” जबर्दस्ती खींच कर बैठने को मजबूर कर दी। मैं बेबसी में बैठने को मजबूर हो गया।

“बोलो, क्या बोलना है?”

“आई लव यू।” मुझ से लिपट कर बोली।

“हट, परे हट। यह क्या है?” मैं झल्ला कर बोला।

“यह प्यार है।” वह मुझे चूमने लगी।

“हट।” मैंने उसे झटक कर अलग कर दिया।

“चुपचाप पड़े रह, वरना मैं चिल्लाऊंगी।” वह धमकी देने लगी। मैं डर गया और चुपचाप बैठ गया। अब उसनें मेरा हाथ अपनी छाती पर रख दिया।

“देख क्या रहा है, दबा इसे।” उसनें हुक्म दिया। मैं डरते डरते उसकी कमीज के ऊपर से ही उसके बड़े बड़े सख्त चूचियों को धीरे धीरे दबाने लगा।

“आह, आह, अच्छा लग रहा है। ओह ओह।” कहते हुए उसनें मेरी जांघ सहलानी शुरू की। मेरे शरीर में सुरसुरी होने लगी। उसनें मेरा हाथ अपनी जांघ पर रख दिया और कहा, “सहलाओ मेरी जांघ को।” और मैं उसके सलवार के ऊपर से ही उसकी जांघ सहलाने लगा।

“और ऊपर।” उसनें कहा और मैं उसकी जांघों के और ऊपर सहलाने लगा।

“और ऊपर।” उसनें कहा और मैं और ऊपर सहलाने लगा। इस तरह धीरे धीरे मेरा हाथ उसकी जांघों के जोड़ तक पहुंच गया। जैसे ही मेरा हाथ वहां पहुंचा, वह मुझसे चिपक गयी। “आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह पंकज, ओह्ह्ह्ह्ह्ह रज्जा। हां हां ओह्ह्ह्ह्ह्ह, वहीं, वहीं, सहलाओ रज्जा।” मैंने अपनी उंगलियों पर गीलेपन का अहसास किया। उस वक्त मुझे पता नहीं था कि यह उसकी चूत से निकलता हुआ संभोगपूर्व लसीला पानी है। मुझे लगा था उसका पेशाब निकल रहा है। मुझे थोड़ी घिन हो रही थी, फिर भी सहलाता जा रहा था। मुझे अब उसकी चूचियां दबाना और चूत सहलाना अच्छा लग रहा था। इस दौरान उसका हाथ मेरे पैंट के ऊपर से ही मेरे लंड के ऊपर नाच रहा था। मेरे शरीर में खून की रफ्तार तेज हो गयी थी। मेरा लंड सख्त हो रहा था ओर मेरे जंघिया के अंदर मानो मेरे लंड का दम घुटने लगा। मैं बेचैन हो उठा। मन हो रहा था पैंट और जंघिया उतार फेंकूं, लेकिन शर्म के मारे ऐसा करने में झिझक रहा था।
 

“आह आह, अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा है, ओह्ह्ह्ह्ह्ह, रज्जा, अब चोद डाल मुझे।” वह अपने कपड़े उतारने लगी। मैं हतप्रभ देखता रह गया। देखते ही देखते वह नंगी हो गयी। मेरी आंखें फटी की फटी रह गयीं। बड़ी खूबसूरत लग रही थी। पहली बार किसी लड़की का नंगा बदन इस तरह मेरे सामने था। मेरे तन बदन में मानो आग लग गयी थी। मैं बेध्यानी में, अनजाने में ही, खुद को रोक पाने में असमर्थ, उत्तेजना के आवेश में उसे दबोच लिया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं करूं तो क्या करूं। मैं उसके नंगे जिस्म को अपनी बांहों में दबोच कर चूमने लगा। यहां तक तो अपने आप हुआ, लेकिन इसके आगे क्या? मैं उसकी बड़ी बड़ी चूचियों को सहला रहा था, दबा रहा था। उसकी चूत के ऊपर हल्के रोयें उगे हुए थे। मेरा हाथ खुद ब खुद उसकी चूत पर पहुंच गया। मैं उसकी चूत पर हाथ फिराने लगा था। उसकी चूत से लसलसा द्रव्य निकल रहा था।

“आह ओह्ह्ह्ह्ह्ह इस्स आह, चोद, आह अब चोद डाल मुझे आह।” वह तड़प उठी।

“कैसे? कैसे चोदूं?” मैं अनजान खिलाड़ी था। मुझे भी अपने शरीर के तनाव से मुक्त होना था लेकिन कैसे? यह मुझे पता नहीं था।

“अरे मूर्ख, उतार अपने कपड़े और अपना लंड मेरी चूत में डाल कर चोद गधे।” वह जल बिन मछली की तरह तड़पती हुई मेरे कपड़ों को उतारने में मदद करने लगी। मैं भी अपने कपड़ों से जल्द से जल्द मुक्त होना चाह रहा था। मेरे दिमाग में यह समझ नहीं आ रहा था कि उसकी चूत में अपना लंड कैसे डाल पाऊंगा। मुझे पता था कि मेरा लंड कितना बड़ा है लेकिन नैना को पता नहीं था। इतना तो निश्चित था कि नैना इस खेल की अभ्यस्त थी। मुझे लगता था कि मेरे लंड का आकार सामान्य लड़कों की भांति है और जब नैना खुद आमंत्रण दे रही थी तो मुझे लगा कि उसके लिए यह सामान्य बात है। उस वक्त माहौल बेहद गरम हो चुका था। मैं अब अपने नियंत्रण में नहीं रह गया था। आननफानन मैं भी अपने कपड़ों से मुक्त हो गया। एक पल तो वह मेरे गठे हुए शरीर की छटा देख कर नि:शब्द रह गयी। जैसे ही उसकी नजर मेरे फनफनाते लंड पर पड़ी तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गयीं।

“बा्आ्आ्आ्आप रे्ए्ए्ए्ए्ए बा्आ्आ्आ्आप, इत्तन्ना्आ्आ्आ बड़ा्आ्आ्आ्आ लंड! न न न न नहींईंईंईंईंईंईंईंई।” बह घबरा गयी थी।

“क्या नहीं?”

“न न न न, तुम छोड़ो मुझे। छोड़ दो। रहने दो। मत चोदो।” वह डर गयी थी मेरा लंड देख कर।

“इतनी दूर तक आ कर अब कैसे छोड़ दूं।” अब मैं उसे छोड़ने के मूड में नहीं था। मुझे गरम उसी ने किया था और अब जब मेरा शरीर उस गरमी में झुलस रहा था तो उसका मना करना बहुत बुरा लगा मुझे। मैं अपने आपे में नहीं था। मैंने झपट्टा मारकर उसे दबोच लिया।

“छोड़ो मुझे।”

“अब नहीं छोड़ूंगा।”

“छोड़ो नहीं तो चिल्लाऊंगी।”

“चिल्लाओगी हरामजादी, अभी तक कह रही थी चोदो चोदो, अब क्या हुआ?” मैंने गुस्से मैं एक झापड़ लगा दिया। अब मेरा रौद्र रूप देख कर वह सहम गयी। मैं अपना नियंत्रण खो चुका था। मुझे पता नहीं कि यह चोदना क्या होता है। जैसा उसने बताया उसके अनुसार लंड को चूत में डालने का मतलब चोदना होता है। मेरे अंदर तनाव का आलम यह था कि उस तनाव से मुक्ति के लिए तड़प रहा था। नासमझी में ही सही, इतना तो पता चल ही गया था कि चोदने की इस क्रिया में अवश्य आनंद प्राप्त होता है, तभी तो नैना तब से चोदो चोदो की रट लगाए हुए थी। यह अलग बात है कि मेरे लंड के आकार से वह भयभीत हो उठी थी। मुझे तनाव से मुक्त होना था और मुझे महसूस हो रहा था कि अपने लंड के माध्यम से ही मुझे इस तनाव से मुक्ति मिलेगी। नैना के द्वारा चोदने के लिए उकसाये जाने के पीछे भी अवश्य यही कारण था। मैं अब और इंतजार नहीं कर सकता था।

“चुपचाप चोदने दे।” मैं गुर्राते हुए बोला।

“नहीं।” वह अब भी मेरी पकड़ में छटपटा रही थी।

“मानोगी नहीं?”

“नहीं।”

“तो जबर्दस्ती चोदूंगा।”

“नहीं, तेरा लौड़ा बहुत बड़ा है। फट जाएगी मेरी चूत।”

“फटने दे।” चोदने के इतने करीब पहुंच कर अब मैं पीछे हटने वाला नहीं था। निर्दयता पूर्वक उसे नीचे पटक दिया। मैं जोश में अंधा हो चुका था, जानवर बन चुका था।

“नहीं, बहुत दर्द होगा।”

“तो मैं क्या करूं? तुम्हीं बोल रही थी चोदो चोदो। अब मेरा लंड इतना बड़ा है तो मैं क्या करूं।”

“डर लग रहा है।”
 
तेरे डर की ऐसी की तैसी।” मैं उस पर चढ़ बैठा और वह छटपटाने से भी लाचार हो गयी थी। मैं जोश में आकर उसकी चूचियों को बेदरदी से मसलने लगा। मुझे बड़ा मजा आ रहा था। उसे चूमने लगा। उसकी चूत सहलाने लगा। इन सबका नतीजा यह हुआ कि धीरे धीरे उसका छटपटाना बंद हो गया। अब मैं और उत्साहित हो उठा। उसके पैरों को फैला कर उसकी लसलसी चूत पर अपना लंड रख दिया। उसे आभास हो गया कि अब हमला होने वाला है।

अंतिम बार मरी मरी सी आवाज में रोने गिड़गिड़ाने लगी, “मत करो ना, इतने जालिम न बनो प्लीज।”

“अरे रो काहे रही है? डर मत, कुछ नहीं होगा।” मुझे क्या पता था कि लंड जब घुसेगा तो उसका क्या होगा क्या नहीं होगा, मुझे तो बस चोदना था। मंजिल इतना करीब था, उत्सुकता और उत्तेजना के मारे मैं पागल हुआ जा रहा था। अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा था। मैं अपने लंड पर दबाव देने लगा।

“आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह नहीं।” वह रोते रोते बोली।

“रोना गाना बंद कर हरामजादी, चुपचाप पड़ी रह। घुसा रहा हूं लंड।” मैं उसके रोने से खीझ उठा था। बहुत टाईट थी उसकी चूत। चूत से निकले लसलसे रस और मेरे लंड से निकलते हुए रस के कारण फिसलते हुए मेरा लंड उसकी चूत को फैलाता हुआ घुसता चला जा रहा था। बहुत गरमी थी उसके चूत के अंदर।

“ओह्ह्ह्ह्ह्ह मांआंआंई्ई्ई्ई्ई गे्ए्ए्ए्ए, मरी मैं मरी आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह।” वह दर्द से बेहाल हो रही थी लेकिन मुझे तो बस चोदने की पड़ी थी। उसकी चूत को फाड़ता हुआ घुसाता चला गया, घुसाता चला गया, पूरा जड़ तक घुसा बैठा।

“देख, हो गया न, पूरा घुस गया।” मैं बोला।

“आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह नहीं ््ईंंईंईंईंईंईंईंईंई, ओह्ह्ह्ह्ह्ह फट गयी मेरी चूत ओह मांआंआंई्ई्ई्ई्ई।” वह चीख पड़ी।

“चुप साली, एकदम चुप।” मैं गुस्से से बोला। मैं कुछ देर वैसा ही पड़ा रहा। मुझे लगा मेरा लंड भट्ठी में घुसा हुआ है। मैं एक झटके में लंड बाहर खींच लिया। अंदर घुसा कर बाहर निकालने की इस क्रिया में मुझे बड़ा अच्छा लगा। जैसे ही मैं लंड बाहर निकाला, नैना नें राहत की लंबी सांस खींची, लेकिन मैं लंड बाहर निकाल कर बेचैन हो उठा, अतः दुबारा घुसाने को तत्पर हो गया। अब मैं और रहम दिखाने के मूड में नहीं था। मुझे मजा मिल चुका था। लंड घुसाने और निकालने में मेरे लंड पर चूत का जो घर्षण हुआ, उससे मुझे बड़ा मजा आया। मैं दुबारा लंड घुसा दिया।

“आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह।” नैना फिर चीखी, मगर इस बार थोड़ी धीमे से। शायद मेरे डर से या फिर उसे तकलीफ कम हुई। फिर तो अब मैं शुरू हो गया। उसकी गांड़ के नीचे हाथ रख कर शुरू में थीरे धीरे अंदर बाहर करता रहा, फिर दनादन दनादन ठोकने लगा। अब नैना चीख चिल्ला नहीं रही थी। उसकी चूत भी थोड़ी ढीली हो गयी थी। मुझे तो मानों स्वर्ग मिल गया था। खूब जम के चोदने लगा। मुझे आश्चर्य और खुशी हो रही थी कि अब नैना भी मेरी कमर पकड़ कर अपनी कमर उछाल उछाल कर मेरे धक्के का जवाब देने लगी थी।

“आह ओह्ह्ह्ह्ह्ह आह ओह्ह्ह्ह्ह्ह आह।” उसके मुंह से आनंद की आहें निकल रही थीं। उसकी आंखें बंद थीं। मैं और उत्साहित हो कर धमाधम चोदने लगा, तभी, “आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह््ह््ह््हह्हह्ह्ह्ह म्म्म्म्म्आं्आं्आं्आं,” कहते हुए मुझसे जोर से चिपक गयी। उसका बदन थरथराने लगा। मुझे ऐसा लगा मानों उसकी चूत मेरे लंड को चूसने लगी हो। फिर उसका शरीर शिथिल हो गया। कुछ पलों के लिए मुझे समझ नहीं आ रहा था। लेकिन उन कुछ पलोंं की दुविधा भरे ठहराव से मेरे अंदर की आग और भड़क उठी। मैं फिर चालू हो गया, उसके शिथिल पड़ते शरीर का भुर्ता बनाने। फच फच चट चट की आवाज बढ़ गयी। मेरे दनादन ठुकाई से हलकान होने की बजाय पांच मिनट बाद ही वह फिर अपने रंग में आ गयी। “आह ओह पंक पंक पंकज्ज्ज्ज ओह राम ओह मांआंआंई्ई्ई्ई्ई ओह्ह्ह्ह्ह्ह, चोद चोद आह साले कुत्ते मादरचोद मां के लौड़े, चोद चोद आह।” ऐसे ही बड़ बड़ करती कमर उछाल उछाल कर मुझसे चिपकी जा रही थी। तभी, और तभी मेरे अंदर का ज्वालामुखी मानो फटने लगा। मेरा शरीर तनने लगा और मैं पूरी शक्ति से नैना को जकड़ कर चिपक गया। उफ वे पल। मैं कभी नहीं भूल सकता। मेरे लंड से फच्च फच्च लंड का रस निकलने लगा, “आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह ई्ई्ई्ई्ई्ई ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ स्स्स्स्स्स्आ्आ्आ्आली्ई्ई्ई्ई्ई नै्ऐ्ऐ्ऐ्ऐ्ऐन्न्न्ना्आ्आ्आ्ह्ह्ह।” उफ, ये थे मेरे मुंह से निकलने वाले उद्गार। तभी दुबारा नैना भी थरथरा उठी और छिपकली की तरह चिपक गयी मुझ से। करीब तीन चार मिनट तक हम यूं ही एक दूसरे से चिपके रहे फिर हमारा शरीर ढीला पड़ गया। मेरे शरीर का सारा तनाव लंड के रास्ते बाहर आ गया। मेला लंड भी ढीला हो गया और फच्चाक की आवाज के साथ चूत से बाहर निकल आया। सफेदी और खून से लिथड़ा हुआ। मगर अब नैना को अपने चूत के फटने या खून निकलने की कोई परवाह थी। वह तो थकी मांदी, शिथिल पड़ी लंबी लंबी सांसें ले रही थी। उसके होंठों पर मुस्कान थी, संतुष्टि की, खुशी की
 
मैं बड़ा खुश था। उस दिन से पहले कभी पता ही नहीं था कि लड़की चोदने में इतना आनंद है।

“अब?” मैं बोला।

“अब क्या?” वह अलसाई सी बोली।

“चलना नहीं है क्या?”

“हां, चलना तो है।” बड़ी बेमन से बोली।

“तो कपड़े पहन मां की चूत।” मैं झल्ला उठा। मेरी शराफत का बेड़ा गर्क हो गया था उसी दिन।

“मन नहीं हो रहा जाने को।”

“तो पड़ी रह कुतिया।”

“ऐसे न बोल रज्जा।”

“तो कैसे बोलूं।”

“प्यार से बोल।”

“अच्छा मेरी लंडरानी अब उठ।”

“वाह यह अच्छा है, लंडरानी। वाह मेरे चूत के राजा। देखो तो, मेरी चूत का क्या हाल कर दिया तूने?” सच में उसकी चूत की हालत ऐसी हो गयी थी कि किसी गधे से चुदी हो। फूल कर कुप्पा हो गयी थी। खून और वीर्य से लिथड़ा।

“अरी छोड़ यह सब, कैसा लगा, ये बता।”

“आह राजा, यह भी पूछने की बात है? आज से पहले ऐसा मजा किसी से नहीं मिला।”

“ओह, मतलब तू पहले ही और लोगों से चुद चुकी है?”

“हां मगर तू पहला मस्त मर्द मिला।”

“अच्छा, कितने लोगों से चुदी है आज तक?”

“सात”

“कौन कौन हैं?”

“हमारे कॉलेज का साईंस फैकल्टी, सिंह बाबू, क्लास के चार लड़के, हमारे कैंटीन का कैटरर और एक ऑटोवाला।”

“बाप रे, मतलब तू एक नंबर की लंडखोर हो, फिर भी मेरे सामने रोना गाना कर रही थी साली रंडी।” मैं चकित था।

“तेरा लंड है ही इतना्आ्आ्आ्आ भयानक।”

“तो अब ठीक है न मेरा लंड?”

“हां बाबा हां, मस्त है।”

“तो अब चोदने दोगी रोज?”

“रोज? हां, मगर दो दिन तक तो नहीं। देख नहीं रहे, फाड़ के रख दिया मां के लौड़े। दो दिन तो आराम करने दे। सिकाई करनी होगी, मलहम लगाना होगा।”

“ठीक है ठीक है, मगर मेरे लंड का क्या होगा? चूत का मजा मिल गया है ना। अब बिना चोदे रहा नहीं जाएगा।”

“चूत क्या, पूरी लड़की, औरत मिलेगी। आखिर इतना मस्त लौंडा और इतना मस्त लंड कहाँ मिलेगा। जिसे मिलेगा उसकी तो किस्मत खुल जाएगी।” कहकर वह उठी और कपड़े पहनने लगी। मैं आश्वस्त हो गया। हम दोनों वहां से करीब सात बजे निकले।

” बस उस दिन से शुरू हो गयी मेरी चुदाई यात्रा।””””

कहकर वह चुप हुआ लेकिन इतनी देर में मैं उसके लिंग को सहलाते सहलाते स्खलन के कागार पर ले आई थी। उसके लिंग का आकार भी अविश्वसनीय रूप से बढ़ कर विकराल रूप धर चुका था।

“आह आह मेरा लंड पानी छोड़ने वाला है आह। पी जाईए ओह मुंह में ले लीजिए आंटी आह।” वह उत्तेजना के मारे बोला।

“आंटी नहीं मां बोल, तब।” मैं बोली। हालांकि उतने बड़े लिंग को मुंह में लेना संभव नहीं था तथापि बोली।

“अरे हां मेरी मां, हां मम्मी चूस साली रंडी मम्मी।” वह मेरा सर पकड़ कर अपने लिंग के पास लाया। मैंने दोनों हाथों से उसका लिंग थामा और मुंह में लेने का उपक्रम करने लगी। तभी उसने एक जोर का झटका मारा और अपना लिंग मेरी हलक तक उतार दिया और छर्र छर्र अपना वीर्य छोड़ने लगा। मेरा तो दम घुटने घुटने को हो आया था। मैं गटागट उसका नमकीन वीर्य हलक से उतारती चली गयी। जैसे ही उसका स्खलन पूर्ण हुआ उसने मुझे मुक्त कर दिया। मेरी जान में जान आई। उसके लिंग से वीर्य अब भी टपक रहा था जिसकी कुछ बूंदें मेरी कुर्ती पर गिरीं मगर मुझ कोई गिला नहीं था।

“वाह आंटी। मजा आ गया।”

“आंटी नहीं मम्मी।”

“ओके मम्मी।”

“हां, यह ठीक है। तू भी कम नहीं है। एक नंबर का हरामी चुदक्कड़ बेटा। बड़ा सुख दिया रे।” मैं खड़ी होते हुए बोली।

“तो अब मम्मी को चोदने उसका बेटा आएगा।” वह खुश हो कर बोला।

“हां, मेरा मादरचोद बेटा।”

अब तक रात हो चुकी थी। हमारा बाहर निकले हुए करीब डेढ़ घंटे बीत चुके थे। पता नहीं क्या सोच रहे होंगे रेखा और तीनों चुदक्कड़ बूढ़े। यही सोचते हुए हम घर में दाखिल हुए।

आगे की कहानी अगली कड़ी में।

 
उस दिन रेखा के अठारह वर्षीय बेटे के साथ जोकुछ हुआ वह अविस्मरणीय था। अपने घर और परिसर दिखाने के बहाने मैं नें खुद को पंकज की कामुकता के हवाले कर दिया और एक अद्भुत आनंद प्राप्त करने में सफल हुई। एक उभरते हुए सुगठित शरीर वाले युवक संग रंगरेली का रसास्वादन किया। उभरता हुआ आकर्षक नवयुवक था वह। इस उम्र में ही माहिर औरतखोर बन चुका था, अबूझ कामुकता का तूफान था उसके अंदर। वह जब अपने प्रथम स्त्री संसर्ग के अनुभव से मुझे अवगत करा रहा था तो मैं विस्मित नहीं थी, क्योंकि किसी न किसी तरह से, कभी न कभी तो उसे इस सुखद खेल से परिचित तो होना ही था लेकिन उसके स्त्री तन की अदम्य भूख और संभोग क्रिया में पूर्ण निपुणता से अचंभित अवश्य थी। एक बार संभोग संपन्न हुआ नहीं कि दुबारा चढ़ दौड़ने की उसकी उतावली से भी मैं प्रभावित थी, जिसका प्रमाण अभी अभी उसनें दिया था। जिस बुरी तरह से उसनें मुझे रौंदा था और अपने भीषण लिंग से मेरी योनि की कुटाई की थी, उससे हलकान थी, लेकिन यथेष्ठ समय के अभाव के कारण मैंने उसके दुबारा संसर्ग के प्रस्ताव को ठुकरा कर उसकी प्रथम समागम की कथा सुनने बैठ गयी और इस दौरान उसके अंदर की वासना की अग्नि शमन हेतु उसके लिंग को सहलाती सहलाती हस्तमैथुन द्वारा उसकी गरमी उतार बैठी, यह और बात है कि अंततः उसके लिंग से निकलते वीर्य को अपने हलक में उतारने के लिए मुझे वाध्य होना पड़ा।

रात गहरा चुकी थी। हम जल्दी से उठे और घर में दाखिल हुए। करीब डेढ़ घंटे हम घर हे बाहर थे। इस दौरान अवश्य यहां भी काफी कुछ हो चुका था। रेखा की थकी थकी मुद्रा, साड़ी की सलवटें, उसके गालों और गर्दन पर उभर आए निशान सब कुछ बयां कर रहे थे। हरिया तो किचन में घुसा हुआ था किंतु वहां उपस्थित रामलाल और करीम के चेहरे उन बिल्लियों की तरह थे जो दूध पीकर तृप्त और हो चुके हों। पता नहीं पंकज को अहसास हुआ या नहीं, मगर रेखा का लाल भभूका चेहरा चीख चीख कर वहां से गुजरे वासना की आंधी की चुगली कर रहा था।

“देर हो गयी ना?” मैं बोली।

“नहीं नहीं, देर कहाँ हुई।” रेखा नजरें चुराती हुई बोली।

“चल फिर ठीक है, मगर रात तो हो ही गयी। रात का खाना खा कर जाओ।” मैं बोली।

“हां मम्मी, यह ठीक है।” पंकज जल्दी से बोल उठा। सोच रहा होगा, रुकने से शायद एक बार और मुझ पर चढ़ने का मौका मिले।

“नहीं, तेरे पापा आने वाले होंगे। हमें चलना होगा अब।” कहकर खड़ी हो गयी वह।

“क्या मॉम?” मायूसी से बोला पंकज।

“कुछ नहीं, चल उठ।” रेखा बोली।

“ठीक है, मैं भी रोकूंगी नहीं। पंकज बेटे, छुट्टी तो है ही, आ जाया करना अपनी आंटी से मिलने।” मैं बोली।

“आंटी नहीं।”

“ओह, मम्मी।”

“हां, यह ठीक है। रेखा की तरह मैं भी तेरी मम्मी हूं।”

“मेरी मम्मी की तरह तो नहीं।” अर्थपूर्ण शब्दों के साथ बोला।

“क्या कहा? तेरी मम्मी और मुझमें क्या फर्क है?” मैं भी कम कमीनी थोड़ी न थी।

“फर्क तो है।”
 
“तू देखने का नजरिया बदल, फर्क नहीं दिखेगा।” अब पंकज नें रेखा की ओर गहरी नजरों से देखा। पता नहीं क्या था उसकी नजरों में। हाय राम यह मैं क्या कह बैठी। कहीं पंकज की नजरें रेखा में मुझे तो नहीं देख रहींं? अगर रेखा में वह मुझे देख भी रहा है तो मुझे क्या, मेरी बला से। लेकिन सवाल यह था कि अगर अपनी मां में वह मुझे देख रहा है तो क्या अपनी मां को मेरी तरह हमबिस्तर बनाने की सोच सकता है? सोच क्या सकता है, कर भी सकता है, आखिर कलयुग है। जैसे मैं कलयुगी मां अपने कोखजाए बेटे की बांहों में खो कर अपने तन की प्यास बुझा सकती हूं तो पंकज और रेखा के मध्य यह क्यों नहीं हो सकता है। आखिर पंकज ठहरा एक नंबर का औरतखोर और रेखा भी सती सावित्री का चोला उतार कर परपुरुषों के रसास्वादन की अभ्यस्त हो ही चुकी थी। अब सिर्फ एक उपयुक्त परिस्थिति और अवसर की आवश्यकता थी। फिर तो मां बेटे के बीच के दीवार को ढहने में कौन रोक सकता था। मेरे शैतानी दिमाग में कमीनगी भरी योजना बनने लगी।

“बस बस, नजरिया बदलते रहना, फिलहाल तो घर चलो।” रेखा चलने को तत्पर हो गयी।

“पंकज बेटे, घर जा के भी नजरिया बदल सकते हो।” मैंने इशारे इशारे में पंकज के अंदर की कामना को हवा दी, अगर मेरा अंदाजा सही था तो। पंकज कभी मुझे देखता कभी अपनी मां को। उसकी आखें चमक उठी थीं। मैं समझ गयी, तीर निशाने पर लगा है। मैं मुस्कुरा उठी।

“चलिए चलिए मॉम, अब घर में ही नजरिया बदलूंगा।” पंकज भी मुझे अर्थपूर्ण नजरों से देखते हुए अपनी मां के पीछे पीछे निकला। मेरी मुस्कान गहरी हो उठी।

“हां तो अब बताओ तुमलोग, क्या हो रहा था यहां?” उनके निकलते ही सोफे पर बैठती हुई करीम और रामलाल की ओर मुखातिब हो कर बोली।

“कब?” करीम बोला।

“जब मैं, पंकज को घर से बाहर कैंपस और नये घर को दिखा रही थी।” (दिखा क्या रही थी, पंकज के साथ रंगरेलियां मना रही थी)

“ओह उस समय।”

“हां हां उसी समय।”

“और क्या, वही।”

“वही क्या?”

“चोद रहे थे रेखा को, यही सुनना था?” हरिया किचन से बाहर आ चुका था अबतक।

“हां, यही सुनना था।” मैं बोली।

“और तू डेढ़ घंटे तक बाहर क्या कर रही थी?” अब करीम बोला।

“क्या मतलब? पंकज को घुमा रही थी, और क्या।”

“हां हां, वो तो तेरा हुलिया बता रहा है।” हरिया बोला।

“क्या बता रहा है?” मैं ढीठ बनी रही।

“साली बुरचोदी, हम अंधे हैं क्या?”

“अंंधे नहीं हो तो पूछ काहे रहे हो साले ठरकी?”

“क्या बोली?”

“ठरकी।” (ठरकी एक अश्लील शब्द है जो ऐसे व्यक्ति को संदर्भित करता है जिसकी बहुत गहन यौन इच्छाएं होती हैं)

“पकड़ साली को करीम, चल रामलाल बताते हैं इसे कि ठरकी किसे कहते हैं?” कहते न कहते करीम मुझ पर झपटा। मैं उठ कर भागी।

“अरे नहीं, मैं तो मजाक कर रही थी। बुरा मान गये मेरे रज्जा। माफ कर दो।” मैं बनावटी तौर पर बचते हुए माफी मांग रही थी। फिर भी करीम की पकड़ में आ ही गयी। पकड़ में क्या आई कि करीम तो शुरू ही हो गया। मेरे नितंबों की दबाते हुए चूमना आरंभ कर दिया। “आह, छोड़ो, छोड़ो मुझे।”

“ऐसे कैसे छोड़ दें?” करीम तो मुझ पर हावी ही होने लग गया था।

“अच्छा, अभी छोड़ दे करीम।” हरिया बोला।

“नहीं, देख मेरा लंड खड़ा हो गया है।”

“मेरा भी।” अब रामलाल भी पैजामे के ऊपर से अपना लिंग मसलते हुए बोला।

“अरे तो मैं क्या हिजड़ा हूं मादरचोदो?” हरिया खीझ कर बोल उठा।

“हमें क्या पता?” करीम मुस्कान के साथ बोला।
 

“साले कुत्ते, ठीक है, अभी पता चल जाएगा।” कहकर हरिया भी ताव में आ गया और मेरी ओर बढ़ा। उफ्फ, बड़ा मुश्किल है। ऐसे औरतखोरों के साथ रहना सचमुच किसी स्त्री के लिए जी का जंजाल है। अब मैं तीन तीन मर्दों की बीच फंसी फड़फड़ा रही थी।

“अरे बाबा बस बस, आह, अब माफ भी कर दो।” मैं उन तीनों के बीच पिसती हुई बोली।

“ऐसे नहीं। अब माफी से पहले सजा मिलेगी।” हरिया मुझे भूखी नजरों से देखते हुए बोला। तो इसका मतलब अब मेरी खैर नहीं।

“अब माफ कर ही दो ना?” मैं गिड़गिड़ाने का नाटक करने लगी।

“ऐसे नहीं।”

“तो कैसे?”

“सजा मिलेगी।”

“कैसी सजा?” जान बूझकर अंजान बन रही थी।

“वैसी ही।”

“कैसी?”

“साली रंडी, अभिए बताते हैं” कहते हुए हरिया मेरे स्तनों को मसलने लगा। उसे पता चल गया कि मेरी ब्रा नदारद है। “साली कुतिया, बिना ब्रा के उस लौंडे से चुदवाने गयी थी?”

“अरे ब्रा तो ब्रा, हरामजादी पैंटी भी नहीं पहनी है।” करीम मेरे नितंबों को मसलते हुए बोला।

“ओह, तो ये बात है। मतलब पूरी तैयारी के साथ उस लौंडे का शिकार करने गयी थी। साली, लंड की भूखी कुतिया, इतने कम उमर के लौंडे को भी नहीं छोड़ी।” हरिया मेरे स्तनों को बर्बरता पूर्वक भींचता हुआ बोला।

“आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह, ओ्ओ्ओ्ओ्ओह, उफ्फ, बस्स्स्स्स बस्स्स्स्स, तो क्या सब मेरी ही गलती है? तुम लोग भी तो रेखा के साथ यही कर रहे थे।” मैं अपने आप को किसी प्रकार संयंत करती हुई बोली। मगर मेरे बोलने न बोलने का फिलहाल कोई असर इन लोगों पर नहीं होता नजर आ रहा था। सच बोलूं तो इस वक्त मैं खुद भी यही चाह रही थी। पंकज की कहानी सुनने के दौरान मैं उसके अमानवीय विशाल किंतु मनमोहक लिंग से खेलती हुई खुद भी सुलग उठी थी। एक तो पंकज जैसे कामुक सांढ़ के आक्रामक संभोग से हलकान थी उस पर उस अल्प समय में दुबारा पंकज की बांहों में समा कर जल्दबाजी वाली नोच खसोट से अपनी दुर्दशा नहीं कराना चाहती थी, अतः पुनर्जागृत अतृप्त कामना के साथ पंकज और रेखा को विदा करने को विवश थी। वही अतृप्त कामना इस वक्त इन तीनों की हरकतों और संवादों से मेरे अंदर फट पड़ने को आतुर ज्वालामुखी का रूप ले चुका था। अब मैंं तैयार थी, मसले जाने के लिए, रौंदे जाने के लिए, भंंभोड़े जाने के लिए। फिर भी अपनी बेताबी को इतनी आसानी से प्रकट कर दूं तो मैं कामिनी किस बात की।

“हां हां कर रहे थे रेखा के साथ और रेखा जैसी थाली में सजा कर मिली, पराए मर्द की शौकीन, मस्त लंडखोर औरत को हम भला कैसे छोड़ देते।” हरिया अपने पजामे के नाड़े को ढीला करते हुए बोला। “चल बुरचोदी अब तेरा नंबर है। पंकज जैसे नये नकोर नौसिखिए लौंडे से ठोकवाने के लिए मरी जा रही थी ना साली रंडी, ऊपर से हमें ठरकी कहती है साली कुतिया। चल रे करीम, रामलाल के साथ मिलकर इस मां की लौड़ी का बाजा बजाते हैं।” देखते न देखते तीनों के तीनों मादरजात नंगे हो गये। तीनों भूखे भेड़िए की मानिंद, तीनों के फनफनाते लिंग और उनकी आंखों में वहशियाना चमक। उन्हें व्यर्थ समय जाया क्यों करना था, टूट ही तो पड़े तीनों नंग धड़ंग औरतखोर पशु। पल भर में मेरे वस्त्र फर्श चूम रहे थे।

“ओह भगवान ओह।” मैं उनकी बेताबी से बेहाल हो उठी।

करीम मुझे पीछे से पकड़े था। रामलाल मुझे सामने से। हरिया बोला, “पटक साली को यहीं जमीन पर, यहीं इसकी गरमी उतारते हैं।”

“नहीं ््ईईंं््ईईंं््ईईंं।” मैं उनके चंगुल में छटपटाने का नाटक कर रही थी। हरिया के कथनानुसार मुझे उन्होंने फर्श पर ही पटक दिया। मैंने पीछे नितंबों की दरार में करीम के लिंग की दस्तक को महसूस किया और इधर मेरी कंपकंपाती योनिद्वार पर रामलाल के लिंग की दस्तक।

“नहीं ््ईईंं््ईईंं््ईईंं ऐसे नहीं।” मैं अनावश्यक विरोध जता रही थी। इसके आगे और कुछ न बोल पायी। न जाने किस तरह अपना स्थान बना कर हरिया अपने लिंग को मेरे मुंह में ठूंसने की जुगत लगा बैठा।

“नहीं क्या? ऐसे नहीं तो कैसे? हम तीन हैं रे लंडखोर। एक साथ घुसेड़ेंगे लौड़ा। अब ये न पूछो कहाँ कहाँ।” हरिया पूरे अधिकार से बोला। मैं जानती थी कहाँ कहाँ, फिर भी विरोध व्यक्त कर रही थी।

“नहीं ््ईईंंईंईंईंईं…..”

 
हां्आंआंआंआंआं….., एक, दो, तीन।” घप्प। और लो हो गया बंटाढार। रामलाल का लिंग सर्रर्र्र्र से मेरी योनि में प्रविष्ट हुआ और पीछे से मेरी गुदा का क्रियाक्रम करीम के लिंग के प्रहार से। चीखने का मौका मिला कहाँ, चीख तो हलक में घुट कर रह गयी। मुख में हरिया का लिंग जो पैबस्त था। सिर्फ “गों गों” की घुटी घुटी आवाज निकल रही थी मेरे हलक से। उफ्फ, वासना की आग में दहकती मैं और वासना की अदम्य अग्नि में झुलसते वे औरतखोर पशु। भूचाल ही तो आ गया वहां। गपागप, सटासट, चपाचप, संभोग में लिप्त धुआंधार धकमपेल के दौरान उन तीन कामुक पशुओं के बीच पिसती, नुचती, चुदती, हलाल होती रही। उनके लिंग के प्रहारों को अपने ऊपर झेलती, उनके बर्बर हाथों द्वारा मेरे उन्नत उरोजों का मर्दन और गालों, गर्दन पर चुंबनों की बौछार से हलकान होती रही।

“ले हुम्म, ले मां की चूत ले।” हरिया की आवाज।

“हुम्म हुं, बुरचोदी रंडी।” करीम की आवाज।

“ले ले और ले आह ओह हुं हुं हुम्म।” रामलाल की आवाज। तीनों मानो अपने अपने मन की भंड़ास मुझे निचोड़ झिंझोड़ कर निकाल डालने पर आमादा थे। फिर भी मैं मगन मस्ती की समुंदर में डूब उतरा रही थी। तीन तीन मर्दों के सम्मिलित कामुक धींगामुश्ती में पिसती, तीन तीन कामुक भेड़ियों की कामपिपाशा एक साथ शांत कर सकने की अपने सामर्थ्य से गौरान्वित होती, पूर्णता के अहसास में मुदित, उनके सम्मिलित संभोग में लिप्त, समर्पित, अखंड आनंद में डूबती उतराती जा रही थी। गों गों की आवाज, हरिया के लिंग पैबस्त, मेरे मुख से निकलती रही। मेरी आंखें ही बता रही थींं कि मैं इस वक्त कितने सुखद अहसास से गुजर रही थी। मुझे पता था कि मुख मैथुन के पश्चात हरिया मेरी योनि में डुबकी लगाए बिन कहां छोड़ने वाला था भला। मानसिक रुप से मैं इसके लिए तैयार भी थी। करीब दस मिनट बाद ही मैं बेहद सुखद स्खलन में डूब गयी। आह वे सुखद पल, अकल्पनीय आनंद। स्खलन के पश्चात शिथिल पड़ते मेरे तन को भंभोड़ने में वे कोई कोताही नहीं कर रहे थे, स्त्री तन के भूखे भेड़िए। लगे रहे घपाघप धकमपेल में। अंततः करीब पच्चीस मिनट बाद कुछेक मिनटों के अंतराल में करीम और रामलाल अपने मदन रस से मेरी योनि और गुदा को सराबोर करने लगे। इतनी जोर से उन्होंने मुझे अपने बंधन में जकड़ा कि मुझे सांस लेने में भी कष्ट हो रहा था। लेकिन वाह री मैं, ठहरी एक नंबर की लंडखोर, इस दौरान भी मैं अपने दूसरे स्खलन में मगन थी। जैसे ही इन दोनों नें मुझे निचोड़ कर छोड़ा, हरिया मुख मैथुन छोरिक्त स्थान की पूर्ति हेतु आ गया। इसने तो मानो सारी खुन्नस निकालने की ठानी थी। आव देखा न ताव,

“अब ले मेरा लौड़ा। हुम्म््म््म््मम्मम्आ्आ्आ्आह।” मेरे शिथिल शरीर को दबोच कर एक करारे प्रहार से अपने आठ इंच लंबे लिंग को मेरी गीली, चुदी चुदाई योनि में जड़ तक गप्प से घुसेड़ दिया। अब आरंभ हुआ इसका बेताबी भरा संभोग।

“आह, धीरे।” मैं मरी मरी आवाज में कराही।

“अब काहे का धीरे।” वह मुझे झिंझोड़ता हुआ दहशतनाक आवाज में बोला।

“उफ, थक चुकी हूं बाबा।”

“अभिए? गांड़ फट गयी? मेरी बारी आने से पहले ही थकी हरामजादी। लंडखोर कुतिया चोदने दे हमें आराम से।” मेरी हालत की परवाह किए बगैर गचागच शुरू हो गया। शुरू हो गयी पुनः मेरी कुटाई। उधर रामलाल और करीम वैसे ही नंग धड़ंग सोफे पर बैठे हम बाप बेटी के मध्य हो रहे रासलीला का लुत्फ उठा रहे थे।

“ले हुम, ले हुं हुं हुं हूंऊंऊंऊंऊ।” लगा रहा ठोकने।

“आ आ आ आ आह आह आह अम अम अम्मांआंआंआ।” मेरे थके शरीर में फिर से न जाने कहाँ से नवस्फूर्ति का संचार हो गया और मैं पुनः लीन हो गयी हरिया के संग संभोग के सुख में गोते खाने में। यह दौर सिर्फ पांच मिनट ही चला, लेकिन ये पांच मिनट भी हम दोनों के लिए काफी थे। इधर मेरा शरीर ऐंठने लगा, उधर हरिया का शरीर अकड़ने लगा, यह उसका पहला ही स्खलन था और इधर मेरा तीसरा। हम दोनों एक दूसरे से ऐसे चिपके मानो एक दूसरे में समा जाएं। कहाँ वह झुर्रिदार बूढ़ा, और कहां मैं उसके आधे उम्र वाली गदराई औरत, परवाह नहीं, छिपकली की तरह चिपकी, उसका रस निचोड़ कर अपनी योनि से पीने में मगन, कतरा कतरा चूसकर निढाल हो गयी। वह भी एक तरफ लुढ़क कर भैंसे की तरह हांफ रहा था। विजयी भाव से मुस्कुरा रहा था साला बेटीचोद और मैं उसकी बिटिया रानी, बेशरम छिनाल की तरह पुनः उससे जा चिपकी,

“आह मेरे चोदू पापा।” चूम उठी।

“ओह मेरी बुरचोदी बिटिया।” चुम्बन का प्रतिदान दिया उसने भी।

 
इतनी देर की घमासान धकमपेल से बेहाल थी मगर मेरा रोम रोम तृप्त हो चुका था। उसी अवस्था में वहीं पर थकी मांदी कब मेरी आंख लग गयी पता ही नहीं चला। जब आंख खुली तो देखा दस बज रहा था। अपने को संभालकर चारों ओर देखने लगी, कमरे में कोई नहीं था। मैं अकेली मादरजात नंगी, नुच चुदकर बेशरमों की तरह पसरी थी। मैं हड़बड़ा कर उठी। उठने के क्रम में लड़खड़ा उठी। किचन में खटर पटर की आवाज आ रही थी। समझ गयी कि हरिया खाना बनाने में व्यस्त है। मैं उठी और अपने कमरे में लड़खड़ाते हुए दाखिल हुई। मेरी योनि का तो भुर्ता बन चुका था। पहले पंकज, फिर रामलाल और हरिया। करीम तो कमीना मेरी गुदा का रसिया ठहरा। खैर, मेरे फ्रेश होते होते खाना तैयार था। करीब साढ़े दस बजे हम खाने की मेज पर थे। मैं चुपचाप खाना खा रही थी। मुझे चुप देख कर हरिया से रहा नहीं गया।

“क्या हाल है रानी?” हरिया बोला।

“तुम लोगों के रहते और क्या हाल रहेगा। चुपचाप खाना खाओ” मैं बनावटी रोष से बोली। फिर चुप्पी का आलम छा गया। खाना खत्म होते ही सन्नाटे को भंग करते हुए रामलाल नें कहा,

“जो कुछ हुआ, तुम्हें अच्छा नहीं लगा?”

“अच्छा क्यों नहीं लगेगा? ये कोई पूछने की बात है? चेहरा देख इसका।” करीम बोला।

“खुश लग रही है।” रामलाल बोला।

“हां हां चोद चोद के मार डालो मुझे तब तुम लोगों के कलेजे में ठंढक पहुंचेगी साले चुदक्कड़ों।” मैं झल्ला कर बोली।

“अरे बुरा मान गयी मेरी बिटिया।” यह हरिया था।

“ओह सॉरी, बिटिया, हम तो यूं ही….” करीम के चेहरे पर खेद था।

“यूं ही क्या?”

“अरे हम तो जाहिल गंवार बस ऐसे ही….”

“ऐसे ही क्या?” मैं भीतर ही भीतर मजा ले रही थी।

“सॉरी गलती हो गयी।” अब रामलाल मेरे तेवर को देखकर तनिक सहमा सा था।

“कैसी गलती?”

“बस बस हमें माफ कर दो।”

“नहीं करूंगी माफ।”

“माफी के लिए हम क्या करें?”

“पहले करते हो, फिर मेरी हालत का मजाक उड़ाते हो और बाद में माफी मांगते हो हरामियों।”

“अच्छा बाबा गलती हो गयी। अब गुस्सा थूक दो।”

“नहीं।”

“क्या करें हम जिससे तुम्हारा गुस्सा खत्म हो?” करीम बोला।

“जो बोलूंगी करोगे?”

“हां।”

“तो करते रहा करना।”

“क्या?”

“वही जो रेखा और पंकज के जाने के बाद मेरे साथ कर रहे थे, हा हा हा हा,” अब मैं अपनी हंसी रोक पाने में असमर्थ थी।

“ओ्ओ्ओ्ओ्ओह, हम तो हम तो….”

“हा हा हा हा क्या हम तो हम तो?”

“हम तो डर ही गये थे हे हे हे हे।” अब उनके चेहरे खिले।

“एक बात कान खोल कर सुन लो आपलोग, मैं आपलोगों की हूं समझे? मुझ पर हक है आपलोगों का। लेकिन कुछ जिम्मेदारियां हैं मुझपर, उसके साथ साथ मेरी मजबूरियाँ भी हैं, व्यस्तता भी है। जब मैं फुर्सत में हूं, हक से बिंदास टूट पड़ो मुझपर, खुल कर खेलो, मैं मना नहीं करूंगी। मेरे बाबूजी हरिया और करीम चचा, आपलोगों को पता है, यह बात मैं इसलिए दुहरा रही हूं कि रामलाल जी भी अब इस परिवार के सदस्य बन चुके हैंं और इन्हें भी इस हक से वंचित नहीं रखना चाहती। अब आप तीनों मेरे…..” मैं रुकी।

“हम तीनों तुम्हारे?….।” रामलाल प्रश्नवाचक दृष्टि से मुझे देखने लगा।

“यह भी बोल दूं मैं?” मैं नशीले अंदाज में बोली।

“अय हय, तेरी इन्हीं अदाओं के तो दिवाने हैं हम।” करीम बोला।

“हटिए, आपलोग बड़े वो हैं।”

“क्या हैं?”

“छि:, चोदू बलमा, और क्या।” बोलकर मैं उठ भागी।

“अरे अरे भागती कहाँ है? देख मेरा लौड़ा फिर खड़ा हो गया” रामलाल बोला।

“आप तो बस….” रामलाल की बात सुनकर जाग उठी कामना को दबा कर भागती गयी अपने कमरे में। इस वक्त अगर ये मेरा पीछा करते तो रात में भी मेरी दुर्दशा करते और मैं मना न कर पाती, छिनाल बनी वासना की आंधी में बहती रहती।

“छोड़ रामलाल, आज का हो गया। अब चला जाय सोने।” हरिया बोला और सभी अपने शयनकक्ष में समा गये। मैं धम्म से बिस्तर पर गिरी और निद्रा के आगोश में चली गयी, इस बात से बेखबर कि दूसरे दिन का सवेरा एक नयी घटना से मुझे रूबरू कराने वाला था। अकल्पनीय तो नहीं, अनपेक्षित भी नहीं, किंतु मेरी लगाई चिंगारी का इतना शीघ्र परिणाम निकलेगा, यह आश्चर्य करने वाला अवश्य था।

क्या था वह? जानने के लिए अगली कड़ी का इंतजार कीजिए। तबतक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए।
 
आज फिर एक नयी सुबह एक नये दिन की शुरुआत थी। खुशनुमा सुबह थी, शरीर में थकान का नामोनिशान नहीं था, प्रफुल्लित थी, तरोताजा थी। हर नये दिन के बारे में मेरी सोच बिल्कुल स्पष्ट है, हो सकता है हर दिन अच्छा न हो, लेकिन हर दिन में कुछ न कुछ तो अच्छा अवश्य होता है इसलिए मुझमें सदा ही सकारात्मक सोच के साथ धनात्मक उर्जा प्रवाहित होती रहती है। मेरी कामना यही है कि सभी नकारात्मक सोच को परे रख कर सकारात्मक सोच के साथ आशावाद को अपना कर अपनी जिंदगी में खुशी के रंग भरते रहें।

अब मैं बताने जा रही हूं, यह इस दिन का एक मजेदार, चौंकाने वाला, अप्रत्याशित किंतु संभावित, (संभावित इस लिए क्योंकि जो चिंगारी कल मैंने दिखाई थी, उसकी परिणति यही होनी थी) समाचार था, लेकिन इतनी जल्दी यह सब कुछ हो जाएगा, यह मेरी कल्पना से परे था। आज रविवार था। मेरी छुट्टी थी, लेकिन मैं अपनी आदत के मुताबिक जल्दी उठ कर मॉर्निंग वाक में निकली थी। मैं रेखा के घर के पास से गुजर रही थी, तभी रेखा बेतरतीब हालत में बदहवास अपने गेट से बाहर निकली और मुझसे लिपट कर रोने लगी।

“अरे अरे क्या हुआ? रो क्यों रही हो?” मैं हकबका कर पूछ बैठी। मैंने देखा रास्ता सुनसान है। इतने तड़के वैसे भी सभी अपने घरों में दुबके रहते हैं।

“इस तरह रास्ते में नहीं रोते पगली। चल घर के अंदर और बता बात क्या है।” मैं उसे खींचते हुए घर के अंदर ले आई।

“क्या बताऊँ? बरबाद हो गयी मैं।” सोफे पर बैठते ही बोली।

“अरी हुआ क्या है, बताओ तो?”

“बेहद शर्मनाक।”

“ऐसा क्या हुआ?”

“कल रात…..”

“क्या हुआ रात में?”

“पंकज…..” रोती जा रही थी वह। दिल धड़क उठा मेरा। तो तो तो क्या वही हुआ जिसका अंदेशा था?

“क्या किया पंकज नेंं?”

“अपनी मां के साथ, छि:, बताने में भी शर्म आ रही है।”

“अरी बता तो।” मेरी जिज्ञासा चरम पर थी।

“लूट लिया हरामी नें, अपनी मां की इज्ज़त, मेरी इज्ज़त।” रोती जा रही थी।

“कककक्या?” मैं बनावटी आश्चर्य से बोल उठी।

“हां्आंआंआंआंआं, बरबाद कर दिया उसने मुझे।”

“अच्छा अच्छा अब चुप हो जा। समझ गयी मैं। अब जो हुआ सो तो हो गया। लेकिन यह सब हुआ कैसे?”

“उसकी जबर्दस्ती।”

“तूने विरोध नहीं किया?”

“किया, मगर तबतक देर हो चुकी थी।”

“क्या मतलब? मैं कुछ समझी नहीं।”

“अब क्या बताऊं? मैं नादानी में उसकी हरकतों को सामान्य मां बेटे का प्यार समझी थी। जबतक मैं उसकी असली नीयत समझ पाती, तबतक मैं बेबस हो चुकी थी।” उसका रोना अब बंद हो चुका था। उसे लग रहा था कि मैं पूरी हमदर्दी से उसकी बातें सुन रही हूं, किंतु सच्चाई यह थी कि मैं उत्सुक थी उसे चीर हरण की की कथा सुनने को। कैसे किया होगा पंकज नें यह सब?

“पंकज अभी है कहाँ?

“नाम न ले उस कलमुंहे का। कुल कलंक, रातभर मुझे नोच खसोट कर अब चैन से खर्राटे भर रहा है हरामी।”

“तू पूरी बात बता। कैसे हुआ यह सब?” मेरी उत्कंठा का पारावार न था।

“कैसे बताऊं ऐसी गंदी बात? बताने लायक अब बचा क्या है?” वह खुल कर नहीं बता रही थी।

“तू बताने में झिझक क्यों रही है?” मैं सुनने को उतावली हुई जा रही थी। “ठीक है, तू पहले सामान्य हो जा पहले, फिर बताना।”

“सामान्य कैसे हो जाऊं मैं?” झल्ला कर बोली वह।

“देख, अब मेरे सब्र का इम्तिहान न ले।” मैं भी तनिक झल्ला उठी।

“एक बेटे द्वारा मां की अस्मत लुटने की कल्पना मात्र से ही लोग छी छी थू थू करते हैं, ऐसी बात मैं खुल कर कैसे बता सकती हूं?”

“तो अब मुझ से सुन। मेरे बेटे क्षितिज के साथ हमबिस्तर होने में तुझे तो लाज नहीं आई? वह भी तो तेरे बेटे जैसा है। अब पंकज के साथ जब यह सब हुआ तो लगी मातम मनाने, साली लंडखोर।” अब मैं अपने पर उतर आई।

“क्या बोल रही हो? तनिक भी लज्जा है कि नहीं? अपने पैदा किये, कोखजाए बेटे में और क्षितिज में फर्क है कि नहीं?” वह गुस्से में बोली।
 
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