desiaks
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बताता हूं, बताता हूं। यह छ: महीने पहले की बात है।” अब उसनें अपनी हरकतें बंद कर दी थीं। मुझे तनिक राहत मिली, लेकिन वह अपनी बांयी हाथ से मेरी कमर पकड़ कर अब भी मुझे अपने से चिपकाए हुए था। इसपर मुझे कोई ऐतराज भी नहीं था। सांझ का झुटपुटा तनिक गहरा रहा था। एकांत भी था। इधर कोई आता जाता भी नहीं था। घर के अंदर तो सभी निश्चय ही व्यस्त होंगे, अतः मैं निश्चिंत उसकी बांह में सिमटी अपना सर उसके कंधे पर रख कर बैठी उसके विकराल लिंग को सहलाती जा रही थी। पंकज नें अपनी बात जारी रखी।
“””मैं प्लस टू के दूसरे साल में था। मेरे क्लास की लड़कियां मुझ पर आकर्षित थीं, लेकिन मैं सीधा सादा, पढ़ाकू किस्म का लड़का था, अतः उनपर ज्यादा ध्यान नहीं देता था। लड़कियों में एक, नैना नाम की लड़की तो मेरे पीछे ही पड़ गयी थी। वह सभी लड़कियों में ज्यादा स्मार्ट थी, बदमाश थी एक नंबर की। उमर भी हम लोगों से अधिक ही थी। पढ़ाई लिखाई में बाबाजी। दो बार एक ही क्लास में फेल हो चुकी थी। एकदम पकी पकाई जवान हो चुकी थी। खूबसूरत थी, भरा भरा गदराया बदन था उसका। एक दिन क्लास के बाद वह मेरे पीछे क्लास से निकली और मेरे पीछे पीछे चल पड़ी।
“पंकज, जरा रुक ना।” मैं रुका नहीं, और तेज चलने लगा। मैं लड़कियों के हॉस्टल को पार कर चुका था लेकिन वह अपने हॉस्टल में जाने की बजाए मेरे पीछे पीछे ही आ रही थी।
“अरे रुक ना।” मैं फिर भी रुका नहीं। उसने आगे बढ़ कर मेरा हाथ पकड़ लिया। करीब सौ मीटर आगे लड़कों का हॉस्टल है। जहां उसनें मेरा हाथ पकड़ा, वहां सड़क के बगल में ऊंची ऊंची घनी झाड़ियां थीं।
“सुना नहीं? मैं तुम्हीं से कह रही हूं।”
“छोड़ो मुझे।” मैंने उसका हाथ झटकने की कोशिश की, लेकिन उसकी पकड़ मजबूत थी। मैं जोर जबर्दस्ती नहीं करना चाहता था।
“नहीं छोड़ूंगी।” जिद पर आ गयी।
“छोड़ो नहीं तो ठीक नहीं होगा।” मैं गुस्से से बोला।
“तू मेरी बात नहीं सुनेगा तो ठीक नहीं होगा।”
“क्या करोगी तुम?”
“चिल्लाऊंगी।”
“क्या बोलोगी लोगों को?”
“यही कि पंकज मुझे छेड़ रहा है।” उसकी बात सुनकर मैं डर गया।
“बोलो, क्या बोलना है?”
“यहां नहीं, उधर चलो।” झाड़ियों की ओर इशारा कर रही थी। शाम का समय था। ठंढ के मौसम में पांच बजते बजते ही अंधेरा होने लगा था। मैं खिंचता चला गया। मुझे खींचते हुए झाड़ियों की बीच घुस गयी। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता, मैं झाड़ियों के उस पार था, नैना के साथ। नीचे हरी भरी घास थी। ऐसा लग रहा था मानो नैना वहां पहले भी कई बार आ चुकी है।
“यह कहाँ ले आई?”
“अरे आओ तो। आओ, बैठो यहां।”
“नहीं, जो बोलना है जल्दी बोलो। मुझे जाना है।”
“तू बैठ तो।” जबर्दस्ती खींच कर बैठने को मजबूर कर दी। मैं बेबसी में बैठने को मजबूर हो गया।
“बोलो, क्या बोलना है?”
“आई लव यू।” मुझ से लिपट कर बोली।
“हट, परे हट। यह क्या है?” मैं झल्ला कर बोला।
“यह प्यार है।” वह मुझे चूमने लगी।
“हट।” मैंने उसे झटक कर अलग कर दिया।
“चुपचाप पड़े रह, वरना मैं चिल्लाऊंगी।” वह धमकी देने लगी। मैं डर गया और चुपचाप बैठ गया। अब उसनें मेरा हाथ अपनी छाती पर रख दिया।
“देख क्या रहा है, दबा इसे।” उसनें हुक्म दिया। मैं डरते डरते उसकी कमीज के ऊपर से ही उसके बड़े बड़े सख्त चूचियों को धीरे धीरे दबाने लगा।
“आह, आह, अच्छा लग रहा है। ओह ओह।” कहते हुए उसनें मेरी जांघ सहलानी शुरू की। मेरे शरीर में सुरसुरी होने लगी। उसनें मेरा हाथ अपनी जांघ पर रख दिया और कहा, “सहलाओ मेरी जांघ को।” और मैं उसके सलवार के ऊपर से ही उसकी जांघ सहलाने लगा।
“और ऊपर।” उसनें कहा और मैं उसकी जांघों के और ऊपर सहलाने लगा।
“और ऊपर।” उसनें कहा और मैं और ऊपर सहलाने लगा। इस तरह धीरे धीरे मेरा हाथ उसकी जांघों के जोड़ तक पहुंच गया। जैसे ही मेरा हाथ वहां पहुंचा, वह मुझसे चिपक गयी। “आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह पंकज, ओह्ह्ह्ह्ह्ह रज्जा। हां हां ओह्ह्ह्ह्ह्ह, वहीं, वहीं, सहलाओ रज्जा।” मैंने अपनी उंगलियों पर गीलेपन का अहसास किया। उस वक्त मुझे पता नहीं था कि यह उसकी चूत से निकलता हुआ संभोगपूर्व लसीला पानी है। मुझे लगा था उसका पेशाब निकल रहा है। मुझे थोड़ी घिन हो रही थी, फिर भी सहलाता जा रहा था। मुझे अब उसकी चूचियां दबाना और चूत सहलाना अच्छा लग रहा था। इस दौरान उसका हाथ मेरे पैंट के ऊपर से ही मेरे लंड के ऊपर नाच रहा था। मेरे शरीर में खून की रफ्तार तेज हो गयी थी। मेरा लंड सख्त हो रहा था ओर मेरे जंघिया के अंदर मानो मेरे लंड का दम घुटने लगा। मैं बेचैन हो उठा। मन हो रहा था पैंट और जंघिया उतार फेंकूं, लेकिन शर्म के मारे ऐसा करने में झिझक रहा था।
“””मैं प्लस टू के दूसरे साल में था। मेरे क्लास की लड़कियां मुझ पर आकर्षित थीं, लेकिन मैं सीधा सादा, पढ़ाकू किस्म का लड़का था, अतः उनपर ज्यादा ध्यान नहीं देता था। लड़कियों में एक, नैना नाम की लड़की तो मेरे पीछे ही पड़ गयी थी। वह सभी लड़कियों में ज्यादा स्मार्ट थी, बदमाश थी एक नंबर की। उमर भी हम लोगों से अधिक ही थी। पढ़ाई लिखाई में बाबाजी। दो बार एक ही क्लास में फेल हो चुकी थी। एकदम पकी पकाई जवान हो चुकी थी। खूबसूरत थी, भरा भरा गदराया बदन था उसका। एक दिन क्लास के बाद वह मेरे पीछे क्लास से निकली और मेरे पीछे पीछे चल पड़ी।
“पंकज, जरा रुक ना।” मैं रुका नहीं, और तेज चलने लगा। मैं लड़कियों के हॉस्टल को पार कर चुका था लेकिन वह अपने हॉस्टल में जाने की बजाए मेरे पीछे पीछे ही आ रही थी।
“अरे रुक ना।” मैं फिर भी रुका नहीं। उसने आगे बढ़ कर मेरा हाथ पकड़ लिया। करीब सौ मीटर आगे लड़कों का हॉस्टल है। जहां उसनें मेरा हाथ पकड़ा, वहां सड़क के बगल में ऊंची ऊंची घनी झाड़ियां थीं।
“सुना नहीं? मैं तुम्हीं से कह रही हूं।”
“छोड़ो मुझे।” मैंने उसका हाथ झटकने की कोशिश की, लेकिन उसकी पकड़ मजबूत थी। मैं जोर जबर्दस्ती नहीं करना चाहता था।
“नहीं छोड़ूंगी।” जिद पर आ गयी।
“छोड़ो नहीं तो ठीक नहीं होगा।” मैं गुस्से से बोला।
“तू मेरी बात नहीं सुनेगा तो ठीक नहीं होगा।”
“क्या करोगी तुम?”
“चिल्लाऊंगी।”
“क्या बोलोगी लोगों को?”
“यही कि पंकज मुझे छेड़ रहा है।” उसकी बात सुनकर मैं डर गया।
“बोलो, क्या बोलना है?”
“यहां नहीं, उधर चलो।” झाड़ियों की ओर इशारा कर रही थी। शाम का समय था। ठंढ के मौसम में पांच बजते बजते ही अंधेरा होने लगा था। मैं खिंचता चला गया। मुझे खींचते हुए झाड़ियों की बीच घुस गयी। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता, मैं झाड़ियों के उस पार था, नैना के साथ। नीचे हरी भरी घास थी। ऐसा लग रहा था मानो नैना वहां पहले भी कई बार आ चुकी है।
“यह कहाँ ले आई?”
“अरे आओ तो। आओ, बैठो यहां।”
“नहीं, जो बोलना है जल्दी बोलो। मुझे जाना है।”
“तू बैठ तो।” जबर्दस्ती खींच कर बैठने को मजबूर कर दी। मैं बेबसी में बैठने को मजबूर हो गया।
“बोलो, क्या बोलना है?”
“आई लव यू।” मुझ से लिपट कर बोली।
“हट, परे हट। यह क्या है?” मैं झल्ला कर बोला।
“यह प्यार है।” वह मुझे चूमने लगी।
“हट।” मैंने उसे झटक कर अलग कर दिया।
“चुपचाप पड़े रह, वरना मैं चिल्लाऊंगी।” वह धमकी देने लगी। मैं डर गया और चुपचाप बैठ गया। अब उसनें मेरा हाथ अपनी छाती पर रख दिया।
“देख क्या रहा है, दबा इसे।” उसनें हुक्म दिया। मैं डरते डरते उसकी कमीज के ऊपर से ही उसके बड़े बड़े सख्त चूचियों को धीरे धीरे दबाने लगा।
“आह, आह, अच्छा लग रहा है। ओह ओह।” कहते हुए उसनें मेरी जांघ सहलानी शुरू की। मेरे शरीर में सुरसुरी होने लगी। उसनें मेरा हाथ अपनी जांघ पर रख दिया और कहा, “सहलाओ मेरी जांघ को।” और मैं उसके सलवार के ऊपर से ही उसकी जांघ सहलाने लगा।
“और ऊपर।” उसनें कहा और मैं उसकी जांघों के और ऊपर सहलाने लगा।
“और ऊपर।” उसनें कहा और मैं और ऊपर सहलाने लगा। इस तरह धीरे धीरे मेरा हाथ उसकी जांघों के जोड़ तक पहुंच गया। जैसे ही मेरा हाथ वहां पहुंचा, वह मुझसे चिपक गयी। “आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह पंकज, ओह्ह्ह्ह्ह्ह रज्जा। हां हां ओह्ह्ह्ह्ह्ह, वहीं, वहीं, सहलाओ रज्जा।” मैंने अपनी उंगलियों पर गीलेपन का अहसास किया। उस वक्त मुझे पता नहीं था कि यह उसकी चूत से निकलता हुआ संभोगपूर्व लसीला पानी है। मुझे लगा था उसका पेशाब निकल रहा है। मुझे थोड़ी घिन हो रही थी, फिर भी सहलाता जा रहा था। मुझे अब उसकी चूचियां दबाना और चूत सहलाना अच्छा लग रहा था। इस दौरान उसका हाथ मेरे पैंट के ऊपर से ही मेरे लंड के ऊपर नाच रहा था। मेरे शरीर में खून की रफ्तार तेज हो गयी थी। मेरा लंड सख्त हो रहा था ओर मेरे जंघिया के अंदर मानो मेरे लंड का दम घुटने लगा। मैं बेचैन हो उठा। मन हो रहा था पैंट और जंघिया उतार फेंकूं, लेकिन शर्म के मारे ऐसा करने में झिझक रहा था।