desiaks
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“ठीक है हमें मंजूर है” रूपचंद जी ने कहा, फिर मेरी ओर अर्थपूर्ण नजरों से देखते हुए कहा, “योजना की अंतिम रूपरेखा के बारे में हमें विश्वास है कि आप जो भी तैयार करेंगे वह बढ़िया ही होगा लेकिन आज आप का जो मोटा मोटी प्रारूप तैयार होगा वह कामिनी के हाथों होटल राज में भेज दीजिएगा। हम वहीं देख भी लेंगे और समझ भी लेंगे।”
“Will you get some time to do this Kamini? You can explain better. (क्या तुम समय निकाल कर यह काम कर दोगी कामिनी? तुम अच्छी तरह समझा सकती हो)” बॉस ने मुझसे पूछा।
“It’s ok sir” मैं बोली। हालांकि मुझे आभास था कि मेेेरे साथ क्या होने वाला है लेकिन ऋतेश के सम्मोहन में बंधी हां कर बैठी। शाम को पूर्व निर्धारित समय के अनुसार 6:00 बजे मैं ने, हमारी मीटिंग में हमने जो निर्णय किया था, उसकी फाईल ले कर होटल राज के कमरा नं 5 (जैसा कि उन्होंने बताया था) के दरवाजे पर दस्तक दी। तुरंत ही दरवाजा खुला और ऋतेश ने, जो कि पजामे और कुर्ते में था, मुझे देखकर अर्थपूर्ण मुस्कुराहट के साथ मेरा स्वागत किया और सामने सोफे की ओर इंगित करते हुए बैठने का आग्रह किया। उसकी भेदती नजरों ने मेेेरे दिल की धड़कन बढ़ा दी। मैं धड़कते दिल के साथ सोफे पर बैठ गई। कमरे में मुझे ऋतेश अकेला ही दिखा। मेेेरे अंदर आते ही ऋतेश ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। अभी मैं सोफे पर बैठी ही थी कि ऋतेश भी आ कर मेेेरे बगल में बैठ गया और मेरे हाथों से फाईल ले कर देखने लगा। मैं योजना की रूपरेखा के बारे में बताती गई जिसे ऋतेश सुनता जा रहा था और बीच बीच में सवाल भी करता जा रहा था। मैं उसके हरेक सवाल का जवाब देती गई और अंततः ऋतेश संतुष्ट हुआ। इतने में दरवाजे पर दस्तक हुई और दरवाजा खुलने पर रूपचंद जी का चौखटा नजर आया।
“ऋतेश, तूने सब कुछ देख लिया ना?” आते ही रूपचंद जी ने सवाल किया।
“हां सर, वैसे तो इनकी योजना काफी प्रभावशाली है, देखते हैं योजना की अंतिम रूपरेखा क्या होती है।” ऋतेश ने कहा।
“अंतिम रूपरेखा कैसी होगी वह बाद की बात है। फिलहाल तो हमें इसकी रूपरेखा ही दिखा दे।” अभी रूपचंद जी की बात खत्म हुई ही थी कि ऋतेश बिना किसी पूर्वाभास दिए ही मुझे अपनी बांहों में दबोच लिया और मुझ पर चुंबनों की झड़ी लगाने लगा, बिल्कुल मशीनी अंदाज में। मैं इस आकस्मिक हमले के लिए तैयार नहीं थी। उसके मजबूत बांहों में कैद हो कर रह गई और छटपटाने लगी।
“छोड़ो मुझे छोड़ो, यह क्या करते हो?” मैं छटपटते हुए बोली।
“छोड़ देंगे मेरी जान, लेकिन पहले तेरी रूपरेखा तो देख लें। रूपरेखा देखने के बाद तेरी जवानी का रस भी चख लें। देखें तो तू हमें खुश कर सकती है कि नहीं।” कहते हुए रूपचंद जी का भोंड़ा चेहरा और भी वीभत्स हो उठा।
“देखिए मैं उस तरह की औरत नहीं हूं। प्लीज मुझे छोड़ दीजिए।” अंदर ही अंदर ऋतेश की बांहों में पिघलती हुई मेरा विरोध जारी रहा।
“बंद कर अपनी बकवास। हमें खूब पता है तू किस किस्म की औरत है। ऑफिस में ही हमने तेरी हालत देख ली थी साली छिनाल। खुशी खुशी मान जा वरना वैसे भी तू यहां से बिना चुदे तो जाने से रही।” रूपचंद जी अब खुंखार हो उठे थे। ऋतेश तो लगा हुआ था मुझे हर तरह से उत्तेजित करने के लिए। वह मुझे चूमते हुए ब्लाऊज के ऊपर से ही मेरे उरोजों को मसलना चालू कर दिया था।
आगे की घटना अगली कड़ी में।
तबतक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए।
“Will you get some time to do this Kamini? You can explain better. (क्या तुम समय निकाल कर यह काम कर दोगी कामिनी? तुम अच्छी तरह समझा सकती हो)” बॉस ने मुझसे पूछा।
“It’s ok sir” मैं बोली। हालांकि मुझे आभास था कि मेेेरे साथ क्या होने वाला है लेकिन ऋतेश के सम्मोहन में बंधी हां कर बैठी। शाम को पूर्व निर्धारित समय के अनुसार 6:00 बजे मैं ने, हमारी मीटिंग में हमने जो निर्णय किया था, उसकी फाईल ले कर होटल राज के कमरा नं 5 (जैसा कि उन्होंने बताया था) के दरवाजे पर दस्तक दी। तुरंत ही दरवाजा खुला और ऋतेश ने, जो कि पजामे और कुर्ते में था, मुझे देखकर अर्थपूर्ण मुस्कुराहट के साथ मेरा स्वागत किया और सामने सोफे की ओर इंगित करते हुए बैठने का आग्रह किया। उसकी भेदती नजरों ने मेेेरे दिल की धड़कन बढ़ा दी। मैं धड़कते दिल के साथ सोफे पर बैठ गई। कमरे में मुझे ऋतेश अकेला ही दिखा। मेेेरे अंदर आते ही ऋतेश ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। अभी मैं सोफे पर बैठी ही थी कि ऋतेश भी आ कर मेेेरे बगल में बैठ गया और मेरे हाथों से फाईल ले कर देखने लगा। मैं योजना की रूपरेखा के बारे में बताती गई जिसे ऋतेश सुनता जा रहा था और बीच बीच में सवाल भी करता जा रहा था। मैं उसके हरेक सवाल का जवाब देती गई और अंततः ऋतेश संतुष्ट हुआ। इतने में दरवाजे पर दस्तक हुई और दरवाजा खुलने पर रूपचंद जी का चौखटा नजर आया।
“ऋतेश, तूने सब कुछ देख लिया ना?” आते ही रूपचंद जी ने सवाल किया।
“हां सर, वैसे तो इनकी योजना काफी प्रभावशाली है, देखते हैं योजना की अंतिम रूपरेखा क्या होती है।” ऋतेश ने कहा।
“अंतिम रूपरेखा कैसी होगी वह बाद की बात है। फिलहाल तो हमें इसकी रूपरेखा ही दिखा दे।” अभी रूपचंद जी की बात खत्म हुई ही थी कि ऋतेश बिना किसी पूर्वाभास दिए ही मुझे अपनी बांहों में दबोच लिया और मुझ पर चुंबनों की झड़ी लगाने लगा, बिल्कुल मशीनी अंदाज में। मैं इस आकस्मिक हमले के लिए तैयार नहीं थी। उसके मजबूत बांहों में कैद हो कर रह गई और छटपटाने लगी।
“छोड़ो मुझे छोड़ो, यह क्या करते हो?” मैं छटपटते हुए बोली।
“छोड़ देंगे मेरी जान, लेकिन पहले तेरी रूपरेखा तो देख लें। रूपरेखा देखने के बाद तेरी जवानी का रस भी चख लें। देखें तो तू हमें खुश कर सकती है कि नहीं।” कहते हुए रूपचंद जी का भोंड़ा चेहरा और भी वीभत्स हो उठा।
“देखिए मैं उस तरह की औरत नहीं हूं। प्लीज मुझे छोड़ दीजिए।” अंदर ही अंदर ऋतेश की बांहों में पिघलती हुई मेरा विरोध जारी रहा।
“बंद कर अपनी बकवास। हमें खूब पता है तू किस किस्म की औरत है। ऑफिस में ही हमने तेरी हालत देख ली थी साली छिनाल। खुशी खुशी मान जा वरना वैसे भी तू यहां से बिना चुदे तो जाने से रही।” रूपचंद जी अब खुंखार हो उठे थे। ऋतेश तो लगा हुआ था मुझे हर तरह से उत्तेजित करने के लिए। वह मुझे चूमते हुए ब्लाऊज के ऊपर से ही मेरे उरोजों को मसलना चालू कर दिया था।
आगे की घटना अगली कड़ी में।
तबतक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए।