Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा - Page 14 - SexBaba
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Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा

17328730.gif “वाह रानी, मजा आ गया। कमाल की चुदक्कड़ हो।अब जब भी हमें चोदने का मन करेगा, हम रांची आ जाएंगे। बिजनेस तो होता ही रहेगा, मगर तुम्हारे साथ बिजनेस का मजा ही कुछ और है।” कहकर रूपचंद जी ने मुझे बांहों में भर के चूम लिया।

“सही कहा भाई, ऐसी लौंडिया बड़े नसीब वालों को ही नसीब होती है। अब तो हमें बार बार रांची आना पड़ेगा। कमाल की गांड़, कमाल की चूचियां। गजब हो तुम मेरी रानी।” ज्ञान चंद बोला और मेरे नितंबों और चूचियों को सहला दिया।

“हाय मेरे प्यारे चोदुओ, आज आपलोगों ने पहली बार चुदाई का ऐसा सुख दिया है जिसे मैं जीवन भर नहीं भूल पाऊंगी। जब मर्जी चले आईएगा, मैं आप लोगों के लिए हमेशा उपलब्ध रहुंगी।” कहकर मैंने बारी बारी से उन दोनों को चूम लिया। ऋतेश को तो मैं क्या कहूं, चलो उसके आकर्षण में बंधी इन दोनों चुदक्कड़ों के जाल में फंसी और यादगार संभोग का सुख प्राप्त किया, इसलिए उस हिजड़े को भी शुक्रिया अदा किया। फिर करीब ग्यारह बजे रात को मैं वहां से निकली अपने घर की ओर। ठीक से चल भी नहीं पा रही थी। मेरी चाल देख कर दोनों चुदक्कड़ मुस्कुरा रहे थे। मैं खिसियानी सी मुस्कान के साथ वहां से रुखसत हुई। दूसरे ही दिन सवेरे ऑफिस खुलते ही रूपचंद जी फिर आ धमके। मेरी हालत वैसे ही बेहद खराब हो चुकी थी। पूरा बदन टूट रहा था, लेकिन फिर भी बीती रात को जो कुछ हुआ था उसकी मीठी मीठी कसक पूरे बदन में तारी थी। रूपचंद जी वही पूर्व परिचित लार टपकाती नजरों से मुझे देखते हुए मुस्कुरा रहे थे। मैं ने भी व्यवसायिक मुस्कुराहट के साथ उनका स्वागत किया। एक हफ्ते की बात तो छोड़िए, बॉस के आते ही उसी वक्त हमारा डील फाईनल हो गया। बॉस की खुशी का ठिकाना नहीं था। उन्होंने मुझे बधाई दी और साथ ही एक सरप्राईज गिफ्ट, एक प्रोमोशन के रूप में। वाह, मेरी तो निकल पड़ी थी। हां, एक बात और, जाते जाते रूपचंद जी ने वापस लौटने से पहले मुझसे मिलने की इच्छा जताई उसी होटल में। हालांकि मैं पिछली रात की नोच खसोट और धींगा मुश्ती से मेरी हालत कोई अच्छी नहीं थी, किंतु उनका आमंत्रण अस्वीकार नहीं कर पाई। नतीजा वही, फिर पिछली रात की तरह कामुकता के एक और तूफानी दौर से मुझे गुजरना पड़ा। इस बार शुरू में ही उन्होंने मुझे व्हिस्की का एक पैग पिला दिया और जी भर के मनमाने ढंग से मेरे शरीर से खेला। चुदाई के एक दौर के पश्चात फिर दूसरा पैग पिलाया और बड़े ही गंदे तरीक़े से मेरे जिस्म को भोगा। मुझे नशे की हालत में उठा कर बाथरूम ले गए और जबतक मैं कुछ समझ पाती, बाथरूम के फर्श पर ही लिटा कर रूपचंद जी और ज्ञानचंद मेरे ऊपर छरछराकर मूतने लगे। उनके गरमागरम मूत्र से मैं पूरी तरह भीग गई थी। मैं विरोध करना चाह रही थी लेकिन पता नहीं क्यों मुझे भी यह सब अच्छा लग रहा था। यह भी काफी उत्तेजक था मेरे लिए। शायद नशा का भी असर रहा हो। मेरी उसी अवस्था में मूत्र से भीगे शरीर के साथ ही उन्होंने मनमाफिक ढंग से अपनी कुत्सित कामेच्छा शांत की। क्या नहीं किया उन्होंने। लंड चुसवाया, अंडकोश चटवाया, गांड़ चटवाया, लंड हाथ में थमा कर मूठ मरवाया, मेरी कांख में लंड डाल कर चोदा, जांघों को सटा कर जांघों के बीच चोदा, चूची चोदा, चूत की कुटाई की, गांड़ की कुटाई की, हर संभव तरीक़े से मेरे शरीर का भरपूर इस्तेमाल किया। करीब चार घंटे तक यह निहायत ही घिनौने तरीक़े का वासना का तांडव होता रहा। उफ पता नहीं क्या हो गया था मुझे भी। पागलों की तरह उनकी हर क्रिया में सहयोग करती गई। वे तो खुश हुए ही, मेेेरे जीवन में भी खुशी का एक नया मार्ग दिखा दिया उन हरामियों ने। नहा धोकर जब मैं वहां से निकलना चाह रही थी, मेरे कदम साथ देने से इन्कार करने लगे। मजबूरन मैं रात भर वहीं रुकी रही, रात भर चुदते रहने के लिए। गनीमत थी कि बीच बीच में ऋतेश भी अपनी गांड़ प्रस्तुत कर देता था। सवेरे तक मैं चलने फिरने लायक भी नहीं रही थी। किसी तरह मुझे सहारा दे कर उन्होंने घर तक अपनी गाड़ी में छोडा़ और टाटा निकल गए। दो दिन तक मेरी हालत खराब थी।

कहानी जारी रहेगी
 
अबतक की कहानियों से आपलोगों को पता चल ही गया होगा कि आज जो मेरी स्थिति है और आज तक मेरे साथ जो कुछ भी हो रहा था, उन सब में शुरुआती दौर से मेरे अपने ही निज कामुक बुजुर्गों द्वारा मेरी नादानी का लाभ उठाने से लेकर परिस्थितियां तथा मेरी नादान उत्कंठा का जितना हाथ था उतना ही हाथ बाद में मेरी खुद की वासना की अदम्य भूख का भी था। मेेेरे बुजुर्गों ने मेरी नादानी का फायदा उठाया अपनी वासना की भूख मिटाने के लिए और उन्होंने कमसिन उम्र में ही मुझे एक कली से फूल बना दिया था, उस पर तुर्रा यह कि अपने अंदर के अपराधबोध को छुपाने के लिए मुझे तथाकथित तौर पर अपनी सामुहिक पत्नी भी बना लिया था। उन्होंने मेरे अंदर वासना की जो आग भर दी थी उसके कारण मैं अपना भला बुरा सबकुछ भूल कर उनकी कठपुतली बन इठलाती रही। मैं नादान उनकी द्रौपदी बन कर उनकी कामक्रीड़ा को उनका प्यार समझती रही और अपना पत्नी धर्म पूरी निष्ठा से निभाया भी, किंतु मेरे गर्भवती होते ही समाज के भय से उन्होंने मुझे एक सीधे सादे क्लर्क के पल्ले बांध दिया। उसके पश्चात भी हमारा अनैतिक संबंध जारी था। सामाजिक रूप से जायज अल्प वैवाहिक संबंध के दौरान मैंने एक स्वस्थ पुत्र रत्न को जन्म दिया जो कि आज बत्तीस साल का गबरू जवान बन चुका है, जिसका नाम है क्षितिज, प्यार से हम उसे क्षितु बुलाते हैं। साढ़े छ: फुट लंबा, खूबसूरत, हट्ठा कट्ठा, एम बी ए करके एक प्रतिष्ठित बैंक में प्रबंधक के पद पर कार्यरत है। पता नहीं किसके (हब्शी बॉस, हरिया, करीम, नानाजी, दादाजी, बड़े दादाजी या पंडित जी, या फिर उन सबके मिश्रित) वीर्य की उपज है वह। गेहुंआ रंग, सुतवां नाक, लंबोतरा चेहरा, घने घुंघराले बाल। मेेेरे पति की अकाल मृत्यु के पश्चात ससुराल से अलग रहकर भी नौकरी ज्वॉईन करके ससुराल का पूरा ख्याल रखा। बेटे की परवरिश मेंं कोई कोताही नहीं बरती। एक एक करके नानाजी, दादाजी और बड़े दादाजी का स्वर्गवास हुआ और उधर मेरे सास ससुर के वृद्धावस्था का ख्याल रखने के लिए एक नौकरानी को रखना पड़ा। क्षितिज की पोस्टिंग कलकत्ता में हो गई इसलिए वह हर शनिवार आ जाता और फिर रविवार शाम को वापस चला जाता है। शादी विवाह की बात से ही दूर भागता है, इसलिए अभी तक अविवाहित है। उसका स्वभाव बिल्कुल मेरे तथाकथित पतियों की तरह ही है, एक नंबर का सेक्सी, आजाद ख्याल। हां उसकी रुचि सिर्फ बड़ी उम्र की महिलाओं पर ही है, जिससे मैं भी अछूती नहीं हूं। उसके बारे में मैं बाद में बताऊंगी, फिलहाल मैं बता रही थी कि नौकरी ज्वॉईन करने के बाद मैं ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। सफलता की सीढ़ियां फलांगती हुई रांची शाखा की प्रबंधक बन गई। हब्शी बॉस रिटायर हो कर स्वदेश अमेरिका लौट गये। जबतक मेेेरे तथाकथित बुजुर्ग पतियों की क्षमता थी, मुझे जी भर कर भोगा और जाने अनजाने मैं कामवासना की दीवानी बन गई। मेरी अंदर कामुकता कूट कूट कर समा गयी थी। ऐसा लगता था मानो मेरे अंदर वासना का ज्वालामुखी धधक रहा हो। नौकरी करते करते मैं कई लोगों, ऑफिस स्टाफ से लेकर क्लाईंट्स मिलती रही और जितने भी कामलोलुप पुरुष मिले, उनके बिस्तर गरम करने में कोई हिचक नहीं हुई। जिनकी अंकशायिनी बनी उनमें 95% पुरुष बुजुर्गों की श्रेणी के थे, बाकी 5% युवा थे। अपनी वासना की आग बुझाने के लिए मैं किसी भी हद तक जा सकती थी। मुझमें अब तक इतना आत्मविश्वास आ चुका था कि कामक्रीड़ा के किसी भी स्वरूप का लुत्फ उठाने में मुझे कोई परेशानी नहीं होती थी। हां, मेरा नाटक, नखरा बदस्तूर जारी था ताकि कोई मुझे सस्ती औरत न समझे। मेरे साथ जो कुछ होता था या जो कुछ होने देती थी, उसपर मेरा पूरा नियंत्रण रहता था। मेरी इच्छा के विरुद्ध जब भी किसी ने जबर्दस्ती करने की जुर्रत की, उन्हें अच्छी तरह से सबक सिखाने का माद्दा भी था मुझमें और कुछ ऐसे अवसरों पर इसका प्रदर्शन भी किया था।
 
उदाहरण के तौर पर मैं पहले भी एक घटना का जिक्र कर चुकी हूं जब पार्क में मेरे बूढ़े आशिकों और मेरे साथ कुछ गुंडों ने बद्तमीजी की थी, जिनकी अच्छी खासी पिटाई की थी मैं ने। उसके बाद अगर आप लोगों को याद होगा, कि एक बार एक सरदार जी ने जब मुझे ब्लैकमेल करके अपने बॉस (जो बाद में मेरा बॉस बना) के सामने परोस दिया था फिर मुझसे मनमानी करनी चाही थी, तब मैं ने कैसे उसकी दुर्दशा की थी। उसी की अगली कड़ी में अब मैं एक और घटना का जिक्र करना चहती हूं। यह आज से करीब दस साल पहले की घटना है, जब मैं यहां नौकरी कर रही थी। उस दिन ऑफिस में काफी काम था और मैं काफी थकान महसूस कर रही थी। मुझे पता नहीं उस समय क्यों थकान मिटाने के लिए पुरुष संसर्ग की बड़ी तलब महसूस हो रही थी। मुझे चाची की बताई हुई घटना याद आ गई, कि किस तरह एक ऑटो वाले कालीचरण ने नामकुम के पास ही झाड़ियों के पीछे ले जा कर चाची का बलात्कार किया था और फिर उसके साथी मंगू के साथ कालीचरण के घर में सामूहिक संभोग। मेरे जेहन में बिजली सी कौंध उठी। मैं जानबूझकर फिरायालाल चौक के ऑटो स्टैंड में गई और कोई ऐसा ही मर्द तलाश करने लगी। चौक के पास ऑटो स्टैंड मेंं मेरी नजर एक ऑटो वाले पर मेरी नजर टिक गई। ऑटो वाला करीब पैंतालीस साल का एक अधेड़ व्यक्ति था। शक्ल सूरत में कोई खास नहीं था, काला रंग, बिना शेव किए हुए बेतरतीब दाढ़ी मूछ, घने घुंघराले अधपके बाल बिखरे हुए, मोटी भौंहें और हल्की लाल आंखें। हल्का पेट निकला हुआ, ऊंची कद काठी का गठीले शरीर वाला आदमी था। मेरी समझ से शरीफ आदमी तो बिल्कुल ही नहीं था और मुझे ऐसे ही आदमी की तलाश भी थी। मटमैले कुर्ते और पैजामे में था। वह भी शायद मुझे पहले से ही घूर रहा था। उसकी आंखों में मैंने अपने लिए अव्यक्त भूख पढ़ ली थी। थोड़ा अटपटा सा आदमी था किंतु मुझे जंच गया। मैं सीधे उसके ऑटो के पास गई और बोली, “रामपुर चलोगे?”

“रामपुर तो हियां से काफी दूर है मैडम, लौटने में हमको बहुत रात हो जाएगा, कोई सवारी भी नहीं मिलेगा, खाली वापस आना पड़ेगा।” बोलते हुए मुझे अपनी नजरों से तौल भी रहा था और मेरे इसरार की आशा भी कर रहा था।
 
“तुम सीधे सीधे भाड़ा बोलो, कितना लोगे।”

“जी तीन सौ रुपये।”

“ठीक है चलो”, कहकर मैं ऑटो में बैठ गई। उसकी आंखों से ऐसा लग रहा था कि उसने पिया हुआ है। जैसे ही ऑटो वहां से चली, मेरे दिमाग में उसे फांसने की योजना बड़ी तेजी से चलने लगी। मैं जानती थी कि मेरे लिए उसके मन में किस प्रकार की भावना थी, लेकिन मैं अपनी ओर से उसे खुल कर आमंत्रण नहीं देना चाहती थी। मैं उसे ललचा कर खुद पर आक्रमण करने के लिए उत्तेजित करना चाहती थी। उसने ऑटो का रीयर व्यू आईना इस प्रकार रखा था कि मुझे अच्छी तरह देख सके। गर्मी का मौसम था मगर उतनी गर्मी नहीं थी, फिर भी मैंं बोली, “उफ्फ्फ कितनी गर्मी है” कहते हुए मैंने अपने कुर्ते के ऊपरी तीन बटन खोल दिए, परिणामस्वरूप मेरे सीने के उभार आधे नग्न हो कर बाहर झांकने लगे। अब ऑटो चलाते चलाते उसकी नजरें बार बार मेरे सीने के उभारों पर आ कर टिक जाती थीं। उसकी आंखों में वासना की भूख मैं अच्छी तरह पढ़ पा रही थी। उसकी आंखों में एक शिकारी की तरह चमक आ गई थी। वह ड्राईविंग सीट पर बैठे बैठे कसमसा रहा था। मैं सब समझ रही थी। उसके अंदर की वासना की चिंगारी को मैं और हवा देना चाहती थी। मैंने महसूस किया कि खाली सड़क पर भी ऑटो चलाने की उसकी रफ्तार काफी कम थी, शायद पंद्रह से बीस कि. मी. की रफ्तार से चला रहा था वह। सामलोंग पहुंचने में ही हमें आधा घंटा से ऊपर लगा। अभी यहां से नामकुम फिर रामपुर करीब पांच कि. मी. और था। नामकुम पार करते समय मैं ने अपने एक हाथ से कुर्ते के ऊपर खुले हिस्से को थोड़ा और खोल दिया और दूसरे हाथ से रुमाल पकड़ कर हवा करती हुई ऑटो वाले का ध्यान आकर्षित करने हेतु बोली, “बाप रे कितनी गरमी है आज।” ऑटो वाले के लिए अब और बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया। जैसे ही नामकुम पार करके सुनसान सड़क पर पहुंचे, अचानक ही ऑटो बांयी ओर मुड़ा और घनी झाड़ियों को चीरता हुआ दूसरी ओर निकल गया। उस सुनसान स्थान में चारों ओर घनी झाड़ियां थीं और जहां ऑटो रुका हुआ था वहाँ करीब बीस फीट के दायरे में सपाट जमीन पर घास बिछा हुआ था। चांदनी रात में सब कुछ स्पष्ट देख सकती थी मैं। उस वक्त रात का आठ बज रहा था।
 
“यह कहां ले आए तुम मुझे?” मैं घबराने का अभिनय करती हुई बोली। मगर उसने कोई उत्तर नहीं दिया। तुरंत ऑटो से बाहर निकल कर मेरी ओर बढ़ा और बिना कुछ बोले हुए मुझे खींच कर बाहर निकाला।

“तुम कुछ बोलते क्यों नहीं, यहां क्यों ले कर आए हो मुझे?” मैं डरती हुई ऑटो से बाहर खिंची चली आई, खुले आसमान के नीचे।

“अभी बताते हैं, हियां काहे लाए हैं तुमको” बेहद वहशियाना अंदाज मे वह बोला। उसके मुह से शराब की बू आ रही थी। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, उस आदमी ने मुझे उस घसियाले जमीन पर पटक दिया और मुझ पर चढ़ गया। काफी ताकतवर था वह।

“छोड़ो मुझे। यह क्या कर रहे हो मेरे साथ? चिल्लाऊंगी मैं।” मैं घबराई आवाज में बोली।

“चिल्लाएगी? चिल्ला, जोर जोर से चिल्ला। पहली बात, यहां तेरी आवाज सुन कर अगर कोई आएगा नहीं। अगर कोई आएगा भी तो वह भी उसी काम से आएगा जो अभी हम करने जा रहे हैं।” इतना कह कर उसने मेरी कुर्ती को ऊपर उठा दिया और मेरे ब्रा के ऊपर से ही मेरी बड़ी बड़ी चूचियों को दोनों हाथों से दबाने लगा। फिर एक झटके में ब्रा को नोच कर मेरे उरोजों पर से आवरण हटा दिया।

“आह्ह्ह्ह्ह, छोड़िए प्लीज, ओह्ह्ह्ह मां, मत करो ना मेरे साथ यह सब। हाय, मैं शरीफ औरत हूँ। छोड़ो मुझे।” मैं विरोध का नाटक करने लगी। अपने आप को अबला, असहाय और कमजोर औरत दिखाने लगी।

“छोड़ देंगे मैडम, आधा एक घंटे बाद। आपको देख कर और आपकी सुंदरता देख कर मेरा मन डोल गया है। आपकी चूचियां बड़ी मस्त हैं। आपने दिखाया और देखिए मेरा लौड़ा कैसे उठक बैठक करने लगा। जबतक यह शांत नहीं होगा, कैसे छोड़ दें।” कहते हुए अपना पैजामा खोल फेंका। अंदर अंडरवीयर भी नहीं पहना था उसने। काला तना हुआ, सात इंच का बेहद मोटा लिंग मेरे सामने फनफना रहा था। मैं इतने मस्त लिंग को देखकर अंदर तक गनगना उठी।

“हाय राम, जंगली कहीं के, शर्म नहीं आती। छोड़िए मुझे, बरबाद ना कीजिए मुझे।” मैं गिड़गिड़ाते हुए रोनी सी आवाज में बोली।
 
“देखो मैडम, आप ने ऑटो में बैठकर अपनी चूचियां दिखा कर खुद ललचाया है। मेरा लौड़ा मेरे वश में नहीं है। अब हम इसको कैसे रोकें। आपको चोदे बिना मानेगा नहीं, इसलिए चुपचाप चोदने दे। वैसे भी आपके जैसी औरत हमारी किस्मत में कहां। आज तो ऐसी सुंदर औरत हाथ लगी है।” कहते कहते मेरी इलास्टिक वाले ढीली पैजामी को एक झटके में मेरी पैंटी समेत नीचे खींच लिया। अब मेेेरे नीचे का हिस्सा बिल्कुल नंगा था जो चांदनी रात में चमक रहा था।

“हाय राम, मुझे छोड़ दो । छि: छि: कैसी गंदी बात कर रहे हो। मुझे जाने दो प्लीज।” मैं अपनी योनी को अपने हाथों से ढंकने की असफल कोशिश करती रही। लेकिन अब उस ऑटो वाले को रोक पाना असंभव था, मैं रोकना चाहती भी नहीं थी। मेरी दपदपाती चांदनी रात मे चमकती योनी का दर्शन करने के बाद तो वह पागल ही हो गया। एक झटके में मेरे नीचे के कपड़े को पैरों से निकाल फेंका। इससे पहले कि मैं कुछ कहती, वह मुझ पर सवारी गांठ चुका था। मेरे दोनों पैरों को जबरदस्ती फैला कर अपने लिंग का सुपाड़ा मेरी योनी छिद्र के ऊपर रख कर एक ही भीषण प्रहार से सड़ाक से पूरा लिंग उतार दिया।

“ओह्ह्ह्ह मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ,” मैं चीख पड़ी। दर असल मैं चीखने में मजबूर हो गई थी, चूंकि उसने बड़ी ही बेरहमी और जल्दबाजी में यह सब किया था। सच में उसका यह कृत्य पीड़ादायक था। मेरे गोल गोल सख्त उरोजों के ऊपर खड़े निप्पल्स को देखकर उसकी हैवानियत और बढ़ गई थी। अपने मुह में भर कर दांत गड़ा दिया।

“आह्ह्ह्ह्ह, मार डाला रे हरामी” मैं फिर चीखी। लेकिन उस पर तो भूत सवार हो चुका था। इधर मेरी चूचियों पर अपनी हैवानियत का निशान छोड़ता जा रहा था और उधर दनादन मेरी योनी में अपने मोटे लिंग का आक्रमण पर अक्रमण किये जा रहा था। मेरी चीख पुकार का उसपर कोई असर नहीं हुआ। कुछ पलों की पीड़ा के पश्चात मैं उसके मशीनी अंदाज में संभोग से अजीबोगरीब स्थिति में पहुंच गई। एक तरफ दर्द, दूसरी तरफ सुखद अहसास।
 
शनैः शनैः मैं उसके बलात संभोग से सुख के गहरे सागर में डूबती चली गई और बेसाख्ता मेरे होठों से, “आह, ओह्ह्ह्ह, मां मां, ओह उफ्फ्फ, इस्स्स्स्स,” आनंद से परिपूर्ण सिसकारियां निकलने लगीं। मैं ने अपने पैरों से उसकी कमर को लपेट लिया था और उसकी गर्दन को अपने हाथों से लपेट कर सुखद संसार में झूले झूलने लगी। करीब पैंतीस मिनटों तक वह ऑटोवाला मुझे झिंझोड़ता रहा।

“आह ओह रानी, ओह मैडम, ले मेरा लौड़ा, ओह साली, मजा आ रहा है ना मेरी रानी, आह ऐसी औरत को चोदने का मजा, अहा, ओहो, तेरी चूत, ओह तेरी बुर, मस्त मस्त,….” बोलता जा रहा था और दनादन चोदता जा रहा था। इस दौरान मुझे दो बार झाड़ चुका था। मेरी सारी थकान उतार कर तरोताजा कर दिया था। मैं दुगुने जोश से कमर उछाल उछाल कर चुदवाती रही। फिर अचानक पूरी ताकत सी मुझे अपने से चिपका कर फच फच अपना मदन रस मेरी चूत में भरता चला गया। “आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्ह्,” डकारता हुआ खल्लास हो गया, तभी मैं भी एक लंबी आह्ह्ह्ह्ह के साथ उसके शरीर से चिपकी, झड़ने के अद्भुत अहसास से सराबोर हो उठी। अभी खल्लास हो कर मुझे छोड़ कर खड़ा हो ही रहा था कि, अचानक किसी आघात से वह एक दर्दनाक चीख के साथ औंधे मुंह गिर पड़ा। मैं घबरा कर सामने देखने लगी, दो काले भुजंग दानवाकार गुंडे खड़े थे।

“साला हरामी अकेले अकेले इतनी खूबसूरत लौंडिया को हमारे इलाके में लाकर चोद रहा है मादरचोद।” एक खौफनाक आवाज मुझे सुनाई पड़ी। मैं समझ गई कि मैं इन गुंडों के बीच फंस चुकी हूं। मैं ने पल भर में स्थिति को समझ लिया, और खड़ी होना चाह रही थी तभी उस गुंडे ने कहा, “कालिया, पकड़ साली कुतिया को। अब हम चोदेंगे, उठ कहाँ रही है हरामजादी।” जैसे ही कालिया नामक गुंडा मुझे पकड़ने के लिए मुझ पर झुका, मैंने अपने दाहिने पैर के घुटने का एक करारा प्रहार उसके जांघों के बीच जड़ दिया। “आह्ह्ह्ह्ह,” एक लंबी दर्दनाक चीख के साथ वह अपने गुप्तांग को पकड़ कर दोहरा हो गया। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, मेरे बांये घुटने का प्रहार उसके थोबड़े पर हुआ। वह अचेत हो कर वहीं भरभरा कर गिर पड़ा।

“मादरचोद, हराम का माल पाया है? जा के अपनी मां बहन को चोद भड़वे”, मैं चीखी, अब मैं रणचंडी बन चुकी थी। पूरी तरह नंगी उस दूसरे गुंडे के सामने खड़ी हो गई। “आ, साले, चोदना तो दूर, हाथ लगा के दिखा मां के लौड़े।”
 
मेरा रौद्र रूप देख कर एकबारगी वह सहम गया। फिर भी हिम्मत बांध कर मेरी ओर बढ़ा। तभी मेरे दायें पैर का करारा किक उसके पेट पर पड़ा।

“आह्ह्ह्ह्ह” कराह कर ज्यों ही वह पेट पकड़ कर झुका, उसकी गर्दन कर मेरे दायें हाथ का चाप पड़ा। वह भी ढेर हो गया। अब तक संभल चुका ऑटो वाला ठगा सा यह सब देख रहा था।

मैं हाथ झाड़ते हुए अपने कपड़ें पहनते हुए बोली, “इस तरह आंखें फाड़कर देख क्या रहे हो, मुझे घर नहीं छोड़ना है क्या?” वह जैसे नींद से जागा। फिर फटाफट अपने कपड़े पहन कर ऑटो स्टार्ट किया। मैं कूद कर ऑटो में सवार हो गई। वह ऑटो वाला पूरे रास्ते चुप रहा।

जब मैं ऑटो से उतरी और पैसे देने लगी, शर्मिंदा होते हुए मुझ से पूछ बैठा, “मैडम, आपने दो गुंडों को मार गिराया, आप चाहती तो मुझे भी मार सकती थीं, लेकिन आपने ऐसा नहीं किया, क्यों?”

“तू अपने काम से काम रख, वैसे नाम क्या है तुम्हारा?” मैं बोली।

“जी श्यामलाल” वह अब भी शर्मिंदा था।

“तो श्याम बाबू साहब, तू मुझे चोद सका, क्योंकि मैं ऐसा चाहती थी, समझ गये? तुम मुझे पसंद आए। आगे भी तुम मुझे चोद सकते हो। एक बात समझ लो, जिसे मैं पसंद नहीं करती, वह मुझे छू भी नहीं सकता है। अब देख क्या रहे हो, फूटो यहां से। कभी चोदने का मन करे तो बोल देना। यह रहा मेरा नंबर।” इतना कहकर मैं ने उसे अपना नंबर दे दिया। उसके बाद मैं कई बार उससे मिली और मजा किया। उसका एक और पार्टनर था, बलराम, पचास साल का एक स्थानीय आदिवासी, कद करीब पांच फुट ग्यारह इंच, बिल्कुल कोयले की तरह काला, गंजा, साधारण सा दिखने वाला, पेट थोड़ा निकला हुआ, किंतु लिंग आठ इंच का और लिंग की मोटाई भी उसी के अनुपात में। वह पूरा अनुभवी चुदक्कड़ था, स्त्रियों की कामक्षुधा को तृप्त करने की कला में माहिर और स्तंभन क्षमता अद्भुत। श्यामलाल की तुलना में कई गुना दक्ष खिलाड़ी। मैं श्यामलाल की शुक्रगुजार हूं ऐसे वासना के पुजारी से मिलाने के लिए। मेरे जैसी वासना की अदम्य भूखी औरत के लिए कुछ गिने चुने व्यक्तियों की सूचि में उसका नाम भी आता है। श्यामलाल के साथ साथ उसके साथ कई बार सामुहिक संभोग का लुत्फ भी उठाया। कभी अपने घर में, कभी उसके घर में और कभी बलराम के घर में। बलराम वाला किस्सा मैं बाद में बताऊंगी। कहने का तात्पर्य यह है कि मेरी मर्जी के बगैर कोई मुझे हाथ भी नहीं लगा सकता था, उस समय भी और आज भी।

आगे की घटना अगली कड़ी में।
 
हां तो मैं बता रही थी कि श्यामलाल के साथ मेरा जो शारीरक संबंध दस साल पहले एक बार जो शुरू हुआ वह तो फिर चलता ही रहा। वह तो दीवाना हो गया मेरा। बार बार मेरे साथ संभोग के लिए ललायित रहता। अब उसकी दिनचर्या हो गयी थी, मेरा इंतजार करना ऑटो स्टैंड मेंं। फिर किसी सुनसान जगह में अपने तन की प्यास बुझा लेते थे हम। इसी दौरान करीब दो हफ्ते बाद एक दिन ऐसे ही मैं ऑटो स्टैंड पहुंची तो देखा कि श्यामलाल एक स्कॉर्पियो के पास खड़ा है।

“क्या हुआ, आज तुम्हारा ऑटो कहाँ है?”

“मैडम, आज मेरे एक दोस्त के स्कॉर्पियो का सर्विसिंग था, तो हम ऑटो छोड़कर स्कॉर्पियो ले कर आया था सर्विसिंग के लिए। सोचा कि लौटते वक्त इसी में आप को ले लेंगे।”

“ठीक है चलो” मेरे मन में अबतक उसने विश्वास जमा लिया था, कोई शंका की बात नहीं थी। मैं सामने की सीट पर बैठ रही थी तभी उसने मुझे पीछे सीट पर बैठने का आग्रह किया, जिसे मैंने सहज भाव से लिया और ड्राईविंग सीट के पीछे वाली सीट पर बैठ गई।

“हम ग्लास चढ़ा कर ए सी चला देते हैं, आपको “गर्मी” बहुत लगती है ना” वह अर्थपूर्ण भाव से मुस्कुरा रहा था।

“बहुत शैतान हो गये हो” मैं ने उसे मीठी झिड़की दी। वहां से जैसे ही हम लोआडीह चौक पहुंचे, एक काले से आदीवासी आदमी ने स्कॉर्पियो रुकवाया। श्यामलाल शायद उसका पूर्व परिचित था।

“मैडम, यह बलराम है, इस स्कॉर्पियो का मालिक। इन्हें भी रामपुर ही जाना है। वहीं रहता है यह भी। इनका घर वहीं पर है।” श्यामलाल बोला। इससे पहले कि मैं कुछ कहती, वह आदीवासी आदमी मेरी ही सीट पर आ बैठा। गाड़ी के अंदर आते ही मेरे नथुनों में शराब का तेज भभका टकराया। ऐसा लग रहा था वह बहुत शराब पिए हुए था। मैं तनिक असहज हो उठी और तनिक मायूस भी कि आज मेरी चुदाई प्रोग्राम का भट्ठा बैठ गया। मन मसोस कर रह गई। उसके तन से भी पसीने की बदबू आ रही थी। पता नहीं क्या था उस पसीने और शराब की मिली जुली दुर्गंध में कि मेरे अंदर पुरुष संसर्ग की कामना भड़क उठी।

मेरी मायूसी को भांपते हुए श्यामलाल तनिक झिझकते हुए बोला, “मैडम, बलराम को हमारे बारे में सब पता है। आज ही मुझ से कह रहा था कि एक बार मुझे भी मैडम की दिला दो। क्या कहती हैं आप?”

“तुम सब मर्द एक ही जैसे हो। बता दिया सब कुछ इन्हें? शर्म नहीं आई? आखिर फंसा ही दिया मुझे। तुम्हारी जगह कोई और होता तो तुम्हें पता है कि मैं उसका क्या हस्र करती। तुम्हारी बात कुछ और है इसलिए तुम्हारी बात रखने के लिए…..(मैं चुदने को तैयार हूँ इस बेवड़े से, मन ही मन तो खुश हो रही थी)” मैं बेबसी का नाटक करती हुई बोली। मेरे उत्तर से उन दोनों के चेहरे खिल उठे।

“ओह मैडम, दिल खुश कर दिया,” कहते हुए मुझ से सट गया और अपने दायें हाथ से मुझे समेट लिया और सीधे मेरी दायीं चूची पर हाथ रख दिया, सिर्फ हाथ ही नहीं रखा, तीन चार बार दबा भी दिया। “क्या मस्त चूची है, वाह मैडम” वह बोला, साथ ही अपने होठों से मेरे गालों, गले, होठों को चूमने लगा।

“छोड़ो मुझे, इस तरह रास्ते में कोई देख लेगा।” मैं छिटक कर अलग होने का नाटक करने लगी।
 
“कोई नहीं देखेगा मैडम, गाड़ी के काले शीशे के बाहर से कोई अंदर नहीं देख सकता है। अंदर से बाहर सब कुछ दिखता है।” कहते हुए बलराम ने अपनी बायीं हाथ मेरी जांघ पर रख कर तीन चार बार दबा दिया। मैं उसका हाथ हटाने की असफल कोशिश करती रही मगर धीरे धीरे जबरदस्ती, वह मेरी साड़ी के ऊपर से ही मेरी जांघों के बीच हाथ ले आया और ठीक मेरी योनी के ऊपर सहलाने लगा। उफ्फ्फ, मैं अपने शरीर पर से नियंत्रण खोती जा रही थी। मेरी वासना की भूख को हवा दे दिया था उस खड़ूस नें। कामदेव नें मुझे बेबस कर दिया और मैं कामदेव के तीर से घायल, मदहोश होती जा रही थी।

“उफ्फ्फ, छोड़ो मुझे प्लीज,” मेरे विरोध में छिपे आमंत्रण को बलराम ने बखूबी पढ़ लिया था। उसकी हरकतें बढ़ती जा रही थीं। उसने मेरी साड़ी धीरे से उठा दी और अब सीधे मेरी पैंटी के ऊपर से मेरी पहले से पानी छोड़ती हुई योनी को सहलाना शुरू किया। “आह्ह्ह्ह्ह, ओह्ह्ह्ह, उफ्फ्फ,” मैं अपनी उत्तेजना को छिपा पाने में असमर्थ हो गई, सिसिया उठी मैं। वह धीरे धीरे मुझ पर पूरी तरह हावी हो गया।

“मैडम जी, आप तो गजब की चुदक्कड़ हो। आपकी चूत तो बिल्कुल पावरोटी की तरह फूली हुई है। चूचियां गजब की बड़ी बड़ी। खूबसूरत तो हो ही, मगर एक नंबर की चुदक्कड़ भी हो। श्यामलाल जैसा बोला था, एकदम वैसी ही हो। आज मजा आएगा चोदने का।” अब बलराम खुल कर मेरे शरीर से खेलने लगा। गाड़ी धीरे धीरे चल रही थी, म्यूजिक सिस्टम में सेक्सी गाने एक के बाद एक बजते जा रहे थे। हाईवे पर कब नामकुम पार हुआ, कब रामपुर पार हुआ पता नहीं। एक एक करके मेरे कपड़े खुलते गए और अंततः मैं पूरी मादरजात नंगी हो गई। मेरे नग्न शरीर की छटा देख कर वह तो मानो पगला गया। गाड़ी की सीट को ऐसा एडजस्ट किया कि ड्राईविंग सीट के पीछे का हिस्सा बिस्तर में तब्दील हो गया। आनन फानन वह भी अपने कपड़ों से मुक्त हो कर मादरजात नंगा हो गया।

“ओह्ह्ह्ह मां्म्म्आ्आ्आ्आ्आ इतना बड़ा्आ्आ्आ्आ, हाय राम इत्त्त्त्त््त्त्आ्आ्आ्आ्आ््आआ मोटा्आ्आ्आ्” इतना बड़ा लिंग था उसका। आठ इंच लंबा, मगर गधे की तरह फनफनाता करीब चार इंच मोटा। फिर वही, मेरा घबराने का नाटक। भीतर ही भीतर तो मैं पुलकित हो रही थी, आखिर मैं भी पूरी चुदक्कड़ हूँ ना। उसका पूरा शरीर काला भुजंग, हब्शियों की तरह। शरीर की बनावट, गठा हुआ, मजबूत, बनमानुष की तरह, पेट निकला हुआ। मुझे उसके शरीर की बनावट की वजह से पता नहीं क्यों कुछ अधिक ही उत्तेजक लग रहा था। एक अलग अनुभूति हो रही थी।

“साली छिनाल मैडम, तेरी चूत के लिए तो ऐसा ही लौड़ा ठीक है। साली बुरचोदी मैडम, पता नहीं कितना लौड़ा खा चुकी है इस भोंसड़ा में। नाटक कर रही है हरामजादी मैडम।” मेरी फूली हुई चिकनी पनिया उठी चूत को देख कर अब वह पूरी तरह समझ चुका था कि मैं किस किस्म की औरत हूँ। “अरे श्यामलाल यह तो पूरी रंडी है रे रंडी, इतना बड़ा्आ्आ्आ्आ चूत, साली ऐसा लग रहा है मानो किसी भैंस की चूत है” बलराम मेरी चूत को देखकर अचंभे में पड़ गया।
 
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