desiaks
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17328730.gif “वाह रानी, मजा आ गया। कमाल की चुदक्कड़ हो।अब जब भी हमें चोदने का मन करेगा, हम रांची आ जाएंगे। बिजनेस तो होता ही रहेगा, मगर तुम्हारे साथ बिजनेस का मजा ही कुछ और है।” कहकर रूपचंद जी ने मुझे बांहों में भर के चूम लिया।
“सही कहा भाई, ऐसी लौंडिया बड़े नसीब वालों को ही नसीब होती है। अब तो हमें बार बार रांची आना पड़ेगा। कमाल की गांड़, कमाल की चूचियां। गजब हो तुम मेरी रानी।” ज्ञान चंद बोला और मेरे नितंबों और चूचियों को सहला दिया।
“हाय मेरे प्यारे चोदुओ, आज आपलोगों ने पहली बार चुदाई का ऐसा सुख दिया है जिसे मैं जीवन भर नहीं भूल पाऊंगी। जब मर्जी चले आईएगा, मैं आप लोगों के लिए हमेशा उपलब्ध रहुंगी।” कहकर मैंने बारी बारी से उन दोनों को चूम लिया। ऋतेश को तो मैं क्या कहूं, चलो उसके आकर्षण में बंधी इन दोनों चुदक्कड़ों के जाल में फंसी और यादगार संभोग का सुख प्राप्त किया, इसलिए उस हिजड़े को भी शुक्रिया अदा किया। फिर करीब ग्यारह बजे रात को मैं वहां से निकली अपने घर की ओर। ठीक से चल भी नहीं पा रही थी। मेरी चाल देख कर दोनों चुदक्कड़ मुस्कुरा रहे थे। मैं खिसियानी सी मुस्कान के साथ वहां से रुखसत हुई। दूसरे ही दिन सवेरे ऑफिस खुलते ही रूपचंद जी फिर आ धमके। मेरी हालत वैसे ही बेहद खराब हो चुकी थी। पूरा बदन टूट रहा था, लेकिन फिर भी बीती रात को जो कुछ हुआ था उसकी मीठी मीठी कसक पूरे बदन में तारी थी। रूपचंद जी वही पूर्व परिचित लार टपकाती नजरों से मुझे देखते हुए मुस्कुरा रहे थे। मैं ने भी व्यवसायिक मुस्कुराहट के साथ उनका स्वागत किया। एक हफ्ते की बात तो छोड़िए, बॉस के आते ही उसी वक्त हमारा डील फाईनल हो गया। बॉस की खुशी का ठिकाना नहीं था। उन्होंने मुझे बधाई दी और साथ ही एक सरप्राईज गिफ्ट, एक प्रोमोशन के रूप में। वाह, मेरी तो निकल पड़ी थी। हां, एक बात और, जाते जाते रूपचंद जी ने वापस लौटने से पहले मुझसे मिलने की इच्छा जताई उसी होटल में। हालांकि मैं पिछली रात की नोच खसोट और धींगा मुश्ती से मेरी हालत कोई अच्छी नहीं थी, किंतु उनका आमंत्रण अस्वीकार नहीं कर पाई। नतीजा वही, फिर पिछली रात की तरह कामुकता के एक और तूफानी दौर से मुझे गुजरना पड़ा। इस बार शुरू में ही उन्होंने मुझे व्हिस्की का एक पैग पिला दिया और जी भर के मनमाने ढंग से मेरे शरीर से खेला। चुदाई के एक दौर के पश्चात फिर दूसरा पैग पिलाया और बड़े ही गंदे तरीक़े से मेरे जिस्म को भोगा। मुझे नशे की हालत में उठा कर बाथरूम ले गए और जबतक मैं कुछ समझ पाती, बाथरूम के फर्श पर ही लिटा कर रूपचंद जी और ज्ञानचंद मेरे ऊपर छरछराकर मूतने लगे। उनके गरमागरम मूत्र से मैं पूरी तरह भीग गई थी। मैं विरोध करना चाह रही थी लेकिन पता नहीं क्यों मुझे भी यह सब अच्छा लग रहा था। यह भी काफी उत्तेजक था मेरे लिए। शायद नशा का भी असर रहा हो। मेरी उसी अवस्था में मूत्र से भीगे शरीर के साथ ही उन्होंने मनमाफिक ढंग से अपनी कुत्सित कामेच्छा शांत की। क्या नहीं किया उन्होंने। लंड चुसवाया, अंडकोश चटवाया, गांड़ चटवाया, लंड हाथ में थमा कर मूठ मरवाया, मेरी कांख में लंड डाल कर चोदा, जांघों को सटा कर जांघों के बीच चोदा, चूची चोदा, चूत की कुटाई की, गांड़ की कुटाई की, हर संभव तरीक़े से मेरे शरीर का भरपूर इस्तेमाल किया। करीब चार घंटे तक यह निहायत ही घिनौने तरीक़े का वासना का तांडव होता रहा। उफ पता नहीं क्या हो गया था मुझे भी। पागलों की तरह उनकी हर क्रिया में सहयोग करती गई। वे तो खुश हुए ही, मेेेरे जीवन में भी खुशी का एक नया मार्ग दिखा दिया उन हरामियों ने। नहा धोकर जब मैं वहां से निकलना चाह रही थी, मेरे कदम साथ देने से इन्कार करने लगे। मजबूरन मैं रात भर वहीं रुकी रही, रात भर चुदते रहने के लिए। गनीमत थी कि बीच बीच में ऋतेश भी अपनी गांड़ प्रस्तुत कर देता था। सवेरे तक मैं चलने फिरने लायक भी नहीं रही थी। किसी तरह मुझे सहारा दे कर उन्होंने घर तक अपनी गाड़ी में छोडा़ और टाटा निकल गए। दो दिन तक मेरी हालत खराब थी।
कहानी जारी रहेगी
“सही कहा भाई, ऐसी लौंडिया बड़े नसीब वालों को ही नसीब होती है। अब तो हमें बार बार रांची आना पड़ेगा। कमाल की गांड़, कमाल की चूचियां। गजब हो तुम मेरी रानी।” ज्ञान चंद बोला और मेरे नितंबों और चूचियों को सहला दिया।
“हाय मेरे प्यारे चोदुओ, आज आपलोगों ने पहली बार चुदाई का ऐसा सुख दिया है जिसे मैं जीवन भर नहीं भूल पाऊंगी। जब मर्जी चले आईएगा, मैं आप लोगों के लिए हमेशा उपलब्ध रहुंगी।” कहकर मैंने बारी बारी से उन दोनों को चूम लिया। ऋतेश को तो मैं क्या कहूं, चलो उसके आकर्षण में बंधी इन दोनों चुदक्कड़ों के जाल में फंसी और यादगार संभोग का सुख प्राप्त किया, इसलिए उस हिजड़े को भी शुक्रिया अदा किया। फिर करीब ग्यारह बजे रात को मैं वहां से निकली अपने घर की ओर। ठीक से चल भी नहीं पा रही थी। मेरी चाल देख कर दोनों चुदक्कड़ मुस्कुरा रहे थे। मैं खिसियानी सी मुस्कान के साथ वहां से रुखसत हुई। दूसरे ही दिन सवेरे ऑफिस खुलते ही रूपचंद जी फिर आ धमके। मेरी हालत वैसे ही बेहद खराब हो चुकी थी। पूरा बदन टूट रहा था, लेकिन फिर भी बीती रात को जो कुछ हुआ था उसकी मीठी मीठी कसक पूरे बदन में तारी थी। रूपचंद जी वही पूर्व परिचित लार टपकाती नजरों से मुझे देखते हुए मुस्कुरा रहे थे। मैं ने भी व्यवसायिक मुस्कुराहट के साथ उनका स्वागत किया। एक हफ्ते की बात तो छोड़िए, बॉस के आते ही उसी वक्त हमारा डील फाईनल हो गया। बॉस की खुशी का ठिकाना नहीं था। उन्होंने मुझे बधाई दी और साथ ही एक सरप्राईज गिफ्ट, एक प्रोमोशन के रूप में। वाह, मेरी तो निकल पड़ी थी। हां, एक बात और, जाते जाते रूपचंद जी ने वापस लौटने से पहले मुझसे मिलने की इच्छा जताई उसी होटल में। हालांकि मैं पिछली रात की नोच खसोट और धींगा मुश्ती से मेरी हालत कोई अच्छी नहीं थी, किंतु उनका आमंत्रण अस्वीकार नहीं कर पाई। नतीजा वही, फिर पिछली रात की तरह कामुकता के एक और तूफानी दौर से मुझे गुजरना पड़ा। इस बार शुरू में ही उन्होंने मुझे व्हिस्की का एक पैग पिला दिया और जी भर के मनमाने ढंग से मेरे शरीर से खेला। चुदाई के एक दौर के पश्चात फिर दूसरा पैग पिलाया और बड़े ही गंदे तरीक़े से मेरे जिस्म को भोगा। मुझे नशे की हालत में उठा कर बाथरूम ले गए और जबतक मैं कुछ समझ पाती, बाथरूम के फर्श पर ही लिटा कर रूपचंद जी और ज्ञानचंद मेरे ऊपर छरछराकर मूतने लगे। उनके गरमागरम मूत्र से मैं पूरी तरह भीग गई थी। मैं विरोध करना चाह रही थी लेकिन पता नहीं क्यों मुझे भी यह सब अच्छा लग रहा था। यह भी काफी उत्तेजक था मेरे लिए। शायद नशा का भी असर रहा हो। मेरी उसी अवस्था में मूत्र से भीगे शरीर के साथ ही उन्होंने मनमाफिक ढंग से अपनी कुत्सित कामेच्छा शांत की। क्या नहीं किया उन्होंने। लंड चुसवाया, अंडकोश चटवाया, गांड़ चटवाया, लंड हाथ में थमा कर मूठ मरवाया, मेरी कांख में लंड डाल कर चोदा, जांघों को सटा कर जांघों के बीच चोदा, चूची चोदा, चूत की कुटाई की, गांड़ की कुटाई की, हर संभव तरीक़े से मेरे शरीर का भरपूर इस्तेमाल किया। करीब चार घंटे तक यह निहायत ही घिनौने तरीक़े का वासना का तांडव होता रहा। उफ पता नहीं क्या हो गया था मुझे भी। पागलों की तरह उनकी हर क्रिया में सहयोग करती गई। वे तो खुश हुए ही, मेेेरे जीवन में भी खुशी का एक नया मार्ग दिखा दिया उन हरामियों ने। नहा धोकर जब मैं वहां से निकलना चाह रही थी, मेरे कदम साथ देने से इन्कार करने लगे। मजबूरन मैं रात भर वहीं रुकी रही, रात भर चुदते रहने के लिए। गनीमत थी कि बीच बीच में ऋतेश भी अपनी गांड़ प्रस्तुत कर देता था। सवेरे तक मैं चलने फिरने लायक भी नहीं रही थी। किसी तरह मुझे सहारा दे कर उन्होंने घर तक अपनी गाड़ी में छोडा़ और टाटा निकल गए। दो दिन तक मेरी हालत खराब थी।
कहानी जारी रहेगी