desiaks
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कामिनी,.gif पिछली कड़ी में आपलोगों ने पढ़ा कि किस तरह मैं ऋतेश के आकर्षण में बंधी डील फाईनल करने होटल में गयी और ठिंगने, कुरूप, बदशक्ल व्यवसायी रूपचंद और ज्ञानचंद जैसे कामुक भेड़ियों के हत्थे चढ़ी। वे मेरे नग्न शरीर को स्वछंद तरीके से भोगने के लिए बेकरार थे। अब आगे:-
तभी रूपचंद जी की आवाज आई, “ले चल ज्ञान इसे बिस्तर पर, फिर हम इसके साथ खेलते हैं खुला खेल फरुक्काबादी। पहले तू खेल ले फिर मैं आता हूँ मैदाने जंग में। आह्ह्ह्ह्ह साले ऋतेश, ओह्ह्ह्ह मेरी जान उफ्फ्फ, तेरी इसी अदा पर तो फिदा हूँ साले गांडू। ओह ऋतेश मजा आ रहा है आह आह, बस अब बस कर, अभी इस कुतिया को चोदने दे, फिर तेरी चिकनी गांड़ की भूख भी मिटा दूंगा।”
ऋतेश के चूसने का अंदाज था ही गजब। रूपचंद का लिंग अब गधे के लिंग की तरह अपने पूरे शबाब पर था, बेहद भयावह। वे बेहद उतावली में मेरी ओर बढ़े, बिस्तर की ओर, जहां अबतक ज्ञानचंद ने मुझे एक झटके में अपनी गोद में उठा कर ला पटका था। ठिंगना आदमी मुझ जैसी लंबी स्त्री को इतनी आसानी से उठा लेगा इसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी। काफी मजबूत थीं उसकी बाजुएं। मुझे किसी गुड़िया की तरह कितनी आसानी से उठा कर बिस्तर पर ला पटका। मैं उसकी दानवी शक्ति पर अचंभित रह गई। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, ज्ञानचंद ने सीधे मुझे चित लिटा दिया और मेरे पेट के दोनों तरफ घुटनों के बल पैर रख कर मुझे अपनी गिरफ्त में ले लिया और मुझे चूमने लगा। मेरे होंठों को अपने थूथन में ले कर चूसने लगा। मेरे तने हुए उन्नत उरोजों को अपनी सख्त हथेलियों से बड़ी बेरहमी से मसलने लगा। “वाह, कितनी टाईट चूची है रे इस लौंडिया की, मैं तो पहले इसकी चूचियों को ही चोदूंगा।” वह बोला। दर्द के मारे मेरा बुरा हाल होने लगा। मैं चीखना चाहती थी मगर मेरा मुह उसके थूथन से बंद था, सिर्फ गों गों की घुटी घुटी आवाज मेरे हलक से निकल रही थी। उसका विशाल लिंग मेरे दोनों उरोजों के बीच आ चुका था। मैं छटपटा रही थी लेकिन उसने मुझे इस कदर बेबस कर दिया था कि मैं सिर्फ पैर पटकती रह गई। इससे पहले कि मैं समझ पाती कि चूचियों को चोदने का क्या तात्पर्य है, ज्ञानचंद ने मेरे दोनों उरोजों को सख्ती से पकड़ कर आपस में सटा दिया और अपना भीमकाय बेलन सरीखा लिंग दोनों उरोजों के बीच की घाटी में पूरी ताकत से ठेलने लगा। गनीमत था कि उसका लिंग मेरे थूक से लिथड़ा हुआ था, सर्र से दूसरी ओर पार हो गया और मेरी ठुड्ढी को छूने लगा। मेरे मुह के लार से लिथड़े होने के बावजूद मुझे पीड़ा का आभास हो रहा था क्योंकि एक तो उसने बड़ी जोर से दोनों उरोजों को आपस में सटा रखा था, दूसरे उसके इतने मोटे लिंग को उस संकरी घाटी में जबरदस्ती घुसाने का प्रयास।
“आह मेरी जान, ऐसी बड़ी बड़ी और सख्त चूचियों को चोदने का मजा ही कुछ और है। हुम्म्म हुम्म्म आह्ह्ह्ह्ह ओह” ज्ञानचंद मस्ती में भर कर बोला। अभी यह हमला ही मानो काफी नहीं था, रूपचंद अपने भाई ज्ञानचंद के पीछे उछल कर आ गया और मेरे दोनों पैरों को उठा दिया। मेरे दोनों पैरों को अपने कंधों पर चढ़ा लिया। फिर उसने मेरे आव देखा न ताव, तपाक से मेरी पनिया उठी फकफकाती योनी के द्वार पर अपना दानवी हथियार सटा दिया। ओह, उसके मूसल का स्पर्श ज्यों ही मेरी योनी द्वार पर हुआ, मेरा पूरा शरीर गनगना उठा। कब से तरस रही थी मैं अपनी योनी में पुरुष लिंग के लिए। मेरा दिल इधर धाड़ धाड़ धड़क रहा था इस आशंका में कि उनका इनका विकराल लिंग को मैं अपनी योनी में झेल पाऊंगी कि नहीं। मगर मेरी उत्तेजना अब तक इस कदर बढ़ गई थी कि भय के बावजूद मैंने अपनी प्यासी योनी को उस जालिम भेड़िये के सम्मुख समर्पित कर दिया। भय मिश्रित रोमांच का अद्भुत अनुभव कर रही थी मैं। ज्ञानचंद ने जैसे ही अपने थूथन से मेरे होंठों को मुक्त किया, मैं, सिसिया उठी, “इस्स्स्स्स आह्ह्ह्ह्ह”।
तभी रूपचंद जी की आवाज आई, “ले चल ज्ञान इसे बिस्तर पर, फिर हम इसके साथ खेलते हैं खुला खेल फरुक्काबादी। पहले तू खेल ले फिर मैं आता हूँ मैदाने जंग में। आह्ह्ह्ह्ह साले ऋतेश, ओह्ह्ह्ह मेरी जान उफ्फ्फ, तेरी इसी अदा पर तो फिदा हूँ साले गांडू। ओह ऋतेश मजा आ रहा है आह आह, बस अब बस कर, अभी इस कुतिया को चोदने दे, फिर तेरी चिकनी गांड़ की भूख भी मिटा दूंगा।”
ऋतेश के चूसने का अंदाज था ही गजब। रूपचंद का लिंग अब गधे के लिंग की तरह अपने पूरे शबाब पर था, बेहद भयावह। वे बेहद उतावली में मेरी ओर बढ़े, बिस्तर की ओर, जहां अबतक ज्ञानचंद ने मुझे एक झटके में अपनी गोद में उठा कर ला पटका था। ठिंगना आदमी मुझ जैसी लंबी स्त्री को इतनी आसानी से उठा लेगा इसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी। काफी मजबूत थीं उसकी बाजुएं। मुझे किसी गुड़िया की तरह कितनी आसानी से उठा कर बिस्तर पर ला पटका। मैं उसकी दानवी शक्ति पर अचंभित रह गई। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, ज्ञानचंद ने सीधे मुझे चित लिटा दिया और मेरे पेट के दोनों तरफ घुटनों के बल पैर रख कर मुझे अपनी गिरफ्त में ले लिया और मुझे चूमने लगा। मेरे होंठों को अपने थूथन में ले कर चूसने लगा। मेरे तने हुए उन्नत उरोजों को अपनी सख्त हथेलियों से बड़ी बेरहमी से मसलने लगा। “वाह, कितनी टाईट चूची है रे इस लौंडिया की, मैं तो पहले इसकी चूचियों को ही चोदूंगा।” वह बोला। दर्द के मारे मेरा बुरा हाल होने लगा। मैं चीखना चाहती थी मगर मेरा मुह उसके थूथन से बंद था, सिर्फ गों गों की घुटी घुटी आवाज मेरे हलक से निकल रही थी। उसका विशाल लिंग मेरे दोनों उरोजों के बीच आ चुका था। मैं छटपटा रही थी लेकिन उसने मुझे इस कदर बेबस कर दिया था कि मैं सिर्फ पैर पटकती रह गई। इससे पहले कि मैं समझ पाती कि चूचियों को चोदने का क्या तात्पर्य है, ज्ञानचंद ने मेरे दोनों उरोजों को सख्ती से पकड़ कर आपस में सटा दिया और अपना भीमकाय बेलन सरीखा लिंग दोनों उरोजों के बीच की घाटी में पूरी ताकत से ठेलने लगा। गनीमत था कि उसका लिंग मेरे थूक से लिथड़ा हुआ था, सर्र से दूसरी ओर पार हो गया और मेरी ठुड्ढी को छूने लगा। मेरे मुह के लार से लिथड़े होने के बावजूद मुझे पीड़ा का आभास हो रहा था क्योंकि एक तो उसने बड़ी जोर से दोनों उरोजों को आपस में सटा रखा था, दूसरे उसके इतने मोटे लिंग को उस संकरी घाटी में जबरदस्ती घुसाने का प्रयास।
“आह मेरी जान, ऐसी बड़ी बड़ी और सख्त चूचियों को चोदने का मजा ही कुछ और है। हुम्म्म हुम्म्म आह्ह्ह्ह्ह ओह” ज्ञानचंद मस्ती में भर कर बोला। अभी यह हमला ही मानो काफी नहीं था, रूपचंद अपने भाई ज्ञानचंद के पीछे उछल कर आ गया और मेरे दोनों पैरों को उठा दिया। मेरे दोनों पैरों को अपने कंधों पर चढ़ा लिया। फिर उसने मेरे आव देखा न ताव, तपाक से मेरी पनिया उठी फकफकाती योनी के द्वार पर अपना दानवी हथियार सटा दिया। ओह, उसके मूसल का स्पर्श ज्यों ही मेरी योनी द्वार पर हुआ, मेरा पूरा शरीर गनगना उठा। कब से तरस रही थी मैं अपनी योनी में पुरुष लिंग के लिए। मेरा दिल इधर धाड़ धाड़ धड़क रहा था इस आशंका में कि उनका इनका विकराल लिंग को मैं अपनी योनी में झेल पाऊंगी कि नहीं। मगर मेरी उत्तेजना अब तक इस कदर बढ़ गई थी कि भय के बावजूद मैंने अपनी प्यासी योनी को उस जालिम भेड़िये के सम्मुख समर्पित कर दिया। भय मिश्रित रोमांच का अद्भुत अनुभव कर रही थी मैं। ज्ञानचंद ने जैसे ही अपने थूथन से मेरे होंठों को मुक्त किया, मैं, सिसिया उठी, “इस्स्स्स्स आह्ह्ह्ह्ह”।