Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा - Page 32 - SexBaba
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Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, ओ्ओफ्फ्फ्फ्फ्फ, पागल जेठ जी, हां हां हां हां ऐसा ही ओह्ह्ह्ह्ह, मजा आ रहा है।” वह पगला रही थी। अब मैं मुह लगा कर उसकी चूचियों को चूसने लगा, वाह बड़ा आनंद आ रहा था। कुछ देर चूसने के बाद ही सरोज खुद ब खुद बोल उठी, “चोदिए, आह्ह अब चोद डालिए, अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा है आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह।” मेरे लंड की लंबाई और मोटाई से बेपरवाह बोल रही थी वह। मैं भी चोदने को बेकरार था। वह अपने पैर फैला कर चित्त लेटी मेरे लंड को अपनी चूत के छेद के पास खुद ब खुद ले आई और पागलों की तरह कमर उछाल बैठी। मैं समझ गया कि अब मुझे उसकी चूत में लंड घुसाना है। मेरे लंड का सामन वाला हिस्सा उसकी चूत के मुंह पर रख कर धीरे धीरे घुसाने का प्रयास करने रगा, लेकिन बार बार मेरा लंड फिसल कर इधर उधर चला जा रहा था। तंग आ कर सरोज खुद मेरा लंड अपनी चूत के छेद पर टिका कर अपनी कमर दुबारा उछाल बैठी। निशाना सही था, फच्च से मेरे लंड का अगला हिस्सा उसकी चुत के अंदर घुस गया।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह,” दर्द से चीख पड़ी वह। ताव ताव में वह जो कुछ कर बैठी थी वह कितना दर्दनाक होगा, शायद उसे अब पता चला था। लेकिन अब मुझे मंजिल मिल गयी थी। मेरे लंड को रास्ता मिल गया था। मैं मौका गंवाना नहीं चाहता था। उसकी कमर को पकड़ कर एक धक्का लगा दिया।

“ऊं्ऊं्ऊं्ऊं्ऊं्ह्ह्ह्ह्ह्ह हुम्म्म्म्म्म्म।”

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, मर गयी रे्ए्ए्ए्ए्ए्ए।” वह तड़प उठी दर्द के मारे। एक धक्के में ही मेरा लंड उसकी चूत को चीरता हुआ एक तिहाई अंदर चला गया। “छोड़िए, छोड़िए आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, फट्ट्ट्ट्ट्ट गयी मेरी चू्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊत।” दर्द के मारे चीख उठी वह। पसीना पसीना हो गयी। लेकिन अब मुझे आनंद आ रहा था। मुझे स्वर्ग जैसा आनंद आ रहा था। मेरा लंड गरम गरम गुफा में समाता जा रहा था। मैं एक और जोर का धक्का लगा दिया। करीब करीब पूरा लंड चला गया अंदर। एक इंच शायद बचा था। “आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह मा्आ्आ्आ्आ्र्र्र्र्र्र डा्आ्आ्आलिएग्ग्ग्गा क्या्आ्आ्आ्आ? ओ्ओफ्फ्फ्फ्फ्फ मां्आं्आं्आं कहां आ फंसी रे्ए्ए्ए्ए्ए्ए।” वह दर्द से तड़प रही थी लेकिन मैं अब जानवर बन चुका था।

“चो्ओ्ओ्ओ्ओ्प्प्प्प्प्प् हर्र्र्र्र्र्र्र्आ्आ्आ्आ्आमजादी। एकदम चो्ओ्ओ्ओ्ओ्प्प्प्प्प्प्।” मैं गुस्से में आ गया। सहम गयी वह मेरा जानवर वाला रुप देखकर। मुझे अब उसके चीखने चिल्लाने से गुस्सा आ रहा था। मेरे आनंद में खलल पड़ते देख मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। एक और धक्का मारा और पूरा का पूरा लंड उसकी चूत के अंदर चला गया। वह रो रही थी, सिसक रही थी, उसकी आंखों से आंसू निकल रहा था लेकिन मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा। “हो तो गया, घुस तो गया, पूरा लंड तो घुस गया, अब रो काहे रही है हरामजादी।” खूंखार लहजे में मैं बोला।

“आह्ह, निकालिए ना्आ्आ्आ्आ्आ्आ। मेरी चूत को तो फाड़ दिया, अब मेरे बच्चादानी को भी फाड़ दीजिएगा क्या्आ्आ्आ्आ?” वह रोते रोते बोली। थोड़ा डर गया मैं। हड़बड़ा कर पूरा लंड बाहर निकाल लिया, लेकिन मुझे कुछ अच्छा नहीं लगा। फिर घुसाने की बड़ी इच्छा हो रही थी। उधर सरोज को भी पता नहीं क्या हुआ, शायद पूरा लंड बाहर निकालने से उसे भी कुछ अच्छा नहीं लगा, अपने आप कमर उचका कर थोड़ा लंड अंदर ले बैठी। “पूरा निकाल दिया, ओह्ह्ह्ह्ह, अंदर पूरा खाली खाली लग रहा है, ओह यह हमें क्या हो रहा है, लंड अंदर तो तकलीफ, लंड बाहर तो तकलीफ। क्या कर दिया जेठजी आपने?”

“अब मैं क्या करूं? ऐसी चुदाई होती है क्या?” खीझ उठा मैं।
 
“डालिए, डाल ही दीजिए, अब रहा क्या? फट तो गयी हमारी चूत। चलिए, चोदिए। लंड धीरे धीरे अंदर डालिए, फिर बाहर निकालिए। आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह हां हां ऐसा ही ऐसा ही।” उसकी बात सुनकर मैं ऐसा ही करने लगा। धीरे धीरे अंदर घुसाने लगा। “आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, ओ्ओ्ओह्ह्ह, आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, ओ्ओफ्फ्फ्फ्फ्फ, ओह मां्आं्आं्आं, ओह बप्प्आ्आ्आ्आह्ह्ह्, हां हां हां यही है चुदाई, ओह दर्द है मगर मजा है आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, चोदते रहिए जेठ जी।” वह बोल रही थी और मैं उसकी कमर पकड़ कर लंड अ़दर बाहर करने लगा। उसकी आवाज में दर्द भी था और खुशी भी थी। मुझे बड़ा आनंद आ रहा था। कितनी टाईट थी उसकी चूत। उफ्फ्फ्फ्फ्फ बता नहीं सकता। चोदने में इतना आनंद। एक औरत की चूत में इतना स्वर्गीय सुख। धीरे धीरे मैं जोश के मारे उसकी कमर पकड़ कर दनादन चोदने में डूब गया। अब सरोज भी अपने दोनों पैरों को मेरी कमर पर लपेट कर बड़े मदे से मेरा लंड खा रही थी।

“आह्ह हमार राजा, ओह हमार सैंया, ओह हमार बलमा, आह हमार भतार, आह हमारे प्यारे चोदक्कड़ जेठ जी, हाय हमारे प्राणनाथ, आह ओह चोदिए राजाजी, ओह ओह स्वरग देखा रहे हैं। इस्स्स्स्स्स्स्स इस्स्स्स्स्स्स्स।” उधर वह पागलों की तरह मुझसे चिपकी चुदी जा रही थी और मैं आनंद मगन भचाभच चोदे जा रहा था। धमाधम, धक्के पे धक्का, घपाघप। करीब पंद्रह मिनट बाद सरोज थरथर कांपती हुई मुझ से चिपक गयी। “ओ्ओ्ओह्ह्ह ओ्ओ्ओह्ह्ह हम गये, ओह हम झड़े रे झड़े मेरे जे्ए्ए्ए्ए्ए्ठ्ठ्ठ्ठ जी्ई्ई्ई्ई्।” और उसका पूरा शरीर ढीला पड़ने लगा लेकिन मैंने उसे छोड़ा नहीं, चोदता रहा चोदता रहा, फचाफच, चटाचट, भचाभच। आधे घंटे तक मैं उसे रगड़ रगड़ कर चोदा और तब मेरा शरीर थरथराने लगा। मेरा लंड और बड़ा होने लगा, ऐसा मुझे लगा और तभी मेरे लंड से कुछ निकलने लगा। उसी समय सरोज भी फिर से मेरे बदन से चिपट गयी।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह यह क्या हो रहा्आ्आ्आ्आ्आ है?” मैं स्वरग सुख में डूब कर बोला।

“ओ्ओफ्फ्फ्फ्फ्फ पगले, आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, आपके लंड का रस निकल रहा है ओ्ओफ्फ्फ्फ्फ्फ मैं भी ओह मैं भी झड़ रही हूं। मां बना दे ओह बलमा, मां बना दे हमें हरामी जेठ जी, हमा्आ्आ्आ्आ्आरे्ए्ए्ए्ए पिया, मां बना दे मां बना दे।” वह थरथराती हुई बोली। हम करीब तीन मिनट तक उसी तरह चिपटे रहे फिर हांफते हुए पूरे संतुष्ट, ढीले पड़ गये। ऐसा लग रहा था मानो मेरा बदन हल्का हो कर हवा में उड़ रहा हो। “ओह्ह्ह्ह्ह राजा, बहुत सुख दिया आपने हमें।” मुझे चूम कर बोली वह। उस दिन मैंने तीन बार चोदा और जम कर चोदा। सरोज भी बहुत खुश हुई, जबकि उसकी चूत फैल कर गुफा बन गयी थी। फूल गयी थी। मेरे लंड पर खून ही खून लिथड़ा हुआ था लेकिन फिर भी सरोज खुश थी। वह मेरी पहली चुदाई थी, बड़ा ही सुखद, आनंददायक अनुभव था। फिर तो मुझे चुदाई का चस्का ही लग गया। औरत देखी नहीं कि लंड अपने आप खड़ा हो जाता है, जैसा कि अभी रश्मि जी को देख कर हो रहा है।”

खुल्लमखुल्ला ऐसी बात सुन कर रश्मि हकबका गयी। उसकी कहानी हम बड़ी तन्मयता के साथ सुन रहे थे। ऐसी उत्तेजक कहानी सुनकर सब उत्तेजित भी हो गये थे। रश्मि की तो कनपट्टी लाल हो गयी। हम सभी मुस्कुरा कर रश्मि को देख रहे थे। “हट, यह क्या बोल रहे हैं आप?” रश्मि सुर्ख चेहरे के साथ बोली, लेकिन उसकी आवाज में रामलाल के कथन के प्रति, जिसमें छिपा हुआ प्रस्ताव भी था, कोई खास विरोध भी नहीं था।

मैं मुस्कुराते हुए बोली, “वाह मेरी लाड़ो, प्रतिवाद तो है मगर इनकार नहीं। देखो तो, कैसी लाल भभूका हो रही है। रामलाल जी, लगता है आपका जादू इसपर भी चल गया। खैर जो होगा, वो तो बाद की बात है, फिलहाल तो अपनी कहानी बोलिए।”

“नहीं, बाद में। रश्मि मैडम को चोदने का मन कर रहा है।” रामलाल सीधा मुद्दे पर आया।

“धत, ना बाबा ना। इस पागल से तो ना।” रश्मि बोली जरूर लेकिन उसका चेहरा चुगली कर रहा था कि वह झूठ बोल रही है।

“ठीक है बाबा ठीक है। रामलाल जी आगे देखा जाय क्या होता है। आप जल्दी से अपनी कहानी पूरी कीजिए।” मैं जानती थी कि तवा गरम है। केवल रामलाल को सिग्नल मिलने की देर है, टूट ही पड़ता वह रश्मि पर।

रामलाल अनमने ढंग से आगे बताने लगा, “उस दिन के बाद जब भी हमें मौका मिलता हम चुदाई में लग जाते थे। करीब दो महीने बाद ही पता चल गया कि सरोज मां बनने वाली है। सब बड़े खुश थे। घनश्याम तो सबसे अधिक खुश था। सरोज मुझसे बोली, “यह बात किसी को पता नहीं लगना चाहिए कि हम आपसे गर्भवती हुए हैं, नहीं तो बवाल हो जावेगा।”

“ठीक है मेरी रानी ठीक है। नहीं बोलुंगा, किसी से कुछ नहीं बोलूंगा।” मैं बोल उठा।

……..इसके बाद की कहानी अगले भाग में। तबतक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए।
 
पिछले भाग में आपलोगों ने पढ़ा कि एक अर्द्ध विक्षिप्त अधेड़ व्यक्ति रामलाल ने हमें, अर्थात रश्मि, हरिया और करीम के साथ साथ मुझे, अपनी सेक्स यात्रा के प्रारंभ के बारे में बताया। हम चारों बड़ी तन्मयता के साथ उसके उत्तेजक कहानी को सुनते हुए उत्तेजित हो रहे थे। अपनी उत्तेजना को बमुश्किल काबू में रख पा रहे थे। कहानी के पहले भाग के समाप्त होते न होते रामलाल नें रश्मि की ओर भूखी नजरों से देखते हुए अपनी मंशा भी जाहिर कर दी थी। बेचारा रामलाल, उसने अपने छोटे भाई की पत्नी से संभोग सुख का स्वाद चख कर यही तो सीखा था कि औरत मतलब चुदाई हेतु भगवान द्वारा प्रदत्त उपहार। सरोज ने उसे चुदाई के आनंद से परिचित कराया और फिर रबिया, शहला और अब मैं, चख चुकी थीं उसके विकराल लिंग द्वारा आतंक भरा अदम्य क्षमता से परिपूर्ण अथक संभोग का दर्द भरा आनंद। प्रारंभिक पीड़ा को झेल कर अंतत: जो आनंद प्राप्त हुआ वह अवर्णनीय था, कम से कम मैं तो अपना अनुभव बयां कर ही सकती हूं।

मैं कभी कभी सोचती हूं कि ऊपरवाला भी हम इनसानों के साथ अजीब अजीब खेल खेलता है। अजीब इसलिए हमें लगता है कि हम उसकी इच्छा को समझ नहीं सकते हैं। सच तो यह है कि जो कुछ होता है हमारे साथ, वह सब उसी की मरजी से होता है। उसके द्वारा पैदा की गयी परिस्थितियों के अनुसार अपने को ढाल कर हम बहुत सारी खुशियाँ हासिल कर सकते हैं। पाप पुण्य के पचड़े में पड़ कर हम अपनी जिंदगी की बहुत सारी खुशियों से वंचित रह जाते हैं। मेरे साथ अब तक जो कुछ हुआ उसे ईश्वरीय वरदान समझ कर मैं ने खुशी खुशी स्वीकार किया और सच कहूं तो इन सब में मुझे सचमुच में बेइंतहां खुशी हासिल हुई। अब अभी की घटना ही ले लीजिए। मैं कुछ और सोचकर घर आई थी, लेकिन यहां कुछ और हो रहा है। अब जो भी हो रहा है उससे अगर मैं मुंह मोड़ लूं तो मेरे हिसाब से मेरी मूर्खता ही कही जाएगी। भगवान कुछ सोच कर ही ऐसे अवसर प्रदान करता है, तो हम उसकी मर्जी के विरुद्ध क्यों जाएं भला। क्यों न ऐसे अवसरों के लिए भगवान का शुक्रिया अदा करते हुए ऐसे अवसर का लुत्फ लिया जाय। तो पाठकगण, अब आप समझ ही गये होंगे कि मैं इस वक्त पैदा हुई परिस्थिति में आनंद लेने हेतु अपने हिसाब से ईश्वर की इच्छा के अनुरूप कर गुजरने को कृतसंकल्प हूं। आखिर ईश्वर की इच्छा के असम्मान का पाप कैसे कर सकती थी।

अब आगे की घटना पर मैं आती हूं।

रश्मि का हाव भाव बता रहा था कि रामलाल के प्रस्ताव पर उसे कोई आपत्ति नहीं है, हालांकि दिखावे का उसका इनकार एक स्त्री सुलभ प्रतिक्रिया मात्र थी, जिसे सुनकर हम मुस्कुरा रहे थे। वैसे भी हम सबके सामने भला कैसे खुल कर अपनी सहमति दे देती वह। हम सब सभझ रहे थे।

“तो पहले पूरी कहानी खतम कीजिएगा कि…..” मैं आधा बोल कर चुप हो गयी, बाकी तो सब समझ ही रहे थे।

“पहले रश्मि मैडम।” रामलाल तुरंत बोला।

“छि:, नहीं, मैं नहीं।” उठकर जाने को हुई।

“अरे जाती कहां है मेरी छम्मक छल्लो।” मैं तुरंत उठी और रश्मि को अपनी बांहों में जकड़ ली।

“छोड़ मुझे साली कुतिया।” रश्मि छटपटाने लगी, दिखावे की छटपटाहट।

“हां मैं कुतिया हूं, मगर तू क्या कम है? मेरी अनुपस्थिति में इन बूढ़ों के लंड का मजा लेने के लिए तेरी चूत में खुजली नहीं मची थी क्या? बड़ी सीधी बन रही है। रामलाल जी, लीजिए पकड़ लीजिए इस कुतिया को और सच में कुतिया बना डालिए इसे। हरामजादी मुझे कुतिया कह रही है।” मैं रश्मि को जकड़े रामलाल को आमंत्रण दे बैठी। हरिया और करीम चुपचाप तमाशा देख रहे थे। उन्हें सब समझ आ रहा था कि यहां जो कुछ हो रहा है उसकी सूत्रधार मैं ही हूं और पूरी स्थिति में मेरा नियंत्रण है।
 
“ओह्ह्ह्ह्ह, नहींईंईंईंईंईंईंई, प्लीज नहींईंईंईंईंईंईंई।” रश्मि केवल मुंह से बोल रही थी। विरोध शारीरिक नहीं था।

“हां हां हांआंआंआंआंआं, रामलाल जी, आईए शिकार हाजिर है।”

“आया मैडम।” रामलाल भूखे भेड़िए की तरह रश्मि की ओर बढ़ा। उसकी आंखों में इतनी खूबसूरत शिकार को देखकर एक अलग तरह की चमक थी।

“नहींईंईंईंईंईंईंई…….” बेहद कमजोर ना। मुझे हंसी आ गयी।

“अब काहे की ना। सीधे सीधे बोल हां, हां हां हां।” मैं आगे बढ़ते रामलाल की ओर रश्मि को ढकेल कर बोली। रामलाल ने रश्मि को अपनी मजबूत बाजुओं में समेट कर आदमजात स्वभाव अनुसार उसके होंठों पर एक करारा और लंबा चुंबन अंकित कर दिया। उतने में ही तो पिघल गयी पगली। सारा विरोध, झिझक और हमारी उपस्थिति से उपजी शरमोहया कहां घुस गयी पता नहीं। अपने शरीर को उसकी बांहों में ढीला छोड़ समर्पित सी हो गयी रामलाल के सम्मुख। काम हो गया मेरा, अब तमाशा शुरू होने को था। बदहवासी के आलम में रामलाल और रश्मि एक दूसरे की बांहों में समाए चपाचप चुम्बनों का आदान प्रदान करने में मशगूल हो गये, इस बात से बेखबर कि अगले कुछ ही पलों में रामलाल के भीमकाय लिंग द्वारा रश्मि की चूत का क्रियाकरम होने वाला है। उनके शरीर से कपड़े एक एक करके छिलके की तरह उतरते चले गये। अद्भुत नजारा था। कहां रश्मि की खूबसूरत कमनीय काया और कहां रामलाल का गठा हुआ भीमकाय शरीर और उसका टनटनाया महा विकराल लिंग। उसके लिंग का आकार देखकर तो रश्मि भयाक्रांत हो गयी।

“ओ बाबा, एतो बोड़ो! ना बाबा ना। मोरी जाबो गो। छाड़ो छाड़ो।” घबराहट के मारे उसके मुह से निकला। इस वक्त रामलाल का लिंग कुछ अधिक ही बड़ा और भयावह दिख रहा था, काले नाग की तरह फनफनाता हुआ। हरिया और करीम ने भी इतने बड़े लिंग की कल्पना नहीं की थी शायद। करीब 11″ से भी लंबा और वैसा ही गधे सरीखा मोटा।

“चुप रहिए मैडम, कुछ नहीं होता है। चार चार औरतों को चोद चुका हूं, कुछ नहीं हुआ। कामिनी मैडम से पूछ लीजिए।” रश्मि के नंगे जिस्म को किसी गुड़िया की तरह दबोच कर बोला रामलाल।

“नहीं, ओ मां्आं्आं्आं, नहीं।”

“रामलाल, आप मत सुनिए इस कुतिया की बात। चोदिए साली हरामजादी को, बड़ी नखरे कर रही है। एक बार लंड अंदर लेने के बाद खुद बोलेगी चोद राजा चोद।” मैं बोल पड़ी। उत्तेजना मुझ पर भी हावी हो रही थी। “और तुम दोनों बेटीचोद बुड्ढे, खाली उधर ही देखोगे कि इधर भी देखोगे। देख नहीं रहे, मैं, जल रही हूं आग में, चुदास की आग में। अब बोलना पड़ेगा कि चोदो मुझे, या फिर रामलाल और रश्मि की चुदाई देख देख कर मूठ मारने का इरादा है।” रामलाल को उत्साहित करते हुए अपनी उत्तेजना की रौ में हरिया और करीम को आमंत्रण दे बैठी।

“साली कुत्ती, हमें ताव दिला रही है मां की चूत। मूठ काहे मारेंगे, चोदेंगे रे बुरचोदी, चल करीम, इस रंडी की चूत की खुजली मिटाते हैं। तेरी चूत का भोंसड़ा बनाते हैं अभी हरामजादी लंडखोर।” ताव आ गया हरिया को और करीम भी कम खिसियाया हुआ थोड़ी था। दोनों तनतनाए हुए मेरी ओर बढ़े भूखे भेड़ियों की तरह, मुझे नोचने खसोटने। मेरे पास आते ही मेरे कपड़ों को नोच नाच कर पल भर में मेरे तन से अलग कर दिया और मादरजात नंगी कर दिया।

“वाह, साली कुतिया, चुदने को बेताब, मां की लौड़ी, चूत देख हरामजादी की, कैसी गीली हो रही है, रंडी कहीं की।” बड़ी गलीज लफ्जों के साथ करीम मुझ पर टूट पड़ा और बेरहमी से मेरी चूचियों को मसलने लगा।

“ओह्ह्ह्ह्ह, आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, धीरे आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, मादरचोद, आहिस्ते।” मैं तड़प उठी, यही चाहती थी मैं, लेकिन ऐसी वहशियाना आक्रमण, बाप रे बाप, आफत को न्योता दे चुकी थी। अब भुगत साली कामिनी, चुदने के लिए मरी जा रही थी ना।

“धीरे? आहिस्ते? गाली दे रही है साली बुरचोदी? नोच साली कुतिया को। देख अभी हम तेरा क्या हाल करते हैं रंडी।” खूंखार लहजे में हरिया बोला और अपने कपड़े खोल कर जानवरों की तरह मुझ पर टूट पड़ा। बूढ़ा शेर। मेरी गीली चूत में भच्च से अपनी उंगली पेल कर उंगली से ही भचाभच चोदने लगा।
 
“आह आह आह आह ओह ओह ओह उफ्फ्फ्फ्फ्फ जानवर।” तड़प उठी मैं। मैं पिसी जा रही थी दो जानवरों के बीच। “आह ओह बेटीचोओ्ओ्ओ्ओ्ओद।”

“हां हम बेटीचोद हैं साली कुतिया, तेरे जैसी बुरचोदी बेटी भगवान सबको दे।” हरिया, जिसकी चुदाई का फल थी मैं, वह कमीना बोला।

“ओ्ओओ््ओओह्ह्ह्ह्ह मा्आ्आ्आ्आद्द्द्द्द्दर्र्र्र्र्रचो्ओ्ओ्ओ्ओद।”

“हांआंआंआंआंआं हम तेरी मां को चोदे हैं, तेरी नानी को चोदे हैं। और कुछ बोलना है मां की लौड़ी।” वह वहशी जानवर की तरह व्यवहार कर रहा था मेरे शरीर के साथ। वह तो वह, करीम मेरी भी चूचियों का मलीदा बनाने पर तुला हुआ था। तड़प उठी मैं। यही तो चाहती भी थी मैं। जानवरों की तरह नोच खसोट में मुझे भी एक अजीब तरह का आनंद आ रहा था। व्यथा युक्त आनंद।

उधर रश्मि, उसकी तो पूछो ही मत। वह छटपटा रही थी, भयभीत हिरनी की मानिंद उस दानव सरीखे अर्द्धविक्षिप्त कामपिपाशु भेड़िए के चंगुल में फंसी। “आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, छोड़िए ना।”

“ऐसे कैसे छोड़ दूं, बिना चोदे।”

“मर जाऊंगी।”

“नहीं मरोगी।” कहते हुए उसने जबर्दस्ती उसे वहीं फर्श पर पटक दिया और चढ़ बैठा उसके ऊपर।

“ओह बाबा, रहम करो मुझ पर।” गिड़गिड़ाने लगी।

“हां कर रहा हूं रहम, परेशान मत हो। आराम से चोदूंगा।” जबर्दस्ती उसके पैरों को फैलाते हुए बोला। अधपगला था तो क्या हुआ, आखिर चूत का रसिया जो ठहरा। स्त्री तन और चूत की महक उसे पागल किए दे रही थी। एक अधपगला स्त्रीदेह के भूखे को मानवीय पीड़ा एवं भावनाओं की समझ कहां, उसमें और एक कामांध पशु में फर्क ही क्या था। जबर्दस्ती उसने रश्मि के पैरों को फैला कर अपना भयावह लिंग उसकी पनियायी योनि के द्वार पर टिका दिया।

“फट जाएगी मेरी।” रामलाल के चंगुल में फंसी रश्मि भयभीत स्वर में बोली।

“फटने दे। सबकी फटी। फटने के बाद सब बोली मजा आ गया।” चुदक्कड़ पागल अब और समय गंवाना गंवारा नहीं करना चाहता था। गच्च से अपनी कमर को एक जुंबिश दे बैठा और चीख ही तो उठी रश्मि, दर्दनाक चीख, मर्मांतक पीड़ा भरी चीख। थर्रा उठा पूरा घर उसकी चीख से। एक पल तो हम स्तब्ध रह गये, स्थिर, अपनी अपनी स्थिति में। मगर रामलाल तो मानो पगला ही गया था, कोई प्रतिक्रिया नहीं, बस पशु, जंगली, बहरा पशु, जिसे अपने शिकार के खून का स्वाद लग गया हो। बेरहमी से रश्मि की कमर पकड़ कर एक धक्का और लगा दिया।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, मा्आ्आ्आ्आ्आ्आर डा्आ्आ्आ्आला्आ्आ् रे्ए्ए्ए्ए्ए्ए, ओ्ओ्ओह्ह्ह मां्आं्आं्आं।” रश्मि चीखती रही चिल्लाती रही मगर रामलाल तो अब आदमी कहां रह गया था।

“चू्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊप्प्प्प्प्प, एकदम चू्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊप्प्प्प्प। हो गय्य्य्य्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, बस हो गय्य्य्य्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, घुस्स्स्स्स्स्स गय्य्य्य्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, बस्स्स्स्स्स्स्स थोड़ा और उह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्हुम्म्म्म्म्म्आ्आ्आह।” एक और पाशविक धक्का और लो, पूरा का पूरा विशालकाय लिंग रश्मि की चूत को चीरता हुआ गुम हो गया चूत के अंदर। खुन्नम खून, हो गया रश्मि की चूत। रश्मि की आंखें फटी की फटी रह गयी। रामलाल के लंड से बिंधी हिलने डुलने से लाचार रश्मि।

“ओह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह्ह, मर गयी्ई्ई्ई्ई्ई रे मर गयी्ई्ई्ई्ई्ई मैं।” चीखती रह गयी रश्मि मगर रामलाल तो मानो अब चुदाई मशीन बन चुका था। बड़ी बेदर्दी से गचागच, फचाफच पेले जा रहा था पेले जा रहा था। पल भर को रहम आ गया मेरे दिल में उसकी हालत पर, लेकिन मुझे पता था, जो पीड़ा का दौर इस वक्त रश्मि पर बीत रहा है, कुछ समय की बात है, फिर तो उसकी फैल चुकी चूत खुद ब खुद रामलाल के लंड की मांग करने लगेगी। हुआ भी वही। सफलतापूर्वक, रामलाल के लंड को ग्रहण करने की पीड़ा के लम्हों के गुजर जाने के पश्चात खुद ही अपनी कमर उछालने लगी।

“आह्ह ओह्ह्ह्ह्ह, आह्ह ओह्ह्ह्ह्ह, इस्स्स्स्स्स्स्स इस्स्स्स्स्स्स्स, आह्ह रज्ज्ज्ज्जा्आ्आ्आ्आ, ओह्ह्ह्ह्ह रज्ज्ज्ज्जा्आ्आ्आ्आ, चोद चोद चोद चोद आह्ह।” रश्मि मस्ती में भर कर चुदने लगी और रामलाल का तो कहना ही क्या था, गजब, कुत्ते की तरह इतनी तेजी से उसकी कमर चल रही थी कि ऐसा लग रहा था मानो रोबोट बन गया हो।

इधर उनकी जंगली जानवरों वाली धींगामुश्ती, गुत्थमगुत्थी तथा कामुक सिसकारियों से निस्पृह, हरिया और करीम मुझ पर अपनी दरिंदगी की इंतहां करने को पिले पड़े थे। उनके कपड़े कब उनके शरीर से अलग हुए पता ही नहीं चला। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, करीम ने मुझे गुड़िया की तरह उठा कर मुझे ले कर सोफे पर बैठ गया और मुझे अपनी गोद में इस तरह बैठाया कि उसका लंड सरसरा कर मेरी लसलसी चूत के अंदर चला गया। मेरे दोनों पैर फैले हुए थे और करीम की जांघों पर टिके थे। मेरी पीठ उसकी ओर थी, अर्थात उसका लंड पीछे से मेरी चूत में पैबस्त था।
 
“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह,” एक लंबी आह निकली मेरे मुह से।

“अभी से आह, हरामजादी, अभी और आह करना है।” हरिया मेरी चूचियों को पीछे से पकड़कर बेरहमी से दबाता हुआ बोला। उनके मन में क्या चल रहा था इसका पता अगले ही पलों में चल गया। सामने से स्पष्ट दिख रहा था कि करीम का पूरा लंड मेरी चूत में समाया हुआ है लेकिन हरिया ने उसी अवस्था में अपना फनफनाता लंड लिए सामने से मेरी चूत को ही निशाना बनाने को तत्पर हो गया। तो क्या, तो क्या ये लोग मेरी एक चूत में दो दो लंड डालने का पागलपन करने वाले हैं?

“उफ्फ्फ्फ्फ्फ मां्आं्आं्आं, नहींईंईंईंईंईंईंई।”

“नहीं क्या साली कुतिया, देख तेरी चूत में दो दो लंड कैसे घुसेड़ते हैं हम।” हरिया गुर्राया। मैं क्या करती। विरोध करती? कैसे? किस मुंह से? मुसीबत को न्योता तो मैं ने ही दिया था।

“हाय, फाड़ डालने का इरादा है क्या बेटीचोद?”

“हांआंआंआंआंआं।” कहते न कहते हरिया ने वही किया जिस बात से डर रही थी। अपने लंड का दबाव मेरी पहले से लंड ठुकी चूत की बची खुची संकरी छिद्र पर धीरे धीरे बढ़ने लगा। मैं दर्द से कराह उठी। ज्यों ही उसके लंड का अग्रभाग मेरी चूत को अतिरिक्त रूप से फैला कर प्रविष्ट हुआ, मैं छिनाल भी एकबारगी चीख ही उठी।

“आह्ह, मादरचोद, ऐसा नहीं, ओह्ह्ह्ह्ह हरामजादे, कहां से सीखा यह हरामीपन? छोड़ो, मार डालोगे क्या? एक चूत में दो लंड, आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह।”

“हमें पता है हम क्या कर रहे हैं रंडी। आज ही रश्मि ने वीडियो दिखाया है। हमें पता है किस पर ट्राई करना है। तुम्हें छोड़ कर और कौन रंडी ले सकती है दो दो लौड़ा अपनी चूत में। ले मां की लौड़ी ले्ए्ए्ए्ए्ए्ए। आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, घुस्स्स्स्स्स्स गय्य्य्य्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह।” कहते कहते हरिया ने ठोंक दिया अपना लंड। मैं पीड़ा से तड़प उठी लेकिन यह मेरे लिए भी एक रोमांचक अनुभव था, अतः पीड़ा के बावजूद झेलने की पुरजोर कोशिश कर रही थी, फिर भी एक आह निकल ही गयी।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, कमीने बेटीचोओ्ओ्ओ्ओ्ओद। बेटी पर भी रहम नहींईंईंईंईंईंईंई।”

“रहम? तुझ रंडी पर रहम? और बेटी? कैसी बेटी? तेरे जैसी रंडी बेटी? तुझे चुदवाने की मस्ती चढ़ी तो कुत्तों से भी चुदवाने में कोई हिचक नहीं होगी हर्र्र्रामजादी। आज तुझे दिखाते हैं हम बूढ़े लंडों का जलवा।” हरिया बिल्कुल जानवरों की भाषा बोल रहा था। उफ्फ्फ्फ्फ्फ, पीड़ा थी लेकिन दो दो लंडों को अपनी चूत में समा लेने का वह रोमांचक आनंद भी अद्भुत था।

“साली रश्मि कमीनी कुतिया, यह तूने क्या दिखा दिया इन कमीनों को? साले मुझी पर अजमाने लगे। आज फटी मेरी चूत आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह।” मैं रश्मि को गाली बकने लगी।

“आह्ह ओह्ह्ह्ह्ह आह्ह ओह्ह्ह्ह्ह, साली बुरचोदी, आह्ह ओह्ह्ह्ह्ह, रामलाल जैसे पागल के हवाले करते हुए बड़ा्आ्आ्आ्आ मजा आ रहा था ना, ओह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह्ह, अब आया मजा तुझे भी कि नहीं? चोदिए चचा चोदिए हरामजादी रंडी को जमकर, फाड़ डालिए साली रंडी की बुर, ओह्ह्ह्ह्ह अह भोंसड़ा बना दीजिए इस कुत्ती के बुर को, भुर्ता बनाईए भुर्ता बनाईए आह्ह ओह्ह्ह्ह्ह।” रश्मि मेरी ओर देखते हूए चीखी। वैसे अब रामलाल के मूसलाकार लंड से सक्षमता के साथ चुदती हुई आनंदमयी आहें भी निकाल रही थी हरामजादी।
 
“गया ना, दो दो लंड गया ना तेरी चूत में साली छिना्आ्आ्आ्आ्आल। अब देख हम कैसे चोदते हैं।” कहते हुए दनादन लगे चोदने। नीचे से करीम का लंड, ऊपर से हरिया का लंड। गजब का अहसास हो रहा था मुझे। उफ्फ्फ्फ्फ्फ उस प्रारंभिक पीड़ा के पश्चात जो आनंद मुझे प्राप्त हो रहा था वह अकथनीय था। मुझे खुद ही विश्वास नहीं हो रहा था कि ऐसी परिस्थिति को भी मैं सक्षमता पूर्वक झेल सकती हूं, झेलना ही सिर्फ थोड़ी था, आनंद भी लेना था, जो मैं बखूबी ले रही थी। सच कहूं तो इसमें रामलाल के मोटे लंड का भी योगदान था। उससे चुदकर मेरी चूत फैल भी तो गयी थी। रामलाल के लंड के कट सेक्शन का क्षेत्रफल अकेले ही हरिया और करीम के लंडों के सम्मिलित कट सेक्शन के क्षेत्रफल के बराबर होगा, ऐसा मेरा अनुमान था। तभी तो इन दो लंडों से चुदने में सक्षम हो पा रही थी। उस कमरे का पूरा वातावरण बिल्कुल गंदा हो चुका था। एक तरफ रश्मि सिसकारियां लेती हुई रामलाल जैसे अर्द्धविक्षिप्त जानवर की जंगलीपन भरी नोच खसोट से आनंदित उसके अकल्पनीय विशालकाय लंड से चुदती मगन थी और रामलाल, अधपगला औरत चूत का रसिया, पूरे वहशियाना ढंग से उसे किसी खिलौने की तरह रगड़ रगड़ कर मशीनी अंदाज में हूं हूं हूं हूं की आवाज हलक से निकालता चुदाई में मगन और इधर हरिया और करीम जैसे बूढ़े औरतखोरों की वहशियाना चुदाई में पिसती मैं लंडखोर, दो दो लंडों को अपनी चूत में गपागप खाती आनंदमुदित, इस्स्स्स्स्स्स्स उस्स्स्स्स्स की सिसकारियां भरती चुदी जा रही थी। दोनों औरत खोर बूढ़े हांफते हुए अपनी समझ से मुझे नोच रहे थे खसोट रहे थे, भंभोड़ रहे थे, निचोड़ रहे थे और गंदी गंदी गालियों की बरसात किए जा रहे थे। “मां की चूत, गली की कुत्ती, रांड, रंडी की औलाद, छिना्आ्आ्आ्आ्आल, मर्दखोर, लौड़े की ढक्कन, और न जाने क्या क्या।”

मैं भी क्या कम थी, बड़बड़ा रही थी पागलों की तरह, “मादरचो्ओ्ओ्ओ्ओद, बेटीचोओ्ओ्ओ्ओ्ओद, भड़वे बुरचोद, कुत्ते कमीने, औरतखोर हराम के जने, जानवर, सूअरों की औलाद, खड़ूस चोदुओं के लौड़े और न जाने क्या क्या। चोद चोद मां के लौड़े, चोद।” लग रहा था मानो गालियों की प्रतियोगिता हो रही हो। यह सब चलता रहा अंतहीन। पता नहींं चला कि कैसे आधा घंटा बीत गया। इस दौरान मैं तो दो बार झड़ कर पसीने से लतपत अधमरी ही हो गयी। यही हाल रश्मि का भी था। अंततः उधर रामलाल किसी जंगली भैंसे की तरह डकारता हुआ रश्मि को भींच कर झड़ने लगा। “ओ्ओ्ओ्ओ्ओ्ओ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्।” रश्मि बेचारी भी सीधे अपनी कोख में रामलाल के लंड के गरमागरम वीर्य का पतन अनुभव करती हुई झड़ कर अधमरी सी हो रही थी, “ई्ई्ई्ई्ई्ई्ई्ई मां्आं्आं्आं ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ बाबा्आ्आ्आ

आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह।” निहाल हो गयी थी वह, ऐसा लग रहा था, पूर्ण संतुष्ट हो शिथिल हो रही थी। “आह्ह रज्ज्ज्ज्जा्आ्आ्आ्आ, जीवन का सर्वश्रेष्ठ सुख, आनंद दिया रे पगले तूने मुझे ओ्ओ्ओह्ह्ह कोखोनेऊ भूलते पारबो ना्आ्आ्आ्आ्आ्आ” छिपकली की तरह चिपकी ही रह गयी वह तो। रामलाल का शिथिल लंड अब भी रश्मि की चूत के अंदर ही था। आखिर शिथिल अवस्था में भी आठ इंच लंबा जो ठहरा।

इधर पहले हरिया झड़ते हुए मुझे निचोड़ने लगा, “आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह साली्ई्ई्ई्ई्ई्ई बुरचोदी्ई्ई्ई्ई्ई्,” गया वह। झड़ गया कर वह तो अलग हो गया मगर करीम, वाह रे बुढ़ऊ, लगा रहा गच्च गच्च चोदने में। मुझे अब पलट दिया और सीधे सामने से हमला बोला। करीब और दस मिनट तक मेरी नग्न देह की तिक्का बोटी करता रहा और अंततः वह भी झड़ा और क्या खूब झड़ा। मुझे कस कर अपनी बांहों में भींच कर मानो मेरी जान ही निकाल देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा उस कमीने नें। मैं कितनी भी थकी थी, चर थी, लेकिन तीसरी बार मैं भी झड़ने लगी, “ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ मां्आं्आं्आं।” अद्भुत, स्खलन। “वाह्ह्ह्ह्ह्ह मेरे बूढ़े शेरों, निहाल कर दिया मुझे ओ्ओफ्फ्फ्फ्फ्फ, क्या सुख प्रदान किया तुम दोनों ने, बता नहीं सकती।” सभी इधर उधर लस्त पस्त पड़े लंबी लंबी सांसें ले रहे थे। मैं चकित थी रश्मि की हालत पर। आरंभ में जो इतनी चीख चिल्ला रही थी, अब कितनी खुश, संतुष्ट दिख रही थी।

आगे की कहानी अगली कड़ी में।
 
उस दिन रश्मि और मेरी जो हालत हुई बता नहीं सकती। रश्मि को रामलाल नें अपने विकराल लिंग का दर्शन करा के डरा तो दिया, लेकिन अंततः अपना शिकार बना ही डाला। रश्मि बेचारी की तो भय के मारे घिग्घी बंध गयी थी लेकिन उत्तेजना की अवस्था में उसने अंततः रामलाल के सम्मुख हथियार डाल दिया। रामलाल, अधपगला औरत देह का रसिया, अपनी पाशविक प्रवृति के वशीभूत, रश्मि की देह का ऐसा भोग लगाया कि रश्मि हाय हाय कर उठी। एक तो उसकी चूत में विकराल लिंग के प्रवेश की पीड़ा, दूसरा उसके दानवी शरीर की दरिंदगी भरी संभोग क्रिया, अधमरी कर के ही छोड़ा उसने। लेकिन वाह रे रश्मि, गजब, पहले रोना चिल्लाना, फिर रामलाल की चुदाई से निहाल आनंदमुदित सिसकारियों के साथ उसकी कामक्रीड़ा में बराबर की हिस्सेदारी निभाई उसने। उसकी चूत को बड़ी सी गुफा में तब्दील कर दिया था रामलाल ने, लेकिन रश्मि मुदित थी। उसके नग्न देह से चिपकी, उसके शिथिल लिंग को अपनी गुफा बन चुकी लहुलुहान योनि में समायी, आनंदित, संतुष्ट, पड़ी हुई थी, मानो उसे जीवन का सर्वश्रेष्ठ खजाना मिल गया हो, अलग होने की किंचित भी इच्छा नहीं थी। इधर मैं अपनी चूत के दरवाजे को फाटक बनाने वाले बूढ़े चुदक्कड़ों के नये अंदाज में संभोग क्रिया से मुदित थी। यह प्रथम अनुभव था, एक साथ दो मर्दों के लिंगों को अपनी योनि में समाहित कर संभोग का लुत्फ लेने का। असंभव सा लगने वाला यह संभोग मेरे लिए संभव हुआ रामलाल की कृपा से, उसके अविश्वसनीय मोटे और लंबे लिंग से चुदी जो थी। इन दोनों ने अपनी समझ से मुझ पर तो कहर ही ढा दिया था। लेकिन मैं उनकी नोच खसोट से अति प्रसन्नता का अनुभव कर रही थी।कृतज्ञ भी थी रश्मि की, कि उसके वीडियो से प्रेरणा लेकर उन खड़ूस बूढ़ों ने मुझ पर ही आजमाने की जोखिम उठाई। इस तरह उनकी सनक भरी मनोवांछित जुगुप्सा शांत हुईऔर मुझे प्राप्त हुआ एक नया रोमांचक अनुभव।

“साली रश्मि, बड़ी बदमाश है रे तू तो।” मैं बोली।

“कैसे?”

“जाने कैसी कैसी फिल्में देखती है और दिखाती है। ये खड़ूस बूढ़े मुझी पर आजमा बैठे और मेरी तो जान ही निकाल दी।”

“और रंडी, तू कम है क्या? इस जानवर के हवाले करके मुझे मार डालने में कोई कसर छोड़ी थी क्या?”

“चल कोई बात नहीं, हिसाब बराबर हो गया। हां तो रामलाल जी, कैसा लगा?”

“मजा आ गया। रश्मि मैडम को चोदने का तो मजा ही कुछ और है।” बड़ा खुश खुश लग रहा था।

“हाय मेरे चोदू राजा, आपने भी तो मुझे स्वर्ग दिखाया।” रश्मि उससे चिपकी, चूमते हुए खुशी से ओतप्रोत बोल उठी।

“ओह मेरी लाड़ोरानी, बन गयी न उसकी दीवानी। फालतू में नखरे कर रही थी।”

“फालतू में? ऐसे लंड को कोई औरत एक बार देख ले तो थरथरा जाएगी।”

“और अब जो उस लंड को चूत में लिए पड़ी है?”

“हाय हाय, मन ही नहीं कर रहा अलग होने को।”

“तो पड़ी रह ऐसे ही। रामलाल जी, चलिए अब आगे की कहानी बताईए।” मैं बोली। हम ऐसे ही नंग धड़ंग पड़े बेशरमी के साथ वार्तालाप कर रहे थे। कोई झिझक नहीं, शर्म नहीं। रामलाल बोलने लगा:-

“ठीक है आगे सुनिए। जब सरोज गर्भवती हो गयी और उसका पेट फूलने लगा तो सरोज मुझे चोदने से मना करने लगी। मैं परेशान हो उठा। एक दिन ऐसे ही सरोज दिन के करीब दो बजे, जब घनश्याम दुकान जा चुका था, घर में मेरे और सरोज के सिवा और कोई नहीं था, सरोज बावर्ची खाने में खड़ी खड़ी काम कर रही थी तो मैं ने पीछे से जाकर उसे पकड़ लिया और बोला, “चोदने दे न रानी।”

“नहीं”

“क्यों?”

“मेरे पेट का बच्चा खराब हो जाएगा।”

“लेकिन मेरा क्या होगा?” मेरा लंड बमक कर चोदने को परेशान था। मैं बेचैन हो उठा। मैं पीछे से उसकी चूचियों को दबाने लगा। मेरा लंड उसकी पिछाड़ी में घुसा चला जा रहा था। चौंक उठी वह।

“यह क्या कर रहे हैं आप?”

“क्या कर रहा हूँ मैं?”

“हमारी गांड़ फाड़ने का इरादा है क्या?”

“गांड़? ये क्या होता है?”

“अरे यही, जहां आपका लंड घुसा चला आ रहा है।” मेरी बांहों में छटपटाती हुई बोली सरोज।

“ओह्ह्ह्ह्ह, तो हग्गू को गांड़ बोलते हैं।”

“हां रे पागल जेठजी।”

“तो चूत नहीं तो गांड़ ही सही।”

“हटिए आप। छोड़िए मुझे।”

“नहीं, मान भी जाओ न।” मैं मनाने लगा उसे। मेरा लंड सख्त होकर दर्द कर रहा था। मुझे राहत चाहिए थी किसी भी तरह।

“नहीं, हटिए, छोड़िए ना।” मेरी बांहों में अब छटपटाने लगी।

“ऐसा नहीं होता है क्या?”

“होता है, मगर आप का लंड बहुत बड़ा है।” झल्लाहट से बोली।

“तुमने कभी गांड़ नहीं चुदवाया है क्या?”
 
“हां, घनश्याम नें हमारी गांड़ भी मारी है, लेकिन उसका लंड आपसे बहुत छोटा है। हो गया। मरवा ली गांड़। लेकिन आप तो फाड़ ही दीजिएगा। छोड़ दीजिए ना मेहरबानी करके।” अब गिड़गिड़ाने लगी थी वह। मुझे यह सुनकर अच्छा लगा कि गांड़ चुदवा चुकी है, मतलब उसकी गांड़ चोदी जा सकती है। उसकी गांड़ है भी बड़ी मस्त, चिकनी, गोल गोल और बड़ी सुंदर। आशा की किरण नजर आई मुझे।

“गांड़ चुदवा चुकी हो तो मुझसे चुदवाने में किस बात का डर।” मैं उसकी साड़ी उठाते हुए बोला।

“मेरी गांड़ फट जाएगी जेठजी। आपका लंड बहुत बड़ा है।” वह मेरी एक बांह में कसी हुई छटपटा रही थी।

“तेरी चूत चोदने से पहले भी तो यही कह रही थी तुम। फटी क्या? नहीं ना। फिर डर काहे रही हो?” मैं अबतक उसकी साड़ी कमर तक उठा चुका था। अंदर उसने कुछ नहीं पहना था। उफ्फ्फ्फ्फ्फ, उसकी चिकनी गांड़ देख कर मेरा लंड और टाईट हो गया। मैं परेशान हो उठा। उसी परेशानी की हालत से छुटकारा पाने के लिए मैंने अपने पजामे का नाड़ा और अंडरपैंट का नाड़ा ढीला कर दिया और नीचे गिरने दिया। मेरा लंड फनफनाता हुआ उसकी गांड़ के बीच धंसने लगा। जितना छटपटा रही थी उतना ही और घुसता जा रहा था। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। अबतक सिर्फ गांड़ की फांकों के बीच ही धंसा था मेरा लंड। हग्गू वाली छेद को छू रहा था। चिहुंक उठी वह।

“हाय राआ्आ्आ्आ्आ्आम। यह यह यह ककककक्या्आ्आ्आ्आ्आ कर रहे हैं आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह?” झल्लाहट में बोली वह।

“दे दे सरोज अपनी गांड़।”

“नहींईंईंईंईंईंईंई।” मगर मुझ पर तो भूत सवार हो चुका था। जबर्दस्ती पर उतर आया मैं।

“चोदे बिना तो मानूंगा नहीं।”

“मानिएगा नहीं?”

“हां” बेचारी तड़पती रही और मैं धीरे धीरे घुसाने की कोशिश करने लगा अपना लंड उसकी गांड़ की छेद में।

“आह नहीं, ओह बाबा्आ्आ्आ, सूखी सूखी गांड़ में जलन हो रही है जेठ जी, चोदना ही है तो प्लीज तेल लगा लीजिए अपने लंड पर।” अंत में थक हार कर बोली। मुझे और क्या चाहिए था, बोतल से बादाम का तेल लिया और लंड पर लसेड़ कर फिर टिका दिया उसकी गांड़ की छेद पर।

“हम फिर कह रहे हैं छोड़ दीजिए ना हमें। मर जाएंगे हम।” अतिम कोशिश करने लगी लेकिन अब मैं कहां रुकने वाला था, मुझे तो मुहमांगी मुराद मिल चुकी थी, वह रोने लगी, लेकिन मैंने परवाह नहीं की। मैंने उसकी चूचियों को मजबूती से दबोच कर एक जोर का धक्का लगा दिया। फच्च से एक ही बार में तेल चुपड़े लंड का आधा भाग उसकी गांड़ को चीरता हुआ अंदर समा गया।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, मा्आ्आ्आ्आ्आ्आ्र्र्र्र्र्र्र्र डाला्आ्आ्आ्आ्आ्आ रे्ए्ए्ए्ए्ए्ए अम्म्म्म्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह।” दर्द से तड़प रही थी वह। सच में फट चुकी थी उसकी गांड़। बहुत टाईट थी उसकी गांड़। उफ्फ्फ्फ्फ्फ, बड़ा मजा आ रहा था मुझे। कैसे अब रुक सकता था मैं। एक और जोर का धक्का लगाया और सर्र से पूरा लंड उतार दिया उसकी गांड़ में। इतना मजा पहले कभी नहीं मिला, इतनी टाईट गांड़ होती है मुझे पता नहीं था।

“ओ्ओ्ओह्ह्ह फट्ट्ट्ट्ट्ट गय्य्य्यीई्ई्ई्ई्ई मेरी गां्आं्आं्आं्आं्आं्ड़। ओह कुत्ते्ए्ए्ए्ए जेठ जी्ई्ई्ई्ई्।” चीख उठी वह। मगर मुझे अब होश कहाँ था। सटासट चोदना शुरू कर दिया उसकी टाईट गांड़। उफ्फ्फ्फ्फ्फ बहुत मजा आ रहा था। कुछ देर के दर्द के बाद अब उसकी गांड़ भी थोड़ी ढीली पड़ी और वह भी गांड़ उछाल उछाल कर अपनी गांड़ चुदवाने लगी।

“आह ओह हाय आह चोदिए जेठ जी, मजा आ रहा है ओह राजा, ओह बलमा ओह मेरे चोदू जेठ जी, चोदिए मेरी गांड़, आह।” मजे में चुदते हुए बोल रही थी। मैं भी जोश में आ कर दनादन चोदने लगा। उसे कुतिया की तरह पीछे से चोदने में मशगूल था। मेरे लंड के नीचे का अंडू वाला थैला थप थप उसकी चूत पर थपकियाँ दे रहा था। करीब बीस पच्चीस मिनट बाद मैं उसकी चूचियों को निचोड़ता हुआ अपने लंड का पानी उसकी गांड़ में भरता चला गया।

“आ्आआ््आआ््आआ््हह मां्आं्आं्आं,” कहती हुई वह भी थरथरा थरथरा कर ढीली पड़ गयी। वह बावर्ची खाने के स्लैब पर हाथ टिकाए झुकी हुई लंबी लंबी सांसें ले रही थी। मैंने उसकी चुत की तरफ हाथ लगाया तो देखा कि चूत से लसलसा पानी निकल रहा था। हम चुदाई करके अलग हुए तो देखा कि मेरे लंड पर खून लगा हुआ था। सरोज की गांड़ सचमुच में फट चुकी थी। उसका मलद्वार काफी बड़ा हो चुका था। मलद्वार का छल्ला लाल हो गया था।

“कैसा लगा?” मैं हांफता हुआ पूछा।

 
“उफ्फ्फ्फ्फ्फ, मार ही डाला था आपने तो हमें। दर्द से जान ही निकल गयी थी हमारी। हां, बाद में उफ्फ्फ्फ्फ्फ, बाद में तो स्वर्ग सा सुख मिला ओह्ह्ह्ह्ह राजा, मेरे बलमा जेठ जी, आप महान हैं। दीवानी बना डाला आपने तो हमें अपने लंड की। ऐसा लं, बाप रे बाप। अभी तक जल रही है मेरी गांड़। दर्द हुआ मगर मजा ओह ऐसा मजा जीवन में कभी नहीं मिला मेरे स्वामी। गांड़ में आपके मोटे लंड का धमाल, चूत में आपके अंडुओं की थपकी। निहाल हो गयी मैं तो।” कहते कहते मेरे लंड को, जो खून और हल्के हल्के गू से सना था, बिना किसी घिन के दोनों हाथों से पकड़ कर चूम उठी वह पगली। फिर लड़खड़ाते हुए सीधे पैखाने घर की ओर गयी। मैं उसे सहारा दे कर ले चला। पैखाने पर बैठते ही भर्र भर्र करके उसकी गांड़ से मल निकलने लगा। ऐसा लग रहा था मानो पूरा पेट खाली हो गया।

फिर गांड़ धो कर जब वह वापस आई तो मैं पूछा, “कैसी है तबीयत? ठीक तो हो?” घबरा रहा था मैं।

“ठीक हूं। लग रहा है पूरा पेट साफ हो गया। आपके लंड ने तो हमारी गांड़ का रास्ता ही खोल दिया।” मरी मरी सी आवाज में बोली वह। मेरी जान में जान आई। उसके बाद दो दिन तक ठीक से चल भी नहीं पा रही थी। उसके बाद तो मेरी गाड़ी चल पड़ी। जबतक बच्चा नहीं हुआ, उसकी गांड़ ही चोदता रहा। बच्चा हुआ तो फिर वही शुरू हो गया। कभी चूत, कभी गांड़। खूब मजे से चुदवाती है वह।

इसी दौरान बच्चा होने के करीब दो साल बाद एक दिन मैं सरोज को बावर्ची खाने में साड़ी उठा कर खड़े खड़े चोद रहा था कि,

“अरे, अरे, यह क्या हो रहा है?” एक आवाज सुनकर हम चौंक उठे। यह रबिया की आवाज थी। वह चालीस साल की भरे भरे बदन वाली सांवली विधवा औरत हमारी पड़ोसन थी, जो लोगों के घरों में चौका बर्तन का काम करती थी। दूसरों के घर चौका बर्तन का काम करके अपना और अपनी बेटी, जो सत्रह बरस की हो चुकी थी और कॉलेज में पढ़ रही थी, का पेट पाल रही थी और बेटी को पढ़ा रही थी। शायद किसी काम से आई थी। असावधानी के कारण हम दरवाजा बंद करना भूल गये थे, इस कारण रबिया बेरोकटोक बावर्ची खाने में सीधे आ गयी थी और हमें इस हालत में देखकर चौंक उठी थी। मुझे तो कोई फर्क नहीं पड़ा लेकिन सरोज, वह तो घबरा ही गयी। हड़बड़ा कर अलग हो गयी और झेंपती हुई वहां से भागी। मैं वहीं अपने तनतनाए लंड के साथ खड़ा रह गया। मैं परेशान, अपने खड़े लंड की अनबुझी प्यास के साथ खड़ा रबिया को देखता रह गया। गुस्सा भी आ रहा था उसपर। औरत और वह भी रबिया जैसी भरे बदन वाली औरत, अच्छी खासी सेहत वाली, मेरे भूखे लंड के लिए बिल्कुल सही औरत, ऊपर से चुदाई के बीच में कूद पड़ने वाली औरत, मेरी समझ से जिसे शायद भगवान ने इसी वास्ते भेजा था कि बाकी की चुदाई उसी से पूरी कर लूं, देख कर मेरा भेजा ही फिर गया था। उधर मेरे लंड को देख कर रबिया बीबी की आंखें फटी की फटी रह गयी। अपनी जगह खड़ी की खड़ी रह गयी। उसके मुंह से निकला, “हा्आ्आ्आ्आ्आ्आय अल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ला्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्ह।”

आगे की कहानी अगले भाग में।
 
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