desiaks
Administrator
- Joined
- Aug 28, 2015
- Messages
- 24,893
पिछले भाग में आपलोगों ने पढ़ा कि रामलाल अपनी कहानी हमलोगों के सामने बता रहा था कि किस तरह उसने अपने छोटे भाई की पत्नी सरोज के साथ शारीरिक संबंध स्थापित किया। वह तो नासमझ था किंतु सरोज ने उसकी नासमझी का पूरा पूरा फायदा उठाया। उसने न सिर्फ रामलाल से शारीरिक संबंध स्थापित करके मां बनने का सौभाग्य प्राप्त किया बल्कि इस चक्कर में रामलाल को स्त्रियों से संभोग सुख का चस्का भी लगा दिया। जब वह गर्भवती हुई तो योनि मैथुन का आदी रामलाल की कामक्षुधा कैसे शांंत हो? तो उसका भी आनंददायक विकल्प मिल गया, गुदा मैथुन का। सरोज की गुदा मैथुन में उसे एक अलग ही आनंद प्राप्त हुआ। संकीर्ण गुदामार्ग में उसके विशाल लिंग को एक अलग तरह की तृप्ति का सुख प्राप्त हुआ। सरोज के मां बनने के बाद तो रामलाल की निकल पड़ी। कभी योनि मैथुन तो कभी गुदा मैथुन। बहुत प्रसन्न था वह। किंतु एक दिन उनके निर्बाध चलते इस अनैतिक रिश्ते का भंडाफोड़ हो गया। पकड़े गये दोनों रंगे हाथ, संभोग में लिप्त। उनकी जरा सी असावधानी, दरवाजा खुला छोड़ कर अपनी हवस मिटाने की जल्दबाजी नें रबिया के सामने उनके अनैतिक रिश्ते पर से बेपर्दा कर दिया। इस तरह अकस्मात रबिया के आगमन से स्तब्ध सरोज, लज्जा से गड़ी, भयभीत मुंह छिपा कर भागी दूसरे कमरे में। यूं तो भांडा फूटा भी तो सिर्फ रबिया के सामने, जो उनकी पड़ोसन थी, लेकिन सरोज पानी पानी हो उठी। सिर्फ लज्जित ही नहीं, भयभीत भी, कि कहीं यह बात जगजाहिर न हो जाय।
रश्मि अब भी रामलाल से चिपकी तन्मयता से उसकी कथा में खोई हुई थी। रामलाल उसके चिकने नितंब पर पर हाथ फेरता हुआ अपनी कहानी बता रहा था। अब आगे:-
“रबिया चालीस साल की भरे भरे बदन वाली सांवली विधवा औरत हमारी पड़ोसन थी, जो लोगों के घरों में चौका बर्तन का काम करती थी। दूसरों के घर चौका बर्तन का काम करके अपना और अपनी बेटी, जो सत्रह बरस की हो चुकी थी और कॉलेज में पढ़ रही थी, का पेट पाल रही थी और बेटी को पढ़ा रही थी। शायद किसी काम से आई थी। अचानक इस हालत में पकड़े जाने से मुझे तो कोई फर्क नहीं पड़ा लेकिन सरोज, वह तो घबरा ही गयी। हड़बड़ा कर अलग हो गयी और झेंपती हुई वहां से भागी। मैं वहीं अपने तनतनाए लंड के साथ खड़ा रह गया। मैं परेशान, अपने खड़े लंड की अनबुझी प्यास के साथ खड़ा रबिया को देखता रह गया। गुस्सा भी आ रहा था उसपर। औरत और वह भी रबिया जैसी भरे बदन वाली औरत, अच्छी खासी सेहत वाली, मेरे भूखे लंड के लिए बिल्कुल सही औरत, ऊपर से चुदाई के बीच में कूद पड़ने वाली औरत, मेरी समझ से, जिसे शायद भगवान ने इसी वास्ते भेजा था कि बाकी की चुदाई उसी से पूरी कर लूं, देख कर मेरा भेजा ही फिर गया था। उधर मेरे लंड को देख कर रबिया बीबी की आंखें फटी की फटी रह गयी। अपनी जगह खड़ी की खड़ी रह गयी। उसके मुंह से निकला, “हा्आ्आ्आ्आ्आ्आय अल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ला्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्ह।”
रश्मि अब भी रामलाल से चिपकी तन्मयता से उसकी कथा में खोई हुई थी। रामलाल उसके चिकने नितंब पर पर हाथ फेरता हुआ अपनी कहानी बता रहा था। अब आगे:-
“रबिया चालीस साल की भरे भरे बदन वाली सांवली विधवा औरत हमारी पड़ोसन थी, जो लोगों के घरों में चौका बर्तन का काम करती थी। दूसरों के घर चौका बर्तन का काम करके अपना और अपनी बेटी, जो सत्रह बरस की हो चुकी थी और कॉलेज में पढ़ रही थी, का पेट पाल रही थी और बेटी को पढ़ा रही थी। शायद किसी काम से आई थी। अचानक इस हालत में पकड़े जाने से मुझे तो कोई फर्क नहीं पड़ा लेकिन सरोज, वह तो घबरा ही गयी। हड़बड़ा कर अलग हो गयी और झेंपती हुई वहां से भागी। मैं वहीं अपने तनतनाए लंड के साथ खड़ा रह गया। मैं परेशान, अपने खड़े लंड की अनबुझी प्यास के साथ खड़ा रबिया को देखता रह गया। गुस्सा भी आ रहा था उसपर। औरत और वह भी रबिया जैसी भरे बदन वाली औरत, अच्छी खासी सेहत वाली, मेरे भूखे लंड के लिए बिल्कुल सही औरत, ऊपर से चुदाई के बीच में कूद पड़ने वाली औरत, मेरी समझ से, जिसे शायद भगवान ने इसी वास्ते भेजा था कि बाकी की चुदाई उसी से पूरी कर लूं, देख कर मेरा भेजा ही फिर गया था। उधर मेरे लंड को देख कर रबिया बीबी की आंखें फटी की फटी रह गयी। अपनी जगह खड़ी की खड़ी रह गयी। उसके मुंह से निकला, “हा्आ्आ्आ्आ्आ्आय अल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ला्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्ह।”