desiaks
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अबे गांंडू मादरचोद, देख क्या रहा है खड़े खड़े। लाईट जला, जरा देखें तो मैडम का बदन, चेहरा तो देख लिए हैं, बंदरिया बन गयी साली।” उसकी आवाज में अब दहशतनाक गुर्राहट निकली, जंगली भेड़िए सी गुर्राहट। उत्तेजना के मारे पगला रहा था वह। वही हाल मेरा भी था लेकिन मैं जाहिर नहीं कर रही थी। बल्ब की रोशनी में नहा उठी मैं। मेरी भीगी पैंटी देख, सलीम मियां को समझते देर न लगी कि मैं अबतक बेमतलब का नाटक कर रही थी। “वाह मैडम, कमाल का जिस्म है आपका तो। अब ब्रा और चड्डी भी हम ही खोल दें कि आप खुद खोलिएगा।” जहां मैं गिरी थी वहां सीमेंट का एक खुला हुआ आधा बोरा पड़ा था। मेरे गिरते ही सीमेंट का गुब्बार सा उठा और मैं सीमेंट से नहा उठी।
“उफ्फफ ओह्ह्ह्ह्ह।” मैं ने इस हालत की कल्पना नहीं की थी। जबतक मैं संभलती, मिस्त्री सलीम मियां मेरी सीमेंट सने तन पर झपट पड़ा और पैंटी ब्रा से मुझे मुक्त कर दिया। अब मैं नंगी थी। पूर्णतया नंगी। पूरा शरीर तो सीमेंट सीमेंट हो चुका था लेकिन ब्रा और पैंटी के कारण सीमेंट पुतने से बची मेरी बड़ी बड़ी चूचियां और फकफकाती योनि चमचमा रही थीं। मेरी नग्न देह का यह आलम देख कर मिस्त्री की उत्तेजना का पारावार न रहा।
“मैडम जी, अब क्या कहती हैं? आप तो मना कर रही हैं और आपका भोंसड़ा चोदवाने के लिए आंसू बहा रहा है।” वही जानी पहचानी हवस भरी मुस्कान खेल रही थी उसके होंठों पर।
“नहीं तो बोल रही हूं ओह्ह्ह्ह्ह मां्आं्आं्आं।”
“केवल मुंह से।” अब उससे और बर्दाश्त नहीं हो रहा था। मेरी फुदकती योनि उसे आमंत्रित कर रही थी। छा गया मेरे सीमेंट से सनी नग्न देह पर और एक हाथ से मुझे दबोच दूसरे हाथ से अपने भीमकाय लिंग के विशाल सुपाड़े को मेरे योनिद्वार पर टिका कर बिना आगा पीछा सोचे कचकचा के घुसेड़ दिया अंदर।
“आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्,” एक दर्द की लहर सी दौड़ गयी मेरे तन में। था भी तो इतना मोटा लिंग। मेरी योनि को चीरता सर्र से प्रविष्ट हुआ था। उसके करारे धक्के से मेरे नितंब के नीचे से सीमेंट का गुबार उठ गया। मेरे शरीर पर सीमेंट का पाऊडर पुत गया था। अपनी इस हालत के लिए मैं खुद ही जिम्मेदार थी, तनिक कोफ्त तो हुई लेकिन मेरे सीमेंट पुते शरीर के साथ सलीम मियां जो कुछ कर रहा था वह भी कम रोमांचक नहीं था। कुछ पलों की उस पीड़ा को मैं पी गयी क्योंकि मुझे पता था कि इसके बाद के आनंद में मैं खुद ही डूब उतरा रही होऊंगी।
“अब काहे का आह ऊह। ससेट दिया मेरा लौड़ा।इतने बड़े भोंसड़े में इतना मोटा लौड़ा इतनी आसानी से खा लेने के बाद ई आह ऊह का ड्रामा काहे का? लंडखोर कहीं की, कोई और होती तो चिल्लाने लग जाती, लेकिन तू तो बहुत बड़ी रंडी है रे मां की बुर, खा ली एक्के बार में पूरा लौड़ा, वाह। अब तो चुदवाती जा बुरचोदी।” पहले धक्के में ही उसे पता चल गया था कि मैं कितनी बड़ी रंडी हूं।
“न न न नहीं नहींईंईंईंईंईंईंई, आह्ह, मैं ऐसी नहींईंईंईंईंईंईंई हूं।” मैं अब भी बाज नहीं आ रही थी नौटंकी करने में।
“चू्ऊ्ऊ््ऊ्ऊ्ऊ्प्प्प्प् साली भोंसड़ी की। देख लिया तेरा ड्रामा साली मां का भोंसड़ा।” अब वह मुझ पर बिंदास कहर ढाने लगा। सीमेंट से पुते मेरी चूचियों को दबोच दबोच कर गूंथ रहा था, साथ ही सटासट मेरी चूत का भुर्ता बनाने में जुट गया। उफ्फो्ओ्ओ्ह्ह, ओह अब मैं मस्ती में भर कर आहें भरने को मजबूर हो गयी।
“ओह्ह्ह्ह्ह रज्जा, ओह साले मादरचोद दढ़ियल, उफ्फो्ओ्ओ्ह्ह, चोद हरामी चोद कमीने आह ओह आह।” अब मैं भी सीमेंट के बोरे पर अपनी चूतड़ पटक पटक कर उसके विशाल लंड को घपाघप खाये जा रही थी। इधर उधर लुढ़कते चुदाई के आनंद में इतने खो गये कि पूरा शरीर सीमेंट सीमेंट हो गया। हम भूतों की तरह गुत्थमगुत्थी में लीन हो गये थे। वह गांडू लौंडा वहीं खड़ा हमारी चुदाई को बुत बना आंखें फाड़े देख रहा था।
“उफ्फफ ओह्ह्ह्ह्ह।” मैं ने इस हालत की कल्पना नहीं की थी। जबतक मैं संभलती, मिस्त्री सलीम मियां मेरी सीमेंट सने तन पर झपट पड़ा और पैंटी ब्रा से मुझे मुक्त कर दिया। अब मैं नंगी थी। पूर्णतया नंगी। पूरा शरीर तो सीमेंट सीमेंट हो चुका था लेकिन ब्रा और पैंटी के कारण सीमेंट पुतने से बची मेरी बड़ी बड़ी चूचियां और फकफकाती योनि चमचमा रही थीं। मेरी नग्न देह का यह आलम देख कर मिस्त्री की उत्तेजना का पारावार न रहा।
“मैडम जी, अब क्या कहती हैं? आप तो मना कर रही हैं और आपका भोंसड़ा चोदवाने के लिए आंसू बहा रहा है।” वही जानी पहचानी हवस भरी मुस्कान खेल रही थी उसके होंठों पर।
“नहीं तो बोल रही हूं ओह्ह्ह्ह्ह मां्आं्आं्आं।”
“केवल मुंह से।” अब उससे और बर्दाश्त नहीं हो रहा था। मेरी फुदकती योनि उसे आमंत्रित कर रही थी। छा गया मेरे सीमेंट से सनी नग्न देह पर और एक हाथ से मुझे दबोच दूसरे हाथ से अपने भीमकाय लिंग के विशाल सुपाड़े को मेरे योनिद्वार पर टिका कर बिना आगा पीछा सोचे कचकचा के घुसेड़ दिया अंदर।
“आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्,” एक दर्द की लहर सी दौड़ गयी मेरे तन में। था भी तो इतना मोटा लिंग। मेरी योनि को चीरता सर्र से प्रविष्ट हुआ था। उसके करारे धक्के से मेरे नितंब के नीचे से सीमेंट का गुबार उठ गया। मेरे शरीर पर सीमेंट का पाऊडर पुत गया था। अपनी इस हालत के लिए मैं खुद ही जिम्मेदार थी, तनिक कोफ्त तो हुई लेकिन मेरे सीमेंट पुते शरीर के साथ सलीम मियां जो कुछ कर रहा था वह भी कम रोमांचक नहीं था। कुछ पलों की उस पीड़ा को मैं पी गयी क्योंकि मुझे पता था कि इसके बाद के आनंद में मैं खुद ही डूब उतरा रही होऊंगी।
“अब काहे का आह ऊह। ससेट दिया मेरा लौड़ा।इतने बड़े भोंसड़े में इतना मोटा लौड़ा इतनी आसानी से खा लेने के बाद ई आह ऊह का ड्रामा काहे का? लंडखोर कहीं की, कोई और होती तो चिल्लाने लग जाती, लेकिन तू तो बहुत बड़ी रंडी है रे मां की बुर, खा ली एक्के बार में पूरा लौड़ा, वाह। अब तो चुदवाती जा बुरचोदी।” पहले धक्के में ही उसे पता चल गया था कि मैं कितनी बड़ी रंडी हूं।
“न न न नहीं नहींईंईंईंईंईंईंई, आह्ह, मैं ऐसी नहींईंईंईंईंईंईंई हूं।” मैं अब भी बाज नहीं आ रही थी नौटंकी करने में।
“चू्ऊ्ऊ््ऊ्ऊ्ऊ्प्प्प्प् साली भोंसड़ी की। देख लिया तेरा ड्रामा साली मां का भोंसड़ा।” अब वह मुझ पर बिंदास कहर ढाने लगा। सीमेंट से पुते मेरी चूचियों को दबोच दबोच कर गूंथ रहा था, साथ ही सटासट मेरी चूत का भुर्ता बनाने में जुट गया। उफ्फो्ओ्ओ्ह्ह, ओह अब मैं मस्ती में भर कर आहें भरने को मजबूर हो गयी।
“ओह्ह्ह्ह्ह रज्जा, ओह साले मादरचोद दढ़ियल, उफ्फो्ओ्ओ्ह्ह, चोद हरामी चोद कमीने आह ओह आह।” अब मैं भी सीमेंट के बोरे पर अपनी चूतड़ पटक पटक कर उसके विशाल लंड को घपाघप खाये जा रही थी। इधर उधर लुढ़कते चुदाई के आनंद में इतने खो गये कि पूरा शरीर सीमेंट सीमेंट हो गया। हम भूतों की तरह गुत्थमगुत्थी में लीन हो गये थे। वह गांडू लौंडा वहीं खड़ा हमारी चुदाई को बुत बना आंखें फाड़े देख रहा था।