desiaks
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“बस बस हो गया।” कहकर मैं उसके हाथ से पोंछा लेने को हाथ बढ़ाया, लेकिन इस क्रम में मेरा हाथ उसके हाथ से टकराया और उसे मानो 440 वॉल्ट का करंट लगा। पोंछा उसके हाथ से छूट गया और उसे उठाने के क्रम में मैं झुकी और तभी वह भी झुका। एक साथ झुकने से मेरा सर बड़ी जोर से उसके सर से टकरा गया। झन्न से झमाका सा हुआ मेरे सर में, पर भर के लिए दिमाग मेरा सुन्न सा हो गया था। दिन में तारे नज़र आ गये थे मेरे। मैं लड़खड़ा कर गिरने को हुई, तभी दूधवाले रमेश नें मजबूत बांहों में मुझे थाम लिया। सिर्फ थामा नहीं, जानबूझकर या अनजाने में उसनें मुझे अपने से सटा लिया। पर भर तो मैं स्तब्ध रह गयी, फिर मैंने खुद को संभाला और उसकी बांहों की कैद से मुक्त होने का प्रयत्न करने लगी, लेकिन मेरा यह प्रयास बेहद कमजोर था, या नगण्य था, या रमेश की पकड़ ही इतनी सख्त थी कि मैं फड़फड़ा कर रह गयी। मैं चाहती भी तो यही थी ना, लेकिन मैं इतनी आसानी से समर्पण करके खुद को इतनी सस्ती बनाना भी नहीं चाहती थी। अंदर से धधक रही थी, पुरुष संसर्ग के लिए मरी जा रही थी लेकिन विरोध का दिखावा करके शराफत का ढोंग भी करना था।
“आह, छोड़ो मुझे।” मैं बोली। मेरा शरीर उसके पहाड़ जैसे शरीर से चिपका हुआ था। मेरे स्तन उसके सीने से चिपके हुए थे। उसे भी शायद आभास हो चुका था कि नाईटी के अन्दर मेरे स्तन ब्रा बिना स्वतंत्र हैं। तभी मुझे अपनी नाभी के आस पास किसी कठोर वस्तु का आभास हुआ, समझते देर नहीं लगी कि यह रमेश का तना हुआ लिंग है। लेकिन इतना स्पष्ट आभास? तो क्या, तो क्या उसने चड्डी नहीं पहनी है? या शायद चड्डी के स्थान में उनका परंपरागत ढीला ढाला अंडरवियर? शायद, तभी तो उसका स्वतंत्र लिंग आजादी से अठखेलियां कर रहा था और अपनी उत्तेजित अवस्था का अहसास करा रहा था। सच में, मैं तो अंदर तक झनझना उठी। मन मयूर नाच उठा, नस नस तरंगित हो उठा, मगर अपनी भावनाओं को छुपा कर रखना तो कोई मुझ से सीखें। यथासंभव मैं भावनाओं को अभिव्यक्त होने से रोकने में फिलहाल तो सफल थी।
“ओह,” कहता हुआ उसनें मुझे अकस्मात अपनी बांहों से आजाद कर दिया, नतीजा? मैं असंतुलित हो पुनः गिरने को हुई लेकिन शुक्र हो उस दूधवाले का, थाम लिया मुझे और वो, सबकुछ तो पता चल गया उसे कि मैं नाईटी के अन्दर पूर्णतया नंगी हूं। इस बार उसका एक हाथ मेरे नितंबों पर था। समझते देर नहीं लगी उसे कि मेरी पैंटी भी नदारद है। असमंजस, अनिश्चय, दुविधा में पड़ा, वह शायद समझने की कोशिश कर रहा था कि मेरा इरादा क्या है। मैं ठहरी एक नंबर की ड्रामेबाज, मेरे चेहरे पर अब भी कोई भाव नहीं था, हालांकि मैं बड़ी बेकल थी कि वह टूट पड़े मुझ पर, मिटा डालने अपनी जिस्मानी भूख, रगड़ डाले, निचोड़ डाले मुझे, मगर अपने मुंह से एक दूधवाले को बोलूं तो बोलूं कैसे। सिर्फ देखती रही कि इस समय परिस्थितियां हमें कहां तक ले जाती हैं। वैसे भी इस वक्त मैं किसी भी परिस्थिति में कृत-संकल्प थी कि उस दूधवाले को हाथ से जाने न दूंगी। मुंह से भले न बोलूं, शारीरिक भाषा भी तो कोई चीज होती है। ज्यों ही उसनें मुझे थामा, मैं भी अनजाने में उससे चिपक गई, अपने दोनों हाथों से उसके पहाड़ जैसे शरीर को पकड़ कर। मेरे दोनों स्तन उसके चौड़े चकले सीने से पिसे जा रहे थे, मेरी योनि के ऊपर अब उसके सख्त होते लिंग का दबाव एकदम स्पष्ट था। उसकी उत्तेजना अब मैं साफ साफ समझ सकती थी। कुछ पल यूं ही निकल गये, अब मैं उससे अलग होना चाहती थी, यह देखने के लिए कि उसकी बेताबी का आलम क्या है, प्रयास भी किया, लेकिन यह क्या, अब उसे मेरे शरीर को छोड़ना गंवारा नहीं था। उसकी पकड़ और सख्त हो चुकी थी।
“आह, छोड़ो मुझे।” मैं बोली। मेरा शरीर उसके पहाड़ जैसे शरीर से चिपका हुआ था। मेरे स्तन उसके सीने से चिपके हुए थे। उसे भी शायद आभास हो चुका था कि नाईटी के अन्दर मेरे स्तन ब्रा बिना स्वतंत्र हैं। तभी मुझे अपनी नाभी के आस पास किसी कठोर वस्तु का आभास हुआ, समझते देर नहीं लगी कि यह रमेश का तना हुआ लिंग है। लेकिन इतना स्पष्ट आभास? तो क्या, तो क्या उसने चड्डी नहीं पहनी है? या शायद चड्डी के स्थान में उनका परंपरागत ढीला ढाला अंडरवियर? शायद, तभी तो उसका स्वतंत्र लिंग आजादी से अठखेलियां कर रहा था और अपनी उत्तेजित अवस्था का अहसास करा रहा था। सच में, मैं तो अंदर तक झनझना उठी। मन मयूर नाच उठा, नस नस तरंगित हो उठा, मगर अपनी भावनाओं को छुपा कर रखना तो कोई मुझ से सीखें। यथासंभव मैं भावनाओं को अभिव्यक्त होने से रोकने में फिलहाल तो सफल थी।
“ओह,” कहता हुआ उसनें मुझे अकस्मात अपनी बांहों से आजाद कर दिया, नतीजा? मैं असंतुलित हो पुनः गिरने को हुई लेकिन शुक्र हो उस दूधवाले का, थाम लिया मुझे और वो, सबकुछ तो पता चल गया उसे कि मैं नाईटी के अन्दर पूर्णतया नंगी हूं। इस बार उसका एक हाथ मेरे नितंबों पर था। समझते देर नहीं लगी उसे कि मेरी पैंटी भी नदारद है। असमंजस, अनिश्चय, दुविधा में पड़ा, वह शायद समझने की कोशिश कर रहा था कि मेरा इरादा क्या है। मैं ठहरी एक नंबर की ड्रामेबाज, मेरे चेहरे पर अब भी कोई भाव नहीं था, हालांकि मैं बड़ी बेकल थी कि वह टूट पड़े मुझ पर, मिटा डालने अपनी जिस्मानी भूख, रगड़ डाले, निचोड़ डाले मुझे, मगर अपने मुंह से एक दूधवाले को बोलूं तो बोलूं कैसे। सिर्फ देखती रही कि इस समय परिस्थितियां हमें कहां तक ले जाती हैं। वैसे भी इस वक्त मैं किसी भी परिस्थिति में कृत-संकल्प थी कि उस दूधवाले को हाथ से जाने न दूंगी। मुंह से भले न बोलूं, शारीरिक भाषा भी तो कोई चीज होती है। ज्यों ही उसनें मुझे थामा, मैं भी अनजाने में उससे चिपक गई, अपने दोनों हाथों से उसके पहाड़ जैसे शरीर को पकड़ कर। मेरे दोनों स्तन उसके चौड़े चकले सीने से पिसे जा रहे थे, मेरी योनि के ऊपर अब उसके सख्त होते लिंग का दबाव एकदम स्पष्ट था। उसकी उत्तेजना अब मैं साफ साफ समझ सकती थी। कुछ पल यूं ही निकल गये, अब मैं उससे अलग होना चाहती थी, यह देखने के लिए कि उसकी बेताबी का आलम क्या है, प्रयास भी किया, लेकिन यह क्या, अब उसे मेरे शरीर को छोड़ना गंवारा नहीं था। उसकी पकड़ और सख्त हो चुकी थी।