शाम तक मेरे आक्सिडेंट की बात पूरे हॉस्टिल मे फैल चुकी थी और मुझसे मिलने बहुत लोग आए भी थे...बीसी लौन्डे मेरे रूम मे आकर मुझे ऐसे दया-दृष्टि से देखते जैसे कि मैं एड्स का मरीज़ हूँ और दो-चार दिन मे बस मरने ही वाला हूँ...
जितने डिप्रेशन मे मैं पहले नही था, उससे ज़्यादा डिप्रेशन मे मैं तब चला गया ,जब कॉलेज के लौन्डे मुझसे मिलने आए और तरह-तरह के दुख प्रकट करने लगे...वैसे तो सब थे इंजिनियर ,लेकिन मुझसे मिलते वक़्त बिहेवियर ऐसे करते जैसे लवडो ने एमबीबीएस किया हो...सब एक से एक मेडिसिन का नाम बताते और कभी-कभी तो कोई कहता कि कॉलेज के पीछे एक पौधा पाया जाता है,उसे पीसकर घाव मे लगाने से घाव ठीक हो जाता है....
अभी भी मेरे सामने ऐसे ही लड़को का एक ग्रूप बैठा हुआ था,जो तरह-तरह के सलाह मुझे दिए जा रहे थे...
"अरमान...दूध मे हल्दी डाल कर गरम करना और गरम-गरम ही पी जाना...इससे घाव जल्दी भरता है और दर्द भी कम होता है..."एक ने कहा...
"ओके..."(लवडे के बाल,..तेरे पापा जी हल्दी और दूध लाकर देंगे..भाग म्सी यहाँ से..)
"देख अरमान ,एक बार मेरे साथ भी ऐसा आक्सिडेंट हुआ था...लेकिन मैने सरपगंधा की पत्तियो को पीसकर लगाया तो दो दिन मे यूँ चुटकी बजाते हुए ठीक हो गया .ट्राइ इट..."चुटकी बजाते हुए दूसरे ने कहा...
"ओके थॅंक्स..."(अबे घोनचू...अब मैं सर्पगंधा का पेड़ लेने जाउ...म्सी यदि इतना ही गान्ड मे गुदा है तो जाकर ले आना...)
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इसके बाद एक और लड़के ने कुच्छ बोलने के लिए अपना मुँह खोला ही था कि मैं चीखा...
"भाग जाओ कुत्तो..वरना एक-एक की गान्ड तोड़ दूँगा...बड़े आए डॉक्टर की औलाद बनकर... बोज़ ड्के .चूतिए साले..."
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वैसे तो मुझे अपना इलाज़ कैसे करवाना चाहिए,इसके बहुत सारे आइडियास मिल चुके थे..लेकिन फिर भी मैने सबके आइडियास को अपने रूम की खिड़की से नीचे फेक्ते हुए ,वही किया...जो कि मुझे क्लिनिक वेल डॉक्टर ने कहा था और दस दिन के बेड रेस्ट के बाद मैं हल्का लंगड़ा कर चलने के काबिल हो गया था...जिस दिन गोल्डन जुबिली का फंक्षन था, उस दिन पूरा हॉस्टिल खाली था...हालाँकि मैं बोर ना हूँ ,मेरा अकेले दम ना घुटे,इसलिए मेरे दोस्तो ने कयि सारी मूवीस लाकर मेरे लॅपटॉप मे डाल दी थी...लेकिन मैने उस दिन एक भी मूवी नही देखी और कॉलेज कॅंपस मे हो रहे गोल्डन जुबिली के प्रोग्राम का ऑडियो सुनते रहा और खुद को उस पल के बहुत कोस्ता रहा की क्यूँ मैं उस दिन हॉस्टिल से निकला...घुटन तो बहुत हुई उस दिन लेकिन सिवाय बिस्तर पर पड़े रहने के सिवा मैं कर भी क्या सकता था....
मेरे आक्सिडेंट वाले दिन के ठीक ग्यारहवे दिन मैं इस काबिल हुआ की मैं कॉलेज जा सकूँ और उत्सुकता तो इतनी थी कि पुछो मत...फिर वही कॅंटीन, फिर वही बोरिंग लेक्चर,
फिर किसी को नीचा दिखाना...फिर किसी पर अपने डाइलॉग चिपकाना.
फिर से किसी क्लास मे बक्चोदि करना और फिर रोल मे क्लास से बाहर जाना...
फिर से लड़कियो को देखना और उन्हे देखकर मन ही मन मे मूठ मारना
बोले तो अपुन फुल एग्ज़ाइटेड था...पिछले दस दिन तक कॉलेज ना आने के कारण ऐसा लगा जैसे कॉलेज गये सादिया बीत गयी थी.वैसे तो दोस्त हॉस्टिल मे भी मिलते थे.अरुण और सौरभ तो रूम मे ही रहते थे...लेकिन कॉलेज की कॅंटीन और कॉलेज की बिल्डिंग की तो बात ही कुच्छ और थी...पत्थरो की वो इमारत का महत्व मुझे पहली बार समझ आया और ज़िंदगी मे पहली बार मुझे मेरे मोबाइल के सिवा किसी दूसरी निर्जीव चीज़ से इतना लगाव हो पाया....
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पहले जहाँ हमे हॉस्टिल से अपनी क्लास तक पहुचने मे मुश्किल से 5 मिनिट भी नही लगते थे,वही अब मेरी धीमी चाल और बार-बार लड़खड़ाने की वजह से 10 मिनिट तो कॉलेज के गेट तक पहुचने मे लग गये थे और जैसी मेरी स्पीड थी,उस हिसाब से तो मुझे अभी क्लास तक पहुच मे और भी दस मिनिट लगने वाले थे...
"एक काम करो बेटा, तुम लोग निकलो मैं थोड़ी देर बाद आता हूँ..."अचानक ही रुक-कर मैने कहा...
"क्यूँ बे, क्या हुआ..."
"बेटा सामने देखो ,तुम्हारी भाभी एश आ रही है और यदि तुम जैसे बदतमीज़ लोग मेरे आस-पास भी रहे तो ,वो सीधे निकल जाएगी...लेकिन यदि मैं अकेला रहा तो मुझसे बात तो ज़रूर करेगी...अब चलो ,कट लो इधर से..वरना काट के रख दूँगा"
जैसा कि मेरे सिक्स्त सेन्स ने अंदाज़ा लगाया था ,आगे का कार्यक्रम ठीक उसी तरह हुआ.यानी कि मेरे दोस्त मुझे छोड़ कर चले गये और मैं वही खड़ा होकर एश के पास आने का इंतज़ार कर रहा था...एश आई और मुझे देखकर उसने अपने आँखो मे प्रेशर बढ़ाया...यानी कि उसने अपनी आँखे छोटी की और मुझे ऐसे घूर्ने लगे ,जैसे जंगल मे एक शिकारी अपने शिकार को देखता है,कमी थी तो बस एसा के झपट्टा मारने की...जो की उसने बिना ज़्यादा समय गँवाए ही किया.
"अरमान...यकीन नही हो रहा, मतलब मुझे कुच्छ समझ नही आ रहा कि क्या कहूँ...मतलब मैं तुम्हे तुम्हारी लापरवाही के कारण दो-चार बाते सुनाऊ या फिर तुम्हारे साथ जो हुआ, पिछले दिनो तुम जिस भी हालात मे थे ,उसके लिए दुख प्रकट करू...मैं बहुत कन्फ्यूज़ हूँ और आज इतने दिनो बाद अचानक तुम्हे देखकर...मैं बता नही सकती कि मैं कैसा फील कर रही हूँ...मतलब मैं बहुत कुच्छ कहना चाहती हूँ,लेकिन कुच्छ सूझ ही नही रहा..."हँसते-मुस्कुराते...खिसियाते-गुर्राते ,अंदर ही अंदर अपना सर पीटते हुए एश बोली और उसका ये रिक्षन मुझे इतना अच्छा लगा कि दिल किया कि अभिच 100 मीटर की रेस उसैन बोल्ट से लगा लून लेकिन फिर याद आया कि मैं तो ठीक तरह से चलने के भी काबिल नही हूँ,रेस क्या खाक लगाउन्गा...इसलिए नो शो-बाज़ी ,ओन्ली डाइलॉग-बाज़ी....
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"अपनी आँखो पर प्रेशर डालना बंद करो, वरना आज दर्द देंगी और कल चश्मा लग जाएगा...उसके बाद सब तुम्हे बॅटरी, चश्मिश कहकर बुलाएँगे..."
"यकीन नही होता, तुम अब भी मज़ाक कर रहे हो...हे भगवान. मैने तो सोचा था कि तुम्हारा चेहरा उजड़ा-उजड़ा सा होगा...लेकिन नही ,यहाँ तो नदी ही उल्टी दिशा मे बह रही है..."
"मुझे नही मालूम कि तुम्हे ये पता है कि नही. पर मेरे बारे मे एक कहावत बड़ी मशहूर है कि जब मैं पैदा हुआ तो मैं रोने के बजाय हंस रहा था और जानती हो उसके बाद क्या हुआ..."
"वन मिनिट, लेट मे गेस...ह्म...उसके बाद नर्सस डरकर भाग गयी होगी ,राइट...."
"एग्ज़ॅक्ट्ली...क्या बात है, मेरे साथ रह-रह कर तेरा भी सिक्स्त सेन्स काम करने लगा...हुहम.."एश को हल्का सा धक्का देते हुए मैने कहा....
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मैने भले ही गोल्डन जुबिली के फंक्षन को मिस कर दिया था,लेकिन आंकरिंग के प्रॅक्टीस के वक़्त ऑडिटोरियम मे मेरे और एश के बीच अक्सर छोटी-मोटी अनबन हो जाती थी,जिसके बाद एक-दूसरे को धक्का देना हमारे लिए कामन सी बात हो गयी थी...(यहाँ नॉर्मल भी मैं लिख सकता था, लेकिन मैने कामन लिखा क्यूंकी अक्सर वो भी ऐसा करती थी...बे टेक्निकल, बीड़ू लोग )
"हाउ डेर यू टू पुश मी...वेट, बोलते हुए एश ने मुझे ज़ोर से धक्का दिया और मैं जाकर दीवार से जा टकराया...
"आराम से रिप्लाइ कर यार...देख नही रही अपाहिज हूँ...थोड़ी-बहुत तो इंसानियत दिखा,,,"
"ओह, सॉरी...आइ डिड्न'ट नो दट यू आर आ हॅंडिकॅप्ड नाउ, वरना मैं ऐसा करती क्या..."मेरे शोल्डर पर ,जहाँ उसने धक्का दिया था, उसे सहलाते हुए एश बोली...
"या तो तू फुल इंग्लीश मे बोल या फुल हिन्दी मे वार्तालाप कर..."
" मुझे अपनी मदर टंग से प्यार है...इसलिए मैं दोनो लॅंग्वेज बोलूँगी...तुम्हे इससे क्या"
"अक्सर मात्रभाषा से प्यार वही जताते है, जीने इंग्लीश ढंग से नही आती...खैर ,वो सब छोड़ और ये बता कि आराधना को कही देखा क्या..."
"आराधना...ह्म्म ,नही...और तुम ये मुझसे आराधना के बारे मे अक्सर क्यूँ पुछते रहते हो.क्या मैं उसकी फ्रेंड हूँ ? या वो मेरी फ्रेंड है ? "
"जली... "आराधना के लिए एसा का एक्सप्लोषन रिक्षन देखकर मैने खुद से कहा....
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यदि लड़किया आसानी से पट जाए तो कोई बात नही, लेकिन यदि जब लड़कियो का दूर-दूर तक सेट करने का चान्स ना हो तो इसके बाद उन्हे पटाने के दो रास्ते ही बचते है...पहला है जेलस फील करना और दूसरा है जबर्जस्ति-जेलस फील करना....
एश...आराधना को लेकर कभी जेलासी नही होती थी ,इसलिए मैने दूसरा रास्ता चुना ,यानी की जबर्जस्ति एश के सामने आराधना का नाम लेना...वो भी तब जब हमारी कॉन्वर्सेशन अपने चरम सीमा मे हो.....कितना माइंडेड बंदा हूँ मैं
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"इतना भड़क क्यूँ रेली है....और सुना क्या हाल चाल है.,,अपनी तो बॅंड बज चुकी है..."
"सब बढ़िया है...वैसे ये आक्सिडेंट हुआ कैसे..."
"यदि मैने इसे सच बताया तो मेरी बेज़्ज़ती होगी..."सोचते हुए मैने कहा"आक्च्युयली ,उस दिन मैं बाइक पर स्टंट कर रहा था...पहले मैने अगला चक्का उठाया और फिर पिछला...लेकिन ये कारनामा मैं हज़ारो बार कर चुका हूँ,इसलिए मैने बाइक के दोनो चक्के उठाने की कोशिश की...और तभी बूम...बाइक हवा मे 200 किमी पर अवर की स्पीड से एक ट्रक से टकरा गयी...."
"रियली...ऐसा करने की कोई खास वजह.."
"वजह तो कोई ख़ास नही थी लेकिन नेपोलियन मामा ने कहा है कि अगर आप कोई महान काम नही कर सकते तो छोटे कामो को महान तरीके से करो...और उस दिन मैने वही किया, जिसका महान नतीज़ा तुम्हारे सामने है...कितना महान हूँ मैं "
"ओके, बाइ...क्लास के लिए देर हो रही है..."बोलते हुए एश वहाँ से चलती बनी और मैं अपने रास्ते हो लिया...
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10 मिनिट के लगभग मैने एश से बात की और 10 मिनिट मुझे लगभग क्लास तक जाने मे लगे....यानी की क्लास का एक तिहाई समय मैने क्लास के बाहर गुज़ारा था आंड अकॉरडिंग तो और प्रोफेसर'स रूल...मैं अब फर्स्ट क्लास अटेंड करू,इसके लिए मैं एलिजिबल नही था...लेकिन फिर मैने एक बहाना ढूँढ कर ट्राइ करना चाहा और क्लास के गेट पर खड़े होकर एक दम मरी हुई आवाज़ मे अंदर आने की पर्मिशन माँगी...फर्स्ट क्लास छत्रपाल की थी और हम दोनो के बीच जो कोल्ड वॉर चल रहा था उसके हिसाब से मैने पर्मिशन माँगते हुए ही ये अंदाज़ा लगा मारा था कि ये मेरी खीचाई तो ज़रूर करेगा...लेकिन उस छत्रपाल को क्या मालूम कि मैं इन दस दिनो मे बिस्तर पर पड़े-पड़े 500 से भी अधिक डाइलॉग इनवेंट कर चुका हूँ....
"कहाँ छिपे थे सर जी इतने दिन तक..जो आज आपने अपने दर्शन दिए..."
"कुच्छ नही सर, वो छोटा सा आक्सिडेंट हो गया था ,वैसे भी सूरज ,चाँद और अरमान को कोई ज़्यादा देर तक छिपा नही सकता..."
"इतना लेट कैसे हुए...आधा घंटा बीत चुका है..."
"अभी ज़ख़्म ठीक तरह से भरे नही ,इसलिए हॉस्टिल से यहाँ तक आने मे 20 मिनिट लग गया..."
"क्यूँ तुम्हारे दोस्त साथ नही थे..."
"कौन दोस्त......ये, इनकी बात कर रहे हो आप..."अरुण और सौरभ की तरफ उंगली दिखाते हुए मैं बोला"इनसे मेरी लड़ाई हो गयी है...वो भी इसलिए क्यूंकी ये मुझे कह रहे थे कि मैं आंकरिंग मे ना जाउ ,लेकिन मैं गया..."
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मेरे इतना बोलते ही छत्रु ने अरुण, सौरभ की तरफ देखा और वो दोनो मेरी तरफ ऐसे देखने लगे...जैसे बिस्तर पर एक लड़की नंगी पड़ी उनको चोदने के लिए इन्वाइट कर रही हो और मैने ऐन वक़्त पर उनके लंड काट दिए हो....फिलहाल तो उस वक़्त वो दोनो चुप ही रहे और मैं सामने वाली बेंच पर बैठा ताकि छत्रपाल को शक़ ना हो कि मैं उसे चोदु बना रहा हूँ....
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दस दिन के बेड रेस्ट के दौरान यूँ तो मुझे बहुत नुकसान झेलना पड़ा था, लेकिन एक फ़ायदा भी मुझे हुआ और वो था मेरे और आराधना के बीच फोन सेक्स....
हम दोनो के बीच इस फोन सेक्स की शुरुआत हाल-चल पुछने से हुई थी...लेकिन फिर बाद मे हम दोनो एक-दूसरे से खुलने लगे और मज़ाक-मज़ाक मे बात किस्सिंग तक पहुचि और फिर बाद मे चुदाई तक....बस तालश थी तो सही वक़्त और सही जगह की....आराधना को सोच-सोच कर मैं ना जाने कितनी बार ही अपना लंड खाली कर चुका था इसलिए मैं पूरे उफान मे था कि कब मैं ठीक हो जाउ और उसका ग़मे बजाऊ...फिलहाल तो अभी लंच का टाइम था इसलिए मैं अपनी शरीफ मंडली के साथ कॅंटीन की तरफ बढ़ा ,इस आस मे की वहाँ एश तो ज़रूर मिलेगी और यदि एश ना मिली तो आराधना तो फिर मिलेगी ही मिलेगी
उस समय मेरे पास दो रास्ते थे लेकिन मंज़िल एक भी नही...ना जाने कैसे रास्ते थे,जो कही तक नही गये...बल्कि मुझे और भी पीछे धकेल दिया...पहला रास्ता आराधना के रूप मे था, जहाँ मैं एक हवसि की तरह जाना चाहता था और दूसरा रास्ता एश के रूप मे था ,जहाँ मैं हमराह, हमसफ़र,हमनुमा,हीलियम,हाइड्रोजन....वॉटेवर यू कॅन कॉल की तरह जाना चाहता था...पर ग़लती मुझसे तब हुई जब मैने किसी एक को चुनने की बजाय दोनो को चुना...मेरे दोस्त हमेशा मुझे रोकते थे, वो कहते थे कि नारी,नरक का द्वार होती है...लेकिन मेरा जवाब होता कि यदि नारी नरक मे जाने से मिलने वाली हो तो फिर स्वर्ग मे भाजिया तलने कौन जाएगा....मेरे दोस्त हमेशा कहते कि दो कश्ती मे पैर रखकर कभी समुंदर पार नही किया जा सकता और तब मेरा जवाब होता कि यदि मुझे एक ही कश्ती मे पैर रखकर समुंदर पार करना होता तो फिर मैं दो कश्ती लाता ही क्यूँ....
मुझे समझाने के मेरे दोस्तो के कमजोर तर्क और मुझे ऐसा करने से रोकने के उनके कमजोर वितर्क ने मुझे इन दोनो रास्तो मे लात मार कर भेजा...जबकि मेरे दोस्तो को मेरे ये दोनो कदम ही पसंद नही थे....उपर से मुझमे कॉन्फिडेन्स इतना ज़्यादा था कि मैं उस समय यही सोचा करता था कि दुनिया की कोई भी सिचुयेशन..कैसी भी कंडीशन हो, मैं उसे झेल सकता हूँ और अपने 1400 ग्राम के ब्रेन का इस्तेमाल करके उसे अपने अनुरूप बदल भी सकता हूँ...यही वजह थी कि मेरा सिक्स्त सेन्स भी मुझे उस वक़्त धोखा दे रहा था,जब मैं अपनी बर्बादी की राह पर खुशी से ऐसे बढ़ रहा था जैसे वो बर्बादी ना होकर कामयाबी हो....
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कॅंटीन मे हम सब पहुँचे और हर रोज़ की तरह जिसे जो पेट मे भरना था ,उसने ऑर्डर दे दिया...ऑर्डर तो मैने भी दिया था,लेकिन मेरी निगाह अपने लंच के साथ-साथ वहाँ कॅंटीन मे बैठी हुई लड़कियो पर भी थी...
"ना एश ना आराधना...पता नही ये दोनो कहाँ चली गयी...एश का तो फिर भी समझ आता है, लेकिन ये आराधना कहाँ मरवा रही है..."सोचते हुए मैने सुर और ताल को मिक्स करके एक धुन के साथ कहा"आराधना तू आजा...अपने एक-एक किलो के दोनो दूध दिखा जा...
चूत तेरी बहुत प्यारी, अपनी गान्ड तू अरुण को चटा जा..."
"आराधनाआआआ....."मेरे द्वारा अरुण अपनी तारीफ सुनकर खिसियाते हुए ज़ोर से चीखा....जिसके बाद पूरे कॅंटीन मे आराधना का नाम गूँज उठा....
"बक्चोद है क्या बे, ऐसे क्यूँ उसका नाम चिल्ला रहा है...."मैने फ़ौरन अरुण का मुँह बंद किया और उसे आँखे दिखाई...जिसके बाद सौरभ ने भी आराधना का नाम लिया और कॅंटीन मे एक बार फिर आराधना का नाम गूंजने लगा....
"चिल्लाओ बेटा चिल्लाओ...खुद का तो खड़ा होता नही ,इसीलिए दूसरे की तरक्की देखी नही जाती..."
"रोज रात को मैं तेरी तरक्की देखता हूँ...जब तू एक हाथ से मोबाइल पकड़ कर उस आराधना लवडी से बात करते हुए बाथरूम मे मूठ मारते रहता है...क्या कमाल की तरक्की की है..."
"हाँ तो मैने कम से कम इतना तो किया है, तूने क्या उखाड़ लिया जो ऐसे बोल रहा है...."
"उधर देख, तेरी माल आ गयी...जा चिपक जा उससे..."आँखो से एक तरफ इशारा करते हुए अबकी बार सुलभ ने कहा....
"साला ,क्या जमाना आ गया है...कैसे-कैसे लोग मुझे चमकाने लगे है....तुम लोगो को लाइन पर लाना ही होगा..."सुलभ को बोलते हुए मैने उस तरफ देखा,जिस तरफ सुलभ ने आँखो से इशारा किया था....
"ये तो एश है... ,तुम सब यहाँ से निकलो और मेरा बिल भी भर देना,,,मेरे पास दस हज़ार का नोट है..."कहते हुए मैने अपने दोनो पैर को बड़े आराम से बाहर निकाला और ऐसे रोल मे चलने लगा ,जैसे मुझे कुच्छ हुआ ही ना हो....हालाँकि इस तरह से नॉर्मल चलने पर मुझे गान्ड-फाड़ दर्द भी हो रहा था लेकिन वो सब दर्द एश को देखकर ही जहाँ से आया था ,वही घुस भी जा रहा था....
"पहले तो सिर्फ़ सुना था, आज तो यकीन हो गया कि वाकाई प्यार मे ताक़त होती है...हाउ बोरिंग "
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"मयाऊ..."एश जिस टेबल पर बैठी,उसी के पास खड़े होकर मैने कहा.
"कितनी बार कहा है तुमसे..."गुस्से से एश ने उस जगह मुझे मारा,जहाँ मुझे सबसे अधिक और सबसे गहरा ज़ख़्म था....
दिल तो किया कि अभिच एसा को इस दर्द के ईक्वल दर्द दूं लेकिन फिर सोचा कि रहने दो, बाइ मिस्टेक हो गया है....इसलिए इस बार जाने दो.लेकिन जो दर्द उठा था उसे तो मुझे सहना ही था ,वो भी बिना हलक से एक आवाज़ निकाले...इसलिए मैने दर्द का अंदर ही अंदर गला घोटते हुए अपनी एक आँख बंद की और बॉडी को टाइट किया....
"क्या हुआ,..एक आँख बंद क्यूँ कर ली बिल्ले..."
"रात भर पढ़ाई करके आया हूँ,इसलिए नींद आ रही है...."संभलकर एक चेयर पर बैठते हुए मैने उससे पुछा"दिव्या से अभी तक बात-चीत चालू नही हुई क्या...जो अब भी किसी बिल्ली की तरह अकेले इधर से उधर फुदक्ति रहती है..."
"उसका नाम मत लो, वो तो एक नंबर. की कमीनी है...मेरा बस चले तो उसके सारे बाल नोच लूँ..."
"कहाँ के बाल नोचेगी "बोलते हुए मेरी ज़ुबान स्लिप हो गयी लेकिन एश कुछ समझे उसके पहले ही एक तरफ इशारा करते हुए मैं हड़बड़ाहट मे बोला"उधर देख उसे जानती है क्या..."
"नही..."
"और उसे..."दूसरी तरफ इशारा करते मैने फिर कहा...
"नही..."
"तब तो उस मोटी को यक़ीनन जानती होगी..."
"बिल्कुल नही जानती... "
"ओके,नो प्राब्लम....हां तो तू क्या बोल रही थी...की तेरा दिल करता है कि.........."
"मेरा दिल करता है कि मैं उसके सर के सारे बाल नोच लूँ...वो एक नंबर. की कमीनी है...अब देखो ना अरमान, हम दोनो के बीच लड़ाई है उसे ये बात अपने घर मे बताने की क्या ज़रूरत थी...लेकिन नही, उसने सब कुच्छ अपने घरवालो को बता दिया..यहाँ तक कि गौतम को भी..."
"गौतम...."उसका नाम जब बीच मे एश ने लिया तो मेरा दिल किया कि मुझे जितनी गालियाँ आती है ,सब उसे दे डालु...लेकिन मैं एक शरीफ स्टूडेंट था, इसलिए मैने ऐसे कुच्छ भी ना करके बड़े शांत ढंग से एश से पुछा..."गौतम...कहाँ है मेरा भाई आजकल..."(गौतम साले ,तेरी *** की चूत, तेरी *** का भोसड़ा...मर जा म्सी,जहाँ कही भी हो...)
"ओक अरमान,अब मैं चलती हूँ...वरना यदि दिव्या ने तुम्हे मेरे साथ देख लिया तो घर मे फिर से बता देगी...."इतना बोलकर एश वहाँ से चलते बनी...
"फिर से केएलपीडी...."
एश के जाने के बाद मैं पीछे मुड़ा ,ये सोचकर कि दोस्तो के साथ थोड़ी सी गान्ड-मस्ती हो जाए,लेकिन फले वो भी वहाँ से नदारद थे...मैं एसा के साथ इतना मगन था कि मेरे दोस्त मेरे पीछे से कब निकल गये,मुझे इसका अहसास तक नही हुआ....
लेकिन इसका कुच्छ खास फरक मुझपर नही पड़ा ,क्यूंकी थोड़ी ही देर बाद एक-एक किलो के बॅटल अपने सीने मे रखने वाली आराधना ने कॅंटीन मे अपनी सहेलियो के साथ एंट्री मारी और आराधना को देखते ही मेरा पॅंट टाइट हो गया.....
"हेल्लूऊओ सीईइइर्ररर...."मुझे देखकर आँख मारते हुए आराधना बोली...
"हेल्ल्लूऊओ माअंम्म..."मैने भी बराबर आँख मारते हुए जवाब दिया...
अब जब दो ऑपोसिट सेक्स वाले हमन बीयिंग के बीच इस तरह का हाई,हेलो हो तो उम्मीदे कुच्छ ज़्यादा ही बढ़ जाती है...लेकिन मेरी उन उम्मीदों को चकनाचूर करते हुए आराधना की सहेलिया ,आराधना के साथ उसी टेबल पर बैठ गयी,जहाँ मैं बैठा था...जबकि मेरा अंदाज़ा था कि आराधना मेरे साथ बैठेगी और उसकी बाकी गॅंग हम दोनो से कही दूर जाकर अपना आसन देखेंगी...लेकिन ऐसा कुच्छ भी नही हुआ और आराधना के साथ-साथ उसकी बाकी सहेलियो ने भी चेयर से अपनी गान्ड टिकाई...
मैने आराधना को इशारो ही इशारो मे बहुत कहा कि वो अपनी इन फुलझड़ियो को डोर भेज दे,लेकिन आराधना को तो कुच्छ अलग ही खुजली थी....वो हर बार बड़े प्यार से मुझे नकार देती और मंद-मंद मुस्कुराती....शुरू मे तो सब कुच्छ अंडर कंट्रोल रहा लेकिन जैसे-जैसे कॅंटीन मे लगी बड़ी सी घड़ी के बड़े से काँटे आगे बढ़े मुझे आराधना की सहेलियो को बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया....फलियो ने मुझे इतना बोर किया...इतना पकाया कि उनके साथ बैठने से अच्छा मैं छत्रपाल की चूतिया क्लास एक दिन मे दो बार अटेंड कर लूँ,वो भी पूरे दिल से.......
"सर आपके पास ईज़ी लॅंग्वेज मे फिज़िक्स-2 के नोट्स है क्या....मुझे फिज़िक्स के फंड कुच्छ समझ नही आ रहे..."आराधना के लेफ्ट साइड मे बैठी एक दुबली-पतली सी लड़की ने पुछा....
"सेकेंड सेमिस्टर. के नोट्स और मेरे पास ,मेरे पास तो 8थ सेमिस्टर के भी नोट्स नही है.. वैसे फिज़िक्स के रूल्स को चट कर जा बिल्कुल,ठीक उसी तरह जिस तरह तू इस चटनी को चाट रही है और एक बात का ध्यान रख 'आप फिज़िक्स के खिलाफ नही जा सकते' ,वरना कुर्रे ,कुरकुरे की तरह तोड़-मरोड़ देगा..."
"सर, एड बहुत हार्ड लगता है...क्या आपका वो सब्जेक्ट क्लियर है..."अबकी बार आराधना के राइट साइड मे बैठी मोटी भैंस ने मुझसे पुछा....
"नही...ऐसे ही 8थ सेमिस्टर. मे पहुच गया... "अपनी रोलिंग आइ से उस मोटी भैंस पर कहर बरसाते हुए मैने आराधना से कहा "ओये आराधना, तेरे उस दूर के भाई ने लंच मे मिलने के लिए कहा था,,,जा मिल ले उससे..."
"क्यूँ..."
"अब ये मैं कैसे बताऊ..."
"ठीक है...तुम तीनो यही रहो, मैं अभी आती हूँ..."बोलकर आराधना वहाँ से उठी और कॅंटीन के बाहर चल दी....
आराधना के जाने के थोड़ी देर बाद मैं अपनी जगह से उठा ही था कि उस मोटी भैंस ने मुझे वापस बैठने के लिए कह दिया...
"बैठिए ना सर..."
"दर-असल मैं बहुत शर्मिला लड़का हूँ और मुझे लड़कियो के बीच बहुत शरम आती है..."बोलकर मैं वहाँ से लंगड़ाते हुए बाहर आया कि तभी आराधना मुझे कॅंटीन के बाहर खड़ी मिल गयी...
"मुझे पता था, ये आपका ही खुरापाति आइडिया था,मुझे मेरी सहेलियो से दूर करने का..."
"वो सब छोड़ और पहले ये बता कि मुँह मे लेगी क्या...."
मेरा इतना कहना ही था कि आराधना ने घूर कर मुझे ऐसे देखा जैसे मैने उसके मुँह मे लंड देने की बात कही हूँ...वैसे मेरा मतलब तो वही था
"लगता है, तू पूरे वेजिटेरियन है...इसीलिए इतना घूर रही है...चल छोड़..."बोलते हुए मैं उसके बगल मे खड़ा हो गया...
"आक्सिडेंट कैसे हुआ था आपका सियररर..."
"ऐसे आवाज़ निकाल कर पुछेगि तो फिर से एक नया आक्सिडेंट हो जाएगा..."
"बताओ ना..."
"ह्म...एक मिनिट रुक,मुझे रिमाइंड करने दे...हां ,याद आ गया...."आराधना के और पास खिसकते हुए मैं बोला"उस समय मैं बाइक पर था और मेरी बाइक स्पीड 80 किमी /अवर के यूनिफॉर्म वेलोसिटी से जा रही थी और आक्सिडेंट होने की प्रॉबबिलिटी ज़ीरो थी...उस वक़्त आगे एक स्कॉर्पियो और सामने एक ट्रक था और दोनो के बीच पेरबॉलिक कर्व बनाते हुए मैने बाइक की स्पीड को रेज़िस्ट किया और फिर धूम-धड़ाका...."
"सुनने मे तो बहुत मज़ा आ रहा है..."
मेरे दोस्तो और वॉर्डन के बाद आराधना इस दुनिया की ऐसी तीसरी शक्स थी ,जिसे मैने मेरे आक्सिडेंट के बारे मे सच बताया था...क्यूंकी मुझे इनके सामने अपनी इज़्ज़त की कोई परवाह नही थी....
"तो अब कैसी है तबीयत..."मेरा हाथ पकड़ते हुए आराधना ने पुछा..
"एक दम चका चक..."आराधना की इस हरक़त को देखते हुए मैने कहा....
"तो फिर रूम चले..."
"रूम...चल हट.."आराधना का हाथ छोड़ते हुए मैने कहा"अभी भी मेरी रात बिस्तर पर बिना करवट बदले गुज़रती है और तू कह रही है कि मैं तेरी करवट बदल-बदल कर लूँ...अश्लील कही की"
"ओके...देन , अब क्या बात करे,..."
"आजा पढ़ाई की बात करते है...ये बता तूने राजस्टॉरीजडॉटकॉम पर हवेली पढ़ी है..."
"नही, ये क्या है..."
"चल छोड़ ये बता हवेली-2 पढ़ी है..."
"नही...ये है क्या.."
"ये भी छोड़ और अब ये बता डेड नेवेर लाइ पढ़ी है..."
"नही..."
"डूब मर फिर "मायूस होते हुए मैने कहा , कि तभी मुझे अवधेश गिलहारे कॅंटीन की तरफ जाता हुआ दिखाई दिया, जिसे मैने एश और दिव्या के उपर निगरानी रखने के लिए कहा था....
"अवधेश रुक तो यार..."
"अरमान..."मेरा नाम लेते हुए वो मेरी तरफ आकर बोला"कैसा है यार अब, सुलभ ने बताया था तेरे आक्सिडेंट के बारे मे...."
"आराधना तू यही रुक, मैं इससे बात करके आता हूँ..."
"कौन सी बात..."
"सस्शह ,किसी को बताना मत मैं एक अंडरकवर एजेंट हूँ और ये मेरा असिस्टेंट है...आता हूँ ना ,दो मिनिट रुक इधर ही..."बोलते हुए मैं अवधेश के साथ ,जहाँ आराधना खड़ी थी,वहाँ से थोड़ी दूर आया....
"चल बता क्या खबर लाया है..."
"कुच्छ भी इंट्रेस्टिंग न्यूज़ नही है यार, तू फालतू मे उन दोनो फालतू लड़कियो के पीछे अपनी जान दे रहा है...मतलब दोनो अभी तक एक-दूसरे से बात नही करती..."
"मतलब लाइन स्ट्रेट है, कही कोई घमावदार जैसा चीज़ नही है..."
"मतलब..."हमसे थोड़ी दूर मे खड़ी आराधना को देखकर अवधेश ने पुछा...
"मतलब तू नही समझेगा...कुच्छ नया होगा तो बताना और उधर देखना बंद कर,मेरी माल है वो..."
"अबे मैं ग़लत नज़र से नही देख रहा हूँ उसे..."
"तो फिर क्या तू उसे उपर से नीचे तक ऐसे आँखे गढ़ा-गढ़ा कर बहन की नज़र से देख रहा है फले इन्सेस्ट लवर...."
"क्या यार ,तू भी.....कुच्छ भी बोल देता है. अबे मैं उसे इसलिए ऐसे देख रहा था क्यूंकी मैं कुच्छ कन्फर्म कर रहा था..."
"और क्या मैं पुछ सकता हूँ कि तू क्या कन्फर्म कर रहा था..."
"यही कि ये वही लड़की है या नही,जिसका रास्ता कुच्छ दिन पहले यशवंत ने रोका था...तुझे नही मालूम क्या..."
"नही..."एश और दिव्या का पूरा मॅटर भूलकर मैने पुछा...
"भाई,बवाल होने वाला था उस दिन...वो अपना डिटॅनर है ना यशवंत, उस दिन कॉलेज के गेट के पास इसे और इसकी सहेलियो को रोक लिया था..."
"फिर क्या हुआ..."मॅटर के अंदर घुसते हुए मैने कहा...
"यशवंत और उसके दोस्तो को तो जानता ही है, बीसी...दिनभर कॉलेज के गेट के बाहर लड़कियो पर कॉमेंट ठोकते रहते है...उस दिन भी कुच्छ यही हुआ.कॉलेज के बाद मैं सिटी बस मे बैठा था कि ये लड़की ,जिसे तू अपनी माल कह रहा है, वो वहाँ से गुज़री तो यशवंत ने अपनी आदत के माफ़िक़ कुच्छ उल्टा-सीधा बोल दिया, लेकिन उसके बाद तेरी इसी माल ने यशवंत को कुच्छ बुरा-भला कह दिया...फिर तो लवडा ,सबकी गान्ड ही फट गयी...सबको लगने लगा था कि कुच्छ बवाल होगा, लेकिन मालूम नही यशवंत को अचानक क्या हुआ,जो वो एक दम से ठंडा पड़ गया...."
"और कुच्छ भी है बताने को या बस बात ख़त्म..."अवधेश के रुकने के बाद मैने पुछा....
"बस इतना ही मॅटर था..."
"चल ठीक है बाइ..."बोलते हुए मैं आराधना के पास पहुचा..."यश के साथ तेरा क्या लफडा हुआ था..."
"कौन यश..."मेरे द्वारा एक दम अचानक से ऐसे बोलने के कारण आराधना चौक गयी...
"अरे यार,वही...जिसने तुझे कुच्छ दिन पहले गेट के बाहर रोका था..."
"अच्छा...वो...वो ,अरे लफडा कुच्छ नही है,बस वो मुझे धमका रहा था कि वो ये कर देगा, वो कर देगा....लेकिन जब मैने कहा कि अरमान ईज़ माइ बाय्फ्रेंड...जैसा कि तुमने कहा था कि यदि कोई परेशान करे तो ये कह देना...मैने कहा, उसके बाद तो उसने कुच्छ नही कहा...सिवाय कुच्छ अपशब्द तुम्हे कहने के अलावा..."
"थॅंक यू वेरी मच...अब आप यहाँ से अपनी क्लास के लिए प्रस्थान कीजिए...आपकी क्लास शुरू हो चुकी होगी..."
"ओक बाइ, शाम को मिलते है..."हवा मे बाइ का सिंबल बनाकर अपने हाथ हिलाते हुए आराधना वहाँ से चलती बनी और मैं जितना तेज़ चल सकता था, उतनी तेज़ी से अपने क्लासरूम की तरफ बढ़ा....
"ओये अरुण, सौरभ और बाकी होस्टेलेर्स...तुम लोगो को क्या ऐसा नही लगता कि हम लोग कुच्छ ज़्यादा ही शरीफी की ज़िंदगी जी रहे है....मतलब नो मार-धाड़,नो धूम-धड़ाका...."
"हां ,मुझे तो ऐसा ही लगता है..."एक ने कहा....
अभी रिसेस का टाइम चल रहा था और क्लास के सारे लड़के-लड़किया मेरी आदत से वाकिफ़ थे ,इसलिए मैं बिंदास बोल रहा था....
"तो चलो, आज लाइफ को कुच्छ इंट्रेस्टिंग बनाते है...."
"अबे सीधे-सीधे बोल किसको ठोकना है...ऐसी बाकलोली मत कर..."अपनी जगह पर बैठे-बैठे ही अरुण बोला...
"अबे पहले क्लास से निकलो तो सही..."