hotaks444
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तब तक हम सबके हाथ मे चाय का कप भी आ चुका था .चाय बहुत गरम थी इसलिए अरुण ने चाय का कप साइड मे रखा ताकि थोड़ी ठंडी होने के बाद पी सके....इस बीच उस कल्लू ,कंघी चोर को पता नही क्या हुआ ,जो उसने अरुण का कप उठाया और पूरी चाय ज़मीन मे गिरा कर कप वापस पहले वाली जगह पर रखते हुए बोला"सॉरी...."
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उस कल्लू ,कंघी चोर की ये हरकत देखकर हम सबका दिल, मुँह को आ गया...आँखे जैसे यकीन ही नही कर पा रही थी कि कुच्छ देर पहले जो सीन उन्होने देखा वो सच था या फिर एक भ्रम था...उस कल्लू कंघी चोर ,पर गुस्सा तो हम सभी को आया था,लेकिन हम सब चाहते थे कि इसकी शुरुआत अरुण करे.....
"तेरी माँ की..."बोलते हुए अरुण ने आव ना देख ताव, और सीधा अपना हाथ कल्लू के कान पर छोड़ दिया....
"तुम लोग ग्रूप मे हो इसलिए मुझे मार रहे हो..."नम आवाज़ के साथ कल्लू ने कहा....
"साले ,कालीचरण...तेरी गान्ड मे इतनी हिम्मत कि तू मुझसे लड़ेगा...म्सी ,औकात मे रहा कर,वरना सारी हेकड़ी दो मिनिट मे निकाल दूँगा...बीसी हॉस्टिल मे कुच्छ बोलते नही है तो सोचता है कि तुझसे डरते है...दोबारा यदि कभी ऐसा किया तो जहाँ छेद दिखेगा वही लंड डालूँगा और आँख ,कान,नाक,मुँह ,गान्ड सब कुच्छ फाड़ डालूँगा...बीसी,चूतिया साला..."
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इस घटना के बाद हमारे कालीचरण साहब एक पल भी वहाँ नही रुके और बिना पैसे दिए ही वहाँ से चल दिए....दुकान वाले ने कल्लू को आवाज़ भी लगाई,लेकिन वो नही रुका....उस ठेले वाले से मैने आस-पास कही दारू की दुकान है या नही...ये पुछा, जिसके जवाब मे मुझे मालूम चला कि यहाँ से कुच्छ दूरी पर एक बार है...
"एक बार,इस जंगल मे...."
"बार मतलब वही ना जहाँ शराब बहुत महँगी मिलती है और बड़े-बड़े घरानो की लड़किया छोटे-छोटे कपड़े पहन कर अपनी इज़्ज़त दान करती है...."
"हां...उसी को बार कहते है..."उसकी बात का मतलब समझकर मैने कहा"यहाँ आस-पास कोई छ्होटी-मोटी दारू की दुकान नही है क्या..."
"इधर तो कुच्छ भी नही है ,बस वही एक बार है..."
"कितना दूर होगा यहाँ से..."
"यदि पैदल चले तो यही कोई 15-20 मिनिट लगेंगे...लेकिन अंदर नही जा पाओगे भाऊ..."
"अंदर क्यूँ नही जा पाउन्गा...."
"क्यूंकी उधर जाने के वास्ते लड़की साथ मे होना माँगता और अंदर जाने के लिए पैसा भी बहुत लगता है...."
"वो सब हमारी परेशानी है ,आप ये बताओ कि जाना किस डाइरेक्षन मे है..."
उस ठेले वाले ने हमे बार जाने का रास्ता बताया,जिसके बाद हम लोग वापस अपने कॅंप की तरफ बढ़ गये...
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"अभी से कॅंप जाकर क्या करेंगे ,अरमान भाई...अभी तो सिर्फ़ 1 बजे है और वॉर्डन ने 4 बजे तक आने को कहा है, यही कि अपने पास अभी फुल 3 घंटे है...."पुल पर चलते हुए राजश्री पांडे बोला....
"कॅंप कौन जा रहा है,हम लोग तो वापस लेफ्ट साइड जाकर ,एमबीबीएस कॉलेज की लड़कियो को ताडेन्गे...साली क्या माल दिखती है ,फिगर तो पुछो मत...देखते ही लंड खड़ा हो जाता है..."
"अरमान ,तूने बताया नही कि अब्दुल कलाम से तूने क्या बात की थी..."तुरंत टॉपिक चेंज करके अरुण ने पुछा...लेकिन मैं अरुण से कुच्छ कहता उससे पहले ही सौरभ बोल उठा कि मैं फेंक रहा हूँ और बाकियो ने भी उसका साथ दिया....
"अबे यदि यकीन नही आता तो जाकर खुद कलाम जी से पुच्छ लो... या फिर गूगल मे सर्च मार ले कि कलाम जी कभी न्लू(नॅशनल लॉ इन्स्टिट्यूट),भोपाल आए थे या नही...और जब यकीन हो जाए कि वो वहाँ आए थे तो फिर मेरे स्कूल जाना और मेरे प्रिन्सिपल से पुछ्ना...."
"चल बे,हमे सिर्फ़ इतना ही काम बचा है क्या जो तेरे स्कूल जाए..."
"फिर एक काम करो...तुम सब गान्ड मराओ...साले खुद की जितनी औकात है उतनी मेरी भी समझते हो..."
"ओ बीसी...अरमान उधर देख..."फिर से टॉपिक चेंज करते हुए अरुण बोला"तेरा गॉगल ,वो एमबीबीएस वाली आइटम पहन कर घूम रही है,लेकिन तेरा गॉगल उसके पास कैसे आया...साली चॉटी..."
"क्या बोला तू...."
"अबे यही कि तेरा गॉगल शायद आंजेलीना ने पहन रखा है...वो देख साइड मे मछलि मार रही है..बोले तो शी फिशिंग करिंग..."
मेरी रूह मेरे गॉगल मे बस्ती है और जब मेरी रूह का पता चल गया तो मैने तुरंत आंजेलीना की तरफ नज़र दौड़ाया....दूर से तो मुझे भी लग रहा था कि ये मेरा ही गॉगल है लेकिन एक बार कन्फर्म करना तो बनता ही है,क्यूंकी बिना मतलब सिल्वा डार्लिंग को छेड़ना मतलब अपनी पॅंट उतरवाना था....इसलिए मैने बाकियो को जहाँ खड़े थे वही रुकने के लिए कहा और आंजेलीना की तरफ धीरे-धीरे बढ़ने लगा,इस दौरान मेरी दोनो आँखे आंजेलीना के आँखो मे चढ़े चश्मे पर थी....जैसे-जैसे मैं आंजेलीना के करीब आता गया ,मुझे अरुण की कही गयी बात सच होती मालूम पड़ी और जब मैने कन्फर्म कर लिया कि ये गॉगल मेरा ही है तो मैने सबसे पहले अपने सर मे उंगलिया फिरा कर अपना बाल ठीक किया और फेस को रूमाल से एक बार सॉफ करके आंजेलीना के और करीब जाने लगा.....
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"और मछलि-मार, क्या हाल चाल है....कॉफी हाउस का बिल दिमाग़ से निकला या अभी तक भेजे मे है..."आंजेलीना को पहली ही लाइन से छेड़ते हुए मैने कहा....क्यूंकी हम दोनो के बीच 36 का आकड़ा पहली मुलाक़ात से ही चल रहा था इसलिए 'हाई..हेलो' जैसी नॉर्मल बातें तो हम दोनो के बीच हो ही नही सकती थी....
"बहुत रहीस घराने से हूँ मैं, इसलिए ये 5-10 हज़ार मेरे लिए कोई बड़ी बात नही..."फिशिंग रोड एक तरफ सरकाते हुए आंजेलीना खड़ी हुई और उसकी दोनो सहेलिया,चींकी और पिंकी...जो उधर ही टहल रही थी...मुझे वहाँ आंजेलीना के पास देखकर हमारे तरफ ही आने लगी.....
"यदि इतनी ही रहीस हो तो फिर ऐसी क्या ज़रूरत आन पड़ी जो तुमने मेरा गॉगल चुराया...."
"होश मे तो हो..."अपनी आवाज़ ज़रा उँची करके उसने गॉगल अपनी आँखो से उतारा और फिर मुझे घूरते हुए बोली" चोर नही हूँ मैं,समझे..."
"देखो सिल्वा जी, ये गॉगल तुम्हारा नही है इसके तीन प्रूफ मैं देता हूँ...फर्स्ट प्रूफ ये है कि ये गॉगल लड़कियो वाला नही बल्कि लड़को वाला है...सेकेंड प्रूफ ये कि तुम इसमे बिल्कुल भी...बिल्कुल भी अच्छी नही दिख रही और थर्ड आंड मोस्ट इंपॉर्टेंट प्रूफ ये है कि इस गॉगल के फ्रेम मे पीछे की तरफ 'ए' वर्ड डिज़ाइन किया हुआ है,जो मैने खुद व्हिटेनेर से किया है...जिसका मतलब है 'अरमान' जो कि मेरा नाम है...."विजयी मुस्कान देते हुए मैं आगे बोला"मैने ये साबित कर दिया की ये गॉगल तुम्हारा नही है और साथ मे ये भी साबित कर दिया कि ये गॉगल मेरा है...."
मैने आंजेलीना के हाथ से गॉगल छीना और वापस पलट कर अपने दोस्तो की तरफ आने लगा...वापस आते समय मैने गॉगल अपने दोस्तो को दिखाते हुए हवा मे ऐसे लहराया ,जैसे कोई बॅट्स्मन सेंचुरी मारने के बाद अपना बात हवा मे लहराता है और मेरे दोस्त मेरी इस जीत का जश्न ऐसे बनाने लगे,जैसे की वो उस सेंचुरी मारने वेल बॅट्स्मन के फॅन हो.....
"ओये हेलो..."आंजेलीना ने मुझे आवाज़ मारी जिसके बाद मैं बड़े शान से पीछे पलटा...
"क्या हुआ बेबी, एनी प्राब्लम "
"ज़रा सुन तो..."
आंजेलीना ने मुझे अपनी तरफ बुलाया और उसके हाव-भाव देखार यही लग रहा था कि वो अपने किए पर शर्मिंदा है और मेरे 1400 ग्राम के दिमाग़ का लोहा मान चुकी है...मैने अपने दोस्तो से कहा कि ' मैं थोड़ी देर मे आता हूँ' और अपने गॉगल को अपनी उंगलियो पर फिराते हुए आंजेलीना की तरफ बढ़ा....
"क्या है, जल्दी बोलो...अपुन के पास टाइम नही है..."
"तुमने ये कहा कि ये गॉगल लड़को वाला है..."
"हां..ऐसा ही कुच्छ कहा था.."
"तो एक बात बताऊ ,आज की तारीख मे लड़किया ,लड़को से कही आगे है...इसलिए तुम्हारे पहले प्रूफ मे कोई दम नही दिखता क्यूंकी ये ज़रूरी नही कि लड़किया,लड़को वाले गॉगल ना पहने .तुम्हारा दूसरा प्रूफ ये था कि मैं इस गॉगल मे अच्छी नही दिख रही और जनरली कोई बंदा या बंदी वही गॉगल लेता है/लेती है जो उसपर सूट करता है...लेकिन ये भी तो हो सकता है तुम्हारी आँखे खराब हो...या तुम्हारा टेस्ट मेरे टेस्ट से बिल्कुल अलग हो...इसलिए तुम्हारे दूसरे प्रूफ मे भी कोई दम नही है...और तुमने,अपने तीसरे प्रूफ मे ये कहा कि इस गॉगल के फ्रेम मे 'आ' लेटर डिज़ाइन किया गया हैं..जिसका मतलब 'अरमान' है...लेकिन अब यदि मैं ये कहूँ कि इस 'ए' लेटर का मतलब अरमान नही बल्कि 'आंजेलीना' है...तब तुम क्या कहोगे...."बोलते हुए आंजेलीना ने मेरे हाथ से गॉगल ठीक उसी तरह छीन लिया,जैसे कुच्छ देर पहले मैने उसके हाथ से छीना था.....
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आंजेलीना से पहली मुलाक़ात मे ही मैं भाँप गया था कि इस लौंडिया मे वो गट्स है,जिसके बलबूते ये मुझे पछाड़ सकती है...लेकिन इस समय आंजेलीना जिस तरह से मेरे तर्क को बे-तर्क कर रही थी...वो मुझे रास नही आया .दिल तो किया कि इसपर मानहानि का केस थोक दूं
पहले पड़ाव की लड़ाई मे चारो खाने चित होने के बाद मैने दूसरा पड़ाव शुरू किया और आंजेलीना का फ़ॉर्मूला उसी पर उल्टा आजमाना चाहा.....
"इस गॉगल के फ्रेम मे डिज़ाइन किए गये 'ए' का मतलब अंगेलिया हो सकता है...लेकिन यहाँ पर इसका मतलब 'थे ग्रेट अरमान ' है...क्यूंकी ये राइटिंग मेरी है.मैने खुद व्हिटेनेर से इसे गॉगल के फ्रेम मे बनाया था..."
"यदि मैं कहूँ कि इस फ्रेम पर 'आ' लेटर मैने बनाया था व्हिटेनेर से तब तुम क्या कहोगे..."अपने होंठो पर एक मुस्कान लाते हुए अंगेलिया बोली और उसकी ये मुस्कान मुझे अंदर से जलाने लगी....
"यदि ऐसा है तो फिर, जैसा 'आ' मैने फ्रेम पर बनाया है,वैसा ही 'ए' एक बार मे बना कर दिखा... "
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आंजेलीना से मैने ऐसा करने के लिए इसलिए कहा क्यूंकी वो 'ए' लेटर जो मैने फ्रेम मे डिज़ाइन किया था ,वो मैने अलग ही कर्सिव स्टाइल मे बनाया था और अभी तक कोई भी उसे एक बार मे मे एग्ज़ॅक्ट नही बना पाया था.
"लाओ पेन दो,अभी बना कर दिखाती हूँ..."
"मैं यहाँ क्या कोई क्लास अटेंड करने आया हूँ,जो पेन लेकर चलूँगा...."
"ये तुम्हारी प्राब्लम है ना की मेरी..."
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"ये ले बेटा,फिर फँसा दिया इस फुलझड़ी ने..."खुद से कहते हुए मैने सोचा...बहुत सोचा,तब जाकर मुझे एक आइडिया आया और मैने तुरंत आंजेलीना से कहा कि वो नीचे रेत मे 'आ' बनाकर दिखाए...
मेरे इस आइडिया से आंजेलीना थोड़ी देर तक खामोश रही और मैं अपनी सुनिश्चित हो चुकी जीत पर इतराने लगा...आंजेलीना ने कुच्छ देर तक फ्रेम को देखा और फिरे नीचे बैठकर एक ही बार मे सेम टू सेम वैसा ही 'ए' बना दिया जैसा कि मैने गॉगल के फ्रेम मे बनाया था.....
"इसकी तो...गया बेटा 2000 का गॉगल हाथ से..."आंजेलीना के द्वारा बनाए गये 'ए' को देखते हुए मैं बड़बड़ाया....अब मैं पूरी तरह पस्त था.
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एक तरफ आंजेलीना मुझपर चढ़ रही थी तो वही दूसरी तरफ मेरे दोस्त मुझे कयि बार आवाज़ दे चुके थे और ये तय था कि यदि अब मैं इस खेल को ख़त्म करके वापस नही लौटा तो वो सब यहाँ आ जाएँगे और मुझे हारता हुआ देखेंगे...जो कि मैं बिल्कुल भी नही चाहता था....दूसरी तरफ मेरा गॉगल-प्रेम भी मुझे मैदान छोड़ने की अनुमति नही दे रहा था......
"यदि अरुण और बाकी सब यहाँ आ गये तो ख़ामखा इज़्ज़त की वॉट लग जाएगी...एक काम करता हूँ ,अभी इसको बक्श देता हूँ...बाद मे देख लूँगा फुल प्लॅनिंग के साथ...लेकिन एंडिंग जोरदार करनी होगी...बोले तो जंग का मैदान भी ऐसे स्टाइल से छोड़ कर भागना है जिससे सामने वाला अहसानमंद रहे...."मैने सोचा और आंजेलीना की ओर दो कदम और बढ़ा कर बोला...
"लड़किया चाहे कितना भी बढ़ जाए, वो हमेशा लड़को के पीछे ही रहेगी..."
"ये ग़लतफहमी भी बहुत जल्द दूर कर दूँगी..."
"यदि ऐसा ही है तो चलो फिर एक मुक़ाबला हो जाए...तुम मुझे अपनी पूरी ताक़त के साथ एक मुक्का मारो और फिर मैं तुम्हे मारूँगा...फिर देखते है कि किसमे कितना दम है "
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मुझे अबकी बार पूरा यकीन था कि आंजेलीना अबकी बार हार जाएगी लेकिन साली ने इसका भी तोड़ निकाल लिया...वो बोली....
"मुझे मंजूर है..लेकिन तुम अपने मेन पॉइंट पर हाथ मत रखना..."
"तू है कौन रे..."अपने मेन पॉइंट पर हाथ रखते हुए मैं बोला..."अभी मेरे दोस्त बुला रहे है इसलिए जा रहा हूँ लेकिन बाद मे मिलूँगा ज़रूर..."
"हमे अपनी हार स्वीकार करनी चाहिए और ये मान लेना चाहिए कि सामने वाला हमसे बेहतर था....ये तुमने ही कहा था ना, फिर आज अपनी हार मानने की बजाय ये बहाने क्यूँ बना रहे हो..."
"बिना हारे,हार मानना तुम जैसो का काम होगा और मुझे अभी इसलिए जाना पड़ रहा है क्यूंकी तुम्हारे एमबीबीएस कॉलेज के लड़को को कल की तरह आज भी बत्ती देनी है, बहुत हवा मे उड़ रहे है....आज तो खून की नादिया बहा दूँगा...गुड बाइ, बाद मे मिलता हूँ,फिर तेरी भी लूँगा..."
इतना बोलने के बाद मैं वहाँ एक पल के लिए भी नही रुका...क्यूंकी मुझे मालूम था कि आंजेलीना फिर किसी ना किसी तरह मेरी बात का तोड़ खोज ही लेती, इसलिए मैने वहाँ से खिसकना ही बेहतर समझा..
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"क्या हुआ बे अरमान...तूने उससे गॉगल क्यूँ नही लिया..."जब मैं अपने दोस्तो के पास आया तो उन्होने पुछा...
"अब क्या बताऊ यार...वो मुझसे सॉरी बोल रही थी और बोली कि आज के लिए मैं उसे गॉगल दे दूं,कल सुबह वो वापस कर देगी....अब तुम लोग तो जानते ही हो कि मेरा दिल कितना बड़ा है...दे दिया साली को...."
"दिस दा लौंडा'स रियल पॉवर...गुड"अरुण बोला"सिगरेट का एक पॅकेट मेरी तरफ से...."
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शाम ढली और रात भी चारो तरफ फैल गयी...हम सबने खाना भी खा लिया और अपने-अपने कॅंप मे वापस भी आ गये...अब सब आराम करने के मूड मे थे लेकिन मेरा मन मेरे गॉगल पर अटका हुआ था क्यूंकी जब मैं किसी के सामने कोई वज़नदार डाइलॉग्स मारता था तो मेरे गॉगल उसमे एक अहम रोल निभाते थे ,इसलिए मुझे कैसे भी करके आंजेलीना से अपना गॉगल वापस लेना था...जो मुझे बड़ी आसानी से वो नही देने वाली थी...मेरे पास एक और रास्ता था जिसके ज़रिए मैं अपना गॉगल ,आंजेलीना से वापस ले सकता था...लेकिन अब मैं आंजेलीना को हराकर उससे अपना गॉगल लेना चाहता था क्यूंकी बात अब मेरी इज़्ज़त पर आ गयी थी.....
"सब बाहर आओ..डिबेट शुरू होने वाला है..."एक लड़का हमारे कॅंप के बाहर से बोला और चलता बना....
"इनकी *** की चूत...नही देखना मुझे कोई डिबेट-वाइबेट...साले चूतिया,म्सी"सौरभ बोला...
"ये पक्का अपने वॉर्डन का आइडिया होगा...उसी की गान्ड मे इल्ली थी कि इंजिनियर वनाम. डॉक्टर खेले...साला ऐसे ही चूतिया है जो दो पक्षो मे लड़ाई करवाते है...मैं तो बोलता हूँ कि ऐसे लोग जहाँ दिखे वही इनकी गान्ड मे गोली मार देनी चाहिए..."अरुण भी सौरभ का पक्ष लेते हुए बोला...
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"असल मे तुम दोनो चूतिए हो..."सुलभ ने अरुण और सौरभ का विरोध किया"तुम दोनो को नही जाना तो मत जाओ,एटलिस्ट किसी को गाली तो मत दो...मैं तो जा रहा हूँ...भारी मज़ा आएगा...अरमान तू चलेगा क्या..."
"लवडा जाएगा मेरा..."मैने कहा..."
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पहले सुलभ कॅंप से निकला फिर नवीन और अंत मे पांडे जी भी इंजिनियर वनाम. डॉक्टर का मज़ा लेने बाहर चले गये....उनके जाने के बाद मैने,अरुण ने और सौरभ ने एक-दूसरे को देखा और ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे....
"क्या सॉलिड चोदु बनाया है तीनो को अब चलो भागकर प्लानीनम बार चलते है..."मैने कहा.....
ये आइडिया अरुण का ही था कि सुलभ, पांडे जी और नवीन को छोड़ कर बार चला जाए,,.क्यूंकी सभी लोग यदि साथ भागते तो वॉर्डन को किसी ना किसी तरह शक़ हो ही जाता और मुझे भी पक्का यकीन था कि जब बाहर डिबेट चलेगा तो वॉर्डन सबसे पहले हमे देखेगा कि हम लोग क्या कर रहे है ,ऐसे मे हमारे ग्रूप के तीन मेंबर का वहाँ होने से वॉर्डन ये सोचता कि बाकी के तीन भी यही-कही होंगे....एक और वजह जो उन तीनो को साथ ना ले जाने की थी वो ये कि सुलभ और नवीन थोड़े शरीफ किस्म के थे मतलब कि दारू को उन दोनो मे से कोई छूता तक नही था इसलिए उन दोनो को बार ले जाने का रिस्क फालतू मे कौन उठाए....राजश्री पांडे को हम लोग जानबूझकर नही ले गये,जिसका कारण था हर वक़्त उसके मुँह मे राजश्री का होना और बिना सोचे समझे किसी को भी,कुच्छ भी बक देना, जिससे दिक्कते पैदा हो सकती थी...या फिर सॉफ-सॉफ लफ़ज़ो मे कहे तो हम तीनो, उन तीनो को ले जाना ही नही चाहते थे
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"अबे अरमान ,कही पकड़े गये तो..."चोरी-छुपे सबसे नज़रें चुराकर हम तीनो कॅंप से भाग खड़े हुए और पुल पर चढ़ते ही अरुण की फटने लगी.....
"ये तो भागने से पहले सोचना चाहिए था ना...खैर अब भी कुच्छ नही बिगड़ा,तू वापस जा सकता है..."
"फट नही रही ,वो तो बस मैं ये जानना चाहता था कि यदि हम पकड़े गये तो आगे का तूने कुच्छ सोचा है या नही..."
"बोल देंगे की सूसू करने गये थे और किसी ने अंधेरे मे हम पर हमला कर दिया...."
"वॉर्डन इतना भी बड़ा चोदु नही है जो हमारी हर बात मान जाए.."
"वापस लौटते वक़्त थोड़ा मिट्टी लगा लेंगे अपने कपड़े और फेस पर...अब खुश..."
"आइडिया उतना सॉलिड नही है,पर काम चलाऊ है...."पुल पर आगे बढ़ते हुए अरुण बोला...
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हमने पुल पार किया और सड़क पर आ गये. इस बीच मैने उस दुकान पर नज़र डाली ,जिसके मालिक ने मुझे बार का रास्ता बताया था...मैं एक और बार बार का पता उस आदमी से पुछना चाहता था,लेकिन उसकी दुकान बंद थी इसलिए हम तीनो बिना कही रुके सीधे बार की तरफ चल दिए....
"किसी के मोबाइल मे टॉर्च नही है क्या...."अंधेरे मे आगे बढ़ते हुए मैने पुछा और जवाब ना मे मिला...
"इसीलिए बोलता हूँ बेटा कि नोकिया 1200 रखा करो...अब फ्लश लाइट से काम चलाना पड़ेगा..."बोलते हुए मैने अपने मोबाइल का फ्लश लाइट जलाया....
बार की तरफ जाने वाली सड़क पर इस वक़्त बहुत अंधेरा था.हालाँकि बीच-बीच मे उस रूट मे जाने वाली गाडियो की वजह से हमे सड़क का अंदाज़ा हो जा रहा था लेकिन जंगल बहुत घना था और रात के वक़्त बहुत ख़तरनाक भी दिख रहा था इसलिए मज़बूरन मुझे फ्लश लाइट जलानी पड़ी.....
बार तक पहुचने मे हमे तक़रीबन 20 मिनिट लगे और बार के सामने पहूचकर जैसे ही मैने बार पर नज़र डाली तो यकीन नही हुआ कि ऐसी जगह पर इतना शानदार बार हो सकता है....
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"बहुत बड़ा लग रहा है बे,कही अंदर चुदाई करने के लिए रूम वगेरह भी तो नही है..."बार के साइज़ का जायज़ा लेते हुए अरुण ने अपनी जीभ लपलापाई....
"वो सब तो बाद का काम है ,मुझे तो इस बात की फिक्र हो रही है कि साला कही अंदर घुसने के पैसे ना माँग ले बीसी...वरना दारू तो पी ही नही पाएँगे..."
"मेरे पास 2000 है,इतना तो सफिशियेंट होगा बे..."मुझे देखते हुए सौरभ बोला...
"मेरे पास ढाई हज़ार है ,इस वक़्त मैं तुम दोनो से ज़्यादा रहीस हूँ..."अपना वॉलेट निकालते हुए अरुण ने कहा"अरमान एक काम कर हम दोनो के पैसे तू रख ले...अंदर जाने की एंट्री फीस और दारू का बिल तू ही पे करना..."
"क्यूँ तुम दोनो के हाथ टूट गये है क्या..."
"अबे बक्चोद, अंदर जाकर हम तीनो अपनी जेब से पैसे निकालेंगे तो लड़कियो पर खराब इंप्रेशन जाएगा...दारू पीने के बाद तू पैसे सीधे फेक कर बार वालो के मुँह मे मारना...."
"ये भी ठीक है..."मैने कहा और अरुण के साथ-साथ सौरभ के पैसे भी अपने वॉलेट मे रख लिया....
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अभी तक तो सब कुच्छ हमारे प्लान के हिसाब से चल रहा था लेकिन बहुत बड़ी परेशानी तब आई जब बार के बाहर खड़े बौंसेर्स ने हमे अंदर बार की दहलीज पर कदम तक रखने नही दिया....
"भिखारी समझ रखा है क्या , अपुन लोग बहुत रहीस है और यदि मेरी खोपड़ी खिसक गयी तो इस बार के साथ-साथ तुझे भी खरीद लूँगा..."
जवाब मे बौंसेर्स ने अपनी उंगली से एक तरफ इशारा किया जहाँ लिखा हुआ था 'ओन्ली कपल्स अलोड'.
"ये तो हम तीनो मे से किसी ने सोचा ही नही ,अब क्या करे...."...'ओन्ली कपल्स अलोड' के टॅग को पढ़ते हुए सौरभ बोला...
"लवडे अरमान तुझे आज पेल-पेल के लाल कर दूँगा...बोसे ड्के यहाँ तक पैदल चलाया और इन मोटे भैंसो ने बाबाजी का घंटा थमा दिया...तू बेटा कुच्छ सोच,वरना आज तुझे शहीद कर दूँगा..."
"टेन्षन मत ले लवडे...मैने सोचा था कि ऐसा कुच्छ हो सकता है ,इसीलिए अंदर जाने के लिए हाथ-पैर चला सकते है..."अरुण को गुस्सा होते हुए देख मैं बोला"सौरभ तू अरुण से चिपक कर खड़ा हो जा और अरुण तू मेरी कमर मे अपना एक हाथ डाल और ऐसे बिहेव करो जैसे कि हम तीनो गे हो..."
मेरी बात सुनकर शुरू मे अरुण और सौरभ तो बहुत हँसे लेकिन फिर उन दोनो ने वैसा किया,जैसा कि मैने उन्हे करने के लिए कहा था....हम तीनो एक दूसरे से कसकर चिपके और एक बार फिर बार की तरफ बढ़े और बौंसेर्स को देखकर गे वाली हरकते करने लगे....
" ओन्ली फॉर कपल्स..."एक बौंसेर ने हम तीनो को एक बार फिर से टॅग दिखाया....
"हम लोग गे कपल है या फिर हम तीन है तो तुम हमे गे-ट्रिपल भी बोल सकते हो...क्यूँ चिकने..."अरुण के गाल को अपने हाथ से खीचते हुए मैने हवा मे उसे एक पप्पी दी, जिसके बाद अरुण ने यही हरकत सौरभ के साथ की....
"चल बाजू हट बहन..."बौंसेर्स को देखकर सौरभ ने अपना हाथ हिलाया....
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"एक बार बोला ना...यहाँ तुम जैसो का कोई काम नही,समझ नही आता क्या..."उन बौंसेर्स मे से एक हमारी तरफ बढ़ते हुए बोला और आगे उस पहलवान के हाथो अपनी ठुकाई की भविष्यवाणी जानकार हम तीनो उधर से खिसक लिए...
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उस कल्लू ,कंघी चोर की ये हरकत देखकर हम सबका दिल, मुँह को आ गया...आँखे जैसे यकीन ही नही कर पा रही थी कि कुच्छ देर पहले जो सीन उन्होने देखा वो सच था या फिर एक भ्रम था...उस कल्लू कंघी चोर ,पर गुस्सा तो हम सभी को आया था,लेकिन हम सब चाहते थे कि इसकी शुरुआत अरुण करे.....
"तेरी माँ की..."बोलते हुए अरुण ने आव ना देख ताव, और सीधा अपना हाथ कल्लू के कान पर छोड़ दिया....
"तुम लोग ग्रूप मे हो इसलिए मुझे मार रहे हो..."नम आवाज़ के साथ कल्लू ने कहा....
"साले ,कालीचरण...तेरी गान्ड मे इतनी हिम्मत कि तू मुझसे लड़ेगा...म्सी ,औकात मे रहा कर,वरना सारी हेकड़ी दो मिनिट मे निकाल दूँगा...बीसी हॉस्टिल मे कुच्छ बोलते नही है तो सोचता है कि तुझसे डरते है...दोबारा यदि कभी ऐसा किया तो जहाँ छेद दिखेगा वही लंड डालूँगा और आँख ,कान,नाक,मुँह ,गान्ड सब कुच्छ फाड़ डालूँगा...बीसी,चूतिया साला..."
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इस घटना के बाद हमारे कालीचरण साहब एक पल भी वहाँ नही रुके और बिना पैसे दिए ही वहाँ से चल दिए....दुकान वाले ने कल्लू को आवाज़ भी लगाई,लेकिन वो नही रुका....उस ठेले वाले से मैने आस-पास कही दारू की दुकान है या नही...ये पुछा, जिसके जवाब मे मुझे मालूम चला कि यहाँ से कुच्छ दूरी पर एक बार है...
"एक बार,इस जंगल मे...."
"बार मतलब वही ना जहाँ शराब बहुत महँगी मिलती है और बड़े-बड़े घरानो की लड़किया छोटे-छोटे कपड़े पहन कर अपनी इज़्ज़त दान करती है...."
"हां...उसी को बार कहते है..."उसकी बात का मतलब समझकर मैने कहा"यहाँ आस-पास कोई छ्होटी-मोटी दारू की दुकान नही है क्या..."
"इधर तो कुच्छ भी नही है ,बस वही एक बार है..."
"कितना दूर होगा यहाँ से..."
"यदि पैदल चले तो यही कोई 15-20 मिनिट लगेंगे...लेकिन अंदर नही जा पाओगे भाऊ..."
"अंदर क्यूँ नही जा पाउन्गा...."
"क्यूंकी उधर जाने के वास्ते लड़की साथ मे होना माँगता और अंदर जाने के लिए पैसा भी बहुत लगता है...."
"वो सब हमारी परेशानी है ,आप ये बताओ कि जाना किस डाइरेक्षन मे है..."
उस ठेले वाले ने हमे बार जाने का रास्ता बताया,जिसके बाद हम लोग वापस अपने कॅंप की तरफ बढ़ गये...
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"अभी से कॅंप जाकर क्या करेंगे ,अरमान भाई...अभी तो सिर्फ़ 1 बजे है और वॉर्डन ने 4 बजे तक आने को कहा है, यही कि अपने पास अभी फुल 3 घंटे है...."पुल पर चलते हुए राजश्री पांडे बोला....
"कॅंप कौन जा रहा है,हम लोग तो वापस लेफ्ट साइड जाकर ,एमबीबीएस कॉलेज की लड़कियो को ताडेन्गे...साली क्या माल दिखती है ,फिगर तो पुछो मत...देखते ही लंड खड़ा हो जाता है..."
"अरमान ,तूने बताया नही कि अब्दुल कलाम से तूने क्या बात की थी..."तुरंत टॉपिक चेंज करके अरुण ने पुछा...लेकिन मैं अरुण से कुच्छ कहता उससे पहले ही सौरभ बोल उठा कि मैं फेंक रहा हूँ और बाकियो ने भी उसका साथ दिया....
"अबे यदि यकीन नही आता तो जाकर खुद कलाम जी से पुच्छ लो... या फिर गूगल मे सर्च मार ले कि कलाम जी कभी न्लू(नॅशनल लॉ इन्स्टिट्यूट),भोपाल आए थे या नही...और जब यकीन हो जाए कि वो वहाँ आए थे तो फिर मेरे स्कूल जाना और मेरे प्रिन्सिपल से पुछ्ना...."
"चल बे,हमे सिर्फ़ इतना ही काम बचा है क्या जो तेरे स्कूल जाए..."
"फिर एक काम करो...तुम सब गान्ड मराओ...साले खुद की जितनी औकात है उतनी मेरी भी समझते हो..."
"ओ बीसी...अरमान उधर देख..."फिर से टॉपिक चेंज करते हुए अरुण बोला"तेरा गॉगल ,वो एमबीबीएस वाली आइटम पहन कर घूम रही है,लेकिन तेरा गॉगल उसके पास कैसे आया...साली चॉटी..."
"क्या बोला तू...."
"अबे यही कि तेरा गॉगल शायद आंजेलीना ने पहन रखा है...वो देख साइड मे मछलि मार रही है..बोले तो शी फिशिंग करिंग..."
मेरी रूह मेरे गॉगल मे बस्ती है और जब मेरी रूह का पता चल गया तो मैने तुरंत आंजेलीना की तरफ नज़र दौड़ाया....दूर से तो मुझे भी लग रहा था कि ये मेरा ही गॉगल है लेकिन एक बार कन्फर्म करना तो बनता ही है,क्यूंकी बिना मतलब सिल्वा डार्लिंग को छेड़ना मतलब अपनी पॅंट उतरवाना था....इसलिए मैने बाकियो को जहाँ खड़े थे वही रुकने के लिए कहा और आंजेलीना की तरफ धीरे-धीरे बढ़ने लगा,इस दौरान मेरी दोनो आँखे आंजेलीना के आँखो मे चढ़े चश्मे पर थी....जैसे-जैसे मैं आंजेलीना के करीब आता गया ,मुझे अरुण की कही गयी बात सच होती मालूम पड़ी और जब मैने कन्फर्म कर लिया कि ये गॉगल मेरा ही है तो मैने सबसे पहले अपने सर मे उंगलिया फिरा कर अपना बाल ठीक किया और फेस को रूमाल से एक बार सॉफ करके आंजेलीना के और करीब जाने लगा.....
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"और मछलि-मार, क्या हाल चाल है....कॉफी हाउस का बिल दिमाग़ से निकला या अभी तक भेजे मे है..."आंजेलीना को पहली ही लाइन से छेड़ते हुए मैने कहा....क्यूंकी हम दोनो के बीच 36 का आकड़ा पहली मुलाक़ात से ही चल रहा था इसलिए 'हाई..हेलो' जैसी नॉर्मल बातें तो हम दोनो के बीच हो ही नही सकती थी....
"बहुत रहीस घराने से हूँ मैं, इसलिए ये 5-10 हज़ार मेरे लिए कोई बड़ी बात नही..."फिशिंग रोड एक तरफ सरकाते हुए आंजेलीना खड़ी हुई और उसकी दोनो सहेलिया,चींकी और पिंकी...जो उधर ही टहल रही थी...मुझे वहाँ आंजेलीना के पास देखकर हमारे तरफ ही आने लगी.....
"यदि इतनी ही रहीस हो तो फिर ऐसी क्या ज़रूरत आन पड़ी जो तुमने मेरा गॉगल चुराया...."
"होश मे तो हो..."अपनी आवाज़ ज़रा उँची करके उसने गॉगल अपनी आँखो से उतारा और फिर मुझे घूरते हुए बोली" चोर नही हूँ मैं,समझे..."
"देखो सिल्वा जी, ये गॉगल तुम्हारा नही है इसके तीन प्रूफ मैं देता हूँ...फर्स्ट प्रूफ ये है कि ये गॉगल लड़कियो वाला नही बल्कि लड़को वाला है...सेकेंड प्रूफ ये कि तुम इसमे बिल्कुल भी...बिल्कुल भी अच्छी नही दिख रही और थर्ड आंड मोस्ट इंपॉर्टेंट प्रूफ ये है कि इस गॉगल के फ्रेम मे पीछे की तरफ 'ए' वर्ड डिज़ाइन किया हुआ है,जो मैने खुद व्हिटेनेर से किया है...जिसका मतलब है 'अरमान' जो कि मेरा नाम है...."विजयी मुस्कान देते हुए मैं आगे बोला"मैने ये साबित कर दिया की ये गॉगल तुम्हारा नही है और साथ मे ये भी साबित कर दिया कि ये गॉगल मेरा है...."
मैने आंजेलीना के हाथ से गॉगल छीना और वापस पलट कर अपने दोस्तो की तरफ आने लगा...वापस आते समय मैने गॉगल अपने दोस्तो को दिखाते हुए हवा मे ऐसे लहराया ,जैसे कोई बॅट्स्मन सेंचुरी मारने के बाद अपना बात हवा मे लहराता है और मेरे दोस्त मेरी इस जीत का जश्न ऐसे बनाने लगे,जैसे की वो उस सेंचुरी मारने वेल बॅट्स्मन के फॅन हो.....
"ओये हेलो..."आंजेलीना ने मुझे आवाज़ मारी जिसके बाद मैं बड़े शान से पीछे पलटा...
"क्या हुआ बेबी, एनी प्राब्लम "
"ज़रा सुन तो..."
आंजेलीना ने मुझे अपनी तरफ बुलाया और उसके हाव-भाव देखार यही लग रहा था कि वो अपने किए पर शर्मिंदा है और मेरे 1400 ग्राम के दिमाग़ का लोहा मान चुकी है...मैने अपने दोस्तो से कहा कि ' मैं थोड़ी देर मे आता हूँ' और अपने गॉगल को अपनी उंगलियो पर फिराते हुए आंजेलीना की तरफ बढ़ा....
"क्या है, जल्दी बोलो...अपुन के पास टाइम नही है..."
"तुमने ये कहा कि ये गॉगल लड़को वाला है..."
"हां..ऐसा ही कुच्छ कहा था.."
"तो एक बात बताऊ ,आज की तारीख मे लड़किया ,लड़को से कही आगे है...इसलिए तुम्हारे पहले प्रूफ मे कोई दम नही दिखता क्यूंकी ये ज़रूरी नही कि लड़किया,लड़को वाले गॉगल ना पहने .तुम्हारा दूसरा प्रूफ ये था कि मैं इस गॉगल मे अच्छी नही दिख रही और जनरली कोई बंदा या बंदी वही गॉगल लेता है/लेती है जो उसपर सूट करता है...लेकिन ये भी तो हो सकता है तुम्हारी आँखे खराब हो...या तुम्हारा टेस्ट मेरे टेस्ट से बिल्कुल अलग हो...इसलिए तुम्हारे दूसरे प्रूफ मे भी कोई दम नही है...और तुमने,अपने तीसरे प्रूफ मे ये कहा कि इस गॉगल के फ्रेम मे 'आ' लेटर डिज़ाइन किया गया हैं..जिसका मतलब 'अरमान' है...लेकिन अब यदि मैं ये कहूँ कि इस 'ए' लेटर का मतलब अरमान नही बल्कि 'आंजेलीना' है...तब तुम क्या कहोगे...."बोलते हुए आंजेलीना ने मेरे हाथ से गॉगल ठीक उसी तरह छीन लिया,जैसे कुच्छ देर पहले मैने उसके हाथ से छीना था.....
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आंजेलीना से पहली मुलाक़ात मे ही मैं भाँप गया था कि इस लौंडिया मे वो गट्स है,जिसके बलबूते ये मुझे पछाड़ सकती है...लेकिन इस समय आंजेलीना जिस तरह से मेरे तर्क को बे-तर्क कर रही थी...वो मुझे रास नही आया .दिल तो किया कि इसपर मानहानि का केस थोक दूं
पहले पड़ाव की लड़ाई मे चारो खाने चित होने के बाद मैने दूसरा पड़ाव शुरू किया और आंजेलीना का फ़ॉर्मूला उसी पर उल्टा आजमाना चाहा.....
"इस गॉगल के फ्रेम मे डिज़ाइन किए गये 'ए' का मतलब अंगेलिया हो सकता है...लेकिन यहाँ पर इसका मतलब 'थे ग्रेट अरमान ' है...क्यूंकी ये राइटिंग मेरी है.मैने खुद व्हिटेनेर से इसे गॉगल के फ्रेम मे बनाया था..."
"यदि मैं कहूँ कि इस फ्रेम पर 'आ' लेटर मैने बनाया था व्हिटेनेर से तब तुम क्या कहोगे..."अपने होंठो पर एक मुस्कान लाते हुए अंगेलिया बोली और उसकी ये मुस्कान मुझे अंदर से जलाने लगी....
"यदि ऐसा है तो फिर, जैसा 'आ' मैने फ्रेम पर बनाया है,वैसा ही 'ए' एक बार मे बना कर दिखा... "
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आंजेलीना से मैने ऐसा करने के लिए इसलिए कहा क्यूंकी वो 'ए' लेटर जो मैने फ्रेम मे डिज़ाइन किया था ,वो मैने अलग ही कर्सिव स्टाइल मे बनाया था और अभी तक कोई भी उसे एक बार मे मे एग्ज़ॅक्ट नही बना पाया था.
"लाओ पेन दो,अभी बना कर दिखाती हूँ..."
"मैं यहाँ क्या कोई क्लास अटेंड करने आया हूँ,जो पेन लेकर चलूँगा...."
"ये तुम्हारी प्राब्लम है ना की मेरी..."
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"ये ले बेटा,फिर फँसा दिया इस फुलझड़ी ने..."खुद से कहते हुए मैने सोचा...बहुत सोचा,तब जाकर मुझे एक आइडिया आया और मैने तुरंत आंजेलीना से कहा कि वो नीचे रेत मे 'आ' बनाकर दिखाए...
मेरे इस आइडिया से आंजेलीना थोड़ी देर तक खामोश रही और मैं अपनी सुनिश्चित हो चुकी जीत पर इतराने लगा...आंजेलीना ने कुच्छ देर तक फ्रेम को देखा और फिरे नीचे बैठकर एक ही बार मे सेम टू सेम वैसा ही 'ए' बना दिया जैसा कि मैने गॉगल के फ्रेम मे बनाया था.....
"इसकी तो...गया बेटा 2000 का गॉगल हाथ से..."आंजेलीना के द्वारा बनाए गये 'ए' को देखते हुए मैं बड़बड़ाया....अब मैं पूरी तरह पस्त था.
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एक तरफ आंजेलीना मुझपर चढ़ रही थी तो वही दूसरी तरफ मेरे दोस्त मुझे कयि बार आवाज़ दे चुके थे और ये तय था कि यदि अब मैं इस खेल को ख़त्म करके वापस नही लौटा तो वो सब यहाँ आ जाएँगे और मुझे हारता हुआ देखेंगे...जो कि मैं बिल्कुल भी नही चाहता था....दूसरी तरफ मेरा गॉगल-प्रेम भी मुझे मैदान छोड़ने की अनुमति नही दे रहा था......
"यदि अरुण और बाकी सब यहाँ आ गये तो ख़ामखा इज़्ज़त की वॉट लग जाएगी...एक काम करता हूँ ,अभी इसको बक्श देता हूँ...बाद मे देख लूँगा फुल प्लॅनिंग के साथ...लेकिन एंडिंग जोरदार करनी होगी...बोले तो जंग का मैदान भी ऐसे स्टाइल से छोड़ कर भागना है जिससे सामने वाला अहसानमंद रहे...."मैने सोचा और आंजेलीना की ओर दो कदम और बढ़ा कर बोला...
"लड़किया चाहे कितना भी बढ़ जाए, वो हमेशा लड़को के पीछे ही रहेगी..."
"ये ग़लतफहमी भी बहुत जल्द दूर कर दूँगी..."
"यदि ऐसा ही है तो चलो फिर एक मुक़ाबला हो जाए...तुम मुझे अपनी पूरी ताक़त के साथ एक मुक्का मारो और फिर मैं तुम्हे मारूँगा...फिर देखते है कि किसमे कितना दम है "
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मुझे अबकी बार पूरा यकीन था कि आंजेलीना अबकी बार हार जाएगी लेकिन साली ने इसका भी तोड़ निकाल लिया...वो बोली....
"मुझे मंजूर है..लेकिन तुम अपने मेन पॉइंट पर हाथ मत रखना..."
"तू है कौन रे..."अपने मेन पॉइंट पर हाथ रखते हुए मैं बोला..."अभी मेरे दोस्त बुला रहे है इसलिए जा रहा हूँ लेकिन बाद मे मिलूँगा ज़रूर..."
"हमे अपनी हार स्वीकार करनी चाहिए और ये मान लेना चाहिए कि सामने वाला हमसे बेहतर था....ये तुमने ही कहा था ना, फिर आज अपनी हार मानने की बजाय ये बहाने क्यूँ बना रहे हो..."
"बिना हारे,हार मानना तुम जैसो का काम होगा और मुझे अभी इसलिए जाना पड़ रहा है क्यूंकी तुम्हारे एमबीबीएस कॉलेज के लड़को को कल की तरह आज भी बत्ती देनी है, बहुत हवा मे उड़ रहे है....आज तो खून की नादिया बहा दूँगा...गुड बाइ, बाद मे मिलता हूँ,फिर तेरी भी लूँगा..."
इतना बोलने के बाद मैं वहाँ एक पल के लिए भी नही रुका...क्यूंकी मुझे मालूम था कि आंजेलीना फिर किसी ना किसी तरह मेरी बात का तोड़ खोज ही लेती, इसलिए मैने वहाँ से खिसकना ही बेहतर समझा..
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"क्या हुआ बे अरमान...तूने उससे गॉगल क्यूँ नही लिया..."जब मैं अपने दोस्तो के पास आया तो उन्होने पुछा...
"अब क्या बताऊ यार...वो मुझसे सॉरी बोल रही थी और बोली कि आज के लिए मैं उसे गॉगल दे दूं,कल सुबह वो वापस कर देगी....अब तुम लोग तो जानते ही हो कि मेरा दिल कितना बड़ा है...दे दिया साली को...."
"दिस दा लौंडा'स रियल पॉवर...गुड"अरुण बोला"सिगरेट का एक पॅकेट मेरी तरफ से...."
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शाम ढली और रात भी चारो तरफ फैल गयी...हम सबने खाना भी खा लिया और अपने-अपने कॅंप मे वापस भी आ गये...अब सब आराम करने के मूड मे थे लेकिन मेरा मन मेरे गॉगल पर अटका हुआ था क्यूंकी जब मैं किसी के सामने कोई वज़नदार डाइलॉग्स मारता था तो मेरे गॉगल उसमे एक अहम रोल निभाते थे ,इसलिए मुझे कैसे भी करके आंजेलीना से अपना गॉगल वापस लेना था...जो मुझे बड़ी आसानी से वो नही देने वाली थी...मेरे पास एक और रास्ता था जिसके ज़रिए मैं अपना गॉगल ,आंजेलीना से वापस ले सकता था...लेकिन अब मैं आंजेलीना को हराकर उससे अपना गॉगल लेना चाहता था क्यूंकी बात अब मेरी इज़्ज़त पर आ गयी थी.....
"सब बाहर आओ..डिबेट शुरू होने वाला है..."एक लड़का हमारे कॅंप के बाहर से बोला और चलता बना....
"इनकी *** की चूत...नही देखना मुझे कोई डिबेट-वाइबेट...साले चूतिया,म्सी"सौरभ बोला...
"ये पक्का अपने वॉर्डन का आइडिया होगा...उसी की गान्ड मे इल्ली थी कि इंजिनियर वनाम. डॉक्टर खेले...साला ऐसे ही चूतिया है जो दो पक्षो मे लड़ाई करवाते है...मैं तो बोलता हूँ कि ऐसे लोग जहाँ दिखे वही इनकी गान्ड मे गोली मार देनी चाहिए..."अरुण भी सौरभ का पक्ष लेते हुए बोला...
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"असल मे तुम दोनो चूतिए हो..."सुलभ ने अरुण और सौरभ का विरोध किया"तुम दोनो को नही जाना तो मत जाओ,एटलिस्ट किसी को गाली तो मत दो...मैं तो जा रहा हूँ...भारी मज़ा आएगा...अरमान तू चलेगा क्या..."
"लवडा जाएगा मेरा..."मैने कहा..."
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पहले सुलभ कॅंप से निकला फिर नवीन और अंत मे पांडे जी भी इंजिनियर वनाम. डॉक्टर का मज़ा लेने बाहर चले गये....उनके जाने के बाद मैने,अरुण ने और सौरभ ने एक-दूसरे को देखा और ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे....
"क्या सॉलिड चोदु बनाया है तीनो को अब चलो भागकर प्लानीनम बार चलते है..."मैने कहा.....
ये आइडिया अरुण का ही था कि सुलभ, पांडे जी और नवीन को छोड़ कर बार चला जाए,,.क्यूंकी सभी लोग यदि साथ भागते तो वॉर्डन को किसी ना किसी तरह शक़ हो ही जाता और मुझे भी पक्का यकीन था कि जब बाहर डिबेट चलेगा तो वॉर्डन सबसे पहले हमे देखेगा कि हम लोग क्या कर रहे है ,ऐसे मे हमारे ग्रूप के तीन मेंबर का वहाँ होने से वॉर्डन ये सोचता कि बाकी के तीन भी यही-कही होंगे....एक और वजह जो उन तीनो को साथ ना ले जाने की थी वो ये कि सुलभ और नवीन थोड़े शरीफ किस्म के थे मतलब कि दारू को उन दोनो मे से कोई छूता तक नही था इसलिए उन दोनो को बार ले जाने का रिस्क फालतू मे कौन उठाए....राजश्री पांडे को हम लोग जानबूझकर नही ले गये,जिसका कारण था हर वक़्त उसके मुँह मे राजश्री का होना और बिना सोचे समझे किसी को भी,कुच्छ भी बक देना, जिससे दिक्कते पैदा हो सकती थी...या फिर सॉफ-सॉफ लफ़ज़ो मे कहे तो हम तीनो, उन तीनो को ले जाना ही नही चाहते थे
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"अबे अरमान ,कही पकड़े गये तो..."चोरी-छुपे सबसे नज़रें चुराकर हम तीनो कॅंप से भाग खड़े हुए और पुल पर चढ़ते ही अरुण की फटने लगी.....
"ये तो भागने से पहले सोचना चाहिए था ना...खैर अब भी कुच्छ नही बिगड़ा,तू वापस जा सकता है..."
"फट नही रही ,वो तो बस मैं ये जानना चाहता था कि यदि हम पकड़े गये तो आगे का तूने कुच्छ सोचा है या नही..."
"बोल देंगे की सूसू करने गये थे और किसी ने अंधेरे मे हम पर हमला कर दिया...."
"वॉर्डन इतना भी बड़ा चोदु नही है जो हमारी हर बात मान जाए.."
"वापस लौटते वक़्त थोड़ा मिट्टी लगा लेंगे अपने कपड़े और फेस पर...अब खुश..."
"आइडिया उतना सॉलिड नही है,पर काम चलाऊ है...."पुल पर आगे बढ़ते हुए अरुण बोला...
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हमने पुल पार किया और सड़क पर आ गये. इस बीच मैने उस दुकान पर नज़र डाली ,जिसके मालिक ने मुझे बार का रास्ता बताया था...मैं एक और बार बार का पता उस आदमी से पुछना चाहता था,लेकिन उसकी दुकान बंद थी इसलिए हम तीनो बिना कही रुके सीधे बार की तरफ चल दिए....
"किसी के मोबाइल मे टॉर्च नही है क्या...."अंधेरे मे आगे बढ़ते हुए मैने पुछा और जवाब ना मे मिला...
"इसीलिए बोलता हूँ बेटा कि नोकिया 1200 रखा करो...अब फ्लश लाइट से काम चलाना पड़ेगा..."बोलते हुए मैने अपने मोबाइल का फ्लश लाइट जलाया....
बार की तरफ जाने वाली सड़क पर इस वक़्त बहुत अंधेरा था.हालाँकि बीच-बीच मे उस रूट मे जाने वाली गाडियो की वजह से हमे सड़क का अंदाज़ा हो जा रहा था लेकिन जंगल बहुत घना था और रात के वक़्त बहुत ख़तरनाक भी दिख रहा था इसलिए मज़बूरन मुझे फ्लश लाइट जलानी पड़ी.....
बार तक पहुचने मे हमे तक़रीबन 20 मिनिट लगे और बार के सामने पहूचकर जैसे ही मैने बार पर नज़र डाली तो यकीन नही हुआ कि ऐसी जगह पर इतना शानदार बार हो सकता है....
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"बहुत बड़ा लग रहा है बे,कही अंदर चुदाई करने के लिए रूम वगेरह भी तो नही है..."बार के साइज़ का जायज़ा लेते हुए अरुण ने अपनी जीभ लपलापाई....
"वो सब तो बाद का काम है ,मुझे तो इस बात की फिक्र हो रही है कि साला कही अंदर घुसने के पैसे ना माँग ले बीसी...वरना दारू तो पी ही नही पाएँगे..."
"मेरे पास 2000 है,इतना तो सफिशियेंट होगा बे..."मुझे देखते हुए सौरभ बोला...
"मेरे पास ढाई हज़ार है ,इस वक़्त मैं तुम दोनो से ज़्यादा रहीस हूँ..."अपना वॉलेट निकालते हुए अरुण ने कहा"अरमान एक काम कर हम दोनो के पैसे तू रख ले...अंदर जाने की एंट्री फीस और दारू का बिल तू ही पे करना..."
"क्यूँ तुम दोनो के हाथ टूट गये है क्या..."
"अबे बक्चोद, अंदर जाकर हम तीनो अपनी जेब से पैसे निकालेंगे तो लड़कियो पर खराब इंप्रेशन जाएगा...दारू पीने के बाद तू पैसे सीधे फेक कर बार वालो के मुँह मे मारना...."
"ये भी ठीक है..."मैने कहा और अरुण के साथ-साथ सौरभ के पैसे भी अपने वॉलेट मे रख लिया....
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अभी तक तो सब कुच्छ हमारे प्लान के हिसाब से चल रहा था लेकिन बहुत बड़ी परेशानी तब आई जब बार के बाहर खड़े बौंसेर्स ने हमे अंदर बार की दहलीज पर कदम तक रखने नही दिया....
"भिखारी समझ रखा है क्या , अपुन लोग बहुत रहीस है और यदि मेरी खोपड़ी खिसक गयी तो इस बार के साथ-साथ तुझे भी खरीद लूँगा..."
जवाब मे बौंसेर्स ने अपनी उंगली से एक तरफ इशारा किया जहाँ लिखा हुआ था 'ओन्ली कपल्स अलोड'.
"ये तो हम तीनो मे से किसी ने सोचा ही नही ,अब क्या करे...."...'ओन्ली कपल्स अलोड' के टॅग को पढ़ते हुए सौरभ बोला...
"लवडे अरमान तुझे आज पेल-पेल के लाल कर दूँगा...बोसे ड्के यहाँ तक पैदल चलाया और इन मोटे भैंसो ने बाबाजी का घंटा थमा दिया...तू बेटा कुच्छ सोच,वरना आज तुझे शहीद कर दूँगा..."
"टेन्षन मत ले लवडे...मैने सोचा था कि ऐसा कुच्छ हो सकता है ,इसीलिए अंदर जाने के लिए हाथ-पैर चला सकते है..."अरुण को गुस्सा होते हुए देख मैं बोला"सौरभ तू अरुण से चिपक कर खड़ा हो जा और अरुण तू मेरी कमर मे अपना एक हाथ डाल और ऐसे बिहेव करो जैसे कि हम तीनो गे हो..."
मेरी बात सुनकर शुरू मे अरुण और सौरभ तो बहुत हँसे लेकिन फिर उन दोनो ने वैसा किया,जैसा कि मैने उन्हे करने के लिए कहा था....हम तीनो एक दूसरे से कसकर चिपके और एक बार फिर बार की तरफ बढ़े और बौंसेर्स को देखकर गे वाली हरकते करने लगे....
" ओन्ली फॉर कपल्स..."एक बौंसेर ने हम तीनो को एक बार फिर से टॅग दिखाया....
"हम लोग गे कपल है या फिर हम तीन है तो तुम हमे गे-ट्रिपल भी बोल सकते हो...क्यूँ चिकने..."अरुण के गाल को अपने हाथ से खीचते हुए मैने हवा मे उसे एक पप्पी दी, जिसके बाद अरुण ने यही हरकत सौरभ के साथ की....
"चल बाजू हट बहन..."बौंसेर्स को देखकर सौरभ ने अपना हाथ हिलाया....
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"एक बार बोला ना...यहाँ तुम जैसो का कोई काम नही,समझ नही आता क्या..."उन बौंसेर्स मे से एक हमारी तरफ बढ़ते हुए बोला और आगे उस पहलवान के हाथो अपनी ठुकाई की भविष्यवाणी जानकार हम तीनो उधर से खिसक लिए...