hotaks444
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बाली उमर की प्यास पार्ट--9
गतांक से आगे.......................
अगले दिन मैं चुप चाप उठकर घर चली आई.. मुझे पूरा विश्वास था कि तरुण अब नही आने वाला है.. फिर भी मैं टूवुशन के टाइम पर पिंकी के घर जा पहुँची.. पिंकी चारपाई पर बैठी पढ़ रही थी और मीनू अपने सिर को चुन्नी से बाँध कर चारपाई पर लेटी थी...
"क्या हुआ दीदी? तबीयत खराब है क्या?" मैने जाते ही मीनू से पूचछा...
"इनसे बात मत करो अंजू! दीदी के सिर में दर्द है!" पिंकी ने मुझे अपनी चारपाई पर बैठने की जगह देते हुए कहा.. उसका मूड भी खराब लग रहा था..
"हुम्म.. अच्च्छा!" मैने कहा और पिंकी के साथ बैठ गयी," आज पढ़ाने आएगा ना तरुण?"
पिंकी ने चौंकते हुए मेरे चेहरे को देखा.. मीनू अचानक बोल पड़ी," क्यूँ? आता ही होगा! आएगा क्यूँ नही.. तुमसे कुच्छ कहा है क्या उसने?"
"नही.. मैं तो यूँही पूच्छ रही हूँ.." मैं भी जाने कैसा सवाल कर गयी.. जैसे तैसे मैने अपनी बात को सुधारने की कोशिश करते हुए कहा," आज पढ़ाई का मंन नही था.. इसीलिए पूच्छ रही थी..."
"अब भी पढ़ाई नही की तो मारे जाएँगे अंजू! 2 दिन तो रह गये हैं.. एग्ज़ॅम शुरू होने में.. मुझे तो ऐसे लग रहा है जैसे कुच्छ भी याद नही.. हे हे.." पिंकी ने कहा और फिर कुच्छ सोच समझ कर बोली," दीदी.. अब मना ही कर देते हैं उसको.. अब तो हमें खुद ही तैयारी करनी है.. क्यूँ अंजू?"
"हुम्म.." मैने सहमति में सिर हिलाया.. मुझे पता तो था ही कि अब वो वैसे भी यहाँ आने वाला है नही...
"पिंकी!.. ज़रा चाय बना लाएगी.. मेरे सिर में ज़्यादा दर्द हो रहा है..." मीनू ने कहा...
"अभी लाई दीदी.." पिंकी ने अपनी कताबें बंद की और उपर भाग गयी...
पिंकी के जाते ही मीनू उठ कर बैठ गयी," एक बात पूछू अंजू?"
"आहा.. पूच्छो दीदी!" मैने अचकचते हुए जवाब दिया...
"वो.. देख.. मेरा कुच्छ ग़लत मतलब मत निकालना... तुमने तरुण को कभी अकेले में कुच्छ कहा है क्या?" मीनू ने हिचकते हुए पूचछा...
"म्म..मैं समझी नही दीदी!" मैने कहा..
"देख.. मैं तुझसे इस वक़्त अपनी छ्होटी बेहन मान कर बात कर रही हूँ.. पर हिचक रही हूँ.. कहीं तुम्हे बुरी ना लग जायें.." मीनू ने कहा...
"नही नही.. बोलो ना दीदी!" मैने प्यार से कहा और उसके चेहरे को देखने लगी...
मीनू ने नज़रें एक तरफ कर ली," तू कभी उस'से अकेले में.. लिपटी है क्या?"
"ये क्या कह रही हो आप..?" मुझे पता था कि वो किस दिन के बारे में बात कर रही है.. मैं मंन ही मंन कहानी बनाने लगी...
"देख.. मैने पहले ही कहा था कि बुरा मत मान जाना.. मैने सुना था.. तभी पूच्छ रही हूँ.. तुझे अगर इस बारे में बात नही करनी तो सॉरी.." मीनू अब सीधी मेरी ही आँखों में देख रही थी...
"नही दीदी.. दरअसल.. एक दिन.. तरुण ने ही मेरे साथ पढ़ते हुए ऐसा वैसा करने की कोशिश की थी.. मुझे बहलकर.. पर मैने सॉफ मना कर के उसको धमका दिया था.. आपसे किसने कहा...?' मैने बड़ी सफाई से सब कुच्छ तरुण के माथे मढ़ दिया....
मेरे मुँह से ये सुनते ही मीनू की आँखों से अवीराल आँसू बहने लगे.. अपने आँसुओं को पौंचछति हुई वह बोली," तू बहुत अच्छि है अंजू.. कभी भी उस कुत्ते की बातों में मत आना.. " कहकर मीनू रोने लगी...
"क्या हुआ दीदी? मैने चौंकने का अभिनय किया और उसके पास जाकर उसके आँसू पौंच्छने लगी," आप ऐसे क्यूँ रो रही हैं?"
मेरे नाटक को मेरी सहानुभूति जानकार मीनू मुझसे लिपट गयी," वो बहुत ही कमीना है अंजू.. उसने मुझे बर्बाद कर दिया.. ऐसे ही बातों बातों में मुझे बहलकर..." रोते रोते वा बोली...
"पर हुआ क्या दीदी? बताओ तो?" मैने प्यार से पूचछा....
"देख.. पिंकी को मत बताना कि मैने तुझे कुच्छ बताया है.." मुझसे ये वायदा लेकर मीनू ने तरुण से प्यार करने की ग़लती कुबूलते हुए योनि पर 'तिल' देखने की उसकी ज़िद से लेकर कल रात को पिंकी द्वारा की गयी उसकी धुनाई तक सब कुच्छ जल्दी जल्दी बता दिया..
और फिर बोली," अब आज वो मेरे फोटो सबको दिखाने की धमकी देकर मुझे अकेले में मिलने को कह रहा है.. मैं क्या करूँ..?"
अपनी बात पूरी होते ही मीनू की आँखें फिर छलक आई...
"वो तो बहुत कमीना निकला दीदी.. अच्च्छा हुआ मैं उसकी बातों में नही आई.. पर अब आप क्या करेंगी..?" मैने पूचछा...
"मेरी तो कुच्छ समझ... लगता है पिंकी आ रही है.. तू अपनी चारपाई पर चली जा!" मीनू ने कहा और रज़ाई में मुँह धक कर लेट गयी.... मैं वापस अपनी चारपाई पर आ बैठी.. मुझे बहुत अच्च्छा लग रहा था कि मीनू ने मुझसे अपने दिल की बात कही.....
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आख़िरकार वो दिन आ ही गया जिस'से बचने के लिए मैं हमेशा भगवान की मूर्ति के आगे दिए जलाती रहती थी.. उस दिन से हमारे बोर्ड एग्ज़ॅम शुरू थे.. वैसे मैं मंन ही मंन खुश भी थी.. मेरे लिए कितने दिनों से तड़प रहे मेरी क्लास के लड़कों को मेरे दीदार करने का मौका मिलने वाला था... मैने स्कूल की ड्रेस ही डाल रखी थी.. बिना ब्रा के !!!
पिंकी सुबह सुबह मेरे पास आ गयी.. एग्ज़ॅम का सेंटर 2-3 कीलोमेटेर की दूरी पर एक दूसरे गाँव में था.. हमें पैदल ही जाना था.. इसीलिए हम टाइम से काफ़ी पहले निकल लिए..... छ्होटा रास्ता होने के कारण उस रास्ते पर वेहिकल नही चलते थे.. रास्ते के दोनो तरफ उँची उँची झाड़ियाँ थी.. एक तरफ घाना जंगल सा था.. मैं अकेली होती तो शायद दिन में भी मुझे वहाँ से गुजरने में डर लगता...
पर पिंकी मेरे साथ थी.... दूसरे बच्चे भी 2-4; 2-4 के ग्रूप में थोड़ी थोड़ी दूरी पर आगे पिछे चल रहे थे... हम दोनो एग्ज़ॅम के बारे में बातें करते हुए चले जा रहे थे...
अचानक पिछे से एक मोटरसाइकल आई और एकद्ूम धीमी होकर हमारे साथ साथ चलने लगी.. हम दोनो ने एक साथ उनकी और देखा.. तरुण बाइक चला रहा था.. उसके साथ एक और भी लड़का बैठा था.. हमारे गाँव का ही...!
"कैसी हो अंजू?" तरुण ने मुस्कुरकर मेरी और देखा....
"ठीक हूँ.. एग्ज़ॅम है आज!" मैने कहा और रुकने की सोची.. पर पिंकी नही रुकी.. इसीलिए मजबूरन मैं भी उसके साथ साथ चलती रही....
"आओ.. बैठो! छ्चोड़ देता हूँ सेंटर पर..." तरुण ने इस बार मेरी तरफ आँख मारी और मुस्कुरा दिया...
मैने पिंकी की ओर देखा.. उसका चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था.. उसने और तेज चलना शुरू कर दिया... अगर पिंकी मेरे साथ ना होती तो मैं ये मौका कभी ना गँवाती," नही.. हम चले जाएँगे.." मैने कहा.. पिंकी कुच्छ आगे निकल गयी थी...
"अर्रे आओ ना... क्या चले जाएँगे? 2 मिनिट में पहुँचा देता हूँ...!" तरुण ने ज़ोर देकर कहा...
"पर्र.. पर मेरे साथ पिंकी भी है.. चार कैसे बैठेंगे?" मैने हड़बड़कर कहा... अंदर से मैं चलने को तैयार हो चुकी थी... पर पिंकी को छ्चोड़कर..... ना... अच्च्छा नही लगता ना!
"अर्रे किस फूहड़ गँवार का नाम ले रही है.. तुझे चलना है तो बोल..." तरुण ने ज़रा ऊँची आवाज़ में कहा.... मेरे आगे चल रही पिंकी के कदम शायद कुच्छ कहने को रुके.. पर वो फिर चल पड़ी....
"नही.. हम चले जाएँगे..." मैने आँखों ही आँखों में अपनी मजबूरी उसको बताने की कोशिश की...
"ठीक है... मुझे क्या?" तरुण ने कहा और बाइक की स्पीड थोड़ी तेज करके पिंकी के पास ले गया," आए.. तुझे याद है ना मैने क्या कसम खा रखी है..? नाम बदल लूँगा अगर एक महीने के अंदर तुझे... समझ गयी ना!" तरुण ने उसकी तरफ गुस्से से देखते हुए कहा,"और तेरी बेहन को भी तेरे साथ .. तब सुनाना तू प्रवचन... उसके फोटो दिखाउ क्या?"
गुस्से और घबराहट में कंपकँपति हुई पिंकी को जब और कुच्छ नही सूझा तो उसने सड़क पर पड़ा एक पत्थर उठा लिया.. तरुण की बाइक अगले ही पल रेत उड़ाती हुई हवा से बातें करने लगी....
पिंकी गुस्से से पत्थर को सड़क पर मारने के बाद खड़ी होकर रोने लगी.. मैने उसके पास जाते ही अंजान बनकर पूचछा..," क्या हुआ पिंकी? क्या बोल रहा था तरुण? तू रो क्यूँ रही है.. हट पागल.. चुप हो जा.. आज वैसे भी इंग्लीश का एग्ज़ॅम है.. दिमाग़ खराब मत कर अपना...."
उसने अपने आँसू पौन्छे और मेरे साथ साथ चलने लगी.. वो कुच्छ बोल नही रही थी.. मैने भी उसको ज़्यादा च्छेदना अच्च्छा नही समझा.....
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आआहाआ!.. सेंटर पर स्कूल का माहौल देखते ही मेरे अंग फड़कने लगे.... माहौल भी ऐसा की सब खुले घूम रहे थे.. ना किसी टीचर के डंडे का किसी को डर था.. और ना ही सीधे क्लास में जाकर बैठने की मजबूरी... एग्ज़ॅम में अभी एक घंटा बाकी था... लड़के और लड़कियाँ.. 5-5; 7-7 के अलग अलग ग्रूप बना कर ग्राउंड में खड़े बातें कर रहे थे.. जैसे ही मैं पिंकी के साथ स्कूल के ग्राउंड में घुसी.. चार पाँच लड़कों की उंगलियाँ मेरी और उठ गयी..
मुझे सुनाई नही दिया उन्होने क्या कह कर मेरी और इशारा किया.. पर मुझे हमेशा से पता था.. स्कूल के लड़कों के लिए में हमेशा ही पेज#3 की सेलेब्रिटी थी.. इतने दिनों तक मेरे जलवों से महरूम रहकर भी वो मुझे भूले नही थे.. मेरा दिल बाग बाग हो गया...
गतांक से आगे.......................
अगले दिन मैं चुप चाप उठकर घर चली आई.. मुझे पूरा विश्वास था कि तरुण अब नही आने वाला है.. फिर भी मैं टूवुशन के टाइम पर पिंकी के घर जा पहुँची.. पिंकी चारपाई पर बैठी पढ़ रही थी और मीनू अपने सिर को चुन्नी से बाँध कर चारपाई पर लेटी थी...
"क्या हुआ दीदी? तबीयत खराब है क्या?" मैने जाते ही मीनू से पूचछा...
"इनसे बात मत करो अंजू! दीदी के सिर में दर्द है!" पिंकी ने मुझे अपनी चारपाई पर बैठने की जगह देते हुए कहा.. उसका मूड भी खराब लग रहा था..
"हुम्म.. अच्च्छा!" मैने कहा और पिंकी के साथ बैठ गयी," आज पढ़ाने आएगा ना तरुण?"
पिंकी ने चौंकते हुए मेरे चेहरे को देखा.. मीनू अचानक बोल पड़ी," क्यूँ? आता ही होगा! आएगा क्यूँ नही.. तुमसे कुच्छ कहा है क्या उसने?"
"नही.. मैं तो यूँही पूच्छ रही हूँ.." मैं भी जाने कैसा सवाल कर गयी.. जैसे तैसे मैने अपनी बात को सुधारने की कोशिश करते हुए कहा," आज पढ़ाई का मंन नही था.. इसीलिए पूच्छ रही थी..."
"अब भी पढ़ाई नही की तो मारे जाएँगे अंजू! 2 दिन तो रह गये हैं.. एग्ज़ॅम शुरू होने में.. मुझे तो ऐसे लग रहा है जैसे कुच्छ भी याद नही.. हे हे.." पिंकी ने कहा और फिर कुच्छ सोच समझ कर बोली," दीदी.. अब मना ही कर देते हैं उसको.. अब तो हमें खुद ही तैयारी करनी है.. क्यूँ अंजू?"
"हुम्म.." मैने सहमति में सिर हिलाया.. मुझे पता तो था ही कि अब वो वैसे भी यहाँ आने वाला है नही...
"पिंकी!.. ज़रा चाय बना लाएगी.. मेरे सिर में ज़्यादा दर्द हो रहा है..." मीनू ने कहा...
"अभी लाई दीदी.." पिंकी ने अपनी कताबें बंद की और उपर भाग गयी...
पिंकी के जाते ही मीनू उठ कर बैठ गयी," एक बात पूछू अंजू?"
"आहा.. पूच्छो दीदी!" मैने अचकचते हुए जवाब दिया...
"वो.. देख.. मेरा कुच्छ ग़लत मतलब मत निकालना... तुमने तरुण को कभी अकेले में कुच्छ कहा है क्या?" मीनू ने हिचकते हुए पूचछा...
"म्म..मैं समझी नही दीदी!" मैने कहा..
"देख.. मैं तुझसे इस वक़्त अपनी छ्होटी बेहन मान कर बात कर रही हूँ.. पर हिचक रही हूँ.. कहीं तुम्हे बुरी ना लग जायें.." मीनू ने कहा...
"नही नही.. बोलो ना दीदी!" मैने प्यार से कहा और उसके चेहरे को देखने लगी...
मीनू ने नज़रें एक तरफ कर ली," तू कभी उस'से अकेले में.. लिपटी है क्या?"
"ये क्या कह रही हो आप..?" मुझे पता था कि वो किस दिन के बारे में बात कर रही है.. मैं मंन ही मंन कहानी बनाने लगी...
"देख.. मैने पहले ही कहा था कि बुरा मत मान जाना.. मैने सुना था.. तभी पूच्छ रही हूँ.. तुझे अगर इस बारे में बात नही करनी तो सॉरी.." मीनू अब सीधी मेरी ही आँखों में देख रही थी...
"नही दीदी.. दरअसल.. एक दिन.. तरुण ने ही मेरे साथ पढ़ते हुए ऐसा वैसा करने की कोशिश की थी.. मुझे बहलकर.. पर मैने सॉफ मना कर के उसको धमका दिया था.. आपसे किसने कहा...?' मैने बड़ी सफाई से सब कुच्छ तरुण के माथे मढ़ दिया....
मेरे मुँह से ये सुनते ही मीनू की आँखों से अवीराल आँसू बहने लगे.. अपने आँसुओं को पौंचछति हुई वह बोली," तू बहुत अच्छि है अंजू.. कभी भी उस कुत्ते की बातों में मत आना.. " कहकर मीनू रोने लगी...
"क्या हुआ दीदी? मैने चौंकने का अभिनय किया और उसके पास जाकर उसके आँसू पौंच्छने लगी," आप ऐसे क्यूँ रो रही हैं?"
मेरे नाटक को मेरी सहानुभूति जानकार मीनू मुझसे लिपट गयी," वो बहुत ही कमीना है अंजू.. उसने मुझे बर्बाद कर दिया.. ऐसे ही बातों बातों में मुझे बहलकर..." रोते रोते वा बोली...
"पर हुआ क्या दीदी? बताओ तो?" मैने प्यार से पूचछा....
"देख.. पिंकी को मत बताना कि मैने तुझे कुच्छ बताया है.." मुझसे ये वायदा लेकर मीनू ने तरुण से प्यार करने की ग़लती कुबूलते हुए योनि पर 'तिल' देखने की उसकी ज़िद से लेकर कल रात को पिंकी द्वारा की गयी उसकी धुनाई तक सब कुच्छ जल्दी जल्दी बता दिया..
और फिर बोली," अब आज वो मेरे फोटो सबको दिखाने की धमकी देकर मुझे अकेले में मिलने को कह रहा है.. मैं क्या करूँ..?"
अपनी बात पूरी होते ही मीनू की आँखें फिर छलक आई...
"वो तो बहुत कमीना निकला दीदी.. अच्च्छा हुआ मैं उसकी बातों में नही आई.. पर अब आप क्या करेंगी..?" मैने पूचछा...
"मेरी तो कुच्छ समझ... लगता है पिंकी आ रही है.. तू अपनी चारपाई पर चली जा!" मीनू ने कहा और रज़ाई में मुँह धक कर लेट गयी.... मैं वापस अपनी चारपाई पर आ बैठी.. मुझे बहुत अच्च्छा लग रहा था कि मीनू ने मुझसे अपने दिल की बात कही.....
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आख़िरकार वो दिन आ ही गया जिस'से बचने के लिए मैं हमेशा भगवान की मूर्ति के आगे दिए जलाती रहती थी.. उस दिन से हमारे बोर्ड एग्ज़ॅम शुरू थे.. वैसे मैं मंन ही मंन खुश भी थी.. मेरे लिए कितने दिनों से तड़प रहे मेरी क्लास के लड़कों को मेरे दीदार करने का मौका मिलने वाला था... मैने स्कूल की ड्रेस ही डाल रखी थी.. बिना ब्रा के !!!
पिंकी सुबह सुबह मेरे पास आ गयी.. एग्ज़ॅम का सेंटर 2-3 कीलोमेटेर की दूरी पर एक दूसरे गाँव में था.. हमें पैदल ही जाना था.. इसीलिए हम टाइम से काफ़ी पहले निकल लिए..... छ्होटा रास्ता होने के कारण उस रास्ते पर वेहिकल नही चलते थे.. रास्ते के दोनो तरफ उँची उँची झाड़ियाँ थी.. एक तरफ घाना जंगल सा था.. मैं अकेली होती तो शायद दिन में भी मुझे वहाँ से गुजरने में डर लगता...
पर पिंकी मेरे साथ थी.... दूसरे बच्चे भी 2-4; 2-4 के ग्रूप में थोड़ी थोड़ी दूरी पर आगे पिछे चल रहे थे... हम दोनो एग्ज़ॅम के बारे में बातें करते हुए चले जा रहे थे...
अचानक पिछे से एक मोटरसाइकल आई और एकद्ूम धीमी होकर हमारे साथ साथ चलने लगी.. हम दोनो ने एक साथ उनकी और देखा.. तरुण बाइक चला रहा था.. उसके साथ एक और भी लड़का बैठा था.. हमारे गाँव का ही...!
"कैसी हो अंजू?" तरुण ने मुस्कुरकर मेरी और देखा....
"ठीक हूँ.. एग्ज़ॅम है आज!" मैने कहा और रुकने की सोची.. पर पिंकी नही रुकी.. इसीलिए मजबूरन मैं भी उसके साथ साथ चलती रही....
"आओ.. बैठो! छ्चोड़ देता हूँ सेंटर पर..." तरुण ने इस बार मेरी तरफ आँख मारी और मुस्कुरा दिया...
मैने पिंकी की ओर देखा.. उसका चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था.. उसने और तेज चलना शुरू कर दिया... अगर पिंकी मेरे साथ ना होती तो मैं ये मौका कभी ना गँवाती," नही.. हम चले जाएँगे.." मैने कहा.. पिंकी कुच्छ आगे निकल गयी थी...
"अर्रे आओ ना... क्या चले जाएँगे? 2 मिनिट में पहुँचा देता हूँ...!" तरुण ने ज़ोर देकर कहा...
"पर्र.. पर मेरे साथ पिंकी भी है.. चार कैसे बैठेंगे?" मैने हड़बड़कर कहा... अंदर से मैं चलने को तैयार हो चुकी थी... पर पिंकी को छ्चोड़कर..... ना... अच्च्छा नही लगता ना!
"अर्रे किस फूहड़ गँवार का नाम ले रही है.. तुझे चलना है तो बोल..." तरुण ने ज़रा ऊँची आवाज़ में कहा.... मेरे आगे चल रही पिंकी के कदम शायद कुच्छ कहने को रुके.. पर वो फिर चल पड़ी....
"नही.. हम चले जाएँगे..." मैने आँखों ही आँखों में अपनी मजबूरी उसको बताने की कोशिश की...
"ठीक है... मुझे क्या?" तरुण ने कहा और बाइक की स्पीड थोड़ी तेज करके पिंकी के पास ले गया," आए.. तुझे याद है ना मैने क्या कसम खा रखी है..? नाम बदल लूँगा अगर एक महीने के अंदर तुझे... समझ गयी ना!" तरुण ने उसकी तरफ गुस्से से देखते हुए कहा,"और तेरी बेहन को भी तेरे साथ .. तब सुनाना तू प्रवचन... उसके फोटो दिखाउ क्या?"
गुस्से और घबराहट में कंपकँपति हुई पिंकी को जब और कुच्छ नही सूझा तो उसने सड़क पर पड़ा एक पत्थर उठा लिया.. तरुण की बाइक अगले ही पल रेत उड़ाती हुई हवा से बातें करने लगी....
पिंकी गुस्से से पत्थर को सड़क पर मारने के बाद खड़ी होकर रोने लगी.. मैने उसके पास जाते ही अंजान बनकर पूचछा..," क्या हुआ पिंकी? क्या बोल रहा था तरुण? तू रो क्यूँ रही है.. हट पागल.. चुप हो जा.. आज वैसे भी इंग्लीश का एग्ज़ॅम है.. दिमाग़ खराब मत कर अपना...."
उसने अपने आँसू पौन्छे और मेरे साथ साथ चलने लगी.. वो कुच्छ बोल नही रही थी.. मैने भी उसको ज़्यादा च्छेदना अच्च्छा नही समझा.....
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आआहाआ!.. सेंटर पर स्कूल का माहौल देखते ही मेरे अंग फड़कने लगे.... माहौल भी ऐसा की सब खुले घूम रहे थे.. ना किसी टीचर के डंडे का किसी को डर था.. और ना ही सीधे क्लास में जाकर बैठने की मजबूरी... एग्ज़ॅम में अभी एक घंटा बाकी था... लड़के और लड़कियाँ.. 5-5; 7-7 के अलग अलग ग्रूप बना कर ग्राउंड में खड़े बातें कर रहे थे.. जैसे ही मैं पिंकी के साथ स्कूल के ग्राउंड में घुसी.. चार पाँच लड़कों की उंगलियाँ मेरी और उठ गयी..
मुझे सुनाई नही दिया उन्होने क्या कह कर मेरी और इशारा किया.. पर मुझे हमेशा से पता था.. स्कूल के लड़कों के लिए में हमेशा ही पेज#3 की सेलेब्रिटी थी.. इतने दिनों तक मेरे जलवों से महरूम रहकर भी वो मुझे भूले नही थे.. मेरा दिल बाग बाग हो गया...