hotaks444
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बाली उमर की प्यास पार्ट--23
गतान्क से आगे................
" हांजी.. बुखार कैसे हो गया पिंकी? एग्ज़ॅम तुम्हारे वैसे चल रहे हैं.. ध्यान रखा कर ना सेहत का...!" हॅरी पिंकी की आँखों में देख मंद मंद मुस्कान फैंकता हुआ बोला... और दो डिब्बे उतार कर उनमें से गोलियाँ ढूँढने लगा...
"ववो.. बस ऐसे ही...!" पिंकी ने अपनी बात अधूरी छ्चोड़ी और मेरे चेहरे की और देखने लगी.. मैं क्या बोलती?
"ये लो.. अभी के लिए तो ये 3 खुराक दे रहा हूँ... कल दोपहर तक आराम ना लगे तो पेपर के बाद डॉक्टर को ज़रूर दिखा लेना...!" एक पूडिया में दवाई बाँध कर देता हुआ 'वो' बोला....
पिंकी ने चुपचाप दवाई हाथ में पकड़ी और मेरी कोख में कोहनी मार कर मुझे बोलने का इशारा किया... पर पता नही क्यूँ.. मैं उसके शालीन व्यवहार को देख कर इतनी दब गयी कि मेरी ज़ुबान ही ना निकली.... गाँव का डॉक्टर तो एक नंबर. का हरामी था... उसने मेरे साथ उस'से कुच्छ दिन पहले ही इलाज के बहाने बहुत ही कामुक हरकत की थी... मैं सोच रही थी कि ये भी कुच्छ ना कुच्छ तो ज़रूर ऐसा करेगा... आख़िर जब बुड्ढे डॉक्टर ही इलाज के बहाने हाथ सॉफ कर लेते हैं तो 'वो' तो गबरू जवान था.... पर ना.. उसने तो 2 मिनिट से पहले ही गोलियाँ पिंकी के हाथ में पकड़ाई और टेबल के इस तरफ आ गया....
"क्या बात है?" उसके खुद दरवाजे के पास जाने पर भी हम अंदर ही खड़े रहे तो उसने हमारी तरफ अचरज से देखा और वापस आ गया....," बोलो?"
"कककुच्छ नही... ववो... ययए.. तू बोल दे ना!" हकलाती हुई पिंकी अचानक रोनी सूरत बना कर मेरी तरफ देखने लगी....
"ऐसी क्या बात है यार..?" हॅरी मन ही मन हंसता सा हुआ वापस टेबल के उस पार चला गया..,"ओके... बैठो..!"
मैने पिंकी की तरफ एक बार देखा और हॅरी के सामने टेबल के दूसरी तरफ वाली चेर पर बैठ गयी.. मजबूरन पिंकी को भी बैठना पड़ा.....
"कुच्छ बोलॉगी या मुझे खुद ही अंदाज़ा लगाना पड़ेगा...!" हॅरी ने हंसते हुए कहा.. वो अचानक कुच्छ ज़्यादा ही खुश नज़र आने लगा था....
"ववो...." पिंकी बार बार कोशिश करके अपनी ज़ुबान को शब्द देने का प्रयास कर रही थी... पर मैं उसकी हालत समझ सकती थी.. जब मेरे मुँह से ही कुच्छ नही निकल रहा था तो 'वो' बेचारी कैसे बोलती...
"बोल भी दो अब.. तुम ऐसे बैठी रहोगी तो मुझे हार्ट अटॅक आ जाएगा.. सच बोल रहा हूँ.. तुम्हे नही पता मेरा दिमाग़ कहाँ कहाँ घूम रहा है...." हॅरी इस बार नर्वस होकर बोला....
"ववो..." पिंकी काफ़ी देर से टेबल के किनारों को अपने नाखूनो से खुरचे की कोशिश कर रही थी..,"आई... आई पिल....."
"पिंकीईईईईई?" हॅरी के चेहरे से मुस्कान यूँ गयी जैसे गढ़े के सिर से सींग... उसके चेहरे का रंग यूँ बदल गया जैसे 'आइ पिल' 'आइ पिल' ना होकर कोई आटम बॉम्ब हो...," कुच्छ देर जड़वत सा उसके चेहरे को घूरता हुआ हॅरी बोला," ययए क्या कह रही हो पिंकी....?"
"ना ही पिंकी कुच्छ बोली और ना ही मैं... मुझसे तो अपना सिर ही नही उठाया जा रहा था जब तक की अचानक हॅरी ने फफक कर जाने क्या कहानी बनानी शुरू कर दी...
"तुम्हे पता है पिंकी...." हॅरी का चेहरा ऐसा बना हुआ था जैसे अब रोया और अब रोया.... अपनी कही हर लाइन के बाद 'वो' गहरे दुख में डूबी हुई लाबी साँस ले रहा था... कभी कभी बीच में भी... मैं उसके चेहरे की तरफ देखने लगी थी.. पर पिंकी का सिर अब भी झुका हुआ था... हॅरी की आँखें पता नही क्यूँ नम होती जा रही थी..," एक लड़की थी... बहुत प्यारी... जब भी उसको देखता... जितनी बार भी देखा... मुझे उसका चेहरा अपना सा लगता था.... उसकी मुस्कान से भी मुझे उतना ही प्यार था.. जितना उसके गुस्से से.... उसको देख कर ऐसा लगता था जैसे..... रंग बिरंगे चेहरों से सजी इस दुनिया में 'वो' एक अलग ही चेहरा है... एक नन्ही काली जैसा नादान.... एक फूल जैसी मासूम... और.. और एक बच्चे की तरह शैतान.. पर.. उसकी नादानी में; उसकी मासूमियत में.. और.. उसकी शैतानियों में.. जाने क्या बात थी कि जितनी बार भी उसको देखता.. जितनी बार भी उसके बारे में सुनता... उसके लिए मेरा प्यार बढ़ता ही जाता.... पर कभी तरीके से बोल नही पाया.. क्यूंकी..... क्यूंकी मुझे डर लगता था..... डर लगता था कि अगर 'जवाब' में इनकार मिला तो क्या होगा!.... मेरे दोस्त.. हमेशा मुझे कहते थे.. कि मुझे अपने दिल की बात दिल में नही रखनी चाहिए... बोल देनी चाहिए... गुलबो को.. कहीं ऐसा ना हो की फिर देर हो जाए.... पर मुझे विश्वास था.. अपने प्यार पर... अपने सच्चे प्यार पर... मुझे विश्वास था.. कि 'वो' इतनी भी नादान नही हो सकती कि समय से पहले ही रास्ते से भटक जाए... समय से पहले ही....." अचानक हॅरी चुप हो गया और उसने अपनी आँखें बंद कर ली.. आँखें बंद होते ही उनमें से 2 आँसू निकल कर आए और उसके गालों पर ठहर गये.... मैं हैरानी से उसकी और देख रही थी... मेरी समझ में माजरा आ ही नही रहा था...
अचानक पिंकी अपनी चिर परिचित पैनी आवाज़ में बोली," मैने क्या किया है...?"
उसके बोलते ही हॅरी ने आँखें खोल दी.. उसकी आँखें हल्की हल्की लाल हो गयी थी.. बोला तो ऐसा लगा की खून का घूँट भरकर बोला हो," ना! तुमने कहाँ कुच्छ किया है पिंकी... आज कल तो सब जगह ऐसा होता है... तुमने कहाँ ग़लत किया... ग़लत तो मैं था.. ग़लत तो मेरे विचार थे.. तुम्हारे बारे में!"
"ये... ये क्या बोल रहे हो तुम..." पिंकी उत्तेजित होकर खड़ी हो गयी..," तो तुम मेरे बारे में बोल रहे थे... ये सब... मैने कुच्छ नही किया सुन लो.. 'वो तो मुझे.... 'वो' तो किसी ने मँगवाई थी.. देनी है तो दे दो.. वरना अपना काम करो.. !"
"क्य्ाआ? तो क्या सच में तुमने... मतलब..." हॅरी की आँखों में फिर से वही चमक लौट आई.. हां.. थोड़ा शर्मिंदा सा ज़रूर लग रहा था..... बोलते हुए हॅरी को पिंकी ने बीच में ही टोक दिया," म्म..मैं तुम्हारा 'सिर' फोड़ दूँगी हां!" गुस्से से पिंकी ने कहा और जाने उसके दिमाग़ में क्या आया.. वह हँसने लगी....
"सॉरी... एक मिनिट... " हॅरी ने बॅग में से एक बड़ा सा पत्ता निकाला और उसमें से एक छ्होटी सी गोली निकाल कर दे दी..,"ये लो..... सॉरी.. मैं बस यूँही सोच गया था...."
"चल अंजू.." पिंकी ने जैसे उसके हाथ से गोली झटक ली हो..," मेरे बारे में ऐसा सोचता है..." पिंकी बड़बड़ाई और मेरा हाथ पकड़ कर बाहर निकल आई...
"पिंकी... हमने उसको पैसे तो दिए ही नही....." मेरी खुशी का कोई ठिकाना नही था.. मेरी चिंता दूर जो हो गयी थी.....
"हां.. पैसे दूँगी उसको... अगर तेरा काम ना होता तो में 'ये' गोली उसी को खिला कर आती हां!" पिंकी गुस्से से धधकति हुई बोली...
"अरे... इसमें उसकी क्या ग़लती है... तुम ऐसी चीज़ बिना बात सॉफ किए माँगोगी तो कोई भी ये बात सोच लेगा...." मैने उसको समझाने की कोशिश की....
"वो बात नही है यार!" पिंकी का मूड उखड़ा हुआ था....
"तो.. और क्या कह दिया उसने...?" मैं असमन्झस में पड़ गयी....
"अच्च्छा.. तूने सुना नही क्या? क्या प्रेमलीला छेड़ के बैठ गया था अपनी...." पिंकी मेरी तरफ देख कर तरारे से बोली....
"ओह्हो.. फिर उसने तुझे तो कुच्छ नही कहा ना...."
"तुझे नही पता... 'वो' सारी बकवास मेरे बारे में ही कर रहा था... उसने पहले भी मुझे एक दो बार गुलबो कहा है... मैने मना कर दिया था कि मेरा नाम ना बिगाड़े.... !" पिंकी बोली....
"पर... तू उस'से लड़ाई करके आ गयी... उसने किसी को बोल दिया तो...?" मैं आशंका से बोली....
"नही बोलेगा वो!" पिंकी ने आत्मविश्वास से कहा.....
"क्यूँ? तुझे कैसे पता....?"
"इतना भी बुरा नही है... हे हे हे..." पिंकी हँसने लगी.....
"तू उसको इतना कैसे जानती है?" मैने हैरत से पूचछा.. पिंकी शर्तिया तौर पर उन्न लड़कियों में से नही थी जो हर जाने अंजाने लड़के का रेकॉर्ड लेकर घूमती हो.. हरीश के बारे में तो मुझे भी सिर्फ़ इतना ही पता था कि 'वो' अच्च्चे ख़ासे घर का लड़का था.. और करीब 3 साल से हमारे गाँव में किराए पर रह रहा था.. अपने दवाइयों के 'काम' के अलावा समाज सेवा में उसकी काफ़ी रूचि थी, इसीलिए जल्द ही उसको गाँव और बाहर के बहुत से लोग जान'ने लगे थे....
"क्या? मैं 'इतना' क्या जानती हूँ...?" पिंकी ने चलते चलते पूचछा...
"आ..आन.. मेरा मतलब तुझे कैसे इतना विश्वास है कि 'वो' किसी को कुच्छ नही बताएगा....?" मेरा सवाल फ़िज़ूल नही था...
"छ्चोड़.. घर आ गया है.. बाद में बात करेंगे... ले.. ये गोली खा ले अभी... उसकी बकवास मीनू को मत बताना...." पिंकी ने घर में घुसने से ठीक पहले अपने हाथ में संभाल कर रखी हुई गोली मुझे पकड़ा दी......
मैं जल्दी से घर जाकर खा पीकर वापस पिंकी के घर आ गयी और हम दोनो अगले दिन के पेपर की तैयारी करने लगे......
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भगवान और 'संदीप' की दया से मेरा चौथा 'पेपर' भी अच्च्छा हो गया.. हालाँकि उसने मुझसे कोई बात नही की थी.. पर मैने आधे टाइम के बाद मौका देख कर खुद ही अधिकार पूर्वक अपनी आन्सर शीट उसकी ओर सरका कर उसकी शीट लगभग छ्चीन ही ली... उसने कोई प्रतिक्रिया नही दी और उतनी ही स्पीड से मेरी शीट में लिखने लगा.. जितनी स्पीड से 'वो' अपना पेपर खींच रहा था....
पेपर के बाद खुशी खुशी हम दोनो जैसे ही एग्ज़ॅमिनेशन रूम से बाहर निकले.. इनस्पेक्टर मानव को सादी वर्दी में ऑफीस के बाहर खड़ा पाकर मैं चौंक गयी..,"आए.. इनस्पेक्टर!" मैने पिंकी के कानो में फुसफुसाया....
"कहाँ?" उसने जैसे ही अपनी नज़रें उठाकर चारों और घुमाई.. उसको मानव दिखाई दे गया...
"क्या करें...? हम इसके पास चलें या नही..?" पिंकी ने असमन्झस में खड़ी होकर मेरी राइ लेने की सोची...
"वो बात नही बतानी क्या? ढोलू वाली...!" मैने कहा ही था की तभी मानव की नज़र हम पर पड़ी.. उसने इशारे से हुमको वहीं रुकने को कह दिया...
कुच्छ देर बाद ही स्कूल खाली हो गया... मेरे मंन में पहले पेपर के बाद ऑफीस में हुई मस्ती की यादें ताज़ा हो गयी... उस दिन भी मैं और पिंकी पेपर के बाद ठीक वहीं खड़े थे.. जहाँ आज!
"इधर आना एक बार..." मानव ने हमें बुलाया और फिर ऑफीस के अंदर झाँक कर बोला,"आओ.. बाहर आ जाओ!"
हमारे ऑफीस के दरवाजे तक पहुँचते पहुँचते मेडम के साथ 'वो' सर भी खिसियाए हुए से बाहर निकल आए... हम दोनो ने आस्चर्य से एक दूसरी की आँखों में देखा... '2 दिन से तो ये आ ही नही रहे थे... फिर आज कैसे?'
मेरे हाथ अपने आप ही सर और मेडम को नमस्ते कहने के लिए उठ गये.. पर पिंकी ने सिर्फ़ मानव को नमस्ते की.. 'सर' कह कर....
"हूंम्म... माथुर साहब... अब बोलो!" मानव ने 'सर' को घूर कर देखा....
"अर्रे यार.. जो बात थी.. मैं बता चुका हूँ.. आप क्यूँ खम्खा इस मामले को खींच रहे हो... मैं कोई गैर थोड़े ही हूँ.. आपके शहर का ही रहने वाला हूँ... शाम को बात करते हैं ना साथ बैठ कर.... 'कोठी' पर आ जाना..." सर ने टालते हुए कहा....
"क्यूँ? कोठी पर क्या है? यहाँ क्यूँ नही....!" मानव ने कुटिल मुस्कान उसकी और उच्छली... हम दोनो चुपचाप उनकी बातें सुनते रहे....
"अर्रे इनस्पेक्टर भाई साहब.. कामन सेन्स है.. यहाँ मैं आपकी 'वो' सेवा थोड़े ही कर सकता हूँ जो मेरे अपने घर पर हो जाएगी.. छ्चोड़ो भी अब.. जाने दो लड़कियों को...!" सर ने मानव के कंधे पर थपकी लगाकर कहा...
"तुम्हारे फ़ायडे के लिए ही बोल रहा हूँ.... तुम मुझे यहीं सब कुच्छ बता दो तो अच्च्छा रहेगा.... 'वरना' शाम को थाने में तुम्हे 'वो' इज़्ज़त नही मिलेगी जो यहाँ दे रहा हूँ.. समझ रहे हो ना बात को....!" मानव ने गुर्राते हुए कहा...
"देखो इनस्पेक्टर.. मुझे इस बारे में कुच्छ नही पता.. मुझे जो बोलना था मैं बोल चुका हूँ...." सर भी मानव की टोन देख कर खिज से गये....
मानव ने तुरंत मेरी और देखा..,"हां अंजलि.. क्या बताया था मेडम ने तुम्हे.. अगले दिन...?"
मैने सकपका कर मेडम की ओर देखा और अपना सिर झुका लिया...," ज्जई.. सर.. मेडम ने बताया था कि हमारे जाने के बाद तरुण और 'सोनू' दोनो यहाँ आए थे.... उन्होने सर से अकेले में कुच्छ बात की थी... मेडम कह रही थी कि सर में और उन्न दोनो में 'उस' दिन वाली बात को लेकर कुच्छ समझौता हुआ था...!"
"और उसी दिन तरुण को मार दिया गया.. सोनू गायब हो गया.. है ना...?" मानव ने कन्फर्म किया....
मैने सिर झुकाए हुए ही 'हां' में हिला दिया... तभी मुझे 'सर' की आवाज़ सुनाई देने लगी..,"क्या यार.. तुम 'इस' रंडी की बात पर भरोसा करोगे.. साली कुतिया.. तीन बार तो 'डी.ई.ओ. बन'ने के चक्कर में मेरी कोठी पर 'रात' बिता चुकी है.. एम.पी. साहब के साथ... और ये दोनो... इनको भी कम मत समझना.." मैने नज़रें उठा कर 'सर' को देखा.. वो हमारी ओर देख कर बातों को चबा चबा कर बोल रहा था...," ये दोनो भी पूरे मज़े से........."
सर की बात पूरी नही हो पाई.. मानव का एक झन्नाटेदार थप्पड़ 'सर' के गाल पर पड़ा और उसका सर दीवार से जा टकराया...
सर लड़खदाया और फिर सीधा खड़ा होकर अपने गाल को सहलाने लगा.. उसके साँवली सूरत पर भी 'तीन' उंगलियों के निशान सॉफ दिखाई दे रहे थे.. जैसे वहाँ खून इकट्ठा हो गया हो..," तुम मुझे जानते हो इनस्पेक्टर.. फिर भी..." सर की बाईं आँख 'लाल' हो गयी थी..
"अभी कहाँ... अभी तो मुझे बहुत कुच्छ जान'ना है... शाम को चलकर 'थाने' आ जाना.. वरना... 'ये' सिर्फ़ ट्रैलोर था...." मानव गुर्रा रहा था....
"देखो इनस्पेक्टर साहब!.. मैं बता रहा हूँ... 'वो' इनको छ्चोड़ कर वापस आए थे... उन्होने मुझसे 'ये' कहा था कि '2' और लड़कियों का ऐसे ही पेपर करवाना है... और 'एक' दिन 'इसको.." उसने पिंकी की ओर इशारा करते हुए कहा," इसको पेपर टाइम के बाद रोक कर रखना है.... कैसे भी करके... उसने कहा था कि 'वो' दो लड़कों को और साथ लेकर आएँगे.. और इसका बलात्कार...." कहकर सर अपने गाल को सहलाने लगे...
मानव ने एक गहरी साँस ली..," और.....?"
"और.. उन्होने मुझसे 1 लाख रुपए माँगे थे.. मोबाइल क्लिप दिखा कर 'वो' मुझे ब्लॅकमेल करना चाह रहे थे...." सर ने उगल दिया....
"ओह्ह.. इसीलिए तुमने तरुण को मरवा दिया... और शायद सोनू को भी...!" मानव तमतमाया हुआ था....
"नही इनस्पेक्टर... मुझे इस बात के बारे में कुच्छ नही पता... मैं तो उनको 1 लाख रुपए दे ही देता... मेरे लिए एक लाख रुपैया कोई बड़ी बात नही है..."
"शाम को थाने आ जाना..." मानव ने कहा और हमारी ओर घूम गया..," तुम जाओ अब..."
मैं कुच्छ बोलने ही वाली थी की पिंकी ने मेरा हाथ पकड़ कर खींच लिया... स्कूल के मैं गेट पर जाते ही मैं बोली," वो ढोलू वाली बात भी तो बतानी है...!"
"नही छ्चोड़... मीनू फोन पर ही बता देगी.. मुझे तो इस'से डर लग रहा है... कितना खींच के दिया उसको..." पिंकी हँसने लगी....
"तो.. हमें थोड़े ही कुच्छ कहेंगे...!" मैं बोली...
"क्या पता... उस दिन 'स्कूल' वाली बात पूच्छने लगे तो...?" पिंकी ने मुझे 'बेचारी' सी नज़रों से देखा... तभी मानव ने हमारे पास आकर अपनी बाइक रोक दी..," यहाँ क्यूँ खड़ी हो...?"
हम दोनो सकपका गये.. तभी मेरे मुँह से अचानक निकल गया..," हमे... हमे अकेले जाते हुए डर लग रहा है....!"
मानव हँसने लगा..," आओ.. बैठो.. मैं छ्चोड़ देता हूँ..."
मैने पिंकी की और घबराकर देखा.. उसका पता नही था बाद में क्या का क्या बोलने लग जाए.. पिंकी ने हताशा में मुझे बैठने का इशारा किया... हम दोनो मानव के पिछे बैठे और गाँव की तरफ चल पड़े......
जैसे ही मानव ने गाँव के स्टॅंड पर बाइक रोकी.. पिंकी फटाक से उतर गयी.. सच कहूँ तो मेरा उतरने का मन नही कर रहा था.. उसकी फौलादी पीठ से सटी मेरी एक चूची मुझे 'कल' वाला रंग बिरंगा अहसास करा रही थी.... सारी रात दुखती रही मेरी योनि अब एक बार फिर मचलने लगी थी.. उसका दर्द कम होते ही विरह वेदना से वो एक बार फिर तड़प उठी थी... एक बार में ही उसको 'मूसल' की लत लग गयी थी शायद... अब गुज़ारा होना मुश्किल था...
मुझे दुखी मन से उतरते देख कर मानव ने पूच्छ लिया..," घर यहाँ से ज़्यादा दूर है क्या?"
"नही.. हम चले जाएँगे...!" पिंकी तपाक से बोली... तो मैं कुच्छ बोल ना सकी... और उसके साथ चल पड़ी...
"एक मिनिट...!" मानव की आवाज़ आते ही हम घूम गये..
"एयेए... वो घर पर कौन कौन हैं...?" मानव ने अपने माथे को खुजाते हुए अपनी आँखों की हिचकिचाहट को छिपा लिया...
"पता नही.. सभी होंगे!" पिंकी धीरे से बोली....
"मैं घर ही छ्चोड़ आता हूँ.. आओ बैठो.." मानव के कहते ही मैं बाइक की ओर वापस चल पड़ी....
"नही.. सर.. हम चले जाएँगे...!" पिंकी ने दोहराया....
"एक कप चाय में तुम्हारा दूध ख़तम हो जाएगा क्या?" मानव खिसिया कर हँसने लगा....
पता नही मानव ने क्या सोच कर कहा और पिंकी ने क्या समझा.. पर मुझे तो जवान होने के बाद से ही 'दूध' का एक ही मतलब पता था.. मेरी चूचियो में झंझनाहट सी मच गयी...
पिंकी थोड़ी देर असमन्झस में वहीं खड़ी रही और फिर अपनी नज़रें नीची किए बाइक की और चल पड़ी... मज़ा आ गया!
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गतान्क से आगे................
" हांजी.. बुखार कैसे हो गया पिंकी? एग्ज़ॅम तुम्हारे वैसे चल रहे हैं.. ध्यान रखा कर ना सेहत का...!" हॅरी पिंकी की आँखों में देख मंद मंद मुस्कान फैंकता हुआ बोला... और दो डिब्बे उतार कर उनमें से गोलियाँ ढूँढने लगा...
"ववो.. बस ऐसे ही...!" पिंकी ने अपनी बात अधूरी छ्चोड़ी और मेरे चेहरे की और देखने लगी.. मैं क्या बोलती?
"ये लो.. अभी के लिए तो ये 3 खुराक दे रहा हूँ... कल दोपहर तक आराम ना लगे तो पेपर के बाद डॉक्टर को ज़रूर दिखा लेना...!" एक पूडिया में दवाई बाँध कर देता हुआ 'वो' बोला....
पिंकी ने चुपचाप दवाई हाथ में पकड़ी और मेरी कोख में कोहनी मार कर मुझे बोलने का इशारा किया... पर पता नही क्यूँ.. मैं उसके शालीन व्यवहार को देख कर इतनी दब गयी कि मेरी ज़ुबान ही ना निकली.... गाँव का डॉक्टर तो एक नंबर. का हरामी था... उसने मेरे साथ उस'से कुच्छ दिन पहले ही इलाज के बहाने बहुत ही कामुक हरकत की थी... मैं सोच रही थी कि ये भी कुच्छ ना कुच्छ तो ज़रूर ऐसा करेगा... आख़िर जब बुड्ढे डॉक्टर ही इलाज के बहाने हाथ सॉफ कर लेते हैं तो 'वो' तो गबरू जवान था.... पर ना.. उसने तो 2 मिनिट से पहले ही गोलियाँ पिंकी के हाथ में पकड़ाई और टेबल के इस तरफ आ गया....
"क्या बात है?" उसके खुद दरवाजे के पास जाने पर भी हम अंदर ही खड़े रहे तो उसने हमारी तरफ अचरज से देखा और वापस आ गया....," बोलो?"
"कककुच्छ नही... ववो... ययए.. तू बोल दे ना!" हकलाती हुई पिंकी अचानक रोनी सूरत बना कर मेरी तरफ देखने लगी....
"ऐसी क्या बात है यार..?" हॅरी मन ही मन हंसता सा हुआ वापस टेबल के उस पार चला गया..,"ओके... बैठो..!"
मैने पिंकी की तरफ एक बार देखा और हॅरी के सामने टेबल के दूसरी तरफ वाली चेर पर बैठ गयी.. मजबूरन पिंकी को भी बैठना पड़ा.....
"कुच्छ बोलॉगी या मुझे खुद ही अंदाज़ा लगाना पड़ेगा...!" हॅरी ने हंसते हुए कहा.. वो अचानक कुच्छ ज़्यादा ही खुश नज़र आने लगा था....
"ववो...." पिंकी बार बार कोशिश करके अपनी ज़ुबान को शब्द देने का प्रयास कर रही थी... पर मैं उसकी हालत समझ सकती थी.. जब मेरे मुँह से ही कुच्छ नही निकल रहा था तो 'वो' बेचारी कैसे बोलती...
"बोल भी दो अब.. तुम ऐसे बैठी रहोगी तो मुझे हार्ट अटॅक आ जाएगा.. सच बोल रहा हूँ.. तुम्हे नही पता मेरा दिमाग़ कहाँ कहाँ घूम रहा है...." हॅरी इस बार नर्वस होकर बोला....
"ववो..." पिंकी काफ़ी देर से टेबल के किनारों को अपने नाखूनो से खुरचे की कोशिश कर रही थी..,"आई... आई पिल....."
"पिंकीईईईईई?" हॅरी के चेहरे से मुस्कान यूँ गयी जैसे गढ़े के सिर से सींग... उसके चेहरे का रंग यूँ बदल गया जैसे 'आइ पिल' 'आइ पिल' ना होकर कोई आटम बॉम्ब हो...," कुच्छ देर जड़वत सा उसके चेहरे को घूरता हुआ हॅरी बोला," ययए क्या कह रही हो पिंकी....?"
"ना ही पिंकी कुच्छ बोली और ना ही मैं... मुझसे तो अपना सिर ही नही उठाया जा रहा था जब तक की अचानक हॅरी ने फफक कर जाने क्या कहानी बनानी शुरू कर दी...
"तुम्हे पता है पिंकी...." हॅरी का चेहरा ऐसा बना हुआ था जैसे अब रोया और अब रोया.... अपनी कही हर लाइन के बाद 'वो' गहरे दुख में डूबी हुई लाबी साँस ले रहा था... कभी कभी बीच में भी... मैं उसके चेहरे की तरफ देखने लगी थी.. पर पिंकी का सिर अब भी झुका हुआ था... हॅरी की आँखें पता नही क्यूँ नम होती जा रही थी..," एक लड़की थी... बहुत प्यारी... जब भी उसको देखता... जितनी बार भी देखा... मुझे उसका चेहरा अपना सा लगता था.... उसकी मुस्कान से भी मुझे उतना ही प्यार था.. जितना उसके गुस्से से.... उसको देख कर ऐसा लगता था जैसे..... रंग बिरंगे चेहरों से सजी इस दुनिया में 'वो' एक अलग ही चेहरा है... एक नन्ही काली जैसा नादान.... एक फूल जैसी मासूम... और.. और एक बच्चे की तरह शैतान.. पर.. उसकी नादानी में; उसकी मासूमियत में.. और.. उसकी शैतानियों में.. जाने क्या बात थी कि जितनी बार भी उसको देखता.. जितनी बार भी उसके बारे में सुनता... उसके लिए मेरा प्यार बढ़ता ही जाता.... पर कभी तरीके से बोल नही पाया.. क्यूंकी..... क्यूंकी मुझे डर लगता था..... डर लगता था कि अगर 'जवाब' में इनकार मिला तो क्या होगा!.... मेरे दोस्त.. हमेशा मुझे कहते थे.. कि मुझे अपने दिल की बात दिल में नही रखनी चाहिए... बोल देनी चाहिए... गुलबो को.. कहीं ऐसा ना हो की फिर देर हो जाए.... पर मुझे विश्वास था.. अपने प्यार पर... अपने सच्चे प्यार पर... मुझे विश्वास था.. कि 'वो' इतनी भी नादान नही हो सकती कि समय से पहले ही रास्ते से भटक जाए... समय से पहले ही....." अचानक हॅरी चुप हो गया और उसने अपनी आँखें बंद कर ली.. आँखें बंद होते ही उनमें से 2 आँसू निकल कर आए और उसके गालों पर ठहर गये.... मैं हैरानी से उसकी और देख रही थी... मेरी समझ में माजरा आ ही नही रहा था...
अचानक पिंकी अपनी चिर परिचित पैनी आवाज़ में बोली," मैने क्या किया है...?"
उसके बोलते ही हॅरी ने आँखें खोल दी.. उसकी आँखें हल्की हल्की लाल हो गयी थी.. बोला तो ऐसा लगा की खून का घूँट भरकर बोला हो," ना! तुमने कहाँ कुच्छ किया है पिंकी... आज कल तो सब जगह ऐसा होता है... तुमने कहाँ ग़लत किया... ग़लत तो मैं था.. ग़लत तो मेरे विचार थे.. तुम्हारे बारे में!"
"ये... ये क्या बोल रहे हो तुम..." पिंकी उत्तेजित होकर खड़ी हो गयी..," तो तुम मेरे बारे में बोल रहे थे... ये सब... मैने कुच्छ नही किया सुन लो.. 'वो तो मुझे.... 'वो' तो किसी ने मँगवाई थी.. देनी है तो दे दो.. वरना अपना काम करो.. !"
"क्य्ाआ? तो क्या सच में तुमने... मतलब..." हॅरी की आँखों में फिर से वही चमक लौट आई.. हां.. थोड़ा शर्मिंदा सा ज़रूर लग रहा था..... बोलते हुए हॅरी को पिंकी ने बीच में ही टोक दिया," म्म..मैं तुम्हारा 'सिर' फोड़ दूँगी हां!" गुस्से से पिंकी ने कहा और जाने उसके दिमाग़ में क्या आया.. वह हँसने लगी....
"सॉरी... एक मिनिट... " हॅरी ने बॅग में से एक बड़ा सा पत्ता निकाला और उसमें से एक छ्होटी सी गोली निकाल कर दे दी..,"ये लो..... सॉरी.. मैं बस यूँही सोच गया था...."
"चल अंजू.." पिंकी ने जैसे उसके हाथ से गोली झटक ली हो..," मेरे बारे में ऐसा सोचता है..." पिंकी बड़बड़ाई और मेरा हाथ पकड़ कर बाहर निकल आई...
"पिंकी... हमने उसको पैसे तो दिए ही नही....." मेरी खुशी का कोई ठिकाना नही था.. मेरी चिंता दूर जो हो गयी थी.....
"हां.. पैसे दूँगी उसको... अगर तेरा काम ना होता तो में 'ये' गोली उसी को खिला कर आती हां!" पिंकी गुस्से से धधकति हुई बोली...
"अरे... इसमें उसकी क्या ग़लती है... तुम ऐसी चीज़ बिना बात सॉफ किए माँगोगी तो कोई भी ये बात सोच लेगा...." मैने उसको समझाने की कोशिश की....
"वो बात नही है यार!" पिंकी का मूड उखड़ा हुआ था....
"तो.. और क्या कह दिया उसने...?" मैं असमन्झस में पड़ गयी....
"अच्च्छा.. तूने सुना नही क्या? क्या प्रेमलीला छेड़ के बैठ गया था अपनी...." पिंकी मेरी तरफ देख कर तरारे से बोली....
"ओह्हो.. फिर उसने तुझे तो कुच्छ नही कहा ना...."
"तुझे नही पता... 'वो' सारी बकवास मेरे बारे में ही कर रहा था... उसने पहले भी मुझे एक दो बार गुलबो कहा है... मैने मना कर दिया था कि मेरा नाम ना बिगाड़े.... !" पिंकी बोली....
"पर... तू उस'से लड़ाई करके आ गयी... उसने किसी को बोल दिया तो...?" मैं आशंका से बोली....
"नही बोलेगा वो!" पिंकी ने आत्मविश्वास से कहा.....
"क्यूँ? तुझे कैसे पता....?"
"इतना भी बुरा नही है... हे हे हे..." पिंकी हँसने लगी.....
"तू उसको इतना कैसे जानती है?" मैने हैरत से पूचछा.. पिंकी शर्तिया तौर पर उन्न लड़कियों में से नही थी जो हर जाने अंजाने लड़के का रेकॉर्ड लेकर घूमती हो.. हरीश के बारे में तो मुझे भी सिर्फ़ इतना ही पता था कि 'वो' अच्च्चे ख़ासे घर का लड़का था.. और करीब 3 साल से हमारे गाँव में किराए पर रह रहा था.. अपने दवाइयों के 'काम' के अलावा समाज सेवा में उसकी काफ़ी रूचि थी, इसीलिए जल्द ही उसको गाँव और बाहर के बहुत से लोग जान'ने लगे थे....
"क्या? मैं 'इतना' क्या जानती हूँ...?" पिंकी ने चलते चलते पूचछा...
"आ..आन.. मेरा मतलब तुझे कैसे इतना विश्वास है कि 'वो' किसी को कुच्छ नही बताएगा....?" मेरा सवाल फ़िज़ूल नही था...
"छ्चोड़.. घर आ गया है.. बाद में बात करेंगे... ले.. ये गोली खा ले अभी... उसकी बकवास मीनू को मत बताना...." पिंकी ने घर में घुसने से ठीक पहले अपने हाथ में संभाल कर रखी हुई गोली मुझे पकड़ा दी......
मैं जल्दी से घर जाकर खा पीकर वापस पिंकी के घर आ गयी और हम दोनो अगले दिन के पेपर की तैयारी करने लगे......
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भगवान और 'संदीप' की दया से मेरा चौथा 'पेपर' भी अच्च्छा हो गया.. हालाँकि उसने मुझसे कोई बात नही की थी.. पर मैने आधे टाइम के बाद मौका देख कर खुद ही अधिकार पूर्वक अपनी आन्सर शीट उसकी ओर सरका कर उसकी शीट लगभग छ्चीन ही ली... उसने कोई प्रतिक्रिया नही दी और उतनी ही स्पीड से मेरी शीट में लिखने लगा.. जितनी स्पीड से 'वो' अपना पेपर खींच रहा था....
पेपर के बाद खुशी खुशी हम दोनो जैसे ही एग्ज़ॅमिनेशन रूम से बाहर निकले.. इनस्पेक्टर मानव को सादी वर्दी में ऑफीस के बाहर खड़ा पाकर मैं चौंक गयी..,"आए.. इनस्पेक्टर!" मैने पिंकी के कानो में फुसफुसाया....
"कहाँ?" उसने जैसे ही अपनी नज़रें उठाकर चारों और घुमाई.. उसको मानव दिखाई दे गया...
"क्या करें...? हम इसके पास चलें या नही..?" पिंकी ने असमन्झस में खड़ी होकर मेरी राइ लेने की सोची...
"वो बात नही बतानी क्या? ढोलू वाली...!" मैने कहा ही था की तभी मानव की नज़र हम पर पड़ी.. उसने इशारे से हुमको वहीं रुकने को कह दिया...
कुच्छ देर बाद ही स्कूल खाली हो गया... मेरे मंन में पहले पेपर के बाद ऑफीस में हुई मस्ती की यादें ताज़ा हो गयी... उस दिन भी मैं और पिंकी पेपर के बाद ठीक वहीं खड़े थे.. जहाँ आज!
"इधर आना एक बार..." मानव ने हमें बुलाया और फिर ऑफीस के अंदर झाँक कर बोला,"आओ.. बाहर आ जाओ!"
हमारे ऑफीस के दरवाजे तक पहुँचते पहुँचते मेडम के साथ 'वो' सर भी खिसियाए हुए से बाहर निकल आए... हम दोनो ने आस्चर्य से एक दूसरी की आँखों में देखा... '2 दिन से तो ये आ ही नही रहे थे... फिर आज कैसे?'
मेरे हाथ अपने आप ही सर और मेडम को नमस्ते कहने के लिए उठ गये.. पर पिंकी ने सिर्फ़ मानव को नमस्ते की.. 'सर' कह कर....
"हूंम्म... माथुर साहब... अब बोलो!" मानव ने 'सर' को घूर कर देखा....
"अर्रे यार.. जो बात थी.. मैं बता चुका हूँ.. आप क्यूँ खम्खा इस मामले को खींच रहे हो... मैं कोई गैर थोड़े ही हूँ.. आपके शहर का ही रहने वाला हूँ... शाम को बात करते हैं ना साथ बैठ कर.... 'कोठी' पर आ जाना..." सर ने टालते हुए कहा....
"क्यूँ? कोठी पर क्या है? यहाँ क्यूँ नही....!" मानव ने कुटिल मुस्कान उसकी और उच्छली... हम दोनो चुपचाप उनकी बातें सुनते रहे....
"अर्रे इनस्पेक्टर भाई साहब.. कामन सेन्स है.. यहाँ मैं आपकी 'वो' सेवा थोड़े ही कर सकता हूँ जो मेरे अपने घर पर हो जाएगी.. छ्चोड़ो भी अब.. जाने दो लड़कियों को...!" सर ने मानव के कंधे पर थपकी लगाकर कहा...
"तुम्हारे फ़ायडे के लिए ही बोल रहा हूँ.... तुम मुझे यहीं सब कुच्छ बता दो तो अच्च्छा रहेगा.... 'वरना' शाम को थाने में तुम्हे 'वो' इज़्ज़त नही मिलेगी जो यहाँ दे रहा हूँ.. समझ रहे हो ना बात को....!" मानव ने गुर्राते हुए कहा...
"देखो इनस्पेक्टर.. मुझे इस बारे में कुच्छ नही पता.. मुझे जो बोलना था मैं बोल चुका हूँ...." सर भी मानव की टोन देख कर खिज से गये....
मानव ने तुरंत मेरी और देखा..,"हां अंजलि.. क्या बताया था मेडम ने तुम्हे.. अगले दिन...?"
मैने सकपका कर मेडम की ओर देखा और अपना सिर झुका लिया...," ज्जई.. सर.. मेडम ने बताया था कि हमारे जाने के बाद तरुण और 'सोनू' दोनो यहाँ आए थे.... उन्होने सर से अकेले में कुच्छ बात की थी... मेडम कह रही थी कि सर में और उन्न दोनो में 'उस' दिन वाली बात को लेकर कुच्छ समझौता हुआ था...!"
"और उसी दिन तरुण को मार दिया गया.. सोनू गायब हो गया.. है ना...?" मानव ने कन्फर्म किया....
मैने सिर झुकाए हुए ही 'हां' में हिला दिया... तभी मुझे 'सर' की आवाज़ सुनाई देने लगी..,"क्या यार.. तुम 'इस' रंडी की बात पर भरोसा करोगे.. साली कुतिया.. तीन बार तो 'डी.ई.ओ. बन'ने के चक्कर में मेरी कोठी पर 'रात' बिता चुकी है.. एम.पी. साहब के साथ... और ये दोनो... इनको भी कम मत समझना.." मैने नज़रें उठा कर 'सर' को देखा.. वो हमारी ओर देख कर बातों को चबा चबा कर बोल रहा था...," ये दोनो भी पूरे मज़े से........."
सर की बात पूरी नही हो पाई.. मानव का एक झन्नाटेदार थप्पड़ 'सर' के गाल पर पड़ा और उसका सर दीवार से जा टकराया...
सर लड़खदाया और फिर सीधा खड़ा होकर अपने गाल को सहलाने लगा.. उसके साँवली सूरत पर भी 'तीन' उंगलियों के निशान सॉफ दिखाई दे रहे थे.. जैसे वहाँ खून इकट्ठा हो गया हो..," तुम मुझे जानते हो इनस्पेक्टर.. फिर भी..." सर की बाईं आँख 'लाल' हो गयी थी..
"अभी कहाँ... अभी तो मुझे बहुत कुच्छ जान'ना है... शाम को चलकर 'थाने' आ जाना.. वरना... 'ये' सिर्फ़ ट्रैलोर था...." मानव गुर्रा रहा था....
"देखो इनस्पेक्टर साहब!.. मैं बता रहा हूँ... 'वो' इनको छ्चोड़ कर वापस आए थे... उन्होने मुझसे 'ये' कहा था कि '2' और लड़कियों का ऐसे ही पेपर करवाना है... और 'एक' दिन 'इसको.." उसने पिंकी की ओर इशारा करते हुए कहा," इसको पेपर टाइम के बाद रोक कर रखना है.... कैसे भी करके... उसने कहा था कि 'वो' दो लड़कों को और साथ लेकर आएँगे.. और इसका बलात्कार...." कहकर सर अपने गाल को सहलाने लगे...
मानव ने एक गहरी साँस ली..," और.....?"
"और.. उन्होने मुझसे 1 लाख रुपए माँगे थे.. मोबाइल क्लिप दिखा कर 'वो' मुझे ब्लॅकमेल करना चाह रहे थे...." सर ने उगल दिया....
"ओह्ह.. इसीलिए तुमने तरुण को मरवा दिया... और शायद सोनू को भी...!" मानव तमतमाया हुआ था....
"नही इनस्पेक्टर... मुझे इस बात के बारे में कुच्छ नही पता... मैं तो उनको 1 लाख रुपए दे ही देता... मेरे लिए एक लाख रुपैया कोई बड़ी बात नही है..."
"शाम को थाने आ जाना..." मानव ने कहा और हमारी ओर घूम गया..," तुम जाओ अब..."
मैं कुच्छ बोलने ही वाली थी की पिंकी ने मेरा हाथ पकड़ कर खींच लिया... स्कूल के मैं गेट पर जाते ही मैं बोली," वो ढोलू वाली बात भी तो बतानी है...!"
"नही छ्चोड़... मीनू फोन पर ही बता देगी.. मुझे तो इस'से डर लग रहा है... कितना खींच के दिया उसको..." पिंकी हँसने लगी....
"तो.. हमें थोड़े ही कुच्छ कहेंगे...!" मैं बोली...
"क्या पता... उस दिन 'स्कूल' वाली बात पूच्छने लगे तो...?" पिंकी ने मुझे 'बेचारी' सी नज़रों से देखा... तभी मानव ने हमारे पास आकर अपनी बाइक रोक दी..," यहाँ क्यूँ खड़ी हो...?"
हम दोनो सकपका गये.. तभी मेरे मुँह से अचानक निकल गया..," हमे... हमे अकेले जाते हुए डर लग रहा है....!"
मानव हँसने लगा..," आओ.. बैठो.. मैं छ्चोड़ देता हूँ..."
मैने पिंकी की और घबराकर देखा.. उसका पता नही था बाद में क्या का क्या बोलने लग जाए.. पिंकी ने हताशा में मुझे बैठने का इशारा किया... हम दोनो मानव के पिछे बैठे और गाँव की तरफ चल पड़े......
जैसे ही मानव ने गाँव के स्टॅंड पर बाइक रोकी.. पिंकी फटाक से उतर गयी.. सच कहूँ तो मेरा उतरने का मन नही कर रहा था.. उसकी फौलादी पीठ से सटी मेरी एक चूची मुझे 'कल' वाला रंग बिरंगा अहसास करा रही थी.... सारी रात दुखती रही मेरी योनि अब एक बार फिर मचलने लगी थी.. उसका दर्द कम होते ही विरह वेदना से वो एक बार फिर तड़प उठी थी... एक बार में ही उसको 'मूसल' की लत लग गयी थी शायद... अब गुज़ारा होना मुश्किल था...
मुझे दुखी मन से उतरते देख कर मानव ने पूच्छ लिया..," घर यहाँ से ज़्यादा दूर है क्या?"
"नही.. हम चले जाएँगे...!" पिंकी तपाक से बोली... तो मैं कुच्छ बोल ना सकी... और उसके साथ चल पड़ी...
"एक मिनिट...!" मानव की आवाज़ आते ही हम घूम गये..
"एयेए... वो घर पर कौन कौन हैं...?" मानव ने अपने माथे को खुजाते हुए अपनी आँखों की हिचकिचाहट को छिपा लिया...
"पता नही.. सभी होंगे!" पिंकी धीरे से बोली....
"मैं घर ही छ्चोड़ आता हूँ.. आओ बैठो.." मानव के कहते ही मैं बाइक की ओर वापस चल पड़ी....
"नही.. सर.. हम चले जाएँगे...!" पिंकी ने दोहराया....
"एक कप चाय में तुम्हारा दूध ख़तम हो जाएगा क्या?" मानव खिसिया कर हँसने लगा....
पता नही मानव ने क्या सोच कर कहा और पिंकी ने क्या समझा.. पर मुझे तो जवान होने के बाद से ही 'दूध' का एक ही मतलब पता था.. मेरी चूचियो में झंझनाहट सी मच गयी...
पिंकी थोड़ी देर असमन्झस में वहीं खड़ी रही और फिर अपनी नज़रें नीची किए बाइक की और चल पड़ी... मज़ा आ गया!
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