hotaks444
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बाली उमर की प्यास पार्ट--36
गतान्क से आगे..................
"आ गयीं दीदी?" पिंकी की नटखट आवाज़ कानो में पड़ते ही मीनू ऐसे उच्छल पड़ी जैसे उसको किसी बिच्छू ने काट लिया हो... मीनू ने रात करीब 12:30 बजे उपर कमरे में पैर रखा था....
"आ..हां.. ना..न्ना.. पेट खराब है म्म्मेरा... बाथरूम गयी थी... तू उठ क्यूँ गयी.. अभी तो सारी रात बाकी है...!" मीनू का साया बाहर चाँद की रोशनी में साफ साफ कांपता हुआ सा देखा जा सकता था....
"अभी तो मैं सोई ही नही हूँ दीदी... आपकी राह देख रही थी.. आप उपर कब आईं....?" पिंकी को मैने लाख समझाया था की उसको आते ही कुच्छ मत बोलना.. पर पता नही वह किस मिट्टी की बनी हुई थी....
"म्म्मैन.. त्तु.. सोई क्यूँ नही..." मीनू को उगलते बना ना निगलते... वह पिंकी के पास जाकर लेट गयी...,"तू मम्मी को नही बोलेगा ना पिंकू?" मक्खांबाज़ी शुरू...
"हे हे हे हे हे...!" हँसी पिंकी के दिल की गहराइयों से निकली थी...
"हंस क्यूँ रही है..? बता ना? मम्मी को बोलेगी क्या?" पिंकी की हँसी मीनू को सामने खड़े किसी भयंकर देत्य की हुंकार से कम नही लगी होगी.. उसका आवाज़ बैठ सी गयी..
"पहले बताओ.. लंबू से प्यार करती हो ना...?" पिंकी फोकट में ही नखरे दिखाने लगी..
"प्लीज़.. तेज़ मत बोल.. अंजू जाग जाएगी... आजा.. मेरी प्यारी पिंकू..!" ये तो होना ही था...
"पर वो तो जाग रही है... ऐसे ही आक्टिंग कर रही है सोने की... अन्जुउउ.." पिंकी ने कहकर मेरी रज़ाई खींच ली...
मैं सोने का बहाना किए रही... मेरा ख़याल था कि पिंकी मीनू से सब कुच्छ पूच्छ लेगी जो मीनू शायद मुझसे शे-अर् ना करती...
"अंजू.. ये क्या नाटक है यार.. जाग रही है तो बोल दे ना!" मीनू की सकपकाई हुई आवाज़ मेरे कानो में पड़ी तो मैं चुप ना रह सकी...,".. दीदी.. वो हम बातें कर रहे थे.. अभी तक.....!"
मीनू के पास अब कोई चारा नही बचा था.. खड़ी होकर उसने लाइट 'ऑन' कर दी... और गुम्सुम सी सिर झुकाए हमारे बीच आकर बैठ गयी...
"क्या हुआ दीदी.. तुम उदास क्यूँ हो...?" पिंकी मीनू को नाराज़ नही देख सकती थी...
"कुच्छ नही.. तुम लोग किसी को बतओगि तो नही ना....?" मीनू ने सिर झुकाए हुए ही कहा....
"नही दीदी.. आपकी कसम.. मैं किसी को नही बताउन्गि... पर बताओ ना... लंबू से प्यार..."
पिंकी की बात अधूरी ही रह गयी... मीनू ने लगभग झूमते हुए चीख कर इकरार किया...,"हाआआअन.. अब तो बस करो मेरी अम्मा!" मीनू ने कहा और आगे झुक कर अपने चेहरे को रज़ाई में च्छूपा लिया....
"पूरी बात बताओ ना दीदी...", पिंकी ने मीनू के सिर को पकड़ कर उपर उठाने की कोशिश की..,"लंबू ने तुम्हे चोद दिया क्या?"
पिंकी की इस बात पर मैं भी आस्चर्य से आँखें फाड़ कर उसके मासूमियत से भरे चेहरे को देखने लगी.. मीनू का क्या हाल हुआ होगा.. आप खुद ही अंदाज़ा लगा लो... मीनू अचानक सीधी हुई; हड़बड़कर एक नज़र मुझे देखा और फिर गुस्से और लज्जा से तमतमयी हुई पिंकी को देखने लगी... उसका मुँह अभी तक खुला हुआ था....
पिंकी मीनू की आँखों की भाषा पढ़ कर समझ गयी कि उसने कुच्छ ग़लत बोल दिया है.. थोडा सकुचा कर पिछे सरकते हुए बोली...,"क्या हो गया दीदी...?" मीनू के थप्पड़ से बचने के लिए वह पहले ही अपना बयान हाथ अपने गाल पर ले गयी थी...
"क्या हुआ की बच्ची.. कहाँ से सीखी तूने ये बात...?" मीनू अपने आवेगो को दबाती हुई बड़बड़ाई... अगर उसका 'राज' पिंकी के पास ना होता तो एक झापड़ तो पक्का था ही... पिंकी की उस बात पर...
"क्कौनसी बात दीदी...?" पिंकी सहम कर बककफूट पर आ गयी... उसका हाथ अभी तक उसके गाल की ढाल बना हुआ था....
"यही....." मीनू सच में गुस्से में थी..,"जो तूने अभी बोली थी...!"
"अच्च्छा.. ववो... वो तो मुझे खुद ही पता है... नंगे होकर प्यार करें तो यही तो बोलते हैं...!" पिंकी ने मासूमियत से जवाब दिया...
"म्मै तेरी.... हे भगवान..! कैसे सम्झाउ इस पागल को..." पिंकी के बच्पने पर मीनू ने अपना माथा पीट लिया... और फिर अचानक जाने क्या सोच कर उसकी हँसी छूट गयी...,"किसी और के सामने मत बोलना ये बात.. बहुत गंदी गाली है...!" मीनू ने पिंकी के कंधों को पकड़ कर उसको झकझोर सा दिया...
"मैं पागल हूँ क्या..? किसी और के सामने क्यूँ बोलूँगी... मैं तो बस आप ही से पूच्छ रही थी...!" पिंकी ने अपना मुँह फूला लिया..
"ना.. मुझसे भी मत करना ये बात कभी... समझ गयी मेरी लाडो!" मीनू ने उसको गले से लगा लिया...
"तो किस'से करूँ दीदी...?" पिंकी के सवाल ख़तम ही नही हो रहे थे...
"चुप हो जा मेरी अम्मा... आजा सो जा... जब तू बड़ी होकर किसी से प्यार करेगी तो सब समझ आ जाएगा... किसी से पूच्छने की ज़रूरत नही पड़ेगी.. समझी...?"
"पर मैं तो अभी से प्यार करती हूँ...!" पिंकी ने एक और गोला भटका दिया... मीनू तो बस उसको देखती ही रह गयी..,"तू? .... किस'से?"
पिंकी ने मीनू के कान में कुच्छ कहा... मुझे सुना नही.. पर मैं समझ गयी थी.....
"अच्च्छा बेटा.... इसीलिए तू बार बार पैसे देकर आने की रट लगा रही है... कहीं नही जाना तुझे... अब देती हूँ मैं तेरे को पैसे....!" मीनू गरमाई नही थी.. खाली बंदैर्घूड़की ही दे रही थी शायद....
"हुन्ह.. हूंनूः.. अब इसको भी पता चल गया होगा... आपने क्यूँ बोला...?" पिंकी अपना नीचे वाला होन्ट बाहर निकाल कर रुन्वसि सी हो गयी...
"कहाँ जाएगी अभी से प्यार करके तू..? इत्ति सी तो है... संभाल जा छ्होरी.. सँभाल जा...!" मीनू पिंकी की और आँखें निकालती हुई बोली....
"आप कर सकते हो तो मैं क्यूँ नही कर सकती... मैं क्या करूँ.. मुझे वो बहुत अच्च्छा लगता है...!" पिंकी बग़ावत पर उतर आई....
"चुप होगी तभी तो बताउन्गि... मानव मुझसे शादी करने वाला है.. अपने घर वालों को यहाँ भेजेगा....!" मीनू ने खुशी से झूमते हुए तकिया उठाकर अपनी गोद में रख लिया....
"सच!" पिंकी की आँखें चमक उठी... अपने प्यार को भूल कर 'वो' दीदी के जबातों को महसूस करती हुई बोली...
"हाँ तेरी कसम...! कितना अच्च्छा है ना 'वो'?" मीनू ने उसको कहने के बाद मेरी तरफ देखा.. मैं भी मुस्कुराती हुई उठकर बैठ गयी....
"हॅरी उस'से भी अच्च्छा है... भूल गयी हमें कितनी चीज़ें खिलाई थी शहर में... बैठकर गाड़ी में गाँव भी लेकर आया था... बेचारा...!" पिंकी तुलना पर उतर आई...,"लंबू ने तो मुझे पता है क्या बोला था शहर आते ही... 'इसको क्यूँ उठा लाए?" पिंकी ने उसकी नकल करते हुए अपनी आँखें गोल कर ली...
"हे भगवान... कौन बुद्धि देगा तेरे को...? तू और तेरा हॅरी... बस कर अब.. सो जा!"
"तुम किस'से प्यार करती हो अंजू...? तुम भी बताओ ना...?" पिंकी का ये 'वो' सवाल था जिसको मैं कभी भुला नही पाउन्गि....
मेरे होन्ट खुले के खुले रह गये... मैं अवाक सी उन्न दोनो को देखती रह गयी... अपने मंन का; अपने दिल का कोना कोना छान मारा... पर 'ऐसी' कोई तस्वीर मेरे जहाँ में आई ही नही जिसको मैं 'अपना' कह सकती... ऐसा कोई अक्स मेरे मानस पटल पर उकेरा ही नही गया था जिसको याद करके मैं 'वैसी' ही चमक अपनी आँखों में ला पाती जैसी उस वक़्त मीनू और पिंकी की आँखों में मुझे दिखाई दे रही थी... दरअसल मैने 'दिल' को टटोला तो उसको खाली पाया...
उल्टा मेरे दिल ने ही मुझसे सवाल सा किया..," प्यार? .... ये क्या होता है अंजू..!" और जवाब में मेरे अंदर के ख़ालीपन से एक टीस सी उभर कर 'दर्दनाक कसक' के रूप में मेरे चेहरे पर च्छा गयी.... एक 'आह' मेरे अंदर से निकली तो मुझे महसूस हुआ जैसे शादियों बाद मैने साँस ली हो.... पर 'वो' भी खाली ही थी.. नितांत अकेली....
"क्या हुआ अंजू?" मेरे चेहरे के भावों को पढ़ते हुए मीनू ने पकड़ कर मुझे हिलाया....
"क्कुच्छ नही..." मैने नज़रें झुका ली....
"कुच्छ तो बात है यार.. किसी ने चीट किया है क्या?" मीनू ने पूचछा...
जिसने आज तक खुद को ही छला हो.. उसके साथ कोई क्या 'चीट' करेगा..... मैं एक बार फिर अपने मंन की परतें उघेदने लगी... बचपन से आज तक.. जो कुच्छ देखा समझा है.. मैं तो उसी को 'प्यार' मानती आई थी... मैने तो आज तक यही जाना था की प्यार खाली 'करने' की चीज़ है.. मुझे नही पता था कि 'प्यार' को चेहरे के नूर और आँखों में अनोखी चमक से महसूस किया जाता है.. जैसा उन्न दोनो के चेहरो पर दिख रहा था.... मुझे कहाँ पता था कि कपड़े उतारने को 'प्यार' नही बोलते.. !
अपने रूप सौंदर्या पर गर्व करके हमेशा गर्दन ऊँची करके चलने वाली मैं अचानक उन्न दोनो के सामने खुद को तुच्च्छ और अछूत सी समझने लगी... फिर भी दिल के किसी कोने में एक इच्च्छा ज्वलंत हो रही थी... 'कोई मुझसे भी 'प्यार' करे! मैं भी किसी से 'प्यार करूँ!
"क्या हुआ? नींद में है क्या?" मीनू ने एक बार फिर मुझे हिला दिया...
"आ..आहान.. नींद आ रही है...!" मैं कुच्छ और नही बोली.....
"अच्च्छा.. चलो सो जाओ...!" मीनू बोली और लेट'ने को हुई ही थी कि वापस उठ कर बैठ गयी...,"सुन... मैं बताना भूल गयी.. पापा ने चाचा से तुम्हे कंप्यूटर क्लासस के लिए शहर भेजने को पूचछा था... उन्होने सॉफ मना कर दिया..!"
"कोई बात नही..." मैने और कोई प्रतिक्रिया नही दी...
"सुन तो.. एक बुरी खबर भी है... तुम दोनो के लिए....!" मीनू ने कहा....
"क्या है..? मेरी भी कॅन्सल हो गयी क्या?" पिंकी तुनक कर बोली....
"हाँ! चाचा कह रहे थे कि उन्होने 'गुरुकुल' में बात कर ली है.. रिज़ल्ट से पहले ही अड्मिशन चालू है.. अंजू को चाचा वहीं भेज रहे हैं दो चार दिन में... पापा कह रहे थे कि पिंकी को भी वहीं दाखिल करा देंगे.....!"
"क्या?" पिंकी गुस्से से पैर पटकती हुई बोली...,"मुझे नही जाना अभी कहीं भी... मैं च्छुतटियों का पूरा मज़ा लूँगी... पहले ही बता रही हूँ....!" पिंकी ने कहने के बाद अपनी टाँगों से मीनू को दूसरी और धकेलना शुरू कर दिया....
"मैं क्या कह रही हूँ.. पापा से बात करना...!" मीनू अपने पेट में गढ़ी हुई उसकी टाँगों को अलग हटाकर हँसती हुई बोली.....
सुबह मैं उठी तो मीनू बिस्तेर पर नही थी.. मैं हड़बड़कर उठी और तुरंत पिंकी को हिलाकर जगाया....
"क्या है.. सोने दे ना!" पिंकी नींद में ही अंगड़ाई लेती हुई सी बोली...
"मीनू...?" मैने पूचछा.....
"बाहर होगी... देख लो.. मुझे क्यूँ...?" पिंकी अचानक बोलना बंद करके झटके के साथ उठ बैठी..," कहाँ हैं दीदी?"
"वही तो मैं पूच्छ रही हूँ...? नीचे चलकर देखें?" मेरे कहने से पहले ही पिंकी बिस्तर से अलग खड़ी हो चुकी थी... उसने बाहर निकल कर बाथरूम में देखा और फिर नीचे सीढ़ियों में मुँह करके आवाज़ लगाई...,"दीदी....?"
"हां.. आ रही हूँ...!" मीनू ने नीचे से ही जवाब दिया.. कुच्छ देर बाद वह उपर ही आ गयी....
"आप फिर नीचे चले गये थे क्या?" पिंकी ने पूचछा...
"अभी तो गयी थी.. आधा घंटा पहले...." मीनू सफाई देती हुई बोली....
"झूठ.. लंबू से पूच्छून क्या?" पिंकी कहने के बाद हँसने लगी....
"मैं तेरी...." मीनू ने उसको पकड़ कर बिस्तर पर गिरा दिया और फिर हँसने लगी...,"वो तो चला भी गया...!"
"कब? मुझे 'जीजू' को बाइ बोलना था..." पिंकी वापस खड़ी होकर शरारत से मुस्कुराइ.....
"तू बहुत बोलने लगी है आजकल... तेरा इलाज करना पड़ेगा...!" मीनू गुस्सा होने का दिखावा करती हुई बोली.. पर सच तो उसका चेहरा बयान कर ही रहा था....," चल अब काम करवा दो जल्दी जल्दी... फिर अंजू को 'वहाँ' फोन करना है...! मानव ने बोला है..."
"कहाँ?" पिंकी से पहले मैं बोल पड़ी...,"उस के पास क्या?"
"हाँ... मैने मानव को बता भी दिया की तू ही उस'से बात करती है....!" मीनू बोली...
"क्यूँ?" मैने पूचछा.....
"वो कह रहा था कि तू ज़्यादा खुलकर बात कर सकती है.. फिर मैने उसको बता ही दिया....!" मीनू ने जवाब दिया...
"हुम्म.. कोई बात नही...!" मैने कहकर अपने कंधे उचका दिए और जल्दी जल्दी काम निपटाने में लग गये....
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"उसका नंबर. तो स्विच्ड ऑफ है...!" मैने अलग जाकर नंबर. ट्राइ किया और वापस आकर हताशा में अपने कंधे उचका दिए....
"दूसरे नंबर. पर ट्राइ कर ना... उसने एक और नंबर. से भी तो फोन किया था...!" मीनू याद दिलाती हुई बोली...
"हां.. पर मुझे नंबर. याद नही है....!" मैने जवाब दिया....
"अर्रे मैने इसमें 'सेव' किया था... देना एक मिनिट....!" मीनू ने मेरे हाथ से फोन लिया और और 'वो' नंबर. ढूँढ कर फोन वापस मुझे पकड़ा दिया...,"ये ले!"
"ठीक है.. मैं ट्राइ करती हूँ..." मैं फोने लेकर वापस एक तरफ चली गयी... खुशकिस्मती से नंबर. लग गया....
"हेलो...!" उधर से एक लड़की की पैनी आवाज़ आई....
"ज्जई... 'वो' है...!" मैं लड़की की आवाज़ सुनकर हड़बड़ा गयी....
"वो?... कौन 'वो'? कहाँ मिलाया है आपने?" उधर से आवाज़ आई....
"जी वो... नाम तो पता नही.. इस नंबर. पर उनसे बात हुई है पहले...!" मैने कहा...
"रॉंग नंबर....!" उसने कहते ही फोन काट दिया और एक बार फिर मेरा इंतजार कर रही मीनू और पिंकी के पास आ गयी....,"कोई लड़की थी....रॉंग नंबर. कहकर काट दिया..."
"अच्च्छा..! क्या बोला था तूने..." मीनू ने पूचछा....
"मैं क्या बोलती.. यही बोला था कि इस नंबर. पर मेरी बात हुई थी.. अब नाम तो नही ले सकती ना! उसने बताया ही नही कभी अपने मुँह से.... नंबर. तो यही था ना....?" मैने पूचछा....
"हां यार.. नो. तो पका यही था... चल छ्चोड़.. जब 'वो' फोन ही नही करता तो हमें क्या पड़ी है... हमारा पीचछा छ्छूटना चाहिए बस!" मीनू ने कहते हुए मुझसे फोन लेकर मानव को सारी बातें बता दी...
जैसे ही मीनू ने फोन काटा.. पिंकी उसके पास जाकर बोली..,"दीदी.. ववो..!"
"क्या?"
"ववो.. मैं कह रही थी की हॅरी के पैसे दे अओन क्या?" पिंकी थोड़ा हिचक कर बोली....
"ना! कोई ज़रूरत नही है.. मैं अपने आप भिजवा दूँगी.. तू ज़्यादा स्यानी मत बन...!" मीनू ने उसको झिड़कते हुए कहा....
"प्लीज़ दीदी... हम जाते ही वापस आ जाएँगे.. जाने दो ना!" पिंकी ने मीनू के कंधे पर सिर रख लिया....
"ना... कह दिया ना.. अब गुस्सा मत दिला मुझे.. बड़ी आई प्पया...!" मीनू कुच्छ और भी बोलना चाहती थी.. पर शायद उसने बोलने से पहले अपने गिरेबान में झाँक लिया....
"ये क्या बात हुई दीदी..?" पिंकी तुनक कर उस'से दूर हट गयी...,"मैने कुच्छ बोला आपको.. आप लंबू के पास नीचे चली गयी.. और.. और... आपने 'प्यार' भी कर लिया.. मुझे भी जाने दो ना...!"
"आए.. ज़्यादा बकवास की ना...... मम्मी पापा की कसम.. मुझसे बात मत करना अब...!" मीनू गुस्से में उफान सी पड़ी....
"सॉरी!" पिंकी ने नज़रें झुका ली...
मीनू का चेहरा सफेद सा पड़ गया था और वो बचाव की मुद्रा में आ गयी...,"तुम्हारी कसम यार.. ववो.. वो तो जब उसने शादी की बात करी तो मैं एमोशनल सी हो गयी थी..... तुझे जाना है तो चली जा.. पर...."
"प्लीज़ दीदी.. हम जल्दी वापस आ जाएँगे... खुश होकर जाने दो ना! अंजू को भी तो साथ लेकर जा रही हूँ मैं...!" पिंकी एक बार फिर याचना सी करने लगी...
"ठीक है... जाओ.. पर जल्दी वापस आ जाना प्लीज़...!" मीनू ने आख़िरकार वक़्त की नज़ाकत को देखते हुए हथियार डाल ही दिए....,"आकर मुझे पूरी बात बताना क्या चक्कर है ये..? और कब से है....?"
"थॅंक यू दीदी.. आइ लव यू!" पिंकी उच्छलते हुए मीनू से लिपट गयी...,"मैं सब कुच्छ बता दूँगी.. थॅंक यू... चल अंजू!"
"पिंकी तूमम्म?......... आओ!" हमें अपने सामने पाकर हॅरी हड़बड़कर कुर्सी से उठ कर खड़ा हो गया.. पर हम उसके सामने बैठे आदमी की वजह से हिचक कर दरवाजे पर ही अटक गये... पिंकी कुच्छ नही बोली...
"आओ ना.. अंदर आओ; ... कैसे आना हुआ?" हॅरी ने खड़े खड़े ही हमें दोबारा टोका...
"मैं सुबह भी आई थी.. तुम मिले ही नही...!" पिंकी सकुचते हुए बोली....
"आ.. हां.. वो आज मैं दिन भर बाहर था.. सॉरी.. बोलो..!"
पिंकी ने हमारी पीठ करके बैठे आदमी को घूर कर देखा..,"कुच्छ नही.. ऐसे ही... कुच्छ काम था...!"
"तो बोलो ना.. अंदर तो आ जाओ.. बाहर क्यूँ खड़ी हो?" हॅरी अभी तक खड़ा था...
"ओके सर.. मैं आपको बाद में फोन कर लूँगा... मेरे ख़याल से मुझे अब चलना चाहिए...!" अचानक दूसरा आदमी अपनी मौजूदगी को हॅरी की निजी जिंदगी में दखल मान कर खड़ा हुआ और हॅरी की तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया...
"ठीक है.. मैं खुद ही आपको फोन करता हूँ...!" हॅरी टेबल के दूसरी तरफ आते हुए बोला.. आदमी को पलट'ता देख हम दरवाजे से अलग हटकर खड़े हो गये... वो आदमी हम दोनो पर सरसरी सी नज़र डालता हुआ दरवाजे से निकल गया...
"ये कौन था?" पिंकी ने उस आदमी के जाते ही हॅरी से पूचछा...
"था कोई.. तुम छ्चोड़ो ना.. अपनी बताओ.. कैसे आना हुआ..." हॅरी ने उसकी बात को टालते हुए कहा..,"बैठो तो पहले..!"
"नही बताओ.. ये तुम्हे 'सर' क्यूँ कह रहा था.. ?" पिंकी अंदर जाकर कुर्सी पर बैठ गयी.. मैने भी अपने लिए कुर्सी ढूँढ ली..
हॅरी वापस जाकर हमारे सामने बैठ गया....,"हा हा हा... क्यूँ? मुझे कोई 'सर' नही बोल सकता क्या?"
"पर ये तो तुमसे काई साल बड़ा था ना?... और पैसे वाला भी लग रहा था.." पिंकी जाने क्या बात लेकर बैठ गयी....
"अच्च्छा जी.. आज के बाद मुझे कोई सर बोलेगा तो मैं उसको मना कर दूँगा.. अब खुश?" हॅरी मज़ाक मज़ाक में उसकी बात को टालते हुए बोला,"अब तो बता दो, आज फिर....? हे हे हे"
"नही!" पिंकी तुनक कर बोली...
"तो फिर?" हॅरी उसका लहज़ा सुनकर संजीदा हो गया...
"ये लो तुम्हारे पैसे!" पिंकी ने अपने साथ लाए पैसे टेबल पर पटक दिए...
"पैसे? कौँसे पैसे यार?" हॅरी अचंभित सा हो गया...
"मुझे नही पता.. दीदी ने देने को बोला था... ऐसे किसी के पैसे नही रखते.. शहर में तुमने इतना खर्चा किया.. दीदी बोल रही....." पिंकी बोलती ही जा रही थी की हॅरी ने अजीब सी नज़रों से उसकी और देखते हुए उसको बीच में ही टोक दिया...,"क्क्या.. तो क्या मैं इतना भी नही कर सकता...?"
"क्यूँ? तुम क्यूँ करोगे ....? तुम कोई मुझसे प्या...." शुक्रा है पिंकी को बोलते बोलते ही समझ में आ गया 'वो' क्या बोलने वाली थी.. वा आधी बात को अपने अंदर ही पी गयी....,"ववो.. कल पापा मुझे 'गुरुकुल' में छ्चोड़ कर आने वाले हैं... !"
"अच्च्छा... अब तुम गुरुकुल में पढ़ोगी.. वेरी गुड!" हॅरी ने जवाब दिया...
"इसमें वेरी गुड क्या है..? हॉस्टिल में रहना पड़ेगा हमें!" पिंकी तुनक कर बोली...
"हां तो अच्च्छा ही है ना!" हॅरी ने मुस्कुराते हुए कहा तो पिंकी ने आँसू टपकाने शुरू कर दिए..,"इसके सामने मेरी बे-इज़्ज़ती क्यूँ कर रहे हो? सीधे सीधे बोल दो ना कि तुम मुझसे प्यार नही करते...!"
पिंकी के मुँह से सीधी और सटीक बात सुनकर हॅरी सकपका सा गया..," ययए.. ये तुम.. ये क्या बात हुई यार?"
"और नही तो क्या? बोलो!"
हॅरी ने हड़बड़ाहट में मेरी तरफ देखा और फिर झेंपटा हुआ सा बोला,"मैं क्या बोलूं यार?"
"यही कि मुझसे प्यार करते हो या नही...!" सुबक्ती हुई पिंकी ने बुरा सा मुँह बनाकर पूचछा ....
शायद हॅरी की झिझक का कारण मैं ही थी..," तुम्हे पता भी है तुम क्या बोल रही हो..? ऐसी बातें ऐसे पूछ्ते हैं क्या?"
"क्यूँ? 'प्यार' करना कोई गंदी बात थोड़े ही है.. और कैसे बोलते हैं बोलो?"
"हां.. मेरा मतलब नही पर... म्मैइन तुमसे अकेले में बात करना चाहता हूँ.." हॅरी मेरी और देख कर पिंकी से बोला... मैने पिंकी की और देखा और उठने लगी.. पर पिंकी ने मेरा हाथ पकड़ लिया..,"अकेले में क्यूँ? क्या करोगे तुम?"
"क्या? म्मैइन क्या करूँगा...? बस बात ही....... और क्या?" हॅरी का चेहरा देखने लायक था...
"तो इसके सामने ही कर लो.. इसको सब पता है...!" पिंकी दनादन बोले जा रही थी....
"क्यूँ दिमाग़ की दही कर रही हो यार.. क्या पता है इसको?.. साफ साफ बोलो ना...!"
"नही.. पहले तुम बताओ मुझसे प्यार करते हो या नही... बस!"
"अब.. अब मैं तुम्हे क्या कहूँ?"
"इसका मतलब तुम मुझसे प्यार नही करते.. तो उस दिन क्यूँ..? तुम्हे देख लूँगी मैं.. चल अंजू!" पिंकी कुर्सी से खड़ी हो गयी..
"सुनो तो...!" हॅरी ने जैसे ही कहा.. मैने पिंकी का हाथ पकड़ लिया...
"छ्चोड़ो मेरा हाथ.. मुझे नही सुन'ना कुच्छ..!" पिंकी ने अपना हाथ च्छुदाने की कोशिश की.. पर च्छुदा नही पाई.. शायद 'वो' 'कोशिश' सिर्फ़ हॅरी को दिखाने के लिए ही कर रही थी.....
"हाँ.. मैं तुमसे प्यार करता हूँ.. पर मुझे नही पता था कि तुम भी....!" हॅरी ने मेरे सामने ही बोल दिया.... और उठ कर इस तरफ आने लगा....
"मैं नही करती तुमसे प्यार? अपने पैसे पाकड़ो और...." पिंकी की बात अधूरी ही रह गयी.. जैसे ही हॅरी ने उसका हाथ थामा.. वह थर थर काँपने लगी...
"मुझे विश्वास नही हो रहा पिंकी कि मैं तुम्हारे मुँह से ये सब सुन रहा हूँ.. जिस बात को मैं साल भर से तुम्हे बोलना चाहता था.. तुमने ऐसे बोल दिया जैसे 'प्यार' कोई बच्चों का खेल हो.. मैं इसीलिए हड़बड़ा गया था.... तुम्हारी कसम.. जब से मैने तुम्हे देखा है.. खास तौर से उस दिन जब..." हॅरी ने बात बीच में ही छ्चोड़ दी... ," हां.. मैं तुमसे प्यार करता हूँ..!"
पिंकी अपनी मोटी मोटी आँखें पूरी खोल कर हॅरी की आँखों में देख रही थी.. उसके रुकते ही वह बोल पड़ी..," मैं कल हॉस्टिल में चली जाउन्गि.. तुम्हे बुरा नही लग रहा....?"
"ववो.. एक मिनिट बाहर जाओगी प्लीज़..." हॅरी ने मुझसे कहा..... मैं तुरंत खड़ी हो गयी...
"न्न्नाही.. एक मिनिट...!" पिंकी की साँसें भारी हो चली थी और गालो पर अचानक च्छा गयी लाली उसके नाम को सार्थक करने लगी थी.. 'गुलबो'!... मैने पलट कर उसकी ओर देखा...
"मुझे अकेली छ्चोड़कर मत जाओ!" पिंकी सहमी हुई सी बोली...
"प्लीज़ यार... बस 2 मिनिट..!" हॅरी ने एक बार फिर कहा तो मैं उन्न दोनो को अकेला छ्चोड़ कर कमरे से बाहर आकर खड़ी हो गयी.....
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पिंकी करीब 15 मिनिट बाद बाहर आई.. मैं उत्सुकता से उसके बाहर आने का इंतजार कर रही थी.... वा नज़रें झुकाए मुझसे आगे जाकर खड़ी हो गयी,"चलो जल्दी...!"
"क्या हुआ?" मैने उसके पास जाकर उसका हाथ पकड़ लिया और उसके साथ साथ मकान से बाहर निकलती हुई बोली....
"कुच्छ नही...!" पिंकी ने बात को टालने की कोशिश की.. पर उसकी आवाज़ चाहक चाहक कर बता रही थी कि कुच्छ तो हुआ है....
"आए प्लीज़.. बता ना..! मुझसे क्यूँ च्छूपा रही है?" मैने एक बार फिर कोशिश की....
"मुझे शर्म आ रही है..." पिंकी लाजाते हुए बोली और अपना हाथ झटक लिया....
"प्लीज़.. बता दे ना.. मेरी भी तो कितनी बातें पता है तुझे....!"
"पहले बता.. मुझे नही चिडाएगी ना...?"
"तेरी कसम! मैं क्यूँ चिड़वँगी..?"
"मीनू को भी नही बताओगि!"
"हां.. नही बताउन्गि किसी को भी.. तेरी कसम...!" मैं व्याकुल हो चुकी थी...
"उसने..." बोलते हुए पिंकी गड़गड़ा उठी..,"उसने मेरी क़िस्सी काट ली...!" पिंकी ने कहते ही अपना चेहरा हाथों में च्छूपा लिया....
"फिर?" मैं उतनी ही व्याकुलता से बोली...
"फिर क्या?... बस!" पिंकी ने कहा....
"बस?" मैने आस्चर्य से पूचछा....
"हां.. बस! ये कम है क्या?" पिंकी मन ही मन नाच सी रही थी....
"नही पर.... क्या सच में उसने और कुच्छ नही किया...?"
"वह और कुच्छ भी करना चाहता था.. पर मैने करने नही दिया.... हे हे हे.." पिंकी हँसने लगी...
"क्या?"
"कह रहा था कि बस एक बार अपने होंटो पर होन्ट रखने दो... मुझे शर्म आ रही थी.. मैने करने नही दिया....!" पिंकी बोलते हुए लजा गयी....
"तो... 'वो' 'क़िस्सी' कहाँ पर दी उसने?" मैं हताश होकर बोली....
"यहाँ!" पिंकी ने अपने होंटो के बिल्कुल पास गाल पर उंगली लगा कर बताया और बुरी तरह झेंप गयी.....
"धात तेरे की... फिर इतनी देर से भाव क्यूँ खा रही थी...मैं तो समझी कि पता नही क्या हो गया...?" मैने निराशा से कहा....
"वो मुझसे प्यार करता है.. ये कोई छ्होटी बात है क्या?"
मैं निरुत्तर हो गयी.......
क्रमशः..........................
गतान्क से आगे..................
"आ गयीं दीदी?" पिंकी की नटखट आवाज़ कानो में पड़ते ही मीनू ऐसे उच्छल पड़ी जैसे उसको किसी बिच्छू ने काट लिया हो... मीनू ने रात करीब 12:30 बजे उपर कमरे में पैर रखा था....
"आ..हां.. ना..न्ना.. पेट खराब है म्म्मेरा... बाथरूम गयी थी... तू उठ क्यूँ गयी.. अभी तो सारी रात बाकी है...!" मीनू का साया बाहर चाँद की रोशनी में साफ साफ कांपता हुआ सा देखा जा सकता था....
"अभी तो मैं सोई ही नही हूँ दीदी... आपकी राह देख रही थी.. आप उपर कब आईं....?" पिंकी को मैने लाख समझाया था की उसको आते ही कुच्छ मत बोलना.. पर पता नही वह किस मिट्टी की बनी हुई थी....
"म्म्मैन.. त्तु.. सोई क्यूँ नही..." मीनू को उगलते बना ना निगलते... वह पिंकी के पास जाकर लेट गयी...,"तू मम्मी को नही बोलेगा ना पिंकू?" मक्खांबाज़ी शुरू...
"हे हे हे हे हे...!" हँसी पिंकी के दिल की गहराइयों से निकली थी...
"हंस क्यूँ रही है..? बता ना? मम्मी को बोलेगी क्या?" पिंकी की हँसी मीनू को सामने खड़े किसी भयंकर देत्य की हुंकार से कम नही लगी होगी.. उसका आवाज़ बैठ सी गयी..
"पहले बताओ.. लंबू से प्यार करती हो ना...?" पिंकी फोकट में ही नखरे दिखाने लगी..
"प्लीज़.. तेज़ मत बोल.. अंजू जाग जाएगी... आजा.. मेरी प्यारी पिंकू..!" ये तो होना ही था...
"पर वो तो जाग रही है... ऐसे ही आक्टिंग कर रही है सोने की... अन्जुउउ.." पिंकी ने कहकर मेरी रज़ाई खींच ली...
मैं सोने का बहाना किए रही... मेरा ख़याल था कि पिंकी मीनू से सब कुच्छ पूच्छ लेगी जो मीनू शायद मुझसे शे-अर् ना करती...
"अंजू.. ये क्या नाटक है यार.. जाग रही है तो बोल दे ना!" मीनू की सकपकाई हुई आवाज़ मेरे कानो में पड़ी तो मैं चुप ना रह सकी...,".. दीदी.. वो हम बातें कर रहे थे.. अभी तक.....!"
मीनू के पास अब कोई चारा नही बचा था.. खड़ी होकर उसने लाइट 'ऑन' कर दी... और गुम्सुम सी सिर झुकाए हमारे बीच आकर बैठ गयी...
"क्या हुआ दीदी.. तुम उदास क्यूँ हो...?" पिंकी मीनू को नाराज़ नही देख सकती थी...
"कुच्छ नही.. तुम लोग किसी को बतओगि तो नही ना....?" मीनू ने सिर झुकाए हुए ही कहा....
"नही दीदी.. आपकी कसम.. मैं किसी को नही बताउन्गि... पर बताओ ना... लंबू से प्यार..."
पिंकी की बात अधूरी ही रह गयी... मीनू ने लगभग झूमते हुए चीख कर इकरार किया...,"हाआआअन.. अब तो बस करो मेरी अम्मा!" मीनू ने कहा और आगे झुक कर अपने चेहरे को रज़ाई में च्छूपा लिया....
"पूरी बात बताओ ना दीदी...", पिंकी ने मीनू के सिर को पकड़ कर उपर उठाने की कोशिश की..,"लंबू ने तुम्हे चोद दिया क्या?"
पिंकी की इस बात पर मैं भी आस्चर्य से आँखें फाड़ कर उसके मासूमियत से भरे चेहरे को देखने लगी.. मीनू का क्या हाल हुआ होगा.. आप खुद ही अंदाज़ा लगा लो... मीनू अचानक सीधी हुई; हड़बड़कर एक नज़र मुझे देखा और फिर गुस्से और लज्जा से तमतमयी हुई पिंकी को देखने लगी... उसका मुँह अभी तक खुला हुआ था....
पिंकी मीनू की आँखों की भाषा पढ़ कर समझ गयी कि उसने कुच्छ ग़लत बोल दिया है.. थोडा सकुचा कर पिछे सरकते हुए बोली...,"क्या हो गया दीदी...?" मीनू के थप्पड़ से बचने के लिए वह पहले ही अपना बयान हाथ अपने गाल पर ले गयी थी...
"क्या हुआ की बच्ची.. कहाँ से सीखी तूने ये बात...?" मीनू अपने आवेगो को दबाती हुई बड़बड़ाई... अगर उसका 'राज' पिंकी के पास ना होता तो एक झापड़ तो पक्का था ही... पिंकी की उस बात पर...
"क्कौनसी बात दीदी...?" पिंकी सहम कर बककफूट पर आ गयी... उसका हाथ अभी तक उसके गाल की ढाल बना हुआ था....
"यही....." मीनू सच में गुस्से में थी..,"जो तूने अभी बोली थी...!"
"अच्च्छा.. ववो... वो तो मुझे खुद ही पता है... नंगे होकर प्यार करें तो यही तो बोलते हैं...!" पिंकी ने मासूमियत से जवाब दिया...
"म्मै तेरी.... हे भगवान..! कैसे सम्झाउ इस पागल को..." पिंकी के बच्पने पर मीनू ने अपना माथा पीट लिया... और फिर अचानक जाने क्या सोच कर उसकी हँसी छूट गयी...,"किसी और के सामने मत बोलना ये बात.. बहुत गंदी गाली है...!" मीनू ने पिंकी के कंधों को पकड़ कर उसको झकझोर सा दिया...
"मैं पागल हूँ क्या..? किसी और के सामने क्यूँ बोलूँगी... मैं तो बस आप ही से पूच्छ रही थी...!" पिंकी ने अपना मुँह फूला लिया..
"ना.. मुझसे भी मत करना ये बात कभी... समझ गयी मेरी लाडो!" मीनू ने उसको गले से लगा लिया...
"तो किस'से करूँ दीदी...?" पिंकी के सवाल ख़तम ही नही हो रहे थे...
"चुप हो जा मेरी अम्मा... आजा सो जा... जब तू बड़ी होकर किसी से प्यार करेगी तो सब समझ आ जाएगा... किसी से पूच्छने की ज़रूरत नही पड़ेगी.. समझी...?"
"पर मैं तो अभी से प्यार करती हूँ...!" पिंकी ने एक और गोला भटका दिया... मीनू तो बस उसको देखती ही रह गयी..,"तू? .... किस'से?"
पिंकी ने मीनू के कान में कुच्छ कहा... मुझे सुना नही.. पर मैं समझ गयी थी.....
"अच्च्छा बेटा.... इसीलिए तू बार बार पैसे देकर आने की रट लगा रही है... कहीं नही जाना तुझे... अब देती हूँ मैं तेरे को पैसे....!" मीनू गरमाई नही थी.. खाली बंदैर्घूड़की ही दे रही थी शायद....
"हुन्ह.. हूंनूः.. अब इसको भी पता चल गया होगा... आपने क्यूँ बोला...?" पिंकी अपना नीचे वाला होन्ट बाहर निकाल कर रुन्वसि सी हो गयी...
"कहाँ जाएगी अभी से प्यार करके तू..? इत्ति सी तो है... संभाल जा छ्होरी.. सँभाल जा...!" मीनू पिंकी की और आँखें निकालती हुई बोली....
"आप कर सकते हो तो मैं क्यूँ नही कर सकती... मैं क्या करूँ.. मुझे वो बहुत अच्च्छा लगता है...!" पिंकी बग़ावत पर उतर आई....
"चुप होगी तभी तो बताउन्गि... मानव मुझसे शादी करने वाला है.. अपने घर वालों को यहाँ भेजेगा....!" मीनू ने खुशी से झूमते हुए तकिया उठाकर अपनी गोद में रख लिया....
"सच!" पिंकी की आँखें चमक उठी... अपने प्यार को भूल कर 'वो' दीदी के जबातों को महसूस करती हुई बोली...
"हाँ तेरी कसम...! कितना अच्च्छा है ना 'वो'?" मीनू ने उसको कहने के बाद मेरी तरफ देखा.. मैं भी मुस्कुराती हुई उठकर बैठ गयी....
"हॅरी उस'से भी अच्च्छा है... भूल गयी हमें कितनी चीज़ें खिलाई थी शहर में... बैठकर गाड़ी में गाँव भी लेकर आया था... बेचारा...!" पिंकी तुलना पर उतर आई...,"लंबू ने तो मुझे पता है क्या बोला था शहर आते ही... 'इसको क्यूँ उठा लाए?" पिंकी ने उसकी नकल करते हुए अपनी आँखें गोल कर ली...
"हे भगवान... कौन बुद्धि देगा तेरे को...? तू और तेरा हॅरी... बस कर अब.. सो जा!"
"तुम किस'से प्यार करती हो अंजू...? तुम भी बताओ ना...?" पिंकी का ये 'वो' सवाल था जिसको मैं कभी भुला नही पाउन्गि....
मेरे होन्ट खुले के खुले रह गये... मैं अवाक सी उन्न दोनो को देखती रह गयी... अपने मंन का; अपने दिल का कोना कोना छान मारा... पर 'ऐसी' कोई तस्वीर मेरे जहाँ में आई ही नही जिसको मैं 'अपना' कह सकती... ऐसा कोई अक्स मेरे मानस पटल पर उकेरा ही नही गया था जिसको याद करके मैं 'वैसी' ही चमक अपनी आँखों में ला पाती जैसी उस वक़्त मीनू और पिंकी की आँखों में मुझे दिखाई दे रही थी... दरअसल मैने 'दिल' को टटोला तो उसको खाली पाया...
उल्टा मेरे दिल ने ही मुझसे सवाल सा किया..," प्यार? .... ये क्या होता है अंजू..!" और जवाब में मेरे अंदर के ख़ालीपन से एक टीस सी उभर कर 'दर्दनाक कसक' के रूप में मेरे चेहरे पर च्छा गयी.... एक 'आह' मेरे अंदर से निकली तो मुझे महसूस हुआ जैसे शादियों बाद मैने साँस ली हो.... पर 'वो' भी खाली ही थी.. नितांत अकेली....
"क्या हुआ अंजू?" मेरे चेहरे के भावों को पढ़ते हुए मीनू ने पकड़ कर मुझे हिलाया....
"क्कुच्छ नही..." मैने नज़रें झुका ली....
"कुच्छ तो बात है यार.. किसी ने चीट किया है क्या?" मीनू ने पूचछा...
जिसने आज तक खुद को ही छला हो.. उसके साथ कोई क्या 'चीट' करेगा..... मैं एक बार फिर अपने मंन की परतें उघेदने लगी... बचपन से आज तक.. जो कुच्छ देखा समझा है.. मैं तो उसी को 'प्यार' मानती आई थी... मैने तो आज तक यही जाना था की प्यार खाली 'करने' की चीज़ है.. मुझे नही पता था कि 'प्यार' को चेहरे के नूर और आँखों में अनोखी चमक से महसूस किया जाता है.. जैसा उन्न दोनो के चेहरो पर दिख रहा था.... मुझे कहाँ पता था कि कपड़े उतारने को 'प्यार' नही बोलते.. !
अपने रूप सौंदर्या पर गर्व करके हमेशा गर्दन ऊँची करके चलने वाली मैं अचानक उन्न दोनो के सामने खुद को तुच्च्छ और अछूत सी समझने लगी... फिर भी दिल के किसी कोने में एक इच्च्छा ज्वलंत हो रही थी... 'कोई मुझसे भी 'प्यार' करे! मैं भी किसी से 'प्यार करूँ!
"क्या हुआ? नींद में है क्या?" मीनू ने एक बार फिर मुझे हिला दिया...
"आ..आहान.. नींद आ रही है...!" मैं कुच्छ और नही बोली.....
"अच्च्छा.. चलो सो जाओ...!" मीनू बोली और लेट'ने को हुई ही थी कि वापस उठ कर बैठ गयी...,"सुन... मैं बताना भूल गयी.. पापा ने चाचा से तुम्हे कंप्यूटर क्लासस के लिए शहर भेजने को पूचछा था... उन्होने सॉफ मना कर दिया..!"
"कोई बात नही..." मैने और कोई प्रतिक्रिया नही दी...
"सुन तो.. एक बुरी खबर भी है... तुम दोनो के लिए....!" मीनू ने कहा....
"क्या है..? मेरी भी कॅन्सल हो गयी क्या?" पिंकी तुनक कर बोली....
"हाँ! चाचा कह रहे थे कि उन्होने 'गुरुकुल' में बात कर ली है.. रिज़ल्ट से पहले ही अड्मिशन चालू है.. अंजू को चाचा वहीं भेज रहे हैं दो चार दिन में... पापा कह रहे थे कि पिंकी को भी वहीं दाखिल करा देंगे.....!"
"क्या?" पिंकी गुस्से से पैर पटकती हुई बोली...,"मुझे नही जाना अभी कहीं भी... मैं च्छुतटियों का पूरा मज़ा लूँगी... पहले ही बता रही हूँ....!" पिंकी ने कहने के बाद अपनी टाँगों से मीनू को दूसरी और धकेलना शुरू कर दिया....
"मैं क्या कह रही हूँ.. पापा से बात करना...!" मीनू अपने पेट में गढ़ी हुई उसकी टाँगों को अलग हटाकर हँसती हुई बोली.....
सुबह मैं उठी तो मीनू बिस्तेर पर नही थी.. मैं हड़बड़कर उठी और तुरंत पिंकी को हिलाकर जगाया....
"क्या है.. सोने दे ना!" पिंकी नींद में ही अंगड़ाई लेती हुई सी बोली...
"मीनू...?" मैने पूचछा.....
"बाहर होगी... देख लो.. मुझे क्यूँ...?" पिंकी अचानक बोलना बंद करके झटके के साथ उठ बैठी..," कहाँ हैं दीदी?"
"वही तो मैं पूच्छ रही हूँ...? नीचे चलकर देखें?" मेरे कहने से पहले ही पिंकी बिस्तर से अलग खड़ी हो चुकी थी... उसने बाहर निकल कर बाथरूम में देखा और फिर नीचे सीढ़ियों में मुँह करके आवाज़ लगाई...,"दीदी....?"
"हां.. आ रही हूँ...!" मीनू ने नीचे से ही जवाब दिया.. कुच्छ देर बाद वह उपर ही आ गयी....
"आप फिर नीचे चले गये थे क्या?" पिंकी ने पूचछा...
"अभी तो गयी थी.. आधा घंटा पहले...." मीनू सफाई देती हुई बोली....
"झूठ.. लंबू से पूच्छून क्या?" पिंकी कहने के बाद हँसने लगी....
"मैं तेरी...." मीनू ने उसको पकड़ कर बिस्तर पर गिरा दिया और फिर हँसने लगी...,"वो तो चला भी गया...!"
"कब? मुझे 'जीजू' को बाइ बोलना था..." पिंकी वापस खड़ी होकर शरारत से मुस्कुराइ.....
"तू बहुत बोलने लगी है आजकल... तेरा इलाज करना पड़ेगा...!" मीनू गुस्सा होने का दिखावा करती हुई बोली.. पर सच तो उसका चेहरा बयान कर ही रहा था....," चल अब काम करवा दो जल्दी जल्दी... फिर अंजू को 'वहाँ' फोन करना है...! मानव ने बोला है..."
"कहाँ?" पिंकी से पहले मैं बोल पड़ी...,"उस के पास क्या?"
"हाँ... मैने मानव को बता भी दिया की तू ही उस'से बात करती है....!" मीनू बोली...
"क्यूँ?" मैने पूचछा.....
"वो कह रहा था कि तू ज़्यादा खुलकर बात कर सकती है.. फिर मैने उसको बता ही दिया....!" मीनू ने जवाब दिया...
"हुम्म.. कोई बात नही...!" मैने कहकर अपने कंधे उचका दिए और जल्दी जल्दी काम निपटाने में लग गये....
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"उसका नंबर. तो स्विच्ड ऑफ है...!" मैने अलग जाकर नंबर. ट्राइ किया और वापस आकर हताशा में अपने कंधे उचका दिए....
"दूसरे नंबर. पर ट्राइ कर ना... उसने एक और नंबर. से भी तो फोन किया था...!" मीनू याद दिलाती हुई बोली...
"हां.. पर मुझे नंबर. याद नही है....!" मैने जवाब दिया....
"अर्रे मैने इसमें 'सेव' किया था... देना एक मिनिट....!" मीनू ने मेरे हाथ से फोन लिया और और 'वो' नंबर. ढूँढ कर फोन वापस मुझे पकड़ा दिया...,"ये ले!"
"ठीक है.. मैं ट्राइ करती हूँ..." मैं फोने लेकर वापस एक तरफ चली गयी... खुशकिस्मती से नंबर. लग गया....
"हेलो...!" उधर से एक लड़की की पैनी आवाज़ आई....
"ज्जई... 'वो' है...!" मैं लड़की की आवाज़ सुनकर हड़बड़ा गयी....
"वो?... कौन 'वो'? कहाँ मिलाया है आपने?" उधर से आवाज़ आई....
"जी वो... नाम तो पता नही.. इस नंबर. पर उनसे बात हुई है पहले...!" मैने कहा...
"रॉंग नंबर....!" उसने कहते ही फोन काट दिया और एक बार फिर मेरा इंतजार कर रही मीनू और पिंकी के पास आ गयी....,"कोई लड़की थी....रॉंग नंबर. कहकर काट दिया..."
"अच्च्छा..! क्या बोला था तूने..." मीनू ने पूचछा....
"मैं क्या बोलती.. यही बोला था कि इस नंबर. पर मेरी बात हुई थी.. अब नाम तो नही ले सकती ना! उसने बताया ही नही कभी अपने मुँह से.... नंबर. तो यही था ना....?" मैने पूचछा....
"हां यार.. नो. तो पका यही था... चल छ्चोड़.. जब 'वो' फोन ही नही करता तो हमें क्या पड़ी है... हमारा पीचछा छ्छूटना चाहिए बस!" मीनू ने कहते हुए मुझसे फोन लेकर मानव को सारी बातें बता दी...
जैसे ही मीनू ने फोन काटा.. पिंकी उसके पास जाकर बोली..,"दीदी.. ववो..!"
"क्या?"
"ववो.. मैं कह रही थी की हॅरी के पैसे दे अओन क्या?" पिंकी थोड़ा हिचक कर बोली....
"ना! कोई ज़रूरत नही है.. मैं अपने आप भिजवा दूँगी.. तू ज़्यादा स्यानी मत बन...!" मीनू ने उसको झिड़कते हुए कहा....
"प्लीज़ दीदी... हम जाते ही वापस आ जाएँगे.. जाने दो ना!" पिंकी ने मीनू के कंधे पर सिर रख लिया....
"ना... कह दिया ना.. अब गुस्सा मत दिला मुझे.. बड़ी आई प्पया...!" मीनू कुच्छ और भी बोलना चाहती थी.. पर शायद उसने बोलने से पहले अपने गिरेबान में झाँक लिया....
"ये क्या बात हुई दीदी..?" पिंकी तुनक कर उस'से दूर हट गयी...,"मैने कुच्छ बोला आपको.. आप लंबू के पास नीचे चली गयी.. और.. और... आपने 'प्यार' भी कर लिया.. मुझे भी जाने दो ना...!"
"आए.. ज़्यादा बकवास की ना...... मम्मी पापा की कसम.. मुझसे बात मत करना अब...!" मीनू गुस्से में उफान सी पड़ी....
"सॉरी!" पिंकी ने नज़रें झुका ली...
मीनू का चेहरा सफेद सा पड़ गया था और वो बचाव की मुद्रा में आ गयी...,"तुम्हारी कसम यार.. ववो.. वो तो जब उसने शादी की बात करी तो मैं एमोशनल सी हो गयी थी..... तुझे जाना है तो चली जा.. पर...."
"प्लीज़ दीदी.. हम जल्दी वापस आ जाएँगे... खुश होकर जाने दो ना! अंजू को भी तो साथ लेकर जा रही हूँ मैं...!" पिंकी एक बार फिर याचना सी करने लगी...
"ठीक है... जाओ.. पर जल्दी वापस आ जाना प्लीज़...!" मीनू ने आख़िरकार वक़्त की नज़ाकत को देखते हुए हथियार डाल ही दिए....,"आकर मुझे पूरी बात बताना क्या चक्कर है ये..? और कब से है....?"
"थॅंक यू दीदी.. आइ लव यू!" पिंकी उच्छलते हुए मीनू से लिपट गयी...,"मैं सब कुच्छ बता दूँगी.. थॅंक यू... चल अंजू!"
"पिंकी तूमम्म?......... आओ!" हमें अपने सामने पाकर हॅरी हड़बड़कर कुर्सी से उठ कर खड़ा हो गया.. पर हम उसके सामने बैठे आदमी की वजह से हिचक कर दरवाजे पर ही अटक गये... पिंकी कुच्छ नही बोली...
"आओ ना.. अंदर आओ; ... कैसे आना हुआ?" हॅरी ने खड़े खड़े ही हमें दोबारा टोका...
"मैं सुबह भी आई थी.. तुम मिले ही नही...!" पिंकी सकुचते हुए बोली....
"आ.. हां.. वो आज मैं दिन भर बाहर था.. सॉरी.. बोलो..!"
पिंकी ने हमारी पीठ करके बैठे आदमी को घूर कर देखा..,"कुच्छ नही.. ऐसे ही... कुच्छ काम था...!"
"तो बोलो ना.. अंदर तो आ जाओ.. बाहर क्यूँ खड़ी हो?" हॅरी अभी तक खड़ा था...
"ओके सर.. मैं आपको बाद में फोन कर लूँगा... मेरे ख़याल से मुझे अब चलना चाहिए...!" अचानक दूसरा आदमी अपनी मौजूदगी को हॅरी की निजी जिंदगी में दखल मान कर खड़ा हुआ और हॅरी की तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया...
"ठीक है.. मैं खुद ही आपको फोन करता हूँ...!" हॅरी टेबल के दूसरी तरफ आते हुए बोला.. आदमी को पलट'ता देख हम दरवाजे से अलग हटकर खड़े हो गये... वो आदमी हम दोनो पर सरसरी सी नज़र डालता हुआ दरवाजे से निकल गया...
"ये कौन था?" पिंकी ने उस आदमी के जाते ही हॅरी से पूचछा...
"था कोई.. तुम छ्चोड़ो ना.. अपनी बताओ.. कैसे आना हुआ..." हॅरी ने उसकी बात को टालते हुए कहा..,"बैठो तो पहले..!"
"नही बताओ.. ये तुम्हे 'सर' क्यूँ कह रहा था.. ?" पिंकी अंदर जाकर कुर्सी पर बैठ गयी.. मैने भी अपने लिए कुर्सी ढूँढ ली..
हॅरी वापस जाकर हमारे सामने बैठ गया....,"हा हा हा... क्यूँ? मुझे कोई 'सर' नही बोल सकता क्या?"
"पर ये तो तुमसे काई साल बड़ा था ना?... और पैसे वाला भी लग रहा था.." पिंकी जाने क्या बात लेकर बैठ गयी....
"अच्च्छा जी.. आज के बाद मुझे कोई सर बोलेगा तो मैं उसको मना कर दूँगा.. अब खुश?" हॅरी मज़ाक मज़ाक में उसकी बात को टालते हुए बोला,"अब तो बता दो, आज फिर....? हे हे हे"
"नही!" पिंकी तुनक कर बोली...
"तो फिर?" हॅरी उसका लहज़ा सुनकर संजीदा हो गया...
"ये लो तुम्हारे पैसे!" पिंकी ने अपने साथ लाए पैसे टेबल पर पटक दिए...
"पैसे? कौँसे पैसे यार?" हॅरी अचंभित सा हो गया...
"मुझे नही पता.. दीदी ने देने को बोला था... ऐसे किसी के पैसे नही रखते.. शहर में तुमने इतना खर्चा किया.. दीदी बोल रही....." पिंकी बोलती ही जा रही थी की हॅरी ने अजीब सी नज़रों से उसकी और देखते हुए उसको बीच में ही टोक दिया...,"क्क्या.. तो क्या मैं इतना भी नही कर सकता...?"
"क्यूँ? तुम क्यूँ करोगे ....? तुम कोई मुझसे प्या...." शुक्रा है पिंकी को बोलते बोलते ही समझ में आ गया 'वो' क्या बोलने वाली थी.. वा आधी बात को अपने अंदर ही पी गयी....,"ववो.. कल पापा मुझे 'गुरुकुल' में छ्चोड़ कर आने वाले हैं... !"
"अच्च्छा... अब तुम गुरुकुल में पढ़ोगी.. वेरी गुड!" हॅरी ने जवाब दिया...
"इसमें वेरी गुड क्या है..? हॉस्टिल में रहना पड़ेगा हमें!" पिंकी तुनक कर बोली...
"हां तो अच्च्छा ही है ना!" हॅरी ने मुस्कुराते हुए कहा तो पिंकी ने आँसू टपकाने शुरू कर दिए..,"इसके सामने मेरी बे-इज़्ज़ती क्यूँ कर रहे हो? सीधे सीधे बोल दो ना कि तुम मुझसे प्यार नही करते...!"
पिंकी के मुँह से सीधी और सटीक बात सुनकर हॅरी सकपका सा गया..," ययए.. ये तुम.. ये क्या बात हुई यार?"
"और नही तो क्या? बोलो!"
हॅरी ने हड़बड़ाहट में मेरी तरफ देखा और फिर झेंपटा हुआ सा बोला,"मैं क्या बोलूं यार?"
"यही कि मुझसे प्यार करते हो या नही...!" सुबक्ती हुई पिंकी ने बुरा सा मुँह बनाकर पूचछा ....
शायद हॅरी की झिझक का कारण मैं ही थी..," तुम्हे पता भी है तुम क्या बोल रही हो..? ऐसी बातें ऐसे पूछ्ते हैं क्या?"
"क्यूँ? 'प्यार' करना कोई गंदी बात थोड़े ही है.. और कैसे बोलते हैं बोलो?"
"हां.. मेरा मतलब नही पर... म्मैइन तुमसे अकेले में बात करना चाहता हूँ.." हॅरी मेरी और देख कर पिंकी से बोला... मैने पिंकी की और देखा और उठने लगी.. पर पिंकी ने मेरा हाथ पकड़ लिया..,"अकेले में क्यूँ? क्या करोगे तुम?"
"क्या? म्मैइन क्या करूँगा...? बस बात ही....... और क्या?" हॅरी का चेहरा देखने लायक था...
"तो इसके सामने ही कर लो.. इसको सब पता है...!" पिंकी दनादन बोले जा रही थी....
"क्यूँ दिमाग़ की दही कर रही हो यार.. क्या पता है इसको?.. साफ साफ बोलो ना...!"
"नही.. पहले तुम बताओ मुझसे प्यार करते हो या नही... बस!"
"अब.. अब मैं तुम्हे क्या कहूँ?"
"इसका मतलब तुम मुझसे प्यार नही करते.. तो उस दिन क्यूँ..? तुम्हे देख लूँगी मैं.. चल अंजू!" पिंकी कुर्सी से खड़ी हो गयी..
"सुनो तो...!" हॅरी ने जैसे ही कहा.. मैने पिंकी का हाथ पकड़ लिया...
"छ्चोड़ो मेरा हाथ.. मुझे नही सुन'ना कुच्छ..!" पिंकी ने अपना हाथ च्छुदाने की कोशिश की.. पर च्छुदा नही पाई.. शायद 'वो' 'कोशिश' सिर्फ़ हॅरी को दिखाने के लिए ही कर रही थी.....
"हाँ.. मैं तुमसे प्यार करता हूँ.. पर मुझे नही पता था कि तुम भी....!" हॅरी ने मेरे सामने ही बोल दिया.... और उठ कर इस तरफ आने लगा....
"मैं नही करती तुमसे प्यार? अपने पैसे पाकड़ो और...." पिंकी की बात अधूरी ही रह गयी.. जैसे ही हॅरी ने उसका हाथ थामा.. वह थर थर काँपने लगी...
"मुझे विश्वास नही हो रहा पिंकी कि मैं तुम्हारे मुँह से ये सब सुन रहा हूँ.. जिस बात को मैं साल भर से तुम्हे बोलना चाहता था.. तुमने ऐसे बोल दिया जैसे 'प्यार' कोई बच्चों का खेल हो.. मैं इसीलिए हड़बड़ा गया था.... तुम्हारी कसम.. जब से मैने तुम्हे देखा है.. खास तौर से उस दिन जब..." हॅरी ने बात बीच में ही छ्चोड़ दी... ," हां.. मैं तुमसे प्यार करता हूँ..!"
पिंकी अपनी मोटी मोटी आँखें पूरी खोल कर हॅरी की आँखों में देख रही थी.. उसके रुकते ही वह बोल पड़ी..," मैं कल हॉस्टिल में चली जाउन्गि.. तुम्हे बुरा नही लग रहा....?"
"ववो.. एक मिनिट बाहर जाओगी प्लीज़..." हॅरी ने मुझसे कहा..... मैं तुरंत खड़ी हो गयी...
"न्न्नाही.. एक मिनिट...!" पिंकी की साँसें भारी हो चली थी और गालो पर अचानक च्छा गयी लाली उसके नाम को सार्थक करने लगी थी.. 'गुलबो'!... मैने पलट कर उसकी ओर देखा...
"मुझे अकेली छ्चोड़कर मत जाओ!" पिंकी सहमी हुई सी बोली...
"प्लीज़ यार... बस 2 मिनिट..!" हॅरी ने एक बार फिर कहा तो मैं उन्न दोनो को अकेला छ्चोड़ कर कमरे से बाहर आकर खड़ी हो गयी.....
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पिंकी करीब 15 मिनिट बाद बाहर आई.. मैं उत्सुकता से उसके बाहर आने का इंतजार कर रही थी.... वा नज़रें झुकाए मुझसे आगे जाकर खड़ी हो गयी,"चलो जल्दी...!"
"क्या हुआ?" मैने उसके पास जाकर उसका हाथ पकड़ लिया और उसके साथ साथ मकान से बाहर निकलती हुई बोली....
"कुच्छ नही...!" पिंकी ने बात को टालने की कोशिश की.. पर उसकी आवाज़ चाहक चाहक कर बता रही थी कि कुच्छ तो हुआ है....
"आए प्लीज़.. बता ना..! मुझसे क्यूँ च्छूपा रही है?" मैने एक बार फिर कोशिश की....
"मुझे शर्म आ रही है..." पिंकी लाजाते हुए बोली और अपना हाथ झटक लिया....
"प्लीज़.. बता दे ना.. मेरी भी तो कितनी बातें पता है तुझे....!"
"पहले बता.. मुझे नही चिडाएगी ना...?"
"तेरी कसम! मैं क्यूँ चिड़वँगी..?"
"मीनू को भी नही बताओगि!"
"हां.. नही बताउन्गि किसी को भी.. तेरी कसम...!" मैं व्याकुल हो चुकी थी...
"उसने..." बोलते हुए पिंकी गड़गड़ा उठी..,"उसने मेरी क़िस्सी काट ली...!" पिंकी ने कहते ही अपना चेहरा हाथों में च्छूपा लिया....
"फिर?" मैं उतनी ही व्याकुलता से बोली...
"फिर क्या?... बस!" पिंकी ने कहा....
"बस?" मैने आस्चर्य से पूचछा....
"हां.. बस! ये कम है क्या?" पिंकी मन ही मन नाच सी रही थी....
"नही पर.... क्या सच में उसने और कुच्छ नही किया...?"
"वह और कुच्छ भी करना चाहता था.. पर मैने करने नही दिया.... हे हे हे.." पिंकी हँसने लगी...
"क्या?"
"कह रहा था कि बस एक बार अपने होंटो पर होन्ट रखने दो... मुझे शर्म आ रही थी.. मैने करने नही दिया....!" पिंकी बोलते हुए लजा गयी....
"तो... 'वो' 'क़िस्सी' कहाँ पर दी उसने?" मैं हताश होकर बोली....
"यहाँ!" पिंकी ने अपने होंटो के बिल्कुल पास गाल पर उंगली लगा कर बताया और बुरी तरह झेंप गयी.....
"धात तेरे की... फिर इतनी देर से भाव क्यूँ खा रही थी...मैं तो समझी कि पता नही क्या हो गया...?" मैने निराशा से कहा....
"वो मुझसे प्यार करता है.. ये कोई छ्होटी बात है क्या?"
मैं निरुत्तर हो गयी.......
क्रमशः..........................