hotaks444
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लेकिन ये बात भी अपनी जगह सही थी, कि औरों की तरह उसके भी कुछ सपने तो थे ही, जवान दिल के कुछ अरमान थे जिन्हें वो पूरा करना चाहती है…
लेकिन अपने दिल की बात किसी गैर औरत के सामने कैसे बयान करे कि वो अपने पति के अलावा किसी और के ही सपने देखती है, उसके सपनों का राजकुमार कॉन है…!
वो इसी उधेड़-बुन में उलझी थी, जब काफ़ी देर तक सुषमा ने कुछ नही कहा तो रंगीली ने उसके दिल पर चोट करते हुए कुछ ऐसे अंदाज में कहा, जिसे वो टाल ना सकी –
ओहूओ…बहू रानी, अब नयी नवेली दुल्हन की तरह क्या शरमाना,
मान भी लो, जो मेने कहा है वो सही है…, ये कहकर उसने उसके एक उरोज को प्यार से मसल दिया…!
आअहह…सस्सिईइ… ये सही नही है काकी…! क्योंकि मे जानती हूँ अब उनका मर्द बनाना नामुमकिन है, तो भला ऐसे सपने देखने का क्या लाभ…?
रंगीली – तो इसका मतलब अब आपके दिल में कोई अरमान वाकी ही नही है, कोई सपने ही नही हैं आपके…?
सुष्समा – मेने ऐसा कब कहा..? सपने तो सभी देखते हैं, तो जाहिर सी बात है कि मे भी किसी के सपने देखती हूँ,… पर……..! अपनी बात अधूरी छोड़ कर वो चुप हो गयी…!
रंगीली – पर..? पर क्या बहू रानी.. ? कॉन है वो खुश नसीब जो आपके हसीन सपनों में आकर आपको छेड़ता है… हान्न्न….आअंन्न..बोलो… ये कहकर रंगीली उसकी बगलों में गुद-गुदि करने लगी..….!
लाख अपनी हँसी पर काबू रखने की कोशिश के सुषमा खिल-खिलाकर हंस पड़ी, और उसी खिल-खिलाहट भरी हसी की झोंक में उसके मुँह से निकल गया – आपका बेटा…!
रंगीली अपने मुँह पर हाथ रख कर आश्चर्य जताते हुए बोली – क्या…? मेरा बेटा..? आपका मतलब… शंकर…?
सुषमा ने शर्म से अपना चेहरा अपने दोनो हाथों से ढांप लिया और शरमाते हुए बोली – हां काकी, शंकर भैया मेरे सपनों में आकर रोज़ मुझे सताते हैं,
रंगीली – लेकिन वो तो अभी बच्चा है.. उसके सपने…? मेरा मतलब है, अभी वो ठीक से जवान भी नही हुआ…, औरत मर्द के संबंधों को भी नही समझता… फिर कैसे आपने ये सोच…
सुषमा – जबसे वो इनको कॉलेज के लड़कों से बचाकर लाए थे, उसी दिन से उनकी मर्दानगी मेरे दिलो-दिमाग़ में छप गयी, उनका वो कामदेव जैसा स्वरूप रोज़ मेरे सपनों में आता है,
उनकी वो मासूम सी छवि मेरे मन-मस्तिष्क में बस चुकी है…और अब मे चाहती हूँ, कि इस घर के वारिस के रूप में उनका ही अंश मेरी कोख में आए,
ये कहकर उसने रंगीली के हाथ अपने हाथों में ले लिए और मिन्नतें सी करते हुए बोली
अब मेरा मान-सम्मान आपके हाथ में है काकी, आप चाहो तो मे अपने अधिकार फिर से पा सकती हूँ, वरना तो भगवान ही मालिक है.. पता नही क्या होगा मेरा इस घर में..?
रंगीली कुछ देर चुप रहकर सोचने का नाटक करती रही, सुषमा ने आगे कहा – क्या सोच रही हो काकी, भरोसा रखो, मे ये बात अपने शरीर की हवस मिटाने के लिए नही कह रही,
मे सच में शंकर भैया को चाहने लगी हूँ, और इसलिए मुझे इस घर को वारिस देना है तो यही एक रास्ता है मेरे पास…!
शंकर को मन ही मन अपने होने वाले बच्चे का पिता मान चुकी हूँ मे, उनके अलावा और कोई मेरे सपनों को साकार नही कर सकता…
रंगीली ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा – लेकिन एक वादा आपको भी करना पड़ेगा बड़ी बहू.., इस घर को वारिस देने से पहले, इस घर की कुंजी अपने हाथों में लेनी होगी…!
सुषमा – वो भला क्यों..? जब मे इस घर को इसका वारिस दे दूँगी, तो वैसे ही हवेली में मेरी इज़्ज़त बढ़ जाएगी…! फिर उसकी क्या ज़रूरत रह जाएगी…!
रंगीली – आप बड़ी भोली हैं बड़ी बहू…, मुझे छोटी बहू के चाल-चलन ठीक नही लगते, वो अपने फ़ायदे के लिए किसी भी हद तक गिर सकती है, आप समझ रही हो ना मेरी बात…!
और फिर ये ना हो कि इस घर को वारिस मिलते ही बड़े मालिक और मालकिन की नज़र घूम जाए, इसलिए आपको ये करना ही बेहतर होगा,
आप बहुत सीधी और संस्कारी घर की बेटी हैं, घर की मान मर्यादा का ख्याल है आपको, लेकिन छोटी बहू ऐसी नही है, ये तो आप भी जानती ही होंगी…!
ये दुनिया बड़ी लालची है बहू…, ये बात मे आपके भले के लिए ही कह रही हूँ.. वरना आप ही बताइए मेरा इसमें क्या स्वार्थ हो सकता है भला…!
आपके मिलनसार और सबको सम्मान देने वाले अच्छे स्वाभाव की वजह से मे आपसे थोड़ा हिट रखती हूँ, और कोई बात नही…!
सुषमा – शायद आप ठीक कह रही हैं काकी, मे वादा करती हूँ… समय आने पर मे अपने अधिकार माँग लूँगी…, लेकिन अब आगे सब आपको देखना होगा…!
रंगीली ने मुस्कराते हुए उसकी रसीली चूत को सहला कर कहा – भला मुझे क्या देखना है..? जो भी देखना है वो आपको ही देखना है,
मे तो बस इतना कर सकती हूँ, कि शंकर ज़्यादा से ज़्यादा समय आपके पास बिताए, गौरी बिटिया के साथ खेलने के बहाने आपके करीब रहे, उसको कैसे पटाना है वो आप जानो…!
सुषमा उसकी बात सुनकर शरमा गयी, और अपनी नज़र झुकाकर बोली – ठीक है, आप इतना करदो वो भी बहुत है.., वाकी मे कोशिश कर लूँगी…!
रंगीली अपने मकसद में कामयाब होती जा रही थी, वो जिस काम के लिए सुषमा के पास आई थी वो हो चुका था, अपनी कामयाबी पर मन ही मन बहुत खुश थी वो…
उसी खुशी में गद-गद होते हुए उसने सुषमा की गान्ड के छेद में अपनी एक उंगली घुसाते हुए कहा – अच्छा बहू, जब आप माँ बन जाओगी, तो मुझे क्या इनाम मिलेगा..?
सुषमा ने उसकी कलाई थाम ली और कराहते हुए बोली – आअहह…काकी, अपनी जान से ज़्यादा कुछ कीमती चीज़ नही है मेरे पास, चाहो तो वो माँग लेना, मना नही करूँगी…!
रंगीली ने उसे अपनी छाती से चिपका लिया फिर उसके माथे को चूमकर बोली – जीती रहो बहू रानी, तुमने इतना कह दिया मुझे सब कुछ मिल गया…!
मे एश्वर से प्रार्थना करूँगी कि तुम्हारी गोद जल्दी से जल्दी भर्दे, मे आज से ही शंकर और सलौनी को आपके पास भेजती हूँ,
आप गौरी की जेममेदारी उनको सौंप देना जिससे वो ज़्यादा से ज़्यादा आपके पास ही रहे…!
इतना समझाकर रंगीली ने अपने कपड़े पहने, और वहाँ से चली गई…, उसके पीछे सुषमा शंकर के हसीन सपनों में खोई बहुत देर तक ऐसे ही पड़ी रही…!
सारा काम धाम निपटाने के बाद रंगीली जब अपने कमरे में पहुँची तो वो कुछ थकि हुई सी लग रही थी, सो आते ही बिस्तर पर लेट गयी, फिर ना जाने कब उसकी आँख लग गयी…!
कल रात से वो अनगिनत बार झड चुकी थी, अपने बेटे के साथ तो वो लगातार पानी बहाती रही थी, फिर कुछ समय पहले भी सुषमा को पटाने के बहाने भी उसे वो मज़ा लेना पड़ा था,
उधर स्कूल के बाद लौटते समय भी सलौनी अपने भाई के साथ मज़े लेने के चक्कर में थी, उसने कोशिश भी की लेकिन शंकर ने उसपर ध्यान ही नही दिया..
घर आकर सलौनी अपनी दादी के पास चली गयी, और शंकर अपनी माँ के पास..!
कमरे में घुसते ही उसकी नज़र अपनी माँ पर पड़ी, जो इस समय बेसूध सोई पड़ी थी, उसके कपड़े अस्त-व्यस्त हुए पड़े थे, उसकी ओढनी एक तरफ पड़ी थी, सो उसकी चोली से उसके कसे हुए दूधिया उरोज झाँक रहे थे…
घांघरा भी घुटनों तक चढ़ा हुआ था, माँ की गोरी-गोरी टाँगें और दूध जैसे फक्क गोरे उरोजो को देखते ही शंकर का लंड खड़ा होने लगा…,
उसने अपना स्कूल बॅग एक तरफ रखा, और माँ के बाजू में बैठकर कुछ देर उसे निहारता रहा, फिर धीरे से वो उसकी गोरी-गोरी पिंडलियों पर हाथ रख कर सहलाने लगा…!
शंकर के हाथ के स्पर्श से उसकी आँख खुल गयी, उन्नीदी आँखों से उसकी तरफ देखा, फिर मुस्कुरा कर उसे अपने सीने से लगा लिया और उसके गाल को सहला कर बोली –
आ गया मेरा लाल.., चल तुझे खाना दे दूं, भूख लगी होगी..!
शंकर को तो इस समय किसी और चीज़ की भूख थी, अपनी लालची नज़रों को माँ की चोली में कसे दूधिया उरोजो की घाटी पर जमाए हुए बोला…
खाने से पहले थोड़ी देर अपना दूध पिलादे माँ.., मेरी अच्छी माँ, ये कहकर उसने उसकी एक चुचि को अपने हाथ में लेकर दबा दिया…!
रंगीली ने प्यार से उसके गाल पर एक चपत लगाई, फिर मुस्कुरा कर उसका हाथ हटाते हुए बोली – वो सब रात में.., अभी मेरा मन नही है, रात में तूने बहुत थका दिया था मुझे, उपर से दिनभर का काम…!
ये कहकर वो उसके लिए खाना लेने उठ खड़ी हुई, शंकर अपना लंड मसोस कर बेमन से कपड़े बदल कर खाना खाने बैठ गया…!
खाना खिलाते समय रंगीली ने उसके बालों को सहलाते हुए कहा – बेटा अपना स्कूल का काम ख़तम करके तुम दोनो भाई-बेहन बड़ी बहू के पास चले जाया करो,
थोड़ा गौरी बिटिया के साथ खेल लिया करो, वो भी अब बड़ी हो रही है, उसे भी खेलने के लिए किसी का साथ चाहिए..,
अपनी माँ की बात मानकर उसने हामी भर दी…, और उसी शाम अपना पढ़ाई का
काम ख़तम करके दोनो भाई-बेहन सुषमा के पास चले गये…!
शंकर को देख कर सुषमा के मन की मुरझाई हुई कली खिल उठी,
उसने गौरी को सलौनी के साथ खेलने के लिए कर दिया, और शंकर को लेकर काम के बहाने से अपने कमरे में चली गयी…!
ऐसा नही था कि सुषमा रंगीली से कम सुंदर थी, वो एक निहायत ही खूबसूरत जवानी से लदी फदि भरपूर औरत थी,
और ऐसा भी नही था कि शंकर को वो अच्छी नही लगती थी, लेकिन अब तक उसने उसे इस नज़र से कभी नही देखा था…!
अपनी माँ के बाद उसे कोई पसंद थी तो वो सुषमा ही थी, लेकिन एक मालिक और नौकर वाली दीवार भी थी, जिसे वो कभी लाँघना नही चाहता था…!
यही कारण था कि जब भी वो उसके नज़दीक जाता था, एक आदर और सम्मान के साथ, जिससे उसके सामने हमेशा उसकी नज़र झुकी हुई रहती…,
सुषमा उसे लेकर अपने कमरे में आई, आज उसने जानबूझकर एक बहुत ही डीप गले का झीने से कपड़े का स्लीवेलेस्स ब्लाउस पहना था…,
उसके कंधे तक उसकी मांसल गोरी-गोरी मरमरी बाहें बहुत ही सुंदर लग रही थी…, झीने कपड़े से उसकी काले रंग की ब्रा साफ दिखाई दे रही थी…
कुछ इधर उधर के काम में अपने साथ लगाकर उसने शंकर से करवाए, फिर वो उसे लेकर पलंग पर बैठ गयी…!
सुषमा – आओ शंकर भैया, थोडा बैठते हैं, मे तो भाई थक गयी..,
शनकर – कोई बात नही भाभी, आप बैठकर मुझे काम बताती जाइए मे कर लूँगा, आपको साथ में लगने की कोई ज़रूरत नही है…
सुषमा – अरे छोड़ो उसे, ऐसा कुछ ज़्यादा भी काम नही है, आओ थोड़ा मेरे पास बैठो, ये कहकर उसने उसका हाथ पकड़ा और पलंग पर बैठ गयी…
शंकर वहीं पास में खड़ा रहा…, वो उसके साथ पलंग पर बैठने में हिचक महसूस कर रहा था…
लेकिन सुषमा ने उसे ज़बरदस्ती खींचते हुए कहा – अरे बैठो ना, क्या हुआ…
वो हिचकते हुए बोला – वो..वू..भाभी मे आपके साथ…पलंग पर कैसे…
सुषमा ने थोड़ा हाथ झटक कर उसे बैठने का इशारा करते हुए कहा – क्यों…क्यों नही बैठ सकते मेरे पास…, आओ कोई बात नही.., बैठो..
लेकिन अपने दिल की बात किसी गैर औरत के सामने कैसे बयान करे कि वो अपने पति के अलावा किसी और के ही सपने देखती है, उसके सपनों का राजकुमार कॉन है…!
वो इसी उधेड़-बुन में उलझी थी, जब काफ़ी देर तक सुषमा ने कुछ नही कहा तो रंगीली ने उसके दिल पर चोट करते हुए कुछ ऐसे अंदाज में कहा, जिसे वो टाल ना सकी –
ओहूओ…बहू रानी, अब नयी नवेली दुल्हन की तरह क्या शरमाना,
मान भी लो, जो मेने कहा है वो सही है…, ये कहकर उसने उसके एक उरोज को प्यार से मसल दिया…!
आअहह…सस्सिईइ… ये सही नही है काकी…! क्योंकि मे जानती हूँ अब उनका मर्द बनाना नामुमकिन है, तो भला ऐसे सपने देखने का क्या लाभ…?
रंगीली – तो इसका मतलब अब आपके दिल में कोई अरमान वाकी ही नही है, कोई सपने ही नही हैं आपके…?
सुष्समा – मेने ऐसा कब कहा..? सपने तो सभी देखते हैं, तो जाहिर सी बात है कि मे भी किसी के सपने देखती हूँ,… पर……..! अपनी बात अधूरी छोड़ कर वो चुप हो गयी…!
रंगीली – पर..? पर क्या बहू रानी.. ? कॉन है वो खुश नसीब जो आपके हसीन सपनों में आकर आपको छेड़ता है… हान्न्न….आअंन्न..बोलो… ये कहकर रंगीली उसकी बगलों में गुद-गुदि करने लगी..….!
लाख अपनी हँसी पर काबू रखने की कोशिश के सुषमा खिल-खिलाकर हंस पड़ी, और उसी खिल-खिलाहट भरी हसी की झोंक में उसके मुँह से निकल गया – आपका बेटा…!
रंगीली अपने मुँह पर हाथ रख कर आश्चर्य जताते हुए बोली – क्या…? मेरा बेटा..? आपका मतलब… शंकर…?
सुषमा ने शर्म से अपना चेहरा अपने दोनो हाथों से ढांप लिया और शरमाते हुए बोली – हां काकी, शंकर भैया मेरे सपनों में आकर रोज़ मुझे सताते हैं,
रंगीली – लेकिन वो तो अभी बच्चा है.. उसके सपने…? मेरा मतलब है, अभी वो ठीक से जवान भी नही हुआ…, औरत मर्द के संबंधों को भी नही समझता… फिर कैसे आपने ये सोच…
सुषमा – जबसे वो इनको कॉलेज के लड़कों से बचाकर लाए थे, उसी दिन से उनकी मर्दानगी मेरे दिलो-दिमाग़ में छप गयी, उनका वो कामदेव जैसा स्वरूप रोज़ मेरे सपनों में आता है,
उनकी वो मासूम सी छवि मेरे मन-मस्तिष्क में बस चुकी है…और अब मे चाहती हूँ, कि इस घर के वारिस के रूप में उनका ही अंश मेरी कोख में आए,
ये कहकर उसने रंगीली के हाथ अपने हाथों में ले लिए और मिन्नतें सी करते हुए बोली
अब मेरा मान-सम्मान आपके हाथ में है काकी, आप चाहो तो मे अपने अधिकार फिर से पा सकती हूँ, वरना तो भगवान ही मालिक है.. पता नही क्या होगा मेरा इस घर में..?
रंगीली कुछ देर चुप रहकर सोचने का नाटक करती रही, सुषमा ने आगे कहा – क्या सोच रही हो काकी, भरोसा रखो, मे ये बात अपने शरीर की हवस मिटाने के लिए नही कह रही,
मे सच में शंकर भैया को चाहने लगी हूँ, और इसलिए मुझे इस घर को वारिस देना है तो यही एक रास्ता है मेरे पास…!
शंकर को मन ही मन अपने होने वाले बच्चे का पिता मान चुकी हूँ मे, उनके अलावा और कोई मेरे सपनों को साकार नही कर सकता…
रंगीली ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा – लेकिन एक वादा आपको भी करना पड़ेगा बड़ी बहू.., इस घर को वारिस देने से पहले, इस घर की कुंजी अपने हाथों में लेनी होगी…!
सुषमा – वो भला क्यों..? जब मे इस घर को इसका वारिस दे दूँगी, तो वैसे ही हवेली में मेरी इज़्ज़त बढ़ जाएगी…! फिर उसकी क्या ज़रूरत रह जाएगी…!
रंगीली – आप बड़ी भोली हैं बड़ी बहू…, मुझे छोटी बहू के चाल-चलन ठीक नही लगते, वो अपने फ़ायदे के लिए किसी भी हद तक गिर सकती है, आप समझ रही हो ना मेरी बात…!
और फिर ये ना हो कि इस घर को वारिस मिलते ही बड़े मालिक और मालकिन की नज़र घूम जाए, इसलिए आपको ये करना ही बेहतर होगा,
आप बहुत सीधी और संस्कारी घर की बेटी हैं, घर की मान मर्यादा का ख्याल है आपको, लेकिन छोटी बहू ऐसी नही है, ये तो आप भी जानती ही होंगी…!
ये दुनिया बड़ी लालची है बहू…, ये बात मे आपके भले के लिए ही कह रही हूँ.. वरना आप ही बताइए मेरा इसमें क्या स्वार्थ हो सकता है भला…!
आपके मिलनसार और सबको सम्मान देने वाले अच्छे स्वाभाव की वजह से मे आपसे थोड़ा हिट रखती हूँ, और कोई बात नही…!
सुषमा – शायद आप ठीक कह रही हैं काकी, मे वादा करती हूँ… समय आने पर मे अपने अधिकार माँग लूँगी…, लेकिन अब आगे सब आपको देखना होगा…!
रंगीली ने मुस्कराते हुए उसकी रसीली चूत को सहला कर कहा – भला मुझे क्या देखना है..? जो भी देखना है वो आपको ही देखना है,
मे तो बस इतना कर सकती हूँ, कि शंकर ज़्यादा से ज़्यादा समय आपके पास बिताए, गौरी बिटिया के साथ खेलने के बहाने आपके करीब रहे, उसको कैसे पटाना है वो आप जानो…!
सुषमा उसकी बात सुनकर शरमा गयी, और अपनी नज़र झुकाकर बोली – ठीक है, आप इतना करदो वो भी बहुत है.., वाकी मे कोशिश कर लूँगी…!
रंगीली अपने मकसद में कामयाब होती जा रही थी, वो जिस काम के लिए सुषमा के पास आई थी वो हो चुका था, अपनी कामयाबी पर मन ही मन बहुत खुश थी वो…
उसी खुशी में गद-गद होते हुए उसने सुषमा की गान्ड के छेद में अपनी एक उंगली घुसाते हुए कहा – अच्छा बहू, जब आप माँ बन जाओगी, तो मुझे क्या इनाम मिलेगा..?
सुषमा ने उसकी कलाई थाम ली और कराहते हुए बोली – आअहह…काकी, अपनी जान से ज़्यादा कुछ कीमती चीज़ नही है मेरे पास, चाहो तो वो माँग लेना, मना नही करूँगी…!
रंगीली ने उसे अपनी छाती से चिपका लिया फिर उसके माथे को चूमकर बोली – जीती रहो बहू रानी, तुमने इतना कह दिया मुझे सब कुछ मिल गया…!
मे एश्वर से प्रार्थना करूँगी कि तुम्हारी गोद जल्दी से जल्दी भर्दे, मे आज से ही शंकर और सलौनी को आपके पास भेजती हूँ,
आप गौरी की जेममेदारी उनको सौंप देना जिससे वो ज़्यादा से ज़्यादा आपके पास ही रहे…!
इतना समझाकर रंगीली ने अपने कपड़े पहने, और वहाँ से चली गई…, उसके पीछे सुषमा शंकर के हसीन सपनों में खोई बहुत देर तक ऐसे ही पड़ी रही…!
सारा काम धाम निपटाने के बाद रंगीली जब अपने कमरे में पहुँची तो वो कुछ थकि हुई सी लग रही थी, सो आते ही बिस्तर पर लेट गयी, फिर ना जाने कब उसकी आँख लग गयी…!
कल रात से वो अनगिनत बार झड चुकी थी, अपने बेटे के साथ तो वो लगातार पानी बहाती रही थी, फिर कुछ समय पहले भी सुषमा को पटाने के बहाने भी उसे वो मज़ा लेना पड़ा था,
उधर स्कूल के बाद लौटते समय भी सलौनी अपने भाई के साथ मज़े लेने के चक्कर में थी, उसने कोशिश भी की लेकिन शंकर ने उसपर ध्यान ही नही दिया..
घर आकर सलौनी अपनी दादी के पास चली गयी, और शंकर अपनी माँ के पास..!
कमरे में घुसते ही उसकी नज़र अपनी माँ पर पड़ी, जो इस समय बेसूध सोई पड़ी थी, उसके कपड़े अस्त-व्यस्त हुए पड़े थे, उसकी ओढनी एक तरफ पड़ी थी, सो उसकी चोली से उसके कसे हुए दूधिया उरोज झाँक रहे थे…
घांघरा भी घुटनों तक चढ़ा हुआ था, माँ की गोरी-गोरी टाँगें और दूध जैसे फक्क गोरे उरोजो को देखते ही शंकर का लंड खड़ा होने लगा…,
उसने अपना स्कूल बॅग एक तरफ रखा, और माँ के बाजू में बैठकर कुछ देर उसे निहारता रहा, फिर धीरे से वो उसकी गोरी-गोरी पिंडलियों पर हाथ रख कर सहलाने लगा…!
शंकर के हाथ के स्पर्श से उसकी आँख खुल गयी, उन्नीदी आँखों से उसकी तरफ देखा, फिर मुस्कुरा कर उसे अपने सीने से लगा लिया और उसके गाल को सहला कर बोली –
आ गया मेरा लाल.., चल तुझे खाना दे दूं, भूख लगी होगी..!
शंकर को तो इस समय किसी और चीज़ की भूख थी, अपनी लालची नज़रों को माँ की चोली में कसे दूधिया उरोजो की घाटी पर जमाए हुए बोला…
खाने से पहले थोड़ी देर अपना दूध पिलादे माँ.., मेरी अच्छी माँ, ये कहकर उसने उसकी एक चुचि को अपने हाथ में लेकर दबा दिया…!
रंगीली ने प्यार से उसके गाल पर एक चपत लगाई, फिर मुस्कुरा कर उसका हाथ हटाते हुए बोली – वो सब रात में.., अभी मेरा मन नही है, रात में तूने बहुत थका दिया था मुझे, उपर से दिनभर का काम…!
ये कहकर वो उसके लिए खाना लेने उठ खड़ी हुई, शंकर अपना लंड मसोस कर बेमन से कपड़े बदल कर खाना खाने बैठ गया…!
खाना खिलाते समय रंगीली ने उसके बालों को सहलाते हुए कहा – बेटा अपना स्कूल का काम ख़तम करके तुम दोनो भाई-बेहन बड़ी बहू के पास चले जाया करो,
थोड़ा गौरी बिटिया के साथ खेल लिया करो, वो भी अब बड़ी हो रही है, उसे भी खेलने के लिए किसी का साथ चाहिए..,
अपनी माँ की बात मानकर उसने हामी भर दी…, और उसी शाम अपना पढ़ाई का
काम ख़तम करके दोनो भाई-बेहन सुषमा के पास चले गये…!
शंकर को देख कर सुषमा के मन की मुरझाई हुई कली खिल उठी,
उसने गौरी को सलौनी के साथ खेलने के लिए कर दिया, और शंकर को लेकर काम के बहाने से अपने कमरे में चली गयी…!
ऐसा नही था कि सुषमा रंगीली से कम सुंदर थी, वो एक निहायत ही खूबसूरत जवानी से लदी फदि भरपूर औरत थी,
और ऐसा भी नही था कि शंकर को वो अच्छी नही लगती थी, लेकिन अब तक उसने उसे इस नज़र से कभी नही देखा था…!
अपनी माँ के बाद उसे कोई पसंद थी तो वो सुषमा ही थी, लेकिन एक मालिक और नौकर वाली दीवार भी थी, जिसे वो कभी लाँघना नही चाहता था…!
यही कारण था कि जब भी वो उसके नज़दीक जाता था, एक आदर और सम्मान के साथ, जिससे उसके सामने हमेशा उसकी नज़र झुकी हुई रहती…,
सुषमा उसे लेकर अपने कमरे में आई, आज उसने जानबूझकर एक बहुत ही डीप गले का झीने से कपड़े का स्लीवेलेस्स ब्लाउस पहना था…,
उसके कंधे तक उसकी मांसल गोरी-गोरी मरमरी बाहें बहुत ही सुंदर लग रही थी…, झीने कपड़े से उसकी काले रंग की ब्रा साफ दिखाई दे रही थी…
कुछ इधर उधर के काम में अपने साथ लगाकर उसने शंकर से करवाए, फिर वो उसे लेकर पलंग पर बैठ गयी…!
सुषमा – आओ शंकर भैया, थोडा बैठते हैं, मे तो भाई थक गयी..,
शनकर – कोई बात नही भाभी, आप बैठकर मुझे काम बताती जाइए मे कर लूँगा, आपको साथ में लगने की कोई ज़रूरत नही है…
सुषमा – अरे छोड़ो उसे, ऐसा कुछ ज़्यादा भी काम नही है, आओ थोड़ा मेरे पास बैठो, ये कहकर उसने उसका हाथ पकड़ा और पलंग पर बैठ गयी…
शंकर वहीं पास में खड़ा रहा…, वो उसके साथ पलंग पर बैठने में हिचक महसूस कर रहा था…
लेकिन सुषमा ने उसे ज़बरदस्ती खींचते हुए कहा – अरे बैठो ना, क्या हुआ…
वो हिचकते हुए बोला – वो..वू..भाभी मे आपके साथ…पलंग पर कैसे…
सुषमा ने थोड़ा हाथ झटक कर उसे बैठने का इशारा करते हुए कहा – क्यों…क्यों नही बैठ सकते मेरे पास…, आओ कोई बात नही.., बैठो..