hotaks444
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शंकर उसके मुँह की तरफ देखता ही रह गया, वो सोचने लगा कि अब ये शैतान की नानी आगे क्या बोलने वाली है…सो पुच्छ ही बैठा.. क्यों चली गयी..?
सलौनी मंद-मंद मुस्कराते हुए अपने भाई के बाजू के सख़्त मसल्स को दोनो हाथों में लेकर दबाते हुए बोली – मेरे भाई की मर्दानगी पर मर मिटी है वो…
ये कहकर वो खिल-खिला कर वहाँ से भाग गयी, शंकर अपना थप्पड़ दिखाते हुए उसके पीछे-पीछे दौड़ा…!
रुक जा शैतान की अम्मा, बहुत बातें बनाने लगी है तू, ठहर अभी खबर लेता हूँ तेरी… !
वो खिल-खिलाती हुई किसी चाचल तितली की तरह इधर से उधर उससे बचती बचाती भाग रही थी, शंकर उसके पीछे-पीछे था…!
फिर आख़िर में वो तक कर एक जगह रुक गयी और अपने घुटनों पर हाथ टिका कर झुक कर हाँफने लगी,
शंकर ने उसे पीछे से उसकी कमर में एक बाजू डालकर किसी फूल की तरह उठा लिया और उसे अपने कंधे पर डालकर उसके चुतड़ों पर प्यार भरे थप्पड़ लगाने लगा…
वो अपने पैर फड़फड़ाकर उससे छूटने का नाटक करने लगी, लेकिन अपनी बाजू उसने उसके गले में लपेटे हुए वो उस’से और ज़्यादा चिपक गयी…!
अपनी बेहन के कच्चे अमरूदो का एहसास अपने कंधे पर महसूस करके शंकर को पहली बार ये एहसास हुआ कि उसकी बेहन अब बच्ची नही है, वो अब कच्ची कली से फूल बनने की राह में है…!
अनायास ही उसका हाथ थप्पड़ देने की वजाय उसके कोमल चुतड़ों को सहलाने लगा, जो अब थोड़े से चौड़े और पीछे को निकल आए थे..,
सलौनी अपने भाई के बदन की रगड़ और उसके गान्ड को सहलाने की वजह से मस्ती में भर उठी,
मचल कर वो नीचे की तरफ खिसकी और उसके गले में झूल गयी.., इससे पहले की शंकर उसे नीचे उतारता, उसने अपने भाई के गाल को चूम लिया…!
उसकी इस हरकत से शंकर सन्न रह गया, और वो चंचल तितली हस्ती हुई वहाँ से फ़ुउरर्र्र्ररर… हो गयी….!
वो अपने गाल पर हाथ रखकर सहलाता ही रह गया………!
उधर सुप्रिया जब हवेली के चौक में पहुँची तो वहाँ उसकी बेहन प्रिया और उसकी माँ तखत पर बैठी बातें कर रहीं थी, साइड में दोनो बहुएँ खड़ी थी..
औरतों की बातों का कोई ओर-छोर तो होता नही बात में से दूसरी बात निकल आती है.., एक बार इनको खाना ना मिले तो भी चलेगा, लेकिन बातें….
अब भी उनकी बातें वही थी जिनका केंद्र बिंदु वो घटना ही थी, प्रिया बढ़ा-चढ़कर शंकर की वीरता का बखान कर रही थी, जिसका उन तीनों पर मिला जुला असर था…
जहाँ सेठानी अभी भी एक नौकर द्वारा अपने मालिक की बेटी की जान बचाना उसका फ़र्ज़ बता रही थी, वहीं सुषमा शंकर को देवता का स्वरूप मानकर चल रही थी,
वो मन ही मन अपने आप पर बड़ा गर्व महसूस कर रही थी, शंकर जैसे वीर के बच्चे की माँ बनने का उसे सौभाग्य मिल रहा है...., वो मन ही मन ईश्वर और रंगीली का धन्यवाद कर रही थी…!
वहीं लाजो को शंकर जैसे ताक़तवर नौजवान के लंड को लेने की लालसा और बल्बति होने लगी, क्योंकि अब वो अपने ससुर के लंड से संतुष्ट नही हो पा रही थी,
और वैसे भी ये आश् तो वो दोनो ही छोड़ चुके थे कि अब उनके वीर्य में बच्चा पैदा करने की शक्ति बची भी है या नही…!
लाजो को कोई ठोस प्लान बनता नज़र नही आ रहा था, उसके रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा थी शंकर की माँ रंगीली…,
उसका नाम दिमाग़ में आते ही, उसको एक झटका सा लगा, उसने तय कर लिया कि अब वो कैसे भी करके रंगीली को पटाने के कोशिश करेगी, जिसने अपने ससुर से संबंध बनाने के लिए उसे उकसाया था…!
अब तो शंकर बड़ा भी हो गया है, तो अब अगर थोड़ी कोशिश की जाए तो शायद बात बन सकती है,
इस प्लान को फाइनल करते हुए उसने रंगीली को शीशे में ढालने की ठान ली……!
सुप्रिया के वहाँ पहुँचते ही सबकी सोचों और बातों पर विराम लग गया…
उसकी चाल में लंगड़ाहट थी, जिसे देख कर सेठानी ने उससे पुछा – तू कहाँ चली गयी थी, कब्से तेरी राह देख रहे हैं हम सब…, और इस तरह लंगड़ा कर क्यों चल रही है…?
सुप्रिया – रंगीली काकी के पास थी, शंकर के हाल चाल पुछने गयी थी.., और खेतों में थोड़ा पैर मूड गया था, तो उन्होने गरम तेल की मालिश भी करदी…, क्यों कोई काम था.,..?
सेठानी – अरी, तुझे कितनी बार कहा है, नौकरों को ज़्यादा सिर चढ़ाने की दरकार नही है, उनपर अपना हुकुम चलाया जाता है समझी… लेकिन मेरी ये बात कभी तेरे मगज में नही घुसी…!
अपनी माँ की बातों पर ध्यान देने की वजाय, प्रिया ने पुछा – कही चोट तो नही लगी उसे…?
सुप्रिया – शरीर पर तो कहीं चोट नही है, पर माँ की बातों से शायद उनकी आत्मा पर ज़रूर चोट लग सकती है…!
सेठानी – ये तू अपनी माँ से किस तरह से बात कर रही है, मुझे दुनियादारी मत सीखा, सब जानती हूँ इन नौकरों की जात, ये ऐसे ही कामों के लिए होते हैं…!
प्रिया – बस करो माँ, शायद तुम्हें ये अंदाज़ा नही है कि उसने कितना बड़ा अहसान किया हैं हमारे उपर…!
आपकी बेटी की जान बचाने के लिए साक्षात मौत से भिड़ गया था वो, जिस सांड़ पर लाठियों की मार से कोई फरक नही पड़ता है, उसे उसने अपनी ताक़त के बल पर धूल चटा दी थी…!
उसका अहसान मानने की वजाय कम से कम इस तरह की जली कटी बातें तो मत करो..!
सेठानी – ये तू कह रही है..? कल तक तो तू मुझसे भी ज़्यादा इन लोगों से चिढ़ती थी.
प्रिया – वो मेरी सबसे बड़ी भूल थी, नौकर भी इंसान होते हैं, और फिर शंकर तो हमारा खास नौकर है, पिताजी ने उसे ऐसे ही देखभाल का भार नही सौंप दिया है…
ये दूसरा चान्स है जब उसने हम लोगों पर इतना बड़ा अहसान किया है, हमें उसकी इज़्ज़त करनी चाहिए…!
इस तरह की बहस के बाद भी जब सेठानी के तेवर नही बदले तो एक-एक करके वो चारों उसे अकेली छोड़कर चली गयी, वो अकेली वहाँ बैठी बुद-बुदाती रही…!
वहाँ से निकल कर प्रिया ने सुप्रिया का हाथ पकड़ा और बोली – चल मेरे साथ…
सुप्रिया – कहाँ..?
प्रिया – मुझे शंकर से मिलना है अभी…, कहाँ मिलेगा वो..?
सुप्रिया – मे तो उसे अपने घर में ही छोड़कर आई थी, अब पता नही कहाँ होगा..?
प्रिया लगभग दौड़ती हुई हवेली के पीछे शंकर के घर की तरफ चल दी.., सुप्रिया मुस्कुराती हुई अपने कमरे में आ गई…!
वो आज बहुत खुश थी, थोड़ी चाल में लंगड़ाहट थी, लेकिन उसकी उसे कोई परवाह नही थी, आज उसने वो पा लिया था जिसे पाने का हक़ हर औरत को होता है…!
वो इस बात से भी ज़्यादा खुश थी कि शंकर ने हर संभव उसका साथ देते रहने का वचन भी दे दिया है.., अब वो अपने गान्डु पति को वजाय कोसने के धन्यवाद दे रही थी…!
उधर प्रिया दौड़ती हुई जब शंकर के घर पहुँची तो वहाँ उसे बस सलौनी मिली, जब उसने शंकर के बारे में पुछा तो उसने बताया कि वो तो अभी-अभी खेतों की तरफ निकल गया…!
वो वहाँ एक पल भी नही रुकी, और लगभग दौड़ते हुए खेतों की तरफ चल दी, पीछे से सलौनी के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान आ गयी, और अपने ही आप से बुद बुदाति हुई बोली…
लो एक गयी, अब दूसरी आ गयी, वाह भैया… क्या किस्मत पाई है तूने…!
उधर प्रिया जैसे ही हवेली के मेन गेट से बाहर आई, उसे कुछ दूर शंकर किसी शेर जैसी चाल से चलता हुआ खेतों की तरफ जाता दिखाई दिया…!
उसने अपनी गति और बढ़ा दी, वो इस समय एक लोंग स्कर्ट और टाइट सा कुर्ता पहने हुए थी, जिसमें दौड़ने की वजह से उसके 34 डी साइज़ के बूब्स उपर नीचे हो रहे थे…!
उसके मदमस्त यौवन को यूँ छलकते देख कर लोगों की नज़रें उस पर जम गयी.., कुछ देर में ही वो उसके अत्यंत नज़दीक पहुँच गयी, और पीछे से उनसे पुकारा – शंकर…, रूको…!
प्रिया की आवाज़ कानों में पड़ते ही वो वहीं रुक गया, मुड़कर पीछे देखा तो वो उसके पीछे दौड़ी चली आ रही थी, शंकर की नज़र उसकी हिलती हुई चुचियों पर जम गयी…!
वो उसके सामने जाकर अपने घुटनों पर हाथ रख कर झुक गयी, और लंबी-लंबी साँसें भरने लगी…
झुकने से उसके गोल-गोल दूधिया उभर कुर्ते के चौड़े गले से काफ़ी अंदर तक अपनी भौगौलिक स्थिति को दर्शाने लगे…,
उसकी एकदम गोल-गोल, मोटी और गोरी-चिटी चुचियों की छटा देखकर शंकर का लंड अपना सिर उठाने लगा, उसने उससे पुछा –
क्या हुआ दीदी, इस तरह से भागते हुए क्यों आ रही हो..?
प्रिया ने ऐसे ही झुके हुए ही अपना मुँह शंकर की तरफ उठाया, उसे अपने उभारों को ताकते हुए देख कर वो अंदर तक सिहर गयी, उसकी नज़रों का स्पर्श पाकर उसके निपल कड़क हो उठे…!
उसने मन ही मन मुस्कराते हुए कहा – मे तुम्हें ही ढूँढ रही थी, कहाँ जा रहे हो…?
शंकर – क्यों .. कोई काम था मुझसे…?
वो सीधी खड़ी हुई, और हल्की सी मुस्कान के साथ उसने उसका हाथ पकड़ा और बोली – चलो मेरे साथ, तुमसे मुझे कुच्छ बात करनी है, मेरी जान बचाने के बाद तो तुम दिखे ही नही…!
वो उसके पीछे-पीछे वापस हवेली के अंदर चल दिया…!
प्रिया उसकी हवेली के अंदर ले जाने की वजाय, अपनी तीन मंज़िला हवेली की छत पर ले गयी, जहाँ एक लंबा-चौड़ा तखत पड़ा हुआ था, उसने उसे उसपर बिठाया, और खुद उसके बगल में बैठ गयी…!
अभी भी उसकी साँसें फूली हुई थी, जिससे उसके वक्ष अभी भी उपर नीचे हो रहे थे…!
शंकर ने उसके सुर्ख पड़ चुके चेहरे पर नज़र जमाकर कहा – हां दीदी, बोलिए क्या बातें करनी थी आपको मुझसे…?
प्रिया ने बड़े प्यार से शंकर का हाथ अपने हाथ में लिया, और उसे दूसरे हाथ से सहलाते हुए बोली – तुमने मेरी जान बचाकर बहुत बड़ा अहसान किया है शंकर,
मे आज तक दूसरे नौकरों की तरह तुम्हें और तुम्हारी माँ को बुरा भला बोलती रहती थी, इसके बबजूद भी तुमने अपनी जान जोखिम में डालकर मुझे बचाया…
उसके लिए मे तुम्हें थॅंक्स भी नही कह पाई, हो सके तो मेरी ग़लतियों के लिए मुझे माफ़ कर देना मेरे भाई, ये कहकर उसने अपना सिर उसके कंधे से टिका लिया !
शंकर तो बस मूक्दर्शक बना उसके सुंदर गोल-मटोल चेहरे को ही निहारे जा रहा था, उसकी बात सुनकर उसने अपना दूसरा हाथ उसके हाथों पर रखा और शालीनता भरे स्वर में बोला –
ये तो मेरा फ़र्ज़ था दीदी, और आपकी वो डाँट-डपट एक मालकिन की थी अपने नौकर के लिए, इसमें आपको माफी माँगने की कोई ज़रूरत नही है…!
आप सच मानो, मेने आपकी बात का कभी बुरा नही माना, क्योंकि मे अपनी हैसियत से बफ़िक हूँ…!
प्रिया उसके और नज़दीक खिसक गयी, अब दोनो की जांघें आपस में जुड़ चुकी थी, फिर उसने झिझकते हुए शंकर के गाल पर एक किस कर लिया, और खुद ही शर्म से नज़रें नीची करके बोली –
आज मेरी नज़रों में तुम्हारी हैसियत बहुत बढ़ गयी है शंकर, बहुत उँचा कद हो गया है तुम्हारा.., हो सके तो मेरी पुरानी ग़लतियों को भूलकर मुझे माफ़ कर देना…!
अपने गाल पर प्रिया के सुर्ख होंठों का स्पर्श पाकर शंकर का शरीर अंदर तक झन-झना गया, वो उसके चेहरे पर अपनी नज़रें जमाए बोला –
प्लीज़ दीदी, अब आप यूँ बार-बार मुझसे माफी मत मांगिए, मेरे दिल में आपके लिए कभी कोई दुश्विचार नही थे…!
ये कहकर शंकर अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ, और बोला – आप अपना ख्याल रखिए, मे चलता हूँ…!
प्रिया ने उसका हाथ पकड़ लिया, शंकर ने पलट कर उसकी तरफ देखा, वो भी उसके सामने अपनी नज़रें झुकाए खड़ी थी, अपनी तेज-तेज चलती साँसों पर काबू पाने की कोशिश करते हुए बोली –
कल में अपने घर जा रही हूँ, क्या तुम मेरे यहाँ घूमने आओगे…?
मालिक की अग्या मिल गयी तो ज़रूर आउन्गा.., ये कहकर वो वहाँ से चला गया, पीछे प्रिया उसे जाते हुए देखती रही…! वो उसकी मर्दानगी पर मर मिटी थी,
दूसरे दिन प्रिया अपने घर के लिए विदा हो गयी, सुप्रिया ने कुछ दिन रहने का फ़ैसला लिया, और उसने अपनी बेहन के साथ जाने से मना कर दिया…!
उन दोनो की ससुराल एक ही शहर में हैं, दोनो के घर भी एक दूसरे से ज़्यादा दूरी पर नही है,
प्रिया अपनी खुद की गाड़ी से आई थी ड्राइवर के साथ और सुप्रिया भी उसी के साथ आई थी…
जाने से पहले प्रिया ने अपने पिताजी से कहा – पिताजी, सुप्रिया को अकेला मत भेजना, शंकर उसे छोड़ने चला जाएगा, इसी बहाने मेरा घर भी देख लेगा, क्योंकि वो अब इतना ज़िम्मेदार हो गया है कि सबका ख़याल रख सके, तो उसका आना-जाना भी लगा ही रहेगा…!
लाला जी को अपनी बेटी की बात जँची, उन्हें शंकर की क्षमताओं पर अटूट विश्वास होता जा रहा था…, वहीं अपने सगे बेटे कल्लू पर से उठता जा रहा था…!
कल्लू की हरकतों से दिनो-दिन वो खीजते जा रहे थे, अब उन्हें सुषमा का फ़ैसला सही लगने लगा था, और दिल से वो सुषमा को ये ज़िम्मेदारी सौंपने को तैयार हो गये…!
उन्होने वकील को बुलाकर सारे दस्तावेज़ पर साइन करके, अपनी सारी मिल्कियत की मालिक सुषमा को बना दिया, और खुद ने उसके रख रखाब का जिम्मा जैसे पहले था ज्यों का त्यों ही रहने दिया…!
सलौनी मंद-मंद मुस्कराते हुए अपने भाई के बाजू के सख़्त मसल्स को दोनो हाथों में लेकर दबाते हुए बोली – मेरे भाई की मर्दानगी पर मर मिटी है वो…
ये कहकर वो खिल-खिला कर वहाँ से भाग गयी, शंकर अपना थप्पड़ दिखाते हुए उसके पीछे-पीछे दौड़ा…!
रुक जा शैतान की अम्मा, बहुत बातें बनाने लगी है तू, ठहर अभी खबर लेता हूँ तेरी… !
वो खिल-खिलाती हुई किसी चाचल तितली की तरह इधर से उधर उससे बचती बचाती भाग रही थी, शंकर उसके पीछे-पीछे था…!
फिर आख़िर में वो तक कर एक जगह रुक गयी और अपने घुटनों पर हाथ टिका कर झुक कर हाँफने लगी,
शंकर ने उसे पीछे से उसकी कमर में एक बाजू डालकर किसी फूल की तरह उठा लिया और उसे अपने कंधे पर डालकर उसके चुतड़ों पर प्यार भरे थप्पड़ लगाने लगा…
वो अपने पैर फड़फड़ाकर उससे छूटने का नाटक करने लगी, लेकिन अपनी बाजू उसने उसके गले में लपेटे हुए वो उस’से और ज़्यादा चिपक गयी…!
अपनी बेहन के कच्चे अमरूदो का एहसास अपने कंधे पर महसूस करके शंकर को पहली बार ये एहसास हुआ कि उसकी बेहन अब बच्ची नही है, वो अब कच्ची कली से फूल बनने की राह में है…!
अनायास ही उसका हाथ थप्पड़ देने की वजाय उसके कोमल चुतड़ों को सहलाने लगा, जो अब थोड़े से चौड़े और पीछे को निकल आए थे..,
सलौनी अपने भाई के बदन की रगड़ और उसके गान्ड को सहलाने की वजह से मस्ती में भर उठी,
मचल कर वो नीचे की तरफ खिसकी और उसके गले में झूल गयी.., इससे पहले की शंकर उसे नीचे उतारता, उसने अपने भाई के गाल को चूम लिया…!
उसकी इस हरकत से शंकर सन्न रह गया, और वो चंचल तितली हस्ती हुई वहाँ से फ़ुउरर्र्र्ररर… हो गयी….!
वो अपने गाल पर हाथ रखकर सहलाता ही रह गया………!
उधर सुप्रिया जब हवेली के चौक में पहुँची तो वहाँ उसकी बेहन प्रिया और उसकी माँ तखत पर बैठी बातें कर रहीं थी, साइड में दोनो बहुएँ खड़ी थी..
औरतों की बातों का कोई ओर-छोर तो होता नही बात में से दूसरी बात निकल आती है.., एक बार इनको खाना ना मिले तो भी चलेगा, लेकिन बातें….
अब भी उनकी बातें वही थी जिनका केंद्र बिंदु वो घटना ही थी, प्रिया बढ़ा-चढ़कर शंकर की वीरता का बखान कर रही थी, जिसका उन तीनों पर मिला जुला असर था…
जहाँ सेठानी अभी भी एक नौकर द्वारा अपने मालिक की बेटी की जान बचाना उसका फ़र्ज़ बता रही थी, वहीं सुषमा शंकर को देवता का स्वरूप मानकर चल रही थी,
वो मन ही मन अपने आप पर बड़ा गर्व महसूस कर रही थी, शंकर जैसे वीर के बच्चे की माँ बनने का उसे सौभाग्य मिल रहा है...., वो मन ही मन ईश्वर और रंगीली का धन्यवाद कर रही थी…!
वहीं लाजो को शंकर जैसे ताक़तवर नौजवान के लंड को लेने की लालसा और बल्बति होने लगी, क्योंकि अब वो अपने ससुर के लंड से संतुष्ट नही हो पा रही थी,
और वैसे भी ये आश् तो वो दोनो ही छोड़ चुके थे कि अब उनके वीर्य में बच्चा पैदा करने की शक्ति बची भी है या नही…!
लाजो को कोई ठोस प्लान बनता नज़र नही आ रहा था, उसके रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा थी शंकर की माँ रंगीली…,
उसका नाम दिमाग़ में आते ही, उसको एक झटका सा लगा, उसने तय कर लिया कि अब वो कैसे भी करके रंगीली को पटाने के कोशिश करेगी, जिसने अपने ससुर से संबंध बनाने के लिए उसे उकसाया था…!
अब तो शंकर बड़ा भी हो गया है, तो अब अगर थोड़ी कोशिश की जाए तो शायद बात बन सकती है,
इस प्लान को फाइनल करते हुए उसने रंगीली को शीशे में ढालने की ठान ली……!
सुप्रिया के वहाँ पहुँचते ही सबकी सोचों और बातों पर विराम लग गया…
उसकी चाल में लंगड़ाहट थी, जिसे देख कर सेठानी ने उससे पुछा – तू कहाँ चली गयी थी, कब्से तेरी राह देख रहे हैं हम सब…, और इस तरह लंगड़ा कर क्यों चल रही है…?
सुप्रिया – रंगीली काकी के पास थी, शंकर के हाल चाल पुछने गयी थी.., और खेतों में थोड़ा पैर मूड गया था, तो उन्होने गरम तेल की मालिश भी करदी…, क्यों कोई काम था.,..?
सेठानी – अरी, तुझे कितनी बार कहा है, नौकरों को ज़्यादा सिर चढ़ाने की दरकार नही है, उनपर अपना हुकुम चलाया जाता है समझी… लेकिन मेरी ये बात कभी तेरे मगज में नही घुसी…!
अपनी माँ की बातों पर ध्यान देने की वजाय, प्रिया ने पुछा – कही चोट तो नही लगी उसे…?
सुप्रिया – शरीर पर तो कहीं चोट नही है, पर माँ की बातों से शायद उनकी आत्मा पर ज़रूर चोट लग सकती है…!
सेठानी – ये तू अपनी माँ से किस तरह से बात कर रही है, मुझे दुनियादारी मत सीखा, सब जानती हूँ इन नौकरों की जात, ये ऐसे ही कामों के लिए होते हैं…!
प्रिया – बस करो माँ, शायद तुम्हें ये अंदाज़ा नही है कि उसने कितना बड़ा अहसान किया हैं हमारे उपर…!
आपकी बेटी की जान बचाने के लिए साक्षात मौत से भिड़ गया था वो, जिस सांड़ पर लाठियों की मार से कोई फरक नही पड़ता है, उसे उसने अपनी ताक़त के बल पर धूल चटा दी थी…!
उसका अहसान मानने की वजाय कम से कम इस तरह की जली कटी बातें तो मत करो..!
सेठानी – ये तू कह रही है..? कल तक तो तू मुझसे भी ज़्यादा इन लोगों से चिढ़ती थी.
प्रिया – वो मेरी सबसे बड़ी भूल थी, नौकर भी इंसान होते हैं, और फिर शंकर तो हमारा खास नौकर है, पिताजी ने उसे ऐसे ही देखभाल का भार नही सौंप दिया है…
ये दूसरा चान्स है जब उसने हम लोगों पर इतना बड़ा अहसान किया है, हमें उसकी इज़्ज़त करनी चाहिए…!
इस तरह की बहस के बाद भी जब सेठानी के तेवर नही बदले तो एक-एक करके वो चारों उसे अकेली छोड़कर चली गयी, वो अकेली वहाँ बैठी बुद-बुदाती रही…!
वहाँ से निकल कर प्रिया ने सुप्रिया का हाथ पकड़ा और बोली – चल मेरे साथ…
सुप्रिया – कहाँ..?
प्रिया – मुझे शंकर से मिलना है अभी…, कहाँ मिलेगा वो..?
सुप्रिया – मे तो उसे अपने घर में ही छोड़कर आई थी, अब पता नही कहाँ होगा..?
प्रिया लगभग दौड़ती हुई हवेली के पीछे शंकर के घर की तरफ चल दी.., सुप्रिया मुस्कुराती हुई अपने कमरे में आ गई…!
वो आज बहुत खुश थी, थोड़ी चाल में लंगड़ाहट थी, लेकिन उसकी उसे कोई परवाह नही थी, आज उसने वो पा लिया था जिसे पाने का हक़ हर औरत को होता है…!
वो इस बात से भी ज़्यादा खुश थी कि शंकर ने हर संभव उसका साथ देते रहने का वचन भी दे दिया है.., अब वो अपने गान्डु पति को वजाय कोसने के धन्यवाद दे रही थी…!
उधर प्रिया दौड़ती हुई जब शंकर के घर पहुँची तो वहाँ उसे बस सलौनी मिली, जब उसने शंकर के बारे में पुछा तो उसने बताया कि वो तो अभी-अभी खेतों की तरफ निकल गया…!
वो वहाँ एक पल भी नही रुकी, और लगभग दौड़ते हुए खेतों की तरफ चल दी, पीछे से सलौनी के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान आ गयी, और अपने ही आप से बुद बुदाति हुई बोली…
लो एक गयी, अब दूसरी आ गयी, वाह भैया… क्या किस्मत पाई है तूने…!
उधर प्रिया जैसे ही हवेली के मेन गेट से बाहर आई, उसे कुछ दूर शंकर किसी शेर जैसी चाल से चलता हुआ खेतों की तरफ जाता दिखाई दिया…!
उसने अपनी गति और बढ़ा दी, वो इस समय एक लोंग स्कर्ट और टाइट सा कुर्ता पहने हुए थी, जिसमें दौड़ने की वजह से उसके 34 डी साइज़ के बूब्स उपर नीचे हो रहे थे…!
उसके मदमस्त यौवन को यूँ छलकते देख कर लोगों की नज़रें उस पर जम गयी.., कुछ देर में ही वो उसके अत्यंत नज़दीक पहुँच गयी, और पीछे से उनसे पुकारा – शंकर…, रूको…!
प्रिया की आवाज़ कानों में पड़ते ही वो वहीं रुक गया, मुड़कर पीछे देखा तो वो उसके पीछे दौड़ी चली आ रही थी, शंकर की नज़र उसकी हिलती हुई चुचियों पर जम गयी…!
वो उसके सामने जाकर अपने घुटनों पर हाथ रख कर झुक गयी, और लंबी-लंबी साँसें भरने लगी…
झुकने से उसके गोल-गोल दूधिया उभर कुर्ते के चौड़े गले से काफ़ी अंदर तक अपनी भौगौलिक स्थिति को दर्शाने लगे…,
उसकी एकदम गोल-गोल, मोटी और गोरी-चिटी चुचियों की छटा देखकर शंकर का लंड अपना सिर उठाने लगा, उसने उससे पुछा –
क्या हुआ दीदी, इस तरह से भागते हुए क्यों आ रही हो..?
प्रिया ने ऐसे ही झुके हुए ही अपना मुँह शंकर की तरफ उठाया, उसे अपने उभारों को ताकते हुए देख कर वो अंदर तक सिहर गयी, उसकी नज़रों का स्पर्श पाकर उसके निपल कड़क हो उठे…!
उसने मन ही मन मुस्कराते हुए कहा – मे तुम्हें ही ढूँढ रही थी, कहाँ जा रहे हो…?
शंकर – क्यों .. कोई काम था मुझसे…?
वो सीधी खड़ी हुई, और हल्की सी मुस्कान के साथ उसने उसका हाथ पकड़ा और बोली – चलो मेरे साथ, तुमसे मुझे कुच्छ बात करनी है, मेरी जान बचाने के बाद तो तुम दिखे ही नही…!
वो उसके पीछे-पीछे वापस हवेली के अंदर चल दिया…!
प्रिया उसकी हवेली के अंदर ले जाने की वजाय, अपनी तीन मंज़िला हवेली की छत पर ले गयी, जहाँ एक लंबा-चौड़ा तखत पड़ा हुआ था, उसने उसे उसपर बिठाया, और खुद उसके बगल में बैठ गयी…!
अभी भी उसकी साँसें फूली हुई थी, जिससे उसके वक्ष अभी भी उपर नीचे हो रहे थे…!
शंकर ने उसके सुर्ख पड़ चुके चेहरे पर नज़र जमाकर कहा – हां दीदी, बोलिए क्या बातें करनी थी आपको मुझसे…?
प्रिया ने बड़े प्यार से शंकर का हाथ अपने हाथ में लिया, और उसे दूसरे हाथ से सहलाते हुए बोली – तुमने मेरी जान बचाकर बहुत बड़ा अहसान किया है शंकर,
मे आज तक दूसरे नौकरों की तरह तुम्हें और तुम्हारी माँ को बुरा भला बोलती रहती थी, इसके बबजूद भी तुमने अपनी जान जोखिम में डालकर मुझे बचाया…
उसके लिए मे तुम्हें थॅंक्स भी नही कह पाई, हो सके तो मेरी ग़लतियों के लिए मुझे माफ़ कर देना मेरे भाई, ये कहकर उसने अपना सिर उसके कंधे से टिका लिया !
शंकर तो बस मूक्दर्शक बना उसके सुंदर गोल-मटोल चेहरे को ही निहारे जा रहा था, उसकी बात सुनकर उसने अपना दूसरा हाथ उसके हाथों पर रखा और शालीनता भरे स्वर में बोला –
ये तो मेरा फ़र्ज़ था दीदी, और आपकी वो डाँट-डपट एक मालकिन की थी अपने नौकर के लिए, इसमें आपको माफी माँगने की कोई ज़रूरत नही है…!
आप सच मानो, मेने आपकी बात का कभी बुरा नही माना, क्योंकि मे अपनी हैसियत से बफ़िक हूँ…!
प्रिया उसके और नज़दीक खिसक गयी, अब दोनो की जांघें आपस में जुड़ चुकी थी, फिर उसने झिझकते हुए शंकर के गाल पर एक किस कर लिया, और खुद ही शर्म से नज़रें नीची करके बोली –
आज मेरी नज़रों में तुम्हारी हैसियत बहुत बढ़ गयी है शंकर, बहुत उँचा कद हो गया है तुम्हारा.., हो सके तो मेरी पुरानी ग़लतियों को भूलकर मुझे माफ़ कर देना…!
अपने गाल पर प्रिया के सुर्ख होंठों का स्पर्श पाकर शंकर का शरीर अंदर तक झन-झना गया, वो उसके चेहरे पर अपनी नज़रें जमाए बोला –
प्लीज़ दीदी, अब आप यूँ बार-बार मुझसे माफी मत मांगिए, मेरे दिल में आपके लिए कभी कोई दुश्विचार नही थे…!
ये कहकर शंकर अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ, और बोला – आप अपना ख्याल रखिए, मे चलता हूँ…!
प्रिया ने उसका हाथ पकड़ लिया, शंकर ने पलट कर उसकी तरफ देखा, वो भी उसके सामने अपनी नज़रें झुकाए खड़ी थी, अपनी तेज-तेज चलती साँसों पर काबू पाने की कोशिश करते हुए बोली –
कल में अपने घर जा रही हूँ, क्या तुम मेरे यहाँ घूमने आओगे…?
मालिक की अग्या मिल गयी तो ज़रूर आउन्गा.., ये कहकर वो वहाँ से चला गया, पीछे प्रिया उसे जाते हुए देखती रही…! वो उसकी मर्दानगी पर मर मिटी थी,
दूसरे दिन प्रिया अपने घर के लिए विदा हो गयी, सुप्रिया ने कुछ दिन रहने का फ़ैसला लिया, और उसने अपनी बेहन के साथ जाने से मना कर दिया…!
उन दोनो की ससुराल एक ही शहर में हैं, दोनो के घर भी एक दूसरे से ज़्यादा दूरी पर नही है,
प्रिया अपनी खुद की गाड़ी से आई थी ड्राइवर के साथ और सुप्रिया भी उसी के साथ आई थी…
जाने से पहले प्रिया ने अपने पिताजी से कहा – पिताजी, सुप्रिया को अकेला मत भेजना, शंकर उसे छोड़ने चला जाएगा, इसी बहाने मेरा घर भी देख लेगा, क्योंकि वो अब इतना ज़िम्मेदार हो गया है कि सबका ख़याल रख सके, तो उसका आना-जाना भी लगा ही रहेगा…!
लाला जी को अपनी बेटी की बात जँची, उन्हें शंकर की क्षमताओं पर अटूट विश्वास होता जा रहा था…, वहीं अपने सगे बेटे कल्लू पर से उठता जा रहा था…!
कल्लू की हरकतों से दिनो-दिन वो खीजते जा रहे थे, अब उन्हें सुषमा का फ़ैसला सही लगने लगा था, और दिल से वो सुषमा को ये ज़िम्मेदारी सौंपने को तैयार हो गये…!
उन्होने वकील को बुलाकर सारे दस्तावेज़ पर साइन करके, अपनी सारी मिल्कियत की मालिक सुषमा को बना दिया, और खुद ने उसके रख रखाब का जिम्मा जैसे पहले था ज्यों का त्यों ही रहने दिया…!