hotaks444
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रंगीला लाला और ठरकी सेवक
मित्रो एक और कहानी नेट से ली है इसे आशु शर्मा ने लिखा है मैं इसे हिन्दी फ़ॉन्ट मे आरएसएस पर पोस्ट कर रहा हूँ मेरी ये कोशिस आपको कैसी लगती है अब ये देखना है और आपका साथ भी सबसे ज़रूरी है जिसके बगैर कोई भी लेखक कुछ नही कर सकता हमारी मेहनत तभी सफल है जब तक आप साथ हैं ................ चलिए मित्रो कहानी शुरू करते हैं ................
झुक कर बैठक में झाड़ू लगा रही रंगीली को जब ये एहसास हुआ कि उसके पीछे कोई है, तो वो झट से खड़ी होकर पलटी,
अपने ठीक सामने खड़े अपने मालिक, सेठ धरमदास को देख वो एकदम घबरा गयी, और अपनी नज़र झुका कर थर-थराती हुई आवाज़ में बोली-
क.क.ककुउच्च काम था मालिक…?
धरमदास ने आगे बढ़कर उसके दोनो बाजुओं को पकड़कर कहा – हां हां ! बहुत ज़रूरी काम है हमें तुमसे, लेकिन सोच रहे हैं तुम उसे करोगी भी या नही..
रंगीली ने थोड़ा अपने बाजुओं को उनकी गिरफ़्त से आज़ाद करने की चेष्टा में अपने बाजुओं को अपने बदन के साथ भींचते हुए कहा – मे तो आपकी नौकर हूँ, हुकुम कीजिए मालिक क्या काम है..?
सेठ धरमदास ने उसके बाजुओं को और ज़ोर्से कसते हुए कहा – जब से तुम हमारे यहाँ काम करने आई हो, तब से तुमने मेरे दिन का चैन, रातों की नींद हराम कर रखी है…
लाख कोशिशों के बाद भी तुम अभी तक हमसे दूर ही भागती रहती हो,
ये कहकर उसने एक झटके से रंगीली को अपने बदन से सटने पर मजबूर कर दिया,
वो सेठ जी की चौड़ी चकली छाती से जा लगी..
उसके गोल-गोल चोली में क़ैद, कसे हुए कच्चे अमरूद ज़ोर्से सेठ की मजबूत छाती से जा टकराए, उसको थोड़ा दर्द का एहसास होते ही मूह से कराह निकल गयी…
आअहह… मलिक छोड़िए हमें, झाड़ू लगाना है, वरना मालकिन गुस्सा करेंगी…
रंगीली के हाथ से झाड़ू छुटकर नीचे गिर चुका था, उसने अपने दोनो हाथों को सेठ के सीने पर रख कर, ज़ोर लगाकर सेठ को अपने से अलग करते हुए बोली –
य.य.यईए…आप क्या कर रहे हैं मालिक, भगवान के लिए ऐसा वैसा कुच्छ मत करिए मेरे साथ..
हम तुम्हें बहुत प्यार करते हैं रंगीली, आओ हमारी बाहों में समा जाओ, ये कहकर उसने फिरसे उसे अपनी ओर खींच लिया, और उसके सुडौल बॉली-बॉल जैसे चुतड़ों को अपने बड़े-2 हाथों में लेकर मसल दिया…
दर्द से बिल-बिला उठी वो कमसिन नव-यौवना, आआययईीीई…माआ…, फिर अपने मालिक के सामने गिड-गिडाते हुए बोली –
भगवान के लिए हमें छोड़ दीजिए मालिक, हम आपके हाथ जोड़ते हैं,
लेकिन उसकी गिड-गिडाहट का सेठ धरमदास पर कोई असर नही हुआ, उल्टे उनके कठोर हाथों ने उसके नितंबों को मसलना जारी रखा…
फिर एक हाथ को उपर लाकर उसके एक कच्चे अनार को बेदर्दी से मसल दिया…
दर्द से रंगीली की आँखों में पानी आगया, अपनी ग़रीबी और बबसी के आँसू पीकर उसने एक बार फिरसे प्रतिरोध किया, और सेठ को धक्का देकर अपने से दूर कर दिया…
फिर झाड़ू वही छोड़कर लगभग भागती हुई वो बैठक से बाहर चली गयी….!
मित्रो एक और कहानी नेट से ली है इसे आशु शर्मा ने लिखा है मैं इसे हिन्दी फ़ॉन्ट मे आरएसएस पर पोस्ट कर रहा हूँ मेरी ये कोशिस आपको कैसी लगती है अब ये देखना है और आपका साथ भी सबसे ज़रूरी है जिसके बगैर कोई भी लेखक कुछ नही कर सकता हमारी मेहनत तभी सफल है जब तक आप साथ हैं ................ चलिए मित्रो कहानी शुरू करते हैं ................
झुक कर बैठक में झाड़ू लगा रही रंगीली को जब ये एहसास हुआ कि उसके पीछे कोई है, तो वो झट से खड़ी होकर पलटी,
अपने ठीक सामने खड़े अपने मालिक, सेठ धरमदास को देख वो एकदम घबरा गयी, और अपनी नज़र झुका कर थर-थराती हुई आवाज़ में बोली-
क.क.ककुउच्च काम था मालिक…?
धरमदास ने आगे बढ़कर उसके दोनो बाजुओं को पकड़कर कहा – हां हां ! बहुत ज़रूरी काम है हमें तुमसे, लेकिन सोच रहे हैं तुम उसे करोगी भी या नही..
रंगीली ने थोड़ा अपने बाजुओं को उनकी गिरफ़्त से आज़ाद करने की चेष्टा में अपने बाजुओं को अपने बदन के साथ भींचते हुए कहा – मे तो आपकी नौकर हूँ, हुकुम कीजिए मालिक क्या काम है..?
सेठ धरमदास ने उसके बाजुओं को और ज़ोर्से कसते हुए कहा – जब से तुम हमारे यहाँ काम करने आई हो, तब से तुमने मेरे दिन का चैन, रातों की नींद हराम कर रखी है…
लाख कोशिशों के बाद भी तुम अभी तक हमसे दूर ही भागती रहती हो,
ये कहकर उसने एक झटके से रंगीली को अपने बदन से सटने पर मजबूर कर दिया,
वो सेठ जी की चौड़ी चकली छाती से जा लगी..
उसके गोल-गोल चोली में क़ैद, कसे हुए कच्चे अमरूद ज़ोर्से सेठ की मजबूत छाती से जा टकराए, उसको थोड़ा दर्द का एहसास होते ही मूह से कराह निकल गयी…
आअहह… मलिक छोड़िए हमें, झाड़ू लगाना है, वरना मालकिन गुस्सा करेंगी…
रंगीली के हाथ से झाड़ू छुटकर नीचे गिर चुका था, उसने अपने दोनो हाथों को सेठ के सीने पर रख कर, ज़ोर लगाकर सेठ को अपने से अलग करते हुए बोली –
य.य.यईए…आप क्या कर रहे हैं मालिक, भगवान के लिए ऐसा वैसा कुच्छ मत करिए मेरे साथ..
हम तुम्हें बहुत प्यार करते हैं रंगीली, आओ हमारी बाहों में समा जाओ, ये कहकर उसने फिरसे उसे अपनी ओर खींच लिया, और उसके सुडौल बॉली-बॉल जैसे चुतड़ों को अपने बड़े-2 हाथों में लेकर मसल दिया…
दर्द से बिल-बिला उठी वो कमसिन नव-यौवना, आआययईीीई…माआ…, फिर अपने मालिक के सामने गिड-गिडाते हुए बोली –
भगवान के लिए हमें छोड़ दीजिए मालिक, हम आपके हाथ जोड़ते हैं,
लेकिन उसकी गिड-गिडाहट का सेठ धरमदास पर कोई असर नही हुआ, उल्टे उनके कठोर हाथों ने उसके नितंबों को मसलना जारी रखा…
फिर एक हाथ को उपर लाकर उसके एक कच्चे अनार को बेदर्दी से मसल दिया…
दर्द से रंगीली की आँखों में पानी आगया, अपनी ग़रीबी और बबसी के आँसू पीकर उसने एक बार फिरसे प्रतिरोध किया, और सेठ को धक्का देकर अपने से दूर कर दिया…
फिर झाड़ू वही छोड़कर लगभग भागती हुई वो बैठक से बाहर चली गयी….!