Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक - Page 2 - SexBaba
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Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक

थोड़ी देर लंड चुस्वा कर वो फिर से मेरी टाँगों के बीच आए, और अपना मूसल जैसा लंड मेरी गीली चूत के बंद होंठों के उपर रगड़ दिया…

उत्तेजना में मेरी तो कमर ही हिलने लगी, फिर उन्होने जैसे तैसे करके मेरी चूत के छोटे से छेद को खोला, और उसके मूह पर अपने लंड का मोटा टमाटर जैसा सुपाडा रखकर दबा दिया…

मेने कस कर अपनी आँखें बंद करली, और आने वाली मुसीबत का सामना करने के लिए अपने आप को तैयार करने लगी…….!

मेने कस कर अपनी आँखें बंद करली, और आनेवाली मुसीबत का सामना करने के लिए अपने आप को तैयार कर लिया…….!

रंगीली चमेली की सुहागरात के सीने में इस कदर खोई हुई थी, मानो चमेली की नही उसकी सील टूटने वाली हो, सो उसने एक झुर झुरी सी अपने अंदर महसूस की,

उसने अपनी जांघों के बीच गीलापन बढ़ता महसूस किया.., चमेली अपनी कथा सुनने में मगन थी, और रंगीली किसी गूंगे के गुड के स्वाद की तरह बस उसके चेहरे पर नज़रें गढ़ाए हुए थी…

चमेली ने आगे एक नज़र अपनी प्यारी सखी पर डाली, जो इस समय अपनी टाँगों को कस कर भींचे हुए बस उसे ही देखे जा रही थी…!

एक सेक्सी स्माइल करते हुए चमेली बोली – तुझे में क्या बताऊ रंगीली, उनके लंड का एकदम गरम दहक्ता सा सुपाडा इतना ज़्यादा मोटा था की मेरी मुनिया के छेद को चौड़ा करके उसके उपर रखने के बाद भी वो मेरी चूत की पतली पतली फांकों के बाहर तक निकला हुआ महसूस कर रही थी मे…

मेरी साँसें इतनी तेज़ी से चल रही थी मानो मीलों दौड़ लगाके आई हूँ…

उन्होने मेरी पतली मुलायम जांघों को अपने मजबूत कसरती पाटों के उपर रखा हुआ था, मेरे नीबुओं को सहला कर वो मेरे उपर झुके, और मेरे रसीले, डर से थर-थर काँप रहे होंठों पर अपने होंठ रख दिए…

मेने अपनी आँखें खोलकर उनकी तरफ देखा, उनका लंड मेरी मुनिया के मूह पर अटका हुआ ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे किसी ने ज़बरदस्ती किसी का मूह बंद कर रखा हो…

उनके मेरे उपर झुकने से उनके लंड का दबाब मेरी चूत पर बढ़ गया, जिससे मेरी कराह निकल गयी….आअहह…माआ…

उन्होने मेरे होंठों को कस कर अपने होंठों में जप्त करते हुए हल्का सा झटका अपनी कमर में लगा दिया…!

मूह के अंदर ही अंदर मेरी चीख निकल गयी, और उनका लंड मेरी चूत की झिल्ली पर जा अटका…, मेरी तो जैसे जान ही अटक गयी,

उनके बालों को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर मेने उनके चेहरे को अपने से अलग करना चाहा लेकिन कामयाब नही हो पाई…,

मेने फिर से कस कर अपनी आँखें मींच ली, उन्होने अपने लंड को थोड़ा सा बाहर निकाला, मुझे कुच्छ राहत सी हुई, कि चलो जान बची, शायद इन्हें मेरे उपर दया आ गई होगी…

लेकिन मेरा सोचना एकदम ग़लत साबित हुआ, क्योंकि तभी उन्होने एक तेज धक्का मेरी चूत में मार दिया….च्चाअरररर…की आवाज़ के साथ उनका लंड मेरी चूत की झिल्ली को फाड़ता हुआ, तीन-चौथाई अंदर समा चुका था…

ना जाने कहाँ से मुझमें इतनी शक्ति आ गई, उनका मूह ज़ोर देकर पीछे को हटा दिया, और अपने होंठों को आज़ाद करते ही मे बुरी तरह से चीख पड़ी…

अररीई….मैय्ाआ…र्रिि….मररर…गाइिईई…रीईई….बचाऊओ…मुझीए…

उन्होने झट से एकबार फिर मेरे होंठों को जप्त कर दिया… लेकिन आगे धक्का नही लगाया, और मेरे नीबुओं को सहलाने लगे…

मेरे छोटे-छोटे चुचकों (निपल्स) को अपनी उंगली के पोर से सहलाया…, ऐसा करने से मेरे चूत के दर्द में कुच्छ राहत सी लगी, और वो गीली होने लगी…

उन्होने मेरे होंठों को चूसना अब बंद कर दिया…, मेने लगभग हान्फ्ते हुए कहा – बहुत जालिम हैं आप, मेरी जान निकाल दी…

उन्होने मेरे गालों को सहलाते हुए कहा – अरे मेरी रानी, तुम्हारी जान निकालकर मुझे क्या मिलेगा…, ये तो पहली बार सबको झेलना ही होता है…,

थोड़ी देर ठहर कर उन्होने अपने लंड को बाहर निकाला, मेरी चूत अंदर से कुच्छ खाली सी हो गयी, लेकिन अगले ही पल और एक तगड़ा सा धक्का मार दिया…

मे एक बार फिर दर्द से तड़प उठी, लेकिन इस बार मेने चीखना बेहतर नही समझा, क्योंकि जो होना है वो तो होकर ही रहेगा, तो हाइ-तौबा करने से ही क्या लाभ..

लेकिन दर्द से मेरी आँखों में आँसू आ गये…अब मुझे उनका लंड एकदम अपने पेडू यहाँ, चमेली ने अपने पेट की निचली सतह पर हाथ लगा कर बताया, महसूस हो रहा था…

उनका वो मोटा ताज़ा लंड मेरी छोटी सी चूत में ना जाने कैसे समा गया, और ऐसा फिट हो गया, मानो बिना खड्डा किए कोई खूँटा ज़मीन में गाड़ दिया हो…

मेरी चूत के पतले-पतले होंठ, उनके लंड के चारों तरफ इस तरह कस गये थे मानो किसी रब्बर की रिंग में एक मोटी सी रोड जबदस्ती फिट कर दी हो…!

दर्द से मे अंदर ही अंदर छ्ट-पटा रही थी, मेरी आँखों से पानी निकल रहा था…, लेकिन उन्होने मुझ पर कोई रहम नही किया, और धीरे-धीरे अपने खूँटे को अंदर-बाहर करने लगे…

हाए रंगीली, तुझे मे कैसे बताऊ, दो-चार बार के अंदर बाहर करने से तो मुझे ऐसा लगा, कि मेरी चूत की अंदर की चमड़ी भी उनके खूँटे के साथ ही बाहर ना चली जाए…

लेकिन फिर कुच्छ ही देर में मेरी चूत के श्रोत से पानी फूटना शुरू हो गया, जिससे उनका लंड आराम से अंदर बाहर होने लगा, और साथ ही मेरा दर्द ना जाने कहाँ छूमन्तर हो गया, और मुझे मज़ा आने लगा…
 
अब मेरे दर्द भरी कराह सिसकियों में बदल गयी, मे भी अपनी गान्ड उठा-उठाकर चुदाई का मज़ा लेने लगी…

जो लंड कुच्छ देर पहले मुझे 1-1 इंच लेना भारी पड़ रहा था, अब में खुद उसे ज़्यादा से ज़्यादा अंदर लेने के लिए कोशिश करने लगी…!

उनके धक्के अब लगातार तेज और तेज होते जा रहे थे, उसी ले में मेरी गान्ड भी नीचे से अपने आप उचक-उचक कर लंड लेने के लिए उछल्ने लगी…

हम दोनो पसीने से तर-बतर हो गये थे, फिर मुझे लगा जैसे मेरे अंदर से किसी ने पानी का मुहाना खोल दिया हो..

मेने अपनी टाँगें उनकी गान्ड के उपर लपेट ली, और उन्हें कस कर जकड़ते हुए मे झड़ने लगी…

कम से कम दो-तीन मिनिट तक लगातार मेरा पानी निकलता रहा, तब जाकर में शांत हुई,

आअहह… वो क्या सुख था मेरी सखी, मन कर रहा था जैसे इसी सुख में ही मेरी जान क्यों ना निकल जाए लेकिन ये लम्हा कभी ख़तम ना हो…!

उन्होने भी दो-चार तगड़े धक्के लगाए और उन्होने भी मेरी चूत की गहराइयों में अपने गाड़े-गाड़े वीर्य की धार छोड़ दी…,

हाए ही दैयाअ….ऐसा लगा जैसे किसी ने जलती भट्टी में पानी का छिड़काव कर दिया हो…

मेरी चुत की गर्मी एक दम शांत हो गयी, और मे बेसूध होकर उनकी बाहों में पड़ी रह गयी…
मुझे ये होश नही रहा कि कब वो मेरे उपर से उतरकर बगल में आ गये,

फिर उन्होने मेरी सफेद रंग की कच्छी से ही अपना लंड साफ किया जिसपर खून और मेरा कामरस लगा हुआ था…

जब वो मेरी खून और वीर्य से सराबोर चूत को साफ करने लगे, तब मुझे एक टीस सी लगी और मेने अपनी आँखें खोलकर उनकी तरफ देखा…

मेरी बगल में आकर वो फिर से मेरे बदन को सहलाने लगे.., लेकिन अब मुझे अपनी चूत में कुच्छ दर्द का आभास हो रहा था…

लेकिन जैसे-जैसे उनके हाथ मेरे बदन पर चल रहे थे, मेरे बदन में फिर एक बार सनसनी सी दौड़ने लगी…

उन्होने मेरी पतली कमर को अपने हाथों में लिया और मुझे पकड़ कर पलटा दिया, और बिस्तर पर घोड़ी की तरह घुटनों पर कर दिया…

खुद मेरी गान्ड के पीछे आ गये, उन्होने मेरी छोटी सी गान्ड को सहलाया, फिर उसे चूमा, चाटा, अपना मूह मेरी गान्ड की दरार में डाल दिया और पीछे से मेरी गान्ड और चूत को चाटने लगे…

मे अपनी चूत के दर्द को भूलकर फिर से मस्ती में भर उठी, और अपनी गान्ड मटकाते हुए अपनी चूत और गान्ड चटवाने लगी…!

कुच्छ देर चाटने के बाद उन्होने फिर अपने लंड को पीछे से मेरी चूत के छेद पर रखा, और धीरे-धीरे करके पूरा लंड जड़ तक अंदर डाल दिया…

मे एक बार फिर दर्द से कराह उठी, लेकिन अब पहले जैसा दर्द नही हुआ, कुच्छ देर वो पूरा अंदर करके यूँही ठहरे रहे, और फिर धीरे-2 धक्के लगाने शुरू कर दिए…

कुच्छ ही धक्कों के बाद मुझे भी मज़ा आने लगा, और मे भी अपनी गान्ड पटक-पटक कर उनके लंड को लेने लगी…!

मीज-मीज कर उन्होने मेरी छोटी सी चुचियों को लाल कर दिया था, लेकिन मुझे दर्द के साथ-साथ मज़ा भी आ रहा था…

उस दिन के बाद से दो महीने तक वो रहे, हम दोनो सारी-सारी रात भरपूर चुदाई का मज़ा उठाते रहे,

उन्हें पीछे से चोदने में ही ज़यादा मज़ा आता था, उसी का परिणाम तू देख मेरी गान्ड और चुचियाँ कैसी हो गयी हैं…

सच कहूँ रंगीली, इस दुनिया में किसी औरत के लिए अगर कोई परम सुख है, तो वो एक भरपूर मर्द के मोटे तगड़े लंड से चुदने में है…!

उनके चले जाने के बहुत दिनो तक मेरी चूत की खुजली रात-रात भर मुझे सोने नही देती थी, जैसे-तैसे मन मसोस कर दिन गुज़ारे मेने,

फिर एक दिन मेने चुपके से एक चिट्ठी उनको लिख ही दी, वो एक हफ्ते की छुट्टी लेकर आगये… और उस एक हफ्ते, मेने उन्हें सोने ही नही दिया…!

चमेली की चुदाई की दास्तान सुनकर रंगीली की मुनिया गरम होकर लगातार रस बहाती रही, फिर जब चमेली अपने घर चली गयी,

वो दौड़कर नाली पर पहुँची और अपना घाघरा उठाकर देखा, उसकी दोनो जांघें उसके कामरस से चिपचिपा रही थी..

चमेली की बातें याद करके रंगीली फिर से दुख के सागर में डूब गयी… वो सोचने लगी कि काश ! उसका पति भी उसे ऐसे ही सुख दे पाता…!

बहरहाल चमेली और गाओं की दूसरी सखी सहेलियों से बात-चीत करके रंगीली का समय पास हो रहा था, लेकिन वो अब रात के सुनेपन से बुरी तरह जूझ रही थी..

जबसे उसने चमेली और दूसरी लड़कियों से उनके रति सुख के बारे में सुना था, तबसे वो तिल-तिल अपने जिस्म की आग में झुलस रही थी…!

लाला जी के साथ हुई सफाई के दौरान की छेड़-छाड़ को याद करके वो अप्रत्याशित रूप से गरम हो जाती,
 
उसे लाला का अपने उभारों के पास वो स्पर्श, उनके घुटन्ने में फुफ्कार्ता हुआ उनका कालिया नाग, उसकी अपनी मुनिया के होंठों पर महसूस होने वाली उसकी वो ठोकर, वो रगड़..

सोचकर ही उसकी चूत गीली होने लगती..., मन के किसी कोने में उसे लगने लगा, कि अगर चमेली जैसा शारीरिक सुख लेना है, तो लाला के अतिरिक्त और कोई चारा उसके पास नही है…

लेकिन दूसरे ही पल वो अपने माँ-बापू के दिए संस्कारों में उलझ जाती, और उसे फिर से उसका पतिव्रत धर्म दिखाई देने लगता…

उसका काम में मन नही लगता, अपने छोटे भाई-बहनों के प्रति भी वो उदासीन रहने लगी…

अपनी बेटी की मनो-दशा देख कर उसकी माँ व्यथित हो गयी, उसने उससे इसका कारण जानना चाहा, लेकिन उसने इसका कोई ठोस जबाब नही दिया…!

उधर सेठ धर्मदास ने जबसे रंगीली के बदन का स्पर्श सुख लिया था, तभी से उनका दिलो-दिमाग़ बस उसी को पाने के लिए सोचता रहता,

वो अगर चाहते तो उसे जोरे जबदस्ती उठवा कर भी भोग सकते थे, लेकिन वो उसके मामले में प्यार से हल निकालना चाहते थे…!

उसके कई सारे कारण उनके दिल और दिमाग़ ने पेश कर दिए :

1) वो उसे दिल से चाहने लगे थे, उनके जीवन में, उनके दिल पर रंगीली जैसी कमसिन बाला ने पहली बार दुस्तक दी थी,

2) रंगीली के सामने उसकी व्यक्तिगत कोई मजबूरी नही थी, जिसके चलते वो उनकी जबदस्ती को सहन करती…

अगर उसने विरोधाभास आत्महत्या करने जैसा कदम उठा लिया तो….लाला मुसीबत में पड़ सकते थे, समाज में उनका अस्तित्व ख़तम हो सकता था…

भले ही वो पैसे के दम पर बच निकलें लेकिन फिर कोई रंगीली उनके जीवन में संभव नही थी…

इन सब कारणों को ध्यान में रखकर लाला सब्र से काम लेना चाहते थे…!

इसी बीच एक दिन उनका दौरा रंगीली के गाओं में हुआ, अपने काम निपटाकर वो बुधिया के घर की तरफ निकल लिए…

इस आस में की शायद कोई बात बन जाए…

लाला को आया देखकर बुधिया एक पैर पर खड़ा हो गया, और क्यों ना हो, लाला की मेहरबानी की वजह से उसकी बेटी का ब्याह जो फोकट में हो गया था…

दुआ सलाम के बाद लाला ने रंगीली की बात चला ही दी, फिर खैर खबर लेने के बाद वो बोले –
बुधिया, तुम्हारी बेटी कहाँ है, हमें उससे मिलना था, उसके पति की एक सूचना देनी थी उसको…!

संकोच वस भला एक पिता कैसे पुछ्ता कि उसके पति ने उसके लिए क्या संदेशा भेजा है, सो अपनी पत्नी को कहकर लाला की एक अकेले कोठे में मुलाकात करवा दी…!

पहले तो रंगीली मुलाकात करने से मना करने वाली थी, लेकिन फिर कुच्छ सोचकर वो मिलने के लिए तैयार हो गयी…

रंगीली को सामने देख कर लाला ने बड़े मीठे शब्दों में उससे पुछा –

काम पर क्यों नही आ रही रंगीली, पता है तेरे बिना मेरे मन-मुताविक काम कोई नही कर पाता…!

रंगीली – मुझे अपने मैके की याद आ रही थी, सो चली आई, कुच्छ दिन रहकर आउन्गि, तभी काम पर लौट सकूँगी…

लेकिन मालिक ! अब मे आगे से आपकी बैठक का काम नही करूँगी, चाहे आप काम पर रखो या निकाल दो…!

रंगीली के ये शब्द सुनकर लाला को अपनी योजना धारसाई होती नज़र आने लगी.., लेकिन वो हार मानने वालों में से नही थे, सो बोले –

क्यों..? मेरी बैठक का काम करने में तुझे क्या आपत्ति है..? उल्टा और काम कम करना पड़ता है, तू कहे तो वाकी के सभी काम बंद करवा दूँगा…

रंगीली अपनी नज़रें झुकाए हुए ही बोली – हमें आपसे डर लगने लगा है..

लाला – डर..! किस बात से ? क्या तू उस्दिन की बात को लेकर चिंतित है…? देख रंगीली, अब तू चाहे माने या ना माने, हम तुझे सच्चे दिल से चाहने लगे हैं..

अब तेरे बिना जी नही लगता, तेरे लिए हम कुच्छ भी करने को तैयार हैं, बस तू एक बार हां करके देख, फिर जो कहेगी वैसा ही होगा…!

लाला की बात सुनकर रंगीली ने एक बार अपनी नज़र उठाकर उनकी तरफ देखा…, और बोली – किस बात के लिए हां कर दूँ…?

लाला – हम तुझे अपनी बाहों में लेकर प्यार करना चाहते हैं रंगीली, इसके एबज में सारे जहाँ की खुशियाँ हम तेरी झोली में डाल देंगे…

रंगीली – मेरे पति और समाज का क्या करेंगे आप…?

लाला – वो तुम सब हम पर छोड़ दो, हम वादा करते हैं, अपने प्यार की भनक हम किसी को नही लगने देंगे…!

रंगीली – जिसे आप प्यार कह रहे हैं, वो आपकी हमारे जिस्म को पाने की ललक भर है, इसे प्यार नही हवस कहते हैं मालिक…

और जब दिल भर जाता है, हवस शांत हो जाती है तब हम जैसी औरतों को आप चूसे हुए आम की गुठली की तरह कूड़े करकट में फेंक देते हो..!

रंगीली झोंक-झोंक इतनी तीखी बात कह तो गयी, लेकिन फिर उसे डर सताने लगा, क्योंकि लाला अगर अपनी पर आ गया, तो वो उसके दोनो परिवारों को तबाह कर सकता है,

यही नही, वो जब चाहे उसे भी रौंद सकता है, और चाहकर भी कोई कुच्छ नही कर पाएगा…
 
इसी डर में डूबी अब वो लाला की प्रतिक्रिया जानने का इंतेज़ार कर रही थी, उसे पूरा विश्वास था, कि अब लाला अपना असली रूप ज़रूर दिखाएगा..…!

लेकिन इसके ठीक उलट लाला उसके सामने अपने घुटनों पर बैठ गये, और हाथ जोड़कर बोले –

तो फिर तुम्ही बताओ, कैसे यकीन दिलाएँ कि हम तुम्हें सच्चे दिल से पाना चाहते हैं…, मानता हूँ कि मे हवस का पुजारी हूँ, लेकिन तुम्हारे लिए वोही हवस दीवानगी का रूप ले चुकी है..

चाहो तो हम स्टंप पेपर पर लिख कर दे सकते हैं, हम तुम्हें हमेशा यूँ ही प्यार करते रहेंगे…, जैसे तुम रहना चाहोगी वैसे रखेंगे…!

रंगीली को लाला से ऐसे व्यवहार की बिल्कुल अपेक्षा नही थी, वो समझ गयी, कि सेठ धरमदास उसे सच्चे दिल से पाना चाहते हैं,

और फिर वो भी तो कहीं ना कहीं यही चाहती है.., क्षण मात्र के लिए ही सही, उसके मन में भी तो ये ख़याल आया ही था…

सो हाथ जोड़कर बोली – बस कीजिए मालिक भगवान के लिए आप खड़े हो जाइए, हमें आप की बात मंजूर हैं…!

उसके मूह से ये शब्द सुनते ही लाला खड़े हो गये, और लपक कर उसके कंधे पकड़कर बोले – तुम्हारे मूह से ये शब्द सुनने के लिए हमारे कान तरस गये थे रंगीली, तुम नही जानती आज हम कितने खुश हैं..

रंगीली ने उनके सीने पर अपने हाथ का दबाब देकर अपने से अलग करते हुए कहा – लेकिन हमारी भी कुच्छ बातें आपको माननी पड़ेंगी…!

लाला तपाक से बोले – तुम जो कहोगी वैसा ही होगा, बोलो क्या चाहती हो हमसे…?

रंगीली – हमारे दोनो परिवारों के बही-खाते आपको जलाने होंगे, और वादा करना होगा कि आज के बाद कभी उनसे क़र्ज़ बसूली नही करेंगे…,

और मुझे जो काम अच्छा लगेगा वही करूँगी…, मेरे घर में जब मेरी ज़रूरत होगी कोई रोक-टोक नही होगी…

लाला ने लपक कर उसे अपने सीने से लगा लिया, और बोले – हम पहले ही कह चुके हैं, जैसा तुम चाहोगी वैसा ही होगा, हम तुम्हारे सामने वो सब बही खाते जला देंगे…

रंगीली – फिर ठीक है, अभी आप हमें छोड़िए, और यहाँ से जाइए, जन्माष्टमी करके हम अपनी ससुराल लौट जाएँगे… तब तक आपको हमारा इंतेज़ार करना पड़ेगा…

लाला – तुमने हां कर दी, हमारे लिए यही बहुत है, अब हम तुम्हारा बेसब्री से अपनी हवेली पर इंतेज़ार करेंगे…

इतना कहकर लाला कोठे से बाहर निकल गये…, और रंगीली कुच्छ देर वहीं खड़ी आनेवाले समय के बारे में सोचती रही…, लेकिन अब उसे किसी बात की कोई ग्लानि नही थी…!

उसके लिए ये घाटे का सौदा नही था, एक तरफ तो वो अपने जिस्म की अंबूझी प्यास से जूझ रही थी उससे निजात मिल सकती थी, दूसरे उसके दोनो परिवार उसके इस बलिदान से सुख से जीवन व्यतीत कर सकेंगे…!

उसके दिलो-दिमाग़ ने उसके द्वारा लिए गये इस फ़ैसले को सही ठहराया, उसने अब इसके लिए अपना मन पक्का कर लिया था,

अपने इस निर्णय से वो पूरी तरह संतुष्ट होकर खुशी खुशी अपने घर के कामों में लग गयी……….!
इसी बीच रंगीली की आँखों के सामने एक ऐसी घटना घटित हुई, जिसके कारण उसे अपने निर्णय को और बल मिल गया…,

एक दिन वो सुबह ही सुबह अपने जानवरों को चारा डालने अपने घेर की तरफ जा रही थी, भोर का हल्का सा अंधेरा अभी वाकी था…

उसके घेर से पहले पारो चाची का घेर था, जिसमें जानवरों के भूसा रखने के लिए एक छोटी सी कोठरी बनी हुई थी, जिसका एक रोशनदान रास्ते की तरफ था…!

जैसे ही रंगीली उनके उस कोठे के बराबर से गुज़री, अंदर से कुच्छ अजीब सी आवाज़ों को सुनकर उसके पैर ठिठक गये…!

ध्यान से सुनने पर पता लगा कि अंदर से एक मर्द और औरत की बात-चीत की आवाज़ें आ रही थी..

उसने सोचा पारो चाची और चाचा कुच्छ काम कर रहे होंगे, ये सोचकर वो जैसे ही आगे बढ़ी….

आअहह….जेठ जी, और ज़ोर से पेलो…, फाड़ डालो मेरी चूत को, आपके भाई से तो कुच्छ नही हो पाता…!

पारो चाची की ऐसी कामुक आहें सुनकर वो भोंचक्की सी रह गयी, और अंदर का नज़ारा देखने की तीव्र इच्छा उसके मन में जाग उठी…

उसने फ़ौरन उचक कर रोशनदान को पकड़ा और अंदर झाँक कर देखा, अंदर का नज़ारा देख कर उसकी आँखें फटी रह गयी,

पारो चाची अपना लहंगा उठाए घोड़ी बनी हुई थी और उनके जेठ पीछे से ढकधक उनकी चूत में अपना लंड पेल रहे थे…

जेठ – ले साली छिनाल कुतिया, कितनी बड़ी चुड़ैल है तू, रात को शमु का लंड लिया होगा, और सुबह-सुबह मेरे पास आगयि…

पारो – आअहह… क्या करूँ जेठ जी, उनके छोटे से लंड से मेरी प्यास नही बुझ पाती, और वैसे भी वो जल्दी ही अपना पानी निकालकर हाँफने लगते हैं…

जेठ – हुन्न..हहुऊन्ण…चल ठीक है, हुउन्ण.. ले तू मेरा मूसल ही ले, तेरी जेठानी भी तो साली हुउन्न्ं…एक ही बार में गान्ड फैलाक़े सो जाती है… और फिर मुझे मूठ मारकर सोना पड़ता है..

पारो – हाए राम, मे क्या मर गयी हूँ जेठ जी, जो आप मूठ मारकर सोते हो, इशारा कर दिया करो, आपके लिए कभी मना किया है मेने…!

इस तरह चुदाई के बारे में बातें करते करते वो दोनो अपनी चुदाई में लगे थे,

उधर रोशनदान से गरमा-गरम चुदाई का सीन देख कर रंगीली की हालत खराब होने लगी…!

अब उसे अपने पंजों पर उचक कर रोशनदान पकड़ना भारी होने लगा…, इससे पहले कि उनकी चुदाई का समापन हो पाता, वो वहाँ से निकल ली…
 
अपने घेर में आकर वो भूसे के ढेर पर पसर गयी, उसकी खुद की साँसें भी सबेरे-सबेरे ऐसा गरमा-गरम नज़ारा देख कर उखड़ने लगी थी…

ना चाहते हुए भी उसका एक हाथ अपने घान्घरे के अंदर चला गया, और वो अपनी मुनिया को कच्छि के उपर से ही सहलाने लगी…

दूसरे हाथ से अपने एक अमरूद को मसल्ते हुए सोचने लगी, हाए राम ये पारो चाची अपने ही जेठ के साथ मूह काला कर रही है…

कहाँ तो ये मेरी विदाई के वक़्त कितना ज्ञान छोड़ रही थी साली, और यहाँ देखो कैसी अपने ही जेठ के सामने गान्ड औंधी करके खड़ी थी…

अपने लिए इसका पतिव्रत धर्म कहाँ चला गया, जो दूसरों को ज्ञान देती फिरती है साली हरामजादि छिनाल रंडी कहीं की…!

फिर उसे उसके शब्द याद आए, आपके भाई के छोटे से लंड से मेरी प्यास नही बुझती, और वैसे भी जल्दी ही पानी छोड़ कर हाँफने लगते है, मुझे अधूरा छोड़ कर सो जाते हैं…!

रंगीली सोचने लगी … उसके साथ भी तो यही सब हो रहा था…

रंगीली की काम वासना अपने अंगों को मसल्ने से बढ़ती ही जा रही थी, कभी उसे पारो चाची की मोटी गान्ड दिखाई देती, दूसरे ही पल उनके जेठ का वो काला सोट जैसा लंड..

जो उनकी चूत में अंदर बाहर हो रहा था, ये सब सोच कर ना जाने कब उसका हाथ अपनी कच्छी के अंदर चला गया, उसकी मुनिया उसके कामरस से भीग चुकी थी…

उसे ये होश ही नही रहा कि कब उसकी एक उंगली उसकी चूत के अंदर समा गयी जिसे वो सिसकते हुए अंदर बाहर करने लगी…

अपनी चोली के अंदर हाथ डालकर वो अपने चुचक (निपल) को मरोड़ने लगी, उत्तेजना के मारे उसकी आँखें बंद हो चुकी थी,

तेज़ी से अपनी उंगली को अपनी चूत में चलाते हुए रंगीली के मूह से अस्फुट से शब्द फूटने लगे…आअहह….सस्स्सिईइ….मालिक…चोदो..मुझीए…. आआईयईई… म्माआ…आआईयईईईईईईईईई..उउउफ़फ्फ़…और तेज़ी से पेलो….हहाआंन्न….आअंग्ग्घह… इसके साथ ही उसकी मुनिया ने ढेर सारा पानी उसके हाथ पर फेंक दिया…!

आज पहली बार उसकी चूत से इतना कामरस निकला था, वो आँखें बंद किए बुरी तरह हाँफ रही थी…!

फिर जब उसकी उत्तेजना पूरी तरह से शांत हो गयी, तो उसके चेहरे पर एक शुकून भरी मुस्कान आगयि…!

उसे झड़ने से पहले उसके मूह से निकले शब्द याद पड़ गये…और वो खुद से ही बुरी तरह शर्मा उठी…

वो सोचने लगी, कि जब लाला जी की कल्पना मात्र से ही इतना मज़ा आया है तो वो जब उसके उपर चढ़कर उसे चोदेन्गे तब क्या हाल होगा उसका…! सोच कर ही उसकी मुनिया फिर से फड़कने लगी…

अब उसने अटल निश्चय कर लिया, कि चाहे जो भी हो अब वो अपने बदन की अधूरी प्यास की आग में नही जलेगी…

उउन्न्ह….! पतिव्रत धर्म, नियम क़ानून, भाड़ में जाओ सब, तेल लागाएँ ऐसे नियम क़ानून जो जीवन भर एक ही लुल्ली से बाधे रहें…

ये सब किताबी और मन बहलाने की बातें हैं.. जो सिर्फ़ दूसरों पर ही लागू होती हैं, अपने बारे में कोई इन बातों को नही मानता…!

“पर उपदेश कुशल बहुतेरे..”

अब वो सारी बातें भूलकर मस्त रहने लगी, मौका लगते ही अपने अंगों के साथ खेलती रहती, और हर वो तरीक़ा इस्तेमाल करती जो उसे ज़्यादा से ज़्यादा मज़ा दे सकता था…!

लेकिन अपने मैके में रहते हुए किसी और मर्द से वो संबंध नही बनाना चाहती थी, जिससे उसके माँ-बाप को शर्मिंदा होना पड़े…

ऐसा नही था, कि गाओं के मर्द उसे अच्छे नही लगते थे, या उसे कोई पसंद नही करता था.

रंगीली जैसी नमकीन लड़की को भोगने की कामना तो इस गाओं का हर युवा पाले बैठा था…,

कुच्छेक ने तो उसका रास्ता रोक कर अपने मन की बात ही बोल दी थी, लेकिन उसने अभी तक किसी को घास नही डाली…!
वो अब अपने आपको सजने सँवरने भी लगी थी, गाओं के सीमित संसाधनों से जितना हो सकता था, वो उतने से ही अपने शरीर को किसी भी मर्द के आकर्षण के लायक बनाने का हर संभव प्रयत्न करती…!

आख़िर वो दिन भी आ पहुँचा जब उसे अपने ससुराल वापस जाना था, अपने पति को उसने खबर भिजवा दी थी कि उस दिन आकर वो उसे विदा करा ले जाए…

उधर लाला ने रंगीली के घर का काम छोड़ कर जाने का ठीकरा अपनी सेठानी के सर मढ़ दिया,

कि वो और उसकी चमचियाँ उस बेचारी सीधी सादी लड़की को परेशान करती थी, उससे ज़्यादा काम लेती थी, इसलिए वो काम छोड़ कर चली गयी…,

उसके बिना अब उनकी बैठक फिर से एक कबाड़े का डिब्बा हो गयी है, वो कितने अच्छे से उसे व्यवस्थित रखती थी…

जब सेठानी ने कहा कि आप अपने काम के लिए किसी और को ले लो, वो बैठक को सही कर देगी तो वो बोले –

कोई ज़रूरत नही हैं, सब की सब साली कामचोर और नकारा हैं,

हमने रामलाल को बोल दिया है कि उसे मनाकर वापस काम पर भेजे, अब हम उससे अपने हिसाब से ही काम कराएँगे, कोई और उसपर हुकुम नही चलाएगा…

वो मान भी गयी है, और अपने मायके से वापस आकर वो हमारे यहाँ काम पर वापस आ जाएगी..,

लेकिन याद रहे, अब कोई भी उसके काम में दखल नही देगा, हम उसे बताएँगे कि उसे क्या करना है और क्या नही…

इस तरह से रंगीली के आने से पहले ही सेठ धरमदास ने उसकी शर्त के मुतविक हवेली में मामला सेट कर दिया…!
 
जन्माष्टमी के दो दिन बाद ही रंगीली अपने पति रामू के साथ अपनी ससुराल आ गयी, अब वो पहले से ज़्यादा खुश और खिली हुई थी…!

उस रात उसने अपने पति को हर संभव खुशी देने की कोशिश की, उसको दुनिया दारी के कुच्छ गुण बताए, अपनी पत्नी के प्रति उसके क्या कर्तव्य हैं बताती रही..

अपनी एकाध सहेली का उदाहरण देकर उसे समझाया…, परिणाम स्वरूप आज रामू ने अपनी यथाशक्ति अनुसार उसके साथ दो बार सहवास किया…!

लेकिन बात वही थी, पन्चर टाइयर में हवा भरने का कोई ज़्यादा लाभ नही होता..

खैर दो दिन अपने घर रहकर तीसरे दिन वो लाला की हवेली पहुँची, सुबह-सुबह उसका खिला स्वरूप देख कर लाला का दिन ही बन गया…

उनके मन में रंगीली के मिलन को लेकर लड्डू फुट रहे थे…!

मौका देख कर उन्होने उससे बात की, उसने आज रात को आने का वादा किया और सारे दिन उनके बताए कामों में लगी रही….!

आज रंगीली थोड़ा जल्दी अपने घर आगयि, जल्दी-जल्दी अपना काम धंधा निपटाया, सास ससुर और अपने पति रामू को समय से पहले ही उसने खाना खिला दिया…!

लाला ने उसे चुपके से नींद की दवा दे दी थी, जिसे उसने उचित मात्रा में सबके खाने में मिला दिया…

9 बजते ही सारे घर में ख़र्राटों की आवाज़ें गूंजने लगी, उसका पति तो बेचारा वैसे ही काम से थक जाता था,

उसे तो इस दवा की भी ज़रूरत नही थी, लेकिन फिर भी एहतियातन उसने खिला ही दी, ताकि बीच में उसकी नींद ना खुले…!

उसके बाद रंगीली जितना सज-संवर सकती थी, उतना अपने को सजाया, आज उसने घाघरा चोली नही पहनी, अपने शादी के जोड़े में वो किसी दुल्हन जैसी लग रही थी.

अपने को छोटे से शीशे में निहारा, वो अपनी ही सुंदरता पर मोहित हो उठी…मन ही मन खुश होकर बुदबुदाई….

आज मे भी देखती हूँ लाला जी, मर्द की हवस जीतती है, या एक औरत का यौवन ?

आज उसने लाला को पूरी तरह अपने रूप यौवन का रस्पान करके अपने जाल में फँसाने का मन बना लिया था…!

पूरी तरह सज-सँवरने के बाद उसने एक सरसरी नज़र अपने पल्लेदार पति पर डाली, और बुदबुदाते हुए बोली – माफ़ करना पतिदेव, अब मे और अपनी इस चढ़ती जवानी का अपमान नही कर सकती…

फिर वो अपने कोठे से बाहर आई, और चौक में पड़े अपने बूढ़े सास ससुर पर नज़र डाली, वो दोनो भी घोड़े बेचकर सोए हुए थे…

पागल जेठ तो जानवरों के बाडे में ही पड़ा रहता था..,

लगभग 10 बजे का वक़्त रहा होगा, गाओं की अंधेरी गलियों में इतनी रात गये किसी के मिलने की तो कोई संभावना ही नही थी,

वो दबे पाँव घर से निकली, बाहर से दरवाजे की सांकल लगाई और चल दी लाला जी के पास, जहाँ वो अपनी प्रेयशी का बड़ी बेसब्री से इंतेज़ार कर रहे थे…

आज रंगीली उनके आगोस में आने वाली है, इसी एहसास से उनका नाग, उनके घुटन्ने में रह-रह कर फुंफ़कारें मार रहा था,

और मारे भी क्यों ना, आज उसे रोज़ की तुलना में ज़्यादा खुराक जो मिल चुकी है, आज लाला ने 8-10 बादाम और ज़्यादा जो घोंट लिए थे दूध के साथ…!

जब वो ज़रूरत से ज़्यादा बबाल मचाने लगा, तो लाला ने अपना घुटन्ना ही उतार दिया, और खाली धोती पहन ली…!

अपने लौडे को बिठाते लाला, रंगीली का इंतेज़ार करते हुए बैठक में इधर से उधर किसी पिंजरे में बंद शेर की तरह टहल रहे थे…!

बॉक्सिंग के कोर्ट जितनी गद्दी पर लाला ने आज नये गद्दे और एक भक्क सफेद चादर बिच्छवा दी थी, शहर से मँगवाए ताजे फूलों के गुलदुस्ते गद्दी के आजू-बाजू महक रहे थे…

बैठक इस समय इंद्र लोक सी प्रतीत हो रही थी…, एक तरफ दीवार से सटा टेबल जहाँ केपर मिश्रित तेल के दिए जगमगा रहे थे…

जल्दी से आजा रंगीली मेरी जान, क्यों इतना तडपा रही है, देख तेरे इंतेज़ार में मेरे लंड की क्या हालत हो रही है, साला मरोड़-मरोड़ के दर्द करने लगा है…!

थक कर लाला, गद्दी पर अपनी गांद टिकाए ही थे कि दरवाजे पर हल्के से दस्तक हुई...! जिसे सुनकर लाला का मन मयूर नाच उठा…!

लपक कर दरवाजा खोला, सामने सोलह शृंगार किए हुए अपने सपनों की रानी को खड़े देखकर मानो उनकी हृदय गति ही थम सी गयी…

वो टक-टॅकी लागाय उसके सुंदर रूप लावण्य में खो गये…, उन्हें ये भी होश नही रहा कि दरवाजा चौपट खुला हुआ है…!
 
रंगीली कुच्छ देर बाबलों की तरह उसे घूर रहे सेठ को देखती रही, फिर हल्की सी मुस्कान अपने होंठों पर लाकर वो मूडी और खुद ही उसने दरवाजे को बंद किया…

लाला की तंद्रा भंग हुई, और वो जैसे ही उनकी तरफ मूडी, लपक कर उन्होने उसे अपनी बाहों में लेना चाहा…

रंगीली ने अपने हाथ का इशारा करके उन्हें रुकने को कहा, लाला अपनी जगह ठिठकते हुए बोले –

अब मत रोको हमें रंगीली रानी, बहुत सब्र कर लिया, अब नही कर पाएँगे…!

रंगीली – मे भी अपना तन-मन आपको सौंपने ही आई हूँ मालिक, लेकिन सबसे पहले अपना वादा तो पूरा करिए…!

धरमदास – कॉन सा वादा…? ओह्ह्ह्ह…वो..! अभी लो, इतना कहकर वो गद्दी की ओर मुड़े, और अपनी डेस्क के उपर रखे कुच्छ बही-खाते उन्होने रंगीली के हाथ पर रख दिए…

लो ये रहे तुम्हारे दोनो घरों के लेन-देन का हिसाब-किताब, देख लो बराबर है कि नही, और जो जी में आए वो इनका करो…!

रंगीली बेचारी ज़्यादा पढ़ी-लिखी तो नही थी, बस पाँचवी तक अपने गाओं के मदरसे में गयी थी,

फिर भी उसने लाला को दिखाने के लिए वो बही खाते खोल लिए, और यूँही पन्ने उलट-पलट कर कुच्छ देर देखती रही…!

लाला – विश्वास करो हमारा रानी, हम तुम्हारे साथ कोई धोखा नही करेंगे…

बही खातों को पकड़े हुए वो मेज की तरफ बढ़ गयी, खातों को बैठक के एक कोने में पटका, वहाँ से एक दिया उठाकर उसका तेल उनपर छिड़का और उसी दिए से उनमें आग लगा दी…!

फिर उन्हें जलता देखकर उसने एक गहरी साँस ली, मानो उसके दिल से एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो…!

उसने आज अपने दोनो परिवारों को लाला के क़र्ज़ से मुक्त करा लिया था…!

उसके बाद वो लाला के पास लौटी, और उनकी आँखों में आँखें डालकर बोली – अब ये दासी आपकी गुलाम है मालिक, जैसे जी में आए वैसे भोग सकते हैं…!

लाला ने उसकी कमर में हाथ डालकर अपने सीने से चिपका लिया, उनका मूसल जो अभी भी किसी बॉर्डर के जवान की तरह सीना ताने जंग लड़ने के लिए तैयार खड़ा था, उसकी कमर में जा अड़ा…

उसकी सख्ती महसूस कर रंगीली के मूह से सिसकी निकल गयी…!

लाला ने प्यार से उसके होंठों पर अपनी उंगली घूमाते हुए कहा – तुम हमारी दासी नही हो रंगीली, हमारे दिल की मलिका हो… आज से हमें अकेले में कभी मालिक मत कहना…!

रंगीली सेठ के चौड़े चाकले सीने से लगी उनकी छाती के बालों में अपनी उंगलियाँ फेरती हुई बोली –

मे तो आपकी नौकर हूँ, और अब अपना तन भी आपको सौंप रही हूँ, तो आप मेरे मालिक ही हुए ना…!

लाला – ओह्ह्ह..रानी, छोड़ो ये मालिक नौकर का झंझट, आओ गद्दी पर चलते हैं, इतना कहकर उन्होने उसे किसी बच्ची की तरह अपनी गोद में उठा लिया, और उसे लेकर गद्दी पर आकर बैठ गये…

वो अभी भी उनकी गोद में सिकुड़ी सिमटी सी बैठी थी…, लाला ने उसके हल्की सी लाली लगे होंठों को चूमते हुए उसके कठोर उरोजो को सहला कर कहा –

हम तुम्हारे लिए कुच्छ लेकर आए हैं, ये कहकर पास के ही डेस्क से एक पॅकेट निकाल कर उसे थमाते हुए बोले – इसमें तुम्हारे लिए अधोवस्त्र हैं,

हमारी इच्छा है कि तुम गुसल खाने में जाकर इन्हें पहनो, और उन्ही में हमारे पास आओ…!

जी मालिक हम अभी आए, और पॅकेट लेकर वो बैठक की साइड में बने गुसलखाने में चली गयी…!

लाला बड़ी बेसब्री से गुसलखाने की तरफ दृष्टि जमाए उसके निकलने का इंतेज़ार करने लगे…!

उधर गुसलखाने में जब रंगीली ने वो पॅकेट खोलकर देखा, उसमें गुलाबी रंग की नये जमाने की अंगिया और कच्छी (ब्रा-पेंटी) को देखकर खुद ही उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया…

हाए राम, इतने छोटे कपड़े पहन कर हम मालिक के सामने कैसे जा पाएँगे..? नही नही हमसे ये नही हो पाएगा…!

पर अब तो हम अपना सबकुच्छ सौंपने आही गये हैं, ये भी कपड़े तो निकालने ही पड़ेंगे, तो फिर इन्हें पहनने में ही क्या हर्ज़ है..

देखें तो सही इनमें लगते कैसे हैं…? लेकिन ये बताएगा कॉन…? इसी उधेड़-बुन में उसने अपनी साड़ी का पल्लू गिरा दिया…,

एक-एक करके सारे कपड़े उसके बदन से अलग हो गये, आज उसने अपने यौनि
प्रदेश को भी साफ किया था, सो अपनी छोटी सी मुनिया के पतले-पतले चिकने होंठों को सहलाते हुए वो खुद ही शर्म से पानी-पानी होने लगी…!

फिर जी कड़ा करके उसने वो अधोवस्त्र पहन लिए और उपर से बिना पेटिकोट और ब्लाउस के ही साड़ी लपेटकर वो बाहर आ गयी….!

लाला ने उसे देखते ही झुँझलाकर कहा – ओहू.., तुम तो उन्ही कपड़ों में हो अभी भी, हमारी ज़रा सी इच्छा पूरी नही कर सकती…!

वो धीरे-धीरे चलते हुए उनके पास तक आई, और उनके गले में अपनी पतली-पतली बाहें डालकर, नीचे के होंठ को दाँतों तले दबाकर बोली –

अब ये परदा तो आपको ही उठाना पड़ेगा हुज़ूर, लीजिए.. ये कहकर अपनी साड़ी का एक छोर उन्हें पकड़ा दिया…!

लाला उसकी बात समझ गये, और उसकी साड़ी को उसके बदन से अलग करने के लिए दुशासन की तरह खींचने लगे…!

उनके सारी खींचते ही वो भी गोल-गोल घूमने लगी, और दूसरे ही पल उसकी साड़ी द्रौपदी के चीर की तरह उसके बदन से अलग हो गयी, जिसे लाला ने दूर उछाल दिया…

अब उनकी आँखों के सामने जो रंगीली खड़ी हुई थी, वो किसी मेनका से कम नही थी, जो किसी भी विश्वामित्र तक का तप भंग कर्दे, यहाँ तो एक लंपट लाला था…!

उसे पिंक कलर की ब्रा-पैंटी में देखकर लाला की बान्छे खिल उठी और उन्होने उसे अपनी बाहों में भर लिया…………!

धरम दास, अपने सपनो की रानी को मात्र दो छोटे से कपड़ों में देखकर बाबला हो उठा, कितनी ही देर वो उसके रूप को निहारता रहा,

लंबे काले घने बालों के बीच उसका गोल सुंदर पूनम के चाँद सा चेहरा, जिसपर पहली बार नज़र पड़ते ही वो मर मिटा था,

बड़ी बड़ी हिरनी जैसी कजरारी आँखों के बीच माथे पर छोटी सी बिंदिया…, यौं तो रंगीली उसे बहुत सुंदर लगती थी, लेकिन आज वो कुच्छ बन संवर के भी आई थी, इस वजह से उसकी सुंदरता में और चार चाँद लग गये थे…

लंबी सुराइदार गर्दन के नीचे एक छोटी सी ब्रा में क़ैद उसके छोटे-छोटे अमरूद, एकदम गोलाई लिए हुए…, लंबा सपाट पतला सा पेट…जिसपर एक कतरा भी मास का नही था…

हल्की गहराई लिए उसकी नाभि, और उसके नीचे नज़र डालते ही लाला दीन दुनिया ही भूल गये…, एकदम पतली कमर जिसे लाला जैसा मर्द अपने हाथों के बीच समा सकता था…

दो पतली-पतली मक्खन जैसी कोमल जांघों के बीच उसका यौनी प्रदेश जो इस समय उस चार अंगुल की पैंटी में क़ैद था,

उसकी यौनी की पतली-पतली फाँकें हल्की सी उठान लिए उस पैंटी में अपनी उपस्थिति का आभास करा रही थी…!
 
कमर को दोनो हाथों के बीच लेकर लाला ने रंगीली को पलटा दिया, और उसके छोटे-छोटे, गोल मटोल नितंबों को सहला कर अपनी मुट्ठी में भींच लिया…

आआहह………मालिक…. दर्द होता है, बोली रंगीली….!

लाला ने फिर से उसे अपनी बाहों में भर लिया… और चारों ओर घूमते हुए, बैठक के चक्कर लगाते हुए खुशी से नाचने लगे…!

रंगीली की सारी हिचक अबतक जा चुकी थी, खिल-खिलाकर वो बोली – मालिक हमें उतारिये, आपको चक्कर आ जाएँगे….!

एक दो चक्कर लगाकर धरम दास उसे अपनी गोद में लेकर गद्दी पर बैठ गये, उनका लंड अपनी पूरी क्षमता के साथ रंगीली की गान्ड के नीचे अटका पड़ा था…

लगता था, जैसे उसने अपने लिए ज़मीन चुनकर उसपर कब्जा जमा रखा हो…!

किसी बच्ची की तरह गोद में बिठाए लाला ने रंगीली के होंठों को चूमते हुए कहा…, आज तुम्हें पाकर हमारी सारी तमन्ना पूरी होगयि…

औरतों के पीछे भागने वाली हमारी दौड़ आज यहीं ख़तम हो गयी.., हम तुमसे वादा करते हैं, आज के बाद तुम्हारे अलावा, किसी दूसरी औरत के पास नही जाएँगे…!

रंगीली – सच मालिक ! आप हमें इतना चाहते हैं, लाला ने हूंम्म करके जबाब दिया तो वो बोली – तो आज के बाद हम भी आपको कभी निराश नही होने देंगे…!

लेकिन वादा करिए, हमारा ये मिलन हमेशा पर्दे में ही रहेगा…!

लाला – हम तुम्हें वचन दे चुके हैं मेरी रानी, ये कहकर लाला ने उसे गद्दी पर लिटा दिया, और उसके माथे से शुरू करते हुए पैरों तक चूमते चले गये…

रंगीली के बदन में सनसनी सी दौड़ रही थी, उसे अपनी सहेली चमेली के शब्द याद आने लगे…

एक बार उपर से नीचे तक चूमने चाटने के बाद उन्होने उसे पलटा दिया…और वो उसके उपर आगये…

लाला ने एक मात्र अपनी धोती को भी निकाल फेंका, अब उनका कोब्रा, पूरी तरह आज़ाद खुली हवा में साँस लेकर खुलकर फुफ्कार रहा था,

इस समय वो अपने लिए बिल की तलाश में लाला के शरीर के साथ साथ इधर से उधर घूम रहा था, लाला ने अस्थाई तौर पर उसे रंगीली की मुलायम केले के तने जैसी जांघों के बीच वाली खाली जगह दे दी…

वो उसकी गर्दन को चूमते हुए नीचे की तरफ बढ़े, पीठ को चूम कर उन्होने उसकी ब्रा के हुक्स को अपने दाँतों में कस लिया, और बिना हाथ की मदद के दाँतों से उसके हुक्स खोल दिए…!

अपने गले और फिर पीठ पर लाला के लिजलिजे होंठों का स्पर्श पाकर रंगीली का बदन थरथरा उठा, वो किसी नागिन की तरह लहरा उठी…,

उन्माद में उसकी आँखें बंद हो चुकी थी, वो बंद आँखों से सोचने लगी, कि काश ये सुख वो अपने पति के साथ अपनी सुहाग सेज पर ले पाती…!

पर ये वक़्त अब ये सब सोचने का नही था, और वो फिर से मस्ती की रेल में हिचकोले खाने लगी…!

लाला ने उसकी कमर को चूमते हुए उसके गोल-गोल नितंबों को सहलाया और कमर के दोनो तरफ उसकी पैंटी की एलास्टिक में अपनी उंगलिया फँसा दी…!

रंगीली के बदन से ये आख़िरी आवरण भी हटने जा रहा था, ये सोचकर उसकी मुनिया ने अपने होंठ कस कर बंद कर लिए, जिससे उसके अंदर की पासीजन इकट्ठा होकर बूँदों के रूप में उसके बंद होंठों से बाहर टपकने लगी…!

लाला ने पैंटी को नीचे करना शुरू किया, रंगीली की कमर अपने आप उपर हो गयी, जो पैंटी को नीचे आने में सहायक सिद्ध हुई…



पैंटी को घुटनो तक लाकर लाला के हाथ उसके नितंबों की गोलाई और पुश्टता देख कर रुक गये, और उन्होने झुक कर उसके नितबो के शिखर को बारी-बारी से चूम लिया…

लाला का मन किया कि इन खरबूजों को चखा जाए, सो उसने हल्के से अपने दाँत उसके नितंब के शिखर पर गढ़ा दिए….

आआययययीीई….काटटू..मत मालिक…,

लाला ने मुस्करा कर उस जगह को जीभ से चाट लिया…, फिर वो उसकी जांघों को चूमते हुए उन्हें सहलाने लगे…

जांघों को सहलाते हुए उनका हाथ बीच में चला गया, और उसकी मुनिया के पास पहुँचते ही वो उसके कामरस से सन गया…!

अनुभवी लाला समझ गये कि रंगीली कितनी गरम हो चुकी है, खुद उनका भी हाल बहाल था, पल-पल कंट्रोल रखना भारी हो रहा था…

लेकिन वो अपने प्रथम मिलन को यादगार बनाना चाहते थे, नही चाहते थे, उन दोनो के मज़े में कोई कमी रह जाए…!

अब उन्होने रंगीली को पलटा कर सीधा कर दिया…, वो कठपुतली की तरह अपनी आँखें बंद किए हुए पड़ी थी…,



उपरवाले की इस असाधारण कारीगरी को लाला कुच्छ देर तक उसके पैरों में बैठे निहारते रहे…, शारीरिक तौर पर रंगीली अभी भी एक कमसिन कली जैसी ही थी…
 
जब कुच्छ देर लाला की तरफ से कोई हरकत नही हुई तो उसने हौले से अपनी आँखें खोल कर देखा, लाला से नज़र मिलते ही वो बुरी तरह शरमा गयी, और उसने फ़ौरन अपनी आँखें कस कर बंद करली…

लाला उसके चेहरे पर झुके, साथ ही उनका कालिया, जिसका फन अब कुछ गीला-गीला सा होने लगा था, उसकी जांघों से होता हुआ कमर तक रगड़ता चला गया…!

उन्होने रंगीली के होंठों पर अपने दहक्ते होंठ रख दिए, आज चमेली की सीख उसके काम आ रही थी, सो उसने भी अपने होंठों को हल्का सा खोल दिया, और वो दोनो एक दूसरे के होंठों को चूमने चाटने लगे…

लाला का एक हाथ उसके उभारों पर चला गया, और उसने उसके कच्चे अमरूदो को मसल डाला…!

रंगीली चिंहूक कर रह गयी, उसे आज तक उसके उभारों को इस तरह किसी ने नही मसला था, हल्के से दर्द के एहसास के साथ उसके शरीर के तार झंझणा उठे…!

लाला लगातार उसके अनारों को कभी प्यार से सहला देते, तो कभी ज़ोर्से मींज देते.., जिससे उसकी एडीया गद्दी पर अपने आप रगड़ने लगती…,

अब उसकी मुनियाँ में खुजली सी होने लगी थी…, उसे लगने लगा मानो हज़ारों च्चेंटियाँ मिलकर उसकी रसगागर के अंदर इधर से उधर चल रही हों…,

वो अपनी जांघों को कसते हुए बोली – आआहह….मालिकक्कक…अब कुछ करो...

अनुभवी लाला को ये समझते देर नही लगी, कि लौंडिया अब पूरी तरह उनका मूसल लेने के लिए तैयार है, लोहा दहकने लगा है, अब चोट मारने में ही फ़ायदा है…!

ये सोचकर वो उसकी टाँगों के बीच आकर बैठ गये…, एक बार अपने चौड़े से हाथ से उसकी रसीली मुनिया को सहलाया…., रंगीली की सिसकी तेज हो गयी…!

आअहह…..म्म्मलिकक्कक….अब जल्दी से डालो नाअ….,

लाला ने उसकी केले जैसी जांघों को अपने मजबूत पाटों पर रखा, फिर उसके पेट से सहलाते हुए हाथों से उसकी छोटी सी चुचियों को मुट्ठी में लेकर मसल्ते हुए बोले – क्या डालूं रानी,

रंगीली शरमा कर बोली – हमें नही पता…, जानबूझ कर सता रहे हैं, सब समझते हैं आप…, प्लीज़ अंदर करो ना… आहह…सबर नही होता अब…

लाला ने मुस्कराते हुए उसकी मुनियाँ के होंठों को खोलकर एक हाथ से अपने लौडे को एक-दो बार आगे पीछे करके, उसकी चूत के होंठों पर रखकर आगे पीछे करके दोनो की अच्छे से पहचान कराई…

फिर अपने मोटे टमाटर जैसे सुपाडे को उसके छोटे से छेद के उपर रख कर एक जोरदार धक्का अपनी कमर में लगा दिया….!


आअर्र्र्ृिई…..आआमम्म्माआअ…..माररररर…गायईयीई…र्ररिइ….,

वो लाला की छाती पर अपना हाथ अड़ाते हुए कराह कर बोली – आहह…मालिक…थोड़ा रूको…वरना हमारी जान चली जाएगी…!

रंगीली की इतनी कसी हुई चूत देखकर लाला आश्चर्य में पड़ गये…, एक शादी सुदा लड़की की चूत इतनी कसी हुई कैसे, ये तो एकदम कोरी ही लग रही है…

फिर उन्होने नीचे नज़र डालकर अपने लंड की तरफ देखा, जो लगभग 3-4थाई उसके बिल में चला गया था,

उन्होने रंगीली के बगलों में हाथ डालकर उसे गद्दी से उपर उठा कर अपने सीने से लगा लिया और उसके होंठों को चूमते हुए बोले – दर्द ज़्यादा हो रहा है मेरी रानी को…

दर्द के मारे उसकी पलकों की कोरों में आँसुओं की बूँदें छलक आई थी, उन्होने उसकी आँखों के खारे पानी को चाट कर उसकी पलकों को चूम लिया…!

लाला उसकी पीठ सहलाते हुए बोले – तुम्हें इतना दर्द क्यों हुआ, क्या अभी तक तुम्हारे पति ने तुम्हें नही भोगा…?

वो उनके चौड़े सीने में मूह छिपा कर बोली – उनका बहुत छोटा सा है, बिल्कुल आपकी उंगली के बराबर का, और आपका ये…, इतना कहकर वो शरमा गयी…!

लाला का सर फक्र से उँचा हो गया, वो मन ही मन अपने आपको दाद देने लगे…

वाह रे धरमदास, क्या किस्मत पाई है, एक कोरी कन्या आज तेरी बाहों में है…!

फिर उन्होने उसे फिर से गद्दी पर लिटा दिया, और उसकी कच्चे अनार जैसी कठोर चुचियों को सहलाने लगे, उसके निपल्स को उंगली में पकड़ कर हल्के हाथों से खेलने लगे..

रंगीली को ना जाने और कितना सीखना वाकी था, लाला उसके बदन के साथ जो जो करतब करते, उसे उतने ही प्रकार का अलग ही मज़ा मिलने लगता…

लिहाजा अब उसका चूत फटने का दर्द कम हो गया था…,

लाला ने अब अपना मूसल जैसा लंड धीरे से बाहर निकाला…अपने लंड पर खून के धब्बे देखकर वो समझ गये कि रंगीली की झिल्ली सही मायने में आज ही फटी है.

उन्हें उसपर और प्यार आया, और उसके होंठ चुस्कर उन्होने फिर से एक धक्का लगा दिया…, लंड एक इंच और पहले से ज़्यादा अंदर चला गया, रंगीली के मूह से एक बार फिर से कराह निकल गयी…

कुच्छ देर धीरे-धीरे वो उतनी ही लंबाई को अंदर बाहर करते रहे…, एकदम कसी हुई चूत ने उनके लंड को जैसे जकड रखा था, इस वजह से उनका लंड जबाब देता जा रहा था…!



वैसे उसकी भी बेचारे की क्या ग़लती थी, पिछले एक घंटे से वो अपने लिए बिल की आस लगाए हुए था, अब जाकर मिला तो आराम करने की सोचेगा ही…

लेकिन सेठ नही चाहते थे कि ये साला बीच रास्ते में धोका दे जाए, और उनकी इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ जायें, अगर ऐसा हुआ तो वो रंगीली के सामने कभी नज़र नही मिला पाएँगे…!

आज वो उसके उद्घाटन समारोह में अच्छी ख़ासी धूम मचाना चाहते थे, जिसे रंगीली जीवन भर याद करे, और हमेशा उसके लंड का लोहा मानती रहे,

इसलिए उन्होने उसे बाहर खींच लिया…, रंगीली को तो अभी थोडा-थोड़ा मज़ा आना शुरू हुआ था, तो जैसे ही उन्होने अपने नाग को उसकी बांबी से बाहर निकाला, एक प्रश्नवाचक निगाहों से वो उन्हें देखने लगी…!
 
उन्होने उसकी मुनिया के होंठों पर लगे खून के धब्बों को उसकी पैंटी से सॉफ किया, और अपनी जीभ लगाकर उसे चाट लिया…!

आअहह…रंगीली को जैसे ठंडक पड़ गयी…, दहकती चूत पर जीभ लगते ही
वो सिसक उठी….सस्स्सिईईई…आआहह…यईए…क्य्ाआ कर रहे हैं..आप्प्प्प…?

धरम दास ने मुस्कुराकर उसकी तरफ देख और बोले – तुम बस देखती जाओ हमारा कमाल, ये कह कर उन्होने अपने उपर के होंठों को उसके नीचे के होंठों पर टिका दिया….!



मस्ती से रंगीली की आँखें बंद हो गयी, और उसने अपने आपको लाला के हवाले कर दिया, क्योंकि अब तक वो जो भी कर रहे थे उनसे वो आनंद की नयी-नयी उँचाइयों को पार करती जा रही थी,

जिनके बारे में उसने ना तो कभी सोचा था और ना ही सुना था….!

लाला ने एक बार उसकी मुनिया को बड़े प्यार से किस किया, और फिर उसकी फांकों को जुदा करके उसके अंदर की लाल सुर्ख परतों को जीभ से चाट लिया….

सस्सिईईईई….आआहह…..म्माल्ल्लीइीकककक….बहुत मज़ाअ…आअत्त्ताअ…है ऐसे…तो..,,

कुच्छ देर इसी तरह चाटने के बाद उन्होने उसके भज्नासा जो अब कुच्छ कड़क होकर उसकी फांकों से बाहर निकल आया था, को अपने होंठों में दबाकर चूस डाला…!

यही नही, अपनी मोटी वाली उंगली भी उसके सुराख में डाल कर उसे अंदर बाहर करने लगे…

रंगीली की मज़े के कारण कमर थिरकने लगी, और वो अपनी गान्ड उचका-उचका कर उनकी उंगली को और अंदर तक लेने की कोशिश करने लगी…!

इस तरह से वो जल्दी ही अपनी चरम सीमा पर पहुँच गयी, और अंत में एक मस्ती की किलकारी मारते हुए उसने अपनी कमर को धनुष की तरह उठा लिया,

उसकी चूत ने अपना कामरस छोड़ दिया था, जिसे लाला जलेबी की चासनी समझ कर चाट गये…!

रंगीली इतने से मज़े की खुमारी से ही तृप्त होकर आँखें बंद किए सुकून से पड़ी थी, की तभी लाला ने फिर से उसकी टाँगें उठाकर अपनी जांघों पर रख ली और उसके उपर पसर कर उसके होंठों को चूमकर बोले –

कैसा लग रहा है मेरी जान…?

उसने एक बार उनकी आँखों में देखा, और फिर शरमा कर अपना सर एक तरफ को करके बोली – हमें नही पता…!

लाला ने मुस्करा कर उसके अमरूदो को मसल दिया…और उसके निप्प्लो को अंगूठे से मसल्ते हुए एक हाथ से अपने शेर को फिर से उसकी गुफा के द्वार तक ले गये…

अब वो कुच्छ खुल चुका था, सो अपने गरम दहक्ते सुपाडे को जगह तलाश करने में ज़्यादा परेशानी नही हुई…!

हल्का सा धक्का देकर लाला ने अपने 2” मोटे सुपाडे को उसकी सन्करि गुफा में प्रवेश करा दिया…,

थोड़ी देर पहले हुए छिड़काव के कारण अब उसे पहले जितनी मुश्किल नही आ रही थी, सो वो प्रथम प्रयास में की गयी खुदाई तक आराम से पहुँच गया…!

लाला कुच्छ देर तक उसी गहराई तक हल्के हल्के धक्के लगाते रहे, रंगीली की चूत में फिर से संकुचन शुरू होने लगा, और वो मस्ती से भर उठी…

अब उसकी भी कमर नीचे से उठने का प्रयास करती दिखी, तभी लाला ने एक और फाइनल स्ट्रोक मार दिया और उनका लंड जड़ तक उसकी चूत में समा गया…

एक साथ हुए हमले से रंगीली एक बार फिर बिल-बिला उठी, लेकिन इस बार उसने अपनी चीख को होंठों से बाहर नही आने दिया…!

अब वो नही चाहती थी, कि मालिक अब रुकें, आज वो अपने जिस्म की प्यास को पूरी तरह से शांत कर लेना चाहती थी…!

लाला का लंड वो अपनी गुफा के अंतिम छोर तक महसूस कर रही थी, जहाँ पहुँच कर उसने अपनी ठोकर से उसके काम श्रोत का ढक्कन हिला दिया…

अब उसकी मुनिया कुच्छ ज़्यादा ही तर होती लग रही थी…, रसीली दीवारों की चिकनाई पाकर लाला का लंड खुशी से झूम उठा, और अब वो पूरी लंबाई तक सतसट अपने सफ़र को तय करने लगा…

रंगीली का दर्द ना जाने कब छूमनतर हो चुका था, और ना जाने कब और कैसे उसकी कमर उचक-उचक कर लाला के लंड को अपने अंदर और अंदर तक लेने की कोशिश करने लगी…!

लाला की चतुराई काम आगयि थी, अब वो पूरी सिद्दत से उसकी प्यास बुझाने में लगे हुए थे, इधर रंगीली भी मज़े की पराकाष्ठा तक पहुँचने की कोशिश में थी…

दोनो ही एक दूसरे को संतुष्ट करने का भरसक प्रयास कर रहे थे, और इसी प्रयास में दोनो के मूह से अजीब अजीब सी आवाज़ें, कराहें निकल रही थी..

वो दोनो पसीने से तर हो चुके थे…
 
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