hotaks444
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रंगीली का बेटा शंकर अब बड़ा हो रहा था, अभी से ही वो किसी सजीले नौजवान सा दिखने लगा था…!
लाला जी उस पर जान छिडकते थे, लेकिन सेठानी को वो एक आँख नही भाता था, कल्लू की नाकामी और ग़लत हरकतों से वो चिड-चिड़ी सी हो गयी थी...,
अपनी खीज वो रंगीली और दूसरे नौकरों पर निकालती रहती…!
वाकई शरीर के हिसाब से शंकर की चोचो (लिंग) का साइज़ भी अब अच्छा ख़ासा होने लगा था, और उसमें अब अकड़न पैदा होना शुरू हो गयी थी…
जब उसकी माँ उसके बदन की मालिश करती, तो साथ साथ में अभी भी उसके लिंग की मालिश करना नही भूलती, लेकिन अब उसका लिंग मालिश के दौरान सख़्त होने लगता,
जिसे रंगीली अपनी मुट्ठी में लेकर खूब आगे पीछे करती, और हर दिन उसका साइज़ मापने बैठ जाती…!
अभी से उसे अपने बेटे का लंड लाला जी के लंड की टक्कर का लगने लगा था, जिसे देखकर उसकी भावनायें बदलने लगती..., ना चाहते हुए भी उसकी चूत गीली हो जाती…!
शंकर को भी अब मालिश के दौरान अजीब सी उत्तेजना का एहसास होने लगा था, एक दिन वो बोला भी…
माँ, अब तू मेरी मालिश करना बंद कर्दे, अब में बड़ा हो गया हूँ, मे खुद अपना ख़याल रख सकता हूँ…!
रंगीली ने झिड़कते हुए उसे जबाब दिया – अच्छा ! कितना बड़ा हो गया है, 8 जमात क्या पास करली, अपने आप को बहुत बड़ा सूरमा समझने लगा है,
चुपचाप से लेटा रह, मेरे लिए तो तू अभी भी मेरा नन्हा सा शंकर ही है…!
शंकर – पर माँ, जब तू मेरी चोचो को पकड़ती है, तो मुझे अजीब सी गुद-गुदि जैसी होती है.., और मुझे लगने लगता है जैसे मुझे मूत आने वाला हो..!
रंगीली – लेकिन मेने तो देखा नही कभी तेरा मूत निकलते…!
शंकर – नही बस ऐसा लगता है, और उसके बाद इसका साइज़ कितना बढ़ जाता है ये तो तूने भी देखा ही है…, कभी कभी तो ऐसा लगता है कि कहीं ये फट ना जाए…!
रंगीली – तू कहीं इसको अपना हाथ तो नही लगाता,
शंकर – नही माँ, मन तो करता है, कि इसे हाथ में लेकर खूब ज़ोर्से मसलूं, हिलाऊ, लेकिन तूने मना किया है ना, तो अपना मन मार कर रह जाता हूँ…!
रंगीली उसके बालों में अपने तेल से सने हुए हाथों की उंगलियों से मालिश करते हुए बोली – शाबास मेरा बहादुर बेटा, यही तो में चाहती हूँ, कि तू अपने मन को काबू में करना सीखे..., दिमाग़ का इस्तेमाल करे..!
इस मन का क्या है बेटा, ये तो चंचल है, कुछ भी सोचने लगता है, लेकिन दिमाग़ हमें बताता है कि हमारे लिए क्या सही है और क्या ग़लत…!
शंकर – लेकिन माँ, मेरे साथ ऐसा होता क्यों है, कहीं ये कोई बीमारी तो नही है..?
रंगीली – नही मेरे लाल, ये कोई बीमारी नही है, और मेरे शेर बेटे को कोई बीमारी हो भी नही सकती,
धीरज रख बेटा, तेरी हर बात का जबाब मिलेगा तुझे, अभी बस इतना समझ… तेरी माँ जो कह रही है वो सिर्फ़ और सिर्फ़ तेरी भलाई के लिए है…!
शंकर कुछ ना समझते हुए भी हां में अपना सिर हिला देता…!
शंकर की मालिश करते वक़्त रंगीली अक्सर गरम हो जाया करती, वो वहाँ से अपनी गीली चूत हाथ से दबाए लाला जी की खोज में निकल पड़ती और मौका लगते ही वो उनकी गोद में समा जाती…!
लेकिन लाला जी की अब उमर बढ़ रही थी, वो अब लगभग 55 साल को पार कर रहे थे, तो अब एक भरपूर जवान औरत को संतुष्ट करना अब उनको थोड़ा मुश्किल होने लगा था…
भले ही वो कितना ही अच्छा खा पी रहे हो लेकिन बमुश्किल, एक बार के बाद अब उनका लंड जल्दी खड़ा नही हो पाता था, वहीं उन्ही के द्वारा बिगाडी गयी रंगीली की आदतें,
जिसे कम से कम लगातार दो बार जब तक जम के चुदाई ना मिले, उसकी चूत की खुजली नही मिट पाती थी…!
ये तो अच्छा था, कि उसकी कोशिशों से रामू थोड़ा चोदने लायक हो गया था, जिससे उसका काम चल रहा था…!
लेकिन अब उसके अपने बेटे की चोचो, जो अब अच्छी ख़ासी अक-47 राइफल बनती जा रही थी, उसकी सख्ती देखकर उसे उन दोनो के लंड फीके नज़र आने लगे थे…!
खैर इसी तरह समय गुजर रहा था…! और शंकर इस कच्ची उमर में ही लगभग 6 फीट लंबा, 40” का मजबूत कसरती सीना हो गया था उसका,
6 पॅक वाले हीरो अपने आपको खुदा समझने लगते हैं, यहाँ तो रंगीली मेहनत करते करते उसका रोज़ बल्टियों पसीना निकलवाति थी, इस वजह से उसका पूरा शरीर ही स्टील की बॉडी बनता जा रहा था…,
एक दम सुर्ख चेहरा…हल्की-हल्की मूँछे निकलना अभी शुरू हो रही थी, माने रोंगटे आ रहे थे...,
शंकर की लाडली बेहन सलौनी भी जो मात्र उससे 3-3.5 साल ही छोटी थी, उसी के साथ स्कूल में जाती थी…!
साँवली सलौनी अपनी माँ की छवि नटखट गुड़िया अपने भैया की दुलारी सलौनी उसकी साइकल के आगे बैठकर अपने आप को किसी राजकुमारी से कम नही समझती थी…
लाला जी ने ये साइकल उसे उसके जन्म दिन पर भेंट की थी, जब वो 9वी क्लास में पहुँचा था, उससे पहले तो वो घर से 3किमी दूर अपने स्कूल दौड़ते दौड़ते ही आता- जाता था,
जब उसकी गुड़िया स्कूल जाने लगी तो वो उसे अपनी पीठ पर लाद कर ही दौड़ लेता..
वो उसकी पीठ पर उपर नीचे होती हुई, ऐसे महसूस करती जैसे किसी घोड़े की सवारी कर रही हो.., कभी कभी वो उसके कंधों पर ही उच्छल कर बैठ जाती थी…!
कभी-कभी वो उसके गले से लटक जाती, शंकर उसको फूल की तरह हवा में उछाल देता, वो खिल-खिलाती हुई हवा में 10 फुट तक उपर चली जाती, और नीचे आते हुए उसे बड़ा मज़ा आता…!
अपने भाई के बाजुओं की ताक़त पर उसे पूरा भरोसा था, कि वो उसे गिरने नही देगा, सो वो इस तरह के खेल का भरपूर आनंद लेती…!
लेकिन अब वो बड़ी हो रही थी, बचपन में खेले गये अपने भाई के साथ वाले खेल, जाने कहाँ-कहाँ उसके हाथ लगते थे, आज उन पलों को सोच-सोच कर वो गुद-गुदि से भर जाती…!
वो सोचती कि काश भैया को ये साइकल ना मिली होती, तो वो आज भी उसकी पीठ और कंधों की सवारी कर रही होती, भैया के हाथ मेरे छोटे से इन चुतड़ों पर होते…!
ये सोचते ही वो उन्हें अपने हाथ से ही सहला देती.., कितना मज़ा आता उसे अगर ऐसा होता तो….?
एक दिन शाम को हवेली में अपने भाई के साथ पढ़ाई के बाद खेलते-खेलते सलौनी को अंधेरा हो गया, गाओं में लाइट तो होती नही, सो माँ के कहने पर शंकर उसको छोड़ने घर तक चल दिया…!
लाला जी उस पर जान छिडकते थे, लेकिन सेठानी को वो एक आँख नही भाता था, कल्लू की नाकामी और ग़लत हरकतों से वो चिड-चिड़ी सी हो गयी थी...,
अपनी खीज वो रंगीली और दूसरे नौकरों पर निकालती रहती…!
वाकई शरीर के हिसाब से शंकर की चोचो (लिंग) का साइज़ भी अब अच्छा ख़ासा होने लगा था, और उसमें अब अकड़न पैदा होना शुरू हो गयी थी…
जब उसकी माँ उसके बदन की मालिश करती, तो साथ साथ में अभी भी उसके लिंग की मालिश करना नही भूलती, लेकिन अब उसका लिंग मालिश के दौरान सख़्त होने लगता,
जिसे रंगीली अपनी मुट्ठी में लेकर खूब आगे पीछे करती, और हर दिन उसका साइज़ मापने बैठ जाती…!
अभी से उसे अपने बेटे का लंड लाला जी के लंड की टक्कर का लगने लगा था, जिसे देखकर उसकी भावनायें बदलने लगती..., ना चाहते हुए भी उसकी चूत गीली हो जाती…!
शंकर को भी अब मालिश के दौरान अजीब सी उत्तेजना का एहसास होने लगा था, एक दिन वो बोला भी…
माँ, अब तू मेरी मालिश करना बंद कर्दे, अब में बड़ा हो गया हूँ, मे खुद अपना ख़याल रख सकता हूँ…!
रंगीली ने झिड़कते हुए उसे जबाब दिया – अच्छा ! कितना बड़ा हो गया है, 8 जमात क्या पास करली, अपने आप को बहुत बड़ा सूरमा समझने लगा है,
चुपचाप से लेटा रह, मेरे लिए तो तू अभी भी मेरा नन्हा सा शंकर ही है…!
शंकर – पर माँ, जब तू मेरी चोचो को पकड़ती है, तो मुझे अजीब सी गुद-गुदि जैसी होती है.., और मुझे लगने लगता है जैसे मुझे मूत आने वाला हो..!
रंगीली – लेकिन मेने तो देखा नही कभी तेरा मूत निकलते…!
शंकर – नही बस ऐसा लगता है, और उसके बाद इसका साइज़ कितना बढ़ जाता है ये तो तूने भी देखा ही है…, कभी कभी तो ऐसा लगता है कि कहीं ये फट ना जाए…!
रंगीली – तू कहीं इसको अपना हाथ तो नही लगाता,
शंकर – नही माँ, मन तो करता है, कि इसे हाथ में लेकर खूब ज़ोर्से मसलूं, हिलाऊ, लेकिन तूने मना किया है ना, तो अपना मन मार कर रह जाता हूँ…!
रंगीली उसके बालों में अपने तेल से सने हुए हाथों की उंगलियों से मालिश करते हुए बोली – शाबास मेरा बहादुर बेटा, यही तो में चाहती हूँ, कि तू अपने मन को काबू में करना सीखे..., दिमाग़ का इस्तेमाल करे..!
इस मन का क्या है बेटा, ये तो चंचल है, कुछ भी सोचने लगता है, लेकिन दिमाग़ हमें बताता है कि हमारे लिए क्या सही है और क्या ग़लत…!
शंकर – लेकिन माँ, मेरे साथ ऐसा होता क्यों है, कहीं ये कोई बीमारी तो नही है..?
रंगीली – नही मेरे लाल, ये कोई बीमारी नही है, और मेरे शेर बेटे को कोई बीमारी हो भी नही सकती,
धीरज रख बेटा, तेरी हर बात का जबाब मिलेगा तुझे, अभी बस इतना समझ… तेरी माँ जो कह रही है वो सिर्फ़ और सिर्फ़ तेरी भलाई के लिए है…!
शंकर कुछ ना समझते हुए भी हां में अपना सिर हिला देता…!
शंकर की मालिश करते वक़्त रंगीली अक्सर गरम हो जाया करती, वो वहाँ से अपनी गीली चूत हाथ से दबाए लाला जी की खोज में निकल पड़ती और मौका लगते ही वो उनकी गोद में समा जाती…!
लेकिन लाला जी की अब उमर बढ़ रही थी, वो अब लगभग 55 साल को पार कर रहे थे, तो अब एक भरपूर जवान औरत को संतुष्ट करना अब उनको थोड़ा मुश्किल होने लगा था…
भले ही वो कितना ही अच्छा खा पी रहे हो लेकिन बमुश्किल, एक बार के बाद अब उनका लंड जल्दी खड़ा नही हो पाता था, वहीं उन्ही के द्वारा बिगाडी गयी रंगीली की आदतें,
जिसे कम से कम लगातार दो बार जब तक जम के चुदाई ना मिले, उसकी चूत की खुजली नही मिट पाती थी…!
ये तो अच्छा था, कि उसकी कोशिशों से रामू थोड़ा चोदने लायक हो गया था, जिससे उसका काम चल रहा था…!
लेकिन अब उसके अपने बेटे की चोचो, जो अब अच्छी ख़ासी अक-47 राइफल बनती जा रही थी, उसकी सख्ती देखकर उसे उन दोनो के लंड फीके नज़र आने लगे थे…!
खैर इसी तरह समय गुजर रहा था…! और शंकर इस कच्ची उमर में ही लगभग 6 फीट लंबा, 40” का मजबूत कसरती सीना हो गया था उसका,
6 पॅक वाले हीरो अपने आपको खुदा समझने लगते हैं, यहाँ तो रंगीली मेहनत करते करते उसका रोज़ बल्टियों पसीना निकलवाति थी, इस वजह से उसका पूरा शरीर ही स्टील की बॉडी बनता जा रहा था…,
एक दम सुर्ख चेहरा…हल्की-हल्की मूँछे निकलना अभी शुरू हो रही थी, माने रोंगटे आ रहे थे...,
शंकर की लाडली बेहन सलौनी भी जो मात्र उससे 3-3.5 साल ही छोटी थी, उसी के साथ स्कूल में जाती थी…!
साँवली सलौनी अपनी माँ की छवि नटखट गुड़िया अपने भैया की दुलारी सलौनी उसकी साइकल के आगे बैठकर अपने आप को किसी राजकुमारी से कम नही समझती थी…
लाला जी ने ये साइकल उसे उसके जन्म दिन पर भेंट की थी, जब वो 9वी क्लास में पहुँचा था, उससे पहले तो वो घर से 3किमी दूर अपने स्कूल दौड़ते दौड़ते ही आता- जाता था,
जब उसकी गुड़िया स्कूल जाने लगी तो वो उसे अपनी पीठ पर लाद कर ही दौड़ लेता..
वो उसकी पीठ पर उपर नीचे होती हुई, ऐसे महसूस करती जैसे किसी घोड़े की सवारी कर रही हो.., कभी कभी वो उसके कंधों पर ही उच्छल कर बैठ जाती थी…!
कभी-कभी वो उसके गले से लटक जाती, शंकर उसको फूल की तरह हवा में उछाल देता, वो खिल-खिलाती हुई हवा में 10 फुट तक उपर चली जाती, और नीचे आते हुए उसे बड़ा मज़ा आता…!
अपने भाई के बाजुओं की ताक़त पर उसे पूरा भरोसा था, कि वो उसे गिरने नही देगा, सो वो इस तरह के खेल का भरपूर आनंद लेती…!
लेकिन अब वो बड़ी हो रही थी, बचपन में खेले गये अपने भाई के साथ वाले खेल, जाने कहाँ-कहाँ उसके हाथ लगते थे, आज उन पलों को सोच-सोच कर वो गुद-गुदि से भर जाती…!
वो सोचती कि काश भैया को ये साइकल ना मिली होती, तो वो आज भी उसकी पीठ और कंधों की सवारी कर रही होती, भैया के हाथ मेरे छोटे से इन चुतड़ों पर होते…!
ये सोचते ही वो उन्हें अपने हाथ से ही सहला देती.., कितना मज़ा आता उसे अगर ऐसा होता तो….?
एक दिन शाम को हवेली में अपने भाई के साथ पढ़ाई के बाद खेलते-खेलते सलौनी को अंधेरा हो गया, गाओं में लाइट तो होती नही, सो माँ के कहने पर शंकर उसको छोड़ने घर तक चल दिया…!