hotaks444
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उधर सलौनी के मन में आनंद की तरंगें उठ रही थी, आज उसे अपने भाई के द्वारा अपने कोमलांगों के साथ हुई छेड़-छाड ख़ासकर उसकी मुनिया पर हुए भाई की जीभ के स्पर्श सुख से वो अभी भी गुद-गुदि से भरी हुई थी…,
दोनो ही अपनी-अपनी अलग-अलग सोच में डूबे खामोशी से घर आ गये…!
शंकर अब 12वी क्लास में आ चुका था, वो अपनी पढ़ाई के प्रति पूरी तरह सजग था…
उसे पता था कि इस बार के बोर्ड एग्ज़ॅम के रिज़ल्ट पर ही उसका आगे का भविष्य आधारित है…
एक दिन खाना पीना खाकर दोनो माँ बेटे ज़मीन पर बिस्तर लगाकर सोने की तैयारी में थे,
लेटे हुए शंकर ने अपना एक हाथ अपनी माँ के पेट पर रखा और उसके ठंडे, मुलायम पेट पर हाथ से सहलाते हुए बोला –
माँ, मेरे क्लास टीचर कह रहे थे, कि तुम इस बार भी अच्छे नंबरों से पास कर जाओगे, थोड़ी और मेहनत करो, जिससे तुम्हें शहर के किसी भी अच्छे कॉलेज में बिना किसी खर्चे के दाखिला मिल जाएगा…!
ऐसे ही मेहनत करते रहे तो तुम अपने जीवन में बहुत आगे बढ़ सकते हो…!
शंकर के गरम हाथ का स्पर्श अपने ठंडे पेट पर महसूस कर रंगीली को गुदगुदी सी हो रही थी, उसकी बात सुनकर उसने उसका हाथ अपने पेट से उठाकर उसकी तरफ करवट बदली और फिर उसी हाथ को अपनी कमर पर रख लिया…!
अपने बेटे को बाहों में जकड कर उसका माथा चूमकर बोली – मेरा बेटा लाखों में एक है, मुझे पता है तू बहुत बड़ा आदमी बन सकता है…,
लेकिन बेटा क्या तू हम लोगों को छोड़कर शहर में अकेला रह पाएगा..?
शंकर ने अपना मुँह अपनी माँ के वक्षों के बीच दबाकर उसके बदन की खुश्बू सूंघते हुए बोला – अपने परिवार के भले के लिए अकेला रह लूँगा माँ, कॉलेज की फीस तो माफ़ ही हो जाएगी…
अपने रहने खाने के खर्चे लायक कोई काम कर लूँगा, तू मेरी चिंता मत कर..,
बातों के दौरान शंकर ने अपनी एक टाँग रंगीली की टाँग पर चढ़ा दी, दोनो के बदन इतने नज़दीक होने से गर्मी बढ़ना स्वाभिवीक ही था,
शंकर का लंड धीरे-धीरे गर्मी पाकर अपना सिर उठाने लगा था, और वो रंगीली की जाँघ से टच हो गया…!
अपनी चुचियों के बीच बेटे के सिर को दबाकर वो उसकी पीठ सहला रही थी, जैसे ही उसे उसका लंड अपनी जाँघ पर महसूस हुआ, उसके बदन में हलचल शुरू हो गयी…!
उसके एक मन ने उसे अलग होने को कहा, ये तू क्या कर रही है रंगीली, अपने ही बेटे के लिए मन में ऐसे गंदे भाव लाना ठीक नही है, ये सोच कर उसने उसकी टाँग को नीचे रख कर दूसरी तरफ करवट लेने की सोची…
तभी शंकर ने अपनी कमर आगे करते हुए कहा – तूने कोई जबाब नही दिया माँ, अब तो मे 18 साल का हो गया हूँ, अपनी देखभाल खुद कर सकता हूँ…!
कमर आगे करने से शंकर का लंड उसकी जांघों के बीच रगड़ता हुआ और अंदर उपर को चला गया, अब वो उसकी चूत से कुछ सेंटीमीटर की दूरी पर था…!
अपनी जांघों के बीच बेटे बेटे के मस्त कड़क लंड को महसूस करके रंगीली के दिमाग़ में उसकी छवि घूम गयी,
उसने उसकी जाँघ के पीछे हाथ लगाकर उसे और अपनी ओर करते हुए कहा – देखेंगे, अभी तो समय है तेरे इम्तिहान में…!
थोड़ा सा आगे सरकते ही शंकर का लंड उसकी चूत की फांकों पर जा टिका,
लंड का दबाब अपनी चूत के मोटे-मोटे होंठों पर महसूस करते ही उसकी चूत फडक उठी,
कपड़ों के उपर से ही वो लंड की गर्मी सहन नही कर पाई और गीली होने लगी…!
उधर शंकर धीरे-धीरे अपनी माँ के कूल्हे को सहला रहा था, उसका हाथ थोड़ा सा नीचे होते ही, उसके मुलायम गद्दे जैसे चूतड़ पर पहुँच गया, वो उसे दबाने लगा…!
आहह.. माँ, एक बात पुच्छू…?
रंगीली - हूंम्म…, क्या है..?
शंकर – तेरे चूतड़ इतने मुलायम क्यों हैं ? जबकि देख मेरे कितने कठोर हैं, दब्ते ही नही, और तेरे तो किसी स्पूंज की तरह दब जाते हैं, ये कहकर उसने उसके एक चूतड़ को ज़ोर्से दबा दिया…!
आअहह…बदमाश ज़ोर्से नही, दर्द होता है… रंगीली मीठी सी कराह लेकर बोली..
सॉरी माँ, मुझे अंदाज़ा नही था, ये कहकर उसने उसके कूल्हे को सहला दिया…!
अंजाने में ही उसके बेटे ने उसके बदन में आग पैदा करदी थी, वैसे भी लाला के लंड पर तो लाजो का कब्जा हो चुका था, पति रामू उसकी मनमर्ज़ी प्यास नही बुझा पा रहा था,
सो महीनों से अधूरी प्यास लिए रंगीली माँ बेटे के संबंध को भूलती जा रही थी, अब उसमें उसे एक जवान मर्द नज़र आ रहा था, जिसके पास एक ऐसा हथियार था, जैसा उसने आजतक कभी इस्तेमाल नही किया था…!
दोनो ही अपनी-अपनी अलग-अलग सोच में डूबे खामोशी से घर आ गये…!
शंकर अब 12वी क्लास में आ चुका था, वो अपनी पढ़ाई के प्रति पूरी तरह सजग था…
उसे पता था कि इस बार के बोर्ड एग्ज़ॅम के रिज़ल्ट पर ही उसका आगे का भविष्य आधारित है…
एक दिन खाना पीना खाकर दोनो माँ बेटे ज़मीन पर बिस्तर लगाकर सोने की तैयारी में थे,
लेटे हुए शंकर ने अपना एक हाथ अपनी माँ के पेट पर रखा और उसके ठंडे, मुलायम पेट पर हाथ से सहलाते हुए बोला –
माँ, मेरे क्लास टीचर कह रहे थे, कि तुम इस बार भी अच्छे नंबरों से पास कर जाओगे, थोड़ी और मेहनत करो, जिससे तुम्हें शहर के किसी भी अच्छे कॉलेज में बिना किसी खर्चे के दाखिला मिल जाएगा…!
ऐसे ही मेहनत करते रहे तो तुम अपने जीवन में बहुत आगे बढ़ सकते हो…!
शंकर के गरम हाथ का स्पर्श अपने ठंडे पेट पर महसूस कर रंगीली को गुदगुदी सी हो रही थी, उसकी बात सुनकर उसने उसका हाथ अपने पेट से उठाकर उसकी तरफ करवट बदली और फिर उसी हाथ को अपनी कमर पर रख लिया…!
अपने बेटे को बाहों में जकड कर उसका माथा चूमकर बोली – मेरा बेटा लाखों में एक है, मुझे पता है तू बहुत बड़ा आदमी बन सकता है…,
लेकिन बेटा क्या तू हम लोगों को छोड़कर शहर में अकेला रह पाएगा..?
शंकर ने अपना मुँह अपनी माँ के वक्षों के बीच दबाकर उसके बदन की खुश्बू सूंघते हुए बोला – अपने परिवार के भले के लिए अकेला रह लूँगा माँ, कॉलेज की फीस तो माफ़ ही हो जाएगी…
अपने रहने खाने के खर्चे लायक कोई काम कर लूँगा, तू मेरी चिंता मत कर..,
बातों के दौरान शंकर ने अपनी एक टाँग रंगीली की टाँग पर चढ़ा दी, दोनो के बदन इतने नज़दीक होने से गर्मी बढ़ना स्वाभिवीक ही था,
शंकर का लंड धीरे-धीरे गर्मी पाकर अपना सिर उठाने लगा था, और वो रंगीली की जाँघ से टच हो गया…!
अपनी चुचियों के बीच बेटे के सिर को दबाकर वो उसकी पीठ सहला रही थी, जैसे ही उसे उसका लंड अपनी जाँघ पर महसूस हुआ, उसके बदन में हलचल शुरू हो गयी…!
उसके एक मन ने उसे अलग होने को कहा, ये तू क्या कर रही है रंगीली, अपने ही बेटे के लिए मन में ऐसे गंदे भाव लाना ठीक नही है, ये सोच कर उसने उसकी टाँग को नीचे रख कर दूसरी तरफ करवट लेने की सोची…
तभी शंकर ने अपनी कमर आगे करते हुए कहा – तूने कोई जबाब नही दिया माँ, अब तो मे 18 साल का हो गया हूँ, अपनी देखभाल खुद कर सकता हूँ…!
कमर आगे करने से शंकर का लंड उसकी जांघों के बीच रगड़ता हुआ और अंदर उपर को चला गया, अब वो उसकी चूत से कुछ सेंटीमीटर की दूरी पर था…!
अपनी जांघों के बीच बेटे बेटे के मस्त कड़क लंड को महसूस करके रंगीली के दिमाग़ में उसकी छवि घूम गयी,
उसने उसकी जाँघ के पीछे हाथ लगाकर उसे और अपनी ओर करते हुए कहा – देखेंगे, अभी तो समय है तेरे इम्तिहान में…!
थोड़ा सा आगे सरकते ही शंकर का लंड उसकी चूत की फांकों पर जा टिका,
लंड का दबाब अपनी चूत के मोटे-मोटे होंठों पर महसूस करते ही उसकी चूत फडक उठी,
कपड़ों के उपर से ही वो लंड की गर्मी सहन नही कर पाई और गीली होने लगी…!
उधर शंकर धीरे-धीरे अपनी माँ के कूल्हे को सहला रहा था, उसका हाथ थोड़ा सा नीचे होते ही, उसके मुलायम गद्दे जैसे चूतड़ पर पहुँच गया, वो उसे दबाने लगा…!
आहह.. माँ, एक बात पुच्छू…?
रंगीली - हूंम्म…, क्या है..?
शंकर – तेरे चूतड़ इतने मुलायम क्यों हैं ? जबकि देख मेरे कितने कठोर हैं, दब्ते ही नही, और तेरे तो किसी स्पूंज की तरह दब जाते हैं, ये कहकर उसने उसके एक चूतड़ को ज़ोर्से दबा दिया…!
आअहह…बदमाश ज़ोर्से नही, दर्द होता है… रंगीली मीठी सी कराह लेकर बोली..
सॉरी माँ, मुझे अंदाज़ा नही था, ये कहकर उसने उसके कूल्हे को सहला दिया…!
अंजाने में ही उसके बेटे ने उसके बदन में आग पैदा करदी थी, वैसे भी लाला के लंड पर तो लाजो का कब्जा हो चुका था, पति रामू उसकी मनमर्ज़ी प्यास नही बुझा पा रहा था,
सो महीनों से अधूरी प्यास लिए रंगीली माँ बेटे के संबंध को भूलती जा रही थी, अब उसमें उसे एक जवान मर्द नज़र आ रहा था, जिसके पास एक ऐसा हथियार था, जैसा उसने आजतक कभी इस्तेमाल नही किया था…!